अक्सर पहेलियों को कुछ लोग बच्चों का खेल समझते हैं. और बडी धीर गंभीर मुद्रा अख्तियार किये रहते हैं. जैसे कि पहेली मे भाग लेते कोई देख लेगा तो कोई उनके बारे में गलत धारणा बना लेगा.
और कुछ लोग पहेली में भाग लेते हुये ऐसी हरकतें करते हैं जैसे कि यह उनके जीवन मरण का प्रश्न हो? हमारी समझ से दोनों ही गलत हैं. यह जो दूसरे प्रकार के लोग हैं वो भी असली मजा नही ले पाते. पहेली एक टानिक की तरह काम करती है. लेकिन उपरोक्त दोनो प्रकार के लोग असली बात से चूक जाते हैं. आप पहेली को खेल भावना से लें, दूसरों का भी उतना ही सम्मान करें जितना आप चाहते हैं.
नीचे हम विकीपिडिया से एक उद्धरण कोट कर रहे हैं, जो विकी पिडिया से लिया है और उसी का लिंक भी दे रहे हैं. हमारा निवेदन है कि आप अवश्य उसको पढे और देखे कि खेल खेल में इसका क्या प्रभाव पडता है.
पहेली व्यक्ति के चातुरता को चुनौती देने वाले सवाल होते है। जिस तरह से गणित के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, उसी तरह से पहेलियों को भी नज़रअन्दाज नहीं किया जा सकता। पहेलियां आदि काल से व्यक्तित्व का हिस्सा रहीं हैं और रहेंगी। वे न केवल मनोरंजन करती हैं पर दिमाग को चुस्त एवं तरो-ताजा भी रखती हैं।
मार्टिन गार्डनर ने अपनी एक किताब की भूमिका मे पहेलियों के महत्व को इस प्रकार से समझाया है,........
तो शांति और शूकून के साथ पहेलियों में खेल भावना से भाग लेते रहें और अपने दिमाग की क्षमता को पैना करते रहे. हम जल्द ही एक विस्तृत लेख इस विषय पर लिखेंगे.
आपका यह सप्ताह शुभ हो.
-ताऊ रामपुरिया
(मुख्य संपादक)
जिन्दगी में जब किसी मुद्दे पर अनिश्चितता के बादल घेर लें और तुम्हें समझ न आये कि दो रास्तों में से किस रास्ते का चुनाव करें तो ऐसे में एक सिक्का हवा में उछालो. वो इसलिए नहीं कि सिक्के के गिरने पर जो पहलु सामने दिखेगा , वह तुम्हारा जबाब होगा बल्कि इसलिये कि जब तक वो सिक्का हवा में रहेगा तुम जान जाओगे कि तुम्हारा दिल क्या चाहता है. बस, वही रास्ता लेना. इस तरह का सुवचन कहीं पढ़ रहा था अंग्रेजी में. यूँ तो दिमाग से लिए गये फैसले ही जीवन की सफलता का राज हैं किन्तु कई बार दिमाग विरोधाभासी परिस्थितियों में फंस जाता है, तब दिल की बात सुनने में कोई बुराई नहीं. अक्सर हम लेखन में इस तरह की परिस्थितियों में आ जाते हैं कि सोचने लगते हैं, इसे लिखे या न लिखें. क्या असर होगा इसका? कोई बुरा तो नहीं मान जायेगा? किसी को चोट तो नहीं पहुँचेगी इससे? हम दुविधा में पड़े किसी भी निर्णय तक नहीं पहुँच पाते ऐसे में इस तरह का उपाय कारगर सिद्ध हो सकता है. मुझे लगा कि यह बात आप सब से बांटना चाहिये सो कह दी. बाकी अगले सप्ताह, तब तक: अनजान राहें......... राह पकड मैं चल रहा था, मंज़िल थी बस ध्यान मे देखा तब दो राह को बनते, उस पर्ण वन उद्यान मे. एक मैं और सीमा मेरी है, दोनो पर क्या चल पाऊँगा उस पथ की आशा है मुझको , मंज़िल जिस पर पा जाऊँगा. एक वो जो अल्लहड बाला सी, बना ना सकी कोई पहचान दूजी राह कि जिस पर थे अंकित, असंख्य कदमों के निशां. मैने चुनी वो राह जिस पर, घाँस उगी थी हरी हरी शायद अब तक कम ही होंगे, जिसने इसकी थाह धरी. सोचता था फ़िर कभी, यह दूसरी मै राह लूँगा अंर्तमन मे जानता था, कहाँ कभी ये अंज़ाम दूँगा. चल पडा बिन पद चिन्ह की, उस राह का दामन मैं थाम शायद वो ही फ़ैसला था, जिससे पाया अभिनव मुकाम. --The Road Not Taken-Robert Frost का हिन्दी नज़रिया एवं रुपांतरण: समीर लाल |
