पटना यात्रा के अनुभव भाग - 2

अगली सुबह सोकर उठे तो चाय सुडकने की तलब लगी और किसी गुमटी ठेले पर चाय सुडकने का एक अलग ही आनंद होता है. गुमटी पर चाय सुडकने जावो तो वहां के खास देशी लोगों से मुलाकात हो ही जाती है और उस जगह के बारे में उन लोगों से जो जानकारियां पता चलती हैं वाकई में वही उस स्थान की असली पहचान होती है. पर इस होटल  के आस पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिखी सो लौटकर वापस आगये और सुबह के नित्य कर्म से निपटकर सभी लोग कमरे में जमा हो गये. सबको नाश्ते का इंतजार था कि होटल वाला अब नाश्ते के लिये निमंत्रण भेजेगा... तब भेजेगा.... कि ब्रेकफ़ास्ट लग गया है पर उसके निमंत्रण का इंतजार ही करते रहे.

थक हार कर रिशेप्शन पर फ़ोन किया तो वो बोला कि यहां नाश्ते के लिये कोई बफ़ेट टाईप वाला सिस्टम नहीं है. नाश्ते में पोहा और चाय मिलेगा आप कहें तो कमरे में भिजवा देते हैं. पोहा का नाम सुनते ही वत्स जी का दिमाग फ़िर गया और हमको लेकर सीधे नीचे रिशेप्शन पर पहुंच गये और बोले - यह क्या तरीका है? फ़्री नाश्ता डील में शामिल था और तुम पोहे की बात कर रहे हो? भले आदमी आलू गोभी के परांठे और दही आचार का जुगाड कर दे तो कुछ बात बने.... पर वो आखिर पूरी भाजी पर मान गया. 

वत्स जी बोले - ताऊ यह होटल तो बदलना पडेगा यहां गुजारा नहीं हो सकता. फ़िर मधु जी से बात की तो उन्होंने कहा कुछ देर रूकिये फ़िर कुछ बंदोबस्त करती हूं. कुछ देर बाद उनका फ़ोन आ गया कि गाडी भिजवा रही हूं आप लोगो के लिये Amalfi Hotel  बुक करवा दिया है.  सबने अपना अपना सामान पैक कर लिया और नीचे रिशेप्शन में बैठकर इंतजार करने लगे.

तब तक पूरी भाजी तैयार हो चुकी थी सो सबने अपने पेट में कूदते चूहों को उसी से शांत किया और फ़िर नये ठीकाने की तरफ़ निकल पडे.

नये होटल में पहुंचे तो रिशेप्शन पर एक भद्र सी मुस्कराती लडकी ने स्वागत किया और आई. डी. कार्ड वार्ड मांगे जो उनको दे दिये, फ़िर वो पूछने लगी कि और क्या सेवा की जाये? हमने कहा जो सबसे बडा और अच्छा कमरा हो वो हमे दे दिजीये... वो बोली आप ये लिजीये रूम नं 402 की चाबी... सबसे बडा कमरा है और हम सब अपने अपने कमरे में चले गये.

सभी लोग नहाये धोये तो थे ही.... सबने अपना अपना सामान अपने कमरों में पटका और 402 में मजमा लगा लिया.


हमने और वत्स जी ने अपनी अपनी पोजीशन संभाल ली और सारे सामने जम गये. सबसे आखिर में आये सुरेश जी और डाक्टर निधीश जी.... कुर्सी और जगह अब थी नहीं सो दोनों ने अपने बचपन की यादे ताजा करते हुये सामने की खिडकी वाली जगह में अपना आसन जमा लिया. और सवाल जवाब होते रहे, वत्स जी और हम सबकी जिज्ञासा मनोयोग पूर्वक शांत करते रहे.  

तभी मधु जी का फ़ोन आ गया कि खाना खाने प्रभुजी रेस्टोरेंट आना है. सब तैयार होकर नीचे आ गये और उनका ड्राईवर हम सबको प्रभु जी रेस्टोरेंट ले गया.


अब दोपहर के भोजन के लिये सारे अपनी अपनी पोजीशन संभाल चुके थे. इसमें क्रमश बांये से वत्स जी, आचार्य सोहन वेदपाठी जी, डा. निधीश सारस्वत जी, पं राकेश जी शर्मा, पं सुरेश जी शर्मा, पं आशुतोष जी शर्मा और आखिर में कौन बैठा है ये बताने की कोई आवश्यकता लगती नहीं है.

