डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक” से युं तो आप उनके ब्लाग उच्चारण के माध्यम से अच्छी तरह परिचित हैं. इनके ब्लाग ने बहुत ही कम समय मे नई ऊंचाईयों को छुआ है. महज चार माह में २२७ कविताओं का प्रकाशन, अपने आप मे एक रिकार्ड है.
डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक”
डा. शाश्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. हमारी आपसे अनेको बार फ़ोन पर बात होती रही है. इस बार की झुलसाने वाली गर्मी मे हमने रुख किया नैनीताल का और रास्ते मे हम मिले डा. शाश्त्री जी से जहां यह इंटर्व्यु सम्पन्न हुआ. आईये अब आपको मिलवाते हैं इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा. शाश्त्री जी से.
ताऊ : हां तो शाश्त्री जी आप कहां के रहने वाले हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! आप जहां बैठे हैं. मैं इसी भारत के उत्तराखण्ड प्रदेश की नैनीताल कमिश्नरी में ऊधमसिंह नगर जनपद के इसी खटीमा शहर में रहता हूँ।
ताऊ : आप क्या करते हैं?
डा. शाश्त्री जी : एक धर्मार्थ औषधालय खोल रखा है। वहीं पर आयुर्वेदिक चिकित्सा करता हूँ।
ताऊ : हमने देखा है कि आप तुरत फ़ुरत कविताएं रच लेते हैं. अक्सर आप टिपणि मे भी कविताएं रच देते हैं? आपको कविताए लिखने का शौक कब से है?
डा. शाश्त्री जी : आप ये समझ लिजिये कि सन १९६५ से यानि जब मैं दसवीं कक्षा का छात्र था तब से ही कविता लिख रहा हूं.
ताऊ : फ़िर अवश्य आपकी कविताएं अवश्य कहीं ना कहीं ना प्रकाशित भी हुई होंगी?
डा. शाश्त्री जी : जी ताऊ जी, साहित्य प्रतिभा, अमर उजाला, उत्तर उजाला, चम्पक और उच्चारण आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं मे ये प्रकाशित होती रही हैं?
सन् 1991 में मैंने वैदिक सामान्यज्ञान पुस्तक लिखी थी। जिसकी भूमिका सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई-दिल्ली के तत्कालीन प्रधान स्वामी आनन्दबोध सरस्वती ने लिखी थी।
पौत्र प्रांजल और पौत्री प्राची
ताऊ : वैसे आपके शौक क्या क्या हैं?
डा. शाश्त्री जी : पुस्तकों का पठन-पाठन, गद्य-पद्य लेखन भी कर लेता हूँ।
ताऊ : और ?
डा. शाश्त्री जी : देशाटन के नाम पर आधा हिन्दुस्तान घूम चुका हूँ। जब मन होता हैं तो खाना भी स्वादिष्ट बना लेता हूँ।
ताऊ : आपको सख्त ना पसंद क्या है?
डा. शाश्त्री जी : चापलूस किस्म के मित्रों से सदैव परहेज करता हूँ। परन्तु वे मेरा पीछा छोड़ने को तैयार ही नही होते। ऐसे लोग भी मुझे सख्त नापसन्द हैं, जो अपनी ही कहते जाते हैं। दूसरों की सुनने को राजी नही होते हैं।
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
डा. शाश्त्री जी : मुझे सफाई अधिक पसन्द है। साफ घर, साफ-पात्र, साफ वस्त्र, पुस्तक-कापियाँ करीने से जिल्द लगी हुई। और सबसे अधिक सीधे-सादे साफ-सुथरे लोग मुझे ज्यादा पसन्द आते हैं। परन्तु इसका मतलब आप हाथ की सफाई से मत निकाल लेना।
ताऊ : आपका घर देखकर तो यह बात साफ़ समझ में आ ही रही है कि आप निहायत ही साफ़ सफ़ाई पसंद आदमी हैं. अब आप हमारे पाठकों से कुछ कहना चाहेंगे?
डा. शाश्त्री जी : जी जरुर निवेदन करना चाहूंगा. पाठकगण आप को मेरा एक ही सुझाव है कि आप जो कुछ करें। पहले उसके गुण-दोष पर विचार लें। फिर आगे कदम बढ़ायें। ध्यान रखें ! मनोयोग से और निरन्तर अभ्यास से सब कुछ सम्भव है।
ताऊ : ये आपने बहुत ही सुंदर बात बताई हमारे पाठकों को. अब आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना हमारे पाठकों को बताईये.
डा. शाश्त्री जी : बात 1960-61 के दशक की है। परिवार में सबसे बड़ा होने के कारण सब का ध्यान मुझ पर ही था। अतः मुझे गरूकुल हरिद्वार पहुँचाने की पूरी तैयारी सबने कर ली थी।
ताऊ : जी. फ़िर आगे?
डा. शाश्त्री जी : अब पिता जी मुझे गुरूकुल पहुँचा तो आये परन्तु मेरा मन वहाँ न लगा। मैं शौच का बहाना बना कर गुरूकुल से भाग आया। पिता जी पुनः उसी गुरूकुल में मुझे छोड़ने के लिए गये।
ताऊ : फ़िर क्या आप गुरुकुल मे रुक गये दुबारा?
डा. शाश्त्री जी : ना, मैंने भी पिता जी के सामने तथा गरूकुल के संरक्षक महोदय के सामने यह नाटक किया कि मेरा मन अब गुरुकुल में लग गया है।
ताऊ : नाटक किया? पर क्यों?
डा. शाश्त्री जी : नाटक इसलिये जरुरी था कि मुझ पर निगाह ना रखें जिससे मुझे वापस भगने का मौका मिल सके. बस 3-4 घण्टे बाद मुझे जैसे ही मौका हाथ लगा मैं गुरूकुल से भाग आया। पिता जी रेल के पीछे डिब्बे में थे ओर मैं आगे के डिब्बे में। मैं घर भी उनसे पहे ही पहुँच गया था। इस घटना को मैं आज तक नही भुला पाया हूँ।
ताऊ : मतलब आप बचपन मे काफ़ी शरारती रहे हैं. वैसे आप मूलत: कहां के रहने वाले हैं?
डा. शाश्त्री जी : मैं उत्तर-प्रदेश के नजीबाबाद का मूल निवासी हूँ। नजीबाबाद नवाबों का पुराना शहर है।
ताऊ : वहां की कोई मशहूर चीज भी है?