केवल १ ,९८८ ,६३६ [२००१ की गणना के अनुसार]की जनसंख्या वाले पहाड़ी राज्य जिसकी राजधानी कोहिमा है ,आज चलते हैं उस राज्य की तरफ जिसका नाम है नागालैंड.इसे पूरब का स्विजरलैंड भी कहते हैं. पूर्व में म्यांमार, उत्तर में अरूणाचल प्रदेश, पश्चिम में असम और दक्षिण में मणिपुर से घिरा हुआ नागालैंड 1 दिसंबर, 1963 को भारतीय संघ का 16 वां राज्य बना था. इस राज्य में ११ जिले हैं.नागालैंड की प्रमुख जनजातियां है: अंगामी, आओ, चाखेसांग, चांग, खिआमनीउंगन, कुकी, कोन्याक, लोथा, फौम, पोचुरी, रेंग्मा, संगताम, सुमी, यिमसचुंगरू और ज़ेलिआंग. 'नगा 'भाषा एक जनजाति से दूसरी जनजाति और कभी-कभी तो एक गांव से दूसरे गांव में भी अलग हो जाती है इसीलिये इन्हें तिब्बत बर्मा भाषा परिवार में वर्गीकृत किया गया है. नागा लोग भारतीय-मंगोल वर्ग लोगों में से है.मुख्यत १६ जनजाति के लोग हैं .इन लोगों में संगीत का विशेष महत्व है. बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में इन लोगों के असम के अहोम लोगों संपर्क होने से भी इन लोगों के रहन-सहन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों के आने पर यह क्षेत्र ब्रिटिश प्रशासन के अधीन आया.आजादी के बाद, 1957 में यह क्षेत्र केंद्रशासित प्रदेश बना .उस समय असम के राज्यपाल इसका प्रशासन देखते थे.यह नागा हिल्स तुएनसांग क्षेत्र कहलाया जाने लगा . लेकिन स्थानीय जनता में जब असंतोष पनपने लगा तब 1961 में इसका नाम बदलकर ‘नागालैंड ’ रखा गया और भारतीय संघ के १६ वें राज्य के रूप में विधिवत उद्घाटन 1 दिसंबर, 1963 को हुआ. लगभग 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है.यह गौर करने लायक बात है कि १९८१ के सर्वेक्षण के अनुसार यहाँ शत प्रतिशत गावों में बिजली पहंचा दी गयी है और 900 से अधिक गांवों को सड़कों से जोड़ा गया है. कब जाएँ? - पूरे साल आप कभी भी जाएँ. सारा साल मौसम सुहाना रहता है. दिसम्बर में एक खाब होर्निबल पर्व मनाया जाता है, जिस में राज्य कि सभी जनजातियाँ भाग लेती हैं. दूर दूर से इस उत्सव को देखने लोग यहाँ आते हैं. कैसे जाएँ? - नागालैंड में दीमापुर एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां रेल और विमान सेवाएं उपलब्ध हैं. ज़रूरी सूचना - [एक बार फिर राज्य के पर्यटन विभाग से निश्चित करें]---इस राज्य में प्रवेश के लिए विदेशियों को आर ऐ पी.[प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट ] /पाप और नागरिकों को -इन्नर लाइन permit-की आवश्यकता होगी. एक छोटा सा शुल्क दे कर भारतियों को यह इन्नर लाइन परमिट कोलकाता, दीमापुर, गौहाटी और दिल्ली से मिल जाता है. बिना परमिट के जाने पर राज्य के प्रवेश द्वार[चेक पोस्ट] पर चेकिंग के समय ही बस से उतार दिया जाता है.परमिट के अलावा अगर आप के पास कोई ख़ास पहचान पत्र है तब भी आप प्रवेश पा सकते हैं.[यात्रा प्लान करते समय नियमो की जांच अवश्य कर लें]. delhi में ऑफिस- Deputy Resident Commissioner, Nagaland House, New Delhi Phone No. : +91-11-23012296 / 23793673 यह भी सच है कि यहाँ की सुरक्षा स्थित की भी जाने से पहले जांच कर लेनी चाहिये क्योंकि नागालैंड में मैदानी लोग या फिर गैर नागाओं में असुरक्षा की भावना दिखती है वह उनके प्रवास तक बरकरार रहती है.इस का कारण यहाँ भूमिगत संगठनों का सरकार के समांतर सरकार चलाना है.और बेशक ,इस अलगाववादी राजनीति से नागालैंड राज्य को नुक्सान ही हुआ है. सीजफायर के बावजूद आज भी नागालैण्ड में आप को असुरक्षा महसूस हो सकती है,ऐसा वहां से आये पर्यटक कहते हैं.शाम पांच बजे तक बाज़ार बंद हो जाते हैं. -बाज़ार की बात याद आते ही मुझे यहाँ के बाज़ारों की कुछ ख़ास बातें बताना जरुरी लग रहा है..जो मैदानी इलाकों से आये लोगों के लिए [ख़ासकर मेरे जैसे शाकाहारियों के लिए अनोखी सी लगे.कोहिमा के सब्जी बाज़ार में आप को रंग बिरंगे कीडे मकोडे ,घोंघा आदि बिकते मिल जायेंगे..