प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली - 54 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है कुंभलगढ फ़ोर्ट
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.
दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में नाथद्वारा से करीब २५ मील उत्तर की ओर अरावली की एक ऊँची श्रेणी पर कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला है. समुद्रतल से इसकी ऊँचाई ३५६८ फुट है. इस किले का निर्माण सन् १४५८ (विक्रम संवत् १५१५) में महाराणा कुंभा ने कराया था अतः इसे कुंभलमेर (कुभलमरु) या कुंभलगढ़ का किला कहते हैं .
कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा मुख्य गढ़ है,जो अरावली पर्वत पर स्थित है.कला और स्थापत्य की दृष्टि से विश्व के किलों में कुंभलगढ़ का किला अजेय और अप्रतिम माना जाता है.सूत्रधार मंडन ने इसकी परिकल्पना की और करीब सात सौ शिल्पियों ने दिन—रात अरावली के ख्यात शिखर पर किले को आकार दिया था.
कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग अनेक कारणों से प्रसिद्ध है.
इसी दुर्ग में ऐतिहासिक पुरूष महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था.
इस अजेय दुर्ग की दीवारें इतनी चौडी है कि इस पर कई घोड़े एक साथ दौड़ सकते है. चीन की दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाईना) के बाद संभवत: यह दुनियाँ में दूसरी सबसे चौड़ी दीवार वाला दुर्ग है. भारत में सब से लंबी दीवार इसी दुर्ग की है.
इस दुर्ग की खासियत यह है कि यह दूर से नज़र आता है मगर नजदीक पहुंचने पर भी इसे देखना आसान नही हैं. इसी खूबी के कारण एक बार छोड़ इस दुर्ग पर कभी कोई विजय हासिल नहीं कर पाया.
सामरिक रणनीति के तहत राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्र की सीमाओं पर निॢमत ११०० मीटर की ऊंचाई और १३ अन्य पहाडि़यों की चोटी से घिरा यह अनूठा दुर्ग हैं.मेवाड़ की सीमाओं की दुश्मनों से रक्षा करने के लिए मेवाड़ अंचल से बनाये गये ८४ छोटे-बड़े दुर्ग में से ३२ का निर्माण एवं डिजाईन महाराणा कुम्भा द्वारा करवाई गई थी.यह 12 किलोमीटर तक फैला हुआ है और कई मंदिर, महल व बाग इसमें स्थित है.
गणेशपोल गेट
बादल महल से आस-पास के देहातों का दृश्य दिखाई देता है. गढ़ में केवल सात द्वारों केलवाड़ा से ही पहुंचा जा सकता है.विजय पोल के पास की समतल भूमि पर हिन्दुओं तथा जैनों के कई मंदिर बने हैं.यहाँ पर नीलकंठ महादेव का बना मंदिर अपने ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदा के लिए जाना जाता है. इस तरह के बरामदे वाले मंदिर प्रायः नहीं मिलते. कर्नल टॉड जैसे इतिहासकार मंदिर की इस शली को ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं. लेकिन अधिकांशतः विद्वान इससे सहमत नहीं हैं. यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय स्थान वेदी है, जो शिल्पशास्र के ज्ञाता महाराणा कुंभा ने यज्ञादि के उद्देश्य से शास्रोक्त रीति से बनवाया था. राजपूताने में प्राचीन काल के यज्ञ-स्थानों का यही एक स्मारक शेष रह गया है. किले के सर्वोच्च भाग पर भव्य महल बने हुए हैं.
कुंभलगढ फ़ोर्ट
इस सुन्दर दुर्ग के स्मरणार्थ महाराणा कुंभा ने सिक्के भी जारी किये थे जिसपर इसका नाम अंकित हुआ करता था.
महाराणा कुंभा एक कला प्रेमी शासक थे.कला के प्रति उनके इस अनुराग को अविस्मरणीय बनाने के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग ने वर्ष २००६ से 'कुंभलगढ़ शास्त्रीय नृत्य महोत्सव 'की शुरूआत की है.
