आज मैं आपका हृदय से आभारी हूं कि २० जून २००९ को आपने इस ब्लाग पर १०,००० वीं टिपणी करके आपका स्नेह और आशिर्वाद मुझे दिया. मैं अभिभूत हूं. जिसने एक भी टिपणी दी है उनका भी मैं आभारी हूं. बिना उनकी एक टिपणी के भी यह अधुरा ही रहता.
ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के तकनीकी संपादक श्री आशीष खंडेलवाल की यह शुरु से ही यह ख्वाहिस थी कि दस हजारवीं टिपणी कर्ता को ताऊ पत्रिका की तरफ़ से सम्मानित किया जाये. और यह टिपणियों को ट्रेक
करना भी उन्ही के बूते की बात है. मैं उनका भी हृदय से आभार प्रकट करता हूं और अब इस टिपणीयों की घोषणा के लिये उनको आमंत्रित करता हूं. इसके बाद ताऊ पत्रिका के नियमित स्तंभ हमेशा की तरह आप पढ सकते हैं.
-ताऊ रामपुरिया
प्रिय साथियों, मैं आशीष खंडेलवाल इस शुभ मौके पर आपका हार्दिक अभिनंदन करता हूं. संपादक मंडल ने तय किया है कि १०,००० वीं टिपणी के अलावा ९,९९९ वीं और १०.००१ वीं टिपणी की भी मैं घोषणा करूं. और इन तीनों ही टिपणी देने वाले साथियों को मैं मुबारकबाद देता हूं.
तो आईये सबसे पहले १०,००० वीं टिपणी करने वाली सुश्री लवली कुमारी को हार्दिक बधाई देते हैं और स्वागत करते हैं. आपका बहुत बहुत आभार. अभिनंदन आपका.
मुझे दोनों ही सवालों के जवाब नही आते ..एक का याद नही आ रहा दुसरे का पता नही.
यह थी १०,००० वीं टिपणी. |
और अब ९,९९९ वीं टिपणी की सु अन्न्पुर्णा ने. आपको भी हार्दिक बधाई और आपका बहुत आभार प्रकट करते हैं. अभिनंदन आपका.
annapurna said... कुल 101 संतानें थी, 100 पुत्र और एक पुत्री जिसका नाम शायद दुःशाला है या शान्ता है जिसका पति ही युद्ध में कृष्ण अर्जुन को बहुत दूर ले गया तब तक अभिमन्यु का वध हुआ।
यह थी ९,९९९ वीं टिपणी |
और अब १०,००१ वीं टिपणी करने वाले श्री अविनाश वाचस्पति को हार्दिक बधाई और आभार प्रकट करते हैं. अभिनंदन आपका.
अविनाश वाचस्पति said...
हिंट के आने का है इंतजार |
तो साथियों अब मुझे इजाजत दिजिये. सुश्री लवली कुमारी, सुश्री अन्नपुर्णा और श्री अविनाश वाचस्पति जी को समस्त संपादक मंडल की तरफ़ से हार्दिक बधाईयां और आभार. आप तीनों को ही ताऊ के साथ कलेवा करने के लिये शीघ्र ही निमंत्रण भिजवाया जा रहा है.
और हां मैं श्री वोयादें को भी प्रीपोल की बधाई देना चाहूंगा कि उनके अनुमान के आसपास ही ये टिपणियां आई हैं. उनके अनुमान में सटीकता इसलिये नही आई कि पहेली पोस्ट की अनेक टिपणियां रोकी हुई रहती हैं. इतनी आगे पीछे की रुकी हुई टिपणीयों मे भी इतना करीब का अनुमान लगा लेना काबिले तारीफ़ है. बधाई आपको.