और तो और पानी की थैलियों में भरे जिंदा मेंढक बिकते दिखेंगे. कुत्ते का मांस बड़े शोक से यहाँ के लोग खाते हैं. इस के अलावा सुअर, गाय, मुर्गा, बकरा, मछली भी इन्हें बहुत प्रिय है. सब्जियों में साग, पत्ते, नागा बैगन, बीन, पत्ता गोभी आदि खाते हैं. पेयजल की बहुत दिक्कत है.पीने का पानी सरकार देती तो है मगर फिर भी कमी ही है. यहाँ तक कि ये लोग बरसात में chhat से टपकने वाले पानी तक को एकत्र कर के रखते हैं. पान और कच्ची सुपारी यहाँ के लोग बड़े शौक से खाते हैं वह चाहे महिला हो या पुरुष .हाँ..एक और ज़रूरी बात...नागालैंड dry area है! मतलब यहाँ मद्यपान निषेध है. हिंदी यहाँ के लोग समझ लेते हैं..थोडी बहुत बोल भी लेते हैं इस लिए भाषा की दिक्कत नहीं आएगी. दीमापुर, राज्य का एक मात्र शहर है जो रेल, सड़क और हवाई मार्ग से देश के अन्य क्षेत्रों से जुड़ा है, इस कारण इसे राज्य का द्वार भी कहते हैं. देखने की जगहें- १-दीमापुर २-किफिरे ३-कोहिमा ४-लोंग्लेंग ५-मोकोकचुंग ६-मों 7-परें ८-फेक ९-तुएंसंग १०-वोखा ११-जुन्हेबोतो अगर नागालैंड की वास्तविक संस्कृति देखनी हो तो ''टूरिस्ट विलेज`` में zarur जाना चाहिये 'कोहिमा वार सिमेटरी' ---------------------------- जो जगह पहेली में 'कोहिमा वार सिमेटरी' दिखाई गयी थी वह कोहिमा शहर में है. कोहिमा एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहीं सब से ऊंची गर्रिसन पहाड़ी पर द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानी सेना से युद्ध के दौरान शहीद हुए देशी और विदेशी अफसरों और जवानों की याद में कोहिमा में''वार सिमेटरी`` बना है .यह एक विश्व प्रसिद्द जगह है. 1944 में चार अप्रैल से 22 जून तक हुए युद्ध में जहां चार हजार भारतीय और ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे, वहीं सात हजार से ज्यादा जापानियों की जानें गई थी. बाद में अर्ल माउंटबेटन ने इस युद्ध को इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध और बर्मा अभियान के लिए निर्णायक क्षण कहा था. यह युद्ध 64 दिनों तक चला था और इसमें जिला आयुक्त के बंगले के टेनिस मैदान में भी हिंसक संघर्ष हुआ था। कोहिमा का युद्ध दो चरणों में हुआ था. पहले चरण में चार अप्रैल से 16 अप्रैल तक जापान ने कोहिमा पर्वतशिखर पर कब्जा करने का प्रयास किया गया , दूसरे चरण में 18 अप्रैल से 22 जून तक ब्रिटिश और भारतीयों ने जापानियों के कब्जे को समाप्त करने के लिए जवाबी हमले किए, युद्ध 22 जून को समाप्त हुआ. बहुत ही सुन्दर तरीके बनाया गया यह क्षेत्र और यहाँ हर कब्र पर शहीद सैनिक के बारे में जानकारी अंकित है. यहाँ प्रवेश करते ही 'दूसरे ब्रिटिश divison ' के एक अफसर की कब्र पर लिखा है :- “ When You Go Home, Tell Them Of Us And Say, For Their Tomorrow, We Gave Our Today ” कुल १४२० शहीदों की कब्रें /यादगार पत्थर इस सेमेट्री में लगे हैं.९१७ हिन्दू और सिखों को उनके रीती के अनुसार डाह संस्कार करने के बाद उनकी याद में भी पत्थर लगाये हुए हैं. सब से कम उम्र का किशोर शहीद सैनिक पंजाब का 'गुलाब' था जिसकी उम्र मरते समय मात्र १६ साल थी! किसी ने सच कहा है..किसी भी राष्ट्र को उसके शहीदों को कभी नहीं भूलना चाहिये. उन सभी अमर जवानों को श्रद्धांजलि के साथ विदा लेती हूँ..अगली बार एक नयी जगह की जानकारी के साथ फिर मिलेंगे. |