डा. शाश्त्री जी : हां वहाँ से 4 कि.मी. दूर नवाबो का एक पुराना किला भी है। जो सुल्ताना डाकू के किले के नाम से मशहूर है। आज भी इसका अस्तित्व बना हुआ है। किले के मध्य में कभी न सूखने वाली एक पोखर भी है।
ताऊ : ये अच्छी बात बताई आपने? किले की हालत कैसी है?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी, पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण आज यह किला वीरान पड़ा हुआ है। इसकी चाहरदीवारी के मध्य सैकड़ों बीघा जमीन मे सिर्फ खेती होती है। यदि पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दे तो यह एक पर्यटक स्थान के साथ-साथ सेना के कैम्प के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।
डा. शाश्त्री के पिताजी और माताजी
ताऊ : आप संयुक्त परिवार मे रहते हैंआपके परिवार मे कौन कौन हैं?
डा. शाश्त्री जी : जी हाँ! मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है। जिसमें 87 वर्षीय मेरे पिता जी, 85 वर्षिया मेरी माता जी, घर-गृहस्थी वाला बड़ा पुत्र, अविवाहित छोटा पुत्र, मैं ओर श्रीमती जी हैं। और परिवार में 10 वर्षीय पौत्र प्रांजल और 5 वर्षीया पौत्री प्राची है।
ताऊ : और कौन हैं?
डा. शाश्त्री जी : और तीन कुत्ते भी परिवार के ही सदस्य के रूप में इस घर की सुरक्षा में लगे हुए हैं। और हाँ ताऊ! एक बात तो बताना ही भूल गया। मैने भी एक रामप्यारी पाली हुई है। आप भी उसके दर्शन कर लें।
शाश्त्रीजी की रामप्यारी
ताऊ : कैसा लगता है संयुक्त परिवार मे रहना?
डा. शाश्त्री जी : बहुत अच्छा लगता है. संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे सामाजिकता आती है। सुख-दुख के समय अपनों का साथ व भरपूर प्यार मिलता है।
ताऊ : आप आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ब्लागिंग का भविष्य उज्जवल है।
ताऊ : आपको कुछ विशेषता लगी ब्लागिंग में?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी, आप जो बात स्पष्ट रूप से कहने में झिझकते हैं, वह ब्लाग के माध्यम से आप दुनिया तक आसानी से पहुँचा सकते हैं। सच बात तो यह है कि ब्लाग विचारों के सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है।
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
डा. शाश्त्री जी : मैंने ब्लाग जगत में 21 जनवरी 2009 में कदम रखा है।
ताऊ : आपका ब्लागिंग मे आना कैसे हुआ?
डा. शाश्त्री जी : हुआ यों कि मेरे साहित्यकार मित्र रावेंद्रकुमार रवि ने अन्तर्जाल पर अपनी पत्रिका सरस पायस प्रकाशित की। मुझे उनका यह प्रयास पसनद आया और मैने भी ब्लागिंग की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया। तब से प्रतिदिन ब्लाग पर कुछ न कुछ अवश्य लिखता हूँ।
ताऊ : आपका ब्लाग लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मेरे लेखन की दिशा या दशा तो आप ब्लागर मित्र ही तय करेंगे। मैं तो गद्य और पद्य समानरूप से लिख ही रहा हूँ।
डा. रुपचन्द्र शाश्त्री "मयंक"
ताऊ : क्या राजनीति मे आप रुची रखते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मैं राजनीति में खासी रुचि रखता हूँ। शुरू से ही काँग्रेस के साथ जुड़ा रहा हूँ। सन् 2005 से 2008 तक उत्तराखण्ड सरकार के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में मैंने 3 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया है।
ताऊ : अरे वाह . यानि आप तो पूरे राजनितिज्ञ हैं? अब ये बताईये कि राजनिती मे आप किसे अपना आदर्श मानते हैं.
डा. शाश्त्री जी : पं0 नारायणदत्त तिवारी को मैं अपना आदर्श पुरुष मानता हूँ। क्योंकि उनका नारा उनके काम विकासोन्मुख रहे हैं। उनका काम था विकास और विकास, इसके सिवा और कुछ नही।
ताऊ : आप अब भी इसी पार्टी मे मे संतुष्ट हैं?
डा. शाश्त्री जी : नही अब मेरा काँग्रेस से माह भंग हो रहा है। विकास पुरुष पं0 नारायणदत्त तिवारी की उपेक्षा को लेकर मैं व्यथित और आहत हूँ।
ताऊ : कुछ अपने बच्चों के बारे मे भी बताईये?
डा. शाश्त्री जी : मेरे दो पुत्र हैं। बड़ा नितिन इलैक्ट्रोनिक्स इंजीनियर है। छोटे पुत्र विनीत ने एम.काम.,बी.एड किया है। वो अभी अविवाहित है।
श्रीमती और श्री डा. रुपचन्द्र शाश्त्री
ताऊ : भाभीजी यानि कि आपकी जीवन संगिनी के बारे मे कुछ बताईये?
डा. शाश्त्री जी : जी जरुर बताऊंगा. जीवनसंगिनी का नाम श्रीमती अमर भारती है। एक घरेलू महिला होने के साथ-साथ मेरी अनुपस्थिति में औषधालय भी संभालती हैं.
ताऊ : और?
डा. शाश्त्री जी : और स्वयं के निजी विद्यालय (राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय) जूनियर हाई स्कूल की भी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं।
ताऊ : आप बुजुर्ग हैं. आपके पास जीवन का एक अनुभव है. आप हमारे पाठको को कुछ विशेष बात कहना चाहेंगे?
डा. शाश्त्री जी : परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे.
शाश्त्री जी : ताऊ पहेली जी आज तक के जितने अंक मैंने देखे हैं। उनके अनुसार तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि इसके पीछे एक ऐसी सोच झलकती है जो सभी के सामान्यज्ञान में निश्चितरूप से अभिवृद्धि करती है। अर्थात ताऊ पहेली आम पहेलियों से हट कर है.
ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन ? आपका क्या कहना है?
शाश्त्री जी : ताऊ कौन है? इसका तो सीधा-सादा अर्थ है पिता का ज्येष्ठ भ्राता। अर्थात् मान-मर्यादा और गुणें में जो बड़ा हो मेरे विचार से वही ताऊ है। यहां एक सहज हास्य बोध के साथ ताऊ गुप्त रुप से गहरी बात कह जाते हैं. बस मुझे ताऊ इसी रुप मे पसंद है.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे?
शाश्त्री जी : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अन्तर्जाल की एक जानी-मानी पत्रिका बन कर उभरी है। जो इसके नियमित पाठक हैं, उनके लिए तो यह पत्रिका किसी नशे से कम नही है। मैं जब तक ताऊनामा पढ़ नही लेता हूँ तब तक मुझे ऐसा लगता है जैसे कि दिनचर्या का कोई अधूरा काय्र छूट गया हो।
और अंत मे एक सवाल ताऊ से:-
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, मैं आपसे भी एक सवाल पूछना चाहता हूँ। आपके मन में रामप्यारी का आइडिया कहाँ से आया है?
