मैं रामप्यारे उर्फ़ "प्यारे" यानि की ताऊ का गधा आप सबको रामराम करता हूं. पिछले दिनों आपने बेमौसम ताऊ को सुर्यग्रहण जैसा लगता देखा होगा. मुझे भी बडा आश्चर्य हुआ. पर ताऊ का बिगडा मूड और पास मे रखा लठ्ठ देखकर कुछ पूछने की हिम्मत नही हुई. मुझे लगा कि अब यहां की नौकरी से भी हाथ धोना पडेगा. और दुसरी जगह ताऊ जैसी नौकरी मिलना भी मुश्किल है. ताऊ के यहां ऊपर की कमाई खूब होती है. इसीलिये आपने देखा होगा कि एक बार जो ताऊ के साथ होगया वो हमेशा के लिये होगया. रामप्यारी, हीरामन, रमलू सियार. रामदयाल, बीनू फ़िरंगी, सैम और खुद मैं. सबसे ज्यादा कमाई तब होती है जब हम में से किसी की ड्युटी डा.ताऊनाथ अस्पताल में लगती है. रामप्यारी तो वहां कैट-स्केन करके चांदी काट रही है.
खैर...वो सब अलग बाते हैं. बहुत दिनों बाद मैने कल ताऊ का थोडा अच्छा मूड देखा और सुर्यग्रहण जैसा क्यों लगा? इसका राज पूछा. तो ताऊ बोला - अरे यार "प्यारे" अब तेरे को क्या बताऊं? मुझे ये सुर्यग्रहण एक मेंढक और मेंढकी लगा गये.
मैने कहा - ताऊ, तू इतनी उम्र का हो लिया, तेरी मजाक करने की आदत नही गई? सुर्यग्रहण...और वो भी मेंढक मेंढकी द्वारा और...वो भी ताऊ को लग गया? ताऊ ये तो घोर आश्चर्य है या तुम झूंठ बोल रहे हो ताऊ.
ताऊ बोला - अरे बावली बूच "प्यारे", वक्त आने पर जब चींटी हाथी को धूल चटा सकती है तो मेंढक और मेंढकी तो उनसे कई गुणे बडे होते हैं और हाथी से ताऊ कई गुना छोटा...सो क्या बताऊं अब ...मुझे मेंढक मेंढकी ने धूल चटा दी.
मुझे भी अब ताऊ की बात पर कुछ यकिन सा होने लगा सो मैने पूछा - ताऊ पूरी बात बता.
तब ताऊ बोला - अरे प्यारे, हुआ यूं कि मेरे घर के पास एक तालाब है और आजकल गर्मी का मौसम है सो मैं छत पर ही सोता हूं. और आजकल ब्लागिंग मे भी मैं सबसे बडा ताऊ हो गया हूं. मुझसे बडा कोई ताऊ आस पास मे भी नही है. ये बात तो तू भी जानता ही होगा.
मैं बोला - ताऊ इसमे पूछने वाली कौन सी बात है? आप सर्व्मान्य ब्लाग ताऊ हो और मैं सर्वमान्य ब्लाग गधा. पर इसमें मेंढक और मेंढकी कहां आगये?
ताऊ बोला - अरे बावली बूच "प्यारे", तेरी ये आदत बहुत गंदी है. मैं एक बात पूछता हूं और तू तीन का जवाब देता है. यानि तेरे को डाक्टर लाने भेजो तो साथ में कफ़न भी लेकर आता है कि डाक्टर बुलाया है तो बीमार है और बीमार है तो मरेगा जरूर और मरेगा तो कफ़न की जरुरत जरुर पडेगी. दुबारा कौन जायेगा...सो कफ़न भी साथ ही ले आता है.
मैं बोला - ताऊ, गलती होगई, आगे से मरने के बाद ही कफ़न लाया लाऊंगा. अब आगे का किस्सा सुनावो.
ताऊ बोला - "प्यारे" आगे का किस्सा ये हुआ कि मेरी ये ब्लाग प्रसिद्धि मेंढकी से नही देखी गई. वो अंदर ही अंदर जलने लगी और बेचारे मेंढक को रोज कोसती. मेंढक बडा परेशान...करे भी क्या? सोते उठते बैठते मेंढकी के ताने...मेरे तो भाग्य ही फ़ूट गये जो ऐसा मेंढक मेरी किस्मत मे लिखा था...जिससे एक ताऊ को भी ब्लागजगत से नही भगाया जाता...आदि आदि..ऐसे त्रिया चरित्तर मेंढकी रोज करती.