-आशीष खंडेलवाल
आज बात करते हैं पोस्ट के शीर्षक, लम्बाई और उसकी साज सज्जा के बारे में. पोस्ट की लम्बाई यदि एक किसी सामान्य विषय पर बात चल रही है तो ५०० से ७०० शब्दों से ज्यादा न हो. कोशिश यह रहे कि एक विषय पर ही एक पोस्ट में बात हो. कई विषय एक साथ समाहित करना भटकाव की स्थिति निर्मित करता है. वाक्य विन्यास ऐसा हो कि एक वाक्य दूसरे से जुड़ा हुआ या पूरक होने का अहसास दे. बहुत लम्बा आलेख, जब तक विषय बाँध कर रखने में सक्षम न हो या आप एक स्थापित लेखक न हों, पाठक को आकर्षित नहीं करता. फिर भले ही आपने कितना भी अच्छा क्यूँ न लिखा हो, जब तक कोई पढ़ेगा नहीं, कैसे जानेगा? क्लिष्ट शब्दों का इस्तेमाल भी सारे पाठक पसंद नहीं करते और आम बोलचाल की भाषा सभी को आकर्षित करने में सक्षम है. संभव हो तो कुछ मुख्य पंच लाईनें बोल्ड कर दें. छोटे छोटे वाक्य लिखें. पैराग्राफ बाटें. चित्र, पेन्टिंग या फोटोग्राफ जो भी डालें, वो पोस्ट से संबंधित हो या उसे कहीं जिक्र में संबंधित करें. बेवजह चित्र डालना अच्छा नहीं और न ही पोस्ट की उपयोगिता में कोई वृद्धि करता है. शीर्षक चयन बहुत संभल कर पोस्ट के सार को ध्यान में रखते हुए और आकर्षक होना चाहिये क्यूँकि इसे देखकर ही पाठक आप तक आता है. साथ ही यह भी ध्यान रखने लायक बात है कि शीर्षक अति भड़काऊया मात्र पाठक आकर्षित करने को न रखा गया हो, उसकी सारगर्भिता ही नियमित आवागमन का मार्ग पुष्ट करती है. आशा है यह जानकारी काम की लगी होगी. आज बस इतना ही. चलते चलते: मैं दीपक हो के बुझ जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता मैं तूफानों से डर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता न मैने तैरना सीखा, मगर है हौसला दिल में मैं दरिया पार न जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता. -समीर लाल 'समीर' |
चंडीगढ़- भारत देश में चंडीगढ़ एकमात्र एक ऐसा शहर[union territory] है जो दो राज्यों की राजधानी है. एक राज्य पंजाब है,दूसरा हरयाणा [ज्ञात हो कि-हरयाणा नया राज्य १९६६ में ,पूर्वी पंजाब के हिस्से से बना था.]
मुख्य पहेली में जो चित्र दिखाया गया था वह यहाँ स्थित रॉक गार्डन का था.पहले और दुसरे क्लू की तस्वीरें भी इसी गार्डन से थीं.आखिरी क्लू में 'Open hand Monument ' की तस्वीर थी जो की चंडीगढ़ की अधिकारिक सील पर भी अंकित है.यह Monument फुटबॉल ग्राउंड में स्थित है. “The seed of Chandigarh is well sown. It is for the citizens to see that the tree flourishes”.-Mon Le Corbusier[Architect of Chandigarh] आईये जानते हैं इस शहर के बारे में कुछ और-
आज़ादी के बाद १९४७ में पंजाब की राजधानी कौन सी हो जब इस पर विचार हुआ तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने एक नए सुन्दर शहर की कल्पना की जिसे इस राज्य की राजधानी बनाया जा सके.
इस कल्पना को रूप देने के लिए उन्होंने फ्रेंच नगर नियोजक तथा वास्तुकार ली कार्बूजि़यर को योजना बनाने को कहा.ऐसा सुना जाता है की सब से पहले इस नगर का मास्टर प्लान अमेरिकी आर्किटेक्ट अलबर्ट मेयर को दिया गया था जो पोलैंड आकिर्टेक्ट mathew नोविसकी के साथ काम कर रहे थे.मगर नोविसकी की असामयिक मृत्यु के बाद यह प्लान १९५० में 'ली कार्बूजि़यर के जिम्मे आ गया. शिवालिक पहाडियों से घिरा यह स्थान चंडी मंदिर के पास होने के कारण चंडीगढ़ पड़ा.जिस का अर्थ है,चंडी देवी का घर. इस शहर की नींव १९५२ में रखी गयी थी. चंडीगढ़ में १से ४७ सेक्टर हैं.१३ नंबर का कोई सेक्टर नहीं बनाया गया.क्योंकि १३ को अशुभ अंक माना जाता है. सेक्टर एक में कैपिटल काम्प्लेक्स हैं.सेक्टर १७ में सिटी सेंटर. यह भारत की सबसे अच्छी ,सुन्दर और योजनाबद्ध बनाई गयी सिटी कहलाती है. सेक्टर १०,११,१२,१४,२६ में शैक्षिक और सांस्कृतिक institue हैं. सेक्टर ३४ नया व्यवसायिक केंद्र है. यहाँ आवासीय और व्यवसायिक केन्द्रों को अलग अलग रखा गया है.बहतु से पार्कों का निर्माण शहर को हरा भरा और सुन्दर बनाने के लिए किया गया है.सडकों का निर्माण वी-७ प्लान के अंतर्गत किया है.और अधिक विस्तृत जानकारी शहर की अधिकारिक साईट से ले सकते हैं. इस शहर को बनाने का एक और कारण था वह यह कि जो लोग विभाजन के समय विस्थापित हो गए थे उन्हें पुनर्स्थापित करना. जब मैं चंडीगढ़ पहली बार गयी तब सब से ज्यादा आश्चर्य मुझे यह देख कर हुआ कि वहां मैंने कोई भिखारी नहीं देखा..न ही रेलवे स्टेशन पर न ही बस स्टेशन आदि पर. चंडीगढ़ की कुछ ख़ास बातें-
-१-यहाँ सेक्टर १३ नहीं है.