ताऊ : असल मे ये रामप्यारी सभी के अंदर है. ये एक भोला बचपन है. जिसको हम भूल चुके हैं बस उसी को याद दिलाने की एक छोटी सी कोशीश है.
तो यह थी ताऊ की एक अंतरंग बातचीत डा. शाश्त्री से. कैसा लगा आपको शाश्त्री जी से मिलना. अवश्य बताईयेगा.
डा. शाश्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है. हमारी आपसे अनेको बार फ़ोन पर बात होती रही है. इस बार की झुलसाने वाली गर्मी मे हमने रुख किया नैनीताल का और रास्ते मे हम मिले डा. शाश्त्री जी से जहां यह इंटर्व्यु सम्पन्न हुआ. आईये अब आपको मिलवाते हैं इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा. शाश्त्री जी से.
ताऊ : हां तो शाश्त्री जी आप कहां के रहने वाले हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! आप जहां बैठे हैं. मैं इसी भारत के उत्तराखण्ड प्रदेश की नैनीताल कमिश्नरी में ऊधमसिंह नगर जनपद के इसी खटीमा शहर में रहता हूँ।
ताऊ : आप क्या करते हैं?
डा. शाश्त्री जी : एक धर्मार्थ औषधालय खोल रखा है। वहीं पर आयुर्वेदिक चिकित्सा करता हूँ।
ताऊ : हमने देखा है कि आप तुरत फ़ुरत कविताएं रच लेते हैं. अक्सर आप टिपणि मे भी कविताएं रच देते हैं? आपको कविताए लिखने का शौक कब से है?
डा. शाश्त्री जी : आप ये समझ लिजिये कि सन १९६५ से यानि जब मैं दसवीं कक्षा का छात्र था तब से ही कविता लिख रहा हूं.
ताऊ : फ़िर अवश्य आपकी कविताएं अवश्य कहीं ना कहीं ना प्रकाशित भी हुई होंगी?
डा. शाश्त्री जी : जी ताऊ जी, साहित्य प्रतिभा, अमर उजाला, उत्तर उजाला, चम्पक और उच्चारण आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं मे ये प्रकाशित होती रही हैं?
सन् 1991 में मैंने वैदिक सामान्यज्ञान पुस्तक लिखी थी। जिसकी भूमिका सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई-दिल्ली के तत्कालीन प्रधान स्वामी आनन्दबोध सरस्वती ने लिखी थी।
इसके सात भाग 1992 में प्रकाशित हुए। आज भी यह पुस्तक पाठ्यक्रम के रूप में मेरे द्वारा संचालित राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय,खटीमा में तथा आर्य समाज के कई विद्यालयों में कक्षा शिशु से कक्षा पंचम तक लगी हुई है।
ताऊ : ये उच्चारण क्या है? क्या सामने दिवार पर इसीके रजिस्ट्रेशन टंगे हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, बिल्कुल सही पहचाना. ये पाक्षिक अखबार ही था. मैने सन १९९६ से २००४ तक इस अखबार को निकाला.
ताऊ : वाह शाश्त्री जी, तो आप को लिखने पढने का पुराना शौक है. अब आपके जीवन की कोई अनोखी घटना बताईये?
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, अनोखी घटना तो ऐसी कुछ नही है जो मैं आपको बताऊं?
ताऊ : चलिये अनोखी नही तो कोई अविस्मरणिय घटना ही सुना दिजिये?
डा. शाश्त्री जी : जी अविस्मरणीय भी याद नही आती.
ताऊ : चलिये हम याद दिलाये देते हैं, हमने सुना है कि आपमे और भाभीजी मे अक्सर अनबन होजाया करती थी और एक बार तो आप पुत्र को भी घर ऊठा लाये थे. याद आया क्या?
डा. शाश्त्री जी : (हंसते हुये..) अरे रे ताऊजी..आप भी कबके गडे मुर्दे उखाड लाये? कितनी पुरानी बात है? अब क्या बताऊं?
ताऊ : जी बताईये. आपही जरा हमारे पाठकों को पूरी बात बताईये?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मेरा विवाह 1973 में हुआ था। वैवाहिक जीवन का अधिक अनुभव न होने के कारण पति-पत्नी में अक्सर अनबन हो जाया करती थी।
ताऊ : ये उच्चारण क्या है? क्या सामने दिवार पर इसीके रजिस्ट्रेशन टंगे हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, बिल्कुल सही पहचाना. ये पाक्षिक अखबार ही था. मैने सन १९९६ से २००४ तक इस अखबार को निकाला.
ताऊ : वाह शाश्त्री जी, तो आप को लिखने पढने का पुराना शौक है. अब आपके जीवन की कोई अनोखी घटना बताईये?
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, अनोखी घटना तो ऐसी कुछ नही है जो मैं आपको बताऊं?
ताऊ : चलिये अनोखी नही तो कोई अविस्मरणिय घटना ही सुना दिजिये?
डा. शाश्त्री जी : जी अविस्मरणीय भी याद नही आती.
ताऊ : चलिये हम याद दिलाये देते हैं, हमने सुना है कि आपमे और भाभीजी मे अक्सर अनबन होजाया करती थी और एक बार तो आप पुत्र को भी घर ऊठा लाये थे. याद आया क्या?
डा. शाश्त्री जी : (हंसते हुये..) अरे रे ताऊजी..आप भी कबके गडे मुर्दे उखाड लाये? कितनी पुरानी बात है? अब क्या बताऊं?
ताऊ : जी बताईये. आपही जरा हमारे पाठकों को पूरी बात बताईये?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मेरा विवाह 1973 में हुआ था। वैवाहिक जीवन का अधिक अनुभव न होने के कारण पति-पत्नी में अक्सर अनबन हो जाया करती थी।
ताऊ : अनबन से क्या मतलब?
डा. शाश्त्री जी : अनबन से मतलब ये कि लड झगड लिया करते थे. एक बार धर्मपत्नि जी कुछ ज्यादा नाराज होगई तो वो मायके चली गयीं थी।
ताऊ : ओहो..बडा बुरा हुआ. आगे क्या हुआ फ़िर?
डा. शाश्त्री जी : फ़िर हुआ ये कि 1974 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया था। अचानक मेरा भी पुत्र मोह जाग गया और कुछ अक्कल भी आ गयी थी।
ताऊ : जी.
डा. शाश्त्री जी : बस मैं अपनी ससुराल पहुंच गया और अपने 2 वर्षीय पुत्र को मोटर साइकिल पर उठा कर घर ले आया ।
ताऊ : फ़िर बाद मे क्या हुआ?
