परिचयनामा श्री रविकांत पांडे

जैसा कि आप जानते हैं श्री रविकांत पांडे ताऊ लहेली - २९ के विजेता रहे हैं. इसके पुर्व भी वो साक्षात्कार के लिये आमंत्रित किये जा चुके थे. आपने बी. एस. सी (प्राणि-विज्ञान)-ए एन कालेज, पटना, एम एस सी (बायोटेक्नोलाजी)- एच पी यू, शिमला से किया है और वर्त्तमान में आई आई टी कानपुर में कैंसर पर शोधकार्य कर रहें हैं।

आपके ब्लाग "जीवन मृत्यु" और "कुछ शब्द" से आप अवश्य परिचित होंगे. हमने जब इनसे परिचय जानना चाहा तो बडे दार्शनिक से उत्तर आये. आईये इनसे हुई बात चीत से आपको रुबरु कराते हैं.

श्री रविकांत पांडे


ताऊ : कुछ आपके खुद के बारे मे बताईये.

रविकांत : ताऊ, अब अपने बारे में क्या बताऊं ? मेरे ब्लाग-प्रोफ़ाईल में मेरे परिचय में पढ़ लें।

ताऊ : फ़िर भी आप अपने मूंह से ही कुछ बताईये?

रविकांत : अब आप इतना जोर देकर पूछ ही रहें है तो इतना ही निवेदन करूंगा कि सभी आवश्यक बुराईयों के साथ एक साधारण इनसान हूं।

ताऊ : आप कहां के रहने वाले हैं.

रविकांत : हूं आप पूछते हैं मैं कहां से हूं ? तो सुनिये किसी शायर ने लिखा है-
जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग का अपना मकां नहीं होता

ताऊ : जी, और आप करते क्या हैं?

रविकांत : हूं., मैं करता क्या हूं ? देखिये कृष्ण ने कहा है गीता में-

अहंकारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते
सिर्फ़ मूढ़ ही करने की भाषा में सोचते हैं। मैं कुछ नहीं करता जो करता है वही करता है।

ताऊ : हमने सुना है कि आपको एक बार रास्ते मे भूत मिल गया था? क्या ये बात सही है?

रविकांत : ताऊजी, अब क्या बताऊं? तब मेरी उम्र करीब पंद्रह वर्ष की रही होगी। हमारे यहां का एक प्रसिद्ध त्योहार है-छठ. इससे अब आप समझ ही गये होंगे मैं कहां से हूं.

ताऊ : जी हम समझ गये. आगे बताईये.

रविकांत : यह छठ पूजा जलाशय के पास ही संपन्न होती है क्योंकि इसमें मूलतः सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मेरे घर से कुछ दूरी पर एक नदी बहती है वहीं पर हम जाते हैं उस दिन। पहला अर्घ्य शाम को, फ़िर रात में कोसी भरने की रस्म और पुनः दूसरा अर्घ्य सुबह को, ये क्रम है इस पूजा का।

ताऊ : जी, बताते जाईये.

रविकांत : ये घटना रातवाली रस्म से जुड़ी हुई है। ये भी बता दूं कि विज्ञान में मेरी रूचि रही है और मैं कुछ समय तक नास्तिक भी रहा हूं। घर से नदी को दो रास्ते जाते थे। एक रास्ता जिससे ज्यादातर लोग जाते थे जो कि अपेक्षाकृत गंदगी भरा भी रहता था और दूसरा रास्ता , जो हमें अच्छा लगता था साफ़-सुथरा होने की वजह से, अस्पताल के बीचोबीच होकर जाता था।

ताऊ : जी.

रविकांत : वहां ऐसी मान्यता थी कि अस्पताल में मरनेवाले कई लोगों की आत्मा इस रास्ते में पड़ने वाले विशाल वृक्ष पर निवास करती है। लेकिन मेरी वैज्ञानिक बुद्धि इन्हे कपोल-कल्पित कहानियों से ज्यादा महत्तव न देती थी।

ताऊ : जी, सही है आज के जमाने मे कौन इन बातों पर विश्वास करेगा? आगे क्या हुआ?

