आईये आज के परिचयनामा मे हम आपको मिलवाते हैं श्री विवेक रस्तोगी से. जिनके ब्लाग कल्पतरु से तो आप भलीभांति वाकिफ़ ही हैं जहां आजकल कालीदास और मेघदूतम की सुंदर चर्चा चल रही है. तो आईये विवेक रस्तोगी साहब. आपका ताऊ स्टूडियो में स्वागत है.
श्री विवेक रस्तोगी का इंटर्व्यु लेते हुये ताऊ
ताऊ : हां तो विवेक जी, सबसे पहले ये बताईये कि आप कहां के रहने वाले हैं?
ताऊ : फ़िर तो आप महाकाल के परम भक्त होंगे?
ताऊ : यानि आप बडे आध्यात्मिक विचारों के हैं?
ताऊ : अपने जीवन की सबसे अविस्मरणीय घटना आप किसे मानते हैं ?
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
ताऊ : सख्त ना पसंद क्या है?
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
ताऊ : हमारे पाठकों से क्या कहना चाहेंगे?
ताऊ : हमने सुना है कि आप बचपन मे बहुत शरारती थे?
ताऊ : हमने सुना है कि आपने एक बार स्कूल के अपने सहपाठियों को जहरीले काजू खिलवा दिये थे?
ताऊ : जी, आगे बताईये.
ताऊ : काजू? और वो भी झाडी में..भाई काजू का तो अच्छा खासा पेड होता है.
ताऊ : ठीक है सुनाईये.
ताऊ : अच्छा...?
ताऊ : बहुत बढिया..फ़िर आगे क्या हुआ?
ताऊ : यानि उनको पता चल चुक था?
ताऊ : फ़िर आगे क्या हुआ?
ताऊ : ओहो...यानि काजूओं का असर शुरु हो चुका था? डाक्टर साहब क्या बोले?
ताऊ : अरे भाई हमने आपको बुलाया किसलिये है यहां? आप तो एक क्या दस बातें बताओ जी.
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
ताऊ : कुछ अपने स्वभाव के बारे मे बताईये.
अंत मे " एक सवाल ताऊ से"
तो ये थे हमारे आज के मेहमान. इनसे मिलकर आपको कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.
ताऊ : हां तो विवेक जी, सबसे पहले ये बताईये कि आप कहां के रहने वाले हैं?
विवेक रस्तोगी : ताऊजी, मैं महाकाल की नगरी उज्जैन का रहने वाला हूँ.
ताऊ : फ़िर तो आप महाकाल के परम भक्त होंगे?
विवेक रस्तोगी : जी बिल्कुल इसलिये महाकाल का भक्त हूँ, चूँकि शिवजी सबसे बड़े वैष्णव हैं इसलिये अब हम भी वैष्णव हैं और कृष्ण जी का स्मरण करते हैं.
ताऊ : यानि आप बडे आध्यात्मिक विचारों के हैं?
विवेक रस्तोगी : जी वैसे तो मैं शुरु से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति का हूँ पर आजकल भगवान के लिये समय कम ही निकाल पाते हैं, पर जब भी मौका मिलता है सीधे भगवान के पास दौड़े चले जाते हैं अपने आप को भगवान से जोड़ने के लिये।ताऊ : जी यह तो सही है पर आप अभी वर्तमान मे क्या करते हैं?
विवेक रस्तोगी : मैं मुंबई में सोफ़्टवेयर कंपनी में नौकरी करता हूँ और लगभग ४ सालों से मुंबई में रह रहा हूँ और अब मुंबई छोड़कर कोई दूसरा शहर अच्छा भी नहीं लगता है।
ताऊ : अपने जीवन की सबसे अविस्मरणीय घटना आप किसे मानते हैं ?
विवेक रस्तोगी : मेरे बेटे का मेरे जीवन में आना।
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
विवेक रस्तोगी : साहित्य पढ़ना, साहित्यिक भाषा सुनना
रोहतांग पास पर | ताजमहल आगरा (1 ) | ताजमहल आगरा ( 2 ) |
ताऊ : सख्त ना पसंद क्या है?
