बीते सप्ताह मे हमने इस ब्लाग का एक साल पूरा किया २२ मई को. इस एक साल मे इस ब्लाग पर 281 पोस्ट लिखी गई और तकरीबन 8500 से उपर टिपणीयां उन पर प्राप्त हुई.
इस अवसर पर जिन मित्रों ने आकर बधाई दी और आगे बढने का हौंसला दिया उनका तहेदिल से शुक्रिया. और जो मित्र नही आये उनका उससे भी ज्यादा शुक्रिया.
जैसा की आप जानते हैं कि हमारा पता भी बदल कर अब http://taau.in होगया है. टेंपलेट का थोडा बहुत काम बाकी बचा है. कुछ थोडा बहुत रंग रोगन बचा है. जिसके पूरा होते ही पहले की तरह साईड बार मे मेरिट लिस्ट लगनी शुरु हो जायेगी. सभी के नम्बर हमारे पास कम्प्युटर मे सुरक्षित है. आपके द्वारा दिये गये प्यार और आशीर्वाद के लिये हम आपके आभारी हैं. और भविष्य मे भी आपसे यही उम्मीद करते हैं.
इसी २२ मई के दिन हमारे साथी ब्लागर श्री महावीर सेमलानी ने अपनी शादी की वर्षगांठ मनाई. श्रीमती और श्री महावीर बी. सेमलानी को ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मण्डल की तरफ़ से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.
पिछले ही सप्ताह श्री समीरलाल उडनतश्तरी ने असंभव कार्य कर दिखाया. उन्होने महाताऊश्री का सबसे कठीन खिताब हेट्ट्रीक बनाकर जीता. बहुत बधाई.
इसी संबंध मे एक बात और कि वो जल्दी ही ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल मे शरीक होरहे हैं और जाहिर सी बात है कि अगर वो संपादक मंडल मे आरहे हैं तो पहेली मे भाग नही लेंगे. इसके पुर्व सुश्री अल्पना वर्मा भी शीर्ष पर रहते हुये ही इस पहेली से इसी वजह से हटी थी. आज वो आयोजक के रुप मे इस पहेली के सफ़ल संचालन मे भागीदार हैं. और इस सफ़लता का बहुत कुछ श्रेय भी उनको जाता है. तो हम श्री समीरलाल जी का स्वागत करते हैं.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
आन्ध्र प्रदेश ,भारत देश के पूर्वी तट पर स्थित राज्य है. यह क्षेत्र से भारत का सबसे बड़ा चौथा राज्य और जनसंख्या द्वारा पांचवां सबसे बड़ा राज्य है.इस की राजधानी हैदराबाद है.२३ जिलों वाले इस राज्य में बहुत सी ऐसे जगहें हैं जिनका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है.आज हम आप को इसी प्रदेश की एक ऐसी ही प्राचीन और महत्वपूर्ण जगह पर ले चलेंगे.यह जगह है 'बुर्रा या बोर्रा गुफाएं '. बुर्रा या बोर्रा गुफाएं- तेलुगु में बुर्रा का अर्थ है-'मस्तिष्क'. इसी शब्द का एक अर्थ यह भी है कि ज़मीन में गहरा खुदा हुआ.
इन गुफाओं में विभिन्न आकार के speleothems,स्टेलेक्टाईट और स्टेलेक्माईट मिल जाते हैं.
स्टेलेक्टाईट- चूनापत्थर (लाईम स्टोन) पानी के साथ क्रिया करने के बाद गुफा की दरारों से रिस रिस कर स्टेलेक्टाईट अथवा आश्चुताश्म बनाते हैं. (दीवार से नीचे की ओर लटकी चूना पत्थर की रचना: छत से रिसता हुवा जल धीरे-धीरे टपकता रहता हैं। इस जल में अनेक पदार्थ घुले रहते हैं। अधिक ताप के कारण वाष्पीकरण होने पर जल सूखने लगता हैं तथा गुफा की छत पर पदार्थों जमा होने लगता हैं । इस निक्षेप की आकृति कुछ कुछ स्तंभ की तरह होती हैं जो छत से नीचे फर्श की ओर विकसित होते हैं) [चित्र में देखीये]
इतिहास - गुफा के बाहर लगे बोर्ड पर लिखे विवरण के अनुसार- यह गुफाएं १५० मिलीयन सालों पुरानी बताई जाती हैं.इन्हें विलियम किंग जोर्जे नमक एक अंग्रेज ने सन् १८०७ में खोज निकला था.इन गुफा के आस पास रहने वाले ग्रामवासी बताते हैं कि एक बार सालों पहले एक गाय चरते चरते ज़मीन के एक छेद से ६० मीटर नीचे गड्ढे में गिर पड़ी. चरवाहे ने जब नीचे जा कर देखा तो शिवलिंग जैसी आकृति वहां देखी. गाय को सुरक्षित देख कर सब ने इसे शिवलिंग का चमत्कार माना और गुफा के बाहर एक शिव मंदिर बना दिया गया.
