प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 51 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है मातृमंदिर ओरोविला पाँडिचेरी.
मातृमंदिर ओरोविला
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा
महर्षि अरविन्द घोष का जन्म 15 august ,१८७२ कोलकता में हुआ .
वह एक महान योगी एवं दार्शनिक थे.बाल्यावस्था में कुछ समय दार्जिलिंग में शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह सात साल की उम्र में अपने भाइयों के साथ शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गये थे. 1892 में भारत वापस लौट आये.
1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन और 1908-09 में अलीपुर बम कांड मुकदमा चला. जेल में कई आध्यात्मिक अनुभव के बाद वे अंतत: सक्रिय राजनीति से अलविदा कह तत्कालीन फ्रांसीसी शासन वाले पांडिचेरी चले गए. पांडिचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधनाएँ की और मृत्यु पर्यन्त [५ दिसम्बर १९५० को]तक वहीं रहे.पांडिचेरी में रहते हुए अरविन्द ने अपने महाकाव्य सावित्री और सबसे चर्चित पुस्तक ‘डिवाइन लाइफ’ ( हिन्दी में दिव्य जीवन के नाम से अनूदित) की रचना की थी.
पाँडिचेरी-भारत का केन्द्र शाषित प्रदेश पाँडिचेरी पिछले लम्बे काल से फ्रेंच कालोनी के रूप में चर्चित रहा है.इसका इतिहास १६७३ से तब प्रारंभ होता है जब चेन्नइ्रर् के पास सेंट होम के किलेबंद नगर में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेन्ट मार्टिन को डचों ने हरा दिया था। मार्टिन हार कर फ़्रांस नहीं लौटा। पांडिचेरी में आकर रहने लगा। कहते हैं उस समय यह छोटा सा गांव था। इस गांव को उसने जिंजी के राजा से खरीद लिया और धीरे-धीरे इसे एक समृद्ध नगर का रूप दिया।1954 में भारत व फ्रांस के मध्य एक समझौते के बाद पाँडिचेरी का प्रशासन भारत सरकार के अन्तर्गत है।अंतिम रूप से १ नवम्बर १९५६ को यह भारत संघ का अंग बन गया.
तमिल, तेलुगू, मलयालम व फ्रेंच भाषा सरकारी कामकाज के लिये स्वीकृत है.
'ओरोविला'-:
यहाँ महर्षि अरविन्द के नाम से 'ओरोविला'एक अन्तर्राष्ट्रीय नगर बसाया गया है. महर्षि अरविन्द आश्रम अन्तर्राष्ट्रीय योग शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र के रूप में भी विख्यात है.रूद्रेलाल मैरीन पर अरबिंदो ने फ्रांसीसी महिला मीरा अलफास्सा की सहायता से इस आश्रम की स्थापना की थी.यहाँ का मुख्य सूत्र मानव एकता है.
Auroville Dome
गोल गुंबद के आकार मे बना मातृमंदिर ओरोविला [उषा नगरी] से १० किलों मीटर दूर है.मंदिर के अंदर बने ध्यानकक्ष में रखा बडा क्रिस्टल बाल सूर्य की रोशनी में खूबसूरत आभा बिखेरता है.
यहीं एक बड़ा बरगद का पेड़ भी है जिसकी उम्र बहुत अधिक नहीं केवल १०० बरस बताई जाती है.यह मंदिर फ्रांसीसी महिला द मदर द्वारा स्थापित हुआ था.श्री अरविंद जी ने उन्हें ही आश्रम का संचालन सोन्पा हुआ था.उन्हें श्रीमाता के नाम से भी जानाजाता है.
यह स्थान युनेसको द्वारा संरक्षित है.
और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा
बहनों और भाईयो नमस्कार. इस अंक से कुछ समय के लिये रमप्यारी का और हीरामन का कालम स्थगित किया गया है. आप लोगों ने रामप्यारी की वापसी की मांग की है. आपकी भावनाएं हम समझते हैं. और आपको विश्वास दिलाते हैं कि रामप्यारी बहुत शीघ्र नये रंग रूप और अपनी चुलबुली हरकतों के साथ वापस आपके साथ होगी. बस थोडा सा इंतजार किजिये. आईये अब आज के पहेली के स्थान के बारे में कुछ जानते हैं.