२-यह शहर २००७ में धूम्रपान रहित क्षेत्र घोषित हो गया था. ३-२००८ से यहाँ प्लास्टिक के बैग आदि के इस्तमाल पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. ४-यहाँ किसी भी पार्क में किसी भी तरह की मूर्ति लगाना मना है. ५-झीलों का प्राकृतिक स्वरूप बनाये रखने के लिए इन का किसी भी प्रकार का व्यवसायिक उपयोग प्रतिबंधित है. 6-चंडीगढ़ को भारत के सब से अमीर शहरों में एक माना जाता है. पर्यटन -
यहाँ बहुत से सुन्दर बाग हैं ,इनमें कुछ मुख्य ये हैं -
१-रोज़ गार्डन[गुलाबों का बाग़ ] २- बोगेनविलिया गार्डन. ३-जापानीस गार्डन ४-टोपिअरी पार्क ५-terrace गार्डन ६-कैक्टस गार्डन [पंचकुला] ७-सुखना झील पार्क. ८-राजेन्द्र पार्क ९-बम्बू घाटी १०-नेक चन्द का रॉक गार्डन . ११-पिंजोर या मुग़ल गार्डन इस के अलावा यहाँ आप देख सकते हैं-
- सुखना वन्यजीव अभ्यारण्य ,यहाँ का संग्रहालय आदि. अब जानते हैं रॉक गार्डन के बारे में थोडा विस्तार से-
नेक चंद का रॉक गार्डन-
यह चंडीगढ़ के सेक्टर एक में बना हुआ है. इस का निर्माण श्री नेक चंद सैनी ने किया है.२५ एकड में फैले इस पार्क में हजारों मूर्तियाँ हैं. १९८४ को श्री नेक चन्द को कला क्षत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने पदमश्री के सम्मान से नवाजा था. लेकिन यहाँ तक का सफ़र उन्होंने कैसे तय किया आईये यह भी जान लें- जब चंडीगढ़ के निर्माण का कार्य शुरू हुआ तब नेक चन्द को १९५१ में सड़क निरीक्षक के पद पर रखा गया था.
नेक चन्द ड्यूटी के बाद अपनी सायकिल उठाते और शहर बनाने के लिए आस पास के खाली कराये गए गाँवों में से टूटे फूटे सामान को उठा लाते.सारा सामान उन्होंने PWD के स्टोर के पास इकट्ठा करना शुरू किया और धीरे धीरे अपनी कल्पना के अनुसार इन बेकार पड़ी वस्तुओं को रूप देना शुरू किया. अपने शौक के लिए छोटा सा गार्डन बनाया और धीरे धीरे उन्होंने इस का विस्तार करते गए. उन्हें इस कलाकारी की कोई ओपचारिक शिक्षा नहीं थी. यह स्थान जंगल जैसा था जिसे वह साफ़ करते और बगीचे का रूप देते गए. इस पर काफी समय तक किसी की निगाह नहीं पड़ी. अकेले वह यह सब ड्यूटी के बाद चुपके से किया करते थे. इस तरह से सरकारी जगह का उपयोग एक तरह से अवैध कब्जा ही था इस लिए इस पर सरकारी गाज गिरने का डर हमेशा बना रहता. एक दिन १९७२ में जंगल साफ़ कराते समय इस बाग़ पर उनके उच्च अधिकारी की निगाह पड़ ही गयी. मगर उन्होंने नेक चंद के इस अद्भुत कार्य को सराहा और उनके इस पार्क १९७६ में जनता को समर्पित कर दिया गया. सरकार की तरफ से इस पार्क का उन्हें sub-divisional मेनेजर बना दिया गया.
१९८३-८४ में यह भारतीय डाक टिकेट पर भी अपनी जगह बना सका.
सरकार ने नेक चंद को recyclable मटेरिअल इकट्ठा करने में मदद की और पार्क की maintenance के लिए उन्हें ५० मजदूर भी दिए.
यहाँ इस गार्डन में सभी कलाकृतियाँ ,मूर्तियाँ आदि बेकार सामान के इस्तमाल से बनाई गयी हैं और उनका ऐसा सुरुचिपूर्ण इस्तमाल देख कर कोई भी आर्श्चय चकित रह सकता है.यहाँ पानी का एक कृत्रिम झरना भी है .
-यह पार्क बहुत बड़ा है और इस में घूमते घूमते हम भी थक गए थे. अनुमान है की यहाँ रोजाना ५,००० विसिटर आते हैं.[??] नेक चन्द की कलाकृतियों का सबसे अधिक संग्रह भारत के बाद अमेरिका में है. विदेशों में कई जगह उनकी कला का प्रदर्शन किया जा चुका है.
