गुड मार्निंग एवरीबड्डी, ताऊ टीवी के सुबह सबेरे के बुलेटिन में मैं रामप्यारे आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और आपको एक मुख्य खबर की और लिये चलता हूं.
कल ताऊ के पास एक ब्लागर (नाम उनके आग्रह पर नही बता रहा हूं) का फ़ोन आया था. प्रस्तुत हैं दोनों की बात चीत के कुछ कतरे हुये अंश..
ब्लागर महोदय बोले - हैल्लो ताऊजी रामराम... ताऊ मैं एक सुझाव आपको देना चाह रहा था और फ़ोन भी इसीलिये किया है कि आप किताबों की समीक्षा क्यों नही लिखते? आजकल ये फ़ैशन में भी है और इससे आप बुद्धिजीवी भी माने जाने लगोगे. अभी तो लोग बाग आपको ठग, बेईमान, उठाईगिरा, निरा मूर्ख और गंवार ही समझते हैं. सो ये मौका हाथ से मत जाने दिजिये.
ताऊ बोला - देख भाई , पहले तो अपने ज्ञान में सुधार करले कि ठगी बेईमानी, चोरी उठाईगिरी मेरा कोई मजबूरी का या छुपे भेडिये वाला पेशा नही है बल्कि ये मेरा इमानदारी का पेशा है जिसे मैं खुलेआम करता हूं किसी से छुपाकर नही करता . और ना ही मैं किसी बडे लेखक व्यंगकार को बार बार कोट करके अपने आपको बुद्धिजीवी साबित करने के चक्कर में पडता हूं. मैं तो जो भी काम करता हूं डंके की चोट करता हूं. रही बुद्धिजीविता साबित करने की बात तो सुन ले ताऊ जितने बुद्धिमान आलोचक समीक्षक भूतकाल में तो कुछ हुये हैं और भविष्यकाल में भी हो सकते हैं पर वर्तमान में ताऊ जितना पढा लिझा धुरंधर आलोचक इस ब्लागिस्तान में तो पैदा भी नही हुआ है. आखिर ताऊ और राज भाटिया ने रोहतक की प्राईमरी सकूल से एक साथ पांचवी फ़ेल होने की डिग्री पाई है. है कोई तेरी निगाह में पांचवी फ़ेल की डिग्री वाला पढा लिखा ब्लागर?
ताऊ की क्वालिफ़िकेशन सुनकर उधर से ब्लागर महोदय की सिट्टी पिट्टी गुम होगई और नम्र स्वर में आवाज आई - वाह ताऊजी, हमको तो आज ही मालूम पडा कि आप इतने पढे लिखे हो? अब कुछ आलोचना समीक्षा के गुर मुझे भी सिखा दिजिये जिससे मैं भी किसी की किताब की आलोचना करके प्रसिद्धि को प्राप्त हो जाऊं.
ताऊ बोला - बेटा सुन, ये समीक्षा करने का काम और जब ब्लागर ही लेखक हो और ब्लागर ही समीक्षक हो तो, अति कठिन और दुरूह हो जाता है. इसके लिये तुमको समीक्षा करने का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त करना होगा उसके बाद ही कुछ सिखाया जा सकेगा.
ब्लागर महोदय उधर से बोले - ताऊ मुझे मंजूर है, आज से आप मेरे गुरू और मैं आपका चेला. आप तो मुझे सिखा दिजिये.
ताऊ ने कहा - सुनो वत्स, ये प्रकृति त्रिगुणात्मक है. जैसे अलग अलग मनुष्य का स्वभाव तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण में से किसी एक की प्रधानता वाला होता है वैसे ही एक आलोचक समीक्षक का स्वभाव भी ऐसी ही त्रिगुणात्मक शक्तियों के आधीन रहता है और वो उन्हीं गुणों के आधीन होकर समीक्षा करता है.
ब्लागर महोदय थोडा अधीर होते हुये बोले - हे ताऊ महाराज, मैं आपसे पुस्तकों की आलोचना करने का गुर पूछ रहा हूं और आप बाबा श्री ताऊ महाराज की तरह उपदेश देने लगे?