कुंभलगढ़ में इस वर्ष यह महोत्सव २१ से २३ दिसम्बर तक चला.महोत्सव के दौरान दिन और रात में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.इसमें तीनों दिन प्रात: ११ से अपरान्ह ३ बजे तक तीरंदाजी, पगड़ी बांधना, रस्साकस्सी, रंगोली और मांडणा बनाने की प्रतियोगिताओं के साथ ही राजस्थान के लोक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुईं.
माननीय श्री रतन सिंह जी शेखावत द्वारा ज्ञानदर्पण पर कुम्भलगढ़ दुर्ग पर यह लेख लिखा गया था. जो आप यहां पढ सकते हैं. और youtube पर कुम्भलगढ़ किले की यह वीडियो भी उनके द्वारा लगाया गया है -देखीए-
आज के सम्माननिय विजेता क्रमश: इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाई!
निम्न महानुभावों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होने इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह बढाया. हार्दिक आभार.
श्री स्मार्ट इंडियन
श्री दिलीप कवठेकर
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
सुश्री निर्मला कपिला
श्री काजलकुमार,
सुश्री वंदना
श्री गौतम राजरिशी
श्री रजनीश परिहार
श्री मिश्रा पंकज
श्री राज भाटिया
श्री दिनेशराय द्विवेदी
श्री रामकृष्ण गौतम
डॉ टी एस दराल
सुश्री हरकीरत ’हीर’
श्री उडनतश्तरी
श्री विवेक रस्तोगी
श्री सोनू,
श्री मकरंद
श्री दीपक "तिवारी साहब"
आप सभी का बहुत आभार !
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.
बहनों और भाईयो नमस्कार. आईये अब आज के पहेली के स्थान के बारे में कुछ जानते हैं.
कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग
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दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में नाथद्वारा से करीब २५ मील उत्तर की ओर अरावली की एक ऊँची श्रेणी पर कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला है. समुद्रतल से इसकी ऊँचाई ३५६८ फुट है. इस किले का निर्माण सन् १४५८ (विक्रम संवत् १५१५) में महाराणा कुंभा ने कराया था अतः इसे कुंभलमेर (कुभलमरु) या कुंभलगढ़ का किला कहते हैं .
कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा मुख्य गढ़ है,जो अरावली पर्वत पर स्थित है.कला और स्थापत्य की दृष्टि से विश्व के किलों में कुंभलगढ़ का किला अजेय और अप्रतिम माना जाता है.सूत्रधार मंडन ने इसकी परिकल्पना की और करीब सात सौ शिल्पियों ने दिन—रात अरावली के ख्यात शिखर पर किले को आकार दिया था.
कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग अनेक कारणों से प्रसिद्ध है.
इसी दुर्ग में ऐतिहासिक पुरूष महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था.
इस अजेय दुर्ग की दीवारें इतनी चौडी है कि इस पर कई घोड़े एक साथ दौड़ सकते है. चीन की दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाईना) के बाद संभवत: यह दुनियाँ में दूसरी सबसे चौड़ी दीवार वाला दुर्ग है. भारत में सब से लंबी दीवार इसी दुर्ग की है.
इस दुर्ग की खासियत यह है कि यह दूर से नज़र आता है मगर नजदीक पहुंचने पर भी इसे देखना आसान नही हैं. इसी खूबी के कारण एक बार छोड़ इस दुर्ग पर कभी कोई विजय हासिल नहीं कर पाया.
सामरिक रणनीति के तहत राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्र की सीमाओं पर निॢमत ११०० मीटर की ऊंचाई और १३ अन्य पहाडि़यों की चोटी से घिरा यह अनूठा दुर्ग हैं.मेवाड़ की सीमाओं की दुश्मनों से रक्षा करने के लिए मेवाड़ अंचल से बनाये गये ८४ छोटे-बड़े दुर्ग में से ३२ का निर्माण एवं डिजाईन महाराणा कुम्भा द्वारा करवाई गई थी.यह 12 किलोमीटर तक फैला हुआ है और कई मंदिर, महल व बाग इसमें स्थित है.