दुःख की बात यह है कि इस पार्क को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी है कुछ साल पहले यहाँ पर फिर गाज गिरी जब सरकारी आदेश पर बुलडोज़र इस निर्माण को गिराने आ पहुंचे. तब यहाँ के स्थानीय निवासियों ने मानव श्रृंखला बना कर इसे टूटने से बचाया. १९८९ में अदालत ने जब फैसला नेक चन्द के पक्ष में दिया तब इस पार्क को चाहने वालों की जान में जान आई. आशा है ,चंडीगढ़ को दी गयी श्री नेक चंद की इस अद्भुत देन को यहाँ के लोग भविष्य में भी सुरक्षित रखेंगे.
कैसे जाएँ-
सभी मुख्य शहरों से यह शहर सड़क ,वायु,और रेल से जुडा हुआ है.यातायात बहुत सुगम है.
कब जाएँ---वर्षपर्यंत. यहाँ से जुड़े प्रसिद्द व्यक्ति ---नीरजा भनोत, जीव मिल्खा सिंह ,कपिलदेव, भारतीय क्रिकेटर
मिल्खा सिंह धावक ,बलबीर सिंह अंतर्राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी ,जी एस सरकारिया पंचकुला कैक्टस गार्डन के जन्मदाता ,नेकचंद, राक गार्डन के निर्माता 'युवराज सिंह, भारतीय क्रिकेटर ,सबीर भाटिया, हाटमेल के संस्थापक |
कल फादर्स डे था। तो मैंने सोचा कि क्यों न इस मौके पर आपको दुनिया के सबसे लंबे पापा से मिलवाया जाए। दुनिया में सबसे लंबे कद के पापा हैं चीन के बाओ जिशुन, जिनका कद है 2.36 मीटर (7 फीट 9 इंच)। संयोग की बात यह है कि गिनीज बुक में दुनिया के सबसे लंबे इंसान के रूप में भी उनका नाम दर्ज हैं और पिछले साल पापा बनते ही उनका नाम अब सबसे लंबे पापा के रूप में भी दर्ज हो गया है। बाओ की पत्नी जिया शुजुआन सामान्य कद की हैं और उनकी ऊंचाई 5 फीट 6 इंच ही है। बाओ के बेटे का जन्म के वद कद 22 इंच था, जो सामान्य से थोड़ा ज्यादा है। अगर उसका कद 29 इंच से ज्यादा होता तो उसका नाम भी सबसे लंबे कद के नवजात के रूप में गिनीज बुक में दर्ज हो जाता। पिता बनने पर बाओ काफी खुश हैं। उनकी यह खुशी इस वीडियो में देखी जा सकती है- आपका सप्ताह शुभ हो.. |
बंदर और डॉल्फिन एक ज़माने में कुछ समुद्री नाविक अपने जहाज़ में एक लम्बी समुंदरी यात्रा के लिए निकले . उनमें से एक नाविक इस लम्बी समुंदरी यात्रा के लिए अपने साथ अपना एक पालतू बंदर लाया. जब वे दूर समुद्र में थे तो एक भयानक तूफान की वजह से उनका जहाज उलट गया. सब लोग समुन्द्र में गिर गये और बन्दर को भी यकीन हो गया की अब तो वह डूब ही जायेगा और उसे कोई नहीं बचा सकता. अचानक एक डॉल्फिन प्रकट हुई और बन्दर को उठाया. जैसे ही वो एक द्वीप पर पहुंचे जल्द ही बंदर डॉल्फिन की पीठ से नीचे उतर गया. यह देख कर डालफिन ने बंदर से पुछा "क्या आप इस जगह को जानते हो?" बंदर ने "हाँ, में उत्तर दिया और कहा - वास्तव में, इस द्वीप के राजा मेरे सबसे अच्छे दोस्त है. क्या तुम्हें पता है कि मैं वास्तव में एक राजकुमार हूँ ?" यह जानते हुए की उस द्वीप पर कोई भी नहीं रहता डॉल्फिन, ने कहा "ठीक है, ठीक है, तो तुम एक राजकुमार हो !और अब तुम राजा हो सकते हो " यह सुन कर बन्दर ने पुछा " मै राजा कैसे बन सकता हूँ" डॉल्फिन ने दूर तैरना शुरू किया और कहा ये तो बहुत आसन है...जैसा कि तुम इस द्वीप पर एकमात्र ही प्राणी हो तो तुम स्वाभाविक रूप से राजा हो ना. नैतिक मूल्य : जो झूठ बोलते हैं और घमंड मे रहते हैं उनका अंत मुसीबत में हो सकता है. |
