बरसात का मौसम आते ही सांपों का बिलों में रहना मुश्किल हो जाता है. बिलों से बाहर निकलकर वो किसी सुरक्षित आश्रय के लिये अपनी यात्रा इधर उधर शुरू करते हैं. सांप कभी किसी को आगे होकर नहीं काटते वो तो सताये जाने पर ही डसते हैं. और मनुष्य उन्हें मारने पर उतारू हो जाते हैं. यह अच्छी बात नहीं है.
सांपों को एक तरह से डरावना और प्राण घातक समझ लिया गया है. जो सही नहीं है. किंतु इसके उलट कुछ मूर्ख लोग काटने को सांप का प्राकृतिक स्वभाव समझ कर उसे अपना लेते हैं. उन्हें नहीं मालूम कि सांप सताये जाने पर काटते हैं पर कुछ मूर्ख मनुष्य इसे अपना लेते हैं और लोगों को डसने में, उनको जलील करने में अपने को धन्य समझते हैं. आपको भी ऐसे लोगों से जीवन में अवश्य सामना हुआ होगा.
इन्हीं मनुष्यों को ध्यान में रखकर एक कविता अपने आप फ़ूट पडी. आप भी मजा लीजिये.
सांपों का घर नही होता
फकीरों का दर नही होता।
दोनो बंधे है अपनी आदत से
वरना यूँ ही कोई बेघर नही होता।
साँप माहिर हैं डसने में
फकीर दिलो में बसने में।
भले डरता है जमाना सांपों से
राम बचाए इन बापों से।
पर सुन बेटा साँप जरा सुन ले
अपने दिमाग मे ये बात धर ले
तेरे जहर की ताकत तभी तक है
जब तक तेरे दाँत नही उखाड़े जाते।
सच बहुत से लोगों को मुर्ख कहना अतिश्योक्ति नहीं, हमारा भी सामना होता है ऐसे लोगों को. आज ही बगीचे में सांप घुसा तो बहुत से मौहल्ले वालों की बातें मुहं देखते ही बन रहे थे।
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति
वाह ... वापसी देख कर अच्छा लगा ताऊ श्रेष्ठ ...
ReplyDeleteमूर्ख ही होते हैं ऐसे लोग़ सच में ...
साँप और साँप के बाप -अच्छा पकड़ा है ताऊ की जाट बुद्धि ने !
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