आपने पिछले अंको मे पढा कि बावलीबूच ताऊ को बातों मे फ़ंसाकर शेर ने अपने आपको पिंजरे से आजाद करवा लिया और पिंजरे से बाहर आते ही ताऊ पर खाने के लिये टूट पडा. ताऊ द्वारा न्याय की दुहाई देने पर शेर ने उससे ब्लाग मठाधीशों द्वारा न्याय करवा लिये जाने की राय दी. पर उसी समय उडनतश्तरी ने चेता दिया कि
बस ताऊ ने तुरंत मठाधीशों से न्याय करवाने की बात टाल दी और शेर से निवेदन किया कि - हे प्रजापालक, आप तो न्याय के साक्षात अवतार हो. आप अपनी क्षुधा मुझे खाकर अवश्य शांत करिये वनराज. परंतु मैं यह नही चाहता कि आप पर यह आरोप लगे कि आपने बिना न्याय किये ही किसी का वध कर डाला. अत: आप जिससे भी चाहे न्याय करवा दें, पर ब्लाग पंचों से हरगिज नही.
शेर पर ताऊ की बातों का कुछ असर हुआ. और हो भी क्यों ना? आप किसी को जबरदस्ती चने के झाड पर चढादें और कहें कि वाह तुम तो नारियल के पेड पर चढ गये उस्ताद...आप जितना धुरंधर तो इस पूरे ब्लाग जगत में कोई नही है. ..और ऐसे पेड पर चढाने का काम तो ब्लाग जगत मे हम रोज ही करते हैं. जहां झाड छोडकर झाड का बीज भी ना हो वहां पर सौ फ़ीट का झाड बता कर उस पर चढाने मे माहिर हैं तो भला शेर की ताऊ के सामने क्या औकात? आखिर ताऊ भी खेटे खा खाकर इन चढाने उतारने के धंधों मे माहिर हो चुका था.
शेर ने आसपास देखा. वहीं एक आम का पेड खडा था. वो बोला - चल ताऊ, इस आम के पेड से न्याय करवा ले.
ताऊ ने सोचा - इस एहसान फ़रामोश शेर का दिमाग खराब होगया लगता है भूख के मारे. पर कोई उपाय नही था. ताऊ सोच रहा था कि जितना हो सके उतना समय व्यतित करना चाहिये, जिससे हो सकता है कोई मदद ही कहीं से आ जाये. क्या पता कोई नेकदिल ब्लागर ही इधर आ निकले? और फ़िर आम का पेड शेर के डर से शेर के पक्ष मे तो फ़ैसला देगा नही.
ताऊ बोला - जैसी आपकी आज्ञा वनराज. अब ताउ ने आम के पेड को अपनी दास्तां सुनाई कि कैसे ताऊ ने शेर को पिंजरे से छुडवाया और अब शेर इनाम के बदले ताऊ को ही खाना चाहता है.
आम का पेड बोला - अरे ताऊ, यही तो न्याय की बात है. इसमे कोई गलत बात नही है. वनराज तुमको अवश्य खायेंगे और यही न्याय और कायदा है. और शेर की तरफ़ देखकर बोला - शेर साहब, आपका फ़ैसला बिल्कुल सही है.
ताऊ को काटो तो खून नही. उसे उम्मीद भी नही थी कि शेर के डर से आम का पेड ऐसा फ़ैसला भी दे सकता है. उधर शेर ने जब यह फ़ैसला सुना तो ताऊ की तरफ़ ऐसे देखा जैसे परम न्याय पालक ने कोई गलत बात नही की थी.
उधर ताऊ ने आम से पूछा कि ये कहां का न्याय हुआ वृक्ष शिरोमणी? तो आम का पेड बोला - ताऊ देख, असली न्याय यही होता है. अब मुझे ही देख लो ..मैं सारी उम्र लोगो को मीठे फ़ल खिलाता हूं...गर्मी मे ठण्डी छांव देता हूं..इसके बदले मे लोग मुझे ही पत्थर मारते हैं...कुल्हाडी से काट डालते हैं..उनको मेरे उपकार और दुख दर्द की कोई चिंता नही होती. तो शेर महाराज का तुमको खाया जाना सर्वथा न्याय संगत है.