लखु उडियार प्रागेतिहासिक काल में मनुष्य ने अपने रहने के लिये उन गुफाओं को पसंद किया जो ऊँचे -ऊँचे स्थानों में तो स्थित होती ही थी साथ ही वहां से भोजन एवं जल की व्यवस्था भी आसानी से की जा सकती थी। उस समय के मानव ने इन गुफाओं में अपने रहन-सहन के अनुसार कुछ चित्रण भी किया जो कि आज भी कई गुफाओं में देखे जा सकते हैं। कुमाउं में भी ऐसे कई स्थान हैं जहां इस तरह के भित्ती चित्र पाये जाते हैं। उनमें से ही एक जगह है लखु-उडि्यार। लखु उडियार अल्मोड़ा से कुछ दूरी पर स्थित है। जिस पहाड़ी में यह गुफा स्थित है उसके पास से ही सुयाल नदी होकर बहती है। इस स्थान को मोटर मार्ग से भी आसानी से देखा जा सकता है। इस गुफा में में कई नर्तकों के चित्र बने हुए हैं। जिस रास्ते से अंदर जाते हैं उस जगह पर ही करीब 7 नर्तकों के चित्र अंकित हैं। और तो और एक नर्तकों की मंडली में तो नर्तकों को आसानी से गिना भी जा सकता है। इन नर्तकों के बाद जो दूसरे प्रमुख चित्र इस गुफा में अंकित हैं वो हैं मानव का जानवरों को चराते हुए, शिकार करने के लिये उनका पीछा करते हुए। इसी तरह इस गुफा में कुछ और फिर चित्र अंकित हैं। जिनमें से कुछ तो आज भी स्पष्ट नजर आते हैं और कुछ खराब हो चुके हैं। लखु-उडियार के पास और भी कई गुफायें हैं इसीलिये इस स्थान को लखु-उडियार कहा जाता है। लखु माने `लाख´ और उडियार का मतलब होता है `गुफा´। इन गुफाओं में भी कई तरह के चित्र अंकित हैं पर अब ये अच्छी हालत में नहीं हैं। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
अरे हीरू देख बे देख…क्या हो रिया है? अरे हां यार देख देख अपने सांता अंकल मुर्गा बने हुये हैं? अबे धीरे बोल ..वर्ना शाश्त्री अंकल बहुत मारेंगे. अरे वो खुद ही बोल रहे हैं तो मैं क्या करुं? तू खुद ही पढले.
हां यार कोई कोई खडूस ऐसा भी फ़ंस जाता है. पर यार हीरू ये रामप्यारी तो लगता है ताऊ का भी बैंड बजवा कर छॊडेगी.
पर कैसे यार पीरू? अरे देखो ना, उसने कौरवों के नाम याद करके सुना दिये और अब काजल अंकल कह रहे हैं कि ९९९९ टिपणी करने वालों के भी नाम बताओ? कैसे होगा? ला जरा मुझे बता…मैं आशीष अंकल को बोलता हूं, कुछ करते हैं..पर पहले टिपणी तो बता,
हां यार पीरू, ये रामप्यारी भी आफ़त खडी कर देती है. अब ये देखो नीचे वोयादें वाले अंकल क्या कह रहे हैं?
पर अंकल सही कह रहे हैं…दुसरे के फ़टे मे क्यों पांव इलझाना पर रामप्यारी से कौन पंगा ले? और वो रामप्यारी से सुधरने के लिये कह रहे हैं….
अरे रामप्यारी क्या सुधरेगी? वो खुद अच्छे अच्छों को सुधार आती है.
पर वो यादें अंकल ने कहा क्या? तू खुद ही देख ले यार.
चल यार पीरू, घर चल मुझे तो बडी जोर की भूख लगी है.. अरे यार हीरू घर चल कर क्या करेंगे? वही ताई के हाथ के मोटे मोटे रोटे मिलेंगे..चल आज तो पिज्जा-हट मे चकाचक पिज्जा खाकर आते हैं. अबे तू ही जा. मुझे बाहर का खाकर ताई के हाथ से पिटना नही है. |
ट्रेलर : - पढिये : श्री योगेश समदर्शी से ताऊ की अंतरंग बातचीत
ताऊ की खास बातचीत श्री योगेश समदर्शी से. ताऊ : योगेश, आपमें एक देश प्रेम का जज्बा दिखाई देता है. इसकी शुरुआत कैसे हुई? योगेश समदर्शी : ताऊजी जब मैं पोर्ट ब्लेयर में ९ वीं क्लास मे पढता था. और मेरा स्कूल सेल्युलर जेल से मात्र २ किलोमीटर की दूरी पर था. तब मैं इस सेल्युलर जेल को देखने गया, तो समझिये की मेरा ह्रदय परिवर्तन हो गया. ताऊ : अब तो सस्पेंस बढ गया है आपकी कहानी में? योगेश समदर्शी : हम स्थिति भांप गए. मेरे मित्र ने कहा की चलो यार उठो और चलो यहाँ से कहीं पिट न जाएँ तो मैंने कहाँ नहीं खाना बन रहा है. खा कर ही जायेंगे. और भी बहुत कुछ अंतरंग बातें…..पहली बार..खुद श्री योगेश समदर्शी की जबानी…इंतजार की घडियां खत्म…..आते गुरुवार २५ जून को मिलिये हमारे चहेते मेहमान से. और उनकी ही आवाज मे उनकी यह कविता सुनिये : पत्थर के दिल हो गये, पथरीले आवास अबकी लौटा गांव तो, बरगद मिला उदास |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
जानकारियों से भरा हुआ एक और सहेजने योग्य अंक प्रकाशित करने पर बधाई!
