प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के 15 वें अंक मे स्वागत है.
आज से हमारे विदेश मे रहने वाले हीरामन साहब भी वापस लौट आये हैं और अब वो ताऊ साप्ताहिक मे ही सहायक
संपादक का कार्य भार संभाल चुके हैं. फ़िलहाल वो मनोरंजक टीपणियां तलाश कर विदुषक का खिताब हर सप्ताह देंगें.आपसे निवेदन है कि उनका जरा गर्मजोशी से स्वागत करें.
किसी भी हिल स्टेशन से इन्सान की बहुत सी यादें जुडी रहती हैं. अबकी बार की पहेली राजस्थान के खूबसूरत हिल स्टेशन माऊंट आबू के बारे मे थी. जो रोक आपको चित्र-पहेली मे दिखाई वो नक्की झील के किनारे स्थित टोड राक ही है.
और हमेशा की तरह आपको सु अल्पना वर्मा के "मेरा पन्ना" में बहुत ही विस्तृत जानकारी यहां के बारे मे मिलेगी. हम सिर्फ़ एक बात कहना चाहेंगे कि ये एक सबसे सुरक्षित हिल स्टेशन है हर लिहाज से. ज्यादातर नवविवाहित यहीं जाना पसंद करते हैं. और युं तो मौसम के हिसाब से हिल स्टेशन जाया जाता है पर माऊंट आबू अपवाद है.
गुरुशिखर को जाने वाला रास्ता
माऊंट आबू मे हर शुक्रवार शाम को होटल भरना शुरु हो जाते हैं जो कि सोमवार सूबह ही खाली हो पाते हैं. अत: बिना होटल बुकिंग के जायें तो इन दिनों का खयाल अवश्य रखें. क्योंकि यह गुजरात राजस्थान और मध्यप्रदेश के कई बडॆ शहरों के मध्य मे और नजदीक पडता है. इस वजह से वीक एंड पर यहां काफ़ी भीड हो जाती है.
----------------------------------------------
आपको मालूम होगा कि अश्व को पौरुष का प्रतीक माना गया है. क्योंकि उसके दौडने की क्षमता बहुत अधिक है और वो ज्यादा देर तक दौड सकता है. इसीलिये अश्वशक्ति horse power शब्द अस्तित्व मे आया होगा,
पर और जान लिजिये कि घोडा हमेशा खडे खडे ही सोता है और उसका शरीर कभी पृथ्वी के संपर्क मे नही आता. और पृथ्वी की गुरुत्व शक्ती के संपर्क में नही आने के कारण उसकी शक्ती का ल्हास नही होता.
सभी प्राणियों मे नर और मादा दोनों मे स्तन होते हैं पर अश्व जाति मे नर के स्तन नही होते. तो साहब यह आपको भी अजीब सी बात लगी होगी पर अश्व शक्ति का महत्व आपने समझ लिया होगा.
--------------------------------------------
आज कल आदमी हंसना भूलता जा रहा है. दूसरा कोई कोशीश करता है तो उसे तथाकथित बुद्धिजीवी नुमा लोग मूर्ख समझते हैं. चलिये साहब इनसे तो मुर्ख ही भले. आज एक कविता " ओकतई रिफ़लर (तुर्की) की पढने मे आई. आप भी आनन्द लिजिये कि आदमी कितना अपने खयालों मे खो चुका है? उसको होश ही नही रहा अपना तो दूसरों का क्या ख्याल रखेगा?
गोद मे रखी है रोटी
और सितारे हैं बहुत दूर
मैं अपनी रोटी खाता हूं सितारों को
ताकते हुये
खयालों में इस कदर गुम कि
कभी कभी
मैं गलती से खा जाता हूं एक सितारा
रोटी के बजाये.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :- मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
सहायक संपादक : हीरामन
आज से हमारे विदेश मे रहने वाले हीरामन साहब भी वापस लौट आये हैं और अब वो ताऊ साप्ताहिक मे ही सहायक
संपादक का कार्य भार संभाल चुके हैं. फ़िलहाल वो मनोरंजक टीपणियां तलाश कर विदुषक का खिताब हर सप्ताह देंगें.आपसे निवेदन है कि उनका जरा गर्मजोशी से स्वागत करें.