गुफा के बारे में कुछ और बातें-- चूँकि यह नदी इन गुफाओं से निकली है, स्टेलेक्टाईट और स्टेलेक्माईटमें से गुजरते हुए यहाँ कई तरह की आकृतियाँ सी बन गयी हैं जिन्हें कल्पना के अनुसार शिव-पारवती, मानव मस्तिष्क, माँ-शिशु, ऋषि की दाढ़ी , मशरूम आदि जैसे नाम भी दे दिए गए हैं. यह गुफाएं बहुत ही गहरी हैं बाहर से इनमें रौशनी न के बराबर ही आ पाती है. यूँ तो गुफा देखने हेतु अन्दर तक लगभग ३५० स्टेप की सीढियां पर्यटन विभाग ने बनवाई हैं. नमी के कारन फिसलन हो सकती है. इसलिये ध्यान से कदम रखें और वज़न ले कर न आयें. बहुत गहरे में न जाएँ क्योंकि वहां हवा की कमी और oxygen की कमी हो सकती है.
कैसे जाएँ- यह स्थान विशाखापत्तनम में शहर से ९० किलोमीटर दूर है. रेल-यात्रा --:
इन गुफाओं से निकटतम 'बुर्रा गुहालू' रेलवे स्टेशन है.
आंध्र पर्यटन विभाग के पैकेज बहुत अच्छे हैं जिनमें अराकू घाटी और बुर्रा गुफाओं की सैर के लिए जाते हुए रेल और आते हुए सड़क मार्ग [बस ] से कई और पर्यटक स्थल दिखाते हुए वापसी होती है .
सड़क मार्ग-
अगर आप सड़क मार्ग से कार या जीप में जा रहे हैं तो ३ घंटे में आप गुफाओं तक पहुँच सकते हैं. विशाखापतनम या विजाग में अराकू और बुर्रा गुफाओं के अलवा और भी बहुत सी सुन्दर जगहें देखना न भूलें--जैसे- |
आईये आज आपको एक आश्चर्य के बारे मे बताते हैं. आपने वर्षा के दिनों मे इंद्रधनुष तो अवश्य देखा होगा. पर इंद्रधनुष का कोई निश्चित समय नही होता. वर्षा के दिनों मे जब भी उपयुक्त स्थितियां निर्मित होती हैं तब यह दिखाई दे जाता है. पर हम आपको बता रहे हैं आस्ट्रिया के टोर्न नाम के पर्वत के मोडेन जलप्रपात के बारे में. संसार के प्राकृतिक आश्चर्यों की सूची मे से यह एक है. और इसके आश्चर्य का कारण है इस झरने पर तीसरे प्रहर ठीक तीन बजकर तीस मिनट पर इंद्रधनुष का उदय होना. और यह अपने समय का इतना पाबंद है कि लोग इससे अपनी घडियां भी मिलाते हैं. आपका दिन शुभ हो. अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं. |
अक्सर कई लोगों को जीवन ऐसी उपलब्धियां मिल जाती हैं कि वो अपने इर्द गिर्द एक "कंफ़र्ट जोन" का निर्माण कर लेते हैं और वो उसमे से बाहर निकलना नही चाहते. वो सोचते हैं कि अब मेरे पास मकान , जमीन-जायदाद और बैंक बेलेंस सब कुछ तो है. अब मुझे किसी से क्या लेना देना? अब मैं किसी की मदद क्यों करूं? जबकि जरुरत पडने पर हमको इस कंफ़र्ट जोन से बाहर चले आना चाहिये. आईये इसको एक महाभारत की इस कहानी से समझने की कोशीश करें. सभी जानते हैं कि उस समय के सर्व स्वीकृत और बलशाली श्री कृष्ण ही थे. उन्होने भी अपने लिये ऐसा ही कम्फ़र्ट जोन बना रखा था. जब पांडव और कौरवों की तरफ़ से उनसे महाभारत युद्ध मे सहायता मांगी गई तो वो किसी को नाराज भी नही करना चाहते थे. सो उन्होने साफ़ कह दिया कि एक तरफ़ मैं हूं और वो भी निहत्था और दुसरी तरफ़ मेरी सेना जो अपने पूरे हथियारों से सुसज्जित होकर लडेगी. वो असल मे अपना कंफ़र्ट जोन नही तोडना चाहते