ReplyDeleteपत्रिका का एक और शानदार अंक।
ReplyDeleteआदरणीय ताऊजी, समीर जी, अल्पना जी, आशीष जी, सीमा जी, विनीता जी का बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteलवली जी, अन्नपूर्णा जी और अविनाश जी को बधाई
सबको प्रणाम
समीर जी की सलाह काम आएगी.. बन्दर ऑर डोल्फिन वाली प्रेरक कहानी भी बढ़िया लगी... ताऊ साप्ताहिक पत्रिका में तो नित नए रंग जुड़ते जा रहे है
ReplyDeleteयह अंक बेहद पसंद आया...
ReplyDeleteसभी को बधाई...
मीत
समीर जी की सलाह, चंडीगढ की जानकारी, अरे क्या कया कहूं, सभी सामग्री लाजवाब है। और हाँ, लवली जी को बधाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
१०,००० वीं टिपणी करने वाली सुश्री लवली कुमारी को हार्दिक बधाई
ReplyDelete९,९९९ वीं टिपणी की सु अन्न्पुर्णा ने. आपको भी हार्दिक बधाई
१०,००१ वीं टिपणी करने वाले श्री अविनाश वाचस्पति को हार्दिक बधाई
समीर लाल jii, अल्पना वर्मा ji, आशीष खण्डेलवाल ji, -Seema Gupta ji, विनीताji यशश्वी
मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम taooji aap sabhi ka Tanku ji..............
मुझे क्या पता था मैं ही वह भाग्यशाली हूँ ..बहुत धन्यवाद इज्जत नवाजी का.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा अंक है, चंडीगढ की जानकारी अच्छी लगी।
ReplyDeleteबडे भाई को राम राम ...
ताऊ पत्रिका का निखार दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है, बहुत बधाई.
ReplyDelete१०००० टिप्पिणियाँ पार करने की अपार बधाई और लवली जी को १०००० वीं टिप्पणी करने की अनेक बधाईयाँ एवं शुभकामना. ९९९९ और १०००१ दोनों ही बधाई के पात्र है.
बधाई तो बाकी सभी प्रतिभागियों को भी, जिन्होंने इस मंजिल को पाने में सहयोग किया.
सभी आलेख और जानकारियाँ बेहतरीन हैं.
सभी को बधाई और बहुत ही पठनिय सामग्री के साथ यह अंक भी लाजवाब है.
ReplyDeleteसभी को बधाई और बहुत ही पठनिय सामग्री के साथ यह अंक भी लाजवाब है.
ReplyDeleteऔर ताऊ को दस हजार टिपणी पार करने की भी बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक.
ReplyDelete@ आशीष खंडेलवालजी, क्या आप बता सकते हैं कि ब्लाग जगत मे और कितने लोग दस हजार टिपणीयां प्राप्त कर चुके हैं?
अगर आप बता सकते हों तो अव्श्य बतायें.
बहुत सुंदर अंक.
ReplyDelete@ आशीष खंडेलवालजी, क्या आप बता सकते हैं कि ब्लाग जगत मे और कितने लोग दस हजार टिपणीयां प्राप्त कर चुके हैं?
अगर आप बता सकते हों तो अव्श्य बतायें.
हमेशा की तरह संग्रहणीय पत्रिका.. आभार..
ReplyDeleteताऊ इबके सप्ताहांत पे बाहर था सो न पहेली में हिस्सा ले सकय ना टिप्प्न्नी में ....सबको बधाई.....ताऊ थारी पत्रिका मानने तो गज़ब की लागे है ..कमाल है भैया यो तो..हम तो चावे हैं की या ब्लॉग पर पचास हजार तिप्पियाँ आवे...