विवेक रस्तोगी : बेईमानी, उच्छश्रंखलता, अनुशासनहीनता
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
विवेक रस्तोगी : ईमानदारी, अनुशासन
ताऊ : हमारे पाठकों से क्या कहना चाहेंगे?
विवेक रस्तोगी : अपने मन की बात टिप्पणी में टिपियाते रहिये और उत्साहवर्धन करते रहिये।
ताऊ : हमने सुना है कि आप बचपन मे बहुत शरारती थे?
विवेक रस्तोगी : जी, यह सही है. शरारत का कोई मौका नही छोडा.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने एक बार स्कूल के अपने सहपाठियों को जहरीले काजू खिलवा दिये थे?
विवेक रस्तोगी : नही हमने नही खिलवाये थे. वो ऐसा हुआ था कि जब हम पांचवी कक्षा में पढ़ते थे तो स्कूल के बाहर ही कुछ कंटीली झाडि़यां लगी हुई थी और उसमें कुछ फ़ल लगे हुए थे.
ताऊ : जी, आगे बताईये.
विवेक रस्तोगी : तो हम उनको फ़ोड़ कर देखने लगे कि ये क्या है और अंदर से निकला काजू, अरे अब तो हमारे मजे आ गये कि काजू खाने को मिल रहे हैं और किसी को भी पता नहीं है।
ताऊ : काजू? और वो भी झाडी में..भाई काजू का तो अच्छा खासा पेड होता है.
विवेक रस्तोगी : अरे ताऊजी, आप सुनिये तो सही.
ताऊ : ठीक है सुनाईये.
विवेक रस्तोगी : बस फ़िर क्या था... हमने अपनी मित्र मंडली को बुलाया कि आओ आज तुम सबको काजू खिलाते हैं और देखते ही देखते हमारे स्कूल के बच्चों की भीड़ लग गई काजू खाने के लिये।
ताऊ : अच्छा...?
विवेक रस्तोगी : हमने थोड़े ही खाये क्योंकि हमें ज्यादा अच्छे नहीं लगते थे और कुछ अपनी जेब में भरकर घर पर ले गये कि अपने छोटे भाई को भी खिलायेंगे।
ताऊ : बहुत बढिया..फ़िर आगे क्या हुआ?
विवेक रस्तोगी : घर पहुंचते ही हमारी मम्मी ने देख लिया कि ये कुछ लाया है और उन्होंने देखा तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था कि ये कहां से लाया और तूने कितने खाये?
ताऊ : यानि उनको पता चल चुक था?
विवेक रस्तोगी : नही, हमें यह लगा कि इन्हें लग रहा होगा कि हमने पैसे चोरी करके काजू लिये हैं, इसलिये हमने वो सारे फ़ल फ़ेंक दिये।
ताऊ : फ़िर आगे क्या हुआ?
विवेक रस्तोगी : होना क्या था ताऊजी? थोड़ी देर बाद ही हमारी तबियत खराब होने लगी “उल्टी दस्त” जबरदस्त होने लगे फ़िर हमें डाक्टर के पास ले जाया गया.
ताऊ : ओहो...यानि काजूओं का असर शुरु हो चुका था? डाक्टर साहब क्या बोले?
विवेक रस्तोगी : वो हमारे पारिवारिक डाक्टर थे. उन्होंने सीधे पूछा क्यों “उल्टी दस्त” हो रहे हैं न ? हमारे पापा और मम्मी तो डाक्टर साहब का चेहरा देखते रह गये कि इनको कैसे पता चला, और सीधा मुझसे पूछा क्यों कितने काजू खाये।ताऊ : अच्छा..
