ललित डाट काम पर एक प्रश्न पत्र प्रकाशित हुआ था जो आज तक अनुत्तरित है। अभी अभी पिछले सप्ताह ही ललित शर्माजी ने चेलेंज किया था कि वो प्रश्नपत्र आज तक कोई नही सुलझा पाया। गोया ये प्रश्न पत्र नही हुआ बल्कि देवकीनन्दन खत्री जी का चन्द्रकान्ता सन्तति उपन्यास होगया। ललित जी ने ये तिलस्म बांधा था जो शायद ताऊ की वापसी के लिए बांधा गया था। अब समय आ गया है कि इस तिलस्म को तोड़ दिया जाए। तो इस तिलस्म के एक एक परखच्चे अब उडाने का वक्त आ पहुंचा है। आजकल फेसबुकिया जमाना है। पांच दस लाइन की पोस्ट होती है तो सारा प्रश्न पत्र और उसके जवाब एक साथ आप पढ़ नही पाएंगे। इस वजह से हम इस तिलस्म के दो दो सवालों के जवाब एक एक पोस्ट में देकर यह तिलस्म हमेशा के लिए तोड़ डालेंगे। तो भक्तजनों अब दिल थामकर और कलेजा कड़ा करके इस तिलस्म के जवाब सुनिये। प्रश्नों को क्रमवार नही सुलझाते हुए क्रम हम अपने हिसाब से तय करेंगे।
प्रश्न (11) चिट्ठा चर्चा पर विवाद कब और क्यों नहीं हुआ?
उत्तर : ब्लागजगत में पहली बार जब एक कहावत प्रसिद्द हो चली थी की "मूंछे हो तो ललित शर्मा जैसी" वरना घुटमुंडा रहना ही अच्छा। बस इस के पहले तक कोई विवाद नही हुआ। और सारा विवाद इसके बाद ही शूरू हुआ। जिसकी परिणीति के विषय में अन्य सवाल भी हैं इसलिए इसका उत्तर यहां पर इतना ही दिया जा रहा है।
सवाल 5 (ब) उचित संबंध जोड़ो (5 अंक)
(1) अनुप शुक्ला - मानसिक हलचल
(2) लाला समीर लाल -पराया देश
(3) ताऊ -फ़ुरसतिया
(4)राज भाटिया -रामप्यारी
(5)ज्ञानदत्त पाण्डे -उडन तश्तरी
उत्तर : यह बहुत ही सिम्पल सवाल है जिसका उत्तर बच्चा बच्चा जानता है। फिर भी हमें तो 100 नम्बर लेने है इसलिए जवाब दे रहे हैं वरना कोई आवश्यकता नही है।
अनूप शुक्ला की मानसिक हलचल बहुत ही सक्रिय रहती है। उन्होने मौज लेने का कोई मौका ना तो पूर्व में कभी गंवाया है और ना ही आज गंवाते हैं। उम्मीद है "तू मौज का दरिया है" पर अमल करते हुये आगे भी मौज का दरिया बहाते रहेंगे।
लाला समीरलाल भारत छोड़कर पराया देश में जाकर बस गए और आने का नाम नहीं लेरहे हैं। अब भारत मोदीजी के नेतृत्व में बहुत आगे बढ गया है और काम करने के अवसर यहां पराया देश से ज्यादा है। लिहाजा अब "आ अब घर लौट चले" के बारे में सोचेंगे।
ताऊ बिलकुल फ़ुरसतिया हो गया है इसीलिए ब्लॉग और फेसबुक पर लौट आया है। उम्मीद है ताऊ अब ठगी, फ़रेबी और लूट का धंधा बंद करके दूसरा कोई काम धंधा करेगा. उम्मीद है अब ताऊ को समझना चाहिये कि "गब्बर और सांभा का खेल" ज्यादा दिन नही चलता।
राज भाटिया रामप्यारी को लेकर जर्मनी भाग गए हैं और इस तिलस्म के टूटने के डर से 7 दिनों के लिए गायब हो गए है। उम्मीद है राज भाटिया समझेंगे कि "मांद मे छुपने से क्या होगा" अत: उन्हें चाहिये कि जल्द मांद से बाहर निकल कर होली में शामिल हो जायें।
ज्ञानदत्त पांडे ने कुछ ही समय पहले एक उड़नतश्तरी को रंगे हाथों पकड़ लिया था और वो उडनतश्तरी मंगल ग्रह वालों की है. अत: उनको समझना चाहिये कि किसी पराये देश के यान के साथ "जानी हम दुश्मनों से भी इज्जत से पेश आते हैं" के सिद्धांत पर चलते हुये उसे आजाद कर देंगे।
बाकी का पर्चा अगली पोस्ट में हल किया जायेगा.
सही जबाब!
ReplyDeleteवाह...ब्लॉग की दुनिया में पुनरागमन पर आपका स्वागत है...
ReplyDelete"आ अब घर लौट चले" के बारे में सोचेंगे।
ReplyDeleteअवसर तो बढ़ ही गये हैं....यह तय है!!
इंतजार करेंगे कयामत तक:)
Deleteरामराम
मूंछे हो तो ललित शर्मा जैसी" वरना घुटमुंडा रहना ही अच्छा :) :)
ReplyDelete:) swagat tauji
ReplyDeleteजी, शुक्रिया :)
Deleteरामराम
वाह ताऊ ... इब जमेगी बैठक ईसा लगन लागरा है ...
ReplyDeleteजी जरूर।
Deleteरामराम
जय राम जी की।
ReplyDeleteblogjagat ki raunk laut aai
ReplyDeleteवाह ताऊ जय राम
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