बादल महल से आस-पास के देहातों का दृश्य दिखाई देता है. गढ़ में केवल सात द्वारों केलवाड़ा से ही पहुंचा जा सकता है.विजय पोल के पास की समतल भूमि पर हिन्दुओं तथा जैनों के कई मंदिर बने हैं.यहाँ पर नीलकंठ महादेव का बना मंदिर अपने ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदा के लिए जाना जाता है. इस तरह के बरामदे वाले मंदिर प्रायः नहीं मिलते. कर्नल टॉड जैसे इतिहासकार मंदिर की इस शली को ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं. लेकिन अधिकांशतः विद्वान इससे सहमत नहीं हैं. यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय स्थान वेदी है, जो शिल्पशास्र के ज्ञाता महाराणा कुंभा ने यज्ञादि के उद्देश्य से शास्रोक्त रीति से बनवाया था. राजपूताने में प्राचीन काल के यज्ञ-स्थानों का यही एक स्मारक शेष रह गया है. किले के सर्वोच्च भाग पर भव्य महल बने हुए हैं.
इस सुन्दर दुर्ग के स्मरणार्थ महाराणा कुंभा ने सिक्के भी जारी किये थे जिसपर इसका नाम अंकित हुआ करता था.
महाराणा कुंभा एक कला प्रेमी शासक थे.कला के प्रति उनके इस अनुराग को अविस्मरणीय बनाने के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग ने वर्ष २००६ से 'कुंभलगढ़ शास्त्रीय नृत्य महोत्सव 'की शुरूआत की है.
कुंभलगढ़ में इस वर्ष यह महोत्सव २१ से २३ दिसम्बर तक चला.महोत्सव के दौरान दिन और रात में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.इसमें तीनों दिन प्रात: ११ से अपरान्ह ३ बजे तक तीरंदाजी, पगड़ी बांधना, रस्साकस्सी, रंगोली और मांडणा बनाने की प्रतियोगिताओं के साथ ही राजस्थान के लोक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुईं.
माननीय श्री रतन सिंह जी शेखावत द्वारा ज्ञानदर्पण पर कुम्भलगढ़ दुर्ग पर यह लेख लिखा गया था. जो आप यहां पढ सकते हैं. और youtube पर कुम्भलगढ़ किले की यह वीडियो भी उनके द्वारा लगाया गया है -देखीए-
अभी के लिये इतना ही. अगले शनिवार एक नई पहेली मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्कार।
आज के सम्माननिय विजेता क्रमश: इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाई!
श्री मुरारी पारीक अंक १०१ |
श्री रतन सिंह शेखावत अंक १०० |
सुश्री सीमा गुप्ता अंक ९९ |
श्री मीत अंक ९८ |
श्री प. डी.के. शर्मा "वत्स", अंक ९७ |
श्री नीरज गोस्वामी अंक ९६ |
श्री संगीता पुरी, अंक ९५ |
सुश्री M.A.Sharma "सेहर" अंक ९४ |
श्री दिगम्बर नासवा अंक ९३ |
निम्न महानुभावों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होने इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह बढाया. हार्दिक आभार.
श्री स्मार्ट इंडियन
श्री दिलीप कवठेकर
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
सुश्री निर्मला कपिला
श्री काजलकुमार,
सुश्री वंदना
श्री गौतम राजरिशी
श्री रजनीश परिहार
श्री मिश्रा पंकज
श्री राज भाटिया
श्री दिनेशराय द्विवेदी
श्री रामकृष्ण गौतम
डॉ टी एस दराल
सुश्री हरकीरत ’हीर’
श्री उडनतश्तरी
श्री विवेक रस्तोगी
श्री सोनू,
श्री मकरंद
श्री दीपक "तिवारी साहब"
आप सभी का बहुत आभार !
अच्छा अब नमस्ते.सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. ताऊ पहेली – 54 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.
इस पोस्ट को तैयार करने मे हमसे भूल हो गई है. श्री संजय बेंगानी जी का जवाब ६ ठे नंबर आया था. जो त्रुटीवश शामिल नही किया जा सका. आज उनके द्वारा ध्यान दिलाये जाने पर इस पोस्ट मे यह सुधार आज दिन में ११:३० AM पर किया गया है. उन्हे ६ ठे रैंक के हिसाब से ९६ नंबर दिये गये हैं और जो भी अन्य सम्माननिय विजेता इससे प्रभावित हुये हैं उनके अकाऊंट मे अपेक्षित सुधार किया गया है.
