धन के अभाव मे
एक लाचार गरीब औरत
अपने बीमार दुधमुहें बच्चे का
इलाज नही करवा पा रही थी
हताश निराश होकर
ईश्वर के, मंदिर मे जा पहुंची
हे ईश्वर,
मेरे बच्चे के इलाज के लिये
सिर्फ़ पांच सौ रुपये चाहिये.
अब ईश्वर की दुविधा
कहां से दे उसको रुपये?पर औरत वहीं खडी होकर
प्रार्थना करती रही.....
इधर एक सेठ परेशान
इस मंदिर का निर्माता
पुजारियों का आश्रयदाता
पुण्यात्मा, धर्मात्मा
हडबडाया सा, आज पहली बार
अपने पुण्य के बदले
भगवान से कुछ मांगने आया
कहां से दे उसको रुपये?पर औरत वहीं खडी होकर
प्रार्थना करती रही.....
इधर एक सेठ परेशान
इस मंदिर का निर्माता
पुजारियों का आश्रयदाता
पुण्यात्मा, धर्मात्मा
हडबडाया सा, आज पहली बार
अपने पुण्य के बदले
भगवान से कुछ मांगने आया
मगर बाधा बनी
उस औरत की उपस्थिति
वो औरत अंत तक
अपनी जिद्द पर अडी रही
इधर सेठजी का समय बेशकीमती
बहुत ईंतजार के बाद, झल्लाकर
उन्होने अपनी जेब से
पांच सौ का नोट निकाला
उस औरत को देते हुये बोले
अब तू जा और इलाज करवा
मुझे भी प्रार्थना करने का मौका दे
अब सेठ जी, बोले
हे ईश्वर
मैने कितने ही पुन्य के काम किये
मैने ये सुंदर सा मंदिर बनवाया
रोज तेरी सेवा पूजा के लिये
पुजारी रख छोडे,
सारा मंदिर का खर्चा ऊठाया
पर आज मैं संकट मे हूं
सिर्फ़ ५० करोड का झगडा है
शेयर बाजार मे हो गया लफ़डा है
लगा मुझे घाटा तगडा है
लेनदारों की लाईन है घर पर
कृपा करो हे प्रभु मुझ पर
ईश्वर की दुविधा बढी
सोचने लगा
इस औरत और सेठ में
कौन बडा भिखारी ?
उस औरत की उपस्थिति
वो औरत अंत तक
अपनी जिद्द पर अडी रही
इधर सेठजी का समय बेशकीमती
बहुत ईंतजार के बाद, झल्लाकर
उन्होने अपनी जेब से
पांच सौ का नोट निकाला
उस औरत को देते हुये बोले
अब तू जा और इलाज करवा
मुझे भी प्रार्थना करने का मौका दे
अब सेठ जी, बोले
हे ईश्वर
मैने कितने ही पुन्य के काम किये
मैने ये सुंदर सा मंदिर बनवाया
रोज तेरी सेवा पूजा के लिये
पुजारी रख छोडे,
सारा मंदिर का खर्चा ऊठाया
पर आज मैं संकट मे हूं
सिर्फ़ ५० करोड का झगडा है
शेयर बाजार मे हो गया लफ़डा है
लगा मुझे घाटा तगडा है
लेनदारों की लाईन है घर पर
कृपा करो हे प्रभु मुझ पर
ईश्वर की दुविधा बढी
सोचने लगा
इस औरत और सेठ में
कौन बडा भिखारी ?
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
बड़ा जो भी हो. पहले की समस्या हल हो गई, दुसरे के लिए भी पीछे पीछे कोई आता होगा. परेशान न हो भगवान, क्योंकि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं....
ReplyDeleteभगवान् बेचारे उस बड़े गरीब सेठ जी की मदद करें...
ReplyDeleteजितनी बड़ी मांग प्रभु से उतना ही बड़ा भिखारी...
ReplyDeleteनीरज
Waah !! Kya baat kahi.....
ReplyDeleteअब सबसे बडा भिखारी कौन ?
ReplyDeleteसेठ बहुत दयालु था.. पैसे देकर भगाया.. एसे भी हटा सकता था..
ReplyDeleteताऊ राम-राम!
ReplyDeleteभगवान सबका मालिक है।
वाह! क्या कहानी है। भगवान सोच रहे होंगे। इस सेठ की समस्या दूर करूंगा तो इस से बड़ा भिखारी आ खड़ा होगा? कहीं तो अन्त करना पड़ेगा।
ReplyDeleteभगवान जरूर पछता रहे होंगे
ReplyDeleteकि 500 देकर ही छुटकारा पा जाता
लालची सेठ के चंगुल में न आता
पर भगवान भगवान रहे होंगे
500 कहां से लाते
सीधे तो उस औरत को दे नहीं पाते
इसलिए भगवान ने ही सेठ को बुलाया होगा
सेठ ने जो डील की होगी भगवान से
उसमें यही फिक्स किया होगा सेठ ने।
नीरज जी ने सही कहा है जो सब कुछ होते हुये भी माँग रहा है उस से बडा भिखारी कौन हो सकता है इस कहनी के लिये सीमा जे और ताऊ जी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeletekavita achchee likhi hai.
