पिछले सप्ताह एक अखबार मे पढा था कि टेकनोराती सर्च ईन्जिन के सर्वे अनुसार १३ करोड ३० लाख ब्लाग्स मे से पिछले ४ महिने में केवल ७४ लाख ब्लाग ही अपडेट हुये हैं. यानि करीब ९५ प्रतिशत ब्लाग मृत हो चुके हैं या उस मुहाने पर पहुंच चुके हैं. इन ७४ लाख मे से सिर्फ़ १ लाख के करीब ऐसे हैं जिन्हे ठीक ठाक पाठक और कमेम्ट्स उपलब्ध हैं.
हिंदी मे तो हालत और भी खराब है. कुछेक हजार ब्लाग्स हैं और खुलने की संख्या से कई गुना ज्यादा है बंद होने वाले ब्लाग्स की. और आप अंदाजा इस बात से लगाईये कि हमने अभी पिछले बुधवार यानि ठीक ५ दिन पहले ताऊजी डाट काम शुरु किया था. आश्चर्य तब हुआ जब कल चिठ्ठाजगत मे उसकी सक्रियता क्र. २५७ दिखी. यानि कुल ८ या ९ हजार हिंदी चिठ्ठों मे गतिशील कितने ब्लाग्स हैं? इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है.
इसका कारण क्या है? टिपणियों की कमी, नगण्य कमाई या बिल्कुल ही नही होना, पाठक संख्या नही होना, समय की कमी के साथ साथ धमकियां मिलना. इस सशक्त माध्यम का प्रयोग निजी स्वार्थ और खुन्नस निकालने के लिये किया जाने लगा है. किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष के प्रति जहर उगलना भी इसी मे शामिल है. अनेकों मामलों मे धमकियां भी मिली हैं. और कईयों को आपने भी ब्लागिंग छोडते देखा होगा.
दोस्तों सोचिये, आप क्या कर रहे हैं? क्या आप नकारात्मक माहोल बना कर एक तरह से अपनी मातृभाषा को कमजोर नही कर रहे हैं? अगर कोई सक्रियता से लिख रहा है तो किसी को जलन क्यों होनी चाहिये? दूसरे की लकीर छोटी करने की बजाय अपनी लकीर बडी करने के सिद्धांत पर हमको क्यों नही चलना चाहिये? याद रखें कि किसी का भी चरित्र हनन करना बहुत आसान है.
एक तरफ़ बहस चलती है कि ब्लाग साहित्य है या क्या है? और दुसरी तरफ़ ये करम? कैसे साहित्य कोई लिखेगा यहां पर. हां अगर यहां कोई टिका भर रहे, वही उसकी हिम्मत है. एक मजाक भी काफ़ी प्रचलित है कि अधिकांश ब्लाग्स का सिर्फ़ एक पाठक होता है. दोस्तों, अगर आप किसी को प्रोत्साहित नही कर सकते तो निरुत्साहित तो हर्गिज मत किजिये.
दोस्तों, ऐसे मे सवाल उठता है कि क्या ब्लागिंग छोड देनी चाहिये? मित्रों, मैं तो कहुंगा कि नही. क्योंकि मेरे गहन निराशा के क्षणों मे एक पत्र मुझको, श्री समीरलाल जी द्वारा लिखा गया था. जिसके बाद मैने दुगुने उत्साह से लिखना शुरु किया. वर्ना मैं कभी का लिखना बंद कर चुका होता. उनका वह पत्र उनकी अनुमति से मैं फ़िर कभी भविष्य में अवश्य प्रकाशित करना चाहुंगा.
फ़िलहाल तो ये समझिये कि हम जो कुछ लिख रहे है वो एक पूंजी के रुप मे इंटरनेट पर जमा होरहा है जो कभी ना कभी हमारे या आने वाली पीढी के काम आयेगा. दोस्तों ..किसी को परेशान करके या अनावश्यक आलोचना से आप एक स्थापित ब्लागर को बडी आसानी से बाहर कर सकते हैं, पर क्या आप एक नये आदमी को यहां ला कर ब्लागर बना सकते हैं? नही ना? फ़िर आपको क्या हक है कि आप किसी को यहां से बाहर करें? सकारात्मक मौज लेने और नकारात्मक मौज लेने में बहुत फ़र्क है.
आपके सप्ताह की शुरुआत शुभ हो.
