अभी पिछले दिनों एक मित्र ने पूछा कि ताऊ ये क्या लफ़्फ़ाजी करते रहते हो? अरे करना है तो कुछ रचनात्मक करो. अब हमको तो इन दोनों के बीच का संबंध भी नही पता? तो हम क्या करते? रह गये अपना सा मुंह लेके चुपचाप.
हमको चुपचाप देखकर वो मित्र पुरानी कहावत अनुसार सीधे चौके मे ही चले आये. तब हमने पूछा कि आपको समस्या क्या है?
हमने पूछ लिया तो वो अंग्रेजी मे आगये. इन बुद्धिजीवी लोगों मे एक ही समस्या ज्यादा बडी होती है कि इनकी बाते सुनो तो ठीक वर्ना ये सीधे अंग्रेजी बोलने पर उतर आते हैं. हिंदुस्थान में किसी को हिंदी भले ही नही आती हो पर अंग्रेजी जरुर आती है. वो कहने लगे -- ताऊ यू आर जस्ट किलिंग द टाईम...हमने बीच मे ही कह दिया - साहब हमको इस बात पर शख्त से भी शख्त ऐतराज है.
वो बोले - क्यों?
हमने कहा - मेरे आका....समय को आज तक समय ही नही मार पाया तो आपकी हमारी क्या औकात? बस साहब को लाल मिर्ची मुंह मे लग गई. शक्कर फ़ांको भाई...महंगी हुई तो क्या हुआ?
हमारा मेगा प्रोजेक्ट ताऊ की शोले का काम बहुत तेजी से चालू होगया है...इसे भी वो साहब लफ़्फ़ाजी ही कहेंगे... तो हमको इस लफ़्फ़ाजी मे रोल निभाने वाले चंद छोटे बडे किरदारों के लिये कलाकारॊ की आवश्यकता है. कुछ नये किरदार भी रचे गये हैं. इच्छुक सज्जन..जिन्हे तथाकथित लफ़्फ़ाजी मे आनंद आता हो वो आडीशन के लिये संपर्क कर सकते हैं.
ताऊ की शोले का प्रकाशन समय अब से मंगलवार शाम ३:३३ बजे का रहेगा.
महंगाई, स्वाईन फ़्ल्यु और जीवन की तमाम विसंगतियों के बीच अगर हमारी लफ़्फ़ाजी किसी के चेहरे पर एक सैकिंड के लिये भी मुस्कान लाती है तो हम ये लफ़्फ़ाजी सारी उम्र करेंगे. बुद्धिजीवियों को उनकी बुद्धिजिवीता मुबारक.
कबीर साहब कह गये हैं कि
कबीरा खडा बाजार मे,
लिये मुराडा हाथ,
जो घर फ़ूंके आपना,
चले हमारे साथ.
उन्होने यह दोहा ईश्वर भक्ति के संदर्भ मे कहा बताते हैं पर हम तो इसे हमारी लफ़्फ़ाजी के लिये ही आदर्श वाक्य मानते हैं.
आपका आने वाला सप्ताह शुभ हो. लफ़्फ़ाजी करते रहें....मुस्कराते रहे.
-ताऊ रामपुरिया
कभी सोचता हूँ कि हम में कितने लोग स्व-आंकलन के लिए समय निकालते हैं. हमारा सारा समय इस बात में बीता जाता है कि फलाना ऐसा, फलाना वैसा. उसने ऐसा किया, उसने वैसा किया. मगर हम खुद कैसे हैं और हमने क्या किया, इस बात से हम बिल्कुल निष्फिकर रहते हैं. कितना अच्छा हो अगर हम दिन के २४ घंटो में से अपने खुद के आंकलन में १५ मिनट का समय बितायें. अपने चेहरे से नकाब हटायें और अपना असली चेहरा, कम से कम, खुद के सामने तो लायें. खुद सेशरमाना कैसा और खुद से छिपाना कैसा. पिछले २४ घंटों की अपनी गतिविधियों के बारे में मनन करें. मैने क्या किया, मैने क्या लिखा. मैने क्या भला किया. मैने क्या बुरा किया. जो मैने किया यदि कोई दूसरा मेरे साथ करता तो मुझे कैसा लगता.क्या जो मैने किया, उससे बेहतर कुछ कर सकता था आदि आदि. क्या मैं अपने कृत्यों से समाज में, परिवार में, देश में, विश्व में कुछ बेहतर जोड़ रहा हूँ. क्या मेरा कदम सही दिशा में है. इस आंकलन में खुद के प्रति तो कम से कम एकदम ईमानदार रहें. आंकलन के दौरान ही तय करें कि अब मुझे अगले २४ घंटो में क्या करना है जो मुझे आज से बेहतर लगे और मैं जब फिर खुद से मिलूँ तो खुद को आज से बेहतर पाऊँ. आप स्वतः में आये बदलाव को शीघ्र ही अनुभव करेंगे और जल्द ही अपने आपको एक परिवर्तित इंसान पायेंगे, एक बेहतर इंसान. जिसकी सबको जरुरत है, जो सबका चहेता है. जो खुद अपना आपकोचाहेगा. सभी इस तरह से अगर स्व-आंकलन कर बेहतरी की ओर कदम बढ़ायें तो कल का संसार कितना सुन्दर होगा, जरा सोचिये तो!! बाकी अगले सप्ताह: जिन्दगी किस किस राह से बहती है किसने जाना!! वो नकाब में रहती है किसने जाना!! -समीर लाल 'समीर' |