ताऊ एकदम से बाबाश्री ताऊ महाराज जैसी आवाज मे बोले - बालक इतने अधीर मत होवो, ये कोई दो टके का ज्ञान नही है कि तेरी अक्ल में दो मिनट मे घुस जायेगा, इसे जरा विधि विधानपूर्वक तेरी खोपडी में विस्तार से घुसेडना होगा. अब मन लगाकर सुन. और बीच में टोकना मत वर्ना हमारी लय बिगड गयी और हमें गुस्सा आ गया तो तू इस जन्म में समीक्षा करना तो दूर बल्कि ब्लाग लिखना भी भूल जायेगा.
ब्लागर डरते हुये बोला - जी बाबा श्री ताऊ महाराज, जैसी आपकी आज्ञा.
ताऊ बोला - बालक, अब मन लगाकर श्रवण कर और इस ब्रह्मज्ञान को सुन कर नाम और दाम दोनों कमा. जैसे मनुष्य ईश्वर की त्रिगुणात्मक शक्ति के आधीन रहता है वैसे ही समीक्षक भी त्रिगुणात्मक शक्तियों के प्रभाव में रहता है.
ब्लागर - जी महाराज, आप कृपया बताये कि ये कौन कौन सी त्रिगुणात्मक शक्तियां हैं?
ताऊ महाराज बोले - सुन बच्चा, अब मैं तुझे इन तीनों शक्तियों के नाम और उनके भेद उदाहरण सहित समझाऊंगा, ध्यान लगाकर सुन. समीक्षक का मन मुख्यतया ब्लागरत्व, जलागरत्व और ताऊत्व इन तीन शक्तियों के अधीन काम करता है यानि हर समीक्षक इन्हीं में से किसी के तत्व से प्रभावित रहता है और उसी के आधीन अपना कर्म करता है.
ब्लागर बोला - जी ताऊ महाराज, समझ गया. अब कृपा कर के आप मुझे इनका भेद विस्तार से समझायें.
ताऊ महाराज बोले - अवश्य बालक अवश्य, तेरे प्रश्न से हम अति प्रसन्न हुये, अब आगे सुन, जो समीक्षक ब्लागरत्व गुण प्रधान होता है वो मन से अति कोमल और किसी भी पुस्तक की अपनी समीक्षा में अति उदार होता है. वो जगह जगह पुस्तक और लेखक की वाह वाह करता हैं. किसी भी लेखक का मन नही दुखाता बल्कि उसकी प्रसंशा ही करता हैं जिससे वो अगली पुस्तक की रचना कर सके. उदाहरण के लिये ऐसा समझ लो जैसे की वाह वाह, बहुत खूब, लाजवाब, अति सुंदर जैसी टिप्पणी की मानिंद उसकी समीक्षा होती है. और पुस्तक की रेटिंग पांच में से कम से कम साढे चार स्टार तो देता ही है.
ब्लागर बोला - जी ताऊ जी समझ गया, अब आगे बताईये.
ताऊ बोला - अब दुसरे प्रकार का समीक्षक जलागरत्व गुण प्रधान होता है. ये जलागरत्व प्रधान गुण वाले समीक्षक बहुत ही जलन वाले होते हैं. इनका हृदय हमेशा ही लेखक के प्रति ईर्ष्या और द्वेष से भरा होता है. जलागरत्व गुण प्रधान वाला समीक्षक छिद्रान्वेशी होता है और अपने आपको बुद्धिमान साबित करने में लगा रहता है. इनकी खुद की बुद्धि घुटने में होती है पर अन्य बडे लोगों के नाम का सहारा लेकर अपनी विद्वता साबित करने में लगे रहते हैं. इनका कुल जमा हिसाब ये होता है कि "तेरा वजन मुझसे ज्यादा क्यों?" बस यही दुर्भावना इन्हें घेरे रहती है और ये मूर्ख इतना भी नही समझते कि सामने वाले ने अपना वजन बढाने के लिये रबडी मलाई का सेवन किया है. वो चाहे तो खुद भी रबडी मलाई खाकर वजनदार बन सकता है. पर जलागरत्व गुण प्रधान समीक्षक इस मामले में दुर्भाग्यशाली होता है.
ब्लागर बोला - जी ताऊ महाराज, इस बात को थोडा स्पष्ट कर देते तो मेरी बुद्धि इसे ग्रहण कर लेती, थोडा विस्तार पूर्वक बताने की कृपा करें.