त्रुटी के लिये खेद है! |
मुरारी बापु को बधाई ताउ जी!
ReplyDeleteकुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग वास्तव मे देखने जैसा है। ताऊजी एक बार हमे भी ले चलो घुमाने इस एतिहासिक फोर्ट को दिखाने।
ReplyDeleteअरे वाह सुन्दर विडियो दर्शन ! रतनसिहजी को धन्यवाद!
ReplyDeleteसु. अल्पना वर्मा. जी आपके कुशल सम्पादन से हम प्रसन्न हुऍ आपका धन्यवाद!
ReplyDeleteले ताऊ आज पहली बार हमारी टिपण्णी सब से पहले आई, सब से पहले मुझे पहला आने के लिये बधाई.
ReplyDeleteफ़िर सभी विजेताओ को दिल खोल के बधाई
मुरारू बाबू जिन्दाबाद. बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteअन्य सभी विजेता एवं प्रतिभागियों को भी बधाई.
अल्पना जी का आभार विस्तृत जानकारी के लिए.
मुरारी जी व अन्य पहेली विजेताओं को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteएतिहासिक विरासत और वीरों की तीर्थ स्थली रहे इस दुर्ग की जानकारी देने के लिए पहेली आयोजकों का हार्दिक आभार |
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
ReplyDeleteहिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
सन २००९ की इस अंतिम पहेली के सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई! २०१० में पहेली कार्यक्रम की उत्तरोत्तर उन्नति की कामना के साथ,
ReplyDeleteअनुराग शर्मा
बधाइयां बधाइयां बधाइयां सभी विजाताओं को बधाइयां .
ReplyDeleteआदरणीय मुरारी पारीक" जी सहित सभी विजेताओ को हार्दिक बधाई....
ReplyDeleteregards
अरे! जवाब तो मैने भी दिया था, टिप्पणी मिली नहीं क्या?
ReplyDeleteताऊजी, अल्पना वर्मा जी और रतनसिंह शेखावत जी का आभार
ReplyDeleteमुरारी पारीक जी को बधाई
प्रणाम
सभी को बधाई... अरे भई पहेली जीतने की नहीं आनेवाले नये साल की...
ReplyDeleteचलिए जीतने वालो को भी बधाई...
मीत
मुरारी जी और सभी जीतने वालों को बधाई ..........
ReplyDeleteअल्पना जी की जानकारी बेहद लाजवाब है ..... पूरा नक्शा खिंच गया दिमाग़ में .........
murari ji aur any pratiyogiyon ko hardik badhayi.
ReplyDeleteहाँजी, अब सभी विजेताओं को बधाई :)
ReplyDelete@ राज भाटिय़ा said...
ReplyDeleteले ताऊ आज पहली बार हमारी टिपण्णी सब से पहले आई, सब से पहले मुझे पहला आने के लिये बधाई.
फ़िर सभी विजेताओ को दिल खोल के बधाई
Monday, December 28, 2009 5:35:00 AM
raj bhaisaab
sorry!!! but my Comments is 1st,
HEY PRABHU YEH TERA PATH said...
मुरारी बापु को बधाई ताउ जी!
Monday, December 28, 2009 5:18:00 AM
सभी का आभार और विजेताओं को (मुझे छोडके )अन्य को बधाई!!!
ReplyDeleteसभी विजेताओं को बधाई...
ReplyDeleteकुंभलगढ से संबंधित इतनी उम्दा जानकारी के लिए अल्पना जी सहित ताऊ का धन्यवाद!!
सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बहुत बधाई.....अल्पना जी को इस सुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए शुक्रिया, रतन सिंह जी को उम्दा वीडियो प्रेषित करने का आभार एवं ताऊ जी को इस मंच से सभी को जोड़े रखने के लिए बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteश्री मुरारी पारिक जी को बधाई!
ReplyDeleteसभी विजेता एवं प्रतिभागियों को बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteश्री मुरारी जी व अन्य विजेताओं को बहुत बहुत बधाई .
ReplyDeleteश्री रतन सिंह जी को उम्दा वीडियो प्रेषित करने का बहुत बहुत धन्यवाद