विवेक रस्तोगी : फ़िर डाक्टर साहब बोले उस स्कूल के ५० से ज्यादा बच्चे आ चुके हैं और ३५ से ज्यादा बच्चों को ग्लूकोज चढ़ रहा है अब तो तुम को भी चढ़ाना पड़ेगा हमारी तो हालत खराब कि ये क्या हो गया।ताऊ : यानि आपको भी ग्लुकोज चढाना पडा?
विवेक रस्तोगी : ना ताऊजी, चूँकि हमने ज्यादा काजू नहीं खाये थे इसलिये हमें केवल गोली दी गई और हम हाथ में सुईं से ग्लूकोज लगवाने से बच गये।ताऊ : पर उस काजू का रहस्य हमको अभी तक समझ मे नही आया?
विवेक रस्तोगी : ताऊजी दरअसल वो “काजू” सा दिखने वाला फ़ल “अरंडी” का फ़ल था जो कि फ़ोड़ने पर काजू होने का अहसास दे रहा था।ताऊ : अच्छा..अच्छा यह रहस्य था उस काजू का? खैर ये बताईये कि आप मूलत: भी उज्जैन के ही रहने वाले हैं?
विवेक रस्तोगी : ना ताऊजी, हम मूलत: परीक्षितगढ़, जिला मेरठ से हैं.ताऊ : आप कभी गये वहां?
विवेक रस्तोगी : वहां तो हम बस बचपन में गये थे और अब यादें शेष हैं। और एक बात बताऊं आपको?
ताऊ : अरे भाई हमने आपको बुलाया किसलिये है यहां? आप तो एक क्या दस बातें बताओ जी.
विवेक रस्तोगी : धन्यवाद ताऊजी, हम राजा हरिशचंद्र के वंश के हैं और परीक्षितगढ़ (राजा परीक्षित के नाम पर, जो कि अर्जुन के पौत्र थे) पूरा गांव हमारे पूर्वजो का था पर अब वहां बहुत कम लोग बचे हैं, सब रोजगार के लिये अपनी जड़ से दूर हो गये हैं।ताऊ : वाह जी यह तो बहुत बढिया बात बताई आपने. खैर ये बताईये कि आपका संयुक्त परिवार है या एकल?
विवेक रस्तोगी : हाँ ताऊजी, हम संयुक्त परिवार में ही रहते हैं और इसके अगर फ़ायदे हैं तो नुक्सान भी हैं पर मैं केवल इतना ही कहना चाहुँगा कि सामंजस्य के साथ रहना पड़ता है ओर बहुत सारे समझौते भी करना पड़ते हैं।ताऊ : फ़िर भी..कैसा लगता है?
विवेक रस्तोगी : इस भागती दौड़ती जिंदगी में यह है कि कम से कम सब एक दूसरे को देख पाते हैं और थोड़ा बहुत बात करने का समय भी निकाल पाते हैं।ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
विवेक रस्तोगी : यह बिल्कुल ही नया रोजगार का अवसर उपलब्ध करावायेगा जिसके बारे में आज शायद कोई सोच नहीं रहा है। क्योंकि इससे आम आदमी के बीच का लेखक निकल कर आयेगा। भविष्य में फ़ुलटाईम ब्लोगिंग करने की योजना है।
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
विवेक रस्तोगी : मैं ब्लागिंग में जून २००५ से हूँ और शौक शौक में ब्लाग बनाया था कि चलो कोई तो मंच ऐसा मिला जहां पर अपनी बातें दुनिया को बता सकते हैं।ताऊ : कैसे लगा ब्लाग ब्लाग बनाकर लिखना? और क्या सतत लिखा आपने?
विवेक रस्तोगी : शुरु में जब लिखना शुरु किया तो इतना उत्साह नहीं था फ़िर अपनी नौकरी में इतना व्यस्त हो गये कि लिखने के लिये समय ही नहीं निकाल पाते थे पर इस वर्ष से हमने प्रण किया कि लेखन के लिये समय निकालेंगे और सतत लेखन करेंगे।ताऊ : आप ब्लागिंग मे आये कैसे?
