सही कहा, सर। कहीं पढ़ा था कि "खाने का सही समय कौन सा है?" जवाब - "गरीब को जब मिल जाये, और अमीर का जब मन करे।" अब ये और बढ़ा देते हैं उसमें कि "क्या खाना चाहिये" गरीब को जो मिल जाये और अमीर का जो मन करे।
विसंगतियां कुछ लोगों के लिये तर्कसंगत भी होती हैं।
samir laalji dar nahin lagtaa aisaa likhne me .kyaa aap nahin jaante 'growth rate 9 per cent ' (p .c )hai . garibon kaa kyaa hai -naa ho kameez to paanvon se pet dhak lengen ,ye log kitne munaasib hain is safar ke liye .veerubhaai 1947.blogspot.com
भूख तो सब को समान रूप से ही लगती है.. किसी को क्षुधा शान्त करने के लिये जूठन भी नहीं मिलती और किसी की क्षुधा इन्सानी रक्त और मांस से भी शान्त नहीं होती..
इन दो बच्चो के बीच तीसरे बच्चे की कमी खलती है या तो समीर जी परिवार नियोजन वालो से डर गए या ताऊ तक पहुचने से पहले ही गुम हो गया है क्यों कि मुझे तो ये दोनों ही बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त दिखाई दे रहे है |ज्यादा परेशान तो वो तीसरा है जो झूठ मूठ अपनी शान को बनाए रखने की कोशिश करता है |
सच्चाई है
ReplyDeleteसटीक
सही कहा, सर।
ReplyDeleteकहीं पढ़ा था कि "खाने का सही समय कौन सा है?"
जवाब - "गरीब को जब मिल जाये, और अमीर का जब मन करे।"
अब ये और बढ़ा देते हैं उसमें कि "क्या खाना चाहिये"
गरीब को जो मिल जाये और अमीर का जो मन करे।
विसंगतियां कुछ लोगों के लिये तर्कसंगत भी होती हैं।
आभार
बहुत खूब | शानदार रचना !
ReplyDeleteजब से शहर में रहने लगे है तब से बाजरे के सोगरे भी किसी पिज्जा से कम नहीं लगते
समीर लाल जी तो कलम के धनी हैं ही!
ReplyDeleteअमीरी व गरीबी में अन्तर बताती रचना बहुत ही प्रभावशाली है!
इस रचना को पढ़वाने के लिए ताऊ का आभार!
सच सनातन रहेगा।
ReplyDeleteसचमुच विसंगति
ReplyDeleteगरीब और अमीर की व्यथा तो सभी समझते हैं ...जो इनके बीच में आते हैं ...उनका दर्द कौन लिखेगा ...??
ReplyDeleteसंक्षिप्त और प्रभावशाली कविता।
ReplyDeleteबड़ा गंभीर व्यंग्य है ताऊ जी
ReplyDeleteभूख और गरीबी अमीरी का
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा चित्रण
आभार
शीर्षक देख कर भागता आया की लगता है ताऊ ने समीर लाल को घेर लिया है !
ReplyDeleteमगर यहाँ तो आज ताऊ भी गंभीर हो गया ...इब क्या कहें .....?
सही कहा, कहीं धुप तो कहीं छाँव!
ReplyDeleteसटीक !
ReplyDeleteभूख मिटाना और भूख एक बहाना!
ReplyDeleteयह भी एक अंतर है गरीब और अमीर में !
शायद यह बीच का वर्ग ही है जो इस अंतर को देख पाता है और महसूस करता है .
wah ...sahi likha
ReplyDeletesamir laalji dar nahin lagtaa aisaa likhne me .kyaa aap nahin jaante 'growth rate 9 per cent '
ReplyDelete(p .c )hai .
garibon kaa kyaa hai -naa ho kameez to paanvon se pet dhak lengen ,ye log kitne munaasib hain is safar ke liye .veerubhaai 1947.blogspot.com
भूख तो सब को समान रूप से ही लगती है.. किसी को क्षुधा शान्त करने के लिये जूठन भी नहीं मिलती और किसी की क्षुधा इन्सानी रक्त और मांस से भी शान्त नहीं होती..
ReplyDeletebadhai saheb ko
ReplyDeleteइन दो बच्चो के बीच तीसरे बच्चे की कमी खलती है या तो समीर जी परिवार नियोजन वालो से डर गए या ताऊ तक पहुचने से पहले ही गुम हो गया है क्यों कि मुझे तो ये दोनों ही बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त दिखाई दे रहे है |ज्यादा परेशान तो वो तीसरा है जो झूठ मूठ अपनी शान को बनाए रखने की कोशिश करता है |
ReplyDeleteसत्य को बयाँ करती एक उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteकम शब्दों में गहरी बात
ReplyDeleteअसलियत हैं कभी नहीं बदलनी
ReplyDeleteगजब की विसंगति।
ReplyDeleteअच्छा आप इधर हैं :)
ReplyDeleteअप्रतिम
इंडिया की फाइव स्टार कल्चर के बच्चे इतने फल-फू.....ल रहे हैं कि डॉक्टर जंक फूड को उनकी जान का दुश्मन बता रहे हैं...
ReplyDeleteभारत के अभावों से ग्रस्त गांवों या शहरों के स्लम के बच्चे इतने कुपोषित हैं कि जान बचाने के लिए ही रूखी-सूखी रोटी का इंतज़ाम ही भारी हो रहा है...
आई लव माई इंडिया...
मेरा भारत महान...
जय हिंद...
बहुत सही कहा जी
ReplyDeleteप्रासंगिक......वस्तु विषय पर "लालाजी" का सटीक एवं धारदार प्रहार !!!!
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