रविकांत : जी ताऊजी, अब आगे यह हुआ कि रातवाली रस्म के लिये मेरी बड़ी बहन, बड़े भाई और मुझे नदी तट पर जाना था। सवाल उठा किस रास्ते जाया जाये ? गांव में कहने को तो बिजली थी पर लगभग नदारद ही रहा करती थी। ऐसे में काली रात… जो भी हो हमने इसी रास्ते जाने का निश्चय किया। और जाते वक्त कहीं कुछ ऐसा न हुआ जो डरावना हो।

ताऊ : यानि आपको जाते समय सब कुछ सामान्य था?

रविकांत : जी, बिल्कुल सही कहा आपने और इसीलिये हमारा आत्मविश्वास और बढ़ गया अतः लौटते वक्त भी हमने यही रास्ता चुना। हालांकि हम फ़िर भी सोच रहे थे कि क्या इसी रास्ते जायें ? ऐसे में दो चीजों ने हमारा साहस बढ़ाया - पहला ये कि बिजली दिख रही थी यानि पूरा रास्ता साफ़ था और दूसरा ये कि तीन-चार लोग रास्ते में आगे जाते हुये दिख रहे थे। इससे हमने ये अनुमान लगाया शायद सुबह होने को है अन्यथा इस रास्ते से तो भरसक लोग बचते हैं।

ताऊ : मतलब कहीं कुछ असामान्य नही था?

रविकांत : जी बिल्कुल ठीक. तो ताऊजी हम तीनों चले। उस पेड़ से महज दस कदम की दूरी रही होगी जब बिजली चली गई और जो लोग आगे दिख रहे थे वो भी गायब हो गये। हम डर गये और तभी पेड़ से उल्लू की आवाजें भी आनी शुरू हो गयी। अब मत पूछिये हमारा क्या हाल हो रहा था।

ताऊ : तो आपको वापस भाग आना चाहिये था ना?

रविकांत : नही उसमें मुश्किल ये थी कि दूसरे रास्ते के लिये मुड़कर जितना पीछे जाते उतनी ही दूर आगे जाने पर मुख्य सड़क थी और हमारा घर मुख्य सड़क से लगा हुआ है। सो अब बुद्धिमानी इसी राह से जाने में थी।

ताऊ : फ़िर आगे क्या हुआ?

रविकांत : अब जैसे ही पेड़ के नीचे पहुंचे इतनी जोर से पेड़ हिला, लगा जैसे उसका भारी तना टूटकर हमारे उपर गिरने वाला है, पर ऐसा हुआ नहीं। अपना डर दूर करने के लिये हम आपस में यूं ही बाते करते हुये चल रहे थे। हम चलते-चलते मुख्य सड़क पर आ गये तभी हमें एहसास हुआ कोई तेज कदमों से हमारे पीछे चल रहा है और हमरा ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश कर रहा है पैरों की तेज थाप से।

ताऊ : कौन था यह?

रविकांत : एक पल हमने पीछे मुड़कर देखा और ये कहकर अपने को समझा लिया कि कोई राहगीर होगा और चूंकि मुख्य सड़क है तो कोई भी आ जा सकता है। उस समय तक हमारा डर काफ़ी कम हो चुका था और हम घर के पास भी थे।


ताऊ : यानि कोई असामान्य बात नही हुई?

रविकांत : असामान्य बात हुई जब करीब २०-२५ कदम और जाना था हमें, लेकिन जैसे ही हम सड़क से घर के लिये मुड़े, उसने हमें टोका और कहा इधर कहां जा रहे हो ? इधर रास्ता नहीं है ! इस तरफ़ से चलो, ऐसा कहकर उसने उसी पेड़वाले रास्ते की ओर ईशारा किया।

ताऊ : ओहो..फ़िर...?

रविकांत : बस उसका इतना कहना था कि आप सोच सकते हैं हमारा क्या हाल हुआ होगा? हमने वहीं से चिल्लाकर मां को आवाज दी । मां बाहर आई और हमें बिना पीछे देखने की हिम्मत किये सीधे घर में दाखिल हुये।

ताऊ : कौन होगा वो? पता चला?

रविकांत : ना, आज भी सोचता हूं वो कौन था ? अगर सिर्फ़ राहगीर तो हमसे क्यों मुखातिब हुआ ? अगर ये मान लें कि नशा किया हो तो उसकी आवाज और चाल इतनी स्पष्ट बिना लड़खड़ाहट के कैसे थी ? और फ़िर पेड़वाले रास्ते की तरफ़ हमें क्यों जाने की सलाह दे रहा था ? आज भी इन प्रश्नों के उत्तर मेरे पास नहीं हैं।


ताऊ : तो क्या आप मानते हैं कि भूत होते हैं?