मैने पूछा - ताऊ आगे क्या हुआ?
ताऊ बोला - अरे यार प्यारे होना क्या था? परेशान मेंढक एक ऐसे ब्लागर के पास सलाह लेने पहुंच गया जो कि मेरे से बहुत बुरी तरह जलता था. उसने इस मेंढक को सलाह दे डाली. उस सत्यानाशी ब्लागर ने मेंढक को ऐसी सलाह दी कि मुझे बर्बाद करके छोड दिया.
मैने पूछा - ताऊ वो ब्लागर ऐसा कौन सा रायचंद था कि उसकी सलाह से मेंढक ने आपको बर्बाद कर दिया?
ताऊ बोला - "प्यारे" अब क्या बताऊं? शर्म भी आती है कि ताऊ होकर एक मेंढक और मेंढकी से मात खा गया? अब तू तो घर का ही आदमी... नही नही...घर का ही गधा है तो तेरे से क्या छुपाना? ले पूरा किस्सा सुन ले.
हुआ यूं कि उस सत्यानाशी ब्लागर की सलाह मानकर उस मेंढक और मेंढकी ने दिन रात टरटर्राना शुरु कर दिया और कमबख्त दोनों मिलकर इस तरह टरटराया करते थे कि हजारों लाखों मेंढकों की आवाज निकालते थे. मैं परेशान हो गया कि क्या करूं? क्या ना करूं? उनकी दिन रात की टरटराहट से परेशान होकर मैने कुछ करने की ठानी.
मैने पूछा - फ़िर आगे क्या हुआ ताऊ?
ताऊ बोला - अरे भाई फ़िर क्या हुआ? उन्हीं दिनों राज भाटिया भी यहीं आये हुये थे. और तू तो जानता ही है कि भाटिय़ा जी से ज्यादा समझदार आदमी हमारे गांव में कोई नही है सो मैने भी उन मेंढकों से पीछा छुडाने का उपाय पूछ लिया. और भाटिया जी ने राय दी कि ताऊ तू मेंढकों को बेचने का धंधा शुरु करले, तेरे सारे दरिद्र कट जायेंगे और मेरा कर्जा भी चुकता कर देना.
अब प्यारे मैने भाटिया जी से पूछा तो उन्होने बताया कि ताऊ पास में ही दिल्ली है और दिल्ली मे बहुत सारे चाईनीज रेस्टोरेंट्स हैं .. कई पांच सितारा होटल्स हैं उन मे मेंढकों कि बडी खपत है. तेरे घर के पास वाले तालाब मे तो लाखों मेंढक दिखते हैं. बस दिल्ली जाकर किसी भी होटल वाले से कंट्रेक्ट कर आ और फ़िर मजे से कमा कर मेरा कर्ज वापस कर देना. खुद भी मजे से रहना और मेंढकों से भी पीछा छुट जायेगा.
मैने पूछा - फ़िर आगे क्या हुआ ताऊ?
ताऊ बोला - फ़िर होना क्या था? मेरे मन मे लड्डू फ़ूटने लगे, कैसे जैसे रात निकाली और अगले दिन ही पहुंच गया एक बडे से चाईनीज रस्टोरेंट में और वहां जाकर १००० मेंढक रोज सप्लाई करने का कंट्रेक्ट कर लिया, प्रति मेंढक २५ रुपये की दर से. अगर सप्लाई किसी दिन नही हुई तो डबल हरजाना देना पडेगा. तो सप्लाई नही देने का तो कोई कारण ही नही था.