ReplyDelete@ Makrand, सभी चिट्ठों में से यह पता लगाना तो काफी श्रमसाध्य कार्य है कि किस-किस चिट्ठे पर दस हजार टिप्पणियां हो चुकी हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार उड़नतश्तरी वाले समीर लाल जी और मानसिक हलचल वाले ज्ञानदत्त जी अभी तक इस दस हजारी क्लब में शामिल थे और लेटेस्ट व धमाकेदार एंट्री ताऊजी की हुई है। अगर किसी साथी को दूसरे नाम पता हों तो बताने का कष्ट करें।
ReplyDelete१०,००० वीं टिप्पणी करने वाली
ReplyDeleteसुश्री लवली कुमारी जी,
९,९९९ वीं टिप्पणी की
सु अन्न्पुर्णा जी और
१०,००१ वीं टिप्पणी करने वाले श्री अविनाश वाचस्पति जी को शुभकामनांओं के साथ
हार्दिक बधाई।
इस पोस्ट का मैटर वाकई सुरक्षित करने काबिल है।
ताऊ का आभार।
बहुत सुंदर, आप सब का बहुत बहुत आभार, सुंदर ओर अच्छी अच्छी जानकारिया, रचनाये. ओर भी बहुत कुछ
ReplyDeleteराम राम जी की.
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
लवली जी को बधाईयाँ. पत्रिका की सामग्रीहमेशा की तरह स्तरीय थीं.
ReplyDeletesabhi ko badhaai...
ReplyDeletesabhi ko badhaai...
ReplyDeleteसर्वप्रथम तीनों टिप्पणी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं अन्य सभी टिप्पणीकारों को भी जिनके सम्मिलित प्रयास का नतीजा १०,००० से भी ज्यादा टिप्पणियों के रूप में सामने आया है.........तत्पश्चात् ताऊ जी, आशीष खंडेलवाल जी और समस्त सम्पादक मंडल का आभार व्यक्त करता हूँ जो आपने मुझे खाकसार को इतना मान-सम्मान दिया तथा परिणामों की सटीकता सम्बन्धी हुई भूल का कारण बताकर मेरा मार्गदर्शन किया........लेकिन एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि ताऊ तो ताऊ ही हैं, उनका पार पाना इतना आसान नहीं :-)........ताऊ पहेली का भविष्य मंगलमय हो ऐसी ही शुभकामनाओं के साथ......
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
ताऊ पत्रिका दिन ब दिन पन्ना दर पन्ना निखरती ही जा आरही है -बहुत बधाई ! सब ने कलम तोड़ लिखा है ! हाँ सह्स्रीय टिप्पणीकारों को बधाई !
ReplyDeleteताऊ डॉट कॉम को दस हजारी क्लब [यह नाम आशीष जी का दिया है!]की सदस्यता हासिल करने पर बधाई.जल्द ही ११००० भी पूरी हों!
ReplyDeleteइतने कम समय में यह उपलब्धि बहुत बड़ी है.
-लवली जी को लवली सी बधाई..अन्नपूर्णा जी और अविनाश जी को भी बधाई..
-पत्रिका का यह अंक भी ज्ञानवर्धक और रोचक रहा.
-योगेश जी के साक्षात्कार की प्रतीक्षा रहेगी और दो पंक्तियाँ जिस कविता की दी हैं वह कविता पूरी भी पढना चाहेंगे.
लवली कुमारी, अन्नपुर्णा और अविनाश वाचस्पति जी को बहुत बहुत बधाइयाँ.
ReplyDeleteलवली कुमारी, अन्नपूर्णा और अविनाश वाचस्पति जी को बहुत बहुत बधाइयाँ.
ReplyDeleteएक और शानदार अंक....
ReplyDeleteसभी विजेताओं को घणी बधाई। आज की पत्रिका का क्लेवर कुछ ज्यादा ही जँच रहा है।
ReplyDeleteसंपादक मंडलके सभी सदस्यों
ReplyDeleteताऊ रामपुरिया
समीर लाल "समीर"
: अल्पना वर्मा
: आशीष खण्डेलवाल
: सीमा गुप्ता
विनीता यशश्वी
मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन सभी को इतना उत्क्रिस्ट अंक प्रस्तुत करनें के लिए बहुत -बहुत बधाई .लवली जी को भी भाग्यशाली टिप्पडी के लिए बहुत बधाई और अन्ततः मेरी बेहतरीन पसंद पर भी जरा ध्यान फरमाएं और भाई समीर जी को ""चलते चलते "" के लिए बहुत धन्यवाद -
मैं दीपक हो के बुझ जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
मैं तूफानों से डर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
न मैने तैरना सीखा, मगर है हौसला दिल में
मैं दरिया पार न जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता.
-समीर लाल 'समीर'
रोचक और ज्ञानवर्धक पत्रिका !
ReplyDeleteआदरणीय अल्पना जी ने हमेशा की तरह हमेशा की तरह विविध आयामी जानकारी दी है ! उनका श्रम झलकता है लेकिन अगर श्री नेक चन्द जी के बारे में थोड़ी जानकारी और दी होती तो बेहतर होता ! आखिर ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व विरले ही होते हैं !