डा. शाश्त्री जी : फ़िर हुआ ये कि दो दिन बाद पत्नी जी भी पुत्र मोह में स्वयं मेरे घर चली आयीं थीं।
ताऊ : ये तो चलो अच्छा ही हुआ. पर आपका लडना झगडना इसके बाद भी चालू ही रहा या इस घटना के बाद बंद हो गया?
डा. शाश्त्री जी : बस उस दिन के बाद से सामंजस्य ऐसा बैठा कि उनसे कभी अन-बन नही होती है। व्यक्ति छोटी-बड़ी घटनाओं से बहुत कुछ सीख लेता है। परन्तु सीखने की ललक होनी जरूरी है।
डा. शाश्त्री जी : अनबन से मतलब ये कि लड झगड लिया करते थे. एक बार धर्मपत्नि जी कुछ ज्यादा नाराज होगई तो वो मायके चली गयीं थी।
ताऊ : ओहो..बडा बुरा हुआ. आगे क्या हुआ फ़िर?
डा. शाश्त्री जी : फ़िर हुआ ये कि 1974 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया था। अचानक मेरा भी पुत्र मोह जाग गया और कुछ अक्कल भी आ गयी थी।
ताऊ : जी.
डा. शाश्त्री जी : बस मैं अपनी ससुराल पहुंच गया और अपने 2 वर्षीय पुत्र को मोटर साइकिल पर उठा कर घर ले आया ।
ताऊ : फ़िर बाद मे क्या हुआ?
डा. शाश्त्री जी : फ़िर हुआ ये कि दो दिन बाद पत्नी जी भी पुत्र मोह में स्वयं मेरे घर चली आयीं थीं।
ताऊ : ये तो चलो अच्छा ही हुआ. पर आपका लडना झगडना इसके बाद भी चालू ही रहा या इस घटना के बाद बंद हो गया?
डा. शाश्त्री जी : बस उस दिन के बाद से सामंजस्य ऐसा बैठा कि उनसे कभी अन-बन नही होती है। व्यक्ति छोटी-बड़ी घटनाओं से बहुत कुछ सीख लेता है। परन्तु सीखने की ललक होनी जरूरी है।
ताऊ : वैसे आपके शौक क्या क्या हैं?
डा. शाश्त्री जी : पुस्तकों का पठन-पाठन, गद्य-पद्य लेखन भी कर लेता हूँ।
ताऊ : और ?
डा. शाश्त्री जी : देशाटन के नाम पर आधा हिन्दुस्तान घूम चुका हूँ। जब मन होता हैं तो खाना भी स्वादिष्ट बना लेता हूँ।
ताऊ : आपको सख्त ना पसंद क्या है?
डा. शाश्त्री जी : चापलूस किस्म के मित्रों से सदैव परहेज करता हूँ। परन्तु वे मेरा पीछा छोड़ने को तैयार ही नही होते। ऐसे लोग भी मुझे सख्त नापसन्द हैं, जो अपनी ही कहते जाते हैं। दूसरों की सुनने को राजी नही होते हैं।
ताऊ : आपको पसंद क्या है?
डा. शाश्त्री जी : मुझे सफाई अधिक पसन्द है। साफ घर, साफ-पात्र, साफ वस्त्र, पुस्तक-कापियाँ करीने से जिल्द लगी हुई। और सबसे अधिक सीधे-सादे साफ-सुथरे लोग मुझे ज्यादा पसन्द आते हैं। परन्तु इसका मतलब आप हाथ की सफाई से मत निकाल लेना।
ताऊ : आपका घर देखकर तो यह बात साफ़ समझ में आ ही रही है कि आप निहायत ही साफ़ सफ़ाई पसंद आदमी हैं. अब आप हमारे पाठकों से कुछ कहना चाहेंगे?
डा. शाश्त्री जी : जी जरुर निवेदन करना चाहूंगा. पाठकगण आप को मेरा एक ही सुझाव है कि आप जो कुछ करें। पहले उसके गुण-दोष पर विचार लें। फिर आगे कदम बढ़ायें। ध्यान रखें ! मनोयोग से और निरन्तर अभ्यास से सब कुछ सम्भव है।
ताऊ : ये आपने बहुत ही सुंदर बात बताई हमारे पाठकों को. अब आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना हमारे पाठकों को बताईये.
डा. शाश्त्री जी : बात 1960-61 के दशक की है। परिवार में सबसे बड़ा होने के कारण सब का ध्यान मुझ पर ही था। अतः मुझे गरूकुल हरिद्वार पहुँचाने की पूरी तैयारी सबने कर ली थी।
ताऊ : जी. फ़िर आगे?
डा. शाश्त्री जी : अब पिता जी मुझे गुरूकुल पहुँचा तो आये परन्तु मेरा मन वहाँ न लगा। मैं शौच का बहाना बना कर गुरूकुल से भाग आया। पिता जी पुनः उसी गुरूकुल में मुझे छोड़ने के लिए गये।
ताऊ : फ़िर क्या आप गुरुकुल मे रुक गये दुबारा?
डा. शाश्त्री जी : ना, मैंने भी पिता जी के सामने तथा गरूकुल के संरक्षक महोदय के सामने यह नाटक किया कि मेरा मन अब गुरुकुल में लग गया है।
ताऊ : नाटक किया? पर क्यों?
डा. शाश्त्री जी : नाटक इसलिये जरुरी था कि मुझ पर निगाह ना रखें जिससे मुझे वापस भगने का मौका मिल सके. बस 3-4 घण्टे बाद मुझे जैसे ही मौका हाथ लगा मैं गुरूकुल से भाग आया। पिता जी रेल के पीछे डिब्बे में थे ओर मैं आगे के डिब्बे में। मैं घर भी उनसे पहे ही पहुँच गया था। इस घटना को मैं आज तक नही भुला पाया हूँ।
ताऊ : मतलब आप बचपन मे काफ़ी शरारती रहे हैं. वैसे आप मूलत: कहां के रहने वाले हैं?
डा. शाश्त्री जी : मैं उत्तर-प्रदेश के नजीबाबाद का मूल निवासी हूँ। नजीबाबाद नवाबों का पुराना शहर है।
ताऊ : वहां की कोई मशहूर चीज भी है?