इस फ़ोटो को खींचने वाले महान पंडित शिरोमणी के दर्शन आपको अगली फ़ोटो में हो जायेंगे और इनका तार्रूफ़ तो आपको विस्तार से बाद में करवायेंगे.


वो पिछली फ़ोटो के जो महान पंडित शिरोमणी थे पं विक्की शर्मा जो यहां आपको काली शर्ट में नजर आ रहे होंगे. ये पंडित जी इतने भोले भाले, निहायत ही शरीफ़ किस्म के हैं. इनकी प्रसंशा में तो एक पूरे पांचवे वेद की ही रचना करनी पडेगी तभी इनके सारे गुण आप जान पायेंगे. वैसे कुछ गुण तो आप लोगों को वहीं इनके सामने ही बखान कर दिये गये थे.

खाना बडा स्वादिष्ट शाकाहारी और लजीज था सो सबने छककर सूत दिया और गाडी में डलकर वापस होटल पहुंच गये. वहां कुछ लोग तो अपने अपने कमरों में आराम करने चले गये पर डा. निधीष जी व सुरेश जी ने अतिरिक्त ज्ञान की जिज्ञासा में हमारे कमरे में ही डेरा जमा लिया.


डा. निधीश जी को तो खिडकी वाली जगह इतनी पसंद आई कि वहीं लेटकर आराम करते हुये सवाल जवाब करने लगे.

(शेष अगले भाग में)



 

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पटना यात्रा अनुभव भाग - 1

एक कहावत आपने सुनी होगी कि "नेता बनने के लिये सीने में आग, पैर में चक्कर और मुंह में शक्कर" का होना आवश्यक शर्त है पर यहां नेता बनने का कोई शौक भी नहीं है पर पैर का चक्कर मिटता नहीं है.

अभी दिसंबर में दिल्ली सम्मेलन में हो आये थे फ़िर चेन्नई जाने का प्रोग्राम चीनियों के फ़ैलाये रोग की मेहरवानी से कैंसिल हो गया था तो लगा था कि अब पांव का चक्कर खत्म हो गया दिखता है. पर भला इतनी आसानी से घुमक्कडी कहां पीछा छोडती है? 

फ़रवरी के आखिरी दिनों में वत्स जी का फ़ोन आया और बोले - ताऊ 5 मार्च से 8 मार्च 2022 तक पटना सम्मेलन रखा है वहां पहुंच जाना. हमने बताया कि अभी ओमीक्रोन से उठे हैं और हाथ की कलाई के लिगामैंट टूट गये हैं हम नहीं आ पायेंगे. पर वो वत्स जी ही क्या जो इतनी आसानी से पीछा छोड दें..... बोले... ताऊ ओमीक्रोन आपका क्या बिगाड लेगा वो खुद डरता है आपसे..... बस टिकट मैंने करवा दी है... आ ही जाना.

अब सोच रहे थे कि ताई को कैसे बतायें....? ये तो वत्स जी ने मुश्किल में डाल दिया. ताई ने तो दिल्ली से आने के बाद ही घर से निकलने पर एडवांस में लोक डाऊन लगा दिया था. तभी मधु जी का फ़ोन आ गया और बोली कि आप पटना आ रहे हो ना? हमने अपनी मजबूरियां गिनाई तो वो बोली कि आप चिंता मत करिये बस जैसे तैसे अपने आपको हवाई जहाज में डाल लिजीयेगा फ़िर पटना में तो हम सब संभाल लेंगे.

अब क्या करते....  ताई को कैसे बतायें कि हमको पटना जाना है? हमने उसे कुछ भूमिका बनाते हुये गोलगोल बातें करना शुरू की तो वो आंखे दिखाती हुई बोली.... ज्यादा बकवास मत करो, मैं तुम्हारी रग रग पहचानती हूं... उसका हाथ लठ्ठ तक पहुंचता उसके पहले ही हमने उचक कर लठ्ठ को दूर फ़ेंक दिया और कहा कि - इसमे मेरी कोई गलती नहीं है और मैं तो जाना ही नहीं चाहता था... वो वत्स जी नहीं मान रहे. तब वो डपट कर बोली - वत्स जी का नाम क्यों लेते हो? मैं तुम्हारी सब बातें सुनती हूं... तुम ही उचकाते हो सबको.... घर में तो जैसे तुम्हारे पांव जलते हैं?