-ताऊ रामपुरिया
अक्सर देखा जाता है कि ब्लॉगर अपने आलेख और शीर्षक में किसी अन्य ब्लॉगर के बारे में बात करते हैं, लिंक देते हैं. यह बैक लिंक देने की परंपरा कई वजहों से एक स्थापित एवं अच्छी परंपरा मानी गई है. मगर ध्यान रखें कि कहीं आप दूसरे ब्लॉगर का माखौल तो नहीं उड़ा रहे हैं. कहीं आप नियोजित या अनियोजित तरीके से जाने या अनजाने में उसे बदनाम करने का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं. कहीं कुछ ऐसी बात तो नहीं कर रहे हैं, जिसका वो बुरा मान सकता है. प्रश्न करिये कि अगर वो भी आपके बारे में ऐसा लिखता तो आपको कैसा लगता? जरुरी यह भी है क्या व्यगतिगत स्तर पर आपके उस ब्लॉगर से ऐसे संबंध हैं कि आप उसके बारे में मजाक उड़ाये या लिखें. ऐसे ही अक्सर लोग व्यक्तिगत लिखी गई ईमेल या चैट को उजागर कर देते हैं बिना पूर्वानुमति के. यह एक विश्वासघात है. अगर उजागर ही करना होता तो माध्यम तो उसके पास भी था. पूर्व में इस तरह की बातों ने बहुत गंभीर रुप लिया है और विवाद भी बहुत हुआ. सबसे अच्छा तो हो कि यदि संभव हो तो जिससे मजाक करने का मन हो रहा है उसे अपना मेटर ईमेल के माध्यम से भेज अनुमति ले लें. आखिर उद्देश्य तो आपका मनोरंजन ही है. तो क्यूँ न स्वस्थ हो. टीका टिप्पणी और तल्खी के लिए ईमेल, चैट, टिप्पणी हैं, उसे क्या पोस्ट के माध्यम से लिखना. भड़ास व्यक्तिगत और जाहिर सबको हो, यह तो कोई बात न हुई. आपको जो सबसे खराब लगता हो वो शायद मेरा सबसे अच्छा दोस्त हो. फिर इस तरह की बातों से खेमे ही बटेंगे और कुछ भी हासिल न होगा. कोई वजह नहीं दिखती इन सब बातों की. हाँ बैक लिंक देकर रेफरेन्स यूज करने में किसी को भी क्या आपत्ति हो सकती है, खूब करिये बैक लिंक मगर सोच कर, विचार कर. क्षणिक प्रसिद्धि के लिए यह उचित नहीं. आगे अगली बार: ऐ जख्म! यूँ ही भर जाने दूँ या नोचूँ तुझको जाने क्यूँ सोचता रहता हूँ कि सोचूँ तुझको जो बहता है तो बह जाने दे आखो से मेरी , तू आरजू है कब तक यूँ ही पोछूं तुझको ... अंतिम दो पंक्तियाँ भाई प्रकाश अर्श, जो मेरे करीबी, मेरे प्रशंसक, मेरे अनुज हैं और उनसे मुझे अभी बहुत सीखना है, उनके द्वारा जोड़ी गई है अनजाने में-शायद उन्हें याद भी न होगा कि कहाँ और कब जोड़ी हैं. -समीर लाल 'समीर' |
'छत्तीसगढ़' ---यही वह राज्य है जहाँ से मैं समझती हूँ आज की तारीख में सब से अधिक हिंदी ब्लॉगर हैं. इस राज्य के बारे में जो कुछ भी यहाँ लिख रही हूँ उसमें अगर कहीं कोई त्रुटी दिखाई दे तो कृपया मुझे सूचित करीए. छत्तीसगढ़ -जैसा की नाम ही इशारा करता है यह क्षेत्र ३६ गढ़ों का समूह रहा होगा इस लिए इस का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा. पौराणिक इतिहास- कहते हैं कि राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या के नाम पर इस क्षेत्र को कोसल कहा जाने लगा था. माना यह भी जाता है कि भगवान् राम अपने वनवास के समय 'छत्तीसगढ़ ' से हो कर गुजरे थे और शबरी ने उन्हें बेर यहीं खिलाये थे. महाभारत से भी जोड़ती कहानियां कुछ इतिहासकार बताते हैं..उनके अनुसार इतिहासकार बिलासपुर के पांडो, कोरवा और कंवर जनजातियों का सम्बन्ध पांडव और कौरवों से हो सकता है. रायगढ़ के 'कबरा पहाड़' और सिंघनपुर की गुफ़ाओं में मिले भित्तिचित्र इस क्षेत्र में मानव जाती के विकास की कहानी सुनाते हैं. यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष यह बताते कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध के साथ ही अनेकों आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा होगा. - इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं. यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी. -कहते हैं-महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ था. इतिहास से -- -1000 ई. में पहला कलचुरि राजा कलिंगराज कोसल पहुँचा ,उसके बेटे रत्नदेव ने अपने राज्य की राजधानी रत्नपुर में बनाई.कलचुरि शासन दो हिस्सों में बँटा था. एक शिवनाथ के उत्तर में और दूसरा शिवनाथ के दक्षिण में.. दोनों ओर 18 गढ़. जहाँ ये १८-18 प्रशासनिक इकाईयां बनीं.इस तरह कलचुरियों के 36 गढ़ थे जो 36garh के नामकरण का आधार बना. - मुगलों और मराठों के शासन काल में बस्तर को 36garh शामिल हुआ. -मराठे और कुछ समय तक अंग्रेज भी छत्तीसगढ़ का शासन नागपुर से सँभालते थे.बाद में अंग्रेजों में रायपुर को राजधानी बना दिया. -अंग्रेजी हुकूमत के समय 1860 में मध्य प्रांत का गठन हुआ. नागपुर, महाकोसल और छत्तीसगढ़ को मिलाकर वे इसे 'सीपी एंड बरार 'कहते थे. इसमें छोटी-छोटी कुल 14 रियासतें थीं. -१९४७ में आज़ादी के बाद १९५६ तक छत्तीसगढ़ महाकोसल का हिस्सा था. -1956 में छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा बना. -छत्तीसगढ़ को अपनी पहचान बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी.खूबचंद बघेल [१९५६-६९ ] पवन दीवान, शंकर गुहा नियोगी ने [1977 से 1990 ]आन्दोलन चलाये. -1994 में मध्यप्रदेश विधानसभा में छत्तीसगढ़ राज्य की मांग की गई और कुछ पार्टियों के लिए यह चुनावी मुद्दा बन गया. और इस तरह लम्बे इंतज़ार के बाद पहली नवंबर 2000 से देश के नक्शे पर मध्य प्रदेश से कट कर 'छत्तीसगढ़ 'नाम का एक नया राज्य बन गया. ----------------------------------------------------------------------- जानते हैं इस राज्य के बारे में-- छत्तीसगढ़ के उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार. राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं - महानदी, शिवनाथ , खारुन पैरी और इन्द्रावती नदी. मूल भाषा-छत्तीसगढ़ी , राजधानी-रायपुर जिले-१६ यहाँ का लोक गीत-संगीत तो बहुत प्रसिद्द हैं. कई जनजातियों वाला यह राज्य धान की भरपूर पैदावार के कारण धान का कटोरा भी कहलाता है. भारत देश की १२% वनसंपदा यहीं है.राज्य का ४४% हिस्सा वनों से घिरा है.यहाँ २ राष्ट्रिय उद्यान,११ Wildlife Sanctuaries पर्यटकों का मुख्य आकर्षण हैं. मेरी जानकारी में विद्युत उत्पादन और आपूर्ति में यह राज्य स्वयम में सक्षम है. यह राज्य सभी राज्यों से सड़क,वायु,और रेल मार्ग से जुडा हुआ है. छत्तीसगढ़ में बहुत कुछ है देखने के लिए.पुरानी गुफाएं,मंदिर,जल प्रपात आदि..हर जिले में कुछ न कुछ ! मुख्य पहेली के चित्र में आप ने दंतेश्वरी मंदिर देखा. क्लू के चित्र में इसी मंदिर का गलियारा और दूसरे क्लू में आप ने भारत का 'निआग्रा फाल'कहा जाने वाला बस्तर का 'चित्रकोट जल-प्रपात ' देखा.जिसे हाल ही के एक सर्वे में भारत के सात अजूबों में शामिल किया गया है. हम आप को पहेली के ज़रिये 'दंतवाडा ' ले कर गए थे. 'दंतवाडा में विश्व में सबसे अधीक iron -ore के desposits पाए गए हैं. यहाँ की मिटटी में खनिज प्रचुर मात्रामें है . यहाँ का मुख्य आकर्षण है दंतेश्वरी देवी का मंदिर-: आज जानते हैं 'बस्तर 'की कुल देवी के दंतेश्वरी देवी के मंदिर के बारे में-: सम्बंधित पौराणिक कथा- कहा जाता है कि सती पार्वती ने अपने पिता द्वारा अपने पति, भगवान शिव का अपमान किए जाने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी. भगवान शिव को आने में थोड़ी देर हो गई, तब तक उनकी अर्धांगिनी का शरीर जल चुका था. उन्होंने सती का शरीर आग से निकाला और तांडव नृत्य आरंभ कर दिया. अन्य देवतागण उनका नृत्य रोकना चाहते थे, अत: उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को मनाने का आग्रह किया. भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए और भगवान शिव ने नृत्य रोक दिया. कहा जाता है कि डंकिनी-शंखनी नदी के तट पर परम दयालु माता सती का दांत वहां गिरा था और यह जगह एक शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हो गया और दंतेश्वरी माता के रूप में देवी को यहाँ पूजा जाने लगा. इसी मंदिर से सम्बंधित बस्तर के राजा की एक कहानी और सुनिए-- बस्तर के राजा अन्नमदेव वारांगल, आंध्रप्रदेश से अपनी विजय के बाद बस्तर की ओर बढ रहे थे साथ में मॉं दंतेश्वरी का आशिर्वाद था . गढों पर कब्जा करते हुए बढते अन्नमदेव को माता दंतेश्वरी नें वरदान दिया था जब तक तुम पीछे मुड कर नहीं देखोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी . राजा अन्नमदेव बढते रहे, माता के पैरों की नूपूर की ध्वनि पीछे से आती रही, राजा का उत्साह बढता रहा . शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर विजय मार्ग पर बढते राजा अन्नमदेव के कानों में नूपूर की ध्वनि आनी अचानक बंद हो गई . वारांगल से पूरे बस्तर में अपना राज्य स्थापित करने के समय तक महाप्रतापी राजा के कानों में गूंजती नूपूर ध्वनि के अचानक बंद हो जाने से राजा को वरदान की बात याद नही रही, राजा अन्नमदेव कौतूहलवश पीछे मुड कर देखा. माता का पांव शंखिनी-डंकिनी के रेतों में किंचित फंस गया था! अन्नमदेव को माता नें साक्षात दर्शन दिये पर वह स्वप्न सा ही था . माता ने उनसे कहा 'अन्नमदेव तुमने पीछे मुड कर देखा है, अब मैं जाती हूं . बस वहीँ 'डंकिनी-शंखनी' के तट पर माता सती के दंतपाल के गिरने वाले उक्त स्थान पर ही जागृत शक्तिपीठ, बस्तर के राजा अन्नमदेव ने अपनी अधिष्ठात्री मॉं दंतेश्वरी का मंदिर बनवाया दिया . ------------------------ ----ऐसा भी कहा जाता है कि यह नाम देवी का नया नाम है इनका पुराना नाम मानिकेश्वरी देवी था. -यह मंदिर चार भागों में है- गर्भ गृह,महा मंडप,मुख्य मंडप, और सभा मंडप..-पहले दो भाग पत्थर में बने हैं. यह मंदिर भी कई बार बनवाया गया है और वर्तमान स्वरुप ८०० साल पुराना है.एक गरुड़ स्तम्भ भी मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने बाद में ही बनवाया गया था. यहाँ का ५०० साल से चलता आ रहा बस्तर दशेहरा मेला बहुत ही प्रसिद्द है.एक लकडी के रथ पर माता की कैनोपी को रख कर यहाँ की tribes के लोग खींचते हैं. --------------------- कैसे पहुंचे- यह जगह जगदलपुर से डेढ़ घंटे कि दूरी पर है. सबसे नज़दीक हवाई अड्डा -रायपुर का है. विशाखापत्तनम से बैलाडाला जाती हुई रेल थोडी देर को इस स्टेशन पर रूकती है. जगदलपुर सब से करीबी शहर है. आंध्र प्रदेश से दंतवाडा के लिए नियमित बस सेवा है. मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के बड़े शहरों को जाती बसें भी यहाँ रुक कर जाती हैं. -------------- कब जाएँ--वर्ष पर्यंत जब भी माता का बुलावा हो. ------------------------------------ आज के लिए इतना ही....अगली बार एक नयी जगह ले कर आप को चलेंगे,तब तक के लिए नमस्कार. |