दिल्ली का लाल किला - दिल्ली शहर का सर्वाधिक प्रख्यात पर्यटन स्थल. भारत की यह ऐतिहासिक इमारत या कहिये धरोहर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है.और यह युनेस्को विश्व विरासत स्थल में भी चयनित है.लाल पत्थरों से बने होने के कारण इसे लाल किला कहते हैं और यह दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली भव्य महलों में से एक माना जाता है. भारत का इतिहास भी इस किले के साथ काफी करीब से जुड़ा है, यहीं से ब्रिटिश व्यापारियों ने अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर को पद से हटाया था और तीन शताब्दियों से चले आ रहे मुगल शासन का अंत हुआ था. यहीं से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने घोषणा की थी कि अब भारत उपनिवेशी राज से स्वतंत्र है.यही कारण है कि हर साल 'स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त के दिन इसी की प्राचीर से तिरंगा लहराया जाता है. इस किले के बारे में कौन भारतीय नहीं जानता होगा.थोड़ा सा विस्तार में आज मैं आप को बताती हूँ. जानते हैं इस के इतिहास के बारे में- यमुना नदी के किनारे बना लाल किला बादशाह शाहजहाँ की नई राजधानी, शाहजहाँनाबाद का महल था.यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। मुगल शासक शाहजहां ने 11 वर्ष तक आगरा से शासन करने के बाद जब तय किया कि राजधानी को दिल्ली लाया जाए और तब यहां 16th April 1639 में लाल किले की नींव रखी गई.इसे बनाने में ९ साल क समय और उस समय के एक करोर रुप्ये खर्च हुए बताते हैं.16th April 1648 में इसके उद्घाटन के बाद महल के मुख्य कक्ष भारी पर्दों से सजाए गए और चीन से रेशम और टर्की से मखमल ला कर इसकी सजावट की गई थी. लगभग डेढ़ मील के दायरे में यह किला अनियमित अष्टभुजाकार आकार में बना है. इसके दो प्रवेश द्वार हैं, लाहौर और दिल्ली गेट. यमुना नदी के कि्नारे स्थित इस किले के निर्माण के बारे में कुछ मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी बताते हैं, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह किला बनवाया था. लालकोट हिन्दु राजा पृथ्वीराज चौहान की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी. एक अन्य मत के अनुसार यह किला ’सलीमगढ के किले [ जिसे इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था ] का ही विस्तार है.शाह्जहान ने उसी पुराने किले को बस नया रुप दिया.11 मार्च 1783 को, सिखों ने लालकिले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम पर कब्जा़ कर लिया.नगर को मुगल वजी़रों ने अपने सिख साथियों को समर्पण कर दिया था. यह कार्य सरदार बघेल सिंह धालीवाल के कमान में हुआ. कह्ते हैं इस किले के परिसर में ३००० लोग रहा करते थे.1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, किले को ब्रिटिश सेना के मुख्यालय के रूप में प्रयोग किया जाने लगा . इस सेना ने इसके करीब अस्सी प्रतिशत म्ण्डपों तथा उद्यानों को नष्ट कर दिया और इस परिसर के रिहायशी भाग भी ! इन नष्ट हुए बागों एवं बचे भागों को पुनर्स्थापित करने की योजना सन 1903 में उमैद दानिश द्वारा चलाई गई थी.1947 में स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना ने इस किले का नियंत्रण ले लिया . दिसम्बर 2003 में, भारतीय सेना ने इसे भारतीय पर्यटन प्राधिकारियों को सौंप दिया था. ---और यह बात तो सभी जानते हैं कि इस किले पर दिसम्बर 2000 में लश्कर-ए-तोएबा के आतंकवादियों द्वारा हमला भी हुआ था. जानते हैं इस किले के बारे में कुछ और--: यह भी सुनते हैं कि इस किले का परिरूप कुरान में वर्णित स्वर्ग या जन्नत के अनुसार बना है. यहाँ लिखी एक आयत कहती है,’यदि पृथ्वी पर कहीं जन्नत है, तो वो यहीं है, यहीं है, यहीं है’. बेशक महल की योजना मूलरूप से इस्लामी रूप में है, परंतु प्रत्येक मण्डप अपने वास्तु घटकों में हिन्दू वास्तुकला को प्रकट करता है,वहीं लालकिले का प्रासाद, शाहजहानी शैली का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करता है. लाल किले में उच्चस्तर की कला एवं विभूषक कार्य दृश्य है, यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला संश्लेषण हैं.लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर एवं दीवार इसकी चारदीवारी बनाती है जो कि 1.5 मील (2.5 किमी) लम्बी है, और ऊँचाई 60 फीट (16मी) नदी किनारे की ओर से, लेकर 110 फीट (33 मी) ऊँची शहर की ओर , तक है! कह्ते हैं इसके मास्टर प्लान को बनाने वाले अहमद और हमीद ने इसकी योजना एक 82 मी की वर्गाकार ग्रिड (चौखाने) का प्रयोग कर बनाई गई होगी. जैसा कि पहले मैं लिख चुकी हूं कि इस किले के मुख्य दो द्वार हैं-लाहौर और दिल्ली गेट. 1-लाहौर गेट से दर्शक छत्ता चौक में पहुंचते हैं, जो एक समय शाही बाजार हुआ करता था .इसमें दरबारी जौहरी, लघु चित्र बनाने वाले चित्रकार, कालिनों के निर्माता, इनेमल के कामगार, रेशम के बुनकर और विशेष प्रकार के दस्तकारों के परिवार रहा करते थे. शाही बाजार से एक सड़क नवाबखाने को जाती है, जहां दिन में पांच बार शाही बैंड बजाया जाता था. यह बैंड मुख्य महल में शाही परिवार के प्रवेश का संकेत भी देता था और शाही परिवार के अलावा अन्य सभी अतिथियों को यहां झुक कर जाना होता है. २-किले का दीवाने खास - यह निजी मेहमानों के लिए था.शाहजहां के सभी भवनों में सबसे अधिक सजावट वाला 90 X 67 फीट का दीवाने खास सफेद संगमरमर का बना हुआ मंडप है जिसके चारों ओर बारीक तराशे गए खम्भे हैं.बेहद खूबसूरत!इनमें सुवर्ण पर्त भी मढी है, तथा बहुमूल्य रत्न जडे़ हैं.इसकी मूल छत को रोगन की गई काष्ठ निर्मित छत से बदल दिया गया है! कार्नेलियन तथा अन्य पत्थरों के पच्चीकारी मोज़ेक कार्य के फूलों से सजा दीवाने खास एक समय प्रसिद्ध मयूर सिहांसन के लिए भी जाना जाता था, जिसकी कीमत 6 मिलियन स्टर्लिंग थी! लाल किले पर 1739 में फारस के बादशाह नादिर शाह ने हमला किया था और वह अपने साथ यहां से स्वर्ण मयूर सिंहासन ले गया था, जो बाद में ईरानी शहंशाहों का प्रतीक बना [आज भी इरान में है]. ३-नक्कारखाना- लाहौर गेट से छ्त्ता चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूर्वी ओर नक्कारखाना बना है. यह संगीतज्ञों हेतु बने महल का मुख्य द्वा्र है. ४- दीवान-ए-आम- इस गेट के पार एक और खुला मैदान है, जो कि दीवाने-ए-आम का आन्गन हुआ करता था। यह जनसाधारण हेतु बना वृहत प्रांगण था, एक अलंकृत सिंहासन का छज्जा दीवान की पूर्वी दीवार के बीचों बीच बना था जो कि बादशाह के लिये बना था. ५- ज़नाना महल- महल के दो दक्षिणवर्ती प्रासाद महिलाओं हेतु बने हैं, जिन्हें जनाना कहते हैं: मुमताज महल, जो अब संग्रहालय बना हुआ है, एवं रंग महल, जिसमें सुवर्ण मण्डित नक्काशीकृत छतें एवं संगमर्मर के फ़र्श वाले हमाम बने हैं, जिसमें नहर-ए-बहिश्त से जल आता है. ६-शाही हमाम, -जो कि राजसी स्नानागार था, यह तुर्की शैली में बना है. इसमें संगमरमर में मुगल अलंकरण एवं रंगीन पाषाण हैं जो किसी कालीन के होने का आभास देते हैं. ७-मोती मस्जिद हमाम के पश्चिम में मोती मस्जिद है,यह सन् 1659 में , बनाई गई थी, यह औरंगजे़ब की निजी मस्जिद थी. यह एक छोटी तीन गुम्बद वाली, तराशे हुए सफ़ेद संगमर्मर से बनी है, इसका मुख्य फलक तीन मेहराबों से युक्त है, एवं आंगन में उतरता है. ८-हयात बख़्श बाग- किले के उत्तर में एक बहुत बडा उद्यान है जिसे ’हयात बख्श बाग" कहते हैं, इसका अर्थ है जीवन दायी उद्यान! यह द्विभाजित है। एक मण्डप उत्तर दक्षिण कुल्या के दोनों छोरों पर स्थित हैंएवं एक तीसरा बाद में अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वारा 1842 बनवाया गया था. यह दोनों कुल्याओं के मिलन स्थल के केन्द्र में बना है. ९-नहर-ए-बहिश्त- राजगद्दी के पीछे की ओर शाही निजी कक्ष स्थापित हैं, इस क्षेत्र में, पूर्वी छोर पर ऊँचे चबूतरों पर बने गुम्बददार इमारतों की कतार है, जिनसे यमुना नदी दिखायी देती है. ये मण्डप एक छोटी नहर से जुडे़ हैं, जिसे नहर-ए-बहिश्त कहते हैं, जो सभी कक्षों के मध्य से जाती है, किले के पूर्वोत्तर छोर पर बने शाह बुर्ज पर यमुना से पानी चढा़या जाता है, जहाँ से इस नहर को जल आपूर्ति होती है. सच में , अपने वैभव काल में यह स्थान कितना मनोरम होता होगा. आजकल यह किला पर्यट्कों के लिये खुला है या नहीं--मुझे इसकी जानकारी नहीं है.पहले यहां होने वाले रंगारंग कार्यक्रमों की बहुत धूम हुआ करती थी.हर शाम Light and Sound show भी दिखाया जाता था. इसके साथ यह सफ़र यहीं समाप्त करती हूं. आप सभी को स्वन्त्रता दिवस की बहुत सारी शुभकामनायें. |
