तेरी चोटी काट कर तेरे बाप के पास भिजवा दूंगी.

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे क्यों बने हुये थे? उत्तर साफ़ है कि हस्तिनापुर जैसे विशाल साम्राज्य का संचालन करने के लिये कई बातों को अनदेखा करना पडता है. द्वापर में महाराज ताऊ अंधे बन कर राज्य चलाते थे. सिर्फ़ संजय की आंखों द्वारा ही देखते थे. जो कुछ संजय ने कह दिया वैसा ही आदेश कर डालते थे.

यूं लोग तो कहते हैं कि महाभारत का युद्ध श्री कॄष्ण की वजह से ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हार गये. पर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र कदाचित इस बात से इतफ़ाक नही रखते. महाभारत का युद्ध हारने के बाद, हार के कारणों पर जो जांच आयोग बैठाया गया था उसकी रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध हारने का कारण श्री कॄष्ण नही थे. युद्ध हारने के लिये स्पष्ट रूप से जांच आयोग ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र द्वारा १०१ पुत्र पैदा करने को कारण माना था. आयोग के निष्कर्ष में यह साफ़ साफ़ और बोल्ड अक्षरों में लिखा गया था कि १०१ पुत्रों को पैदा करने में महाराज ने अपनी ब्रह्मचर्य शक्ति गंवा दी जिसकी वजह से वो कमजोर होगये. हालांकि स्वयं महाराज इस बात पर यकीन नही रखते.


ताई गांधारी, ताऊ महाराज, युवराज दुर्योधन और पीछे युवरानी भानुमति चारा लेकर आते हुये


अभी अभी पिछले सप्ताह यही बात स्पष्ट हो गई जब अन्ना जी महाराज ने, कालू यादव महाराज द्वारा कठोर व्रत उपवास आंदोलन पालन पर आश्चर्य और संदेह, व्यक्त करने के, जवाब में कहा था कि "ब्रह्मचर्य की ताकत को दस बारह बच्चे पैदा करने वाले क्या जाने?

खैर ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को तो युगों युगों के लिये हस्तिनापुर का राज्य संभालने के लिये वरदान मिला हुआ है. अब ये द्वापर तो है नही की महाराजी चलती रहेगी और जनता God save the king गाती रहेगी. अब जमाना प्रजातंत्र का है सो महाराज ने भी हस्तिनापुर का शासन संभालने की कला सीख ली है. द्वापर में महाराज अंधे ही थे पर कलयुग में वो अंधे के साथ साथ बहरे भी होगये हैं. मजाल जो किसी तोतले (जनता) की बात पर ध्यान देंवे? वो सिर्फ़ अपने कानून मंत्री की सलाह पर ही चलते हैं.

अबकी बार महाराज ने द्वापर जैसी भूल नही की बल्कि सिर्फ़ एक ही औलाद पैदा की यानि अपनी पूरी शक्ति शासन संभालने के लिये सुरक्षित रख ली और अन्ना जी महाराज द्वारा ब्रह्मचर्य शक्ति क्षीण करने के आरोप से भी बच गये.

एक रोज हमने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के अंदरूनी पारिवारीक जीवन में झांकने की कोशीश की और यह देखकर दंग रह गये कि द्वापर में सिर्फ़ ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे थे और ताई महारानी गांधारी ने पट्टी बांधी हुई थी. पर अब तो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र अंधे के साथ साथ बहरे, ताई भी बहरी, और घूंघट से आंखे बंद, ताऊ महाराज का सुपुत्र दुर्योधन, वो भी बहरा और मजे की बात ताऊ महाराज की पुत्र वधु भी बहरी.

हमे आश्चर्य हुआ कि इस प्रकार का राज परिवार है तो शासन किस तरह चलता होगा? पर हमने देखा कि शासन तो बडे आराम से चल रहा है....महाराज ठहरे अंधे बहरे...महारानी और राज परिवार नितांत बहरा...उनके कानों में अपनी मतलब की ही बात पहूंचती है जैसा उनके मन माफ़िक हो. तोतला (जनता) कभी कभी आकर राजमहल के सामने धरना आंदोलन कर जाता है वो अंधे और बहरे होने की वजह से महाराज तक पहुंचता ही नही.