हम शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन दबाये चुपचाप सुनते रहे,  बस तसल्ली इस बात की थी कि लठ्ठ उसके पास था नहीं और हम ठहरे चिकने घडे.... उसकी बातों का आज तक कोई असर नहीं हुआ तो अब क्या होने वाला था?
इस तरह दिन भर कुछ वो सुनाती रही और हमारे कानों पर कोई जूं भी नहीं रेंगी.... जूं होगी तब ना रेंगेगी?  आखिर वो बोली - अभी तो हो आवो पर अगली बार के लिये ध्यान रखना. हमने कहा - बिल्कुल नहीं जायेंगे.

मार्च के महिने में मौसम में वैसे ही फ़गुनाहट शुरू हो ही जाती है और आपमें से अधिकतर जानते होंगे कि हरियाणा में होली पर पत्नियां भी पति को कोडे मारकर होली खेलती हैं. पर हमारी पत्नि कुछ डबल हरियाणवी है सो साल भर लठ्ठ मार होली खेलती है हमारे साथ.  वैसे ईमानदारी की बात यह है कि दिन में दस बीस लठ्ठ और गालियां खाये बिना हमारी रोटियां भी हजम नहीं होती.

तो साहब 5 मार्च को एयरपोर्ट जाने के लिये घर से बाहर निकले कि हमारे सामने रहने वाले शर्मा जी जो कि इंडिगो में पायलेट हैं वो ड्रेस्ड-अप होकर खडे थे उनको लेने आने वाली कंपनी की कार के इंतजार में..... हमको बैग हाथ में देखकर बोले ताऊ किधर की तैयारी है? हमने बताया कि जायेंगे तो पटना पर फ़िलहाल दिल्ली जायेंगे.....

शर्मा जी बोले - कौन सी फ़्लाईट है आपकी? हमने कहा कि इंडिगो की है.... तो वो बोले - चिंता मत करिये... मुझे आज वही फ़्लाईट लेकर दिल्ली जाना है. आप मेरे साथ ही एयरपोर्ट चलिये. इतनी ही देर में उनकी कंपनी की गाडी उनको लेने आ गई और उनके साथ ही हम भी एयरपोर्ट पहुंच गये.   वहां शर्मा जी स्टाफ़ एंट्री गेट की तरफ़ बढ गये और बोले ताऊ अब फ़्लाईट पर मिलते हैं.

हमने सोचा - आज तो तीन चार सौ रूपये ऊबर के बच गये और जब फ़्लाईट के कैप्टन भी शर्मा जी ही हैं तो नाश्ता पानी भी फ़्री हो ही जायेगा. तय समय पर बोर्डींग हो गई. हमने बोर्ड करते समय काकपिट में झांक कर देखा तो शर्मा जी कुछ कागज पन्नों पर हिसाब करते हुये कुछ बटन ऊपर नीचे करते नजर आये. अपने को कुछ समझ नहीं आया सो आगे बढकर मधु जी के निर्देशानुसार अपने आपको अपनी सीट पर डाल लिया.

बोर्डिंग कंपलीट हुई तो शर्मा जी ने हवाई जहाज को उडा दिया और दो चार मिनट में तो बादलों के पार हो गये. अब जलपान सेवा का अनाऊंसमैंट हो चुका था. थोडी देर में एक हवाई सुंदरी ने आकर हमारी तरफ़ एक रोस्टेड काजू का डिब्बा बढाया तो हमने कहा कि हमको नहीं चाहिये. तुम लोग बहुत महंगे बेचते हो, सौ ग्राम काजू और दाम डेढ सौ रूपया....?

वो मुस्कुराते हुये बोले - अरे ताऊ यह तो कैप्टेन साहब ने आपको भिजवाया है गिफ़्ट.... हमने कहा फ़िर तो चाहे दो चार और दे दे.... वो मुस्कराते हुये आगे बढ गई और सोच रही होगी कि ये किस बला से पाला पड गया?