यह डॉग तो पढ़ता है.. पैट डॉग्स को मौखिक निर्देशों का पालन करना तो सभी सिखाते हैं, लेकिन न्यूयॉर्क की एनिमल ट्रेनर लीजा रोजेनबर्ग ने वह कर दिखाया है, जो नामुमकिन सा लगता है। उन्होंने अपने पैट डॉग को पढ़ना सिखा दिया है और अब वह लिखित निर्देशों का पालन करने लगा है। जब उसे बोर्ड पर bang लिखा दिखाया जाता है तो वह आराम से लेट जाता है, wave दिखाते ही अपने अगले पंजे को उठाकर हिलाने लगता है और जब उसे sit up शब्द दिखाया जाता है तो अपने पिछले पैरों के बल सीधा खड़ा हो जाता है, मानों इंसानों की तरह बैठ गया हो। रोजेनबर्ग अब अपने विलो नामक इस पालतू दोस्त को विभिन्न विज्ञापनों औऱ टीवी शो के लिए तैयार कर रही हैं। वे दावा करती हैं कि विलो करीब 250 ऐसे निर्देशों का पालन कर सकता है, जो किसी सामान्य डॉग के लिए मुश्किल है। रोजेनबर्ग जी, आप हमारी रामप्यारी को नहीं जानतीं। वह ढाई सौ तो क्या ढाई लाख ऐसी चीजें कर सकती है, जो आप भी नहीं कर सकतीं :) |
एक औरत अपने घर के बाहर आई और लंबी सफेद दाढ़ी में उसने सामने बैठे 3 बूढ़े आदमियों को देखा. वह उन्हें जानती नहीं थी. वह बोली "मुझे लगता है आपको भूख लगी होगी. कृपया अंदर आयें मै आपको खाने के लिए कुछ देती हूँ. उन्होंने पुछा क्या घर का मुखिया घर पर है???? "नहीं", उस महिला ने उत्तर दिया. "वह बाहर है." "तब हम घर में नहीं आ सकते, उन बजुर्गो ने कहा.. शाम को जब उसका पति घर आया था, तब उसने दिन में घटे घटनाक्रम के बारे में, सब कुछ बताया . तब उसके पति ने कहा " कल मैं घर में रहुंगा तो जब आयें तो उन्हें अन्दर आने को आमंत्रित करना. अगले दिन वो फ़िर आये. वह बाहर जाकर उन पुरुषों को अंदर आने का निवेदन किया. "हम एक घर में एक साथ नहीं जाते हैं," उन्होंने कहा. ऐसा "क्यों है?" उस महिला ने पूछा तब उनमे से एक बूढ़े आदमी ने विस्तार में बताना शुरू किया...: "उसका नाम धन," वह एक अपने दोस्तों की ओर इशारा करते हुए कहा, और एक दूसरे की ओर इशारा करते हुए कहा, "वह सफलता है, और मैं प्यार हूँ." तब उसने कहा, "अब जाओ और अपने पति से पुछ कर आओ की सबसे पहले वो अपने घर में किसका प्रवेश चाहते हैं" औरत घर में गयी और अपने पति से सब कुछ कहा. उसका पति बहुत खुश हुआ और बोला ये बात है , तो हम धन को आमंत्रित करते हैं , ताकि हमारा घर धन के साथ भर जाये. उसकी पत्नी अपने पति की बात से असहमत दिखी और बोली क्यों न हम सफलता को पहले आमंत्रित करें??? उनकी बेटी जो घर के दूसरे कोने से सुन रही थी, बीच में आकर बोली , इस वक़्त प्यार को आमंत्रित करने के लिए बेहतर होगा? हमारा घर तो प्यार से भर जाएगा!" ये सुन कर पति ने पत्नी से कहा....क्यूँ न हम अपनी बेटी की सलाह पर ध्यान दे. बाहर जाओ और प्यार को हमारे मेहमान के रूप में आमंत्रित करो" वह औरत बाहर गई और 3 बूढ़ों, से बोली की आप सब में से प्यार को मेरे साथ अंदर आने के लिए आमंत्रण है. जैसे ही प्यार उठा और चलने लगा धन और सफलता भी उसके पीछे पीछे चलने लगे, इस पर उस महिला ने हैरान होकर कहा मैंने तो सिर्फ प्यार को निमंत्रण दिया है फिर आप लोग????? बूढ़े आदमियों ने एक साथ उत्तर दिया: "यदि आप दौलत या सफलता, को बुलाती तो बाकि दो बाहर ही रह जाते , मगर आपने प्यार को बुलाया तो हम भी साथ ही आयेंगे क्यंकि , जहाँ प्यार होता है, वहाँ संपत्ति और सफलता दोनों ही होतें हैं |
बैजनाथ बैजनाथ अल्मोड़ा से 41 मील दूर स्थित है। इसको प्राचीन समय में वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है। वैजनाथ को कत्यूरी राजवंश के लोगों ने बसाया था। बैजनाथ के पास में ही सरयू नदी बहती है। बैजनाथ के मुख्य मंदिर के पास ही केदारनाथ का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में शिव की मूर्ति के साथ -साथ गणेश, ब्रह्मा, महिषमर्दिनी की मूर्तियां रखी हुई हैं। इस मुख्य मंदिर के चारों ओर 15 छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है। यह मंदिर उत्तरीय शिखर शैली से बनाये गये हैं। बैजनाथ के मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पर सत्यनारायण , रकस देव तथा लक्ष्मी के मंदिर स्थित हैं। सत्यनारायण मंदिर की चर्तुभुजी विष्णु प्रतिमा खासी दर्शनीय है। इस मूर्ति को काले पॉलिशदार पत्थर से बनाया गया है। यह मूर्ति बहुत विशाल है। बैजनाथ की कई मूर्तियों को अब केन्द्रीय पुरातन विभाग ने अपने पास संरक्षित कर लिया है। इन संरक्षित मूर्तियों में शिव -पार्वती की मूर्ति तथा ललितासन में बैठे कुबेर की मूर्ति हैं। इनके अतिरिक्त सप्तमातृका, सूर्य, विष्णु, माहेश्वरी, हरिहर, महिषमर्दिनी आदि की मूर्तियां हैं। |