ताऊ बोला - वत्स अवश्य, अब तुम्हें बताना शुरू किया है तो अवश्य पूरी बात समझाकर ही छोडेंगे तुझे, अब तू इस बात को एक उदाहरण से समझ..... बात बहुत पुरानी है. उस समय हम रोहतक नगरी में रहते थे और राज भाटिया हमारे परम मित्र हुआ करते थे. मित्र तो अब भी हैं पर उस समय बचपन की दोस्ती थी और निस्वार्थ थी जबकि आजकल टोपीबाजी की वजह से वो हमसे जरा सतर्क ही रहते हैं और बहुत दिनों से उन्होने हमसे कोई टोपी नही पहनी है.
एक रोज राज भाटिया जी को उनके चाचा की ससुराल में किसी शादी में जाना था जहां भाटिया जी को भी लडकी वाले देखने आने वाले थे. उस जमाने मे आने जाने के इतने साधन नही हुआ करते थे. कहीं बस में, कहीं रेल में... थोडी दूर पैदल.... इस तरह जाना पडता था. सो भाटिया जी ने ताऊ को भी साथ चलने का आग्रह किया और कहा कि तू वहां सबसे मेरी बडाई करना, जिससे लडकी वाले मुझे पसंद करलें
एक रोज राज भाटिया जी को उनके चाचा की ससुराल में किसी शादी में जाना था जहां भाटिया जी को भी लडकी वाले देखने आने वाले थे. उस जमाने मे आने जाने के इतने साधन नही हुआ करते थे. कहीं बस में, कहीं रेल में... थोडी दूर पैदल.... इस तरह जाना पडता था. सो भाटिया जी ने ताऊ को भी साथ चलने का आग्रह किया और कहा कि तू वहां सबसे मेरी बडाई करना, जिससे लडकी वाले मुझे पसंद करलें
ताऊ ने भी लड्डू जलेबी खाने के शौक में हां कर दी. समस्या तब आई जब भाटिया जी ने कहा कि यार ताऊ मेरे पास कपडे तो हैं पर मुड्डे (जूते) नही हैं सिर्फ़ फ़टी चप्पल हैं और लडकी वाले मुझे फ़टी चप्पलों में देखेंगे तो मेरी कुडमाई (सगाई) कैसे होगी सो तेरे नये वाले मुड्डे मुझे पहन लेने दे तू मेरी फ़टी चप्पल पहन ले. वहां सगाई तो मेरी होनी है तुझे कोई फ़र्क नहीं पडेगा. जब तुझे लडकी वाले देखने आयें तो तू मेरी नई कमीज और पैजामा पहन लेना.
दोस्ती की खातिर ताऊ तैयार हो गया पर मन में जलागरत्व गुण सवार होगया. रास्ते में जहां भी कोई पूछे कि भाई कहां के हो और कहां जा रहे हो तो ताऊ परिचय में बोले - अजी ये मेरा यार राज भाटिया है, पांचवी में एक नंबर का फ़ेल है मैं दूसरे नंबर का फ़ेल हूं. और ये जो मुड्डे (जूते) पहने हुये है ये मेरे हैं बाकी सब कपडे लत्ते इसी के हैं.
राज भाटिया ने एक दो बार तो मजाक में बात हंसकर टाल दी पर हर जगह यही बात सुन सुन कर बोले - ताऊ, तू ये बार बार क्यों कहता है कि मुड्डे मेरे हैं...अगर लडकी वालों को पता लग गया कि मैने मांगे हुये मुड्डे पहने हैं तो क्या मेरी सगाई होगी? तेरे हाथ जोडूं यार, वहां ये बात मत कहना. ताऊ बोला - ठीक है, तू चिंता मत कर, अब मैं जबान संभाल कर बोलूंगा.
दोनों अपने गंतव्य पर पहुंच गये. भाटिया जी ठहरे गोरे चिट्टे, नया पैजामा, नई कमीज और गले में गमछा, पैरों में नये मुड्डे...लडकी और लडकी वाले तो उनको देखते ही लट्टू हो गये.....तभी एक नाई जो कि लडकी वालों की तरफ़ से था वो लडकी वालों से बोला कि लडका तो बिल्कुल सोलहों आने है पर इसकी शक्ल के अलावा गुणों का और घर बार के बारे में भी पता करना चाहिये. सो वो आकर ताऊ से पूछताछ करने लगा.