किसी भी हिल स्टेशन से इन्सान की बहुत सी यादें जुडी रहती हैं. अबकी बार की पहेली राजस्थान के खूबसूरत हिल स्टेशन माऊंट आबू के बारे मे थी. जो रोक आपको चित्र-पहेली मे दिखाई वो नक्की झील के किनारे स्थित टोड राक ही है.
और हमेशा की तरह आपको सु अल्पना वर्मा के "मेरा पन्ना" में बहुत ही विस्तृत जानकारी यहां के बारे मे मिलेगी. हम सिर्फ़ एक बात कहना चाहेंगे कि ये एक सबसे सुरक्षित हिल स्टेशन है हर लिहाज से. ज्यादातर नवविवाहित यहीं जाना पसंद करते हैं. और युं तो मौसम के हिसाब से हिल स्टेशन जाया जाता है पर माऊंट आबू अपवाद है.
गुरुशिखर को जाने वाला रास्ता
माऊंट आबू मे हर शुक्रवार शाम को होटल भरना शुरु हो जाते हैं जो कि सोमवार सूबह ही खाली हो पाते हैं. अत: बिना होटल बुकिंग के जायें तो इन दिनों का खयाल अवश्य रखें. क्योंकि यह गुजरात राजस्थान और मध्यप्रदेश के कई बडॆ शहरों के मध्य मे और नजदीक पडता है. इस वजह से वीक एंड पर यहां काफ़ी भीड हो जाती है.
----------------------------------------------
आपको मालूम होगा कि अश्व को पौरुष का प्रतीक माना गया है. क्योंकि उसके दौडने की क्षमता बहुत अधिक है और वो ज्यादा देर तक दौड सकता है. इसीलिये अश्वशक्ति horse power शब्द अस्तित्व मे आया होगा,
पर और जान लिजिये कि घोडा हमेशा खडे खडे ही सोता है और उसका शरीर कभी पृथ्वी के संपर्क मे नही आता. और पृथ्वी की गुरुत्व शक्ती के संपर्क में नही आने के कारण उसकी शक्ती का ल्हास नही होता.
सभी प्राणियों मे नर और मादा दोनों मे स्तन होते हैं पर अश्व जाति मे नर के स्तन नही होते. तो साहब यह आपको भी अजीब सी बात लगी होगी पर अश्व शक्ति का महत्व आपने समझ लिया होगा.
--------------------------------------------
आज कल आदमी हंसना भूलता जा रहा है. दूसरा कोई कोशीश करता है तो उसे तथाकथित बुद्धिजीवी नुमा लोग मूर्ख समझते हैं. चलिये साहब इनसे तो मुर्ख ही भले. आज एक कविता " ओकतई रिफ़लर (तुर्की) की पढने मे आई. आप भी आनन्द लिजिये कि आदमी कितना अपने खयालों मे खो चुका है? उसको होश ही नही रहा अपना तो दूसरों का क्या ख्याल रखेगा?
गोद मे रखी है रोटी
और सितारे हैं बहुत दूर
मैं अपनी रोटी खाता हूं सितारों को
ताकते हुये
खयालों में इस कदर गुम कि
कभी कभी
मैं गलती से खा जाता हूं एक सितारा
रोटी के बजाये.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
-अल्पना वर्मा नमस्कार, आईये आपको आज राजस्थान के एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन माऊंट आबू के बारे मे जानकारी देते हैं. शनीवार को पूछा गया पहेली का स्थान था नक्की झील के किनारे स्थित टोड राक. 'माउंट आबू,' जिला सिरोही में है जानिए इस जिले सिरोही के बारे में- सिरोही राजस्थान का पर्वतीय एवं सीमावर्ती जिला हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूल नाम शिवपुरी था। १४०५ में राव शोभा जी ने शिवपुरी शहर को बसाया था. प्रदेश का एकमात्र पर्वतीय स्थल माउन्ट आबू इस जिले में हैं। यह क्षेत्र मौर्य, क्षत्रप, हूण, परमार, राठौड, चौहान, गुहिल आदि शासकों के अधीन रहा। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र आबुर्द प्रदेश के नाम से जाना जाता था और गुर्जर-मरू क्षेत्र का एक भाग था। देवडा राजा रायमल के पुत्र शिवभान ने सरणवा पहाडों पर एक दुर्ग की स्थापना की और 1405 ई. में शिवपुरी नामक नगर बसाया। उनके पुत्र सहसमल ने शिवपुरी के दो मील आगे 1425 ई. में नया नगर बसाया जिसे आजकल सिरोही के नाम से जाना जाता हैं। राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सिरोही गुजरात राज्य से जुडा एक प्रमुख नगर और इसी नाम का एक जिला मुख्यालय हैं। यह सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 24 किमी. दूर स्थित हैं। श्री राय साहब विसाजी मिस्त्री [जिनके केवल एक ही बाजू थी]उन्हें सिरोही का मुख्य इंजिनियर कहा जाता है.उनके योगदान के लिए उन्हें यहाँ के लोग हमेशा याद करते हें. अब 'माउंट आबू 'के बारे में जानते हें-- क्षेत्रफल-25वर्ग किमी. वर्षा- 153से 177सेंमी. कब जाएं-फरवरी से जून और सितंबर से दिसंबर माउन्ट आबू भारत का प्राचीनतम पर्वत हैं। माउंट आबू राजस्थान का वह स्थान है, जहां गर्मी हो या सर्दी हमेशा सैलानियों का तांता लगा रहता है। कुछ रोचक प्रचलित कथाएँ इस स्थान के बारे में --: 1-इस शहर का पुराना नाम 'अर्बुदांचल 'बताया जाता है.पुरानो के अनुसार इस जगह को अर्बुदारान्य [अर्भु के वन.] के नाम से जाना जाता है.कहते हैं वशिष्ठ मुनि ने विश्वामित्र से अपने मतभेद के चलते इन वनों में अपना स्थान बना लिया था. 2-एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी। 3-माउंट आबू अनेक ऋषियों और संतों का देश रहा है. इनमें सबसे प्रसिद्ध हुए ऋषि वशिष्ठ, कहा जाता है कि उन्होंने धरती को राक्षसों से बचाने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के हवन-कुंड में से चार अग्निकुल राजपूत उत्पन्न किए थे। इस यज्ञ का आयोजन आबू के नीचे एक प्राकृतिक झरने के पास किया गया था, यह झरना गाय के सिर के आकार की एक चट्टान से निकल रहा था, इसलिए इस स्थान को गोमुख कहा जाता है। ४- पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं. ५-कहा जाता है कि भारत में संत, महापुरुष यहाँ के पहाड़ों में निवास करते थे। मान्यता है कि हजारों देव, ऋषि-मुनि स्वर्ग से उतरकर इन पहाड़ों में निवास करते थे ६ -जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना हुआ है। माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। सिरोही जिले में स्थित नीलगिरि की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। हरे-भरे जंगलों से घिरी पहाड़ियों के बीच एक शांत स्थान, माउंट आबू, राजस्थान के रेतीले समुद्र में एक हरे मोती के समान है। अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित इस पहाड़ी स्थान का ठंडा मौसम पूरे पहाड़ी क्षेत्र को फूलों से लाद देता है, जिसमें बड़े पेड़ और फूलों की झाड़ियां भी शामिल हैं। माउंट आबू को जाने वाला मार्ग यदि आकाश मार्ग से देखा जाए तो ऊंची-ऊंची चट्टानों के बीच घुमावदार रास्ते उच्च वेग वाली हवा के साथ एक बिंदु-रेखा के समान दिखाई देंगे। राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन, माउंट आबू गर्मियों में लिए एक स्थान से कहीं अधिक है। माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों कापसंदीदा स्थान था। पहुँचें वायु मार्ग से- निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहां से 185किमी.दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं। रेल मार्ग से- नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28किमी.