मंत्रिमंडल में किदम्बरम, चपिल चिब्बल, चंबिका कोनी. कनीष किवारी, तनु किंघवी, शुभचिंतक चारा मंत्री कालू कादव, जैसे मूर्धन्य और ज्ञानी लोग भरे पडे थे सो हस्तिना पुर का राज चल रहा था. कभी कभी एक दो तोतले व्यक्ति शासन के खिलाफ़ सत्याग्रह किया करते थे... और जनता को भडकाया करते थे......उनमें से एक कामदेव बाबा को तो चपिल चिब्बल और चंबिका कोनी ने ही निपटा डाला था.... पर ये दूसरा तोतला कुछ भारी पड गया. असल में ताऊ महाराज की कोई गलती नही....वो तो महाराज की क्राईसिस मैनेजमैंट कमेटी ने कन्ना कजारे को भी बाबा कामदेव समझ लिया और यहीं गच्चा हो गया. असल में इस तोतले के पीछे हस्तिनापुर के सारे तोतले एक साथ सडकों पर आ गये... सडक पर, गांव में, गली में..जहां देखो वहीं पर तोतले ही तोतले इकठ्ठे हो गये... सो मजबूरी में ताऊ महाराज को इस तोतले की बाते माननी पडी. महाराज की चिंता को दूर करते हुये उनके सभी सलाहकारों ने प्रस्ताव पारित करके कमेटी के पास भेजा ही इस लिये है कि महाराज की वाहवाही हो जाये और प्रस्ताव लंबे समय तक यूंही पडा रहेगा...तब तक तोतले ठंडे पड जायेंगें.


आपको एक दिन का आंखों देखा हाल ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के राज परिवार का सुनाते हैं, जिससे आपको अंदाज हो जायेगा कि महाराज कैसे शासन चला रहे थे और उनके अंधे बहरे होने का क्या फ़ायदा था.

एक रोज सुबह सुबह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हुक्का गुडगुडा रहे थे कि उनको पुत्र दुर्योधन की आहट सुनाई दी. उन्होने उसे कहा, बेटा दुर्योधन, जरा मेरे लिये चाय तो बनवा ला.

अब दुर्योधन भी ठहरा बहरा, उसने समझा कि तातश्री उसे खेत जोतने का कह रहे होंगे? अब युवराज हैं जो समझ लिया सो समझ लिया, उनसे कोई सवाल तो पूछने से रहा. युवराज की द्वापर में भीम ने गदा मार कर जो जंघाये तोडी थी वो अभी तक ठीक तरह से जुडी नही थी. इसी कारण युवराज थोडा लंगडाते हुये चलते थे. और उसी महाभारत युद्ध में भीम की गदा के कुछ सशक्त प्रहार युवराज दुर्योधन के मुंह पर भी हुये थे जिसके फ़लस्वरूप युवराज का मुंह अभी तक भी बांका टेढा ही रह गया था. इन दिनों युवराज दुर्योधन तातश्री के पूरे आज्ञाकारी थे सो चुपचाप हल कांधे पर रखा और बैलों को हांकते हुये खेतों की तरफ़ निकल पडे.

रास्ते में एक जगह चोराहे पर श्री सतीश सक्सेना खडे थे युवराज दुर्योधन को वहां से गुजरते हुये देखा तो पूछने लगे कि रामलीला मैदान को कौन सी सडक जायेगी?

युवराज तो ठहरे बहरे....उन्होने सतीश सक्सेना के हावभाव से समझा कि ये मुझे बैल बेचने के लिये पूछ रहा है. सो
युवराज दुर्योधन ने नाराज होकर कहा - नही, मुझे बैल नही बेचने हैं.

सक्सेना जी बडे आश्चर्य चकित हुये और बोले - भाई, मुझे बैल नही खरीदने, मुझे तो रामलीला मैदान जाना है अन्ना के अनशन में, उसका रास्ता बता दो.

दुर्योधन ने फ़िर समझा कि ये मुझे बैल बेचने के लिये ज्यादा कीमत देने की बोल रहा है. सो युवराज बोला - तुम जानते नही हो मैं कौन हुं? तुम दो टके के तोतले (जनता) होकर मेरे बैल खरीदोगे? यानि हस्तिनापुए के युवराज के बैल खरीदोगे? और ये कहते हुये वो सतीश सक्सेना को मारने के लिये दौडा जैसे बाबा कामदेव के पीछे दिल्ली पुलिस दौडी थी. अब सतीश सक्सेना भी क्या करते? अन्नागिरी करने घर से निकले थे सो चुपचाप युवराज दुर्योधन को प्रणाम करके शांत किया.

राजपुरूषों का यह खास गुण होता है कि कोई उनके सामने झुक जाये तो उसे कुछ और दें या ना दें पर उसे अभय दान अवश्य दे देते हैं. अब इन राजपुरूषों का ये तोतले क्या बिगाड लेंगे? कर लो, क्या कर लोगे? ये खानदानी अंधे तो थे ही अब प्रजातंत्र ने इनको ५ साल बहरे होने का लाईसेंस भी दे दिया. यानि द्वापर में महाराजी चलती थी सो अंधे बन कर शासन किया करते थे अब कलयुग में प्रजातंत्री चलती है सो बहरे होने की और सुविधा मिल गई.

