एक सन्यासी
एक गठरी लिये
हिमालय के पहाडों पर
अपने गंतव्य की ओर
हाफ़ंते हुये बढ रहा था.
तभी पीछे से एक अल्हड लडकी
पीठ पर एक गठरी ऊठाये
सहयात्री के मानिंद
साथ साथ बढने लगी
सन्यासी हांफ़ते हुये
विश्राम के लिये रुका
और उस लडकी से बोला
बेटी, तू भी इस बोझ को उतार दे
और दो घडी विश्राम करले
लडकी ने
सन्यासी को खा जाने वाली
तपती निगाह से देखा
और बोली
सन्यासी महाराज
ये मेरा बीमार भाई है
कोई बोझ नही है
सन्यासी ने तुरत माफ़ी मांगी
और बोला
हां बेटी, तू सही कहती है
प्रेम मे कभी बोझ नही होता
वो तो परमात्मा की तरह
बिल्कुल निर्भार है.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
waah...........umdaa bat !
ReplyDeletewaah bahut hi khubsoorati se prem ki pribhasha di hai ............atisundar man khush ho gaya.....badhaai
ReplyDeleteबिल्कुल सत्य...
ReplyDeleteसुन्दर रचना!!
सीमा जी को बधाई एवं regards. :)
सही है.. भाई है बोझ नहीं...
ReplyDeleteसही बात कही आपने गुरूजी
ReplyDeleteसत्य वचन्!!
ReplyDeleteउम्दा रचना के लिए सुश्री सीमा जी ओर आपको भी बहुत सारी बधाई!!!
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबिल्कुल खरी बात. प्रेम मे बोझ नही होता.
ReplyDeleteलडकी ने
ReplyDeleteसन्यासी को खा जाने वाली
तपती निगाह से देखा
और बोली
सन्यासी महाराज
ये मेरा बीमार भाई है
कोई बोझ नही है
behad sundar bat kahi apane
लडकी ने
ReplyDeleteसन्यासी को खा जाने वाली
तपती निगाह से देखा
और बोली
सन्यासी महाराज
ये मेरा बीमार भाई है
कोई बोझ नही है
behad sundar bat kahi apane
bhaut kahri bat hai ji
ReplyDeleteसन्यासी महाराज
ReplyDeleteये मेरा बीमार भाई है
कोई बोझ नही है
वाह ताऊ, सौ टका खरी बात है.
सन्यासी महाराज
ReplyDeleteये मेरा बीमार भाई है
कोई बोझ नही है
वाह ताऊ, सौ टका खरी बात है.
वाह ताऊजी आज तो बहुत सुंदर बात कही.
ReplyDeleteवाह ताऊजी आज तो बहुत सुंदर बात कही.
ReplyDeleteवाह ताऊजी आज तो बहुत सुंदर बात कही.
ReplyDeleteभावप्रण रचना।
ReplyDeleteप्रेम मे कभी बोझ नही होता
ReplyDeleteवो तो परमात्मा की तरह
बिल्कुल निर्भार है.
सत्य वचन ताऊ !
हां बेटी, तू सही कहती है
ReplyDeleteप्रेम मे कभी बोझ नही होता
वो तो परमात्मा की तरह
बिल्कुल निर्भार है.
waah bahut hi marmik aur sachhi rachana.sunder.
संस्मरण पोस्ट के रूप में बहुत बढ़िया रहा।
ReplyDeleteबधाई।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर, अपना है तो निर्भार है. काश! पराये भी हो पाते.
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआज तो बहुत सुंदर बात कही.
मन पुलकित है .........
sach hai prem aur aatimy sambandh kabhi bojh nahin hote.
ReplyDeleteसमीर जी की टिप्पणी भी शब्दशः मेरी मानी जाय !
ReplyDeleteसत्य वचन ...सीमाजी को आभार ...!!
ReplyDeleteप्रेम मे कभी बोझ नही होता
ReplyDeleteवो तो परमात्मा की तरह
बिल्कुल निर्भार है.
कितनी अच्छी बात कही ...सच में प्रेम भार नहीं इक सुन्दर रूप लिए उम्दा अहसास है ...बहुत खूब !!!
निश्चय ही साधू जी गलती पर थे। अनुभव हीनता की गलती।
ReplyDelete