"मैं भीख क्यों मांगता"
भिखारी के हाथ मे
रोटी देख ललचाये कुत्त्ते
ने पूंछ हिलाई
भिखारी ने हाथ की रोटी
भूखे कुत्ते को जा थमाई
भिखारी के हाथ मे
रोटी देख ललचाये कुत्त्ते
ने पूंछ हिलाई
भिखारी ने हाथ की रोटी
भूखे कुत्ते को जा थमाई
यह मंजर देख रही
अम्माजी ने पूछा
खुद भूखा था फिर रोटी
कुत्ते को क्यों दे डाली
अम्माजी ने पूछा
खुद भूखा था फिर रोटी
कुत्ते को क्यों दे डाली
बेजुबान प्राणी बेचारा
और कहां जाएगा,
मुझसे ज्यादा भूखा था ,
कहां से रोटी पायेगा,
और कहां जाएगा,
मुझसे ज्यादा भूखा था ,
कहां से रोटी पायेगा,
मै तो जब हाथ फैलाऊंगा,
कोई ना कोई दे ही जायेगा,
सुन कर चौंक गयी अम्माजी ,
इतनी अक्ल रही जब तुझमे,
भीख काहे को मांगे है,
कोई ना कोई दे ही जायेगा,
सुन कर चौंक गयी अम्माजी ,
इतनी अक्ल रही जब तुझमे,
भीख काहे को मांगे है,
भिखारी बोला,
अजब जमाना आया है अम्मा,
तरस खाकर रोटी मिल जाती,
काम नहीं मिल पाया है,
अजब जमाना आया है अम्मा,
तरस खाकर रोटी मिल जाती,
काम नहीं मिल पाया है,
काम अगर मिल जाता तो
मैं भीख क्यों मांगता?
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
मैं भीख क्यों मांगता?
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
बिलकुल सही बात ताऊ जी
ReplyDeleteअगर काम मिल मै भीख क्यों मागता
विचारणीय पोस्ट , सत्य को बयां करती हुई
ReplyDeleteसीमा गुप्ता जी की इस कविता की जितनी तारीउ की जाये कम है।
ReplyDeleteनायाब है।
बधाई,
ताऊ को भी और सीमा गुप्ता जी को भी।
शोचनीय स्थिति एवं सोचनीय विषय !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteमूरख को तुम राज दियत हो
पंडित फिरत भिखारी
संतों करम की गति न्यारी
(मीराबाई)
bahut kadwa sach hai jeevan ka.gehre marmik bhav bahut badhai.
ReplyDeleteवास्तव में दुखद है और सही स्थिति भी यही है.
ReplyDeleteकोनसे ज़माने की बात कर रहे हो ताऊ जी आजकल तो भिखारी भीख मांगने को बिजनेस कहते हैं .
ReplyDeleteसमाज का सब से बड़ा संकट बेरोजगारी ही है।
ReplyDeleteसीमा जी की कविता पढ़वाने के लिए आभार ताऊ !!
ReplyDeleteआपने तो इस कविता के माध्यम से वर्तमान की सबसे बडी सच्चाई को ही उजागर कर दिया।।
ReplyDeleteबेहतरीन्!!! सीमा जी सहित आपका भी आभार्!!
बात तो बिल्कुल सही है ताऊ जी लेकिन ज्यादातर भिखारी तो भीख ही सिर्फ इसलिए मांगते है कि कमाना नहीं पड़े हालंकि आज कल भीख मांगने में भी मेहनत पूरी करनी पड़ती है |
ReplyDeleteवाह क्या खूब कहा सीमाजी बहुत सटीक अभिवयक्ति है आभार्
ReplyDeleteगज़ब कविता !
ReplyDeleteमार्मिक !
वाह बहुत बढ़िया! भीख तो तब मांगी जाती है जब और कोई काम करने के लायक नहीं है!
ReplyDeletebahut sahi kaha.
ReplyDeleteसत्य बात है.
ReplyDeleteसत्य बात है.
ReplyDeleteपर आज भीख मांगना भी स्वरोजगार मे आगया है.:)
ReplyDeleteपर आज भीख मांगना भी स्वरोजगार मे आगया है.:)
ReplyDeleteपर आज भीख मांगना भी स्वरोजगार मे आगया है.:)
ReplyDeleteवाकई कटु सत्य.
ReplyDeleteवाकई कटु सत्य.
ReplyDeleteभिखारी बोला,
ReplyDeleteअजब जमाना आया है अम्मा,
तरस खाकर रोटी मिल जाती,
काम नहीं मिल पाया है,
यह तो हकीकत है.
भिखारी बोला,
ReplyDeleteअजब जमाना आया है अम्मा,
तरस खाकर रोटी मिल जाती,
काम नहीं मिल पाया है,
यह तो हकीकत है.
भिखारी बोला,
ReplyDeleteअजब जमाना आया है अम्मा,
तरस खाकर रोटी मिल जाती,
काम नहीं मिल पाया है,
यह तो हकीकत है.
दयनिय स्थिति है.
ReplyDeleteदयनिय स्थिति है.
ReplyDeleteभिखारी बोला,
ReplyDeleteअजब जमाना आया है अम्मा,
तरस खाकर रोटी मिल जाती,
काम नहीं मिल पाया है,
काम अगर मिल जाता तो
मैं भीख क्यों मांगता?
सीमा जी हमेशा की तरह आज भी आपकी रचना बहुत उम्दा है... आपकी हर रचना में एक शिक्षा दिखाई देती है....
मीत
बेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteआज लोग रोटी तो दे देते पर काम नही ।
तल्ख हकी़कत को कविता के कोमल रूप में पढ़कर अच्छा लगा, बेहतरीन रचना के बधाई।
ReplyDeleteकविता के माध्यम से लिखा है सार्थक, केवल सत्य ............ अच्छी रचना है ........ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें...........
ReplyDeleteबहुत संजीदा रचना...
ReplyDeleteबिलकुल सही...मेहनतकश से ज्यादा तरस भिखारिओं पर खाया जाता रहा है ..!!
ReplyDeleteyahi sthiti hai aaj ki!
ReplyDeletedukhd aur dayniy!
bheekh mil jaati hai rozgaar nahin..
bhaavpoorn kavita.