डा. शाश्त्री जी : हां वहाँ से 4 कि.मी. दूर नवाबो का एक पुराना किला भी है। जो सुल्ताना डाकू के किले के नाम से मशहूर है। आज भी इसका अस्तित्व बना हुआ है। किले के मध्य में कभी न सूखने वाली एक पोखर भी है।
ताऊ : ये अच्छी बात बताई आपने? किले की हालत कैसी है?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी, पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण आज यह किला वीरान पड़ा हुआ है। इसकी चाहरदीवारी के मध्य सैकड़ों बीघा जमीन मे सिर्फ खेती होती है। यदि पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दे तो यह एक पर्यटक स्थान के साथ-साथ सेना के कैम्प के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है।
ताऊ : आप संयुक्त परिवार मे रहते हैंआपके परिवार मे कौन कौन हैं?
डा. शाश्त्री जी : जी हाँ! मेरा परिवार एक संयुक्त परिवार है। जिसमें 87 वर्षीय मेरे पिता जी, 85 वर्षिया मेरी माता जी, घर-गृहस्थी वाला बड़ा पुत्र, अविवाहित छोटा पुत्र, मैं ओर श्रीमती जी हैं। और परिवार में 10 वर्षीय पौत्र प्रांजल और 5 वर्षीया पौत्री प्राची है।
ताऊ : और कौन हैं?
डा. शाश्त्री जी : और तीन कुत्ते भी परिवार के ही सदस्य के रूप में इस घर की सुरक्षा में लगे हुए हैं। और हाँ ताऊ! एक बात तो बताना ही भूल गया। मैने भी एक रामप्यारी पाली हुई है। आप भी उसके दर्शन कर लें।
ताऊ : कैसा लगता है संयुक्त परिवार मे रहना?
डा. शाश्त्री जी : बहुत अच्छा लगता है. संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे सामाजिकता आती है। सुख-दुख के समय अपनों का साथ व भरपूर प्यार मिलता है।
ताऊ : आप आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ब्लागिंग का भविष्य उज्जवल है।
ताऊ : आपको कुछ विशेषता लगी ब्लागिंग में?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी, आप जो बात स्पष्ट रूप से कहने में झिझकते हैं, वह ब्लाग के माध्यम से आप दुनिया तक आसानी से पहुँचा सकते हैं। सच बात तो यह है कि ब्लाग विचारों के सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है।
ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
डा. शाश्त्री जी : मैंने ब्लाग जगत में 21 जनवरी 2009 में कदम रखा है।
ताऊ : आपका ब्लागिंग मे आना कैसे हुआ?
डा. शाश्त्री जी : हुआ यों कि मेरे साहित्यकार मित्र रावेंद्रकुमार रवि ने अन्तर्जाल पर अपनी पत्रिका सरस पायस प्रकाशित की। मुझे उनका यह प्रयास पसनद आया और मैने भी ब्लागिंग की दुनिया में अपना कदम बढ़ा दिया। तब से प्रतिदिन ब्लाग पर कुछ न कुछ अवश्य लिखता हूँ।
ताऊ : आपका ब्लाग लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मेरे लेखन की दिशा या दशा तो आप ब्लागर मित्र ही तय करेंगे। मैं तो गद्य और पद्य समानरूप से लिख ही रहा हूँ।
ताऊ : क्या राजनीति मे आप रुची रखते हैं?
डा. शाश्त्री जी : ताऊ जी! मैं राजनीति में खासी रुचि रखता हूँ। शुरू से ही काँग्रेस के साथ जुड़ा रहा हूँ। सन् 2005 से 2008 तक उत्तराखण्ड सरकार के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में मैंने 3 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया है।
ताऊ : अरे वाह . यानि आप तो पूरे राजनितिज्ञ हैं? अब ये बताईये कि राजनिती मे आप किसे अपना आदर्श मानते हैं.
डा. शाश्त्री जी : पं0 नारायणदत्त तिवारी को मैं अपना आदर्श पुरुष मानता हूँ। क्योंकि उनका नारा उनके काम विकासोन्मुख रहे हैं। उनका काम था विकास और विकास, इसके सिवा और कुछ नही।
ताऊ : आप अब भी इसी पार्टी मे मे संतुष्ट हैं?
डा. शाश्त्री जी : नही अब मेरा काँग्रेस से माह भंग हो रहा है। विकास पुरुष पं0 नारायणदत्त तिवारी की उपेक्षा को लेकर मैं व्यथित और आहत हूँ।
ताऊ : कुछ अपने बच्चों के बारे मे भी बताईये?
डा. शाश्त्री जी : मेरे दो पुत्र हैं। बड़ा नितिन इलैक्ट्रोनिक्स इंजीनियर है। छोटे पुत्र विनीत ने एम.काम.,बी.एड किया है। वो अभी अविवाहित है।
ताऊ : भाभीजी यानि कि आपकी जीवन संगिनी के बारे मे कुछ बताईये?
डा. शाश्त्री जी : जी जरुर बताऊंगा. जीवनसंगिनी का नाम श्रीमती अमर भारती है। एक घरेलू महिला होने के साथ-साथ मेरी अनुपस्थिति में औषधालय भी संभालती हैं.
ताऊ : और?
डा. शाश्त्री जी : और स्वयं के निजी विद्यालय (राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय) जूनियर हाई स्कूल की भी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं।
ताऊ : आप बुजुर्ग हैं. आपके पास जीवन का एक अनुभव है. आप हमारे पाठको को कुछ विशेष बात कहना चाहेंगे?
डा. शाश्त्री जी : परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे.
शाश्त्री जी : ताऊ पहेली जी आज तक के जितने अंक मैंने देखे हैं। उनके अनुसार तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि इसके पीछे एक ऐसी सोच झलकती है जो सभी के सामान्यज्ञान में निश्चितरूप से अभिवृद्धि करती है। अर्थात ताऊ पहेली आम पहेलियों से हट कर है.
ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन ? आपका क्या कहना है?
शाश्त्री जी : ताऊ कौन है? इसका तो सीधा-सादा अर्थ है पिता का ज्येष्ठ भ्राता। अर्थात् मान-मर्यादा और गुणें में जो बड़ा हो मेरे विचार से वही ताऊ है। यहां एक सहज हास्य बोध के साथ ताऊ गुप्त रुप से गहरी बात कह जाते हैं. बस मुझे ताऊ इसी रुप मे पसंद है.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे?
शाश्त्री जी : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका अन्तर्जाल की एक जानी-मानी पत्रिका बन कर उभरी है। जो इसके नियमित पाठक हैं, उनके लिए तो यह पत्रिका किसी नशे से कम नही है। मैं जब तक ताऊनामा पढ़ नही लेता हूँ तब तक मुझे ऐसा लगता है जैसे कि दिनचर्या का कोई अधूरा काय्र छूट गया हो।
और अंत मे एक सवाल ताऊ से:-
डा. शाश्त्री जी : ताऊजी, मैं आपसे भी एक सवाल पूछना चाहता हूँ। आपके मन में रामप्यारी का आइडिया कहाँ से आया है?