की दूरी पर है जो अहमदाबाद,दिल्ली,जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है। सड़क मार्ग से- माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिएअपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं। घूमने की जगह- दिलवाड़ा जैन मंदिर,नक्की झील-टॉड रॉक और नन रॉक-गोमुख मंदिर-माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य-गुरु शिखर-सूर्यास्त स्थल (सनसेट पॉइंट) -ट्रेवोर्स टैंक -अर्बूदा देवी का मंदिर-वास्तुपाल और तेजपाल मंदिर-अचलेश्वर और अचलगढ-गौतम आश्रम, अंबाजी, ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय (ओमशांति भवन दर्शनीय हैं). खरीदारी- राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहां की संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियों और सूती कोटा साड़ियां काफी लोकप्रिय है। यहां की दुकानों से चांदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है। समाचारों में- १-16 march २००९ रविवार को माउंट आबू मार्ग स्थित आरणा गांव के समीप घने जंगलों में अचानक आग भडकउठी थी.बहुत से प्रयासों के बाद ही आग को बुझाया जा सका. २- नक्की झील के उत्तरी तट पर तीन करोड़ की लागत से माउंट आबू में देश का सबसे बड़ा मछलीघर (अक्वेरियम) बनने जा रहा है। 3-भालुओं के लिए प्रसिद्ध माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का अस्तित्व इस इलाके में हो रहे अवैध निर्माण से खतरे में है. 4-एक जगह यह पढा है-- दुनिया जहान में हिल स्टेशन माना जाने वाला माउंट आबू प्रदेश सरकार की ओर से हिल स्टेशन घोषित नहीं है इसलिए यहाँ वनकर्मियों को हिलस्टेशन की सुविधाएँ (हार्ड ड्यूटी एलाउंस) नहीं मिलतीं। यह बात कितनी सच है..कृपया जानकार पाठक बतायें. दिलवाड़ा जैन मंदिरः कहते हैं सात अजूबों से कम नहीं हैं ये मंदिर. पौराणिक कथा के अनुसार -भगवान विष्णु के नये अवतार बालमरसिया ने इस मंदिर की रुपरेखा बनाई थी. इन आकर्षक ढ़ग से तराशे गए मंदिरों का निर्माण 11 वीं और 13 वीं सदी में हुआ था। ये जैन तीर्थकारों के संगमरमर से बने ललित्यपूर्ण मंदिर हैं। प्रथम तीर्थकर का विमल विसाही मंदिर सबसे प्राचीनतम है। इसका निर्माण सन् 1031 में विमल विसाही नामक एक व्यापारी ने किया था जो उस समय के गुजरात के शासकों का प्रतिनिधि था। यह मंदिर वास्तुकला के सर्वोत्तम उदारहण हैं। यह पांच मंदिरों का समूह है. प्रमुख मंदिर में ऋषभदेव की मूर्ति व 52 छोटे मंदिरों वाला लम्बा गलियारा है, जिसमें प्रत्येक में तीर्थकरों की सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित है तथा 48 ललित्यपूर्ण ढ़ग से तराशे हुए खंभे गलियारे का प्रवेश द्वारा बनाते हैं। बाइसवें तीर्थंकर - नेमीनाथ का लून वसाही मंदिर का निर्माण दो भाइयों वस्तुपाल व तेजपाल ने ईसवी सन् 1231 में किया वे पोरवाल जैन समुदाय से संबंध रखने वाले गुजरात के शासक राजा वीर धवल के मंत्री थे। द्वारा के खोलों डयोढ़ी पर बने खंभों, प्रस्तर पादों व मूर्तियों के कारण मंदिर शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है। 1231 में इस मंदिर को तैयार करने में 1500 कारीगरों ने काम किया था। वो भी कोई एक या दो साल तक नहीं। पूरे 14 साल बाद इस मंदिर को ये खूबसूरती देने में कामयाबी हासिल हुई थी। उस वक्त करीब 12 करोड़ 53 लाख रूपए खर्च किए गए। अगले सप्ताह फ़िर किसी नई जानकारी के साथ मिलते हैं. तब तक के लिये नमस्कार. -अल्पना वर्मा ( विशेष संपादक ) |
-आशीष खण्डेलवाल नमस्कार, आईये आज आपको एक रोमांचक जानकारी देते हैं. अरे आप डरिये मत. मैं कोई मजाक भी नही कर रहा हुं.