ताऊ बोला - जी, ये मेरा दोस्त है और बहुत बडे घर का है. पांचवी फ़ेल तक मेरे साथ ही पढा है. ये नई कमीज, नया पैजामा और गमछा भी इसी का है पर ये नही बताऊंगा कि इसने जो नये मुड्डे पहने हुये हैं वो मेरे से मांग कर पहने हैं.
ब्गलार बोला - वाह ताऊ जी वाह, मैं समझ गया जलारत्व गुण प्रधान समीक्षक के स्वभाव को. ये कहानी डायरेक्ट मेरी खोपडी मे घुस गई है अब आप कृपा कर ताऊत्व गुण प्रधान समीक्षक के बारे में और बतादें.
ताऊ बोले - वाह बच्चा वाह, तू बडा कुशाग्र है. अब सुन तुझे मैं ताऊत्व गुण प्रधान समीक्षक के बारे मे बताता हूं.
ब्लागर बोला - जी ताऊ महाराज,
ताऊ महाराज बोले - सुन बच्चा, ताऊत्व गुण प्रधान समीक्षक ठीक उसी मनोदशा का होता है जैसे सतोगुण प्रधान मनुष्य होता है. उसे समीक्षा करते समय अपने पराये का भान नही रहता, उसको अच्छाई अधिक नजर आती है. इसलिये ताऊत्व गुण प्रधान व्यक्ति अच्छा समीक्षक नही होता और इसी वजह से हम स्वयं महाराज ताऊ किसी पुस्तक की छीछालेदर नही करते.
ब्लागर ने पूछा - ताऊश्री इसका मतलब तो ये हुआ कि ताऊत्व गुण प्रधान व्यक्ति किसी काम का नही होता? मेरा मतलब समीक्षा के काम से है.
ताऊ बोला - बालक, अभी हमने तुझे सारे गुण नही सिखाये हैं इसलिये इतना मत उछल. ताऊत्व गुण को जरा इस उदाहरण से समझने की कोशीश कर कि ये ताऊत्व कितना मारक प्रहार करके सामने वाले का कचरा कर देता है?
ब्लागर खिसियाता हुआ बोला - जी महाराज श्री.
ताऊ महाराज बोले - बालक, ये पिछले साल दिसंबर माह की बात है. हम समीर साहब के बालक की शादी में शरीक होने इंद्रप्रस्थ गये थे. उस रात भयानक ठंड थी, हमारा पुष्पक विमान रात्रि को एक बजे लडखडाता हुआ वहां पहूंचा, भयानक कोहरे के कारण विमान एक घंटे तक हवा में लटका रहा, तदुपरांत हवाईअड्डे पर यातायात सघन होने की वजह से हवा में लटक कर चक्कर काटता रहा. मुश्किल से पुष्पक धरती पर उतर पाया, उसके बाद हम रात्रि को पार्टी में पहूंचे तो वहां संगीत का कार्यक्रम चालू था. सभी नृत्य संगीत में मशगूल थे, डीजे पर सभी के पांव थिरक रहे थे. खाना पीना चल रहा था.
वहां पर खाने के दौरान समीर साहब ने पूछा कि - ताऊ खाना कैसा लगा?
ताऊ बोला - वाह समीर साहब वाह, खाना बडा लजीज है, मजा आगया...बस पनीर वाली सब्जी और बिरयानी में थोडा नमक और होता तो आनंद आ जाता. अब समीर साहब मायूस होगये कि इतने बढिया खाने का इंतजाम किया उसमें भी कमी निकाल दी. अरे नमक ज्यादा तो नही था ना..कम ही था तो जरा सा और डाल लेते...सबके सामने ये कहने की क्या जरूरत थी? पर ताऊत्व गुण प्रधान व्यक्ति बहुत ही बारीकी से छीछालेदर करते हैं. अत: ताऊत्व गुण प्रधान व्यक्ति से लेखकों को विशेष सावधान रहना चाहिये वर्ना उनका कचराकरण होना पक्का समझो.
और इसी बीच सामने वाले ब्लागर महोदय का मोबाईल बेलेंस शायद खत्म हो गया क्योंकि अचानक फ़ोन कट गया और ताऊ महाराज हैल्लो हैल्लो करते ही रह गये.
वाह ! ताऊ वाह ! आजकल आ रहा है ताउनामा पर पढने का मजा |
ReplyDeleteहर वर्ग को लताड़ लगाता हुआ बहुत ही चुटीला व्यंग्य पेश किया है आपने!