आइए आपको दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर से मिलवाएं गूगल सर्च इंजन को कष्ट देते हुए आज यह जानने की कोशिश की गई कि दुनिया का सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर कौन है। नतीजा दिलचस्प रहा और दिल को सुकून देने वाला भी। दिलचस्प इसलिए क्योंकि वरिष्ठतम चिट्ठाकार की उम्र 96 साल है और दिल को सुकून देने वाला इसलिए, क्योंकि ये महाशय भारतीय मूल के हैं। दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग ब्लॉगर हैं, रेंडिल बूटीसिंह औऱ वे अमेरिका के फ्लोरिडा में रहते हैं। हाल ही उनके ब्लॉग को lifebeginsat80.com वेबसाइट की ओर से ग्रेपाउ पुरस्कार के नवाज़ा गया है। ब्रिटिश गुएना में 1, दिसंबर 1912 को जन्मे बूटीसिंग काफी अर्से से ब्लॉगिंग कर रहे हैं। उनके सात बच्चे, 19 पोते-पोतियां और 18 प्रपौत्र-प्रपोत्रियां हैं। इतनी उम्र के बावजूद भी वे ब्लॉग पर पोस्ट को लिखने से लेकर पब्लिश करने का काम स्वयं ही करते हैं। बूटिसिंह की जानकारी यहां से ली जा सकती है और उनके ब्लॉग पर यहां से जाया जा सकता है। क्या आप जानते हैं कि 109 और 108 साल की दो महिला चिट्ठाकारों का निधन पिछले साल ही हुआ है। इनके बारे में अधिक जानकारी फिर किसी अंक में। अगले हफ्ते फ़िर मुलाकात होगी.. हैपी ब्लॉगिंग. |
एक पढ़ा-लिखा बेहद घमंडी व्यक्ति एक नाव में सवार हुआ। अपने अहंकार में चूर वह नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’ नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’ घमंडी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र ऐसे हीँ बेकार गवां दी !’ थोडी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?” नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा। घमंडी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“ मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। अचानक दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया। नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’ घमंडी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’ “फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया। नैतिक मूल्य :- मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए। |
रुद्रप्रयाग रुद्रप्रयाग उत्तराखंड की बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थ यात्राओं में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव है। यह समुद्र तल से 610 मी. की उंचाई पर बसा हुआ है। भगवान रुद्रनाथ का मंदिर यहीं अलकनन्दा व मंदाकिनी के संगम में स्थित है। इसके अलावा शिव और शक्ति की संगम स्थली भगवती का मंदिर भी इस स्थान पर ही है। महाभारत में इस स्थान को रुद्रावत नाम से जाना गया है। केदारखंड में इस स्थान के बारे में लिखा गया है कि - नारदमुनि ने एक पैर में खड़े होकर यहां शिव की तपस्या की थी। उसके बाद शिव ने उन्हें अपने रौद्र रूप के दर्शन दिये थे। शेषनाग के आराध्य देव शिव के इस स्थान पर अनेकों मंदिर हैं। ऐसा माना जाता है कि नागों ने इसी स्थान पर शिव की आराधना की थी और उनसे वरदान मांगा था कि शिव उन्हें अपना आभूषण बनायें। संगम के लिये रुद्रप्रयाग स्टेशन से कुछ दूरी पर एक पैदल मार्ग जाता है। इस संगम स्थान पर श्रृद्धालु स्थान करते हैं और भगवान रूद्र के दर्शन करते हैं तथा शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। यहां शिवलिंग के अलावा गणेश व पार्वती की मूर्तियां भी हैं। रूद्रप्रयाग में एक संस्कृत महाविद्यालय भी है जिसे स्वामी सचिदानन्द जी ने बनवाया था। रुद्रप्रयाग के निकट ही एक स्थान है गुलाबराय। यह वह स्थान है जहां जिम कॉर्बेट ने एक खतरनाक नरभक्षी बाघ को मारा था। जिसका उस समय इस इलाके में बहुत ही आतंक था। जिम कॉर्बेट ने अपनी पुस्तक `मैन इटिंग लैपर्ड ऑफ रुद्रप्रयाग´ इसी बाघ के उपर लिखी थी। रुद्रप्रयाग से 4 किमी. आगे कोटेश्वर महादेव का मंदिर पड़ता है। जिसके दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है। यह मंदिर 20 फीट लम्बी गुफा में है जिसमें पानी प्राकृतिक रूप से टपकता रहता है। इस स्थान में सावन के प्रत्येक सोमवार और शिवरात्री के दिन मेले लगते हैं। इस स्थान से कुछ दूरी पर उमानारायण का मंदिर भी है। |