नहीं, मैं कोई अंधविश्वास नहीं फैला रहा हूं। एक ब्रिटिश दम्पती वाकई लोगों को ऐसा ही सिखाने की योजना बना रहा है। और तो और इस काम में सरकार भी उन्हें लाखों रुपए देकर मदद कर रही है। साउथ वेल्स के इस दम्पती को सरकार ने इस कोर्स के लिए 4500 पाउंड (करीब सवा तीन लाख रुपए) यूं ही दे दिए हैं। सरकार के इस कदम की ब्रिटेन में जमकर आलोचना हो रही है। दरअसल पॉल और डेबोरा रीज को यह पैसा सरकार की ओर से वांट-टू-वर्क योजना के तहत दिया गया। ब्रिटेन में नौकरी से निकाल दिए गए लोगों को सरकार फिर से काम पर लगाने में इसी योजना के तहत मदद करती है। पॉल और डेबोरा ने अपने आवेदन में लिखा कि वे लोगों को भूतों से बातें करना सिखाएंगे। शायद वहां के बाबू भी लालफीताशाही में यकीन रखते हैं। उन्होंने उस फाइल को पढ़े बिना ही लाखों रुपए देकर उनकी मदद कर दी है। आलोचना होने पर इस घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। पॉल और डेबोरा का कहना है कि उन्होंने यह कोर्स इसलिए चुना, क्योंकि इसमें प्रतियोगिता कम है। साथ ही हर व्यक्ति अपने खोए परिजनों से बात करने में दिलचस्पी रखता है। यह बात और है कि वे कोर्स में क्या पढ़ाएंगे, यह किसी को नहीं पता। पूरी खबर इस वेबसाइट पर पढ़ी जा सकती है- http://www.telegraph.co.uk/news/uknews/5054558/Psychics-given-4500-government-funding-to-teach-people-to-communicate-with-the-dead.html अगले हफ्ते तक के लिए इजाज़त। आपका दिन शुभ हो.. -आशीष खण्डेलवाल ( तकनीकी संपादक ) |
-Seema Gupta आइये आज आपको एक और छोटी सी कहानी सुनाते हैं. सर्दियों के दिन.. सूबह सूबह बहुत ही शानदार धूप जंगल मे खिली हुई है. एक खरगोश अपनी मांद से बाहर, आराम से बैठा अपने कंप्युटर के की-बोर्ड पर अंगुलियां चला रहा है. . तभी एक लोमड़ी वहां आती है. और उस सर्दियों की धूप मे बैठ कर काम करते हुये खरगोश से पूछने लगी. लोमड़ी : "आप किस विषय पर काम कर रहे हैं?" खरगोश: "अपनी थीसिस पर ." लोमड़ी: "हम्म ... किस बारे में है यह थीसिस?" खरगोश: "ओह, मैं लिख रहा हूँ की खरगोश लोमडी कों कैसे खाते हैं ." लोमड़ी: "यह हास्यास्पद है! कोई भी बेवकूफ जानता है कि खरगोश लोमडी कों नहीं खा सकते ! खरगोश: "मेरे साथ आओ और मैं तुम्हें दिखाता हूँ!" और खरगोश उस लोमडी को लेकर अपनी मांद मे चला जाता है. और कुछ ही मिनटों के बाद, एक लोमड़ी की हड्डी कों खाता हुआ खरगोश वापस आता है और , फ़िर से अपने कंप्युटर के की बोर्ड पर अपनी अंगुलियां चलाने लगता है. जल्द ही एक भेड़िया वहां से निकला और मेहनती ख़रगोश को देखने के लिए रुक जाता है. अब भेडिये ने भी उससे पूछा. भेड़िया : "आप जो लिख रहे हैं वह क्या है?" खरगोश: " खरगोश कैसे भेड़ियों को खाते है इस विषय पर एक शोध कर रहा हूँ." भेड़िया : "तुम ऐसी बकवास को प्रकाशित करने की उम्मीद कैसे कर सकते हो ?" खरगोश: "कोई समस्या नहीं है. क्या तुम देखना चाहते हो?" खरगोश और भेडिया फिर मांद में जाते है और कुछ ही मिनटों में खरगोश वापस आकर अपनी टाइपिंग करने लगता है. अंत में एक भालू आता है और पूछता है, तुम क्या कर रहे हो ? खरगोश: "मैं शोध कर रहा हूँ की खरगोश भालू को कैसे खाते है भालू " ह ह ह ह ह कितना बेतुका है ! लगता है तुम पूरी तरह पागल हो गये हो? खरगोश: "मेरे घर में आओ और मैं तुम्हें दिखाता हूँ" मांद के अंदर का दृश्य: जैसे ही वे मांद में प्रवेश करते हैं , खरगोश भालू की पहचान मांद में बेठे शेर से कराता है..... नैतिक: इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता की आपका शोध का विषय कितना मुर्खता पुर्ण या बेतुका है ..