रविकांत : ऐसी आत्मा जो बुरे कर्म करती है वो जब तक गर्भ-धारण न कर ले तब तक जिस अवस्था में रहती है, वही भूत कही जाती है।

ताऊ : तो फ़िर ये भूत आजकल दिखाई क्यों नहीं देते?

रविकांत : देखिये आत्मा जितनी बुरी हो उतना ही बुरा गर्भ चुनना पड़ता है उसके लिये। पहले लोग अच्छे कर्म ज्यादा करते थे अतः उतना बुरा गर्भ मिलना मुश्किल होता था। यानि पुण्य कर्मों वाले दंपति के यहां गर्भ उपलब्ध आसानी से होते थे. और बहुत कम दम्पति ही बुरे कर्मों वाले होते थे इसलिये आत्मा को उचित गर्भ की प्रतिक्षा में भूत योनि में देर तक रहना पड़ता था और इसीलिये वो ज्यादा दिखते थे।

ताऊ : पहले की तुलना में अब इतने अब भूतों के किस्से कम क्यों सुनने में आते हैं?

रविकांत : देखिये आजकल ठीक उल्टा हिसाब हो गया है. आज मनुष्य ने बुरे कर्मों से उनके लिये गर्भ चुनना अत्यंत आसान कर दिया है। अतः अब भूत ज्यादा दिनों तक भूत योनि में नहीं रहते। वो मानव योनि में प्रविष्ट हो चुके हैं। अगर आपको भरोसा न हो तो अपने आसपास देखे, आप मानव में समाये भूतों को उनके कर्म से पहचान लेंगे।



ताऊ : कुछ आपके शौक क्या हैं? इस बारे मे बताईये.

रविकांत : : क्या कहें, भगत सिंह के इस शेर से समझ लें-

उन्हे ये फ़िक्र है हरदम नया तर्जे-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक है देखें सितम की इंतिहा क्या है

वैसे थोड़ा-बहुत लिख-पढ़ लेता हूं। दो ब्लाग हैं-
http://jivanamrit.blogspot.com/
http://jivanaurmrityu.blogspot.com/
इनपर देख सकते हैं।

ताऊ : आपसे पूछा जाये कि आपको सख्त ना पसंद क्या है?

रविकांत : कुछ भी नापसंद नहीं। परमात्मा की बनाई बहुरंगी सृष्टि में दोष खोजकर खुद को उससे ज्यादा बुद्धिमान साबित नहीं करना चाहता। वैसे भी -
करें हम दुश्मनी किससे जो दुश्मन भीं हों अपने
मुहब्बत ने जगह छोड़ी नहीं दिल में अदावत की

ताऊ : और आपकी पसंद के विषय मे क्या कहेंगे ?

रविकांत : देखिये जब कुछ भी नापसंद नहीं तो कुछ भी पसंद कैसे हो सकता है ? पसंद और नापसंद द्वैत का ही विस्तार है और अहंकार इसी द्वैत के सहारे जिन्दा रहता है। अब अगर अहंकार नहीं हो तो पसंद क्या ? नापसंद क्या ? नष्टे मूले कुतो शाखा ?

श्रीमती गुंजन रविकांत


ताऊ : कोई ऐसी बात जो आप हमारे पाठको से कहना चाहेंगे?

रविकांत : जिंदगी को गणित की तरह नहीं काव्य की तरह जियें।

ताऊ : हमने सुना है कि आप भी एक समय लोगों के लिएय ताऊ के जैसे रहस्य बन गये थे?

रविकांत : ओह हां, ऐसा हुआ कि १९९६ में मैंने दसवीं की परीक्षा दी। नवीं तक की पढ़ाई मैंने कहीं और से की थी फ़िर दसवीं गांव से। बड़बोलेपन की आदत नहीं थी अतः बहुत कम लोग मुझे नाम से जानते थे। जो थोड़े जानने वाले थे भी वो चेहरे से पहचानते थे।

ताऊ : अच्छा..