बदाम की कतली के साथ बनाए ठण्डा पेय पाईनेपल सुप्रीम हर दिन मसालेदार खाने से जी उकता गया होगा. आज मेरा भी मन मिठाई खाने और ठण्डा ज्युस पिने को ललचा रहा है. आगे त्योहार भी आ रहे है. सुना है, मिठाईयो की दुकान मे मिलावटी चीजे बहुत मिलती है. मिठाईयो मे मिलाए जाने वाले "मावा" कैमिकलयुक्त अकृत्रिम रुप से तैयार कर मिठाईयो मे मिलाया जा रहा है. इस मिलावटी मिठाईयो से हम और हमारे बच्चे घातक बिमारीयो से ग्रसित हो सकते है. कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है. सावधान रहे! और कोशिश करे की शुद्ध स्वादिष्ट, व स्वास्थय के लिए सुरक्षित सभी तरह की मिठाईया घर पर ही बनाए. जो सस्ती के साथ-साथ सुरक्षित भी होगी. तो अब मेहमान नवाजी मे पुरे भारत भर मे मिठाई मे सबसे अधिक पसन्द की जाने वाली "बदाम की कतली" बनाएगे. और साथ मे ही "पाईनेपल सुप्रीम" ठण्डा पेय बनाकर स्वाद लेगे. तो आप सभी तैयार है. "बदाम की कतली" के साथ बनाए ठण्डा पेय "पाईनेपल सुप्रीम" बादाम (छिला हुआ पीसा हुआ) 1 किग्राम चीनी .750 ग्राम वर्क थोडा सा ( बेहतर होगा आप वर्क ना लागाऎ तो क्यो की स्वास्थ की दृष्टी हानिकारक है.) चीनी और बदाम मिलाकर गैस पर मन्दी ऑच पर चढाए. तब तक चलाए जब तक गोली ना बन्धे, हाथ के चिपकना नही चाहिऎ. उतारकर कर ठण्डा होने दे. ठण्डा होने पर बडी रोटी बेलकर वर्क लगाए. चाकू से पतग के आकार काटकर सर्व करे, या स्टोर करे. नोट:- इसे आप लोहे की साफ़ कडाई मे बानाऎ तो ज्यादा अच्छी बनेगी मघुमेह वालो के लिऎ बनाना हो तो चीनी की जगह suger free gold या suger free natura (कोई भी बाजार मे उपलब्ध शुगर फ़्रि) ले. काजु कतली बनानी हो तो बदाम की जगह काजु ले. पाईनेपल सुप्रीम फ़्रेश या टिन सन्तरे का रस 1/2 कप फ़्रेश या टिन अनन्नास रस 1-1/2 कप (डेढ कप) अनन्नास एसेन्स 2 बून्द वनीला आइसक्रिम 4 टेबल स्पून बर्फ़ कुटी हुई थोडी सी सभी चीजो को मिलाकर एक मिनट तक मिक्सी मे चलाए. गिलास मे डालकर तुरन्त सर्व करे. जरुर बताऎ की "बदाम की कतली" और "पाईनेपल सुप्रीम" आपको कैसी लगी ? मै बादाम बादाम के बारे मे कहा जाता है कि - "मानव की शान ऑख, पक्षी की पॉख और अमीर की नाक "बादाम" है. प्रकृति ने बदाम को नयन की आकृति देकर इसके गोरव को अधिक ऊचा उठा दिया है. सचमुच बादाम मेवा जगत मे नेत्रोपम है. कागजी बदाम, जो हीरे के समान है. नया खुन बनाती है. मस्तिष्क को अभिनव शक्ती प्रदान करती है. हृदय को बलशाली बनाती है. बदाम को भिगोकर सुबह सुबह दुध के साथ लेने से सत्व पैदा होता है. बच्चो का मस्तिष्क तेज और मजबुत होता है. इसमे विटामीन डी प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है. चलते चलते आपसे मन की बात सबसे अनमोल तोहफ़ा अगर आप किसी को देते है, तो वह है वक्त क्योकि आप किसी को अपना वक्त देते है तो आप अपनी जिन्दगी का वो पल देते है जो लोटकर नही आता...... अब मै आपसे इजाजत चाहुगी। अगले सोमवार एक नई रेसिपी के साथ ढेर सारी बाते करने फिर आऊगी। कहॉ.................................. ? जी हॉ.................................! सही फरमाया आपने...................................! "ताऊ डॉट ईन" पर......................। नमस्कार! प्रेमलता एम सेमलानी |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरू…जल्दी देख..जल्दी.. अबे क्यूं चिल्लाये जा रिया हे? अरे देख वो सेहर आंटी क्या के री हैं? बोल रई हैंगी कि समीर अंकल मारेंगे? अरे नही यार…ला जरा मुझे देखने दे…ले द्ख ले भिया….