 
हमने डिब्बा खोलकर काजू निपटा दिये, स्वाद जबरदस्त था.... इच्छा हो रही थी कि दो चार डिब्बे और निपटा दें पर इस तरह रमजीपने पर उतरने का दिल नहीं किया. जरासी देर में शर्मा जी काकपिट से निकलते दिखे और सीधे हमारे पास आकर बोले आवो ताऊ खाना खा लेते हैं.... हमने उनके साथ ही फ़्रंट डोर के सामने वाली जगह पर खडे हुये खाना खाया.... बस फ़िर शर्मा जी अंदर गये और हम सीट पर आकर बैठ गये. तभी दिल्ली पहुंच गये. शर्मा जी से विदा ली और सिक्युरीटी चेक करवा कर पटना के लिये बोर्डिंग गेट पर आकर बैठ गये.

इस तरह रात 10 बजे पटना पहुंच गये. वहां पटना का काम सीधा सादा लगा. हवाई जहाज से उतरे तो पैदल ही आगमन द्वार पर पहुंच गये. बस वगैरह का कोई झंझट ही नहीं. कई वर्षों बाद यह अनुभव पटना में ही मिला जो कि सुखद लगा, वर्ना हवाईजहाज से उतरो फ़िर अपने आपको बस में डालो.... यह सब बहुत बोरिंग और ऊबाऊ लगता है. 



लगेज बेल्ट से अपना सामान ले ही रहे थे तभी मधु जी का फ़ोन आ गया कि पहुंच गये? हमने कहां हां... अपने आपको हवाईजहाज में डाल लिया था सो पहुंचना तो था ही. उन्होने कहा - ड्राईवर आपका इंतजार कर रहा है बाहर..... तभी ड्राईवर साहब का फ़ोन आ गया और इस तरह हम होटल पहुंच गये जहां सभी ने मजमा लगा रखा था. रात को 2 बजे तक गोष्ठी चलती रही और फ़िर सो गये.

(शेष अगले भाग में) 

यहां पढिये : वाराणसी अभ्यास शिविर भाग - 1   भाग -2भाग -3भाग -4भाग -5भाग - 6


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दिल्ली सम्मेलन की कुछ भूली बिसरी यादें

पिछला सम्मेलन 4 दिसंबर से 7 दिसंबर 2021 तक दिल्ली में संपन्न हुआ था जिसकी रिपोर्टिंग यहां पहले नहीं कर पाये थे. दिल्ली सम्मेलन में सभी सदस्य गणों ने जमकर सवाल पूछे जिनका हमने और वत्स जी ने उतनी ही शिद्धत से जवाब भी दिया. एक दिन में कम से कम 12 से 14 घंटे सवाल जवाब होते रहे. आखिर दिमाग की भी एक सीमा होती है सो सबका दिमाग बोल गया.


ब्रेकफास्ट पर चर्चा करते हुए




आखिरी दिन दिमाग सही करने के लिये वत्स जी बोले कि चलो चांदनी चौक घूमकर आते हैं जिस पर सब तैयार हो गये. हमने निवेदन किया कि कोरोना चल रहा है और आप भीड भाड वाली जगह सबको लेकर जा रहे हैं. हम तो नहीं जायेंगे. वो हमारी कमजोरी जानते हैं सो बोले – ताऊ चलो, तुमको वहां फ़ेमस ज्ञानी जी की फ़ालूदा खिलाऊंगा…. अब हम क्या कहते? आईसक्रीम के लिये तो हम नरक जाने को भी तैयार हो जायें, यह तो सिर्फ़ कोरोना वाली जगह ही थी.

बस फ़िर क्या था….  सभी लोग मेट्रो में सवार होकर चांदनी चौक पहुंच गये. जबसे चीनी चमगादड वाला कोरोना शुरू हुआ है तबसे भीड में जाने और भीड देखने की आदत छूट सी गई है… पर वहां तो जबरदस्त भीड थी. धक्के मुक्के खाते हुये कुल्फ़ी वाले की तरफ़ बढने लगे. रास्ते में एक जगह भल्ले पापडी वाले की दुकान थी. वत्स जी बोले…. भल्ले पापडी खावोगे? हमने सोचा, जब इतनी देर से भीड में धक्के खा रहे हैं तो भल्ले पापडी अपना क्या बिगाड लेंगे सो सभी ने वहां जमकर दिल्ली वाली चाट के मजे लिये और फ़िर आगे बढने लगे.