रविकांत : उस समय ऐसा हुआ कि हाईकोर्ट ने कदाचार मुक्त परीक्षा की घोषणा कर दी और सख्ती से इस नियम का पालन हुआ। अमूमन परीक्षाओं में रामराज्य हुआ करता था अतः छात्र निश्चिंत रहा करते थे। नतीजा जो होना था वही हुआ। पूरे राज्य में सिर्फ़ १४% छात्र पास हुये और मेरे गृह जिले में १% ।

ताऊ : और आप पास हुये?

रविकांत : पास हुआ मतलब? मेरी जानकारी के मुताबिक अपने विधानसभा क्षेत्र में मैं अकेला प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था। आग की तरह मेरा नाम चर्चा का विषय बन गया था और मजे की बात ये थी कि नाम से बहुत कम लोग परिचित थे तो मैं ’ताऊ कौन ’ की तरह से ही रहस्य बन गया।

ताऊ : वाह ये तो बहुत सुंदर काम हुआ? बहुत बधाईयां मिली होंगी आपको तो?

रविकांत : हां ताऊजी, लोग मुझे बधाई देने को और देखने को कि ये है कौन, खोज रहे थे और मैं चूंकि किसान परिवार से हूं, खेतों पर कुछ काम से गया हुआ था। जब मैं घर आया, कपड़े कीचड़ सने हुये थे। अब स्कूल कैसे जाऊं ये समस्या थी। खैर नहा धोकर जैसे-तैसे स्कूल पहुंचा।

ताऊ : वाह, स्कूल मे तो आपका बडा स्वागत हुआ होगा?

रविकांत : हां, मेरे स्कूल पहूंचने की खबर जैसे ही मिली उस समय चल रही सारी कक्षायें स्थगित हो गईं, और शिक्षक एवं छात्र बाहर निकल आये सिर्फ़ ये देखने के लिये कि इस नाम वाला लड़का है कौन। आज भी इस घटना को याद कर रोमांच हो आता है।

ताऊ : आप आप मूलत: बिहार के कौन से गांव या कस्बे से हैं?

रविकांत : ताऊजी, आप बिना जाने मुझे छोडेंगे नही. तो अब आपको बता ही देता हूं कि मैं गांव से ही हूं। बिहार के सिवान जिले से २६ किमी दक्षिण मुबारकपुर नाम है। यह सिवान वही जगह है जहां से देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद आते थे।

ताऊ : हमने सुना है भगवान बुद्ध का भी कोई संबंध था सिवान से?

रविकांत : हां आपकी जानकारी सही है ताऊजी. कहते हैं जब भगवान बुद्ध मरे और उनका शव सिवान से गुजर रहा था। इस तरह से यह जगह शव-यान के नाम से जाना गया। कालांतर में यह अपभंश होकर शव-यान से शैवान और फ़िर सिवान बन गया।

ताऊ : आप का संयुक्त परिवार है? या एकल?

रविकांत : संयुक्त परिवार ही समझें। क्योंकि वसुधैव कुटुंबकम में भरोसा है। बचपन में पढ़ाया गया था-

मानव से क्या पशु से खग से
हमें प्रेम सारे अग-जग से
हम सारे जग को ही समझें
प्रिय अपना घर-द्वार
मधुर हम बच्चों का संसार

बचपन तो चला गया पर संस्कार रह गये।

ताऊ आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?

रविकांत : मैं ब्लागिंग का उज्ज्वल भविष्य स्पष्ट देख रहा हूं। क्योंकि इसने कई रचनाकारों की प्रतिभा को मरने से बचा लिया है। जो समय और संपर्क के अभाव में शायद अपनी भावनाओं को इस तरह व्यक्त न कर पाते।

ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?

रविकांत : ब्लागिंग मे हूं तो काफ़ी पहले से पर सक्रिय पिछले करीब साल भर से हूं।

ताऊ : आपका ब्लागिंग मे आना कैसे हुआ?

रविकांत : यूं ही गूगल पर कुछ ढूंढ रहा था और किसी के ब्लाग पर पहुंच गया। फ़िर जो चस्का लगा वो अभी तक जारी है।

ताऊ : ब्लागिंग मे आपके अनुभव बताईये?