चल भिया निकल ले…अपने को नही पिटना.. हां यार..क्या पता इस रामप्यारी की नाक पर ये सिक्का कौन चिपका गया? कहीं अपने माथे आ गई तो….चल उड जल्दी से…… |
ट्रेलर : - पढिये : सुश्री लवली कुमारी से ताऊ की एक सौजन्य भेंट का ब्यौरा!
गुरुवार शाम को ३: ३३ पर ताऊ की सौजन्य भेंट का ब्यौरा : सुश्री लवली कुमारी से...पढना ना भुलियेगा. ताऊ : कोई ऐसी बात जो आप हमारे पाठको से कहना चाहें? लवली जी : जरुर क्योंकि यहाँ सारे पाठक हिंदी ब्लोगर भी है मैं कहना चाहूंगी, अगर आप अपनी विचारधारा को सही समझते हैं और सामने वाले को गलत .. तब भी प्रतिद्वंदी के सामने तकपूर्ण ढंग से अपनी बात रखे, कुतर्कों और पूर्वाग्रहों से बचें. ताऊ : अच्छा हमने सुना है कि एक बार आपने भूत बनकर किसी को बहुत बुरी तरह डरा दिया था? लवली जी :??????????????? याद रखिये गुरुवार शाम ३ : ३३ ताऊ डाट इन पर |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
Gaagar men Saagar.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
i come back after some time......
ReplyDeleteसही बात है ताउजी पहेली हमारे दिमाग को चुस्त और दुरुस्त बनाती है .
ReplyDeleteमनोरंजक और जानकारी पूर्ण पत्रिका.
धन्यवाद
पंकज
हर सोमवार की भाँति ये अंक भी ज्ञानवर्धक रहा।
ReplyDeleteराम-राम!
समीर जी वाली कविता पसंद। नागालैंड के बारे में और जानकारी पाई। जूस को देख मुँह में पानी आया। और एक वृद्ध ब्लोगर के बारे में जानकार अच्छा लगा। कुल मिलाकर पत्रिका को पढकर आनंद आया।
ReplyDeleteताऊ जी आपकी बात तो बिल्कुल सही है। हम भी अपने दिमाग को चुस्त और दुरुस्त बनाने के चक्कर में ही तो पहेली में भाग लेते हैं:)
ReplyDeleteपत्रिका के सभी संपादक अपनी अपनी भूमिका का बहुत ही कुशलता से निर्वहण कर रहे हैं और इसका प्रमाण आज के अंक के रूप में हम सबके सामने है।।
धन्यवाद्!!
sundertam ank bahut achha raha.
ReplyDeleteहमेशा की तरह ज्ञानवर्धक और रोचक।
ReplyDeleteताऊ, पहेली हमारे दिमाग को चुस्त और दुरुस्त बनाती है यह सही बात है लेकिन मेरे साथ तो समस्या यह है कि मै तो कही भी घूमा हुआ नही हू,और घुमक्कड़ी के आपकी पहेली को कोई भी नही सुलझा सकता है ।
ReplyDeleteपत्रिका हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक थी । खास कर रेसिपी तो बहुत अच्छी लगती है ।
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और रोचक अंक.
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और रोचक अंक.
ReplyDeleteबेहद रोचक और संग्रहणीय अंक. सभी को धन्यवाद.
ReplyDeletebehad sundar patrika hai taauji
ReplyDeleteएक और संग्रहणिय अंक . सभी को बधाई.
ReplyDeleteएक और संग्रहणिय अंक . सभी को बधाई.
ReplyDeleteनागालैंड के बारे में इतनी जानकारी पहली बार मिली. बहुत धन्यवाद जी.
ReplyDeleteनागालैंड के बारे में इतनी जानकारी पहली बार मिली. बहुत धन्यवाद जी.
ReplyDeleteखूबसूरत पत्रिका.
ReplyDeleteलैपटॉप दो दिनों से बिगडा हुआ था, इसलिए इस बार की पहेली में भाग नहीं ले पाए.. अफ़सोस रहेगा...
ReplyDelete... पत्रिका शानदार बन पड़ी है...
धन्यवाद.
अपने सभी स्तंभों के साथ
ReplyDeleteभरपूर पठनीय और संग्रहणीय
रोचक सामग्री से लबालब।
ताऊ जी धन्यवाद,
ReplyDelete@"मुझे लगा कि यह बात आप सब से बांटना चाहिये सो कह दी."