थे. अब कौन जाये और कौन युद्ध लडे? उनको किसी तरह की जरुरत भी नही थी. खैर उसी अनुसार युद्ध भी होता रहा. अंत मे जब निर्याणक दौर मे युद्ध पहुंच गया और भीम एवम दुर्योधन मे गदा युद्ध चल रहा था. सभी जानते थे कि दुर्योधन का शरीर माता गांधारी ने अपनी दृष्टि से वज्र का बना रखा था. सिर्फ़ जांघों के भाग को छोडकर. तो दुर्योधन का भीम से हार जाना संभव ही नही था. श्री कृष्ण इस बात को जानते थे. जब भीम के वज्र प्रहारों से घायल होकर दुर्योधन तालाब मे छुप गया तब उसको युद्ध के लिये उकसाया गया. पर दुर्योधन के हारने या मरने का तो सवाल ही नही था. ऐसे समय मे कौरवों की अनीति से श्रीकृष्ण को भी अपना कंफ़र्ट जोन छोडना पडा. उन्होने ही बार बार अर्जुन को इशारे किये कि वो भीम से कहे कि वो दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करे. और वही हुआ. आखिर भीम द्वारा दुर्योधन की जंघा तोड दी गई. इस तरह यह तरह यह युद्ध अंत को पहुंचा. यहां अगर श्रीकृष्ण अपना कम्फ़र्ट जोन नही छोडते तो यह इतना आसान काम नही था कि भीम विजयी हो जाता इतनी आसानी से. कहने का मतलब यह है कि हम चाहे जितनी आराम मे हों, जरुरत पडने पर हमको अपने मित्रों, रिश्तेदारों और देश के लिये अपना कंफ़र्ट जोन छोडने के लिये तैयार रहना चाहिये जिससे हम देश और समाज को कुछ सार्थक दे सकें |
कुमाउंनी संस्कृति के विविध रंग हैं जिनमें से एक है यहां की `जागर´। उत्तराखंड में ग्वेल, गंगानाथ, हरू, सैम, भोलानाथ, कलविष्ट आदि लोक देवता हैं और जब पूजा के रूप में इन देवताओं की गाथाओं का गान किया जाता है उसे जागर कहते हैं। जागर का अर्थ है `जगाने वाला´ और जिस व्यक्ति द्वारा इन देवताओं की शक्तियों को जगाया जाता है उसे `जगरिया´ कहते हैं। इसी जगरिये के द्वारा ईश्वरीय बोल बोले जाते हैं। जागर उस व्यक्ति के घर पर करते हैं जो किसी देवी-देवता के लिये जागर करवा रहा हो। जागर में सबसे ज्यादा जरूरी होता है जगरिया। जगरिया को ही हुड़का और ढोलक आदि वाद्य यंत्रों की सहायता से देवताओं का आह्वान करना होता है। जगरिया देवताओं का आह्वान किसी व्यक्ति विशेष के शरीर में करता है। जगरिये को गुरू गोरखनाथ का प्रतिनिधि माना जाता है। जगरिये अपनी सहायता के लिये दो-तीन लोगों को और रखते हैं। जो कांसे की थाली को लकड़ियों की सहायता से बजाता है। इसे `भग्यार´ कहा जाता है। जागर में देवताओं का आह्वान करके उन्हें जिनके शरीर में बुलाया जाता है उन्हें `डंगरिया´ कहते हैं। डंगरिये स्त्री और पुरूष दोनों हो सकते हैं। देवता के आह्वान के बाद उन्हें उनके स्थान पर बैठने को कहा जाता है और फिर उनकी आरती उतारी जाती है। जिस स्थान पर जागर होनी होती है उसे भी झाड़-पोछ के साफ किया जाता है। जगरियों और भग्यारों को भी भी डंगरिये के निकट ही बैठाया जाता है। जागर का आरंभ पंच नाम देवों की आरती द्वारा किया जाता है। शाम के समय जागर में महाभारत का कोई भी आख्यान प्रस्तुत किया जाता है और उसके बाद जिन देवी-देवताओं का आह्वान