वाराणसी अभ्यास शिविर भाग - 2
अगले दिन यानि 14 अगस्त को सुबह सुबह उठकर बनारस के घाटों को
निहारने की ख्वाहिश थी सो उठकर हाथ मुंह धोये और प्लान यह बना कि वहीं घाट पर गंगा
स्नान भी कर लेंगे और अपने परम प्रिय अस्सी घाट पर नाश्ता पानी करते हुये बनारसी
भौकाल का आनंद उठायेंगे. बाहर निकल कर पता चला कि सारे घाट डूबे हुये हैं और पानी
सडक तक आ चुका है. तो यह प्रोग्राम कैन्सिल कर दिया. हम और वत्स जी सीधे पहुंच गये
पहलवान लस्सी वाले के यहा. ईमानदारी से कहूँ तो वहां बनारसी कचोरी में वो मजा नहीं
आया, जितनी कि तारीफ सुनी थी। इससे ज्यादा मजेदार और स्वादिष्ट तो मथुरा की बेड़मी
पूरी और झोल वाली आलू की सब्जी थी.
अब लस्सी की बारी थी। मिट्टी के कुल्हड़ में लस्सी और ऊपर से मलाई
और रबडी की टापिंग देखकर मन ललचा गया, उम्मीदे जवान हो गई. कुल्हड़ को मुंह के पास
लाये तो सौंधी मिट्टी की खुशबू से दिल दिमाग ताजा हो गया. हालांकि रबड़ी और मलाई के
स्वाद तक सब ठीक था पर दही में हल्की खटास ने वत्स जी का मूड खराब कर दिया, बोले
यार पंजाब जैसी नहीं है. ज्यादा अच्छी तो हमें भी नहीं लगी सो हमने कहा ये पंजाब नहीं
है यू पी है, हो सकता है यहां ऐसा ही चलता होगा सो दोनों ने लस्सी को उदरस्थ कर
लिया. फिर मुंह का जायका ठीक करने के लिए वहीं पास में मिट्टी के कुल्हड़ में चाय
सुड़की तब जाकर चैन आया. फिर वापस होटल पहुंचकर नहा धोकर तैयार हो गये. तब तक
विद्वान साथियों का आना शुरू हो चुका था.
जैसा कि पहले भाग में बताया था श्रीमती मधु झा जी तो 13 अगस्त को
ही पधार चुकी थी. श्री बी. एन. शर्मा जी, श्री व श्रीमती वी. एस. पारीक जी, आशुतोष
शर्मा जी, श्री सुरेश शर्मा जी, श्री राकेश शर्मा जी, श्रीमती संगीता राय जी और
कु. श्वेता पांडेय जी भी आ चुके थे. श्री निधीष सारस्वत जी जिनके आने की कन्फ़रमेशन
नहीं थी, वो भी पधार गये तो आनंद दूना हो गया, बस मलाल रहा तो श्री सोहन वेदपाठी
जी के नहीं आने का. सबने उनको बहुत ही मिस किया.
सबसे मिलकर बहुत ही सुखद लगा, सभी लोग पूर्व परिचित ही लगे. सभी के
विनयी स्वभाव और विद्वता ने मन मोह लिया. सब लोग तैयार होकर दोपहर बाद हाल
में इकठ्ठा हुये.
क्रमश:
इस तरह के सुखद मेल-मिलाप का संयोग बड़ी मुश्किल से बनता है ! सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
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