प्रश्न ये है की आपके अधीन काम करने वाला सुपरवाइज़र कितना योग्य है ... कार्यशील संसार के संदर्भ में प्रबंधन पाठ : आपका बुरा प्रदर्शन उतना मायने नहीं रखता जितना ये महत्वपूर्ण है, की आप अपने मालिक की पसंद है या नहीं. अब अगले सप्ताह तक के लिये इजाजत, नमस्कार. -Seema Gupta संपादक (प्रबंधन) |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से
मैं हूं हीरामन राम राम ! सभी भाईयों और बहनों को. मैं हूँ तोता हीरामन! ताई कहती है मेरा मन बिलकुल हीरे जैसा है इस लिए नाम भी हीरामन रख दिया.. मैं अभी अभी विदेश भ्रमण से लौटा हूँ.. तो देखा यहाँ तो रामप्यारी सब की लाडली बनी बैठी है! वैसे वो है तो मेरी भी लाडली! मुझ से छोटी है न! खैर..मैं तो यहाँ आज का विदूषक का खिताब देने हाज़िर हुआ हूँ! कल की पहेली में बहुत सारी मजेदार टिप्पणियां आई हैं..लेकिन मुझे जो सब से ज्यादा मजेदार लगी.. उसे "आज का विदूषक" (सिर्फ़ तीन स्थानों के लिये) का खिताब मिलता है... _________________________________________________ आज के प्रथम विदूषक का खिताब जाता है श्री योगिंद्र मौदगिल को... आपने फ़रमाया है:- हे ताऊ.... ये है डायनासोर की पुरानी खोपड़ी. जो कुदरती थपेड़े सह-सह कर पत्थर जैसी होगी. इश्क के मारे जिन छोरे-छोरियों के पास ढंग की जगह जाने के पैसे नहीं होते, वे बिचारे शादी के बाद की रिहर्सल के लिये यहीं आते हैं, और टिप के रूप में हस्ताक्षर भी कर जाते हैं. बाकि रही रामप्यारी.. ईब भला जो राम नै ई प्यारी होली उसका के जवाब दयूं..? इतना हिसाब-किताब आता तो कविता थोड़े ई लिखता..!!! जैरामजीकी.... --------------------------------------------------- और आज के दूसरे विदुषक हैं श्री शाश्त्री जी : पहेली न बूझने के बहाने!--: प्रिय ताऊ जी, पिछले शनिवार सफर के कारण आपके चिट्ठे पर न आ सका. उसका मानसिक डिप्रेशन अभी भी चल रहा है. उम्मीद है कि इस उत्तर को लिखने के बाद यह डिप्रेशन कम हो जायगा. 1. मैं किताबों का बेहद प्रेमी हूँ, अत: वह पुस्तक जरूर देखना चाहूंगा जिसमे एक साथ इक्क्यासी-बयासी पन्ने देखे जा सकते हैं!!! (हा! हा!! आज कुछ तो हाथ लगा!! प्रात: शायद आपको स्मरण किया था ताऊ जी). 2. चट्टान देखते ही डिप्रेशन बढ गया -- कि कहीं यह मेरे ऊपर न ट्पक जाये. घर वालों से कह दिया है कि ऐसी कोई भी दुर्घटना हुई तो ताऊ जी और सिर्फ ताऊजी जिम्मेदार हैं अत: हर्जाखर्चा के लिये सीधे वहीं पहुंच जाना!! हां नीचे वाली चट्टान पर खुदे दिल को देख कर दुख और भी बढ गया कि एक क्षण के आनंद के लिये किस तरह हम प्रकृतिदत्त चीजों पर लिखलिखा कर उनको रौन्दते हैं. ------------------------ और तीसरे विदुषक हैं : श्री राज भाटिया अरे ताऊ आलू तो हो ही नही सकता... अब सोचने कि बात यह है कि यह है कया.... ओर मेने ओर मेरे हेरी ने बहुत दिमाग लगाया... तो लगा हो ना हो यह राज स्थानी शकर कंदी हो सकती है..... ___________________________ आप मजेदार टिपणियां करते रहिये. हीरामन अगले सप्ताह फ़िर आपकी सेवा मे इसी जगह उपस्थित होगा. तब तक के लिये नमस्कार |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :- मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
सहायक संपादक : हीरामन
माउन्ट आबू के बारे में विस्तृत जानकारी देने और प्रबंधन सीख देने के लिए अल्पना जी व सीमा जी का आभार !