करना होता है उनकी गाथायें जगरियों द्वारा गायी जाती हैं। जगरिये के गायन से डंगरिये का शरीर धीरे-धीरे झूमने लगता है। जागर भी अपने स्वरों को बढ़ाने लगता है और इसी क्षण डंगरिये के शरीर में देवी-देवता आ जाते हैं। जगरिया द्वारा फिर से इन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। अब डंगरिये नाचने लगते हैं और नाचते-नाचते अपने आसन में बैठ जाते हैं। डंगरिया जगरिये को भी प्रणाम करता है। डंगरिये के समीप चावल के दाने रख दिये जाते हैं जिन्हें हाथों में लेकर डंगरिये भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमान के विषय में सभी बातें बताने लगते हैं। डंगरिये से सवाल पूछने का काम उस घर के व्यक्ति करते हैं जिस घर में जागर लगायी जाती है। बाहरी व्यक्ति भी अपने सवाल इन डंगरियों से पूछते हैं। डंगरिये द्वारा सभी सवालों के जवाब दिये जाते हैं और यदि घर में किसी तरह का कष्ट है तो उसके निवारण का तरीका भी डंगरिये द्वारा ही बताया जाता है। जागर के अंत में जगरिया इन डंगरियों को कैलाश पर्वत की तरफ प्रस्थान करने को कहता है। और डंगरिया धीरे-धीरे नाचना बंद कर देता है। जागर का आयोजन ज्यादातर चैत्र, आसाढ़, मार्गशीर्ष महीनों में किया जाता है। जागर एक, तीन और पांच रात्रि तक चलती है। सामुहिक रूप से करने पर जागर 22 दिन तक चलती है जिसे `बाईसी´ कहा जाता है। वैसे तो आधुनिक युग के अनुसार इन सबको अंधविश्वास ही कहा जायेगा। पर ग्रामीण इलाकों में यह परम्परा आज भी जीवित है और लोगों का मानना है कि जागर लगाने से बहुत से लोगों के कष्ट दूर हुए हैं। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
"हीरु और पीरू" भाईयों और बहनों आप सबको हीरामन “हीरू” और पीटर “पीरू” की नमस्ते.
अरे हीरू..ये डेखो, ये टुम्हारा शाष्ट्री अंकल क्या बोलटा हाय? पीरू : अरे यार हीरू क्या बात है? क्यों चिल्ला रहा है? शाश्त्री अंकल जो बोलते हैं, सब सही बोलते हैं. पीरू : हम भी टो वही बोलटा हाय...वो अबकी बार कोई करोडपति बनने की स्कीम बटाटा है..जरा जल्दी डेखो मैन इधर को.
हीरू : वाह यार मजा आगया..जल्दी पढने दे मेरे को ये कौन सी स्कीम है?
|
हीरू - अरे यार ये देखो अपने अनिल पूसदकर अंकल क्या कह रहे हैं?
पीरु - अरे हां यार आज का द्वितिय विजेता अनिल अंकल को बना देते हैं…अब जल्द ही अनिल अंकल शादी करने वाले हैं तो हमको बारात मे जाने को मिलेगा.
हीरु - यार ये सही है. अंकल कब कर रहे हैं शादी? जरा हमको पहले से बता देना.
पहाड़ है जी,गारंटी से कह रहा हूं पहाड़ है। |
अब हीरामन और पीटर को इजाजत दिजिये अगले सप्ताह आपसे फ़िर मुलाकात होगी.
ट्रेलर : - पढिये : प. डी. के. शर्मा “वत्स से अंतरंग बातचीत
कुछ अंश ..प. श्री डी. के. शर्मा “वत्स” से ताऊ की अंतरंग बातचीत के ताऊ : पंडितजी, हमने आपके छोटे भाई के बारे कुछ सुना है? क्या ये सही बात है? वत्स जी : ???????? ताऊ : क्या बात कह रहे हैं आप? सिर्फ़ सवा साल की उम्र मे बोलना? मां..बाबा..ऐसा ही कुछ बोलता होगा?