तंग और भीड भाड वाली गलियों से गुजरते हुये आखिर मंजिल (ज्ञानी जी फ़ालूदा वाले की दुकान) तक पहुंच ही गये और मानिये कि 1 गिलास फ़ालूदा को निपटाने में सर्दी में भी पसीने छूट गये. स्वाद लाजवाब था इसलिये मात्रा ज्यादा होने के बावजूद भी सबने पूरी फ़ालूदा का फ़ना-फ़िल्लाह करके ही दम लिया.


चांदनी चौक दिल्ली में ज्ञानी की फ़ालूदा उदरस्थ करते हुये, आशुतोष जी फ़ोटो ले रहे थे.





लगता है आज फालूदा की खैर नहीं :)


इतनी देर पैदल घूमते हुये सब थक चुके थे  और फ़ालूदा की खुमारी भी चढ चुकी थी तो अब वापस लौटने में ही सबको भलाई नजर आ रही थी. वापस होटल लौटने के लिये कुछ जुगाड तलाशते हुये आगे बढे तो सामने एक पानी पूरी वाला नजर आ गया. वत्स जी बोले – यार पानी पूरी खाते हैं…. हमने उनकी तरफ़ इस तरह देखा जैसे उनके दिमाग में हमें कोई खराबी नजर आ गई हो? भले आदमी कोरोना के इतने सख्त नियम कायदे और ऊपर से गली मोहल्ले वाले की पानी पूरी?

वत्स जी बोले – कुछ नहीं होगा…. खा लिजीये… फ़ालूदा की खुमारी उतर जायेगी. वैसे भी कोरोना शुरू होने के बाद पानी पूरी के दर्शन भी नहीं किये थे सो सारे जवान पानी पूरी पर पिल पडे. सबने पानी पूरी खाना तभी बंद किया जब पेट ने हाऊसफ़ुल का बोर्ड टांग दिया.

वहां से होटल पहुंचकर फ़िर रात्रि में विषय पर बात चीत करते करते दो बज गये. अगले दिन सुबह की वापसी थी.

वापस अपने गंतव्य की तरफ़ लौटने को तैयार


सभी अपने अपने जाने के रास्ते चलने को तैयार थे. हमारी और मधु जी की फ़्लाईट का समय करीब करीब एक ही था पर टर्मिनल अलग अलग थे. हमारा एक शिष्य हमको छोडने गाडी लेकर आ चुका था. सो हम और मधु जी उसके साथ एयरपोर्ट के लिये रवाना हो गये.

इसके बाद की कहानी यह है कि घर पहुंचने के बाद सबको बुखार सर्दी जुकाम हो चुका था और सारे कोरोना वाले लक्षण थे. पर शायद जांच किसी ने नहीं करवाई.

हमको बुखार होने पर ताई के लठ्ठ ने क्या सेवा पूजा की होगी यह आपको बताने की कोई आवश्यकता ही नहीं है. और उसने हमें अगली बार कहीं भी ना जाने की वार्निंग एडवांस में जारी कर दी.

(पटना यात्रा कथा अगले भाग में…. )


वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 1








 

     

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बेइज्जती उतनी ही होती है जितनी महसूस करो

मानसिक थकान को दूर करने का आसान तरीका है सब कुछ छोड़ छाड़ कर सिद्धार्थ की तरह घर से अकेले निकल लो.

पर इस मामले में सिद्धार्थ भाग्यशाली थे कि वो चुपके से निकल लिए और यशोधरा नींद के आगोश में समाई रही. जब तक वो नींद के आगोश से बाहर आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

 

पर ताऊ इतना भाग्यशाली कभी रहा ही नहीं, जैसे ही लगा कि यशोधरा (ताई) नींद के आगोश में समाई है,

चुपके से बैग उठाकर, धीरे से दरवाजे की कुंडी खोलने लगा, कुंडी अभी खुली भी नहीं थी कि पीठ पर ताई का लठ्ठ टिका था. पूछने लगी ये आधी रात को चुपके चुपके कहां तपस्या करने जा रहे हो? कहीं चोरी करने जा रहे हो या किसी के यहां डाका डालने?

 

ताई का रौद्र रूप देखकर ताऊ की तो घिग्गी बंध गई...... लठ्ठ लिए खड़ी ताई के सामने  कुछ बोलते नहीं बन रहा था... आखिर सच बताना पड़ा कि काम की वजह से दिमाग हिला हुआ है और मानसिक आराम के लिए जा रहा हूँ.....

 

वो दहाड़ते हुए बोली.... तुम्हारे उल्टे सीधे कारनामों की वजह से मेरी शांति भी नष्ट हो गई है। तुम जरा सा ठहरोमैं  भी साथ चलती हूँ. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आगे अपील भी नहीं होती.... और ताऊ सिद्धार्थ गौतम जैसा भाग्यवान भी नहीं कि अकेला निकल सके, लिहाजा ताऊ और उसकी यशोधरा दोनों ही गांव गए.

 

जब किस्मत में ही आराम नहीं हो तो आराम कहीं से खरीदा तो नहीं जा सकता. हमारे गांव पहुंचने के पहले ही माननीय मुख्यमंत्री गहलोत जी ने घोषणा कर दी कि कोयला खत्म है, बिजली नहीं मिलेगी, अब तो बस यूं ही बिना बिजली रहने की आदत डाल लो. ये तो हमारे साथ वही हाल हो गया कि “गये थे हरिभजन को और औटन लगे कपास”

 

गर्मी और घुटन बहुत ज्यादा है, बिजली यहां है नहीं तो मन में विचार आया कि यहां से निकल कर

दादीश्री Sudesh Arya  जी के पास हरिद्वार ही चले जाएं क्योंकि वापसी की फ्लाईट भी 13 तारीख की है तब तक तो यहां दम निकल जायेगा. खैर हमने डरते डरते यह प्रस्ताव ताई के सामने रखा कि चलो तुमको हरिद्वार गंगा स्नान करवा लाते हैं. यह प्रस्ताव सुनते ही दो तीन लठ्ठ  मारते हुए बोली.... चले थे बड़े तपस्वी बनने.... यहां तुमको गर्मी लगती है? क्या जंगल मे गए सिद्धार्थ गौतम एयर कंडीशन में तपस्या करते थे? चुपचाप पड़े रहो यहां और करलो अपनी मानसिक थकान दूर.

 

अब क्या करते? बाहर खटिया डालकर पेड़ के नीचे बैठे हैं और अपनी मानसिक थकान दूर कर रहे हैं। गर्मी के बावजूद आंख लग गई और सपना शुरू हो गया..... सपने में एक सज्जन या दुर्जन गये. उन्हें देखते ही हम चौंके.... शक्ल कुछ कुछ जानी पहचानी सी लगी.... तभी वो बोले ताऊ रामराम.....



हमें भी तुरंत आवाज सुनते ही याद गया, अरे ये तो अपने माल्या साहब हैं, हमारे पुराने धंधों के साथी.

 

हमने पूछा यार बड़ा लम्बा हाथ मार कर गए थे... तुम तो हमारे भी ताऊ निकले?

 

वो बोले.... ताऊ तुमको भी तो कहा था, निकल लो मेरे साथ.... अब देखो तुम यहीं पड़े गर्मी में सड़ रहे हो और मैं

विलायत में मजे मार रहा हूँ.

 

हमने पूछा... चल यार माल्या वो बात तो किस्मत की है पर ये बता की जब लोग तुम्हारी इतनी बेइज्जती करते हैं और तुम्हारे साथ बदतमीजी करते हैं तो तुमको बुरा नहीं लगता?

 

माल्या साहब का जवाब सुनकर हमारी आंखे जहां थी उसी स्थिति में ठहर गई....

वो बोले - देख ताऊ, तू इसी के चक्कर में तो वहीं का वहीं रह गया और देख मैँ कहां पहुंच गया

 

हमने कहा यार वो तो हम देख पा रहे हैं कि आप बहुत ऊपर पहुंच गये फ़िर भी इतनी बेइज्जती कैसे सहन कर पाते हो?

 

अब एक कुटिल मुस्कान के साथ माल्या साहब बोले – देख ताऊ, बेइज्जती उतनी ही होती है जितनी

हम महसूस कर सकें, मैं एक धेले की अपनी बेइज्जती महसूस नहीं करता फिर मेरी बेइज्जती कहां हुई?

 

माल्या  साहब की बात सुनकर एक नया ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ और हम सोच में डूब गये.



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