बुढापा
प्रकृति का नियम सुना
हर चीज है आनी जानी
मेरे साथ मगर प्रकृति ने
अपना नियम नही निभाया
मैने किया स्वागत जब
बुढापे ने द्वार मेरा खटखटाया
मैं नादान समझे बैठा था
नियम के तहत ही तो है आया
कुछ दिन करेगा बसेरा अपना
और छोड चला जायेगा
पर हाय रे प्रकृति का दगा
बुढापा अपना घर समझ
साथ मेरे था रहने आया
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
प्रकृति का नियम सुना
हर चीज है आनी जानी
मेरे साथ मगर प्रकृति ने
अपना नियम नही निभाया
मैने किया स्वागत जब
बुढापे ने द्वार मेरा खटखटाया
मैं नादान समझे बैठा था
नियम के तहत ही तो है आया
कुछ दिन करेगा बसेरा अपना
और छोड चला जायेगा
पर हाय रे प्रकृति का दगा
बुढापा अपना घर समझ
साथ मेरे था रहने आया
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
ताऊ क्या क्या चल रहा है मन में भाई ! ये मुआमला क्या है !
ReplyDeleteबचपन आया गयी जवानी,
ReplyDeleteऔर बुढ़ापा आया।
कितना है नादान मनुज,
यह खेल समझ नही पाया।
यही बुढ़ापा अनुभव के,
मोती लेकर आया है।
नाती पोतों की किलकारी,
यही बुढ़ापा लाया है।
अच्छी रचना।
सुश्री सीमा जी
और
ताऊ जी बधायी स्वीकार करें।
सत्य से साक्षात्कार!
ReplyDeleteयही तो जीवन का सत्य है। बुढापा तो मौत के दरवाजे से साथ लेकर ही जाता है।
ReplyDeleteप्रकृति का नियम सुना
ReplyDeleteहर चीज है आनी जानी
" और एक दिन बुडापा भी आना ही है.....ताऊ जी जीवन के सत्य से रूबरू कराते बेहद भावनात्मक शब्द "
regards
यह तो अमिट सत्य है ही .बधाई ताऊ जी आप को इस सत्य का एहसास करानें के लिए .
ReplyDeleteयही सत्य है.यही एक अवस्था है जो आकर कभी जाती नहीं.
ReplyDeleteताऊ! बुढापा ही तो एक अकेला सच्चा मित्र है जो कि अन्त तक साथ निभाता है....बचपन और जवानी तो "लुंगाडे यार" की माफिक हैं,जो खाए पिए और खिसके.
ReplyDeleteखूबसूरत चित्रों के साथ ज़िन्दगी की सच्चाई बयां करती रचना...
ReplyDeleteनीरज
शब्दों से सुंदर चित्रण किया है...
ReplyDeleteमीत
बहुत सुन्दर रचना..ये ही सच्चाइ है..बधाई सीमा जी को..
ReplyDeleteकुछ दिन पहले आश्रम जाकर आया तब समझ आया बुढापा क्या है?
ReplyDeleteबुढापा अपना घर समझ
ReplyDeleteसाथ मेरे था रहने आया
हां ताऊ ये तो अब अगया समझो. क्या करें? आज तो यही सच्चाई है कब तक मुंह मडेंगे?
रामराम.
* मडेंगे? = मोडेंगे ?
ReplyDeleteबहुत सटीक कविता ताऊ जी.
ReplyDeleteसच्चाई बयान करती रचना.
ReplyDeleteसही है ताऊ. बुढापा आकर नही जाता. शायद आप प्रकृति का नियम समझने मे धोखा खा गये.:)
ReplyDeleteये तो अभी तक सोचा ही नही था?
ReplyDeleteयही तो एक चीज है जो एक बार आ जाए तो फिर आती ही जाती है. उम्र भर का साथ निभा जाती है फिर !
ReplyDeleteयह कविता ताऊ के बारे मे तो नही हो सकती है क्यों कि ताऊ तो कभी बुढा हो ही नही सकता है ।
ReplyDeleteपुनरपि जननं, पुनरपि मरणम।
ReplyDeleteयह पोस्ट पढ़ कर आदिशंकर का भजगोविन्दम याद आ गया!
नमस्कार, ताउ जी,
ReplyDeleteक्या लिखते है जी आप, आपके द्वारा लिखे लेख को पढ़कर मन खुश हो जाता हैं। धन्यवाद इसी तरह हम सभी को अच्छे अच्छे लेख दिया किजीऐंगा।
आपने मेरे ब्लाग पर अपना कीमती समय देकर अपना विचार व्यक्त किया इसके लिए धन्यवाद्। मुझे ब्लाग लिखने नही आता मै तो बस आप बिती बस लिखा। बस आप लोगों के आर्शिवाद से आगे कोशिश करूंगा अच्छा लिखने की।
धन्यवाद्।
पता नहीं ये क्या हो रहा है।
ReplyDelete----------
किस्म किस्म के आम
क्या लडकियां होती है लडको जैसी
मैं नादान समझे बैठा था
ReplyDeleteनियम के तहत ही तो है आया
कुछ दिन करेगा बसेरा अपना
और छोड चला जायेगा........
kahin doorrrr,,,,bahut doorrrrr....tau ham samajh bhi nahi payege...
Very True....
ReplyDeleteअच्छा लिखा है. यह भी कहा जा सकता था कि कुछ दिन रहकर ले जाने आया है.
ReplyDeleteबुढापा अपना घर समझ
ReplyDeleteसाथ मेरे था रहने आया
बहुत खूब.. जीवन की इस अवस्था का मार्मिक किंतु सत्य चित्रण.. आभार
यह तो जीवन का एक कटु सत्य है। और क्या कहूँ......
ReplyDeleteताऊ.............कोई बात नहीं.............बुढापा तो आत ही है ............जाता नहीं पर जब जाता है सब कुछ ले जाता है ...............
ReplyDeleteएक अटल सत्य को उकेरा है आपने..बेहतरीन!!
ReplyDeleteजीवन का चक्र है....कौन इससे बचेगा ?
ReplyDeleteजो जाकर कभी ना आये वो जवानी है,
ReplyDeleteऔर जो आकर कभी ना जाये वो बुढापा है।
अमिट सत्य है....
ReplyDeleteकविता के क्लाइमेक्स ने डरा दिया है ताऊ
ReplyDeleteताऊ जी ऐसी सच्चायी चुनी कि दहसत छा गयी मन मे........बडी आसानी से समझ मे पैन्ठ गयी . फ़िर भी डरने की कोयी बात नही..........आप और हम तो जवान ही ठहरे.............
ReplyDeleteअभी तो तुम जवान हो , अभी भी मै जवान हून
चलेगा काम कुछ दिनो गो कि उम्र का मुकाम हून ....
भूलिये भी और भतीजे भतीजियोन को अपने ठेठ हरियानवी अन्दाज़ मे जवानी का ’शिलाजीत’ चखाते रहिये . कोयी गम्भीर बात तो नहीन ना कह दी...हा हा हा !!
वैसे सीमाजी ने बडी ही गहरी बात कही है ! पर समझने का मन नहीन करता , गोया सच्चायी तो यही है लम्बी ज़िन्दगानी की .सभी को तो शहीदोन की मौत नहीन ना नशीब होती .