ताऊ : असल मे ये रामप्यारी सभी के अंदर है. ये एक भोला बचपन है. जिसको हम भूल चुके हैं बस उसी को याद दिलाने की एक छोटी सी कोशीश है.
तो यह थी ताऊ की एक अंतरंग बातचीत डा. शाश्त्री से. कैसा लगा आपको शाश्त्री जी से मिलना. अवश्य बताईयेगा.
मान गये ताऊ आपको.
ReplyDeleteताऊ वाकई में हर कला में निपुण है। ताऊ जो ठहरा।
जो बात मुझसे आज तक कोई नही उगलवा सका।
वो सब आपने कितनी सरलता से मुझसे पूछ ली और बड़ी खूबी से इण्टरव्यू के रूप में प्रकाशित कर दीं। चलो अच्छा ही हुआ।
इस बहाने ही सही लोग मेरी करतूतों से तो वाकिफ हो ही जायेंगे।
बहुत-बहुत आभार।
आपकी सुंदर रचनाओं की मै प्रशंशक हूँ । ऐसी उत्तम रचनाओ के लिए आपको बधाई देते हुए मै आपको शबदनगरी पर भी आमंत्रित करती हूँ की आप शब्दनगरी www.shabdanagari.in पर भी अपनी रचनाओ को अपने नाम से प्रकाशित करे ताकि हम इन्हे लोकप्रिय रचनाओ मे प्रकाशित कर सके ।
Deleteशब्दनगरी से प्रियंका
शास्त्री जी से बातचीत बहुत ही रोचक और सारगर्भित रही । काफी कुछ जान गये हम शास्त्री जी के बारे में । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअच्छा लगा डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक” से मिलना !
ReplyDeleteताऊ, शास्त्री जी से मुलाक़ात बहुत अच्छी रही. हम तो पहले से ही उनसे बहुत प्रभावित हैं. आज की बातचीत में उनके जीवन के अनुभवों से बहुत सी सीखें मिलीं. धन्यावाद और शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबहुत सुंदर साक्षात्कार। हमेशा की तरह लंबा किंतु रोचक। मिसेज शास्त्री जी का मायके वाला किस्सा मजेदार रहा! :)
ReplyDeleteताऊ शाश्त्री जी से बडी अंतरंगता से मिलवाया. बहुत आभार आपका.
ReplyDeleteबहुत सुखद लगा शाश्त्री जी और उनके परिवार के बारे जानकर.
ReplyDeleteबहुत इंटरेस्टिंग इंटर्व्यु.
ReplyDeletebahut badhia raha yah parichayanama
ReplyDeleteशाश्त्रीजी के बारे मे विस्तार जानना अच्छा लगा. आप लगता है धीरे धीरे सभी ब्लागर्स को आपस मे मिलवा ही दोगे? शाश्त्री जी की रामप्यारी के बारे मे जानना भी अच्छा लगा.
ReplyDeleteडॉक्टर रूपचंद शास्त्री जी से आपकी अन्तरंग बातचीत बड़ी अछि लगी. हम भी परिचित हो लिए
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा डा. रूपचन्द्र शाश्त्री जी से मिलना और उनके बारे में जानना ..शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर साक्षात्कार.
ReplyDeletebahut accha laga shashtri ji ke bare me padhna, bachpan ki shaitaniyan nikalwana koi aapse seekhe taau :)
ReplyDeleteपरिचयनामा तो काफ़ी पसंद आया....शास्त्री जी की गुरुकुल से भाग जाने वाली शरारत ने तो हंसा-हंसा कर लोट-पोट कर दिया...
ReplyDeleteताऊ जी को अपनी अगली पहेली का विषय भी मिल गया......सुल्ताना डाकू का किला....क्यूँ ठीक कहा ना ?? साक्षात्कार के दौरान किले का नाम सुनकर ताऊ जी की उत्सुकता देखी थी मैंने....बस फ़िर क्या, ताऊ जी पहुँच गए होंगे किले पर फोटो खींचने के लिए.....हा हा :-)
साभार
हमसफ़र यादों का.......
आदरणीय शास्त्री जी से अत्यन्त रोचक एवं सारगर्भित वार्तालाप हेतु ताऊ आपका भी बहुत धन्यवाद्......इसी बहाने उनके जीवन के बहुमूल्य अनुभवो से हम लोग भी लाभान्वित हो पाए ।
ReplyDeleteबढ़िया साक्षात्कार .....धन्यवाद ताऊ जी .........
ReplyDeleteमयंक का पूरा चिटठा जानकर प्रसन्नता हुई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत अच्छा साक्षात्कार.. शास्त्री जी के बारे में इतनी गहराई से जानना बहुत अच्छा लगा.. ताऊजी को धन्यवाद और शास्त्री जी को प्रणाम.. आभार
ReplyDeleteशास्त्री जी से कुछ बात चीत मेरी भी होती रहती है.......... ताऊ आपने बाखूबी से उनके विभिन्न पहलुओं को खोला है........ अच्छा साक्षात्कार
ReplyDeleteshastri ji ke baare mein itni jankariyan mil gayi hain sirf ek sakshatkar mein .........padhkar aisa lag raha hai jaise hum unhein kab se jante hain.bahut badhiya.
ReplyDeleteशास्त्रीजी का उत्साही रूप देख कर अच्छा लगता है। कभी कभी उनसे चैट होती है। उन्होंने खटीमा आने का न्योता दिया है, देखते हैं कब जाना होता है। बहुत अच्छा लगा उनके बारे में जानना। बचपन के संस्मरण तो दिलचस्प थे ,बिना लाग लपेट वाली उनकी शैली अनूठी है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर...
ReplyDeleteमीत
बातचीत बहुत रोचक है!
ReplyDeleteएक ही बार में पूरी पढ़ डाली!
बातचीत में मुझे भी शामिल किया - आभारी हूँ!
-----------------------------------
एक कमी खल गई -
इतने सारे चित्रों के बीच
ऐसा एक भी चित्र नहीं मिला,
जिसमें यह बातचीत दिखाई दे रही हो?
ताऊ जी बहुत सुंदर लगी आप की यह रोचक बात चीत आप को ओर डा. रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक" जी को हम सब की ओर से नमस्कार
ReplyDeleteधन्यवाद
अच्छा लगा डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक” से मिलना !
ReplyDeleteएक बात पूछना रह गया था कि ये रामप्यारी ताऊ वाली है या शाश्त्री जी की अलग है? या दोनों की अलग अलग रामप्यारियां हैं.?:)
ReplyDeleteलगता है -
ReplyDeleteअंतरजाल पर सारी बिल्लियाँ
"रामप्यारी"
के नाम से मशहूर हो जाएँगी!