रविकांत : मेरा अनुभव तो काफ़ी अच्छा है क्योंकि इस माध्यम से कई सारे ऐसे आत्मीय लोगों से जुड़ा हूं जिनके बिना जिंदगी में शायद कुछ अधूरा रहता। उदाहरण के लिये गुरू जी
श्री पंकज सुबीर जिन्होने उदारतापूर्वक गज़ल के गुर सिखाये और अभी भी सिखा रहे हैं। वस्तुतः अभी मैं जो कुछ लिख पाता हूं सब उन्ही की देन है।

ताऊ : आपका लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?

रविकांत : ताऊजी यह फ़ैसला मैं सुधी पाठकों पर ही छोड़ता हूं।

ताऊ : राजनिती मे आप कितनी रुची रखते हैं?

रविकांत : ताऊ मेरा राज में ही कोई भरोसा नहीं है तो राजनीति में क्या होगी ? मैं तो हर तरफ़ समानता चाहता हूं। समाज को राजा और प्रजा में बांटना उचित नहीं है।

ताऊ : आप आपका खुद का स्वभाव कैसा पाते हैं?

रविकांत : ताऊजी, ये बहुत कठिन प्रश्न है। फ़िर भी ऐसा समझें - मैं दिल से एक कवि/शायर, दिमाग से एक चिंतक/दार्शनिक और स्वभाव से एक फ़कीर हूं।

ताऊ : आपकी जीवन संगिनी के बारे मे क्या कहना चाहेंगे?

रविकांत : : कहां तो मेरी दृढ़ आस्था थी , कभी पढ़ा था-

दिखती पहले धूप-रूप की
फ़िर दिखती मटमैली काया
दुहरी झलक दिखाकर अपनी
मोहमुक्त कर देती माया

श्रीमती और श्री रविकांत पांडे


ताऊ : जी, अब आगे बताईये.

रविकांत : फ़िर मेरे जीवन में आया वर्ष २००४ का वो दिन जब अध्ययनक्रम में मुझे दो साल के लिये शिमला जाना पड़ा। अब ये हिमाचल की वादियों का असर कह लीजिये या कुछ और हम दोनों यहीं मिले और मिले तो ऐसा लगा जैसे जन्मों की पहचान हो। आज हम परिणय सूत्र में बंध चुके हैं। वैसे मैं इसे बंधन नहीं आजादी मानता हूं।

ताऊ : हमारे पाठको से कुछ और कहना चाहेंगे?

रविकांत : हां एक शेर जो शायद अकबर इलाहाबादी का है-

तुम उसे बढ़कर गिरा दो बीच की दीवार को
देखना आंगन तुम्हारा दोगुना हो जायेगा

ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या सोचते हैं?

रविकांत : अब ताऊ को क्या समझाना पर इतना तो कह ही दूं कि जिन कारणों से मैं ब्लागिंग का उज्ज्वल भविष्य देखता हूं उनमें एक ताऊ पहेली भी है। इस माध्यम से हमार ज्ञानवर्द्धन करने के लिये आप प्रशंसा और आदर दोनों के पात्र हैं।

ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगे?

रविकांत : ताऊ मेरे देखे तो एक वयक्तित्व है और उपलब्धि भी। जिससे भी कुछ सीखने को मिले और जो पारखी नज़र रखता हो वही ताऊ है।

ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या सोचते हैं?

रविकांत : यह तो जान है आपके ब्लाग की । ताऊ पहेली तो जैसे इसके लिये भूमिका का काम करती है। इस माध्यम से अपनी धरोहरों को जानने का जो मौका मिलता है वह अनूठा है।

ताऊ : आपसे अंत मे एक सवाल पूछने कि इच्छा पैदा होरही है. पश्चिम मे जिसे दार्शनिकता कहा गया और हमारे यहां हम उसे आध्यातम कहते हैं. का भाव पूरे साक्षात्कार के दौरान हमको आपके उपर दिखाई दिया. इसकी कोई खास वजह?

रविकांत : ताऊ जी, बाहर की खोज ने विज्ञान में रूझान पैदा किया और अंतर की खोज ने अध्यात्म में। कबीर के निर्गुन अतिशय प्रिय हैं। इसी क्रम में आस्तिक और नास्तिक दर्शनों का अध्ययन। जिस दिन द्वैत छूटा, आस्तिकता नास्तिकता दोनों छूट गये। योग/तंत्र/जेन/सूफ़ी आदि पद्धतियों का अध्ययन पर अंततः शांति मिली साक्षी भाव से। अब आप कहेंगे इस पर विस्तार से प्रकाश डालूं पर, क्षमा करें, वह वाणी का विषय नहीं है।

अब एक " एक सवाल ताऊ से"

सवाल रविकांत : मेरा प्रश्न तो वही है ताऊ कौन ?