महर्षि अरविन्द घोष का जन्म 15 august ,१८७२ कोलकता में हुआ .
वह एक महान योगी एवं दार्शनिक थे.बाल्यावस्था में कुछ समय दार्जिलिंग में शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह सात साल की उम्र में अपने भाइयों के साथ शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गये थे. 1892 में भारत वापस लौट आये.
1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन और 1908-09 में अलीपुर बम कांड मुकदमा चला. जेल में कई आध्यात्मिक अनुभव के बाद वे अंतत: सक्रिय राजनीति से अलविदा कह तत्कालीन फ्रांसीसी शासन वाले पांडिचेरी चले गए. पांडिचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधनाएँ की और मृत्यु पर्यन्त [५ दिसम्बर १९५० को]तक वहीं रहे.पांडिचेरी में रहते हुए अरविन्द ने अपने महाकाव्य सावित्री और सबसे चर्चित पुस्तक ‘डिवाइन लाइफ’ ( हिन्दी में दिव्य जीवन के नाम से अनूदित) की रचना की थी.
पाँडिचेरी-भारत का केन्द्र शाषित प्रदेश पाँडिचेरी पिछले लम्बे काल से फ्रेंच कालोनी के रूप में चर्चित रहा है.इसका इतिहास १६७३ से तब प्रारंभ होता है जब चेन्नइ्रर् के पास सेंट होम के किलेबंद नगर में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेन्ट मार्टिन को डचों ने हरा दिया था। मार्टिन हार कर फ़्रांस नहीं लौटा। पांडिचेरी में आकर रहने लगा। कहते हैं उस समय यह छोटा सा गांव था। इस गांव को उसने जिंजी के राजा से खरीद लिया और धीरे-धीरे इसे एक समृद्ध नगर का रूप दिया।1954 में भारत व फ्रांस के मध्य एक समझौते के बाद पाँडिचेरी का प्रशासन भारत सरकार के अन्तर्गत है।अंतिम रूप से १ नवम्बर १९५६ को यह भारत संघ का अंग बन गया.
तमिल, तेलुगू, मलयालम व फ्रेंच भाषा सरकारी कामकाज के लिये स्वीकृत है.
'ओरोविला'-:
यहाँ महर्षि अरविन्द के नाम से 'ओरोविला'एक अन्तर्राष्ट्रीय नगर बसाया गया है. महर्षि अरविन्द आश्रम अन्तर्राष्ट्रीय योग शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र के रूप में भी विख्यात है.रूद्रेलाल मैरीन पर अरबिंदो ने फ्रांसीसी महिला मीरा अलफास्सा की सहायता से इस आश्रम की स्थापना की थी.यहाँ का मुख्य सूत्र मानव एकता है.
गोल गुंबद के आकार मे बना मातृमंदिर ओरोविला [उषा नगरी] से १० किलों मीटर दूर है.मंदिर के अंदर बने ध्यानकक्ष में रखा बडा क्रिस्टल बाल सूर्य की रोशनी में खूबसूरत आभा बिखेरता है.
यहीं एक बड़ा बरगद का पेड़ भी है जिसकी उम्र बहुत अधिक नहीं केवल १०० बरस बताई जाती है.यह मंदिर फ्रांसीसी महिला द मदर द्वारा स्थापित हुआ था.श्री अरविंद जी ने उन्हें ही आश्रम का संचालन सोन्पा हुआ था.उन्हें श्रीमाता के नाम से भी जानाजाता है.
यह स्थान युनेसको द्वारा संरक्षित है.
अधिक जानकारी के लिये -:
www.auroville.org
or-visit-:
La Boutique d’ Auroville,
38 J.Nehru Street,
Puducherry
Phone: 0413 – 2337264
अभी के लिये इतना ही. अगले शनिवार एक नई पहेली मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्कार।
आज के सम्माननिय विजेता क्रमश: इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाई!