ReplyDelete-us zaruratmand stri ko to sahayta mil hi gayi!
-dusra seth ने भी अनजाने पुन्य का kaam कर diya...so ishwar uski भी sahyta karenge.
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया!!!!!!
ReplyDeleteइसीलिए बिन माँगे मोती मिले, की महत्ता बखानी जाती है.
ReplyDeleteसेठ, डेफिनेटली!
ReplyDeleteभगवान की यह हिम्मत ! मंदिर तो सेठ ने ही बनबाया था, भगवान मजबूर है बेचारे.
ReplyDeleteबेचारे भगवान!!! इसी लिए तो थक गये होंगे.
ReplyDeleteजितनी बड़ी मांग वो उतना ही बड़ा भिखारी...
ReplyDeleteएकाध मंदिर और बनवाना होगा तो भगवान दया करेंगे ही सेठ पर्।
ReplyDeleteबहुत सटीक बात कही ताऊ.
ReplyDeleteबहुत सटीक बात कही ताऊ.
ReplyDeleteभिखमंगा तो सेठ ही बडा है.
ReplyDeleteभिखमंगा तो सेठ ही बडा है.
ReplyDeletebahut sundar aur satik bat. par bhagwan ne garib aurat ki to sun hi li.
ReplyDeletebahut sundar aur satik bat. par bhagwan ne garib aurat ki to sun hi li.
ReplyDeleteबेहद सटीख बात. गरीब को अपनी जरुरत जितना चाहिये और अमीर को अपनी हवस और बेकाबू बढती मांगों के लिये चाहिये.
ReplyDeleteबहुत उम्दा ताऊ. बात साफ़ है. जरुरत और लोभ मे बडा फ़र्क है.
ReplyDeleteबहुत उम्दा ताऊ. बात साफ़ है. जरुरत और लोभ मे बडा फ़र्क है.
ReplyDeleteसटिक कविता
ReplyDeleteसटिक कविता
ReplyDeleteकुल मिलकर भगवान् की ऐसी तैसी हो रही है. कितनों की सुने?
ReplyDeleteसब रिलेटिव है जी !
ReplyDeleteसीमा जी क्या बात की आपने ..
ReplyDeleteबडे ही पते की जी !
- लावण्या
इंसान की अंतहीन इच्छाएँ !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किये भाव ...
सच्चाई का पुट लिए हुवे
राम राम ताऊ जी !
अब ईश्वर ही सोचने लग जाएगा तो क्या होगा? वैसा तो हर मामले में सेठ ही बड़ा होता है तो फिर इस मामले में भी बड़प्पन का हार उसी के गले में पढ़ना चाहिए.
ReplyDeleteभगवन के घर मे देर है अंधेर नहीं बहुत अच्छी प्रस्तुती ताऊ जी...
ReplyDeleteregards
ताऊ जी,
ReplyDeleteराम राम !
भगवान इस दुविधा में हमेशा और हर पल ही पड़ा रहता है कोई जिन्दगी माँगता है और कोई मौत। औलाद ना दे तो ईश्वर दोषी और दे उसके बाद इससे तो ना देता जैसे आरोप।
कभी तो ईश्वर के ईश्वर होने पर दया आती है और यहाँ देखिये रोज-रोज नये अवतार अवतरित हो रहे हैं जैसे ईश्वर ने स्पेशियल ड्राईव्ह फॉर रिक्र्यूटमेंट चलाया और अपने वालों के पहिचान कर भर्ती करा हो।
सीमा जी को बधाई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सेठ ज्यादा गरीब लगता है............... गरीब औरत तो बेचारी थोड़े से काम चला लेगी ............. सुन्दर लिखा है
ReplyDeleteसबके अपने मानक हैं, उनसे ही संचालित होता है उसका अंतस और फिर निश्चित होती है क्रिया ।
ReplyDeleteअन्त कहाँ है इसका ?
सेठ गरीब है,या दुखियारी औरत। यह भगवान का सिरदर्द है। अपन तो इतना जानते हैं कविता बहुत सुंदर है।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक कविता अपने आप में एक सवाल समेटे हुए !!!!
ReplyDeleteज़रुरत कि बुनियाद पर ही इसका निर्णय होगा.
देवी नागरानी