क्या यह संभव है कि लडकी घोडी पर सवार होकर बैंड बाजे और बारात के साथ लडके के घर जाये और वहां शादी की सभी रस्में पूरी करे? जी हां यह गप्प नही बल्कि हकीकत है. दो दिन पहले खंडवा (म.प्र.) जिले के सतवारा गांव में कानून की छात्रा रजनी (25 वर्षीय) नाचते गाते बारातियों के साथ घोडी पर सवार होकर दूल्हे के घर पहूंची और शादी की रस्में पूरी की.
पाटीदार समाज की यह पुरानी परंपरा थी जो कन्या घटारी के नाम से जानी जाती थी जिसे वर्तमान समय में पूर्णरूपेण भुला दिया गया है. रजनी इसे महिला सशक्तिकरण का प्रतीक मानती है और उम्मीद करती है कि इससे सामाजिक कुरीतियां दूर होनें में मदद मिलेगी.
बारात लेकर लडकियों के घर जाना लडके अपना पैदायशी हक मानते हैं वहीं दूल्हे प्रवीण (30 वर्षीय) का मानना है कि दूल्हन का उसके घर बारात लेकर आना गर्व की बात है. इस पुरानी प्रथा को फ़िर से जीवित करना समय की मांग है और इससे लडकियों को समाज में समानता का अधिकार मिलेगा.
यह समाचार सांध्य दैनिक प्रभात किरण में पढने को मिला. ब्लागर भाईयों, कैसा रहे आप भी इस प्रथा का समर्थन करें? जो ब्लागर भाई कुंआरे हैं वो अपनी दुल्हन की बारात अपने घर बुलाने की कसम खायें और जो बच्चों के बाप हैं वो अपने लडकों की शादी इस रीति से करने की कसम खायें तो एक नई सामाजिक चेतना का प्रादुर्भाव यहीं से हो सकता है.
तो यह परंपरा का ही पालन माना जायेगा.
ReplyDeleteअरे वाह ..स्वागत योग्य सुझाव :) ऐसी कोई बरात हो तो कृपया हमें भी न्योता दिया जाये.
ReplyDeleteसच है, दूल्हा दुल्हन की भाग दौड़ बच जायेगी।
ReplyDeleteहमारे यहाँ के सिंधी भी लड़की की बारात लेकर जाते हैं लड़के वालों के घर।
ReplyDeleteसमाज में बदलाव समय की मांग है , बदलना ही होगा ताऊ...
ReplyDeleteशुभकामनायें
यह एक पुरानी प्रथा थी जानकार खुशी हुई .... रोचक समाचार ।
ReplyDeleteताऊ जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ
ReplyDeleteबड़ी अलग सी प्रथा है ये तो .... अच्छा लगा जानकर
ReplyDeleteयह भी प्रचालन में था !!
ReplyDeleteनवीन जानकारी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (27-04-2013) कभी जो रोटी साझा किया करते थे में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रस्म बन कर न रह जाए यह.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,काश ऐसा होने लगे, !!! ,
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
समाज और रीती रिवाज में बदलाव समय की मांग है इसे हमे स्वीकार करना ही पडेगा ताऊ जी.
ReplyDeleteरोचक !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है विचार शील बनाती हुई पाठक को .एक सन्देश थमाती हुई
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट बढ़िया .देश का उत्तर पूरब अंचल (सात बहनें -असम ,नगालैंड ,मणिपुर ,मेघालय ,त्रिपुरा ,....स्त्री .. स्त्री ....... pradhaan samaaj hi hain .mahilaaon kaa vahaan behad sammaan hai ,koi luchchai nahin hai .pradhaan स्त्री प्रधान समाज हैं।महिलाओं का सम्मान है .बाज़ार वही चलाती हैं खासी समाज में .यहाँ नागर बोध का स्तर बहुत ऊंचा है .
ऐसा करने पर शायद सोच मे बदलाव आये।
ReplyDeleteऐसे बदलाव अच्छे लगते हैं.
ReplyDeleteदुल्हन घोड़े पर बैठे या ना बैठे लेकिन बारात तो आजकल दुल्हन ही लेकर जाती है। लड़केवाले तो झट से कह देते हैं कि हमारे शहर में ही आ जाओ। लड़की वालों के रिसेप्शन को स्वयं का बताते हुए दरवाजे पर खड़े होकर बड़े गर्व से लिफाफे एकत्र करते हैं।
ReplyDeleteकिसी परम्परा में बंध के रहे भी क्यों हम ...
ReplyDeleteबदलाव आया था तो दुबारा आना भी जरूरी है ...
ऐसा सुना था कि कहीं होता है ..अब इस खबर से तो वह सुना हुआ सच साबित हो गया.
ReplyDeleteलड़का बारात लाये या लडकी...अब तो धीरे-धीरे बारात/परम्परागत ढंग से विवाह भी खतम होने लगेंगे ..बड़े शहरों में तो कोर्ट मैरिज का चलन होने लगा है.बड़े शहरों में लीव-इन का चलन भी है ..विवाह को नए युवा जिम्मेदारी समझते हैं.