इस मंदिर की और जानकारी इस वेबसाइट से ली जा सकती है। अगले हफ्ते आपसे फ़िर मिलेंगे.. तब तक के लिए हैपी ब्लॉगिंग. |
लकडी का कटोरा एक कमजोर बूढ़ा आदमी अपने बेटे, बहु, और एक चार वर्षीय पोते के साथ रहता था. बुढे आदमी के हाथ पैर कांपते थे और दृष्टि भी कमजोर हो चली थी. रात के भोजन के लिए सब लोग टेबल पर एकत्रित हुए. कमजोर दृष्टि और कांपते हाथों ने उस बुढे व्यक्ति के लिए खाना मुश्किल बना दिया. उसकी चम्मच से मटर जमीन पर लुढक गये. जब उसने दूध का ग्लास उठाया तो वह मेज़पोश पर गिर गया. बेटे और बहू इस गंदगी से नाराज हो गए. "हमे दादा के बारे में कुछ करना चाहिए," बेटे ने कहा. तो दोनों पति और पत्नी ने कोने में एक छोटी सी मेज निर्धारित की अपने पिता के लिए जबकि परिवार के बाकी लोगो ने खाने की मेज पर रात के भोजन का आनंद लिया वहाँ, दादा ने अकेले खाया. अपने बुढापे की वजह से उस बुढे व्यक्ति ने कांच के एक दो कटोरी और प्लेट तोड़ दिए थे तो अब उसे खाना लकडी की कटोरी में दिया जाने लगा. कभी कभी जब परिवार दादा की तरफ देखता था, तो अकेले खाना खाते हुए उसकी आँखों में आँसू होते थे . फिर भी, बहु और बेटे के पास उसे चेतावनी देने के सिवा कुछ नही होता था. जब भी वह एक कांटा या खाना गिरा देता था . चार साल का पोता ये सब कुछ चुप्पी में देखा करता था. एक शाम पिता ने अपने बेटे को लकड़ी के कुछ टुकडों के साथ खेलते देखा , पिता ने प्यार से पूछा - बेटे तुम क्या कर रहे हो ??? बेटे ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा ना उस वक़्त के लिए खाना खाने के लिए आपके और माँ के लिए एक छोटी कटोरी बना रहा हूँ, बेटा मुस्कुराया और वापस काम पर चला गया. बेटे के इन शब्दों ने माँ बाप दोनों को अवाक कर डाला और उनकी आँखों से आंसू बहने लगे हालाँकि कोई कुछ नहीं बोला मगर दोनों जानते थे की अब क्या करना है. उसी शाम पिता ने दादा का हाथ पकडा और परिवार के साथ खाने की टेबल पर ले गया. उसके बाद जब तक वह बुढा व्यक्ति जिया उसने अपने परिवार के साथ ही मिल कर खाना खाया और आश्चर्य जनक रूप से दूध गिरने पर खाना बिखरने पर या बर्तन टूटने पर भी बेटे या बहु ने उन्हें कुछ नहीं कहा. बच्चे उल्लेखनीय रूप से सब कुछ महसूस करते हैं, उनके कान सब कुछ सुनते हैं और आँखे जो देखती हैं वही संदेश उनके दिमाग तक पहुंच कर अपनी प्रकिया देता है. अगर वो घर के बडो को धैर्य पूर्वक खुशनुमा माहोल परिवार के लिये बनाते देखते हैं तो , उनका भी रवैया जीवन के प्रति वैसा ही हो जाता है. कहानी का नैतिक मूल्य " बुद्धिमान अभिभावक ही यह एहसास कर पाते है की उनके द्वारा ही हर दिन बच्चे के भविष्य के लिए नीव रखी जा रही है. |
नैनीताल का वर्णन स्कंद पुराण के महेश्वर खंड में त्रिऋषि यानी तीन ऋषि - अत्रि, पुलस्त्य और पुलह के सरोवर के रूप में आता है। कथा है कि ये संत यात्रा करते-करते जब गागर पहाड़ी श्रृंखला की उस चोटी पर पहुंचे जिसे अब चाइना पीक के नाम से जाना जाता है, तो उन्हें प्यास लग गयी। उस स्थान में पानी नहीं था और तीनों ऋषि प्यास से बेहाल थे। तब उन्होंने मानसरोवर का ध्यान किया और जमीन में बड़ा से छेद कर दिया। वह छेद मानस जल से भर गया। इस प्रकार उनके द्वारा सृजित इस झील का नाम त्रिऋषि सरोवर पड़ा। यह भी मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से वही फल प्राप्त होता है जो मानसरोवर में स्नान करने से मिलता है। बाद में इस झील का नाम नैनी झील उस देवी के नाम में पड़ा जिसका मंदिर इस झील के किनारे स्थित है। 