राजस्थानी दाल ढोकली भारत देश मे विभिन्न संस्कृतिया बसती है। चारो ऋतुओ का भी यहा दबदबा है। उसी के अनुरुप हमारे विभिन्न प्रान्तो मे मोसम अनुसार भी स्वादिष्ट एवम पोष्टिक खाना बनता है। वर्षा अमुमन भारत के हर हिस्से मे अपनी दस्तक दे चुकी है। मै आज बरसात के दिनो मे बनाई जाने वाली एक राजस्थानी व्यंजन विधि आपका परिचय कराने जा रही हू जो खाने मे तो मजेदार तो है ही पर स्वास्थ के लिए भी लाभकारी है। सभी इसे पसन्द करेगे। 3-4 व्यक्तियो के लिए दाल ढोकली सामग्री *मूग दाल (छिल्केवाली) 1 कटोरी *गेहू का आटा 1-1/2 कटोरी *तेल/घी 4 छोटा चम्मच *लालमिर्च पाउडर 1-1/2 छोटा चम्मच *हल्दी *अजवाईन *राई *जीरा *हिन्ग *कडीपत्ता *नमक बनाने का तरिका सबसे पहले आप गेहू का आटा ले। उसमे तेल या घी का मोयन, नमक, लाल मिर्ची पाउडर, थोडी सी हल्दी, थोडी सा अजवाईन डाले। अब आटे को सख्त गून्ध ले। ऑटा गून्ध लेने के बाद उसकी छोटी छॉटी गोल लोईयॉ {छोटे टूकडे/balls) बना ले। प्रत्येक लोई {छोटे टूकडे/balls) को हथेली के बीच मे रखकर अगुली से दबाऐ और खाली बर्तन मे रखते जाए। गैस पर एक पतीली रखे उसमे पानी डाले । जब पानी मे उबाल आ जाए तब धूली हूई छिल्के वाली दाल (हरी दाल ) उबलते पानी मे डाल दे। दो मिनिट बाद बनी हुई लोईयॉ {छोटे टूकडे/balls) उसमे डाल दे। अब ढक कर पन्द्रह बीस मिनट पकने का इन्जार करे। बीच बीच मे चम्मच से हिलाते रहे। एक अलग कडाई मे घी गर्म करे। उसमे राई, जीरा,हिन्ग, कडीपत्ता, और मिर्ची पाउडर का तडका डाले। दाल के साथ उबली ढोकली को भी कडाई मे डाल दे । अब तैयार है लजीज दाल ढोकली । उसे एक प्लेट मे डाले, उपर (इच्छा हो तो) थोडा सा घी और हरा धनिया-पती से सजाकर परोसे । नोट-: छोटी छोटी गोल लोईयॉ {छोटे टूकडे/balls) कैसे बनानी है फोटु को बडा कर देख ले। जाते जाते एक बात- कल मैने रसोई घर मे निम्बु और अमरुद (जाम) को बाते करते हुये सुना - निम्बु अमरुद से कहता है-" कि मेरे गर्भ मे अगर प्रकृति ने बीज नही बनाया होता तो मुझ मे वह सामर्थ्य होता कि मै किसी को मरने नही देता। पलट कर अमरुद बोला -" अगर मेरे गर्भ मे बीज नही होता तो जो भी मुझे खाता मै उसे जीने नही देता। उक्त दोनो ही तथ्य औषधि शास्त्रियो के मताअनुसार शत-प्रतिशत सत्य है। निम्बु कहता है- @ शिशु अगर माता का दुध उलटी करता हो तो मेरे रस के पॉच बुन्द और तीन चम्मच पानी मिलाकर शिशु को पिलाया जाए तो शिशु दुध नही उलटेगा। @आगे निम्बु बोलता है- मेरे टुकडे करके फ्रिज मे रखेगे तो फ्रिज मे दुर्गन्ध नही आएगी। @और तो और जो कोई भी गुनगुने पानी के साथ नमक डालकर एक गिलास भूखे पेट सुबह-सुबह नित्य मुझे पीयेगा, उसका मोटापा कम कर दुगा। अब मुझे आज्ञा दीजिए अगले सप्ताह मै फिर आऊगी एक नये रेसिपी के साथ। नमस्कार। प्रेमलता एम सेमलानी |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरू ..देख देख ये अभिव्यक्ति अंकल क्या कह रहे हैं? अरे क्या? देख देख ये तो बोल रहे है कि समीर अंकल और रावण दोनो क्लास फ़ेलो थे. अरे वाह…ला दिखा.. अरे दिखा क्या? ले खुद ही बांच ले सारी टिपणियां.
अरे आज तो मजा आगया इन टिपणियों में. हां यार ..चल अब जरा घूम फ़िर कर आते हैं बरसात में. हाम..हां..चल भाई. |
ट्रेलर : - पढिये : सुश्री पारुल जी से आत्मिय बातचीत
इस सप्ताह के गुरुवार शाम ३:३३ पर परिचयनामा में मिलिये पारूल…चाँद पुखराज का से ताऊ : अगर अब मैं आपसे यह पूछूं कि आपकी सबसे बडी कमजोरी क्या है? पारुल जी : मेरी कमजोरी? ताऊ जी, मैं .दूसरों पे जल्द विशवास कर लेती हूँ ...इसलिए अकसर वसीम बरेलवी का एक शेर याद आता है - हमारी सादा मिजाजी की दाद दे की तुझे बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे ताऊ के साथ एक बहुत ही सौम्य मुलाकात हमारी सम्माननिय मेहमान सुश्री पारुलजी से |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
ताऊजी आपने हिन्दी ब्लोग जगत कि दुखती नस पर हाथ रख दिया। आपने कह दिया लोग मन ही मन बोझ लेकर घुम रहे है। अति सुन्दर एवम आवश्यकता अनुरुप आज आपने सबकी खबर ली है। मै इसे शिक्षा के रुप मे ग्रहण करना चाहूगा।
ReplyDeleteस्नेह बनाए रखे।
आपका अपना
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
समीरजी,
ReplyDeleteअल्पनाजी वर्मा,
आशीषजी खण्डेलवाल,
Seemaजी Gupta, -
सुश्री विनीताजी यशश्वी ,
-प्रेमलता एम. सेमलानी,
"मैं हूं हीरामन"
का आभार कि उन्होने प्यारी प्यारी गुणदायक बाते हम पाढको के बीच बॉटी।
पारूलजी…चाँद पुखराज का इन्तजार रहेगाजी
स्नेह बनाए रखे।
आपका अपना
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
Aji apke rahte to bloggers ko jinda hona hi parega..kahan jayenge bhagkar !!
ReplyDelete"शब्द-शिखर" पर इस बार "ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी'' का आनंद लेकर अपनी राय से अवगत कराएँ !!
आज तो ताऊ का संपादकीय भी गजब का है. अच्छी खबर ली है ताऊजी. सभी को धन्यवाद.
