ब्लागिंग का स्वर्णिंम काल और EVM से मठाधीषों के चुनाव



आज पता नही क्यों, ब्लागिंग के पुराने जमाने की बहुत याद आ रही है. वर्च्युअल दुनियां होते हुये भी कभी यह एहसास हुआ ही नही कि ये ”सूत ना कपास जुलाहों में लठ्ठमलठ्ठा” वाला काम है. पिछले तीन चार साल से ब्लागिंग भी बंद सी ही थी और फ़ेसबुक अपने को कभी रास आई ही नही थी. सो इन सबसे दूरी बनी ही रही.

हां तो हमको याद आ रही थी ब्लागिंग के स्वर्णिम काल की तो उस कालखंड में बडे बडे मठाधीषों जैसे मठ बने हुये थे. और जैसे सच के मठाधीषों में तलवारें खिंच जाती हैं कुछ इसी तरह की तलवारें ब्लागिंग में भी खिंच जाया करती थी. कई मसले तो ऐसे होते थे जो भारतीय राजनिती के चुनावों से भी अहम होते थे मानो ब्लागिंग का मठ जीत लिया तो राज करेंगे.

वैसे तो कई खेमें बने हुये थे पर नामचीन मठाधीषों के दो ही खेमे थे जैसे कौरव और पांडवों के थे. कई कई मसले ऐसे रहे जिनमें कोई भी हथियार डालने को तैयार नही होता था. सुबह से शाम पूरी दुनियां में फ़ोन खडकते रहते थे समर्थन पाने के लिये, सामने वाले योद्धा को अपने पक्ष में करने के लिये. हालात यहां तक पहुंच चुके थे कि कभी हिंदी सम्मेलन होता तो लगे हाथ गधा स्म्मेलन आहूत कर लिया जाता.

भारत पाकिस्तान की तरह कभी समाप्त ना होने वाली इस जंग को जड से समाप्त करने और ब्लागर भाईचारा बढाने के लिये एक सर्व मठाधीष सम्मेलन आहूत किया गया जिसमे सभी छोटे बडे मठाधीशों ने शिरकत की. सम्मेलन मे यह तय पाया गया कि वर्चस्व की इस लडाई को चुनावों के माध्यम से हल कर लिया जाये और हिंदी सेवा का यह यज्ञ जारी रखा जाये.

अब सवाल उठा कि निष्पक्ष चुनाव कैसे हों? उस समय तक EVM मशीनें आ चुकी थी सो निष्पक्षता के लिये EVM मशीनों के इस्तेमाल का सुझाव सर्वसम्मति से पारित हो गया. EVM मशीनों का इंतजाम करने का जिम्मा सत्य की मूर्ति ताऊ को सौंप दिया गया.  ताऊ को कोई काम दे दिया जाये और वो अंजाम तक नहीं पहूंचाये ऐसा मुमकिन नहीं है सो ताऊ तुरंत निकल लिये EVM के जोगाड के लिये और सीधे पहुंचे संटू भिया कबाडी के तेलीबाखल वाले ठीये पर. 

वहां भिया तो आये नही थे पर आठ दस जिंदा EVM मशीने वहां रखी थी और दो चार बच्चे उनसे चुनाव चुनाव खेल रहे थे. फ़िर उनमें इस बात को लेकर झगडा शुरू हो गया कि कौन बीजेपी बनेगा, कौन कांग्रेस और…सपा…बसपा इत्यादि. थोडी देर में उनमें ब्लागिंग के मठाधीषों की तरह सरफ़ुट्टोवल शुरू होगई. एक तगडे से दिखने वाले लडके ने, जो बीजेपी बनने की कोशीश कर रहा था, उसने कुछ् EVM मशीनों को उठाया और एक टाट के बोरे में भरकर भाग लिया कि लो अब मैं बीजेपी बनूंगा….कल्लो जो करना है. बाकी के छोरे उसके पीछे लपक लिये. अब वहां रह गया ताऊ और बाकी बची दो तीन EVM मशीनें.

और बाकी रह गया संटू भिया का कबाड और तीन नग EVM मशीनों और ताऊ.  काफ़ी देर तक भिया नही आये तो बोरियत होते देख उनमें से एक बूढी सी दिखने वाली EVM ने सन्नाटा तोडा और ताऊ से आने का सबब पूछा. ताऊ ने पूरा किस्सा बताया तो वो बूढी EVM बोली – ताऊ, कैसा कलयुग आ गया, जहां कोई हार जाये तो दोष हम पर और वो ही पार्टी कहीं जीत जाये तो हम ईमानदार. तुम मनुष्य लोगों की फ़ितरत भी बहुत ही अजीब है. मन तो ऐसा करता है कि तुम सबको सबक सिखाया जाये. 

हम कुछ जवाब सोच ही रहे थे कि इतनी देर में संटू भिया कबाडी आ गये. आते ही उन्होंने पूछा कि कैसे आना हुआ और हमने पूरा किस्सा बयान कर दिया.
भिया बोले – ताऊ चिंता मत करो, चुनाव के लिये हमारे पास EVM मशीने तैयार हैं. जब हमने बताया कि मशीने तो कुछ छोरे उठा ले गये तो भिया मुस्कराते हुये बोले – अरे ताऊ, इत्ती सी बात पर चिंता नही करने का……मशीन हमारी हैं और वे इत्ती समझदार हैं कि अपने आप हमारी आवाज सुनते ही वापस लौट आयेंगी. तुम तो किराया तय करो, तुमको किसको जितवाना है इस पर किराया तय होगा?

हमारी तो सांस ऊपर नीचे होने लगी कि भिया क्या उवाच रहे हैं? कहीं भरी दोपहरी भंग भवानी की चपेट में तो नही आ लिये? हमने ठोंक बजाकर पूछा तो उन्होने ईमानदारी से चुनाव कराने का किराया डेढ लाख प्रतिदिन बताया और किसी पार्टी को श्योरशाट चुनाव जिताने का साढे ग्यारह लाख. हमारा तो सर चकराने लगा कि भिया ने तो हमारे अरमान ठंडे कर दिये.

इता होने पर हमने अपने खेमे के महा मंडलेश्वर (नाम नही बतायेंगे वर्ना ये चलती फ़ेसबुक का हाल भी ब्लागर जैसा हो जायेगा) को फ़ोन लगाकर सारा किस्सा बयान किया. महा मंडलेश्वर खुशी से चीख ही पडे थे हमारी बात सुनकर और बोले – वाह ताऊ तुमसे यही उम्मीद थी, जैसे दुर्योधन ने कर्ण को पाला था अर्जुन को मारने के लिये, उसी तरह हमने तुमको भी इसी विजयश्री का वरण करने को तो  रखा है. शाबाश ताऊ……फ़टाफ़ट साढे ग्यारह लाख की जगह इसको साढे बारह लाख दो और जीत पक्की करो.

नियत तिथी पर चुनाव हो गये, उसमे EVM ने कुछ किया या नही यह शोध का विषय है कि भिया ने EVM में कुछ सेटिंग की थी या जीत का तुक्का लगा था पर उस चुनाव के बाद ब्लागिंग हार गई. भिया के दावे की वजह से राजनीती भी लगता है हार ही गई.

Comments

  1. बेचारे EVM चुनाव के समय ही तो इनकी पूछ-परख होती है, फिर तो बंद।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    ReplyDelete
  3. करारा प्रहार किए है, चोट सी लगी

    ReplyDelete

Post a Comment