ताऊ की बर्बादी का जश्न मनाते हुये मेंढक और मेंढकी
और मैने मन ही मन हिसाब लगाया कि २५ हजार रुपये रोज से महिने के तीस दिन के साढे सात लाख रुपये मिलेंगे. कोई कोई महिना ३१ दिन का भी होगा तो उस महिने २५ हजार रुपये एक्स्ट्रा आयेंगे जिससे सब आने जाने का खर्चा निकल जायेगा. करना कुछ नही था रात को जाल डाल दो, सुबह सारे मेंढक जाल में, उनको टोकरे में डालकर रेस्टोरेंट में पहूंचाने का ही काम था. जीवन मे पहली बार ऐसे सुंदर दिन आने वाले थे. यानि साल भर में करोडपति बनने के चांस होगये. फ़िर मैने सोचा कि दो चार नौकर रख लूंगा और दूसरे ४/५ होटलों में सप्लाई शुरु कर दूंगा. पांच सात करोड रुपये साल की कमाई का जोगाड होजायेगा.
मैने कहा - ताऊ आपको तो बहुत ही सालिड स्कीम बताई भाटिया अंकल नें...फ़िर गडबड कहां हो गई?
ताऊ नाराज होते हुये बोला - अरे क्या खाक स्कीम बताई? मुझे बर्बाद करवा दिया. हुआ ये कि मैने रात को जाल डाल दिया तालाब में. सुबह उसमें वो मेंढक और मेंढकी फ़ंसे मिले. उनको बाहर निकाला तो दोनों घबराये हुये बैठे थे. ताऊ ने पूछा कि तुम्हारे और साथी कहां हैं? तो मेंढक बोला - ताऊ, इस तालाब में तो हम दोनों के अलावा और कोई नही रहता?
अब ताऊ की तो गुस्से से आंखे लाल हो गई? ताऊ बोला - अबे झूंठ क्यों बोलते हो? तुम सबको लेजाकर होटल में सप्लाई करुंगा, बहुत टरटर्रा कर मेरी नींद खराब की है. तो अबकी मेंढकी कातर स्वर में बोली - अजी ताऊ जी, हमारी जान बख्सो जी, अब आगे आपकी नींद नही खराब करेंगे.
ताऊ बोला - अरी ओ मेंढकियाँ, ज्यादा झूंठ तो बोल मत. मैने इतने दिनों से लाखों मेंढकों की आवाजे दिन रात अपने इन्हीं कानो से सुनी हैं. जल्दी बता तेरे बाकी रिश्तेदार कहां है?
मेंढकी रोते हुये बोली - ताऊजी, आपको अब झूंठ बोलूं तो मेरी जबान में कीडे पडें....हम मेंढकों की आवाज ही ऐसी होती है कि हम दो मेंढक मिलकर बोलते हैं तो दो लाख मेंढकों की आवाज सुनाई देने का आभास होता है. और मेंढक मेंढकी ने अपनी आवाज निकाल कर बताई जो दो तो क्या चार लाख मेंढकों की लग रही थी.
आवाज सुनकर ताऊ को तो चक्कर आगया. फ़िर भी हरयाणवी को अपनी अक्ल से ज्यादा लठ्ठ पर भरोसा होता है. सो ताऊ ने मेंढक की तरफ़ लठ्ठ फ़टकारते हुये पूछा - क्यों बे उल्लू के पठ्ठे, तू ये आवाजे क्यों निकालता था? किसके कहने से ऐसा करता था?
मेंढक बोला - ताऊ श्री...जान की खैरियत चाहता हूं. सही बात तो ये है कि इसमे मेरा कसूर नही है. आपकी शोहरत से ये मेरी मेंढकी बहुत जलती थी. मुझे रोज ताने देती थी. सारा कसूर इसका है. मैने जो कुछ किया वो इसके कहने पर किया.
अब ताऊ को और भी आश्चर्य हुआ कि ये क्या चक्कर है? सो अबकी मेंढकी की तरफ़ लठ्ठ ऊठाया ही था कि मेंढकी फ़ुदक कर ताऊ के पांवो में आ गिरी और रोते हुये बोली - ताऊजी जान बख्स दिजिये. मेरी मति मारी गई थी. मैं आपकी सफ़लता से जलकर इनको रोज ताने मारा करती थी और ये दुखी होकर उस नाशपीटे ब्लागर के पास चले गये और उस सत्यानाशी ने इनको यह राय दे दी कि कि तुम रात दिन ताऊ के पास टर्राना शुरु करदो. ताऊ भी निपट जायेगा और तुम भी सुखी हो जावोगे.
अब ताऊ ने कंधे से लठ्ठ उतार कर फ़टकारते हुये पूछा कि उसका नाम बता जिसने तुमको टरटर्राने की सलाह दी थी?