आशीष जी एक बार फिर अनोखी व दिलचस्प जानकारी दे गए !
आदरणीय सीमा जी ने इस बार निराश किया ... हर बार उनका लिखा अत्यंत सारगर्भित और प्रेरणादायी होता था ... लगता है इस बार मन
से नहीं लिखा !
सबसे ज्यादा प्रभावित किया इन पंक्तियों ने :
मैं दीपक हो के बुझ जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
मैं तूफानों से डर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
न मैने तैरना सीखा, मगर है हौसला दिल में
मैं दरिया पार न जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता.
उडन तश्तरी जी की ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं ... मानव के भीतर छुपी संकल्प शक्ति की महत्ता कों दर्शाती है ... सही भी है ... गांधी जी ... शास्त्री जी या माननीय कलाम जी से लेकर धोनी तक इन पंक्तियों की सच्चाई उजागर करते हैं !
आज की आवाज
जल्दी-जल्दी में बधाई तो रह ही गयी !
ReplyDelete10,000 वीं टिप्पणी करने पर सुश्री लवली कुमारी को हार्दिक बधाई !
साथ ही 9999 वीं और 10001 वीं टिप्पणी करने वालों कों भी बधाई !
आज की आवाज
Wah...........
ReplyDeleteपत्रिका के एक ओर बेहतरीन अंक के लिए बधाई....
ReplyDeleteइतनी ढेर सारी शुभकामनाएं मिलीं
ReplyDeleteऔर हमें अब लगा पता
दी जिन्होंने बधाई
अवश्य खिलाएं मिठाई
पर मुझे नहीं
करें मुझे याद
और अपने मुंह में डालें आज
यही कर रहा हूं फरियाद
लालची हूं
कमजोरी है इंसान की
पर यह टिप्पणियां नहीं हैं
जो खूब ली जा सकती हैं
बखूबी दी जा सकती हैं
यह है मिठाई
जो ज्यादा खाई
तो उसी मुंह से आएगी रूलाई
हो सकता है आ जाए उबकाई।
इसलिए मिठाई होनी चाहिए नियंत्रित
पर पोस्टें और टिप्पणियां अनियंत्रित
इनकी स्पीड पर भी कोई रोक नहीं है
यह ऐसा शौक है
जो दूसरे ब्लॉग पर टिप्पणियां देखकर शोक में बदल जाता है
पर ताऊजी के ब्लॉग पर
फूल रोज का रोज़ खिल जाता है
पहेलियों की खूशबू फैलाता है
टिप्पणियां करने को उकसाता है
पहेली का जवाब देने में मजा इसलिए भी आता है
क्योंकि हिंट देना यानी नकलीय मदद की सुविधा
भी उपलब्ध कराता है
अब इतना किस्सा बहुत है
पढ़ने वाला न जाए ऊब है
वह भी तो ब्लॉगर्स का असली महबूब है
जय हो
बधाई देता हूं
देने वालों को भी
लेने वालों को भी
पर खुद को रखता हूं दूर
पर टिप्पणियां करता रहूंगा हुजूर।
जानकारियों से भरा हुआ एक और अंक प्रकाशित करने पर बधाई!!!
ReplyDeleteजोरदार अंक रहा यह भी.
ReplyDeleteबहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी .लवली जी को बधाई
ReplyDeleteWonderful Magazine - Keep up the good work Every one !
ReplyDeletewarm rgds,
Lavanya
बहुत रोचक अंक.. ताऊ बधाई ५ अंको में जाने के लिये...
ReplyDeleteसीमा जी की कहानी पसंद आई... काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़्ती..
ब्लोगिग पर समीर जी के टिप्स वकाई बहुत मददगार होगें... कुछ जुगत लगा ये सारी टिप्स एक जगह पर ले आएं तो बाद में जुडने वालों को ढुढने में आसानी रहेगी..
और ये पहेली incredible india मिशन में भी बहुत योगदान दे रहा है.. जल्द ही पर्यटन मंत्रालय आपसे मिलने वाला है.. मीठाई तैयार रखना..
१०,००० वीं टिपणी करने वाली सुश्री लवली कुमारी जी , ९,९९९ वीं टिपणी की सु अन्न्पुर्णा जी, और
ReplyDelete१०,००१ वीं टिपणी करने वाले श्री अविनाश वाचस्पति को हार्दिक बधाई . पत्रिका का कोई जवाब नहीं, सभी की मेहनत रंग ला रही है.
regards
काफ़ी अच्छी जानकारी प्राप्त हुई ! ताऊ जी, सभी को ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बडिया अँक सभी को बधाई ताउ जी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteपत्रिका लाजवाब........ ढेरों जानकारियों के साथ........... १०००० वि टिपण्णी के लिए लवली कुमारी को बधाई बधाई badhaai ..... ताऊ आपको राम राम
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