जवाब ताऊ का : भाई हम तो खुद ताऊ की खोज मे लगे हैं. अगर उसका पता लगा तो बता देंगे.

तो यह थे हमारे आज के मेहमान श्री रविकांत पांडे. आपको इनसे मिलना कैसा लगा? अवश्य बतलाईयेगा.


Comments

  1. बेहद उम्दा साक्षात्कार! बहुत आनन्द आया श्री रविकाँत जी से मिलकर,उनके विचारों को जानकर।ब्लाग के जरिए तो उनसे परिचय है ही किन्तु आज विस्तार से उनके बारे में जानने का अवसर मिला।
    मानव से क्या पशु से खग से
    हमें प्रेम सारे अग-जग से

    ताऊ जी, आपके द्वारा ये जो कार्य किया जा रहा है जिसके जरिए भिन्न भिन्न व्यक्तित्व के ब्लागर्स के बारे में विस्तार से जानने,समझने का मौका मिलता है,इसके लिए आपको जितना भी साधुवाद दिया जाए..कम है।

    ReplyDelete
  2. बावजूद इसके कि रविकान्त जी बहुत "गोलमोल" में उत्तर दे रहे हैं, रोचक व्यक्तित्व हैं।
    और यह ताऊ कौन है जी?!

    ReplyDelete
  3. रवि kaan जी की सुन्दर gazlen और rachnaaon से तो हम parichit हैं ही.........आज आपने unse भी saakshaat parichay karva दिया............... bahot ही achaa लगा उन से मिल कर और उनके बारे में जान कर........

    ReplyDelete
  4. बहुत उम्दा मुलाकात करवाई ताऊजी आपने.

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा लगा रविकांत पांडे जी से मिलकर.. ताऊजी आप ब्लॉगर बंधुओं को इतनी तन्मयता के साथ एक-दूसरे से घनिष्ठ करने का जो सत्कर्म कर रहे हैं वह काबिले तारीफ है.. आभार

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छा लगा रविकांत पांडे जी से मिलकर.. ताऊजी आप ब्लॉगर बंधुओं को इतनी तन्मयता के साथ एक-दूसरे से घनिष्ठ करने का जो सत्कर्म कर रहे हैं वह काबिले तारीफ है.. आभार

    ReplyDelete
  7. रविकांत पांडेय जी से मिलना बहुत अच्छा लगा.

    ReplyDelete
  8. रविकांत जी के बारे में जान कर अच्छा लगा शुक्रिया

    ReplyDelete
  9. बहुत ही अच्छा साक्षात्कार बड़ा मजा आया रवि कान्त जी से मिल कर . कभी इन taau.in वाले ताऊ जी से भ मिलवाइए '

    ReplyDelete
  10. बहुत अच्छा लगा रविकांत जी से मिलकर..विस्तार से काफी कुछ जाना उनके व्यक्तित्व के बारे में. आपका आभार ताऊ!!

    ReplyDelete
  11. रविकांत जी से मिल अच्छा लगा..

    शुभकामनाऐं..

    ReplyDelete
  12. रविकाँत जी का परिचय पा कर बहुत बडिया लगा ताऊ जे बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  13. रविकाँत जी का परिचय पा कर बहुत बडिया लगा ताऊ जे बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  14. रविकांत जी से मिलकर..
    बहुत अच्छा लगा।
    ताऊ!
    सत्कर्म निभाते रहें,
    एक दिन सभी जाने-माने
    ब्लॉगर्स का "परिचयनामा"
    नेट पर होगा।
    बधाई!

    ReplyDelete
  15. रविकांत जी बहुत अच्छे लगे। विशेष रुप से उन की ज्ञान यात्रा। वास्तविकता यही है कि आस्तिकता और नास्तिकता का भेद भी मिथ्या है और एक तरह की लोगों को बांटने वाली राजनीति है।

    ReplyDelete
  16. एक शानदार व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिये आपका आभार ताऊ. और पांडे जी को बहुत शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  17. एक शानदार व्यक्तित्व से परिचय करवाने के लिये आपका आभार ताऊ. और पांडे जी को बहुत शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  18. ताऊजी आप यह बहुत अच्छा काम कर रहे हो. आपकी मेहनत और लग्न को सलाम.