"वत्स" जी : नही ताऊ जी, वो पूरी तरह से बोलता था कि मेरा नाम गिरधारी लाल बांसल है, मेरी पत्नि का नाम ये है, मेरे तीन पुत्र हैं, दो विवाहित-एक कुंवारा इत्यादि इत्यादि. ताऊ : फ़िर वो लडका ऊत कैसे होगया?
"वत्स" जी :?????
…
|
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
अच्छा किया ताऊ समीर जी को संपदक मंडली में ले लि्या.. किसी और का नम्बर तो आयेगा... :)
ReplyDeleteपंडित जी के इन्टरव्यु का इन्तजार रहेगा.. आपने उत्सुकता बढा दी..
महाभारत के समापन की कथा सीमा गुप्ता जी वाली रोचक लगी
ReplyDelete- कम्फर्ट ज़ोन की भली कही जी -
और अल्पना जी तथा सभी
बहुत मेहनत करते हैँ
जागर की बात भी नई लगी -
पँडित वत्स से
साक्षात्कार बढिया होगा ये विश्वास है
और" हे प्रभु ये तेरा पथ "
,हम नियमित पढते हैँ
- दँपति को पुन: बधाई
- पत्रिका बहुत समेटे
आकर्षक बन कर
मन मोह लेती है
और ये हर बार हो रहा है
अत: आप सभीको बधाई :-)
--लावण्या
ताऊ !
ReplyDeleteताऊनामा की साल-गिरह के बाद का
यह अंक-23 मनभावन लगा।
मैंने तुम्हारा नया पता नोट कर लिया है।
श्रीमती एवं श्री महावीर बी.सेमलानी को
शादी की वर्ष-गाँठ की बधायी प्रेषित करता हूँ। अद्भुत् जानकारियों से भरा सुश्री अल्पना वर्मा का ‘‘मेरा-पन्ना’’ वास्तव में
किसी हीरे-पन्ने से कम नही है।
प्रियवर आशीष खण्डेलवाल का स्तम्भ
‘‘दुनिया मेरी नजर से’’
नये-नये परिदृश्यों से सबकी नजरों को
लुभाने का प्रयास करता है।
सुश्री सीमा गुप्ता का तो कोई सानी ही नही है।
इनके गीतो की सुरभि से तो मन महक उठता है। ईश्वर जल्दी से इन्हें आरोग्य प्रदान करें।
सुश्री विनीता यशस्वी
जब कुमाऊँ के दिग्दर्शन कराती हैं तो
मुझ जैसे कूर्मांचल के कितने ही निवासियों का
सिर गर्व से ऊँचा हो उठता है।
फिलिप.जे.शास्त्री जी तो बधाई के पात्र हैं।
उन्हें बधायी देना कैसे भूल सकता हूँ।
पं.डी.के.शर्मा वत्स के इण्टरव्यू का
जब ट्रेलर ही इतना बढ़िया है तो
पूरा साक्षात्कार पढ़कर तो बहुत ही अच्छा लगेगा।
मेरे विचार से टिप्पणी जरूरत से ज्यादा
लम्बी हो गयी है।
इसलिए अन्त में पी.सी.रामपुरिया उर्फ
ताऊ को मुबारकवाद।
मंडली में शामिल करने का आभार.
ReplyDeleteबेहतरीन अंक फिर से ताऊ पत्रिका का.
पीडी शार्मा जी से बातचीत का ट्रेलर देखकर तो अब पूरा पढ़ने से रुका नहीं जा रहा.
पत्रिका हर बार की तरह रोचक और जानकारियों भरी है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteताऊ! सुबह की अदालतें हैं। सुबह सुबह पत्रिका पढ़ पाना संभव नहीं। बस देख भर ली है। अच्छी लगी है। शाम को समय मिलते ही पढ़ते हैं।
ReplyDeleteवाह नए रूप रंग में आयी पत्रिका !
ReplyDeleteआज के अंक में गुफाओं की विस्तृत जानकारी के लिए अल्पना जी का धन्यवाद.
ReplyDeleteआशीष जी की ३.३० पर उगने वाले इन्द्रधनुष की जानकारी भी रोचक लगी.
शेष सामग्री भी विशेष पठनीय रही. आभार.