ReplyDeleteसुन्दर पत्रिका।
ReplyDeleteफिर एक साथ इतनी विभूतियाँ -मगर पढ़ा सबको -अल्पना जी की नजरों से माउन्ट आबू देखा -इस गर्मी में जाने की तैतारी इस पोस्ट को पढ़ कर हो गयी -शुक्रिया अल्पना जी को ! सुपरवाईजर ही दरसल शोध का ब्रह्मा विष्णु महेश है इस ध्रुव सत्य से पृचाय्ट करने के लिए सीमा जी का आभार ! हीरामन तोते के लिए वन विभाग से अनुमति ले लो ताऊ -ताकि लफडे न हों ! और कुछ विभूतियों के अगड़म बगड़म जवाब भी देखा -क्या कहें बड़े लोग हैं !
ReplyDeleteऔर इस संयोजन के लिए आपको भी राम राम ! और एक बात! इस सारे मामले में घोडे कहा से आ टपके -किसके अस्तबल से भागे हैं !
माउन्ट आबू के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए अल्पना जी का आभार, और आशीष जी वैसे तो भूतो से हमे डर लगता है मगर किस्सा जरुर रोचक है और उत्सुकता पैदा करता है सच कहा दुनिया कैसी कैसी है जो हम सोच भी नहीं सकते....
ReplyDeleteऔर ये नन्हा हीरामन तोता बहुत ही प्यारा लगा , इसके आने से इस पत्रिका की रोचकता और बढ़ गयी है..... "आज का विदूषक" पन्ने के तहत तीनो विजेताओं को बधाई....
Regards
माउन्ट आबू के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए अल्पना जी का आभार, और आशीष जी वैसे तो भूतो से हमे डर लगता है मगर किस्सा जरुर रोचक है और उत्सुकता पैदा करता है सच कहा दुनिया कैसी कैसी है जो हम सोच भी नहीं सकते....
ReplyDeleteऔर ये नन्हा हीरामन तोता बहुत ही प्यारा लगा , इसके आने से इस पत्रिका की रोचकता और बढ़ गयी है..... "आज का विदूषक" पन्ने के तहत तीनो विजेताओं को बधाई....
Regards
पूरा पढ़ लेने के बाद अब याद नहीं आ रहा हैतिप्पनी के लिए क्या सोचे थे. खैर दिलवर का जैन मंदिर के आगे ताज महल भी फ़ैल है. अल्पना जी का पन्ना रोचक था. वैसे पूरी पत्रिका ही ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक लगी.
ReplyDeletemaunt abu ki safar,bhooton se baat,supervisor ki kahani aur totaraam ka swagat,puri team ko badhai sahit sunder pratrika ke liye aabhar.
ReplyDeleteआज तो कई रोचक जानकारियां हैं .
ReplyDeleteहीरामन की एंट्री शानदार रही.. अल्पनाजी, सीमाजी और ताऊजी के स्तंभ हमेशा की तरह ही रोचक और ज्ञानवर्द्धक रहे.. आभार
ReplyDeleteविदूषक के होने पर
ReplyDeleteविदू है शक है
यह कैसा विदूषक है
विदूषक को तो विदूशक
चाहिए लिखना
हमें तो शक है
कि यह हंसाने वाले को
करेगा सम्मानित या
हंसने वाले को अपमानित
जो न हंसे उसके लिए
अपमान पुरस्कार का
भी किया जाए प्रावधान
और उसे बाईस पसेरी धान
की दो बोरी उठवाई जाए
अगली बार धान का
सुनते ही नाम
कर देगा हंसना शुरू
फिर कोई रोक कर तो दिखलाए
उससे कहेगा मेरे हिस्से के
दो बोरी धान उठाओगे
तो मैं हंसना रोकने की
सकता हूं सोच
सोचता ही रहूंगा
पर हंसना नहीं रोकूंगा
चाहे आ जाए कोई भी रॉक या रोक
दो बोरी से धान बढ़ा दिए
गर कर दिए चार
तो मनाना होगा मेरा शोक
इसलिए मुझे हंसने दो
और बने रहने दो अशोक
यह घटना सच्ची है
नहीं है कोई सीरीयस जोक।
पत्रिका सच में ही सभी के योगदान से बहुरंगी हो गयी.
