मानसिक थकान को दूर करने का आसान तरीका है सब कुछ छोड़ छाड़ कर सिद्धार्थ की तरह घर से अकेले निकल लो.
पर इस मामले में सिद्धार्थ भाग्यशाली थे कि वो चुपके से निकल लिए और यशोधरा नींद के आगोश में समाई रही. जब तक वो नींद के आगोश से बाहर आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पर ताऊ इतना भाग्यशाली कभी रहा ही नहीं, जैसे ही लगा कि यशोधरा (ताई) नींद के आगोश में समाई है,
चुपके से बैग उठाकर, धीरे से दरवाजे की कुंडी खोलने लगा, कुंडी अभी खुली भी नहीं थी कि पीठ पर ताई का लठ्ठ टिका था. पूछने लगी ये आधी रात को चुपके चुपके कहां तपस्या करने जा रहे हो? कहीं चोरी करने जा रहे हो या किसी के यहां डाका डालने?
ताई का रौद्र रूप देखकर ताऊ की तो घिग्गी बंध गई...... लठ्ठ लिए खड़ी ताई के सामने कुछ बोलते नहीं बन रहा था... आखिर सच बताना पड़ा कि काम की वजह से दिमाग हिला हुआ है और मानसिक आराम के लिए जा रहा हूँ.....
वो दहाड़ते हुए बोली.... तुम्हारे उल्टे सीधे कारनामों की वजह से मेरी शांति भी नष्ट हो गई है। तुम जरा सा ठहरो, मैं भी साथ चलती हूँ. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आगे अपील भी नहीं होती.... और ताऊ सिद्धार्थ गौतम जैसा भाग्यवान भी नहीं कि अकेला निकल सके, लिहाजा ताऊ और उसकी यशोधरा दोनों ही गांव आ गए.
जब किस्मत में ही आराम नहीं हो तो आराम कहीं से खरीदा तो नहीं जा सकता. हमारे गांव पहुंचने के पहले ही माननीय मुख्यमंत्री गहलोत जी ने घोषणा कर दी कि कोयला खत्म है, बिजली नहीं मिलेगी, अब तो बस यूं ही बिना बिजली रहने की आदत डाल लो. ये तो हमारे साथ वही हाल हो गया कि “गये थे हरिभजन को और औटन लगे कपास”
गर्मी और घुटन बहुत ज्यादा है, बिजली यहां है नहीं तो मन में विचार आया कि यहां से निकल कर
दादीश्री Sudesh Arya जी के पास हरिद्वार ही चले जाएं क्योंकि वापसी की फ्लाईट भी 13 तारीख की है तब तक तो यहां दम निकल जायेगा. खैर हमने डरते डरते यह प्रस्ताव ताई के सामने रखा कि चलो तुमको हरिद्वार गंगा स्नान करवा लाते हैं. यह प्रस्ताव सुनते ही दो तीन लठ्ठ मारते हुए बोली.... चले थे बड़े तपस्वी बनने.... यहां तुमको गर्मी लगती है? क्या जंगल मे गए सिद्धार्थ गौतम एयर कंडीशन में तपस्या करते थे? चुपचाप पड़े रहो यहां और करलो अपनी मानसिक थकान दूर.
अब क्या करते? बाहर खटिया डालकर पेड़ के नीचे बैठे हैं और अपनी मानसिक थकान दूर कर रहे हैं। गर्मी के बावजूद आंख लग गई और सपना शुरू हो गया..... सपने में एक सज्जन या दुर्जन आ गये. उन्हें देखते ही हम चौंके.... शक्ल कुछ कुछ जानी पहचानी सी लगी.... तभी वो बोले ताऊ रामराम.....
हमें भी तुरंत आवाज सुनते ही याद आ गया, अरे ये तो अपने माल्या साहब हैं, हमारे पुराने धंधों के साथी.
हमने पूछा यार बड़ा लम्बा हाथ मार कर गए थे... तुम तो हमारे भी ताऊ निकले?
वो बोले.... ताऊ तुमको भी तो कहा था, निकल लो मेरे साथ.... अब देखो तुम यहीं पड़े गर्मी में सड़ रहे हो और मैं
विलायत में मजे मार रहा हूँ.
हमने पूछा... चल यार माल्या वो बात तो किस्मत की है पर ये बता की जब लोग तुम्हारी इतनी बेइज्जती करते हैं और तुम्हारे साथ बदतमीजी करते हैं तो तुमको बुरा नहीं लगता?
माल्या साहब का जवाब सुनकर हमारी आंखे जहां थी उसी स्थिति में ठहर गई....
वो बोले - देख ताऊ, तू इसी के चक्कर में तो वहीं का वहीं रह गया और देख मैँ कहां पहुंच गया?
हमने कहा यार वो तो हम देख पा रहे हैं कि आप बहुत ऊपर पहुंच गये फ़िर भी इतनी बेइज्जती कैसे सहन कर पाते हो?
अब एक कुटिल मुस्कान के साथ माल्या साहब बोले –
देख ताऊ, बेइज्जती उतनी ही होती है जितनी
हम महसूस कर सकें, मैं एक धेले की अपनी बेइज्जती महसूस नहीं करता फिर मेरी बेइज्जती कहां हुई?
माल्या साहब की बात सुनकर एक
नया ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ और हम सोच में डूब गये.
बहुत बढ़िया व्यंग ताऊ,
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपको पढ़ रही हूँ,मेरी तो मानसिक थकान आपके इस व्यंग को पढ़कर ही
तुरंत भाग गई है आभार !
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-11-2021) को चर्चा मंच "म्हारी लाडेसर" (चर्चा अंक4256) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच्ची बात है, अपमान तभी होता है जब हम उसे अपमान मानते हैं
ReplyDeleteआखिरी की लाईन बहुत ही लाजवाब है!
ReplyDeleteबेइज्जती उतनी ही होती है जितनी
हम महसूस कर सकें,
बात तो सही बोली माल्या ने... बुद्ध ने कुछ ऐसा ही कहा था गालियों को लेकर कदाचित... रोचक व्यंग्य...
ReplyDeleteताऊ महाराज की जय हो। इस बार घणे दिन बाद दर्शन दिये
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