समीर जी को सम्पादन मंडल में शामिल करके आपने बहुत बढ़िया किया...
अब दूसरे भी जीतने की उम्मीद कर सकते हैं :)
समीर भाई को बधाई
ReplyDelete"इसी संबंध मे एक बात और कि वो जल्दी ही ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल मे शरीक होरहे हैं और जाहिर सी बात है कि अगर वो संपादक मंडल मे आरहे हैं तो पहेली मे भाग नही लेंगे. इसके पुर्व सुश्री अल्पना वर्मा भी शीर्ष पर रहते हुये ही इस पहेली से इसी वजह से हटी थी."
पीछे रहने वाले प्रतियोगियों को घनी बधाई!
सेमलानी दंपत्ति को शादी की वर्षगाँठ पर बहुत बहुत बधाईयाँ.
ReplyDeleteउड़नतश्तरी समीर जी का संपादक मंडल में स्वागत है.आशीष जी आस्ट्रिया के इस इन्द्रधनुष की समय पाबन्दी तो निराली है.सीमा जी ,विनीता जी का लेख पसंद आया.हीरू-पीरु की बातें मजेदार हैं.सभी विदूषकों को बधाईयाँ.
पंडित जी शायद 'पुनर्जनम 'की बात बताने जा रहे हैं...उनके साक्षात्कार की प्रतीक्षा रहेगी.
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१-दर्शनीय स्थान विवरण हेतु आप के सुझावों का स्वागत है..[विवरण बहुत अधिक स्थान न घेरे इस लिए इस में चित्र कम ही दिए जाते हैं.]
२-और जिन्होंने जानना चाहा है--उनकी जानकारी के लिए .--मुख्य पहेली में अधिकतर तस्वीरें व्यक्तिगत संग्रह से दी जाती हैं इस लिए वेब पर उनके जैसी तस्वीरे न मिलने की पूरी सम्भावना है.
पहेली प्रतियोगिता की अब तक की सफलता के लिए सभी प्रतिभागिओं का आभार.भविष्य में भी आप का सहयोग अपेक्षित है.
सुझावों और शिकायतों का स्वागत है.धन्यवाद.
[आज इस पोस्ट पर ब्लोग्वानी का पसंद वाला चटका बॉक्स नहीं दिख रहा.]
ReplyDelete281 post 8500 comments
ReplyDeleteताऊ जे जान के ख़ुशी हुई के आप दिन दूने रात चौगुने कमाली किले बना रए हैंं जी
हार्दिक शुभकामनाएं
सब सम्पादक बन गए तो पाठक कौन होंगे ताऊ जी :)
ReplyDeleteहरदम की तरह यह पत्रिका भी रोचक एवं ज्ञान वर्धक रही. पूरे टीम का आभार.
ReplyDeleteताऊ जी, दिन प्रति दिन जितनी मेहनत इस पत्रिका को सवांरने में आपका समस्त संपादक मंडल कर रहा है,सचमुच वो काबिले तारीफ है.......
ReplyDeleteमेरी ओर से सपांदक मंडल सहित सभी जनों को बहुत बधाई ओर भविष्य हेतु शुभकामनाऎं........
ताऊ बहुत बढिया लगा आपका यह अंक. और सभी कुछ लाजवाब. आपने जिस तरह मेहनत से यह सफ़लता हासिल की है उसके लिये आपको अनन्त बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआप एक जन्मजात लीडर दिखते हो जो सबको अपने साथ जोडता ही चलता है. और शायद यही सफ़लता का मंत्र भी.
एक साथ कई रोचक जानकारियां मिली.
ReplyDeleteआज तो बहुत ही सुंदर लग रही है आपकी मैगजीन और ताऊजी हाथ मे लठ्ठ लेके मूंछों पर ताव देते हुये आप भी जंच रहे हो. वैरी क्युट ताऊजी.
ReplyDeletebahut rochak. panditji ke interview ka intajar rahega.
ReplyDeleteएक से बढकर एक जानकारी का खजाना लेकर आती है आपकी यह पत्रिका. सुंदर प्रयास.
ReplyDeleteसीमाजी की महाभारत की कथा को वर्तमान परिपेक्ष्य मे देखना वाकई रोचक लगा. अल्पनाजी की जानकारी तो हमेशा की तरह उम्दा है. आशीष जी ने और रोचक जानकारी मे इजाफ़ा किया और विनिताजी से कुमाऊं के बारे जानना अच्छा लगता है. पंडित जी के साक्षात्कार का इंतजार करते हैं.