विवेक रस्तोगी : ताऊजी, ब्लागिंग में हमारा आना भी एक संयोग है, एक हमारे बैंक के मित्र थे वो जून २००५ में हमसे बोले कि यार ये हिन्दी में कुछ ब्लोग वगैराह का नया फ़ण्डा चल रहा है इसके बारे में बताओ कि ये क्या चीज है.ताऊ : तब आपने पता किया होगा?
विवेक रस्तोगी : हां तब हमने शोध किया और परिणाम उनको बताया अपना ब्लाग बनाकर, बस तब से हम ब्लागर बन गये। हालांकि हमारे मित्र की जिज्ञासा तो शांत हो गये पर वो ब्लागर नहीं बने।ताऊ : आपका लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
विवेक रस्तोगी : मैं कोशिश करता हूँ कि एक दिशा में अपना लेखन जारी रखूँ और सबको कुछ नयी तकनीकी जानकारी देता रहूँ. पर इसके शोध के लिये समय निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है.ताऊ : पर आप तो अलग अलग विषयों पर लिखते हैं?
विवेक रस्तोगी : हां ताऊजी, मन तो ७ घोड़ों की तरह ७ दिशाओं में भागता है इसलिये किसी एक दिशा में लेखन नहीं कर पा रहे हैं, खिचड़ी जैसा सब विषयों पर लेखन जारी है। कोशिश करेंगे कि कुछ एक दो विषय पर ही सतत लिखते रहें, जैसे कि पारिवारिक प्रबंधन, वित्त प्रबंधन, तकनीक।ताऊ : क्या राजनिती मे आप रुची रखते हैं?
विवेक रस्तोगी : हां जी, बिल्कुल रुचि रखते हैं और सोचते हैं कि काश इसमें आने की भी कोई परीक्षा होती जिससे सब अच्छे लोग ही राजनीति में होते।
रस्तोगी दंपति बौद्ध मोनेस्ट्री मनाली में | विवेक रस्तोगी बाजबहादुर मांडव में (नेपथ्य में रुपमती पेवेलियन) | श्रीमती और श्री विवेक रस्तोगी छोटे भाई की शादी में |
ताऊ : कुछ अपने स्वभाव के बारे मे बताईये.
विवेक रस्तोगी : आध्यात्मिक हूँ, सहज ही किसी पर भी विश्वास कर लेता हूँ।ताऊ : आपकी धर्मपत्नि के बारे मे कुछ बतायेंगे?
विवेक रस्तोगी : ताऊ जी, मेरी धर्मपत्नि का नाम वाणी रस्तोगी है और उन्होंने एम.ए. तक अध्ययन किया है, मूलत: धौलपुर राजस्थान की रहने वाली हैं और घर संभालती हैं।ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहेंगे?
विवेक रस्तोगी : यह एक दिमाग चकरा देने वाली पहेली है कई बार तो ताऊ आप बहुत ही कठिन पहेली पूछ लेते हो, चलो इस बहाने दिमाग पर कुछ तो जोर देना पड़ता है।ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगे?
विवेक रस्तोगी : ताऊ मतलब जिम्मेदार व्यक्ति, आप ब्लोगजगत के ताऊ हो।ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या सोचते हैं?
विवेक रस्तोगी :यह एक बहुत ही अच्छी पत्रिका है जिससे बहुत सारा ज्ञान अर्जित होता है।
अंत मे " एक सवाल ताऊ से"
सवाल विवेक रस्तोगी का : ताऊ का चरित्र गढ़ने के पीछे क्या राज है?जवाब ताऊ का : आज परिस्थितिवश हर इंसान गंभीरता का शिकार होगया है, कुछ इसे जबरन ओढकर रखते हैं. ऐसे मे यह चरित्र खुद पर ही व्यंग करके गंभीरता को तोडने की एक छोटी सी कोशीश करता है. बच्चे, बूढे, जवान, महिला और पुरुष यानि की सभी ने इसे पसंद किया है, एक मुस्कान ताऊ के नाम से ही उनके होंठो पर आजाती है. बस इस चरित्र को गढने का उद्देष्य पूरा हुआ.