इधर शेर को पक्का होगया कि अब ताऊ के रुप मे शिकार फ़ंस ही गया है सो बडे गर्व से ताऊ की तरफ़ गर्दन उंची करके बोला - अब बोल ताऊ? और कहीं अपील करनी है क्या? चल अब तू एक काम कर..इस सडक से पूछ ले...इससे भी न्याय करवा ले.
सडक से पूछा गया. सडक बोली - ताऊ तेरे को शेर महाराज द्वारा खाया जाना न्याय संगत है. और कारण पूछने पर सडक बोली - देख ताऊ, लोग मुझपर से होकर चलते हैं. साफ़ सुथरा रास्ता मुझसे लेते हैं और बदले मे मुझे क्या मिलता है? मुझ पर ही थूक देते हैं. पेशाब मैला करके गंदी कर देते हैं.. जरुरत लगे तो मेरा सीना छलनी करके खोद भी दालते हैं. तो शेर साहब का तुमको खाया जाना बिल्कुल सही है. इसमे गलत तो कुछ भी नही है.
ताऊ ने सोचा कि यहां जंगल मे तो सारे कुंये मे ही भांग पडी हूई है. यहां किसी से न्याय की उम्मीद करनी ही बेकार है. इतनी देर मे दूर से एक सियार आता हुआ दिखाई दिया. सियार को देखकर शेर बोला - ताऊ, अब आखिरी तू चाहे तो इस सियार से न्याय करवा ले.
ताऊ बोला - मुझे न्याय की उम्मीद नही है. सियार तो तुम्हारे रहमो कर्म और टुकडों पर पलने वाला जीव है तो उससे क्या न्याय की उम्मीद करुं? आप तो मेरा भक्षण करिये और अपनी भूख मिटाईये.
पर शेर के ग्रह कुछ खराब हो चुके थे. शायद शेर के शनि मंगल बिगड गये थे, वो भूल गया था कि ये सियार अंदर ही अंदर शेर से नफ़रत करता है. अत: शेर जोश मे आता हुआ बोला - ना ताऊ, इस सियार से आखिरी फ़ैसला करवाले. मैं नही चाहता कि मुझे कोई अन्यायी वनराज कहे.
मरता क्या ना करता? ताऊ ने सियार से रोनी आवाज मे गुहार लगाई. और बोला - हे नीर क्षीर निर्णायक सियार साहब. मैने इस पिंजरे मे बंद शेर को पिंजरे से बाहर निकाला और अब ये मुझे ही खाना चाहता है. आप न्याय करिये.
ताऊ कुछ और बोलता..इसके पहले ही सियार बोला - अबे ओ ताऊ के बच्चे. तुझे कुछ थोडी बहुत शर्म भी है या नही? या सब बेच खाई? अरे नालायक ताऊ, तेरी जबान क्युं नही कट गई? ये कहते हुये कि महाराजाधिराज शेर साहब पिंजरे मे बंद थे और तूने उनको बाहर निकाला? अरे ये कैसे हो सकता है? हमारे परम वीर शूरवीर शेरू महाराज पिंजरे में बंद हो ही नही सकते. किसकी हिम्मत है जो महाराज की तरफ़ नजर ऊठाकर भी देख ले? पिंजरे मे बंद होना तो सपने मे भी संभव नही है.
इसी बीच शेर सिंह जी बोले - अरे सियार साहब, ये ताऊ वैसे तो झूंठों और लफ़ंगो का सरताज है. इसकी पूरी मंडली ही माहिर है इन कामों में. पर ये बात ये सही बोल रहा है. और मैं वाकई पिंजरे मे गलती से फ़ंस कर बंद हो गया था.
सियार चापलूसी करते हुये बोला - महाराज आपकी जबान से असत्य तो निकल ही नही सकता. आप तो साक्षात धर्मराज का अवतार हैं. पर मुझे ये बात गले नही उतर रही है कि आप इस जरा से पिंजरे मे बंद थे? अरे आप इतने विशाल डील डौल के धनी और इस पिंजरे के जरा से दरवाजे मे कैसे घुसे होंगे आप?