मेंढक और मेंढकी डर के मारे सन्न रह गये......(क्रमश:)
खैर...वो सब अलग बाते हैं. बहुत दिनों बाद मैने कल ताऊ का थोडा अच्छा मूड देखा और सुर्यग्रहण जैसा क्यों लगा? इसका राज पूछा. तो ताऊ बोला - अरे यार "प्यारे" अब तेरे को क्या बताऊं? मुझे ये सुर्यग्रहण एक मेंढक और मेंढकी लगा गये.
मैने कहा - ताऊ, तू इतनी उम्र का हो लिया, तेरी मजाक करने की आदत नही गई? सुर्यग्रहण...और वो भी मेंढक मेंढकी द्वारा और...वो भी ताऊ को लग गया? ताऊ ये तो घोर आश्चर्य है या तुम झूंठ बोल रहे हो ताऊ.
ताऊ बोला - अरे बावली बूच "प्यारे", वक्त आने पर जब चींटी हाथी को धूल चटा सकती है तो मेंढक और मेंढकी तो उनसे कई गुणे बडे होते हैं और हाथी से ताऊ कई गुना छोटा...सो क्या बताऊं अब ...मुझे मेंढक मेंढकी ने धूल चटा दी.
मुझे भी अब ताऊ की बात पर कुछ यकिन सा होने लगा सो मैने पूछा - ताऊ पूरी बात बता.
तब ताऊ बोला - अरे प्यारे, हुआ यूं कि मेरे घर के पास एक तालाब है और आजकल गर्मी का मौसम है सो मैं छत पर ही सोता हूं. और आजकल ब्लागिंग मे भी मैं सबसे बडा ताऊ हो गया हूं. मुझसे बडा कोई ताऊ आस पास मे भी नही है. ये बात तो तू भी जानता ही होगा.
मैं बोला - ताऊ इसमे पूछने वाली कौन सी बात है? आप सर्व्मान्य ब्लाग ताऊ हो और मैं सर्वमान्य ब्लाग गधा. पर इसमें मेंढक और मेंढकी कहां आगये?
ताऊ बोला - अरे बावली बूच "प्यारे", तेरी ये आदत बहुत गंदी है. मैं एक बात पूछता हूं और तू तीन का जवाब देता है. यानि तेरे को डाक्टर लाने भेजो तो साथ में कफ़न भी लेकर आता है कि डाक्टर बुलाया है तो बीमार है और बीमार है तो मरेगा जरूर और मरेगा तो कफ़न की जरुरत जरुर पडेगी. दुबारा कौन जायेगा...सो कफ़न भी साथ ही ले आता है.
मैं बोला - ताऊ, गलती होगई, आगे से मरने के बाद ही कफ़न लाया लाऊंगा. अब आगे का किस्सा सुनावो.
ताऊ बोला - "प्यारे" आगे का किस्सा ये हुआ कि मेरी ये ब्लाग प्रसिद्धि मेंढकी से नही देखी गई. वो अंदर ही अंदर जलने लगी और बेचारे मेंढक को रोज कोसती. मेंढक बडा परेशान...करे भी क्या? सोते उठते बैठते मेंढकी के ताने...मेरे तो भाग्य ही फ़ूट गये जो ऐसा मेंढक मेरी किस्मत मे लिखा था...जिससे एक ताऊ को भी ब्लागजगत से नही भगाया जाता...आदि आदि..ऐसे त्रिया चरित्तर मेंढकी रोज करती.
मैने पूछा - ताऊ आगे क्या हुआ?
ताऊ बोला - अरे यार प्यारे होना क्या था? परेशान मेंढक एक ऐसे ब्लागर के पास सलाह लेने पहुंच गया जो कि मेरे से बहुत बुरी तरह जलता था. उसने इस मेंढक को सलाह दे डाली. उस सत्यानाशी ब्लागर ने मेंढक को ऐसी सलाह दी कि मुझे बर्बाद करके छोड दिया.
मैने पूछा - ताऊ वो ब्लागर ऐसा कौन सा रायचंद था कि उसकी सलाह से मेंढक ने आपको बर्बाद कर दिया?