1880 के भूस्खलन में यह मंदिर नष्ट हो गया। जिसे फिर दोबारा उस स्थान पर बनाया गया जहां यह इस समय स्थित है। इस झील के बारे में सर्वप्रथम 1841 के अंत में कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले अखबार `इंग्लिशमैन´ में छपा था। जिसमें यह लिखा गया था कि - `अल्मोड़ा क्षेत्र में झील की खोज´ इसके बाद बैरन ने`पिलिग्रम´ नाम से `आगरा अखबार´ में इस झील का विवरण दिया गया था। बैरन ने आगे लिखा था कि - वह नैनीताल जाते समय खैरना से होकर गया और लौटा रामनगर के रास्ते से। उसने यह भी लिखा था कि - पहले स्थानीय लोग उसे झील दिखाने से लगातार इंकार करते रहे क्योंकि इस झील का उनके लिये बेहद धार्मिक महत्व था और उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि यहां कोई झील नहीं है। पर बाद में बड़ी मुश्किल से स्थानीय लोग मान गये। वर्ष 1842 में बैरन फिर यहां वापस आया। इस समय तक करीब आधा दर्जन अर्जियां भवन निर्माण के लिये अधिकारी के पास पहुंची और उस समय के कमिश्नर लुशिंग्टन ने एक छोटा सा भवन बनाने की शुरूआत की। 1842 से पहले इस स्थान में एक झोपड़ी भी नहीं थी। नैनी देवी की पूजा के लिये वर्ष में एक बार आस-पास गांव के लोग यहां इकट्ठा होते थे और एक छोटे से मेले का आयोजन भी होता था। जिसे आज भी नंदादेवी मेला के रूप में मनाया जाता है। मिस्टर लुशिंग्टन ने ही यहां बाजार, सार्वजनिक भवन और एक सेंट जोन्स गिरजाघर का निर्माण करवाया। मिस्टर बैरन ने इस झील में पहली बार नौका को डाला और झील में नौकायान की शुरूआत की। |
कारकोलम्ब karakolumbu हम साउथ इण्डिया के बडे ही लजिज स्वादिष्ट,पोष्टिकता भरे खाने को हमेशा ही पसन्द करते है. जैसा की आप जानते है साउथ इण्डियन फ़ूड मे चावल की उपस्थित्ता अधिक मात्रा मे पाई जाती है. अमुमन देश के कोने-कोने मे साउथ डीसेज का बोलबाला है- इटली-वडा, डोसा, उत्थपम्म, तो हम खाते ही रहते है. यहा का फ़ेमस सापाड sapad (खाना) खाना हो तो जब भी चन्नैई जाऎ तब नेशनल होटल साहूकार पेठ, एवम माऊन्टरोड, कोईम्बटूर मे अन्न्पुरणा होटल मे जरुर तमिल सापाड मगाकर खाऎ. तमिल सापाड मे रोटी नही होती है चावल होते है व अनेक तरह कि सब्जिया होती है.उसमे चावल मिलाकर खाऎ जाते है. जैसे हमारॆ यहा एक चपाती व अनेक सब्जिया होती है. तो आज हम तमिल सपाड (खाना) मे से एक सब्जी "कार+कोलम"(karakolumbu) कार का अर्थ है मसालेदार, चटपटी, और "कोलम" का अर्थ है सब्जी, तो आज हम बनाकर देखते है. कारकोलम्ब karakolumbu सामग्री आलू 2 प्याज 3 टमाटर 4 सीग (drumstick) 5 piece लालमिर्च पाऊडर 2 tsp धनीया पाऊडार 2 tsp हलदी 1/2 tsp ईमली 75 ग्राम कच्चा नारीयल थोडा सा (कदकस किया हूआ) लहसुन 4 कली अदरक 1/2 इन्च का टुकडा नमक स्वादअनुसार. कारकोलम्ब karakolumbu बनाने की विधी अब कढाई मे तेल गर्म करे.जीरा- हीन्ग डाले. अब प्याज के छोटे piece करके तेल मे भूने. आलू के छोटे piece और सीग के (drumstick) medium piece डालकर भूने. इन्हे थॊडा पकने दे. फ़िर टमाटर-लहसुन-अदरक का पेस्ट बनाकर इसमे मिला दे. अब इसमे ईमली का पानी डाल दे, और पकने दे. अब सुखा मसाला जो हम बनाकर रखे थे वो डाले, चम्मच से हिलाऎ। अन्त मे पिसा हुआ नारीयल डाले। अब दस-पन्द्रह मिनट तक पकने दे. अब तैयार है हमारा मसालेदार कारकोलम्ब. गरम गरम चावल के साथ मिलाकर खाऎ या चपाती के साथ, सम्भलकर कही कारकोलम्ब के साथ ऊगली ना चबाले आप! सुखा मसाला बनाने की विधि साबूत धनिया 4 tsp, साबूत लालमिर्च 4-5, मेथी दाना 15-20 piece, चना दाल 2 tsp जीरा 1 tsp इन सभी सामग्रीयो को बिना तेल के सूखी कढाई मे भुने. बाद मे मिक्सी मे डालकर बरबरा पीस ले. नोट-: ईमली एवम मिर्च स्वादनुसार ज्यादा या कम कर सकते है आज हम अपने बालो कि समस्याओ को घरेलू इलाज से निपटेगे। बालो का समय से पहले सफेद होना एक चम्मच ऑवला चूर्ण दो घूट पानी के योग से सोते समय अन्तिम वस्तु के रुप मे ले। असमय बाल सफेद होने और चेहरे की कान्ति नष्ट होने पर जादू का सा असर करता है। ( साथ ही आपके स्वर को मधुर और शुद्ध बनता है) सुखे ऑवला के चूर्ण को पानी के साथ लेई बनाकर इसका सिर पर लेप करने तथा पॉच से दस मिनट बाद केशो को जल से धो लेने से बाल सफेद होने और गिरने बन्द हो जाते है। सप्ताह मे दो बार तीन मास तक यह प्रयोग करके देखे। बालो का गिरना केशो के झडने या टुटने पर सिर मे निम्बू के रस मे दो गुना नारियल तेल मिलाकर उगलियो की अग्रिम पोरो से आहिस्ता-आहिस्ता केशो की जडो मे मालिश करने से आपके केश झडने बन्द हो जाऍगे, इससे बालो से सम्बन्धित सभी रोग भी दूर हो जाएगे। सिर मे रुसी नारीयल तेल 100 ग्राम, कपुर 4 ग्राम, दोनो मिलाकर शीशी मे रख ले। दिन मे दो बार स्नान के बाद केश सूख जाने पर और रात मे सोने से पहले सिर पर खूब मालिश करे। दूसरे ही दिन से रुसी(सफेद पतली भूसी की तरह) मे लाभ प्रतित होगा। जाते जाते................... गीत तो थे हम स्वर नही दे पाये, प्रशन तो थे,हम उत्तर नही दे पाये। परिन्दो के विचारो का क्या दोष ? हम ही उन्हे उडने का अवसर नही दे पाये॥ अब मुझे आज्ञा दीजिए अगले सप्ताह अल्पनाजी के सुझाव पर कम समय मे बनने बाले नास्ते की रेसिपि के साथ मिलेगे तब तक नमस्कार! प्रेमलता एम सेमलानी |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरू..क्या कर रिया हे यार? अबे क्या तेरे को बुखार चढ गिया? जो चिल्लाये जा रिया हे पेलवान? अरे भिया नाराज क्युं हो रिये हो? ये देखो अपने वकील साहब की नजरें आजकल उल्टी सीधी जगह जाकर टिक रही हैं. ला दिखा पेलवान मुझको जरा जल्दी से……ले देख ले.
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ट्रेलर : - इस सप्ताह ताऊ के साथ तीन पांच कर रहे हैं श्री संजय बैंगाणी
गुरुवार शाम को ३: ३३ पर ताऊ के साथ तीन पांच करेंगे श्री संजय बैंगाणी....पढना ना भुलियेगा. ताऊ : कल रात को आपने कौन सी सब्जी खायी थी? संजय बैंगाणी : आज सुबह की सब्जी भी याद नहीं. ताऊ : धर्मपत्नि से आखिरी बार डांट कब खायी थी? संजय बैंगाणी : रोज रोज होने वाली बाते कौन याद रखे? याद रखिये गुरुवार शाम ३ : ३३ ताऊ डाट इन पर |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
वाह ताऊ... बहुत शानदार अंक..
ReplyDelete"महंगाई, स्वाईन फ़्ल्यु और जीवन की तमाम विसंगतियों के बीच अगर हमारी लफ़्फ़ाजी किसी के चेहरे पर एक सैकिंड के लिये भी मुस्कान लाती है तो हम ये लफ़्फ़ाजी सारी उम्र करेंगे. बुद्धिजीवियों को उनकी बुद्धिजिवीता मुबारक..."
सही है.. इंतजार करते है कल शोले का..
"अभी पिछले दिनों एक मित्र ने पूछा कि ताऊ ये क्या लफ़्फ़ाजी करते रहते हो? अरे करना है तो कुछ रचनात्मक करो. अब हमको तो इन दोनों के बीच का संबंध भी नही पता? तो हम क्या करते? रह गये अपना सा मुंह लेके चुपचाप."
ReplyDeleteताऊ।
इस बिरादरी में हम भी शामिल हैं।
हमेशा की तरह पोस्ट बढ़िया है।
पूरी टीम को बधाई।
क्या बात है ताउजी लफ्फाजी में तो बहुत आनंद आता है .
ReplyDeleteआडिसन देने कहा आना होगा ?
पत्रिका शानदार !
acchi lagi fir se aapki patrika taau...
ReplyDeletenaarilok par click karne se samir ji ka chittha khul raha hai...kripya link check kar lein.
उन्होने यह दोहा ईश्वर भक्ति के संदर्भ मे कहा बताते हैं पर हम तो इसे हमारी लफ़्फ़ाजी के लिये ही आदर्श वाक्य मानते हैं.
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह..आपके इन्ही परम वाक्यों के तो हम कायल हैं. ये ही सुनने पढने ही तो हम यहां आते हैं. बस जीवन मे यही एक कमी है जो आप यहां पूरी करते हो. आप तो और जोर शोर से करो जी ऐसी लफ़्फ़ाजी...वो छुपकर पढेंगे ..हम सरे आम पढते हैं...
उन्होने यह दोहा ईश्वर भक्ति के संदर्भ मे कहा बताते हैं पर हम तो इसे हमारी लफ़्फ़ाजी के लिये ही आदर्श वाक्य मानते हैं.
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह..आपके इन्ही परम वाक्यों के तो हम कायल हैं. ये ही सुनने पढने ही तो हम यहां आते हैं. बस जीवन मे यही एक कमी है जो आप यहां पूरी करते हो. आप तो और जोर शोर से करो जी ऐसी लफ़्फ़ाजी...वो छुपकर पढेंगे ..हम सरे आम पढते हैं...
