ताऊ डाट इन
By P. C. Rampuria (ताऊ)
पटना यात्रा के अनुभव भाग - 2
पटना यात्रा अनुभव भाग - 1
दिल्ली सम्मेलन की कुछ भूली बिसरी यादें
पिछला सम्मेलन 4 दिसंबर
से 7 दिसंबर 2021 तक दिल्ली में संपन्न हुआ था जिसकी रिपोर्टिंग यहां पहले नहीं कर पाये
थे. दिल्ली सम्मेलन में सभी सदस्य गणों ने जमकर सवाल पूछे जिनका हमने और वत्स
जी ने उतनी ही शिद्धत से जवाब भी दिया. एक दिन में कम से कम 12 से 14 घंटे सवाल जवाब होते
रहे. आखिर दिमाग की भी एक सीमा होती है सो सबका दिमाग बोल गया.
आखिरी दिन दिमाग सही
करने के लिये वत्स जी बोले कि चलो चांदनी चौक घूमकर आते हैं जिस पर सब तैयार हो गये.
हमने निवेदन किया कि कोरोना चल रहा है और आप भीड भाड वाली जगह सबको लेकर जा रहे हैं.
हम तो नहीं जायेंगे. वो हमारी कमजोरी जानते हैं सो बोले – ताऊ चलो, तुमको वहां फ़ेमस ज्ञानी जी की फ़ालूदा खिलाऊंगा…. अब हम क्या कहते? आईसक्रीम के लिये तो हम नरक जाने को भी
तैयार हो जायें, यह तो सिर्फ़ कोरोना वाली जगह ही थी.
तंग और भीड भाड वाली
गलियों से गुजरते हुये आखिर मंजिल (ज्ञानी जी फ़ालूदा वाले की दुकान) तक पहुंच ही गये और मानिये
कि 1 गिलास फ़ालूदा को निपटाने में सर्दी में भी पसीने छूट गये. स्वाद लाजवाब था इसलिये
मात्रा ज्यादा होने के बावजूद भी सबने पूरी फ़ालूदा का फ़ना-फ़िल्लाह करके ही दम लिया.
इतनी देर पैदल घूमते
हुये सब थक चुके थे और फ़ालूदा की खुमारी भी चढ चुकी थी तो अब वापस लौटने में ही सबको भलाई
नजर आ रही थी. वापस होटल लौटने के लिये कुछ जुगाड तलाशते हुये आगे बढे तो सामने एक
पानी पूरी वाला नजर आ गया. वत्स जी बोले – यार पानी पूरी खाते हैं…. हमने उनकी तरफ़
इस तरह देखा जैसे उनके दिमाग में हमें कोई खराबी नजर आ गई हो? भले आदमी कोरोना के इतने
सख्त नियम कायदे और ऊपर से गली मोहल्ले वाले की पानी पूरी?
वत्स जी बोले – कुछ
नहीं होगा…. खा लिजीये… फ़ालूदा की खुमारी उतर जायेगी. वैसे भी कोरोना शुरू होने के
बाद पानी पूरी के दर्शन भी नहीं किये थे सो सारे जवान पानी पूरी पर पिल पडे. सबने पानी
पूरी खाना तभी बंद किया जब पेट ने हाऊसफ़ुल का बोर्ड टांग दिया.
वहां से होटल पहुंचकर
फ़िर रात्रि में विषय पर बात चीत करते करते दो बज गये. अगले दिन सुबह की वापसी थी.
वापस अपने गंतव्य की तरफ़ लौटने को तैयार
सभी अपने अपने जाने
के रास्ते चलने को तैयार थे. हमारी और मधु जी की फ़्लाईट का समय करीब करीब एक ही था
पर टर्मिनल अलग अलग थे. हमारा एक शिष्य हमको छोडने गाडी लेकर आ चुका था. सो हम और मधु
जी उसके साथ एयरपोर्ट के लिये रवाना हो गये.
इसके बाद की कहानी
यह है कि घर पहुंचने के बाद सबको बुखार सर्दी जुकाम हो चुका था और सारे कोरोना वाले
लक्षण थे. पर शायद जांच किसी ने नहीं करवाई.
हमको बुखार होने पर
ताई के लठ्ठ ने क्या सेवा पूजा की होगी यह आपको बताने की कोई आवश्यकता ही नहीं है.
और उसने हमें अगली बार कहीं भी ना जाने की वार्निंग एडवांस में जारी कर दी.
(पटना यात्रा कथा अगले
भाग में…. )
वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 1
बेइज्जती उतनी ही होती है जितनी महसूस करो
मानसिक थकान को दूर करने का आसान तरीका है सब कुछ छोड़ छाड़ कर सिद्धार्थ की तरह घर से अकेले निकल लो.