    ReplyDelete
  19. और रविकांत जी के विचार बहुत प्रभावित कर गये, उनको और उनके परिवार को शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  20. वाह बहुत दिलचस्प साक्षात्कार और पांडे जी की बातें प्राभावशाली लगा.

    ReplyDelete
  21. वाह बहुत दिलचस्प साक्षात्कार और पांडे जी की बातें प्राभावशाली लगा.

    ReplyDelete
  22. अंधविश्वास को प्रोत्साहित करता अच्छा साक्षात्कार !

    आज की आवाज

    ReplyDelete
  23. guru bhaee ravikant ke baare me wese to bahot saari chije jaanta tha magar bahot saari chije jo jaanani chahiye thi maalum nahi tha.. bahot bahot aabhaar aapka tau ji ...

    arsh

    ReplyDelete
  24. रविकांत जी से भेंट हो गयी. भूत ने तो डरा ही दिया आभार

    ReplyDelete
  25. रविकांत जी से मिलना अच्छा लगा !

    ReplyDelete
  26. सही कहूं तो साक्षात्कार पहेलियों से भी अधिक अच्छे लगते हैं.

    ReplyDelete
  27. मिलना सबसे सदा अच्‍छा लगता है
    ये भूत से डरे
    हमें अगर वो मिले
    तो उससे मिलकर भी अच्‍छा ही लगेगा
    बशर्ते भूत न डर जाए
    और हमसे मिलकर वर्तमान न बन जाए।

    ReplyDelete
  28. रवि जी के बारे में जानकारी पूर्ण परिचयानमा अच्छा लगा बढ़िया परिचय दिया है आपने.उम्दा साक्षात्कार...

    ReplyDelete
  29. ताऊ जी रविकांत पांडेय जी से मिलना बहुत अच्छा लगा. लेकिन इन्होने बहुत से जबाब गोल कर दिये, ओर यह भूत वाला किस्सा शायद इन का वहम है..
    आप का ओर रवि जी का धन्यवाद

    ReplyDelete
  30. रविकांत जी और उनकी श्रीमती जी से मिलना अच्छा लगा.

    भूतों और उनके पुनर्जन्म का ' पुराने ज़माने के सज्जनों और इस ज़माने के दुर्जनों से ' सम्बन्ध का तर्क बड़ा ही रोचक लगा..
    --अध्यात्म की और उनका झुकाव अधिक है ,ऐसा प्रतीत होता है.
    -बहुत अच्छा साक्षात्कार रहा .
    -पांडे दंपत्ति को मेरी शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  31. रवि को एक अर्से से जान रहा हूँ उनके असीम ग्यान, उनकी बेहतरीन हिंदी, और उनकी लाजवाब ग़ज़लो और गीतों से...उनके इन कुछ अन्छुये पहलुओं को जानना रोचक रहा...

    ReplyDelete
  32. रविकांत जी के बारे में जान कर अच्छा लगा ,ये ताऊ कहाँ हैं ,कब दर्शन देंगे.शुक्रिया

    ReplyDelete
  33. रविकांत जी के बारे में जान कर अच्छा लगा...साधुवाद.

    ReplyDelete
  34. रविकांत जी के बारे में जान कर अच्छा लगा...साधुवाद.

    ReplyDelete
  35. bahut hi achha laga ravikant ji ke baare mein jankar.

    ReplyDelete
  36. बहुत अच्छा लगा रविकांत पांडे जी से मिलकर.