तो ये थे हमारे आज के मेहमान. इनसे मिलकर आपको कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.
विवेक जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा...मुंबई में काम कर रहे हैं तो कभी न कभी मुलाकात हो ही जायेगी...
ReplyDeleteनीरज
ताऊजी अच्छा लगा रस्तोगी जी से मिलकर .
ReplyDeleteविवेक जी से मिलकर उनकी बारे में काफी कुछ जाना। बाकी जब मिलेंगे तब जान जायेंगे। पर यह अच्छा लगा कि वे ब्लॉगिंग के माध्यम से लेखन में सतत जुटे रहेंगे। भरपूर बधाई विवेक और उनके परिवार से मिलवाने के लिए ताऊ जी को भी।
ReplyDeleteLAJAWAAB INTERVIEW HAI TAAU SHREE ...... VIVEK JI SE MIL KAR BAHOOT ACHHA LAGA ..... RAAM RAM
ReplyDeleteताऊजी बहुत सुंदर साक्षात्कार रहा. विवेकजी से मिलवाने का आभार.
ReplyDeleteताऊजी बहुत सुंदर साक्षात्कार रहा. विवेकजी से मिलवाने का आभार.
ReplyDeleteबहुत रोचक इंटर्व्यु, बचपन की शरारते ऐसी ही मजेदार होती हैं. बधाई.
ReplyDeletebahut dilchasp batchit, maja aya.bhai
ReplyDeleteवाह जी मजा आगया उज्जैनी भाई से मिलकर, जय महानकाल.
ReplyDeleteवाह जी मजा आगया उज्जैनी भाई से मिलकर, जय महानकाल.
ReplyDeleteअच्छा लगा विवेकजी से मिलना, आप बहुत सुंदर कर्य कर रहे हैं कि सभी ब्लागर्स से मिलवाने का क्रम चला रहे हैं. और अब तो आपका खुद का स्टूडियो भी शानदार बन गया है. बधाई.
ReplyDeleteबहुत बधाई ताऊ आपको और विवेकजी को शुभकामनाएं.
ReplyDeleteविवेक जी के इस परिचयनामा का शुक्रिया ।
ReplyDeleteअच्छा साक्षात्कार है, पढ़कर रस्तोगी जी से परिचय कुछ विस्तार पा गया। हाँ उनकी काजू का तेल हमें मामा बैज्जी कब्ज होने पर दिया करते थे। इन्हों ने बिना कब्ज के ही सब को काजू खिला दी।
ReplyDeleteअच्छा लगा विवेक जी से मिलवाना -वैसे उन्हें उनके ब्लागों से तो जान ही रहा हूँ पर अबविस्तृत मिलना हो गया !
ReplyDeleteविवेक जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा :)
ReplyDeleteविवेक जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा.. हैपी ब्लॉगिंग
ReplyDeleteविवेक जी से मिलवाने के लिए ताऊ का आभार!
ReplyDeleteसाक्षात्कार बढ़िया रहा!
विवेक जी से मिलकर अच्छा लगा ....काजू कथा भी ज़ोरदार थी ...
ReplyDeleteविवेकजी से मिलना सुखद रहा. आभार ताऊ.
ReplyDeleteविवेक जी के बारें में पढकर अच्छा लगा। काजू तो हमें भी पसंद है पर सतर्क हो गए विवेक जी का किस्सा पढकर।
ReplyDeleteबढिया साक्षात्कार्!!! विवेक जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा....उनको शुभकामनाऎं और आपको धन्यवाद्!!
ReplyDeleteआज परिस्थितिवश हर इंसान गंभीरता का शिकार होगया है, कुछ इसे जबरन ओढकर रखते हैं. ऐसे मे यह चरित्र खुद पर ही व्यंग करके गंभीरता को तोडने की एक छोटी सी कोशीश करता है. बच्चे, बूढे, जवान, महिला और पुरुष यानि की सभी ने इसे पसंद किया है, एक मुस्कान ताऊ के नाम से ही उनके होंठो पर आजाती है. बस इस चरित्र को गढने का उद्देष्य पूरा हुआ.