ReplyDeleteअब ताई से ही लोग समीक्षा लिखवाना पसंद करेंगे!
और समीर भाई की तो आपने बहुत फजीहत कर दी!
लज़ील खाने में भी कंकड़ निकाल दी!
बढ़िया गुण सिखा दिए आज ताऊ ! लोगों को समझाने की बुद्धि कहाँ से लाऊं ताऊ ! शायद इस जनम में तो पहचान करने में समर्थ होता नहीं ! छुरा लगने के बाद ही पता चलता है !
ReplyDeleteशुभकामनाये आपको! !
ताऊत्व गुण वाले नमक कम नमक कम बता रहे हैं मैं तो समझ रही थी बोलेंगे कि चीनी कम है, चीनी कम है। अब हमें तो नहीं करानी समीक्षा ताऊ थारे से।
ReplyDeleteजे बात ! ताऊ फ़ुरसत में लट्ठ घुमाई सै तमणे ..कई बांकरे चित्त कर डाले ...। लगता है इब हमें भी अपना झझियाना दिखाना ही पडेगा
ReplyDeleteताऊ जी, समीक्षा गजब की रही।
ReplyDeleteजब पांचवी फ़ेल ही इतनी बढिया समीक्षा कर सकता है। तो फ़ालतु की डि्ग्री लेने की क्या जरुरत है।
आज की धांसु पोस्ट के लिए साधुवाद
राम राम
ताऊ !
ReplyDeleteकविवर योगेन्द्र मौदगिल आपके ३०० वें फालोवर बने हैं ...
मौदगिल जी को भी आपकी डुगडुगी में मज़ा आता है ! पूरी दुनियां के सामने ताऊ सरेआम बेवकूफ बना रहे हो फिर भी लोग हैं कि खिंचे आ रहे हैं ! मान गए ताऊ ....
महाराज की जय हो ......
रै भई... ताऊ .... सुबह सुबह की गुड मॉर्निंग...स्वीकार करो जी....
ReplyDeleteउस समय हम रोहतक नगरी में रहते थे और राज भाटिया हमारे परम मित्र हुआ करते थे. मित्र तो अब भी हैं पर उस समय बचपन की दोस्ती थी और निस्वार्थ थी जबकि आजकल टोपीबाजी की वजह से वो हमसे जरा सतर्क ही रहते हैं और बहुत दिनों से उन्होने हमसे कोई टोपी नही पहनी है.
ReplyDeleteहा हा...लगता है भाटिया जी की जेब पर ताऊ की नजर पड गई है.:)
ताऊ बोला - जी, ये मेरा दोस्त है और बहुत बडे घर का है. पांचवी फ़ेल तक मेरे साथ ही पढा है. ये नई कमीज, नया पैजामा और गमछा भी इसी का है पर ये नही बताऊंगा कि इसने जो नये मुड्डे पहने हुये हैं वो मेरे से मांग कर पहने हैं.
ReplyDeleteधन्य हो आपकी निस्वार्थ दोस्ती.:)
ताऊ बोला - जी, ये मेरा दोस्त है और बहुत बडे घर का है. पांचवी फ़ेल तक मेरे साथ ही पढा है. ये नई कमीज, नया पैजामा और गमछा भी इसी का है पर ये नही बताऊंगा कि इसने जो नये मुड्डे पहने हुये हैं वो मेरे से मांग कर पहने हैं.
ReplyDeleteधन्य हो आपकी निस्वार्थ दोस्ती.:)
भाटिया जी बता रहे थे कि आपने लडकी के पिता को भी यह कहा था कि "जूतों की बारे में पूछना ही मत" :)
ReplyDeleteसच में ताऊ अब मुझे अपना पहले वाला ताऊ मिल गया।
प्रणाम स्वीकार करें
अपने अन्दर तो जलागरत्व की मात्रा ज्यादा है।
ReplyDeleteताऊत्व बढाने के लिये कोई विटामिन/योगा हो तो बता दीजिये, प्लीज:)
प्रणाम
समीक्षा करनी तो सिख ली ताऊ पर समीक्षा करने के लिए फ्री की किताब मिलने का जुगाड़ कैसे करे ये तो बताया ही नहीं |
ReplyDeleteभगवान बचाये ताऊ की समीक्षा से…………हा हा हा।
ReplyDeleteताऊ बोला - वाह समीर साहब वाह, खाना बडा लजीज है, मजा आगया...बस पनीर वाली सब्जी और बिरयानी में थोडा नमक और होता तो आनंद आ जाता. अब समीर साहब मायूस होगये कि इतने बढिया खाने का इंतजाम किया उसमें भी कमी निकाल दी. अरे नमक ज्यादा तो नही था ना..कम ही था तो जरा सा और डाल लेते...सबके सामने ये कहने की क्या जरूरत थी? पर ताऊत्व गुण प्रधान व्यक्ति बहुत ही बारीकी से छीछालेदर करते हैं. अत: ताऊत्व गुण प्रधान व्यक्ति से लेखकों को विशेष सावधान रहना चाहिये वर्ना उनका कचराकरण होना पक्का समझो.