ताऊ बोला - "प्यारे" अब क्या बताऊं? शर्म भी आती है कि ताऊ होकर एक मेंढक और मेंढकी से मात खा गया? अब तू तो घर का ही आदमी... नही नही...घर का ही गधा है तो तेरे से क्या छुपाना? ले पूरा किस्सा सुन ले.
हुआ यूं कि उस सत्यानाशी ब्लागर की सलाह मानकर उस मेंढक और मेंढकी ने दिन रात टरटर्राना शुरु कर दिया और कमबख्त दोनों मिलकर इस तरह टरटराया करते थे कि हजारों लाखों मेंढकों की आवाज निकालते थे. मैं परेशान हो गया कि क्या करूं? क्या ना करूं? उनकी दिन रात की टरटराहट से परेशान होकर मैने कुछ करने की ठानी.
मैने पूछा - फ़िर आगे क्या हुआ ताऊ?
ताऊ बोला - अरे भाई फ़िर क्या हुआ? उन्हीं दिनों राज भाटिया भी यहीं आये हुये थे. और तू तो जानता ही है कि भाटिय़ा जी से ज्यादा समझदार आदमी हमारे गांव में कोई नही है सो मैने भी उन मेंढकों से पीछा छुडाने का उपाय पूछ लिया. और भाटिया जी ने राय दी कि ताऊ तू मेंढकों को बेचने का धंधा शुरु करले, तेरे सारे दरिद्र कट जायेंगे और मेरा कर्जा भी चुकता कर देना.
अब प्यारे मैने भाटिया जी से पूछा तो उन्होने बताया कि ताऊ पास में ही दिल्ली है और दिल्ली मे बहुत सारे चाईनीज रेस्टोरेंट्स हैं .. कई पांच सितारा होटल्स हैं उन मे मेंढकों कि बडी खपत है. तेरे घर के पास वाले तालाब मे तो लाखों मेंढक दिखते हैं. बस दिल्ली जाकर किसी भी होटल वाले से कंट्रेक्ट कर आ और फ़िर मजे से कमा कर मेरा कर्ज वापस कर देना. खुद भी मजे से रहना और मेंढकों से भी पीछा छुट जायेगा.
मैने पूछा - फ़िर आगे क्या हुआ ताऊ?
ताऊ बोला - फ़िर होना क्या था? मेरे मन मे लड्डू फ़ूटने लगे, कैसे जैसे रात निकाली और अगले दिन ही पहुंच गया एक बडे से चाईनीज रस्टोरेंट में और वहां जाकर १००० मेंढक रोज सप्लाई करने का कंट्रेक्ट कर लिया, प्रति मेंढक २५ रुपये की दर से. अगर सप्लाई किसी दिन नही हुई तो डबल हरजाना देना पडेगा. तो सप्लाई नही देने का तो कोई कारण ही नही था.
और मैने मन ही मन हिसाब लगाया कि २५ हजार रुपये रोज से महिने के तीस दिन के साढे सात लाख रुपये मिलेंगे. कोई कोई महिना ३१ दिन का भी होगा तो उस महिने २५ हजार रुपये एक्स्ट्रा आयेंगे जिससे सब आने जाने का खर्चा निकल जायेगा. करना कुछ नही था रात को जाल डाल दो, सुबह सारे मेंढक जाल में, उनको टोकरे में डालकर रेस्टोरेंट में पहूंचाने का ही काम था. जीवन मे पहली बार ऐसे सुंदर दिन आने वाले थे. यानि साल भर में करोडपति बनने के चांस होगये. फ़िर मैने सोचा कि दो चार नौकर रख लूंगा और दूसरे ४/५ होटलों में सप्लाई शुरु कर दूंगा. पांच सात करोड रुपये साल की कमाई का जोगाड होजायेगा.
मैने कहा - ताऊ आपको तो बहुत ही सालिड स्कीम बताई भाटिया अंकल नें...फ़िर गडबड कहां हो गई?
ताऊ नाराज होते हुये बोला - अरे क्या खाक स्कीम बताई? मुझे बर्बाद करवा दिया. हुआ ये कि मैने रात को जाल डाल दिया तालाब में. सुबह उसमें वो मेंढक और मेंढकी फ़ंसे मिले. उनको बाहर निकाला तो दोनों घबराये हुये बैठे थे. ताऊ ने पूछा कि तुम्हारे और साथी कहां हैं? तो मेंढक बोला - ताऊ, इस तालाब में तो हम दोनों के अलावा और कोई नही रहता?