    ReplyDelete
  37. रविकांतजी पाण्डेय
    'दुनिया पूछती है मैं कौन हूँ? मेरा भी मुझसे यही सवाल है।
    यह वाक्य मैने आपके ब्लोग से लिए है।'
    और ताऊ क्या पुछता है ? के ताऊ कोन है ?
    अब रविजी, आप कोन है ? यह सवाल खडा नही हो सकेगा क्यो की यह हमारे ताऊजी है ना सबको बता दिया है की आप कोन है। अब आप आम नही खास व्यक्तिबन गए । क्यो है ना कमाल ताऊजी का ?
    रविकांतजी पाण्डेय आपके परिचय से व आपके सरल सोम्य स्वभाव ने मेरा दिल जीत लिऐ।
    आपके एवम श्रीमती गुंजनजी के सफल एवम मगलमय जीवन के लिए हे प्रभु यह तेरापन्थ का पुरा परिवार शुभ भावनाए प्रेषित कर रहे है। मै देरी से पहुचा क्षमा चाहता हू। ताऊजी!!! अब आप के क्या कहने ? दिन दुगनी रात चोगुनी वाली कहावत फलित हो रही है
    ताऊ डॉट् इन के विकास मे। आपको प्रणाम!!!
    सभी को नमस्ते।
    आभार/ शुभ मगल सहित
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    ReplyDelete
  38. रोचक साक्षात्कार ..कोई तो मिला जो ताऊ को ..उसी की तरह गोल मोल बातें कर घुमाने वाला !!

    ReplyDelete
  39. ये तो पता ही नहीं था कि रवि को भूत मिल चुके हैं नहीं तो अभी तक तो एक कहानी बना कर मीडिया वालों के लिये पेल भी देता 'मिलिये एक ऐसे शख्‍स से जिसने देखा है भूत को' । इसकी मासूमियत पर मत जाइये ये सचमुच के भूत से मिल चुका है । ताऊ जी का आभार एक ऐसे शख्‍स के बारे में जानकारी उपलब्‍ध करवाने के लिये जिससे अभी तक मोबाइल पर ही बात की है ।

    ReplyDelete
  40. रविकांत जी से मुलाक़ात अच्छी रही -"ज़िन्दगी को गणित के तरह नही काव्य की तरह जियें " बहुत खूब कहा .

    आपका ये सवाल मिलियन डॉलर का है ताऊ जी .. " ताऊ कौन "??

    सस्पेंस :))
    राम राम !!

    ReplyDelete
  41. ये मुलाकात भी सर मुलाकातों की तरह सुंदर रही....
    मीत

    ReplyDelete
  42. चलिए ताऊ जी आपके जरिये रविकांत जी के उम्दा विचारों को जान पाया बड़ा अचा लगा< पर वो भुत वाला किस्सा जरा समझने का प्रयास कीजियेगा रविकांत जी | हो सकता है किसी ने आपको डराने के लिए अँधेरे का फायदा उठा कर मजाक या कुछ ऐसा किया हो |

    ReplyDelete
  43. रवि जी मिलकर अच्छा लगा। खासकर उनकी कही बात कि " जिंदगी को गणित की तरह नहीं काव्य की तरह जियें।" दिल को छू गई। और भूत वाला किस्सा भी रोचक लगा।

    ReplyDelete
  44. ताऊ जी ,
    ये मुलाकात भी अच्छी रही
    रवि भाई व गुँजन जी की बातोँ से भूत तक की बातेँ,
    सभी रोचक हैँ !
    स्नेह सहीत,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  45. रविकांत जी से मिल अच्छा लगा, ताऊ!
    बहुत बहुत धन्यवाद!

    ReplyDelete
  46. आजतक रवि जी की रचनाओं के मुरीद हुआ करते थे आज से रवि जी की शक्शियत के भी मुरीद हो गए...बहुत रोचक जानकारी मिली उनके जीवन के बारे में...अच्छी सोच वाला इंसान ही इंसान कहलाने लायक है. उन्होंने जो अपना परिचय दिया है वो इंगित करता है की उनकी सोच कितनी साफ़ और अच्छी है...इश्वर उन्हें जीवन के हर मोड़ पर खुशिया दे...

    भूत के किस्से से जितना डर लग सकता था लगा...आज कल तो इंसान रुपी भूत दिन में ही मिल जाते हैं इस लिए रात में मिलने वाले भूतों का डर कम हो गया है...

    नीरज

    ReplyDelete
  47. रविकाँत जी का परिचय पढ़ कर उन्हे नज्दीक से जानने का मौका मिला इसके लिये ताऊ आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  48. पिछले माह ही रविकांत जी से मिलना हुआ। अपने साक्षात्कार में जैसे लगे बिलकुल वैसे ही हैं रविकांत जी....! मितभाषी, दार्शनिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, साहित्यकार का सम्मिश्रण...! गुंजन जी भाग्यशालिनी हैं....!

    ReplyDelete

Post a Comment