लगता है -
ReplyDeleteअंतरजाल पर सारी बिल्लियाँ
"रामप्यारी"
के नाम से मशहूर हो जाएँगी!
ताऊ, शास्त्री जी से मुलाक़ात बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteShashtri ji se milke bahut hi achha laga...
ReplyDeleteआशीष जी।
ReplyDeleteये ताऊ की नही, मेरी रामप्यारी है,
इसकी शक्ल ताऊ वाली से,
बिल्कुल न्यारी है।
कमाल है,
ReplyDeleteताऊ के साथ बात-चीत में मुझे भी घसीट लाए।
ताऊ जी।
इनके बारे में मुझसे कुछ पूछते तो मैं भी ढंग से
इनका राजफास करती।
चलो फिर कभी सही।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी को - ताऊ द्बारा मिल कर अच्छा लगा , शास्त्री जी के बारे में और जान पाए हम ... बधाई ...!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया साक्षात्कार रहा.
ReplyDeleteडॉ.मयंक जी के बारे में जाना.
उनकी कविताओं से तो परिचित हैं,और उनके ब्लॉग लेखन से सभी परिचित है अनुमान है वे जल्द ही ३०० पोस्ट पूरी कर लेंगे..जो एक कीर्तिमान बन जायेगा .
उनकी रामप्यारी से मिल कर ताऊ जी की रामप्यारी बहुत खुश हुई होगी..
आभार
आदरणीय शास्त्री जी से वार्तालाप पसंद आया !
ReplyDeleteएक ऐसे सरल और सहज व्यक्ति को जाने का अवसर मिला जिसके पास ज्ञान और अनुभव का खजाना है !
अच्छा लगा यह सोचकर कि मैं यहाँ अच्छे लोगों के बीच आता हूँ !
श्री शास्त्री जी से आर्शीवाद की कामना के साथ
ताऊ जी आपका आभार !
रोचक साक्षात्कार......
ReplyDeleteआपका आभार कि आपके इस प्रयास से हम शाश्त्रीजी के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं को जान पाए...
very interesting interview indeed! i congratulate u for this masterpiece . Shastri ji ek shandaar vyakti hain.
ReplyDeleteशास्त्री जी से मिलना सुखद रहा. आश्चर्य हुआ कि
ReplyDeleteउनका ब्लॉग मेरे रीडर में नहीं था अब तक ! आभार ताऊ !
बहुत बढ़िया परिचयनामा रहा है बधाई ताऊ जी
ReplyDeleteachchha laga jankar ......डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक जी से मिलना भी
ReplyDeleteशास्त्री जी को आपके माध्यम से जानना बहुत रोचक रहा.
ReplyDeleteआपकी बात के कायल हो गये:
असल मे ये रामप्यारी सभी के अंदर है. ये एक भोला बचपन है. जिसको हम भूल चुके हैं बस उसी को याद दिलाने की एक छोटी सी कोशीश है.
-क्या बात की है!! जय हो ताऊ॒॒
शाश्त्री जी को जानना रोचक रहा..
ReplyDeleteएक और शानदार साक्षत्कार ताऊ, हमेशा की तरह..
आभार
आपका धन्यवाद शास्त्री जी से मिलवाने का
ReplyDeleteडा. रुपचंद्र शाश्त्री को मैं बहुत करीब से जानता हूँ।
ReplyDeleteये धुन के धनी और लग्नशील होने के साथ मिलनसार भी हैं।
ताऊ को धन्यवाद।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक को मुबारकवाद।
ReplyDeleteताऊ का शुक्रिया।
SHRI SHASTRI JI BAHUMUKHI PRATIBHA KE DHANEE HEIN.
ReplyDeleteSHUBH-KAAMNAAON KE SATH,
TAAU KO BADHAI.
Shastri Ji mere mausa ji hain.
ReplyDeleteLUDHIANA men maine unhen 3 din tak watch kiya hai.
vo net se itne jude hain ki apne sath airtel ka modem laye the aur rat men 11 baje tak likhte rahate the.
tau ji ko unka interview publish karne ke liye bahut-bahut badhai.
Shastri Ji mere mausa ji hain.
ReplyDeleteLUDHIANA men maine unhen 3 din tak watch kiya hai.
vo net se itne jude hain ki apne sath airtel ka modem laye the aur rat men 11 baje tak likhte rahate the.
tau ji ko unka interview publish karne ke liye bahut-bahut badhai.
मयंक जी का साक्षात्कार बहुत सुंदर रहा।
ReplyDeleteधन्यवाद ताऊ जी।
Shastri ji aapko badhai.
ReplyDeletetaau ji aapko dhanyavaad.
मयंक भैया।
ReplyDeleteसाक्षात्कार बहुत रोचक रहा.
आपके बारे में तो इतना हम भी नही जानते थे।
ताऊ शाश्त्री जी से से मिलवाया.
आपका बहुत आभार .
डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक” का इंटर्व्यु बहुत ही रोचक रहा।
ReplyDeleteजैसी सरल सहज कविता लिखते हैं,
वैसा ही इंटर्व्यु भी दिया है।
धन्यवाद ताऊ जी .........।
अरे मेरे एम.ए. के साथी मयंक जी।
ReplyDeleteबड़े छिपे रुस्तम निकले।
हमें ये सब बाते पता नही थी।
ताऊ ने उगलवा लीं।
दोनों को बधाई।
kamal hei Shastri ji.
ReplyDeleteSeva Missan ke kamon se aapke pas aata rahata hoon.
aaj aapka interview padh kar dil khush ho gaya.
tau ko thanx.
शास्त्रीजी से मुलाकात बहूत अच्छी लगी
ReplyDelete|बहुत ही सहज और सरल इन्सान लगे |
ताउजी को साधुवाद |
ताऊ जी, अपनी बात का जवाब तो जान लीजीये। मुझे आपकी टिप्पणी का इन्तज़ार है
ReplyDeleteअगली पहेली- किले का न सूखने वाला पोखर:)
ReplyDeleteताऊ ए आज़म सलामत रहे
ReplyDeleteडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी के परिवार से मिलना और बातचीत अच्छी लगी - ताऊ जी आपके प्रयास से हम धीरे धीरे हिन्दी जगत के कई ब्लोगरोँ से अँतरँग मुलाकात कर रहे हैँ उसका आभार !
ReplyDelete- लावण्या
Sir jee Aapka INTERVIEW,
ReplyDeletebahut achha laga.
Aapko Badhai
&
Tau ko Dhanyavad.
बहुत बढ़िया साहब. आनंद आया इस मुलाकत को पढ़कर !