ReplyDeleteदंतेश्वरी देवी का मंदिर और छत्तीसगढ़ के विषय में अल्पना जी ने बहुत विस्तार से जानकारी दी.
ReplyDeleteसीमा जी की कथा-हर बार की सीख देते हुई-प्यार है तो सर्वस्व है, आभार.
आशीष भाई-राम प्यारी से कब कौन आगे निकल पायेगा-बिकुल सही कहा आपने.
विनीता जी बैजनाथ की मय तस्वीर यात्रा कराई, बहुत उम्दा.
प्रेमलता जी की रेसिपि-क्या कहने और उस पर से नींबू और अमरुद की बातचीत के साथ नीबू के घरेलू नुस्खे-हम तो अब गुनगुने पानी में नमक डाल कर निम्बू पीने जा रहे हैं, आकर टीपेंगे.
हीरामन:रावण हमारा क्लासमेट था-ये बात अभिव्यक्ति जी को जरुर रामप्यारी ने चुगली होगी-वो ही बातूनी है. कुछ पचता ही नहीं उसके पेट में. :)
पारुल जी के साक्षात्कार का इन्तजार लग गया है.
॒ताऊ: हालात ये हैं कि अब आप हमारी परमिशन का इन्तजार करेंगे, लोग क्या समझेंगे कि सम्पादक मंडल आपस में मिलता भी या नहीं.. हा हा!! छाप दो महाराज!!
आज की पत्रिका भी बहुत ही अच्छी लगी.
ReplyDeleteताऊ जी की सलाह सामायिक है.समीर जी ने भी बहुत ही अच्छी टिप्स दी हैं और अर्श की पंक्तियाँ तो दाद के काबिल हैं ही.
विनीता जी ने बैजनाथ की सैर कराई..और सीमा जी ने दी एक नयी सीख.
आशीष जी आप ने रोजेनबर्ग जी को सही खबर दी है...हमारी रामप्यारी किसी से कम नहीं है...
-प्रेमलता जी आप ने तो पाक विधि सिखाते सिखाते निम्बू के उपयोग भी रोचक ढंग से बताये.शुक्रिया..
taau ......dheere dheere patrika poore blog jagat पर chaati जा रही है............. और ये सब aapkaa ही कमाल है........ सब dhurandhar इस patrika में chaar chaand लगा देते हैं
ReplyDeleteताउजी आज आपने और समीरजी ने बहुत अछि क्लास ली, व्यंग करते समय ध्यान में रखना बहुत जरुरी की कोई आहत न हो, किसी का दिल न दुखे, किसी के मान का मर्दन ना हो | मैं तो एक अदना सा ब्लॉगर हूँ | जिसे आप ब्लॉग जगत का शिशु कह सकते हैं | ढाई या तीन महीने का | इसलिए प्रयास रत हूँ की मैं भी आपके साथ चलने की कौशिश करूँ ! लेकिन बच्चों को चलना परिवार के बड़े सिखाते हैं | आप इसी प्रकार संभालते रहें | अगर मेरी टिप्पणी या मेरे लिखित किसी लेख से कोई आहत हुआ हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ |
ReplyDeleteसीमा जी की कहानी बहुत रास आती है | प्यार के साथ दौलत और सफलता अपने आप आते हैं | अल्पना जी द्वारा छतीसगढ़ के बारे में जान पाए | और आशीषजी तो कमाल कमाल की न्यूज़ लाते हैं पढने वाला कुता | रामप्यारी को चिढ न हो जाये कहीं ? और विनीताजी भारत की धरोहरों के बारे सुन्दर जानकारियाँ देती हैं ! प्रेम लता जी से शिकायत है की वे हमारी भूख बढाती हैं !! ढोकलों की याद दिला के अब राजस्थान कूच करने को मजबूर हो गया इसलिए ११.०७.०९ को जा रहा हूँ | हीरू बड़ी पैनी नजर रखते हो टिप्पणियों पे ?? पढने वाला तोता हा..हा..|
पारुल चाँद पुखराज के साक्षात्कार का इन्तेजार है |
"हमने अभी पिछले बुधवार यानि ठीक ५ दिन पहले ताऊजी डाट काम शुरु किया था. आश्चर्य तब हुआ जब कल चिठ्ठाजगत मे उसकी सक्रियता क्र. २५७ दिखी. "
ReplyDeleteताऊ, हाथ में लट्ठ, मुछों पर ताऊ अब सक्रियता ढंग की न दे तो मजाल है... ताऊ यूँ ही थोड़े है..::))
ताऊ ये "सकारात्मक मौज" है..
बाकी टिप्पणी सारे लेख पढ़्ने के बाद..
हिंदी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा को लेकर जब कभी मेरे मन में नैराश्य-भाव आता है तो उसी समय छत्तीसगढ़ के ब्लॉगरों में बारे में खयाल भी आता है और आशा की एक किरण-सी झिलमिलाने लगती है।
ReplyDeleteइसीलिए आपके द्वारा उठाए गए मुद्दे के बाद अल्पना जी द्वारा छत्तीसगढ़ के बारे में बताना बहुत अच्छा लगा।
संपादकीय में कही गई ताऊजी की बात वाकई चिंतनीय है। मेरे विचार से हिन्दी ब्लॉगर समुदाय को इस तरह समृद्ध किया जाना चाहिए कि अगर कोई साथी यहां पहली बार आता है, तो उसे इतना प्रोत्साहन मिले कि वह नियमित रूप से लेखन जारी रखे। अल्पनाजी और विनीता जी की जानकारी शानदार रही औऱ सीमा जी कहानी हमेशा की तरह प्रेरक। समीर जी की टिप शानदार रही और प्रेमलता जी ने तो हमारे ही प्रांत के दाल ढोकले दिखा कर मुंह में पानी ला दिया। हीरामन, रामप्यारी का भी विशेष आभार..
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक। मजा आया, और ज्ञान वर्धन भी हुआ।
ReplyDeleteआते-आते ही ढाई सौ के भीतर अपनी पैठ बना लिए- बधाई। अब उस ब्लाग पर तो खूब रंग जमेगा-कौन बनेगा करोड़पति का:)
ReplyDeleteक्या बात है ताऊ -- आज बडे़ सीरियस मूड में दिखाई दे रहे हो??