शेर बोला - सियार साहब, आप तो इस समय न्यायाधीश हैं. अत: न्याय के लिये मैं आपके समस्त प्रश्नों का विस्तृत उत्तर दूंगा. अब मैं आपको बताता हूं कि मैं कैसे इस पिंजरे मे घुसा था. और यह कहते हुये शेर उस पिंजरे मे वापस घुसा. और जैसे ही शेर वापस पिंजरे मे घुसा..उस सियार ने फ़ट से दरवाजा बंद करके कुंडी लगा दी.
अब वस्तु स्थिति समझ कर शेर, सियार को गालियां देता हुआ पिंजरे मे गुस्से से लाल पीला होता रहा और ताऊ सियार को धन्यवाद देता हुआ सियार के साथ उसके घर चला गया. जहां सियारनी ने दोनो को बढिया खाना खिलाया. इसके बाद सियार और ताऊ हुक्का पीते हुये बातचीत करने लगे. (क्रमश:)
"गलत दरवाजे ले आये ताऊ अपना केस आप...यहाँ तो मठाधीष आपको पिंजर में डाल दें शेर के साथ..छुड़वाने की बात तो छोड़ो. :)"
बस ताऊ ने तुरंत मठाधीशों से न्याय करवाने की बात टाल दी और शेर से निवेदन किया कि - हे प्रजापालक, आप तो न्याय के साक्षात अवतार हो. आप अपनी क्षुधा मुझे खाकर अवश्य शांत करिये वनराज. परंतु मैं यह नही चाहता कि आप पर यह आरोप लगे कि आपने बिना न्याय किये ही किसी का वध कर डाला. अत: आप जिससे भी चाहे न्याय करवा दें, पर ब्लाग पंचों से हरगिज नही.
शेर पर ताऊ की बातों का कुछ असर हुआ. और हो भी क्यों ना? आप किसी को जबरदस्ती चने के झाड पर चढादें और कहें कि वाह तुम तो नारियल के पेड पर चढ गये उस्ताद...आप जितना धुरंधर तो इस पूरे ब्लाग जगत में कोई नही है. ..और ऐसे पेड पर चढाने का काम तो ब्लाग जगत मे हम रोज ही करते हैं. जहां झाड छोडकर झाड का बीज भी ना हो वहां पर सौ फ़ीट का झाड बता कर उस पर चढाने मे माहिर हैं तो भला शेर की ताऊ के सामने क्या औकात? आखिर ताऊ भी खेटे खा खाकर इन चढाने उतारने के धंधों मे माहिर हो चुका था.
शेर ने आसपास देखा. वहीं एक आम का पेड खडा था. वो बोला - चल ताऊ, इस आम के पेड से न्याय करवा ले.
ताऊ ने सोचा - इस एहसान फ़रामोश शेर का दिमाग खराब होगया लगता है भूख के मारे. पर कोई उपाय नही था. ताऊ सोच रहा था कि जितना हो सके उतना समय व्यतित करना चाहिये, जिससे हो सकता है कोई मदद ही कहीं से आ जाये. क्या पता कोई नेकदिल ब्लागर ही इधर आ निकले? और फ़िर आम का पेड शेर के डर से शेर के पक्ष मे तो फ़ैसला देगा नही.
ताऊ बोला - जैसी आपकी आज्ञा वनराज. अब ताउ ने आम के पेड को अपनी दास्तां सुनाई कि कैसे ताऊ ने शेर को पिंजरे से छुडवाया और अब शेर इनाम के बदले ताऊ को ही खाना चाहता है.
आम का पेड बोला - अरे ताऊ, यही तो न्याय की बात है. इसमे कोई गलत बात नही है. वनराज तुमको अवश्य खायेंगे और यही न्याय और कायदा है. और शेर की तरफ़ देखकर बोला - शेर साहब, आपका फ़ैसला बिल्कुल सही है.
ताऊ को काटो तो खून नही. उसे उम्मीद भी नही थी कि शेर के डर से आम का पेड ऐसा फ़ैसला भी दे सकता है. उधर शेर ने जब यह फ़ैसला सुना तो ताऊ की तरफ़ ऐसे देखा जैसे परम न्याय पालक ने कोई गलत बात नही की थी.