ReplyDeleteवाह ताऊ जी आपका जवाब नहीं! शास्त्री जी का साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा! वैसे मैं उनसे बहुत पहले से परिचित हूँ! बहुत ही बढ़िया लिखते हैं!
ReplyDeleteमा0 शास्त्री जी का परिचयनामा
ReplyDeleteअच्छा लगा। वो एक भले इन्सान हैं,
हर छोटे-बड़े की मदद को सदैव तत्पर
रहते हैं।
मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं,
साथ ही परिचयनामा पेरकशित करने के लिए
ताऊ को भी बधाई।
शास्त्री जी से मिलना
ReplyDeleteतरंगित कर गया
एक अनोखी सी
ऊर्जा में वृद्धि कर गया।
Sakshatkaar padhte,padhte samay ka bhaanhee nahi raha...! Bahut khoob!
ReplyDeleteइस साक्षात्कार के माध्यम से शास्त्री जी का परिचय मिला....आभार..
ReplyDeleteबेहतरीन। शानदार। बधाई।
ReplyDeleteडॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी के बारे में जान कर और श्रीमती अमर भारती जी के बारे में परिचय पूर्ण और रोचक अंदाज से ताऊ जी ने दिया ...बहुत ख़ुशी हुवी दिल गदगद हो आया अमर भारती जी के बारे में और रूपचन्द्र शास्त्री जी के बारे में जान कर .. क्या ताऊ जी आप अपने बारे में भी पूर्ण जानकारी देंगे... आपके बारे में भी जाने के लिए उत्सुक है...
ReplyDeleteआज आपकी यह पोस्ट ..डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी के जन्मदिन के अवसर पर चर्चामंच में है... धन्यवाद
ReplyDeleteशास्त्री जी से मेरा प्रथम परिचय लखनऊ में सन १९७२ में हुआ था। वे जीवट व्यक्तित्व के स्वामी हैं। उनकी कर्म के प्रति निष्ठा, अध्ययनशीलता, मिलनसारिता तथा लोककल्याण की भावना प्रणम्य है। उनके संबंध साक्षात्कार के माध्यम से विस्तृत जान
ReplyDelete-कारी देने के लिए आपको साधुवाद!
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
TAUJI KE JARIYE ADARNIYA SHASTRI JI KO JANANE KA MOUKA MILA, ADARNIY SHASTRI JI KE JEEVAN KE BAARE ME JANKAR BAHUT ACHCHHA LAGA OR ME TAUJI KA HRIDAY SE DHANYWAAD KARTA HU..
ReplyDeleteअब तो मैं भी शास्त्री जी से मिलने को बहुत ही उत्सुक हूँ | उम्मीद है जल्द ही मुलाक़ात होगी |
ReplyDeletegood sir ji aapki mahimaa aprampaar hai
ReplyDeleteN.kumar
शास्त्री जी का इंटरव्यू पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteमैं अक्सर इनसे मिलता रहता हूँ।
मैंने इनको सबका सहयोग करते हुए ही पाया है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार (06-08-2013) के "हकीकत से सामना" (मंगवारीय चर्चा-अंकः1329) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteआभार ताऊ शास्त्री जी से बहुत नजदीक से मिलवाने के लिये !
ReplyDeleteताऊ जी आप ने तो कमाल कर रखा है जहा भी जाता हु आप का ब्लॉग ही नजर आता है और आज शास्त्री जी का ब्लॉग्स देखा तो वहाँ पर शास्त्री जी जानने कि प्रबल इच्छा जागृत हो गए और आपका ब्लॉग का लिंक मिल गया जहाँ ताऊ के द्वारा शास्त्री जी का परिचयनामा मिला थैंक यू ताऊ जी
ReplyDeleteताऊ जी आप ने तो कमाल कर रखा है जहा भी जाता हु आप का ब्लॉग ही नजर आता है और आज शास्त्री जी का ब्लॉग्स देखा तो वहाँ पर शास्त्री जी जानने कि प्रबल इच्छा जागृत हो गए और आपका ब्लॉग का लिंक मिल गया जहाँ ताऊ के द्वारा शास्त्री जी का परिचयनामा मिला थैंक यू ताऊ जी
ReplyDeleteवाह! नामानुरूप शास्त्री जी का परिचयनामा पढ़कर बहुत अच्छा लगा ...आभार!
ReplyDeleteआपके बारे में जानकार अच्छा लगा आपकी काबिलियत ही ऐसी है
ReplyDeleteआपके बारे में जानकार अच्छा लगा ,आपकी काबिलियत ही ऐसी है
ReplyDeletebahut hi achchha laga sir ,bina pura padhe utha hi nahi gaya.bahut hi majedaar aur sargarbhit raha aapka parichay naama-----
ReplyDeletebahut dino baad vapas blog par aa rahi hun housala badhaiega ----dhanyvaad --aur han charcha munch par jagah dene ke liye bhi hardik badhai bahut se naye logo ko bhi padhana bahut hi achchha laga-------dhanyvaad
ReplyDeleteaaj padhi shashtree ji ka sakshhatkaar bahut si jankaariyan mili seekh bhi.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने इसी तरह से हिंदी भाषा में अपने लेखो को प्रकाशित करते रहिये. www.indiahindiblog.com यह भी एक तरह का भारत का एक हिंदी ब्लॉग है. जहाँ पर आप जैसे लेखो की तरह ही एक तरह का प्रयास किया जा रहा है जो भारत के लोगो को हिंदी भाषा में पढने और हिंदी भाषा को ही बढ़ावा देने पर एक तरह से प्रयास किया जा रहा है. इस ब्लॉग पर सभी तरह की जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास India Hindi Blog (इंडिया हिंदी ब्लॉग)द्वारा दिन प्रतिदिन किया जा रहा है. यहाँ पर आपको Information in Hindi (सभी तरह की जानकारी हिंदी में दी गई है), History Information (हिस्ट्री की जानकारी), Business Information (व्यापार सम्बंधित जानकारी), Technology Information (टेक्नोलॉजी सम्बंधी जानकारी), General Knowledge (सामान्य ज्ञान जानकारी), Health Treatment (हेल्थ सम्बंधी जानकारी), Hindi Stories List (हिंदी कहानी), Hindi Thoughts Quotes (हिंदी में अनमोल विचार), Images Wallpapers, Sports Information (खेल सम्बंधी जानकारी)
ReplyDeleteइतना रोचक इंटरव्यू पढ़ने के बाद लगता नहीं कि मैं हैप्पी अभिनंदन के लिए मयंक जी से बात करूं। Ha Ha Ha
ReplyDeleteSunder,
ReplyDeleteKrutidev to unicode font converter