राम राम
इतनी साड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ इकट्ठे एक ही जगह! सभी ज्ञान वर्धक. कुत्ते को पढना सिखाया जा रहा है. यह हमारे लिए अजूबा था. सभी लेखक लेखिकाओं को आभार
ReplyDeletebahut sundar patrika. sabhi ka abhar.
ReplyDeletetaauji bloggers ke bare main apane likha wo bahut sahi bat hai. dhanyavad.
ReplyDeletebadhiya ank....uttrakhand ke bejnath temple ke pics dekhna sukhad raha...
ReplyDeleteएक और खूबसूरत अंक के लिये पूरी टीम का आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद।
समीरजी, अल्पनाजी वर्मा,आशीषजी खण्डेलवाल,
ReplyDeleteसीमाजी गुप्ता, सुश्री विनीताजी यशश्वी , सुश्री प्रेमलता एम. सेमलानी,
आप सभी कॊ बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
समीरजी, अल्पनाजी वर्मा,आशीषजी खण्डेलवाल,
ReplyDeleteसीमाजी गुप्ता, सुश्री विनीताजी यशश्वी , सुश्री प्रेमलता एम. सेमलानी,
आप सभी कॊ बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
आज ताऊजी आपने संपादकिय मे बहुत ही उम्दा बातें लिखी हैं उनपर ध्यान दिया जाना चाहिये.
ReplyDeleteरामराम.
आज ताऊजी आपने संपादकिय मे बहुत ही उम्दा बातें लिखी हैं उनपर ध्यान दिया जाना चाहिये.
ReplyDeleteरामराम.
ताऊ जी आज तो बहुत ही सुंदर और इस्टमैनकलर मे लग रही है आपकी पत्रिका. इतनी कलर फ़ुल कैसे बनाते हो आप इसको? जरा यह फ़ारमुला हमे भी बताईये.
ReplyDeleteताऊ जी आज तो बहुत ही सुंदर और इस्टमैनकलर मे लग रही है आपकी पत्रिका. इतनी कलर फ़ुल कैसे बनाते हो आप इसको? जरा यह फ़ारमुला हमे भी बताईये.
ReplyDeleteबहुत बधाई जी सभी को.
ReplyDeletebahut sundar patrika
ReplyDeleteएक आकर्षक अंक के लिये बधाई.
ReplyDeletehar baar ki tarah khubsurat,gyanvardhak patrika.
ReplyDeleteमजेदार रोचक पत्रिका। पढकर अच्छा लगता है।
ReplyDeleteताऊ मुझे यह भाव बिह्वल ताऊ नहीं चाहिए -मुझे वह लट्ठ वाला ताऊ ही सदा पसंद है -कलैव्यता और ताऊ ? याद है ताऊ मेरे प्रिय चिट्ठाकार क्यों रहे -अपने लट्ठ भाजने की ताकत के साथ -फिर ऐसी बातें !
ReplyDeleteपत्रिका पूरे शबाब पर है -यह हिन्दी चिट्ठाजगत के इतिहास में सुनहला पृष्ठ जोड़ चुकी है ! आगे बढ़ते रहे,आप पायेगें कुछ मित्र आपके साथ ही रहेगें !
ताऊ जी बहुत बदियापकी पत्रिका आकाश छूने लगी है पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteफिर एक शानदार अंक,बधाई जी सभी को.
ReplyDeleteताऊ जी सम्पादकीय में तो आपने बहुत सही बात कही। शुरू शुरू में तो हमारे मन में भी ब्लाग नैरैश्य का भाव जागृ्त हो गया था। लेकिन जब देखा कि ये तो शायद इस ब्लागजगत की परम्परा ही है तो फिर उसके बाद से अपना अभियान अभी तक बदस्तूर बिना रूके चल रहा है।
ReplyDeleteपत्रिका के आज का ये अक भी सहेजने योग्य है। सभी सम्पादकों की मेहनत स्पष्ट झलक रही है।
धन्यवाद.........
हंसी और व्यंग के बीच आप एक बहुत ही बडी और काम की बात बता गये. सत्य वचन.
ReplyDeleteआपने १०० बात की एक बात कह दी -
हमें दूसरे की लकीर छोटी करने की बजाय अपनी लकीर को बडा करने का जतन करने में उर्जा लगानी चाहिये.
अल्पनाजी की मेहनत दिन ब दिन निखरती जा रही है. क्या क्या अनुसंधान कर्ती हैं तो हम लाबाह्न्वित होते हैं.
आज की सीमाजी की कहानी में जो सीख है, वह लाखों की है. मगर काश लोगों को इसपर यकीन हो.....
प्रेम से मात्र निजी ही नही,अपने घर ,अपने कार्य क्षेत्र, समाज , देश और संस्कृति में खुशहाली आती है. सफ़लता और धन तो छोटे उद्येश्य है, खुशहाली बडा लक्ष्य.
Money & Success is Temporory, subjective means, not END.
समीरजी की सलाह पर भी काश ब्लोगर्स ध्यान दें.
ज्ञानवर्धक और रोचक पोस्ट के लिए आभार!
ReplyDeleteआदरणीय ताऊ,
ReplyDeleteइस संदर्भ में आपने जो कुछ कहा वो भी और समीरजी के साथ अन्य ब्लागर्स ने जो कुछ कहा वो भी बिल्कुल वाजिब ही कहा है। हमें भी आप इसी शामिलात में पाइएगा।
ताऊ और समीर जी ने अपने सम्पादकीय में स्थान दिया है..मतलब की मामला काफी गंभीर है ...ईश्वर ऐसे ब्लोगेर्स को सद्दबुधि दे ..
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक अंक ...दाल धोकली बच्चों को बहुत पसंद है ...अब तुअर की जगह मुंग की दाल इस्तेमाल कर देखूँगी ...
छत्तीसगढ़ का वर्णन रोचक है ..कुत्ता इतना होशियार ..!!
कुल मिलकर बहुत ही रोचक अंक !!