श्री दिनेशराय द्विवेदी अंक १०१ |
श्री स्मार्ट इंडियन अंक १०० |
सुश्री हीरल जौहरी अंक ९९ |
श्री दिलिप कवठेकर अंक ९८ |
श्री मुरारी पारीक अंक ९७ |
सुश्री सीमा गुप्ता अंक ९६ |
श्री प्रकाश गोविंद अंक ९५ |
श्री शोभित जैन अंक ९४ |
श्री मीत अंक ९३ |
श्री प. डी.के. शर्मा "वत्स", अंक ९२ |
श्री उडनतश्तरी अंक ९१ |
श्री संजय तिवारी ’संजू’ अंक ९० |
सुश्री प्रेमलता पांडे अंक ८९ |
निम्न महानुभावों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होने इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह बढाया. हार्दिक आभार.
सुश्री M A Sharma “सेहर”, श्री विवेक रस्तोगी, सुश्री निर्मला कपिला, श्री रतनसिंह शेखावत, श्री ललित शर्मा, श्री संजय बेंगाणी, श्री काजलकुमार, श्री अविनाश वाचस्पति, श्री अंतर सोहिल, सुश्री वंदना, डा. महेश सिन्हा, डा. रुपचंद्र शाश्त्री, श्री मुंबई टाईगर, श्री दिगंबर नासवा, श्री राज भाटिया, हे प्रभु ये तेरा पथ, श्री महावीर सेमलानी, श्री दीपक तिवारी “साहब”, श्री रामबाबू सिंह, श्री योगिंद्र मोदगिल, श्री टेगस्की और सुश्री वाणीगीत.
आप सभी बहुत अभार.
अच्छा अब नमस्ते.सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. ताऊ पहेली – 51 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.
द्विवेदी जी को बधाई!! ताऊ को राम राम और रामप्यारी को प्यार
ReplyDeleteविजेताओं को बधाई |
ReplyDeleteहम भी धन्य हुए जो इस पहेली के बहाने इस जगह के बारे में घर बैठे बढ़िया जानकारी मिली | आभार |
दिनेश राय िद्ववेदी वकील साहब को बधाई!
ReplyDeleteद्विवेदी जी को बधाई !
ReplyDeleteयह तो बिल्ली के भाग से छींका टूटना हुआ। ठीक आठ बजे पहेली देखने को मिल गई। वैसे इस पहेली को जीतने का मैं हकदार नहीं। मैं तो ऑरोविला को मद्रास में ही समझता रहा हूँ।
ReplyDeleteविजेताओं को बधाई....
ReplyDeleteहारने वालों से सहानुभुति :)
द्विवेदी जी को बधाई ! राम प्या री को राम राम ।ाउर ताऊ जी लो भी बधाई
ReplyDeleteहमें भी इस अद्भुत जगह के बारे में आज ही पता चला वाह हमारे भारत में एक से एक जगह हैं, अब जल्दी ही जाकर घूम भी आयेंगे।
ReplyDeleteदिनेशराय द्विवेदी जी को विजेता होने पत घणी बधाई।
दिनेश राय जी और सभी जीतने वालों को बधाई ...........
ReplyDeleteदिनेशराय द्विवेदी जी और sbhi विजेताओं को बधाई .
ReplyDeleteregards
श्री दिनेशराय द्विवेदी ko badhaai ho!!
ReplyDeleteसभी को बधाई....
ReplyDeleteमीत
सभी विजेताओं को बधाई.......ओर पत्रिका संपादक मंडल का धन्यवाद्!
ReplyDeleteद्विवेदी जी एवं समस्त विजेताओं को बधाई!!
ReplyDeleteसभी को शुभकामनाएँ.
ताऊ और अल्पना जी को बधाई.
Alpana ji ..Sundar jaankaari ka bhat abhaar evam Dhanyvaad !!
ReplyDeletesabhee vijetaao ko bhe bahut badhaii !!
sabhee mitron ko
Suprabhaat !!