आजकल निंदा शब्द बड़ा प्रचलन में है तो जो लोग इस खुशफहमी में हैं कि निंदा शब्द उनका आइडिया है तो वो इस गलतफहमी को अपने दिमाग से निकाल बाहर का रास्ता दिखायें क्योंकि निंदा तो पुरातन काल से चली आ रही है. निंदा
करने, कडी निंदा करने और निंदित होने में जो मजा है वो और कहां मिलेगा. जी भरके
निंदा करनी चाहिये और पेट भरके निंदित भी होते रहना चाहिये.
निंदा बडी गजब की दवा है तभी तो आजकल सरकारों की
भांति ही जनता भी प्रयोग में लाने लगी है. कोई भी फ़ोरम हो चाहे सोशल मिडिया हो
आजकल जमके निंदा की जाती है. और क्यों ना करें, निंदा करने से ही सारे कष्ट मिट
जाते हैं तो हाथ पैर चलाने की कोई आवश्यकता ही नही है. कबीर बाबा ने कितनी सटीक बात कही थी की “निंदक नियरे राखिये...” इसका मतलब बस इतना भर था कि निंदा करने से बडे से बडा युद्ध भी
टाला जा सकता है और आपका साबुन पानी भी बचा रह जाएगा…चकाचक धुलाई होगी वो मुफ़्त में. क्योंकि निंदक आपके पास है तो वो निंदा कर करके
सब मामला ही शांत कर डालेगा.
और फिर निंदित होने में कितना बड़ा सुख मिलता है जरा कल्पना कीजिये, निंदित होने वाला भी निंदित होकर वैतरणी पार हो लेता है..... ना कुछ खर्चा पानी और ना ही कोई बवाला...मनोरंजन मुफ़्त में. और इसीलिये तो निंदा करना और निंदित होना, महिलाओं के लिये इतना कीमती माना गया है. बस जरा चौका चूल्हा समेट कर फ़ुरसत हुई नही कि आसपास में किसी के यहां भी इकठ्ठी होकर निंदा महोत्सव शुरू कर देती हैं. पर महिलाएं इस गुमान में ना रहें की अब ये निंदा पुराण उनकी बपोती रह गया है अब तो सारे 56 इंच की छाती वाले मर्द और सरकारे भी निंदा की जगह कडी निंदा और घनघोर निंदा पुराण का सहारा लेने लगी हैं.
सार्क सरकारों की तो छोडिये आजकल नार्थ कोरिया
वाला मोटू सांड, बुढऊ ट्रंपू और नवजवान सा बना पुतिन भी एक दूसरे की निंदा और घनघोर निंदा में ही
दिन गुजार रहे हैं. और इसमें बुराई भी क्या है? लोग जबरन उकसाते रहते हैं…..सोचो
आपके उकसाने से इन्होंने परमाणु युद्ध छेड दिया तो क्या होगा? भाई, चैन से निंदा और कडी घनघोर निंदा सुनते
रहो और युद्ध से बचे रहों. हमें तो ये फ़ायदे का सौदा लग रहा है. युद्ध का इतना बडा
खतरा मोल क्यों लेना? आजकल कडी निंदा के भरोसे तो गांव मुहल्ले के युद्ध निपटाये
जा रहे हैं तो इसमे क्या बुराई है? क्यों आप दुनियां को मौत के मुंह में धकेलने
में लगे हो? युद्ध होगया तो आपकी आने वाली पीढी आपको कोसने के लिये भी नही रहेगी.
अभी चार दिन पुरानी ही बात है कि चम्पालाल पहलवान के छोरे को रामदयाल के गधेडे ने जलेबी घाट पर जमकर दुल्लतियां झाड़ दी और वहां से ये जा और वो जा…. अब गधा तो गधा
उसका क्या ठिकाना कि कहां मिलेगा. छोरे को चोट वोट कुछ ज्यादा ही बैठ गयी थी..
शक्ल सूरत भी अन्जानी सी हो गई थी सो चंपालाल भी गुस्से से तमतमा गया, और तमतमाये
भी क्यों नही, चंपालाल खुद 56 इंच के सीने वाला पहलवान ठहरा और उसका तो पूरा कुणबा
ही पहलवानों का था सो घर में इस बवाले पर पंचायत बैठ्नी थी सो मई की इस भरी दुपहर
में पंचायत बैठ गयी.