बहुत बढ़िया पत्रिका ताऊ जी और ज्ञानवर्धक पोस्ट! एक ख़ूबसूरत अंक के लिए पूरी टीम को आभार और शुभकामनायें!
ReplyDeleteआज ही पढ़ पाई ये अंक.....ताऊ जी आपकी सीख सच मे कबीले तारीफ है सकारात्मक मौज लेने और नकारात्मक मौज लेने में बहुत फ़र्क है, येपंक्तियाँ अपने आप मे सब कुछ कह गयी.....पत्रिका में सभी आदरणीय जनों का योगदान तारीफ़ योग्य है...
ReplyDeleteregards
राम राम..
ReplyDeleteआपका लेख अद्भुत है... और ये हम सभी के लिये एक मार्ग दर्शन है.. हंसी मजाक, कहां नहीं होती पर मौज लेने के भी तरिके होने चाहिये.. सकारात्मक मौज.. व्यर्थ की टांग खिचाई से बाज आना.. यही वक्त की मांग है..
"जहाँ प्यार होता है, वहाँ संपत्ति और सफलता दोनों ही होतें हैं.." क्या बात है... सीमा की स्तंभ् हमेशा की तरह ही प्रेरणा दायक..
दाल ढोकली का स्वाद.. अभी मम्मी दिल्ली आई थी तो उन्होने बनाई थी.. बहुत याद आती है इसकी और बरसात के दिनों में तो क्या कहने...
आभार..
पूरी टीम तो बधाई इस खुबसुरत अंक के लिये..
ताऊ जी हम तो आपके पीछे-पीछे चलेंगे।अल्पना जी का भी आभार्।आपने तो छतीसगढ की पूरी तस्वीर खींच दी।नक्सल समस्या को छोड दें तो इस राज्य के तरक्की के पूरे आसार अहि।यंहा लोहे का अकूत भंडार तो है ही सीमेंट उड्योग के लिये चूना पत्त्थर प्रचूर मात्रा मे है।सामरिक महत्व के टीन से लेकर आण्विक महत्व के यूरेनियम तक़ यंहा रिपोर्टेड है।बिजली की यंहा कमी नही है,कोयला भी भरपूर है,वनोपज और औषधि मे भी इसका मुक़ाबला नही।बेशकिमती हीरा और दुर्लभ एलेक्ज़ेंड्राईट तक़ यंहा की पावन धरा के गर्भ मे अटे पडे हैं।माता कौशल्या का ननिहाल तो है ही,ससकृति मे भी यंहा नालंद और तक्क्षिला से पुराना केन्द्र सिरपुर रहा है।यंहा की धरती बेहद अमीर है लेकिन लोग उतने ही गरीब्।सारे देश मे मज़दूरो की नई मंडी के रूप मे उभरा है ये राज्य्।पलायन यंहा की मुख्य समस्या है जिसे परंपरा कह कर टाल दिया जाता है।सच मे रत्नगर्भा वसुंधरा है छत्तीसगढ्।इसिलिये मैने अपने ब्लाग का शीर्षक रखा है अमीर धरती गरीब लोग्।
ReplyDeleteताऊ जी की शिक्षा
ReplyDeleteसमीर जी की सलाह
अल्पना जी के पन्ने पर छत्तीसगढ राज्य की विस्तृत जानकारी
आशीष जी की नजर से दुनिया की रोचक खबर
सीमा जी की कलम से दर्शनात्मक और शिक्षाप्रद कहानी
विनीता जी से प्राचीन भारत के बारे में जानकारी
नारीलोक में प्रेमलता जी से निंबू के गुणों के बारे जानकारी
(काश प्रेमलता जी दाल ढोकली बना कर भेजती, केवल लोईयां ही भेजी हैं, यहीं पर चख लेते)
हीरामन जी द्वारा मनोरंजक टिप्पणियां
सब का बहुत-बहुत आभार
अब फिर से ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का सप्ताह भर इंतजार करना पडेगा
पारुल जी से जल्दी मिलवाइये ताऊ जी
प्रणाम स्वीकार करें
खाना-पिना, हँसी-मजाक, ज्ञान-सलाह, सभी कुछ हो गया. मजा आया. लगता है अब पाठको के प्रश्नों के उत्तर भी शामिल किये जाने चाहिए.
ReplyDeleteसीमा जी की प्रेरणा से भरी कहानी बहुत अच्छी लगी...
ReplyDeleteपत्रिका का यह अंक कुछ खास सा लगता है...
मीत
ताऊ जी
ReplyDeleteइस बार भी पत्रिका बहुत निखरी हुयी नज़र आई..
उड़नतश्तरी जी की सलाह ध्यान देने योग्य है ....आशीष जी का लेख भी मजेदार था सीमा जी की कहानी बहुत शिक्षाप्रद थी ..बैजनाथ बहुत ही खुबसूरत जगह है ...सरयू और गोमती के संगम का दृश्य बहुत ही सुन्दर दिखता है यहाँ पर ....
लाजवाब पत्रिका !!
Kaafi achhi aur bahut hi samjhdaari wali baat.. Wasie humari shuruaat bhi aisi hui thi..Naya naya tha, ek backlink dikha to ek famous blog discussion par humara achha khasa mazaak udaya gaya tha aur kaafi bade log use padhkar khush hue aur comments diye.. naam nahin loonga :P
ReplyDeleteAise blogs jaldi hit hote hain kyunki unka network hota hai..Main boloonga asli log to anurag ji jaise honge.. Bas likhte hain aur achha likhte hain isliye log padhte hain.. :) aur tau ji aap bhi, shayad hi koi aisi blog post ho jise aap na padhte ho aur ek uchit comment na dete ho..inspiration ke liye bahut hai :)
BTW koi gila shikwa nahin, humara janmdin bhi usi blog ne wish kiya tha aur kaafi saari badhaiyan bhi di thin.. Isliye mujhe lagta hai sab kuch zindagi ke bahaav ki tarah hain..kabhi kisi taraf, kabhi kisi taraf..
कुछ तो सीखे हम ब्लौग वाले...
ReplyDeleteपारूल जी के साक्षत्कार का इंतजार है...