उधर ताऊ ने आम से पूछा कि ये कहां का न्याय हुआ वृक्ष शिरोमणी? तो आम का पेड बोला - ताऊ देख, असली न्याय यही होता है. अब मुझे ही देख लो ..मैं सारी उम्र लोगो को मीठे फ़ल खिलाता हूं...गर्मी मे ठण्डी छांव देता हूं..इसके बदले मे लोग मुझे ही पत्थर मारते हैं...कुल्हाडी से काट डालते हैं..उनको मेरे उपकार और दुख दर्द की कोई चिंता नही होती. तो शेर महाराज का तुमको खाया जाना सर्वथा न्याय संगत है.
इधर शेर को पक्का होगया कि अब ताऊ के रुप मे शिकार फ़ंस ही गया है सो बडे गर्व से ताऊ की तरफ़ गर्दन उंची करके बोला - अब बोल ताऊ? और कहीं अपील करनी है क्या? चल अब तू एक काम कर..इस सडक से पूछ ले...इससे भी न्याय करवा ले.
सडक से पूछा गया. सडक बोली - ताऊ तेरे को शेर महाराज द्वारा खाया जाना न्याय संगत है. और कारण पूछने पर सडक बोली - देख ताऊ, लोग मुझपर से होकर चलते हैं. साफ़ सुथरा रास्ता मुझसे लेते हैं और बदले मे मुझे क्या मिलता है? मुझ पर ही थूक देते हैं. पेशाब मैला करके गंदी कर देते हैं.. जरुरत लगे तो मेरा सीना छलनी करके खोद भी दालते हैं. तो शेर साहब का तुमको खाया जाना बिल्कुल सही है. इसमे गलत तो कुछ भी नही है.
ताऊ ने सोचा कि यहां जंगल मे तो सारे कुंये मे ही भांग पडी हूई है. यहां किसी से न्याय की उम्मीद करनी ही बेकार है. इतनी देर मे दूर से एक सियार आता हुआ दिखाई दिया. सियार को देखकर शेर बोला - ताऊ, अब आखिरी तू चाहे तो इस सियार से न्याय करवा ले.
ताऊ बोला - मुझे न्याय की उम्मीद नही है. सियार तो तुम्हारे रहमो कर्म और टुकडों पर पलने वाला जीव है तो उससे क्या न्याय की उम्मीद करुं? आप तो मेरा भक्षण करिये और अपनी भूख मिटाईये.
पर शेर के ग्रह कुछ खराब हो चुके थे. शायद शेर के शनि मंगल बिगड गये थे, वो भूल गया था कि ये सियार अंदर ही अंदर शेर से नफ़रत करता है. अत: शेर जोश मे आता हुआ बोला - ना ताऊ, इस सियार से आखिरी फ़ैसला करवाले. मैं नही चाहता कि मुझे कोई अन्यायी वनराज कहे.
मरता क्या ना करता? ताऊ ने सियार से रोनी आवाज मे गुहार लगाई. और बोला - हे नीर क्षीर निर्णायक सियार साहब. मैने इस पिंजरे मे बंद शेर को पिंजरे से बाहर निकाला और अब ये मुझे ही खाना चाहता है. आप न्याय करिये.
ताऊ कुछ और बोलता..इसके पहले ही सियार बोला - अबे ओ ताऊ के बच्चे. तुझे कुछ थोडी बहुत शर्म भी है या नही? या सब बेच खाई? अरे नालायक ताऊ, तेरी जबान क्युं नही कट गई? ये कहते हुये कि महाराजाधिराज शेर साहब पिंजरे मे बंद थे और तूने उनको बाहर निकाला? अरे ये कैसे हो सकता है? हमारे परम वीर शूरवीर शेरू महाराज पिंजरे में बंद हो ही नही सकते. किसकी हिम्मत है जो महाराज की तरफ़ नजर ऊठाकर भी देख ले? पिंजरे मे बंद होना तो सपने मे भी संभव नही है.
इसी बीच शेर सिंह जी बोले - अरे सियार साहब, ये ताऊ वैसे तो झूंठों और लफ़ंगो का सरताज है. इसकी पूरी मंडली ही माहिर है इन कामों में. पर ये बात ये सही बोल रहा है. और मैं वाकई पिंजरे मे गलती से फ़ंस कर बंद हो गया था.