ReplyDeleteसमीरजी!आपकी हर बात मै तो बडे ही घ्यान से पढता हू. कुछ बाते मै अपनी डायरी मे भी लिखता हू। काम मे भी उपयोग कर ही लेता हू। आप बॉट रहे है तो फिर हम क्यो ना ले! हम उम्र मे छोटे है तो यह लेना हमे कल्पता है। सुन्दर पर ठोसबन्द बाते बताई है आपने। समीरजी, हम आपका शुक्रिया अदा कर मुल्यवान बातो को अमुल्य तो नही कर सकते है, पर एक तस्वीर सी बन गई है हमारे दिल मे आपकी।
आभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
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ताऊजी! अब आपकी बारी है. आप सलाह ठोक बजाकर बॉटाते है. इसलिए हम भी ठोकबजाकर ग्रहण कर लेते है। आपने एक काहवत तो सुनी होगी "प्यार क्या तो डरना क्या ?" बस वो ही हाल है हमारे और ताऊ डॉट के बीच। बस आप तो अपने लठ को यू ही बजाते रहे - अच्छा लगता है।
ReplyDeleteआभार/ मगल भावनाऐ
मुम्बई-टाईगर
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"मेरा पन्ना" मे -अल्पनाजी वर्मा ने नागालैण्ड के बारे मे विस्तृत बाते उपलब्ध कराई।
ReplyDeleteएक बार नागालेण्ड यात्रा पर गया था। कुछ खास याद तो नही है। हॉ यहॉ 'तोफेमा विलेज' जो कोहीमा से ३५-४० किमी दुर होगा वहॉ गऍ थे । यह स्थान भी शैलानियो के आकर्षण का केन्द्र है। यहॉ प्रतिवर्ष 25-27 फरवरी मास मे पर्यटन विभाग द्वारा फेस्टीवल मनाया जाता है। शायद आपने ''टूरिस्ट विलेज` बताया वो यही होगा।
विशेषकर ग्रुप मे अथवा टूर आपरेटर के साथ यहॉ की यात्रा करना लाभकारी है, जैसा कि अल्पनाजी ने बताया की यहॉ जातिय समस्याओ एवम हिन्सा का एक लन्बा दोर चला है। अल्पनाजी! आपने बडी ही उपयोगी जानकारीया दी है।
फिर से सुन्दर-नागालैण्ड प्रदेश की यात्रा को मन कर रहा है।
आभार/मगल भावनाऐ
मुम्बई-टाईगर
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आशीषजी खण्डेलवाल!
ReplyDeleteवाह! भाई वाह!
सबसे बुजुर्ग ब्लोगर भी भारतीय मूल का!
यह जान तो सिना गर्व से फुल गया.
मै तो अब तक सबसे बुजुर्ग ब्लोगर ताऊ को मानता था।
हेपी ब्लोगिग के अवतारक आपका धन्यवाद इस महत्वपुर्ण जानकारी के लिए।
आभार/ मगल भावनाऐ
मुम्बई-टाईगर
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मेरी कलम से"-Seemaजी Gupta आपने बहूत प्रेरणास्पद कहानी बताई।
ReplyDeleteगर्व अपने लिऍ नही, दुसरे के लिऍ होना चाहिए।
सीमाजी,उस नाव का नाविक अवश्य ही ताऊ ही होगा?
हॉ...... हॉ...... हॉ.......
आभार/ मगल भावनाऐ
मुम्बई-टाईगर
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"हमारा अनोखा भारत" -सुश्री विनीताजी यशश्वी 'रुद्रप्रयाग' के बारे मे पढकर ऍसा अब फाईनली हो गया है कि -" हमारा भारत अनोखा ही है।"
ReplyDeleteचारो दिशाए, चारो ऋतुऍ, भॉति-भॉति के लोग, जातिया, पहनावे, भाषा,रहन-सहन, खान-पान देख लगता है सृष्टी की सारी सस्कृतिया यहॉ मोजुद है।
आप हमेशा ही नई नई जगहो एवम वहॉ के लोक व्यवहार (त्योहारो इत्यादी)की जानकारी देती है जिससे हमे भारत को जानने, समझने, पढने का अवसर मिलता है।
आभार/ मगल भावनाऐ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
"नारीलोक" -प्रेमलता एम. सेमलानी की बदाम की कतली मैने तो चख ली है। 'बदाम की कतली' एवम 'पाईनेपल-सुप्रीम' खिलाने-पीलाने के लिऍ धन्यावाद।
ReplyDelete"मैं हूं हीरामनभाऊ!
ReplyDeleteपता है.........!