युवराज दुर्योधन खेत में पहुंचकर हल जोतने लगे. हालांकि खेतों में फ़सल खडी थी उसी पर हल चला दिया क्योंकि तातश्री के आज्ञा कारी पुत्र जो बन गये थे अब कलयुग में. थोडी देर बाद उनके लिये कलेवा यानि ब्रेक फ़ास्ट लेकर युवरानी भानुमति आ गई.

लंच की पोटली सर से उतार कर उसने युवराज को आवाज लगाई. युवराज दुर्योधन बैल छोडकर वहां आ बैठे और लंच लेने लगे. युवराज बोले - भानुमति, प्रिये आज तुम्हारे हाथों से रोटी और सब्जी बडी स्वादिष्ट बनी है और छाछ का तो कहना ही क्या? बस मुक्का प्याज और ले आती तो मजा आ जाता.

अब युवरानी भानुमति भी इस जन्म में बहरी थी. और उसके बहरेपन का कारण कोई राजनैतिक नही था. वो तो द्वापर में किसी भी पचडे में नही थी. बस द्वापर में युवराज दुर्योधन द्वारा अपने प्रति किये गये उपेक्षापूर्ण और रूखे व्यवहार की वजह से बहरी हो गई थी.

भानुमति ने समझा कि ये मेरी लाई हुई रोटी और सब्जी की बुराई कर रहा है. अब युवरानी भी कोई द्वापर वाली सीधी साधी भानुमति नही है, अब वो गांगेय नरेश की सीधी साधी पुत्री ना होकर पक्की हरयाणवी चौधरी की बेटी की तरियां तेज तर्राट है. सो टका सा जवाब दिया - तन्नै खानी हों त खाले नही तो तेरी बेबे को बोल जाके, रोटी सब्जी उसने बनाई है मैने नही. अब दोनों बहरे, अपनी अपनी बके जा रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे अन्ना और उनकी टीम जन लोकपाल बनाने का कह रहे थे और चपिल चिब्बल और चंबिका ने अपनी मर्जी का सरकारी लोकपाल का मसौदा बना दिया था.

युवराज तो खा पीकर थोडी देर वहीं लेट कर सो गये, फ़िर उठकर राजमहल में चले गये. और जाकर तातश्री और माताश्री के पास बैठ गये. युवरानी भानु ने भैंसों के लिये चारा काटा और उस गठ्ठर को लेकर घर लौट चली.

भानुमति ने घर पहुंचकर ताई गांधारी को सुनाते हुये ऊंचे स्वर में कहा - ए बुढिया, टिक्कड ढंग से बनाया कर, तेरा छोरा खाने में घणै नखरे करता है और इब मेरे तैं उसके नखरे नही उठाये जाते हैं. यो द्वापर कोनी जो मैं चुपचाप सुण ल्यूंगी...इब परजातंतर है...समझ लिये...

ताई भी बहरी थी सो उसने समझा कि मैं जो गहने और नया घाघरा लुगडी पहने बैठी हूं, इसकी वजह से ये मुझे कुछ जली कटी सुना रही है सो तुरंत बोली - ये गहने जेवर तेरे बाप के यहां से आये हुये नही है, ये तो मुझे मेरे मायके गांधार से मिले हुये हैं... और यो लुगडा तो मेरा भाई शकुनी परसों राखी बंधाई म्ह दे के गया है.... ज्यादा जबान चलायेगी तो तेरी चोटी काट कर तेरे बाप के पास भिजवा दूंगी.

हे भगवान, ये क्या होगया है ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र और उनके कुणबे को? इतने बडे हस्तिनापुर राज्य को क्या अंधा और बहरा होकर चलाया जा सकता है? उस तोतली जनता की आवाज बिना लठ्ठ खाये महाराज के कानों में कभी पहूंचेगी भी? क्या होगा उस प्रस्ताव का जो, स्टेंडिंग कमेटी के पास गया है? क्या ये अंधे बहरों का राज परिवार और मंत्रिमंडल उसे पास करके तोतलों (जनता) की बात सुनेगा या उसे ठंडे बस्ते में पटक कर यूं ही मजे मारता रहेगा?

Comments

  1. त्या बात है ताऊ.... आद तो हद तर दी, जे मान ल्यो ती पूरा हस्तिनापुर ही तोतला तर दिया....

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  2. आगे क्या होगा वह तो वक्त ही बताएगा ताउजी .......फिलहाल तो महाराज और उनके मंत्रीगण परेशान नजर आ रहे हैं

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  3. तोतलों याने जनता से क्‍या प्रश्‍न करते हो कि क्‍या होगा? ऐसे अंधे और बहरों के राज में कुछ भी हो सकता है।

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  4. बहुत रोचक लगा वाकई !
    यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में न जाए यही सबकी कामना है !