ReplyDeleteVivek Ji Se mulakaat achchi Rahii..Dhanyavaad
aur Tau ji aapka javaab lazvaab hai !!!
Saadar !!
ताऊ जी विवेक जी के बारे जान कर मुझे सब से ज्यादा खुशी हुयी, भाई खुशी इस लिये जब बंबई जायेगे तो मुफ़त मै रहेगे, ओर खायेगे भी , ओर तो ओर मुफ़त मै विवेक भाई हमे घुमाने भी ले जायेगे... फ़िर तो मोजा ही मोजा...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा विवेक जी से मिलना.
आप का धन्यवाद
मजा आया विवेक भाई से मिल कर.
ReplyDelete“काजू” सा दिखने वाला फ़ल “अरंडी” का फ़ल
मुझे तो पहले ही डाऊट था कि इस बंदे ने ऐसा कुछ जरुर किया होगा..आँख बोलती है जब लेखनी और लब चुप्पी साध लें :)
और पहुँचे हुए पीर..इतना भी न समझें तो लानत जाये हमपर. हा हा!!
विवेक से परिचय कराने के लिये शुक्रिया।
ReplyDeleteविवेक रस्तोगीजी से ताऊ की मुलाकात रोचक रही ..
ReplyDeleteआभार ..!!
बहुत अच्छी जानकारी मिली विवेक जी के बारे में और साथ ही एक से बढ़कर एक तस्वीरें! बहुत ही दिलचस्प साक्षात्कार रहा!
ReplyDeleteअब से तो काजू को भी शक की निगाह से देखेंगे :)
ReplyDeleteमजेदार रहा परिचय नामा....
बहुत उम्दा रही ये मुलाक़ात..
ReplyDeleteकाजू वाला किस्सा अच्छा है...
मीत
विवेक जी से परिचय बहुत अच्छा लगा ताऊ जी आप कैसे हैं घणी राम राम
ReplyDeleteविवेक जी का साक्षात्कार achchha लगा.और वाणी जी milna भी.
ReplyDeleteसभी तस्वीरें भी बहुत अच्छी हैं.
काजू वाला किस्सा तो मज़ेदार था.बचपन की यादें भी खूब होती हैं अब उन्हें याद करके अपनी नासमझी पर हंसते होंगे.
अंत में taau सेपूछा गया सवाल और जवाब दोनों pasand आये.
शुभकामनायें.
विवेक जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा...मुंबई में हैं- तो कभी न कभी मुलाकात हो ही जायेगी...
ReplyDeleteभारतीय रिजर्व बैक के सिक्के पर यह किस प्रसिद्ध हिन्दी ब्लोगर का फोटू है।
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
विवेक जी से मिल के अच्छा लगा | कंजू वाले किस्से में आनंद आ गाया |
ReplyDeleteताऊजी अच्छा लगा विवेक जी से मिलकर।विवेक जी से मिलवाने का आभार.
ReplyDeleteताउजी!... आपने रस्तोगीजी का अच्छा इंटरव्यू लिया!.... बहुत मजा आया!... घणी रामराम!
ReplyDeleteताऊ जी , आप सभी ब्लोगरों के परिवार से मिलवा रहे हैं बहुत बढिया कार्य दर्ज हो रहा है
ReplyDeleteविवेक भाई व वाणी भाभी जी से मिलकर खुशी हुई
स स्नेह,
- लावण्या
“काजू” सा दिखने वाला फ़ल “अरंडी” का फ़ल
ReplyDeleteमुझे तो पहले ही डाऊट था कि इस बंदे ने ऐसा कुछ जरुर किया होगा..आँख बोलती है जब लेखनी और लब चुप्पी साध लें :)
waah ji ye raaj ki baat jan kar aur achha lga ....!!