हीरामनभाऊ! आप कब से ताऊ की
"लठ वाली बोली" बोलने लग गऍ भाई.....? दुसरो की टॉग खिचाई मे अपने आपको माहीर समझते हो तो कभी हमारी टॉग खिच के बताओ?
सर्प्राईज इनाम दुगा!
हॉ.... हॉ.... हॉ.....
आभार/ मगल भावनाऐ
"ट्रेलर"
ReplyDelete"ट्रेलर" नही ताऊ, पुरी फिल्म देखनी है। लवलीजी के भुत से हम भी डरना चाहते है! लवलीजी, के इन्टरव्यू का बडी ही बेसब्री से ईन्तजार॥
अन्त मे आप सभी का आभार,क्षमा करे कही टिप्पणी मे हृदय दुखाने वाली बात की हो तो।
आभार/ मगल भावनाऐ
मुम्बई-टाईगर
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अच्छा लगा पढ़ कर। कम बार पढ़ा है पर रोचक लगा पहले की तरह।
ReplyDeleteपहली बुझने जितना दिमाग और गूगल पर सर्च करने जितना समय ही ना हो तो कोई क्या खाकर पहेली बुझेगा..समीरजी की सलाह और कविता का क्या कहना.. नागालैंड की अजीबो गरीब सब्जियों की जानकारी रोचक है..रेडिलजी का ब्लॉग लेखन का जज्बा शानदार है..सीमाजी की नैतिक शिक्षा सर माथे पर..प्रेमलता जी की बादाम कतली का रसास्वादन किया..विनीता जी जरिये रुद्र प्रयाग के दर्शन भी कर लिए..अब तो बस लवली जी के साक्षात्कार का इंतिजार है..!!
ReplyDeleteइतने बढ़िया अंक के लिए आभार ..!!
बधाई हो जी ताऊ पत्रीका के सारे स्तम्भ बढिया लगे -- नारीलोक भी एकदम उम्दा !!
ReplyDeleteविविधतापूर्ण और बहुरंगी -आतुर इंतज़ार एक साक्षात्कार का !
ReplyDeleteवाह ताऊ की पत्रिका के क्या कहने.....
ReplyDeleteसभी रसों से भरपूर है यह...
मीत
सभी का बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteमेरा अनोखा भारत में रुद्रप्रयाग के संगम वाली फोटो देवप्रयाग के भगीरथी और अलकनंदा के संगम जैसी दिख रही है, क्या ये फोटो देवप्रयाग का है।
प्रणाम स्वीकार करें
RAAM RAAM TAAU .....
ReplyDeletePATRIK TO HAR HAFTE ..मनोरंजक और जानकारी पूर्ण HOTI JAA RTAHI HAI
raam raam tau...lovely ji ke interview ka intzaar rahega
ReplyDeleteraam raam tau...lovely ji ke interview ka intzaar rahega
ReplyDeleteसमीर जी ..इक बहुत बड़ा मसला होता है ये दोराहा भी....चलिए ..आजमा कर देखने में कोई हर्ज़ नहीं है ..आभार :)
ReplyDeleteअल्पना जी कम शब्दों में अधिक जानकारी दे कर बखूबी समझा देतीं हैं जगह के बारे मैं...रोचक !!
९६ वर्ष के ब्लॉगर ??तो नए जोश से लिखना शुरू कर देतें हैं....ब्लॉग..अभी तो बहुत दूर जाना है ...:)) आशीष जी के खजाने का मोती !!
सीमा जी के शिक्षाप्रद कहानी !!!घमंड तो दुश्मन है इंसान का.... बहुत खूब !!
विनीता जी की पोस्ट का तो इंतज़ार रहता है..मेरी वादियाँ...))यादें ताज़ा हो जाती हैं......कितनी बार गुजरी हूँ यहाँ से...धन्यवाद !!
प्रेमलता जी ठंडाई का तो ज़वाब नहीं..इस दिल्ली के गर्मी में ..शुक्रिया
हरी भरी वसुन्धरा पे नीला नीला ये गगन!...क्या पंक्तियाँ कहीं ज्ञानदत्त जी ने
लवली कुमार दिख तो अति मनभावन रहीं हैं..ये भूत बनने की क्या सूझी ??:)
ताऊ जी व समस्त संपादक मंडल का आभार !!
सम्पादकीय और सभी स्तम्भ अच्चे लगे
ReplyDelete@प्रेमलता जी की बतायी विधि से कतली बनायी ..अच्छी बनी..आप की यह बात अपने साथ ले जा रही हूँ.-सबसे अनमोल तोहफ़ा अगर
आप किसी
को देते है, तो वह है वक्त
क्योकि आप किसी को अपना
वक्त देते है तो
आप अपनी जिन्दगी का वो पल
देते है जो लोटकर नही आता......
--सच में बहुत ही मूल्यवान बात कही है आप ने .