ताऊ जी बहुत सुंदर पत्रिका. सभी को धन्यवाद.
ReplyDeleteआपकी शोले की टिकट बुक करवा ली हैं. कल आते हैं पहला शो देखने .
ताऊजी रामराम. बहुत बढिया अंक हमेशा की तरह. कल की शोले का भी ट्रेलर दिखा देते तो बडा मजा आता..खैर अब कल देखते हैं.
ReplyDeleteताऊजी रामराम. बहुत बढिया अंक हमेशा की तरह. कल की शोले का भी ट्रेलर दिखा देते तो बडा मजा आता..खैर अब कल देखते हैं.
ReplyDeleteताऊजी रामराम. बहुत बढिया अंक हमेशा की तरह. कल की शोले का भी ट्रेलर दिखा देते तो बडा मजा आता..खैर अब कल देखते हैं.
ReplyDeletebahut sundar patrika taauji. kal sholay ka intajar rahega. pichhale ki tarah jordar hoga yah bhi.
ReplyDeleteहर बार की तरह बहुत सुंदर पत्रिका. सभी को बधाई.
ReplyDeleteहर बार की तरह बहुत सुंदर पत्रिका. सभी को बधाई.
ReplyDeleteहर बार की तरह बहुत सुंदर पत्रिका. सभी को बधाई.
ReplyDeleteसमीरलालजी ने कह ही दिया है तो बात मान कर मनन करने बैठ गए है कि कहीं लफ्फाजी तो नहीं करते है?
ReplyDeleteनियमीत इस तरह पत्रिका सजा सवाँर कर प्रकाशित करना श्रम का काम है. आपको बधाई व लेखकों को शुभकामनाएं.
हर बार की तरह संग्रहणीय अंक.. हैपी ब्लॉगिंग.
ReplyDeleteवाह ताउजी
ReplyDeleteशानदार अंक
आपका आने वाला सप्ताह शुभ हो. लफ़्फ़ाजी करते रहें....मुस्कराते रहे...
bahut badhiya taau. kal shole ka intajar karate hai.
ReplyDeletebahut badhiya taau. kal shole ka intajar karate hai.
ReplyDeleteवाह ताऊ..पत्रिका के सभी स्तंभ लाजवाब हैं. आप लोगों की मेहनत साफ़ झलकती है. और अब तो शोले का इंतजार है कल.
ReplyDeleteताउ हमको भर्ती कर्लो आपकी फ़िल्म मे. फ़ोकट मे काम करुंगा. बोलो मंजूर हो तो?
ReplyDeleteताउ हमको भर्ती कर्लो आपकी फ़िल्म मे. फ़ोकट मे काम करुंगा. बोलो मंजूर हो तो?
ReplyDeleteपरिवार के हर सदस्य के लिए कुछ ना कुछ होता है इस पत्रिका में। बहुत उम्दा है जी।
ReplyDeleteचिंता न करें मेरे जैसे बहुत से मूढ़ हैं जो इस ब्लाग पर लफ़्फ़ाजी पढ़ने ही आते हैं और वह भी खुशी-खुशी, बिन बुलाए...पठनीय अंक के लिए आभार.
ReplyDeleteपत्रिका बहुत सुंदर और ज्ञान वर्धक है। मुझे नहीं पता था मेरी टिप्पणी इस तरह पत्रिका में स्थान पा जाएगी।
ReplyDeleteताऊ अपनी लफ्फाजी चालू रखे ! में तो कहूँगा लफ्फाजी की रफ्तार कुछ और बढाए , बुद्धिजीवियों की परवाह किये बिना !
ReplyDeleteबढियां अंक -अब घोडा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या !
ReplyDelete"महंगाई, स्वाईन फ़्ल्यु और जीवन की तमाम विसंगतियों के बीच अगर हमारी लफ़्फ़ाजी किसी के चेहरे पर एक सैकिंड के लिये भी मुस्कान लाती है तो हम ये लफ़्फ़ाजी सारी उम्र करेंगे. बुद्धिजीवियों को उनकी बुद्धिजिवीता मुबारक!!!"
ReplyDeleteबिल्कुल खरी बात ताऊ!
जीवन में ये लफ्फाजी ही तो है, जिसके जरिये इन्सान तनावभरी इस जिन्दगी में दो पल सुकून से सुकून से पाता है,लेकिन ये भी लोगों की आँख में खटकने लगी। कमाल है!!
ताऊ हमें तो ये लफ्फाजी घणी पसन्द है! दिल खोल के कीजिए!
महंगाई, स्वाईन फ़्ल्यु और जीवन की तमाम विसंगतियों के बीच अगर हमारी लफ़्फ़ाजी किसी के चेहरे पर एक सैकिंड के लिये भी मुस्कान लाती है तो हम ये लफ़्फ़ाजी सारी उम्र करेंगे.....
ReplyDelete....सच है ताऊ, और यही लफ्फाजी तो हमें पसंद है, तभी तो कहीं और जाये ना जाए, आपके ब्लॉग पर हाजिरी देने जरूर चले आते हैं.
" इनकी बाते सुनो तो ठीक वर्ना ये सीधे अंग्रेजी बोलने पर उतर आते हैं. "
ReplyDeleteबच गए ताऊ! कुछ लोग तो सीधे गाली-गलौच पर आ जाते हैं। आखिर उम्र का भी तो कुछ तकाज़ा है कि नै :)
अब कोई कुछ भी कहे ....हमको तो लफ्फाजी भी पसंद है..बुद्धि से तो वैसे भी अपना जनम जनम का बैर है ..बुद्धिजीवियों को उनकी बुद्धि मुबारक.