पर इस मामले में सिद्धार्थ भाग्यशाली थे कि वो चुपके से निकल लिए और यशोधरा नींद के आगोश में समाई रही. जब तक वो नींद के आगोश से बाहर आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पर ताऊ इतना भाग्यशाली कभी रहा ही नहीं, जैसे ही लगा कि यशोधरा (ताई) नींद के आगोश में समाई है,
चुपके से बैग उठाकर, धीरे से दरवाजे की कुंडी खोलने लगा, कुंडी अभी खुली भी नहीं थी कि पीठ पर ताई का लठ्ठ टिका था. पूछने लगी ये आधी रात को चुपके चुपके कहां तपस्या करने जा रहे हो? कहीं चोरी करने जा रहे हो या किसी के यहां डाका डालने?
ताई का रौद्र रूप देखकर ताऊ की तो घिग्गी बंध गई...... लठ्ठ लिए खड़ी ताई के सामने कुछ बोलते नहीं बन रहा था... आखिर सच बताना पड़ा कि काम की वजह से दिमाग हिला हुआ है और मानसिक आराम के लिए जा रहा हूँ.....
वो दहाड़ते हुए बोली.... तुम्हारे उल्टे सीधे कारनामों की वजह से मेरी शांति भी नष्ट हो गई है। तुम जरा सा ठहरो, मैं भी साथ चलती हूँ. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आगे अपील भी नहीं होती.... और ताऊ सिद्धार्थ गौतम जैसा भाग्यवान भी नहीं कि अकेला निकल सके, लिहाजा ताऊ और उसकी यशोधरा दोनों ही गांव आ गए.
जब किस्मत में ही आराम नहीं हो तो आराम कहीं से खरीदा तो नहीं जा सकता. हमारे गांव पहुंचने के पहले ही माननीय मुख्यमंत्री गहलोत जी ने घोषणा कर दी कि कोयला खत्म है, बिजली नहीं मिलेगी, अब तो बस यूं ही बिना बिजली रहने की आदत डाल लो. ये तो हमारे साथ वही हाल हो गया कि “गये थे हरिभजन को और औटन लगे कपास”
गर्मी और घुटन बहुत ज्यादा है, बिजली यहां है नहीं तो मन में विचार आया कि यहां से निकल कर
दादीश्री Sudesh Arya जी के पास हरिद्वार ही चले जाएं क्योंकि वापसी की फ्लाईट भी 13 तारीख की है तब तक तो यहां दम निकल जायेगा. खैर हमने डरते डरते यह प्रस्ताव ताई के सामने रखा कि चलो तुमको हरिद्वार गंगा स्नान करवा लाते हैं. यह प्रस्ताव सुनते ही दो तीन लठ्ठ मारते हुए बोली.... चले थे बड़े तपस्वी बनने.... यहां तुमको गर्मी लगती है? क्या जंगल मे गए सिद्धार्थ गौतम एयर कंडीशन में तपस्या करते थे? चुपचाप पड़े रहो यहां और करलो अपनी मानसिक थकान दूर.
अब क्या करते? बाहर खटिया डालकर पेड़ के नीचे बैठे हैं और अपनी मानसिक थकान दूर कर रहे हैं। गर्मी के बावजूद आंख लग गई और सपना शुरू हो गया..... सपने में एक सज्जन या दुर्जन आ गये. उन्हें देखते ही हम चौंके.... शक्ल कुछ कुछ जानी पहचानी सी लगी.... तभी वो बोले ताऊ रामराम.....
हमें भी तुरंत आवाज सुनते ही याद आ गया, अरे ये तो अपने माल्या साहब हैं, हमारे पुराने धंधों के साथी.
हमने पूछा यार बड़ा लम्बा हाथ मार कर गए थे... तुम तो हमारे भी ताऊ निकले?
वो बोले.... ताऊ तुमको भी तो कहा था, निकल लो मेरे साथ.... अब देखो तुम यहीं पड़े गर्मी में सड़ रहे हो और मैं
विलायत में मजे मार रहा हूँ.
हमने पूछा... चल यार माल्या वो बात तो किस्मत की है पर ये बता की जब लोग तुम्हारी इतनी बेइज्जती करते हैं और तुम्हारे साथ बदतमीजी करते हैं तो तुमको बुरा नहीं लगता?
माल्या साहब का जवाब सुनकर हमारी आंखे जहां थी उसी स्थिति में ठहर गई....
वो बोले - देख ताऊ, तू इसी के चक्कर में तो वहीं का वहीं रह गया और देख मैँ कहां पहुंच गया?
हमने कहा यार वो तो हम देख पा रहे हैं कि आप बहुत ऊपर पहुंच गये फ़िर भी इतनी बेइज्जती कैसे सहन कर पाते हो?
अब एक कुटिल मुस्कान के साथ माल्या साहब बोले –
देख ताऊ, बेइज्जती उतनी ही होती है जितनी
हम महसूस कर सकें, मैं एक धेले की अपनी बेइज्जती महसूस नहीं करता फिर मेरी बेइज्जती कहां हुई?
माल्या साहब की बात सुनकर एक
नया ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ और हम सोच में डूब गये.