विचार विमर्श शुरू हुआ तो छोटे पहलवान बोले कि
धिक्कार है हम पर जो इसका बदला नही लिया तो और गधे की तलाश में जुट गये. अब इतने
बडे जंगल में गधे को कहां मिलना था सो घूम फ़िरकर वापस आ गये. जंगल में गधे को
ढूंढना किसी बडे ढेर में सूई ढूंढने जैसा….और चंपालाल के भाईयों के पास अमेरिका
जितनी सुविधायें भी नही थी कि जैसे ओसामा को अमेरिका ने एबटाबाद में ढूंढकर ठिकाने
लगा दिया था वैसे ये भी गधे को ठिकाने लगा पाते. क्या करते? आ गये वापस, लाल पीले
होते और अपनी 56 इंची फ़ुलाते हुये.
फ़िर सारे मोहल्ले के लोगों को इकठ्ठा कर लिया
गया और सर्व सम्मति से यह तय पाया गया कि गधे के मालिक रामदयाल को पकडा जाये. वहां
से हरकारे को भेज रामदयाल को तलब किया गया.
रामदयाल बोला – पहलवान भाई, आप क्या बहकी बहकी
बातें करते हो? बोलने से पहले कुछ सोच भी लिया करो. अरे हमारे गधे कोई गंवार या
बिना पढे लिखे थोडे ही हैं जो इस तरह के काम करेंगे? हमारे गधे तो बिल्कुल ट्रेंड,
पढे लिखे और प्रोफ़ेशनल गधे हैं. यह काम वो कर ही नहीं सकते. और खबरदार यदि आपने
आगे से ऐसे टुच्चे इल्जाम हमारे गधों पर लगाये तो…. अरे ये जरूर आप लोगों की कोई
साजिश होगी जो खुद ही अपने छोरे का थोबडा बिगाड लिया और इल्जाम हमारे गधों पर लगा
रहे हैं.
पंचायत में मौजूद सभी की बोलती बंद करके रामदयाल
तो वहां से अपना वक्तव्य देकर खिसक लिये और पहलवानों का कुणबा सन्निपात की स्थिति
में आ गया. सन्निपात इसलिये नहीं कि छोरे की दुर्गति हो गयी थी बल्कि इसलिये आया
कि अब मोहल्ले में मुंह कैसे दिखायेंगे, छोरे की मां और बीबी बच्चों को क्या जवाब
देंगे? फ़िर 56 इंच की छाती का क्या मोल रह जायेगा? गली मोहल्ले गांव में जहां
पहलवान साहब ने अपनी धाक जमा रखी थी उसका क्या होगा?
इसी बीच चंपालाल पहलवान के पांच सात पठ्ठे और आकर
जम गये और उन्होंने एक अनमोल सलाह दे डाली कि – भिया अबकी बार तो इस रामदयाल को ही
बजा डालो, बहुत वर्ष हो गये हैंगे….इससे तो सभी परेशान हो गये हैंगे. तभी पहलवान
के छोटे भाई कल्लू उस्ताद चश्में वाले ने बात को बीच में ही काटा और बोले कि ये
बजा डालने का सही मौका नही है. बजाने के लिये तो तैयारी करनी पडेगी. अभी के लिये
रामदयाल और उसके गधेडों की कडी निंदा का प्रस्ताव पास कर दिया जाये, बाद की बाद
में देखी जायेगी.
सभी ने वहां कडी से कडी और घोर निंदा का
प्रस्ताव पास किया, प्रेस रीलीज भेज दी गई. घर की औरतें जो छोरे के गम में कुछ
ज्यादा ही गमजदा थी उन्होने इन पहलवानों पर कुछ इस तरह लानते भेजना शुरू कर दी
जैसे भारत की जनता जब तब भेजती रहती है. पर पहलवानों को ना तब कोई फ़र्क पडा था और
ना अब कोई फ़र्क पडेगा. यानि रहेगा वही रामदयाल और वही रामदयाल की गधेडी और कडी निंदा...
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