अब ताऊ की तो गुस्से से आंखे लाल हो गई? ताऊ बोला - अबे झूंठ क्यों बोलते हो? तुम सबको लेजाकर होटल में सप्लाई करुंगा, बहुत टरटर्रा कर मेरी नींद खराब की है. तो अबकी मेंढकी कातर स्वर में बोली - अजी ताऊ जी, हमारी जान बख्सो जी, अब आगे आपकी नींद नही खराब करेंगे.
ताऊ बोला - अरी ओ मेंढकियाँ, ज्यादा झूंठ तो बोल मत. मैने इतने दिनों से लाखों मेंढकों की आवाजे दिन रात अपने इन्हीं कानो से सुनी हैं. जल्दी बता तेरे बाकी रिश्तेदार कहां है?
मेंढकी रोते हुये बोली - ताऊजी, आपको अब झूंठ बोलूं तो मेरी जबान में कीडे पडें....हम मेंढकों की आवाज ही ऐसी होती है कि हम दो मेंढक मिलकर बोलते हैं तो दो लाख मेंढकों की आवाज सुनाई देने का आभास होता है. और मेंढक मेंढकी ने अपनी आवाज निकाल कर बताई जो दो तो क्या चार लाख मेंढकों की लग रही थी.
आवाज सुनकर ताऊ को तो चक्कर आगया. फ़िर भी हरयाणवी को अपनी अक्ल से ज्यादा लठ्ठ पर भरोसा होता है. सो ताऊ ने मेंढक की तरफ़ लठ्ठ फ़टकारते हुये पूछा - क्यों बे उल्लू के पठ्ठे, तू ये आवाजे क्यों निकालता था? किसके कहने से ऐसा करता था?
मेंढक बोला - ताऊ श्री...जान की खैरियत चाहता हूं. सही बात तो ये है कि इसमे मेरा कसूर नही है. आपकी शोहरत से ये मेरी मेंढकी बहुत जलती थी. मुझे रोज ताने देती थी. सारा कसूर इसका है. मैने जो कुछ किया वो इसके कहने पर किया.
अब ताऊ को और भी आश्चर्य हुआ कि ये क्या चक्कर है? सो अबकी मेंढकी की तरफ़ लठ्ठ ऊठाया ही था कि मेंढकी फ़ुदक कर ताऊ के पांवो में आ गिरी और रोते हुये बोली - ताऊजी जान बख्स दिजिये. मेरी मति मारी गई थी. मैं आपकी सफ़लता से जलकर इनको रोज ताने मारा करती थी और ये दुखी होकर उस नाशपीटे ब्लागर के पास चले गये और उस सत्यानाशी ने इनको यह राय दे दी कि कि तुम रात दिन ताऊ के पास टर्राना शुरु करदो. ताऊ भी निपट जायेगा और तुम भी सुखी हो जावोगे.
अब ताऊ ने कंधे से लठ्ठ उतार कर फ़टकारते हुये पूछा कि उसका नाम बता जिसने तुमको टरटर्राने की सलाह दी थी?
मेंढक और मेंढकी डर के मारे सन्न रह गये......(क्रमश:)
"खूंटे पै इस सप्ताह का फ़ोटो" कैसा लगा? कुछ कहना चाहेंगे इस पर? (फ़ोटो साभार : प्रभात किरण 22 जून 2010 से)
मस्त है यह मेंढक और मेंढकी पुराण ...
ReplyDeleteजभी आजकल ताऊ कमेन्ट ना कर रहे ...पोस्ट भी ब्रेक ले ले कर आ रही है ...:):)
सचमुच ताऊ कितना बावली बूच है रे तू ..तेरा कोई धंधा चलता ही नहीं...मेरी किताब तुझे मिली की नहीं ...सबको तो मिल भी गयी ...उसी को कुछ पढ़ पढ़ा कोई कायदे का काम शुरू कर ...और हाँ अगले अंक में उस ब्लॉगर का नाम जरूर बात देना साले का टेटुआ दबाना जरूरी हो गया है !