ReplyDeleteसभी को शुभकामनाएं. बहुत ही रोचक साम्ग्री वाली पत्रिका.
ReplyDeleteयानी ज़िंदगी भर जवाब ही देते रहना होगा।संपादक आप भी नही बनाओगे लगता है ताऊ। अल्पना जी ने आरकू घाटी के बारे मे बताया वंहा छत्तीसगढ के बस्तर से भी जा सकते हैं।वैज़ाग-जगदलपुर रेल मार्ग बेहद खूबसूरत है और सड़क से भी इसकी यात्रा यादगार रहती है।
ReplyDeleteलगता है नया आसरा, नई टेम्पलेट रास आएगी. बधाईजी.
ReplyDeleteपता नहीं हम कब होंगे टॉप पर...
ReplyDeleteखैर पत्रिका का अंक बहुत अच्छा है... सीमा जी के लेख बहुत अच्छे लगते हैं...
मीत
समीर भाई ............. बधाई ताऊ ने भी आपको शामिल कर लिया अपनी मण्डली में..........कुछ और नया नया मसाला मिलेगा..........
ReplyDeleteसेमलानी दंपत्ति को शादी की वर्षगाँठ पर बहुत बधाईयाँ.......
ReplyDelete.... ताऊ पत्रिका का एक और बेहतरीन अंक...
ब्लोग की सालगिरह पर बधाई। समीर जी को भी पत्रिका संपादक बनने के लिए बधाई।
ReplyDeleteताऊ जे का है
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के सौन्दर्य में इजाफा कर दिए हो
राम प्यारी वगैरा सब बिजी रहीं इस कारज में
आप की दिन दूनी तरक्कती देख ऐन बैसाख में
होरी जल उट्ठी कई
भैया मेरी मानो तो एकाध डिठौना लगाय लो अपने ब्लॉग पे
सुना है आपने ऐरे गैरे नत्थू खैरे ब्लागों की जात्रा बंद कर दी है
भैया जारी रहे
चलिए एक कंपटीटर तो कम हुआ :) पत्रिका हमेशा की तरह बहुत बढ़िया. और ट्रेलर में ही इतनी रोचकता है तो साक्षात्कार तो... इंतज़ार है.
ReplyDeleteताऊ जी, आदाब अर्ज़ है...आपका नाम बहुत सुना था आज पहली बार आना हुआ है...
ReplyDeleteसर्वप्रथम जन्मदिन कि बधाई !! मालूम है ३ दिन देर से दे रहे है...क्या है आना नही हो रहा था ना इसलिये...
मेरे ब्लोग http://hamarahindustaan.blogspot.com ताऊ से ठीक एक महिने पहले हम हिन्दी ब्लोगिन्ग मे उतरे थे....
काफ़ी अच्छा लिख्ते है...आपकी अगली पहेली का इन्तज़ार रहेगा...
हमें किसी न किसी बहाने आंटी कहा जा रहा है.
ReplyDeleteहम सब समझते हैं.
अब दुबारा मत कहना.
ये विदूषक का टाईटल बदला जाए
हम कोई विदूषक थोडी न हैं.
कई अच्छी जानकारियाँ एक साथ मिली। समीरजी को संपादक मंडली मे लिया गया अच्छा हुआ नहीं तो वो अपनी उड़न तश्तरी से सबका सफ़ाया कर रहे थे...
ReplyDeleteवाह सरकार भी संपादक-मंडल में शामिल?
ReplyDeleteबहुत खूब!!
अब तो इस पत्रिका का विस्तार और बढ़ेगा....
ताऊ डॉट इन का, मै मेरी पत्नी एवम मेरा परिवार आभार प्रकट करता है। आपने पत्रिका मे हमे अपना मानकर स्थान दिया एवम हमारी खुशियो को प्यारे पाठको दोस्तो के सग बॉटा। मै सभी टिपणीकारो का भी आभारा प्रकट करता हू कि मुझे एवम मेरी पत्नी को सालगिरह पर अपना आर्शिवाद एवम स्नेह दिया। विशेष रामपुरीयाजी के अपार स्नेह दुलार से भी मन प्रफुलित हो उठा।
ReplyDeleteआपका अपना