सियार चापलूसी करते हुये बोला - महाराज आपकी जबान से असत्य तो निकल ही नही सकता. आप तो साक्षात धर्मराज का अवतार हैं. पर मुझे ये बात गले नही उतर रही है कि आप इस जरा से पिंजरे मे बंद थे? अरे आप इतने विशाल डील डौल के धनी और इस पिंजरे के जरा से दरवाजे मे कैसे घुसे होंगे आप?
शेर बोला - सियार साहब, आप तो इस समय न्यायाधीश हैं. अत: न्याय के लिये मैं आपके समस्त प्रश्नों का विस्तृत उत्तर दूंगा. अब मैं आपको बताता हूं कि मैं कैसे इस पिंजरे मे घुसा था. और यह कहते हुये शेर उस पिंजरे मे वापस घुसा. और जैसे ही शेर वापस पिंजरे मे घुसा..उस सियार ने फ़ट से दरवाजा बंद करके कुंडी लगा दी.
अब वस्तु स्थिति समझ कर शेर, सियार को गालियां देता हुआ पिंजरे मे गुस्से से लाल पीला होता रहा और ताऊ सियार को धन्यवाद देता हुआ सियार के साथ उसके घर चला गया. जहां सियारनी ने दोनो को बढिया खाना खिलाया. इसके बाद सियार और ताऊ हुक्का पीते हुये बातचीत करने लगे. (क्रमश:)
क्या वो शेर पिंजरे से फ़िर कभी छूटा? क्या उसने ताऊ और सियार से अपना बदला लिया? यह सब जानिये अगले अंक मे...
शेर और सियार की रोचक कथा ...
ReplyDeleteपर ताऊ मानने लागे है कि यो सियार खाली फ़ोकट में ताऊ को साथ ना दे वालो ..देखे आगली कड़ी में के मांग लेगो ...!!
हा हा हा बहुत रोचक ताऊ आख्यान चल रहा है -आज की कई डेढ़ इंच मुस्काने ताऊ तुम पर कुर्बान !
ReplyDeleteभले बने हो नाथ !
जड़, जंगल और रोड पर,
ReplyDeleteगालिब रौब जहान।
गीदड़ के इक वार से,
हारा शेर महान।।
Rochak....
ReplyDeleteAti-Rochak...
Jiis tarah Rohtak ki Rewri...
Ram-Ram
सही कहा ताऊ आपने ! यहाँ भी कई है जो नारियल के झाड पर चढ़े अपने आपको पता नहीं क्या समझते है लेकिन जिस दिन किसी ताऊ ने इन्हें झाड से गिरा दिया उस दिन उन्हें अपनी औकात पता चलेगी | तब तो वे झाड पर चढ़े फील गूड में है |
ReplyDeleteइस कहानी की अगली कड़ी का इन्तजार | झंडू सरपंच वाली कहानी की भी अगली कड़ी का इन्तजार कर रहें है |
कथा बड़ी रोचक रही. सियार ने वक्त पे काम आके पुरानी कहावत को सच साबित कर दिया.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ! रोचक और शिक्षाप्रद कहानी |
ReplyDeleteचलो जान छुटी सियार उपाय
ReplyDeleteलौट के ताऊ घर को आए
नही तो मन्ने चिंता होयगी थी, म्हारे ताउ का के होगा? सवा रुपये का परसाद बोल दिया बाबा धौलड़नाथ का, चलो मै परसाद चढ़ा आऊ मिलेगें ब्रेक कै बाद-राम राम
ये शेर ताऊ से पंगा ले रिया है...जब शेर की मौत आती है ताऊ की ओर भागता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
रोचक और शिक्षाप्रद प्रसंग.
ReplyDeleteआज के ज़माने में मदद भी सोच समझ कर करनी चाहीए..शेर जैसे अहसान फरामोश हर जगह मिलेंगे.वैसे मदद करने वाले भी अब ताउ सरीखे कम ही हैं.
कहानी के अगेल भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
सियार ने अपना नाम सार्थक कर दिया
ReplyDeleteताऊ सबसे पहले तो माफ़ी पहेली में हिस्सा ना ले पाने के लिए... समय ऐसा था की हिस्सा नहीं ले सका... और फिर मेरे स्थान पर किसी और को भी तो जीतना होगा न...