ReplyDeleteमोपेड चला रहा व्यक्ति भी मोपेड चलाने वालों में पूरा ताऊ लगता है !
ReplyDeleteमेंढकी के खुलासे वाले ताऊ पत्रिका अंक का इंतजार |
उसका नाम बता जिसने तुमको टरटर्राने की सलाह दी थी?
ReplyDeleteताऊ जल्दी बताना ।
उसका नाम बता जिसने तुमको टरटर्राने की सलाह दी थी?
ReplyDeleteताऊ जल्दी बताना ।
वाह..!
ReplyDeleteव्यंग्य हो तो ऐसा?
हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गये!
--
मगर साथ ही शिक्षा भी दे गया!
--
आप पोस्ट पढ़े और बताएँ कि कौन सी
तीन महत्वपूर्ण सीख इस आलेख में भरी हुई हैं!
ताऊ को कौन परेशान करणे लगा था ? ये अभी बाकी है। बढ़िया पोस्ट। एक्साइटमेन्ट बनाये रखने वाला।
ReplyDeleteताऊ रामराम,
ReplyDeleteमार्केटिंग का एक्सपर्ट है ताऊ, कैसा सस्पेंस में छोड़कर ब्रेक ले लिया। कोई बात न, अगली बार जान लेंगे कौन है असली गुनाहगार।
रामराम।
वाह! मजा आ गया. हम भी इंतज़ार में हैं.
ReplyDeleteताऊजी
ReplyDeleteहमेशा की तरह गजब का व्यंग्य
लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेंढक और मेंढकी अब भी टरटराना छोडेंगें।
टीवीएस मोपेड पर रहम आ रहा है।
प्रणाम स्वीकार करें
खुद ट्रेफिक पुलिसवाला ही कानून का उल्लंघन कर रहा है।
ReplyDeleteराम-राम
बिना सोचे-विचारे दूसरों के बहकावे में आकर कोई कार्य करने से जान जोखिम में भी आ सकती है।
ReplyDeleteकुछ हम जैसे अनाड़ियों को भी बता दिया करो ! मेढक मेढकी कौन है ?? राम राम
ReplyDeleteताऊ को कोइ परेशान कर सकता है क्या ? लगता है कोइ गलत फहमी हो गयी है |
ReplyDeleteनाम किसका बताया ताऊ मेंढकी ने??? :) वो ही होंगे..हा हा!
ReplyDeleteइन्दोर के ट्रेफिक का तो क्या कहें..लूना की सोचो जिस पर ये सब लदे हैं. :)
यू मोपेड आले फुफे ते नूं पुछ्छु सु मा ते भी बठा लेगा क्या ?
ReplyDeleteअरे ताऊ यह किस की मोटर साईकल को उस की लुगाई समेत ऊठा लाया??? ओर यह बच्चे किस के है? कही कोई चक्कर वक्कर तो नही, वेसे इस फ़ट फ़टिये का ड्राईवर तो राम पुरिया ताऊ ही है
ReplyDeleteमस्त है मस्त है मेंढक और मेंढकी पुराण....अब तो बरसात आ गई है ज्यादा टर्र टर्र करेंगे. .... आनंद आ गया ...आभार
ReplyDeleteसंदर्भ:-"खूंटे पै इस सप्ताह का फ़ोटो"
ReplyDeleteएक बात तो तय हो गई... यह मोपेड मेड इन चाइना तो क़तअन नहीं हो सकती :)
लूना का फोटो मस्त है ....बेचारी क्या कमेन्ट देगी :)
ReplyDeleteसही है यहाँ दो मेंढक भी टर्र टर्राये तो लगता है बहुत सरे बोल रहे हैं ! यानि अगर एक दो ब्लोगर भी किसी की शान पट्टी कर रहे हो तो लगता है कई सारे है ! बहुत गहरे और सुन्दर तरीके से व्यंग में अपनी बात रखदी !! मेंढक औए मेंढकी यानी ???? एक नर और एक मादा??? आखिर KAUN???
ReplyDelete*रोचक कथा.
ReplyDelete*चित्र लाजवाब
*अगले अंक के लिए सस्पेंस बरक़रार
*मोपेड कंपनी /टायरों /इंजिन और भारतीयों की अद्भुत सहनशक्ति और संयम का प्रभावी प्रचार