ReplyDeleteवाह समीर अंकल और बुलवाओ ताऊ को शादी में, हमे बुलाते तो हम नमक कम होता तो भी ज्यादा ही बताते.:)
SAMIKSHAK KI SAMIKSHA......
ReplyDeleteGHANI PRANAM.
समीक्षा करने का तो बहुत बढ़िया ढंग बता दिया ...और न जाने कितनो को चित्त भी कर दिया ...
ReplyDeleteताउत्व प्रधान तो खतरनाक लग रहा है ..
बढ़िया पोस्ट
गुड़ खिलाकर मारने का नाम है ताऊत्व गुण |
ReplyDeleteसमीक्षा के लिए पांचवी फेल ही होना चाहिए..ये पक्का हो गया :) :).
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ... मै भी सोचता हूँ की पहली कक्षा के बाद नाहक पढाई की नहीं तो समीक्षक न बन जाता बस पाठक बनकर रह गया हा हा हा ....
ReplyDeleteआलोचक तो आप भारी हैं, करना शुरू करें तो नामवर हो सकते हैं।
ReplyDeleteब्लोगिंग चाहे जो न कराए-जय राम जी की.
ReplyDeleteगजब का शिष्यत्व प्रदान किया, याद करेगा सामनेवाला।
ReplyDeleteसुन ताऊ अपने मुड्डे तो मेरे से लेजा, वो मेने समभाल के रखे हे, ओर यह बात सब को क्यो बता रहा हे कि मै तेरी नकल मार के पांचवी मे फ़ेल हो गया था, चल यह बताई सो बताई अब पहली कलास मे जो फ़ेल हुये थे वो किसी को मत बताना,ओर वो वाली बात भी किसी को मत बताना कि..... चल छोड... सुना हे ब्लाग के भी कान होते हे, राम राम
ReplyDeleteएक किताब भेजूँ क्या?? जरा समीक्षा करवाना है और ताई से बढ़िया कौन कर सकता है...
ReplyDeleteकिताब के साथ नमक भी भिजवा रहा हूँ. :)
वाह वाह... भाटिया जी से दोस्ती खूब निभाई..
ReplyDeleteताऊ जी! लगे हाथों ये भी बता देते कि भाटिया जी की कुड़माई वहीं हुई या फिर जय की तरह वीरू का पैग़ाम लेकर मौसी से मिलकर आ गये!!
ReplyDeleteताउ जी मेहराज आप सच्ची कही...
ReplyDeleteजे भी सही है ..... :) ताऊ तू तो इंदौर नगरिया में रहता है तब मेरे भोपाल यात्रा पर काहें इतना पूछ पछोर किया रे भाई!
ReplyDeleteयाने ताउत्व गुण वाली समीक्षा से प्रेरित होकर ही शोले में जय ने मौसी से वीरु की प्रशंसा की थी ।
ReplyDeletegud
ReplyDeleteताऊ जी, राम! राम
ReplyDeleteथारी बस्ती में ,मैं भी घुस आया सू !
बस्ती मैं जगह न हो ,तो दिल मैं रख लीजो |
एक कोने पड़ा रहूँगा |
बोत-बोत शुक्रिया ताऊ जी...............
अशोक"अकेला"
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteताऊ जी, राम! राम
ReplyDeleteथारी बस्ती में ,मैं भी घुस आया सू !
बस्ती मैं जगह न हो ,तो दिल मैं रख लीजो |
एक कोने पड़ा रहूँगा |
बोत-बोत शुक्रिया ताऊ जी...............