ReplyDeleteऔर शेर पिंजरे से छूट कर क्या करेगा...हमें भी इंतज़ार है...
मीत
"..और ऐसे पेड पर चढाने का काम तो ब्लाग जगत मे हम रोज ही करते हैं."
ReplyDeleteताऊ या बात कह कै क्यूं डरावै सै
मजा आ रहा है।
एक बात का खटका है जी कि शेर तो जब छूटेगा छूट ज्यागा, पर सियार नै ताऊ को खाना खिला-पिला कै क्यूं छोड दिया।
राम-राम
ek message ko bahut saranl andaaz mai parstut karti post...
ReplyDeleteनये ढंग से सुनाई बढ़िया कहानी.
ReplyDeleteताऊ राम राम जी की अब ताऊ की जगह सियार है ओर शेर की जगह ताऊ, मुझे तो इस सियार की फ़िक्र हो रही है जिस ने ताऊ की जान बचा ली अब इस सियार की जान कोन बचायेगा इस ताऊ से:)
ReplyDeleteआज मेरी फेवरिट कहानी सुना दी आपने ताऊ !
ReplyDeleteमैं बच्चों को यह कहानी जरूर सुनाता हूँ !
वैसे सड़क और आम के पेड़ ने गलत तो नहीं कहा था ....
अरे ताऊ वो गोटू सुनार कहाँ गया .... उसकी बड़ी याद आती है .... फिलहाल वो है कहाँ ???
सियार से पंगा (!) शेर को पता होना चाहिए कि उसकी जगह कहां है :)
ReplyDeleteताऊ, वो सियार आखिर यूँ ही थारा साथ नहीं दे रहा...हमें तो इसमे भी कुछ गडबड दिखे है ।
ReplyDeleteगीदडां की यारी बी कोई ठीक कोणी होया करदी :)
ताऊ और सियार कि दोस्ती आगे क्या रंग लाती है ये जानना रोचक रहेगा और शेर तो आएगा ही निकल के :)
ReplyDeleteरोचक कथा चल रही है ......... मज़ा आ रहा है ताऊ श्री .......... पर ये सियार कौन है ....... मतलब कॉन्सा ब्लॉगी है ...
ReplyDeleterochak kahani .........agli kadi ka intzaar.........vaise imandari hamesha beimani ke aage harti dikhti hai magar asal mein aisa hota nhi hai.
ReplyDeleteमस्त रोचक कथा चल रही है...एक जिज्ञासा का निराकरण करें:
ReplyDeleteये ताऊ वैसे तो झूंठों और लफ़ंगो का सरताज है. इसकी पूरी मंडली ही माहिर है इन कामों में.
-ये मंड़ली में कौन लोग हैं?? :)
प्रिय ब्लॉगर बंधू,
ReplyDeleteनमस्कार!
आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
रोचक कथा अगली कड़ी का बेसब्री से इन्तेज़ार रहे गा ...।
ReplyDeletepriy taau ji
ReplyDeletehamare bhii ek mitr hain jo hasy wyang kii kawitaaen likhate hain aur kavisammelanon men wahwahii aur paisa donon luutate hain. hamen unhen taau kahate hue bada aziib lagata tha kyonki we hamase umar men chhote hain par jab unakii gambhiir padhiin to manana pada .
pahale ham bhii apake blag ko gambhiirata se nahiin leye the par ab jab sher aur taauu ki kahanii padhi to man gaye . kahanii bade hii rochak aur naye andaaz men kahi gaii hai . aj wastaw men purane sahity ko naye andaaz aur naye sandarbhon men kahane kii awashyakata hai .
isase purane sahity kii gaharaaii aur wyanjanaa ka anuman hoga aur unhen usr padhane kii bhii prerana milegii .
apkii shailii aur bhasha ka zawab . . likhate rahiye.
ho sake to inhen ek pustak ke ruup men bhii chhpawaayen kyonko blog kii itanii umar nahiin hotii
dhanyawaad .
ramesh joshi
joshikavirai
ताऊ कहानी तो पहले भी सुनी थी लेकिन उसमे ये नैतिक शिक्षा नहीं थी जो आज आपने दी है |
ReplyDeleteआखिर बच गया ताऊ !
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