गधे आखिरकार गधे ही होते हैं और उन्हें अपने गधेपन से कभी भी संतुष्टि नहीं मिलती. इसीलिये गधे अपने आपको घोडे सिद्ध करने की कोशीश करते हैं. अब जो पुराने पाठक हैं वो ताऊ के रामप्यारे से तो अच्छी तरह वाकिफ़ ही होंगे. आज का यह किस्सा भी रामप्यारे का ही है.
ब्लागिंग का जमाना खत्म हुआ और कोरोना काल के बेरोजगारों की तरह ताऊ, रामप्यारी और रामप्यारे भी बेरोजगार हो गये. ताऊ के पास तो पुराना लूटा हुआ काफ़ी माल था सो उसे कोई तकलीफ़ नहीं थी. ताऊ ने रामप्यारी को आगे पढने के लिये लंदन स्कूल आफ़ इकानामिक्स में भेज दिया और आप जानते हैं कि रामप्यारी बहुत जहीन दिमाग की है सो वो तो पढने लंदन चली गई.
ताऊ ने रामप्यारे को कहा कि अब तू भी कुछ काम धंधा करले, पढना तो तेरे वश की बात नहीं है. पर आप जानते ही हैं कि रामप्यारे सिर्फ़ गधेपने के काम कर सकता है. ताऊ ने बहुत कोशीश की कि रामप्यारे कुछ काम धंधे पर लग जाये. पर रामप्यारे ने तो ताऊ के साथ रहकर लूट, ऊठाईगिरी, ज्योतिष में लोगों को मूर्ख बनाकर माल ऐंठना ही सीखा था. उस ब्लागिंग के स्वर्णिम काल में रामप्यारे सोचता था यूं ही ठाठ से जिंदगी चलेगी पर ब्लागिंग का जमाना खत्म होते ही रामप्यारे के होश ठिकाने आ गये. ताऊ के लाख समझाने पर भी वो कोई काम धंधा करने को तैयार नहीं हुआ तो ताऊ ने भी उसे पूंछ पकड कर चलता कर दिया.
अब रामप्यारे को ताऊ की ज्योतिष याद आ गई, उसने समझा इससे ज्यादा आसान और माल कूटने का कोई और धंधा नहीं हो सकता. अब रामप्यारे ने ज्योतिष की दुकान लगा ली. अब उसके पास कुछ ज्ञान होता तो ज्योतिष की दुकान चलती भी पर वो ठहरा निरा गधा. सो दुकान चली नहीं.
रामप्यारे सोचने लगा अब क्या किया जाये? लीडरी कैसे की जाये? तो उसने कुछ अधकचरे गधे ज्योतिषियों को इकठ्ठा किया और उनका एक ग्रूप बनाकर लीडरीका शौक पूरा करने लगा. अब ग्रूप में उसने चालीसेक गधे इकठ्ठे करके उन पर लीडरी झाडने लगा था.
रामप्येयारे की यह दुकान चल निकली.... क्योंकि रामप्यारे ने यहां बढिया मजमा लगा दिया था. कुछ गधों को सेवादार नियुक्त किया गया....जो रामप्यारे के गुण गान करते और उसका महिमा मंडन करना ही उनका काम था.....रामप्यारे ने मठाधीष बनने की पूरी जोगाड कर ली. सुबह...सुबह सतसंग होता....फ़िर दोपहर में धर्म चर्चा होती और उसके बाद कुंडलिनी जाग्रत करने की विधी समझाई जाती....और देर रात तक कुंडलिनी पर चर्चा चलती रहती. ये अलग बात है कि कुछ कुछ गधे गलत बात पर विरोध करते तो रामप्यारे उनको मठ से बाहर निकालने की धमकी देकर चुप करवा देता. कुछ को तो निकाल भी चुका था जिससे दूसरे गधे रामप्यारे से खौफ़ खाने लगा थे.. ताऊ से मठाधीषी के गुर तो वो पहले ही सीख चुका था, वो ही अब काम आ रहे थे.
रामप्यारे दिमाग का शातिर तो ताऊ के साथ रहकर हो ही चुका था. सो एक दिन उसने गधों से पैसे वसूलने के लिये शानदार गधा सम्मेलन करवाया. उसने गधों को सम्मेलन में बुलाकर छककर गुलाब जामुन, दही बडे और नाना प्रकार के व्यंजन खिलाये. गधे भी आखिर गधे ही थे सो गुलाब जामुन खाकर लोट पोट हो कर रामप्यारे के समर्थन में जमकर ढेंचू...ढेंचू का राग अलाप कर उसकी जमकर तारीफ़ की.
मौका ताक कर रामप्यारे ने उनको भविष्य की योजनाएं समझा कर कर माहवारी चंदा शुरू करने की स्कीम समझाई.... जिससे उसका कुछ खर्च पानी निकल सके.... कुछ गधों ने दे भी दिया. कुछ तो यहां तक उत्साही हो गये कि संरक्षक बनने के नाम पर मोटा चंदा रामप्यारे के हवाले कर चुके थे. आखिर उन गधों को भी नकली घोडा बनने का शौक और अपने आपको विद्वान सिद्ध करने का चस्का लगा था.
पर हाये रे रामप्यारे की फ़ूटी किस्मत.......उसने जो गधे इकठ्ठे किये थे उनमें दो चार असली अरबी नस्ल के घोडे थे, ज्ञानी भी थे और जानकार भी थे.....बस वो घोडे भी गधों को घोडा समझ कर गल्ती से वहां आ गये थे. आदत अनुसार रामप्यारे ने जब उनसे भी अन्य गधों जैसा सलूक शुरू किया तो उन्होंने रामप्यारे को उसकी औकात बता दी और रामप्यारे को अपनी लीडरी खतरे में नजर आने लगी.
अब मुश्किल यह हो गई है कि रामप्यारे ना तो उन घोडों को ग्रूप से बाहर कर पा रहा है और ना ही वो घोडे ग्रूप को राजी खुशी छोडने को तैयार हैं.....रामप्यारे का आजकल दिन रात का चैन खराब हो गया ....कभी बीमारी का बहाना खोजकर मठ से गायब रहता है और उन अरबी घोडों से छुटकारा पाने की स्कीम सोचता रहता है. अब आप ही कोई उपाय हो तो रामप्यारे को सुझा सकते हैं....बेचारा बडी मुश्किल में फ़ंस गया है.
ताऊ ,
ReplyDeleteरामप्यारे के बहाने आज तो न जाने किस किस की खाट खड़ी कर दी । बहुत मजेदार । अच्छा करारा व्यंग्य।
ताऊ बहुत सारे रामप्यारे भरे पड़े हैं किस किस को उपाय बताये
ReplyDeleteताऊ जोश वही है । वाह इस लिंक से जुड़ जाओ जी सबसे
ReplyDeleteमेरे WhatsApp ग्रुप में शामिल होने के लिए यह लिंक खोलें: https://chat.whatsapp.com/IHj8IIQT5F76hzuQh27NyK