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  5. हमें तो लगता है हमारा देश भी अंधे, बहरे, असंवेदनशील लोग चला रहे हैं जहाँ जनता की कोई सुनवाई नहीं।

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  6. महाभारत रह रह कर होता है, कारण भी और निवारण भी।

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  7. ताऊ, ये सब हरियाणा में ही क्यों हुये थे तोतले..

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  8. ठीक से पता करे रामलीला मैदान जाने का पता किसने पूछा था ? हमें तो शंका है |

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  9. या गाड्डी तै न्यूं ए चालेगी ।

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  10. क्या होगा उस प्रस्ताव का जो, स्टेंडिंग कमेटी के पास गया है? क्या ये अंधे बहरों का राज परिवार और मंत्रिमंडल उसे पास करके तोतलों (जनता) की बात सुनेगा या उसे ठंडे बस्ते में पटक कर यूं ही मजे मारता रहेगा?

    यही तो चिन्ता सबको है ... कटाक्षपूर्ण लेख ..

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  11. गजब दिया है ताऊ सटीक मिला कर....कालू यादव कहीं अवमानना का नोटिस न भेज दे...संभालना...

    बहुत मस्त!!!

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  12. बहरों की ही पारिवारिक एकजुटता निभ सकती है , सब अपनी कह ले , सुनने की तो बारी आनी ही नहीं है !
    रोचक!

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  13. बहुत सुन्दर।
    चोटी तक तो चलेगा, मगर नाक-कान मत काट देना!
    --
    भाईचारे के मुकद्दस त्यौहार पर सभी देशवासियों को ईद की दिली मुबारकवाद।
    --
    कल गणेशचतुर्थी होगी, इसलिए गणेशचतुर्थी की भी शुभकामनाएँ!

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  14. आदरणीय ताऊ.. इस तोतले की लाम लाम!
    वो जो 'खड़ी कमिटी'बनी है उसमें भी कालू जादव, पतली कमर सिंह, और मनहूस तिवारी के होने की बात सुनी जा रही है!!
    लगता है तोतले तेताला गायेंगे और हस्तिनापुर में बजेगी बीन..

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  15. @@@@@मंत्रिमंडल में किदम्बरम, चपिल चिब्बल, चंबिका कोनी. कनीष किवारी, तनु किंघवी, शुभचिंतक चारा मंत्री कालू कादव, जैसे मूर्धन्य और ज्ञानी लोग भरे पडे थे सो हस्तिना पुर का राज चल रहा था. कभी कभी एक दो तोतले व्यक्ति शासन के खिलाफ़ सत्याग्रह किया करते थे... और जनता को भडकाया करते थे......उनमें से एक कामदेव बाबा को तो चपिल चिब्बल और चंबिका कोनी ने ही निपटा डाला था.... पर ये दूसरा तोतला कुछ भारी पड गया. असल में ताऊ महाराज की कोई गलती नही....वो तो महाराज की क्राईसिस मैनेजमैंट कमेटी ने कन्ना कजारे को भी बाबा कामदेव समझ लिया और यहीं गच्चा हो गया. असल में इस तोतले के पीछे हस्तिनापुर के सारे तोतले एक साथ सडकों पर आ गये...
    गजब लिख दिया है,जो कुछ अन्ना जी की टीम नें छोड़ दिया था आप तो उससे भी आगे जा निकले.मजेदार पोस्ट,आभार.

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  16. वाह सा ताऊ जी चाला काट दिया ...लट्ठ गाड दिया ...ध्यानायावाद

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  17. कितने तोतले थे ? मजेदार !

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  18. ताऊ महाराज की जय हो श्री मान जी आपका जो लिखने का ढंग है बहुत ही निराला है बहुत ही मजा आता है पढ़कर आप मेरे ब्लॉग पर आये और सुख की सही परिभाषा बताई और आपने कहा की शायद ही इस दुनिया में कोई सुखी होगा आप की बात बिलकुल सही है आप का बहुत -बहुत धन्यवाद् ..राम -राम

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  19. ये ताउ महाराज के कुनबे के तो पूरे कुएं में ही भांग पड गई है ।

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  20. सही रौनक लगाई है ताऊ। अन्धे-बहरों का राज कब तक चलैगा? लगता है महाभारत दूर न सै।

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  21. .

    ताऊ , आज पुनः इस आलेख को पढ़ा , नया ख़याल आया की तोतले तो फिर भी बेहतर हैं सत्ता में बैठे गूंगों से। गांधी जी की तीन बंदरों की शिक्षा ठीक से इन्होने समझी नहीं , अपनी मंदबुद्धि से इन्होने अर्थ का अनर्थ करके अपनी पार्टी में अंधे बहरे और गूंगे भर लिए। अब तो चौकलेटी राजकुमार (चाहुल चिंची)-(राहुल विन्ची) प्रधानमन्त्री बनने वाले हैं। अपनी तुतलाहट से कहीं देश का बंटाधार ही न कर दें।

    राम राम

    .

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