ReplyDeleteसमीर जी ठीक ही कहते हैं अधिकांश लोगों की जिंदगी नकाब में ही गुजरती है ...लाल किला हमारे भारत की शान ...अब तक फ़िल्मी कलाकारों के मंदिर का ही पता था ..गांधीजी का भी मंदिर है ..जानकार अच्छा लगा !! सीमाजी की सीख का क्या कहना ..प्रेमलता जी की रेसिपी का कविता के साथ स्वाद लेते हुए नैनीताल घूमना रोचक है ...इतनी जानदार पत्रिका के लिए बहुत बधाई..!!
सभी स्तम्भ अच्छे लगे.
ReplyDeleteप्रेमलता जी नाश्ते की रेसेपी का इंतज़ार रहेगा.
पाक विधियोंकेसाथ आप की दी हुई टिप्स सोने पर सुहागा हैं.
ताऊजी,
ReplyDeleteकल आपके खबरनामचे मे कोई 'लफ्फाजी'नाम का शब्द-भाई बडा छाया रहा। आखिर तक मै 'लफ्फाजी का हिन्दिकरण नही कर पाया। क्या हिन्दी व्याकरण का कोई नया अजन्मा शब्द है- अगर लफ्फाजी कोई नई खोज है, तो हिन्दि ब्लोगरो के नये शब्द सृजना मे कारगर साबित होगा। क्यो की आजकल कई ब्लोगर बेटरी के रोशनी मे ब्लोगीग मे नई शब्दावलियो को ढुढते फिर रहे है। मुझे नही पता है 'लफ्फाजी' शब्द गुस्से के वक्त प्रयोग करते है या खुसी मे या किसी की खिचाई करते समय, या बधाई देते समय ? कोनसे भाव उत्पन्न हो तब इस 'लफ्फाजी को अन्य मानव शरीर के कलेजे पे दे मारे ?
कुल मिलाकर ताऊ पत्रिका अब एक ग्रन्थ सी बन गई है। लोगो मे इसके प्रति अटुट विश्वास का एक रिस्ता बन गया है। हो सकता है कार्यो के गति देते समय कुछ अडसने भी
आती है- यह ही अडसनो को मै सफलता के शुभ सकेन्त मानता हू। मेरी हार्दीक शुभकामनाऍ ताऊ पत्रिका के लिए, एवम इसके चैयरमैन ताऊ रामपुरीयाजी,
वरिष्ठ संपादक : समीर लालजी "समीर", विशेष संपादक : अल्पनाजी वर्मा, संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवालजी, संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta, संस्कृति संपादक : विनीताजी यशश्वी, सहायक संपादक : मिस. रामप्यारीजी, बीनूजी फ़िरंगी एवम हीरामनजी, स्तम्भकार :-"नारीलोक" - प्रेमलताजी एम. सेमलानी को भी साधूवाद धन्यवाद की इस पत्रिका को पाठको के पसन्द् बनाने मे अपनी कडी मेहनत को लगा दिया।
कई कोई शब्दो मे लिखने मे त्रृटी हूई हो तो मिच्छामी-दुक्कडम।
आभार।
मुम्बई टाईगर
सलेक्शन & कलेकशन
हे प्रभू यह तेरापन्थ
माई ब्लोग
महाप्रेम
द फोटू गैलेरी
अरे हॉ ताऊ़जी" बैगाणी से जल्दी ही मिला दो। नही तो अहमदाबाद जाकर मिलना पडेगा।
ReplyDeleteपत्रीका बहुत अच्छी लगी । संजय बेगाणी जी से मिलने की बहुत इच्छ थी ।
ReplyDeleteसमय अभाव के कारण पत्रिका के अन्य लेखको के स्तंभ पढ़ नहीं पाई थी, अभी ही पढा ....एक से एक जानदार और शानदार लेख....आभार आप सभी का.
ReplyDeleteregards
ताऊ जी बहुत बडिया लगा ये अँक भी बधाई
ReplyDeleteकितना अच्छा हो अगर हम दिन के २४ घंटो में से अपने खुद के आंकलन में १५ मिनट का समय बितायें. अपने चेहरे से नकाब हटायें और अपना असली चेहरा, कम से कम, खुद के सामने तो लायें. खुद से शरमाना कैसा और खुद से छिपाना कैसा.
ReplyDeleteसमीर जी बहुत गहरी व मनन करने योग्य बात कह गए!!
बापू मंदिर..ये तो आशीष जी ने बेहद शानदार जानकारी दी .है... बहुत मेहनत से खोज लाते हैं हम पाठकों के लिए ....
नंदादेवी मेला ..इतना भव्य होता है....कई दिन तक...यशस्वी जी का लेख सटीक रहा हमेशा की तरह !!
कारकोलम्ब ऐक नयी डिश है..मैंने कैसे नहीं खाई कभी ??
सभी का आभार एवं धन्यवाद !!!
ताऊ जी
राम राम !!
सुंदर पत्रिका. सभी को बधाई.बैंगाणी जी से मुलाकात का इन्तजार है. :)
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