ReplyDeleteतुर्की की कविता गहरे भाव भरी है..सच है जीवन की आपा धापी में इंसान हँसाना था भूल गया है.
अश्व के बारे में मालूम हुआ..और कल्पना करें ..अगर इंसान भी खडा हो कर सोये तो उसकी कितनी उर्जा भी बचेगी??क्या कभी इस पर किसी ने शोध नहीं किया?
तोते महाशय हीरामन' के आ जाने से लगता है पढ़ाई के साथ मनोरंजन भी हो जाया करेगा.
माउंट आबू के बारे में लिखते समय ही इतना कुछ इस जगह के बारे में जाना.और अब वहां जाने की उत्सुकता है.
सीमा जी की प्रबंधन शिक्षा भी खूब रही..अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद.
-आशीष जी मुझे परामनोविज्ञान में हमेशा से दिलचस्पी रही है.मैं मानती हूँ मृत्यु के बाद जरुर कोई दूसरी दुनिया है..मृत्यु अंत नहीं है..यह तो हमारे धरम ग्रंथ भी कहते हैं...मगर भूत कितने सच हैं इस में संदेह है.आत्मा जरुर बुलाई जा सकती है ऐसा सुना है लेकिन उन्हें बुलाना नहीं चाहिये.यह दंपत्ति इस विषय पर कक्षाएं ले रहे हैं..बहुत आश्चर्य हुआ यह जानकार![उस लिंक पर जा कर अभी मैं ने देखा नहीं..]
ताऊ रामपुरिया का तो जवाब ही नही है।
ReplyDeleteआज तो आदरणीय ताऊ जी ने अपने सभी सहयोगियों से ब्लाग पर कलम घिसवा ही दी। इसलिए मैं भी अपनी कलम घिसने को
मजबूर हो गया।
जानकारी और मनोरंजन से भरी पोस्ट के लिए, पहले तो धन्यवाद और फिर बधायी।
वो इसलिए कि आज हीरामन तोता
नया मेहमान बन कर आया है।
कल यह भी इस ब्लाग पर बोलेगा-
राम नाम.................।
बहुत अच्छी जानकारी , कहानी और लेख .
ReplyDeleteमाउन्ट आबू के बार में जानकर अच्छा लगा .
पप्पू पास हो गया ताऊ! :)
ReplyDeleteअपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए पत्रिका का एक बेहतरीन अंक........समस्त संपादक मंडल का धन्यवाद
ReplyDeleteजबसे सीमा जी की प्रबंधन सलाह इस साप्ताहिक पत्रिका में छपने लगी है.. इसका चर्म मेरे लिए काफ़ी बढ़ गया है.. हर बार एक मज़ेदार कहानी लेकर जाता हू.. पिछली बार मुझे बंदर और खरगोश वाली भी पसंद आई थी.. आशा है इस प्रकार की और भी कहानिया निरंतर मिलती रहेगी..
ReplyDeleteमैंने सुना है
ReplyDeleteयह तोता
राम राम नहीं बोलता
बोलता है नेता नेता
क्योंकि चुनाव हैं
जब दशहरा होगा
तो बोलेगा
रावण रावण
और ईद पर
अल्लाह अल्लाह
क्रिसमस पर
मैरी क्रिसमस
और वाहे गुरू
भी बोलेगा
यह राष्ट्रीय सद्भभावना मिशन
का तोता है
और रा स मि हमारे ताऊ हैं।
सुन्दर जानकारी माउंट आब की, राजीव जी रोचक जानकारी, सीमा जी की अच्छी सीख और हीरा मन का स्वागत है ब्लॉग जगत में
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारियां मिली आपकी आज की पोस्ट से अल्पना जी आशीष जी और सीमा जी का शुक्रिया
ReplyDeleteIs patrika ke bahane bahut rochak jankariya milti hai...
ReplyDeleteखूब रही आज तो.
ReplyDeleteहर रंग शामिल था आज की पत्रिका में.
का हो हीरामन भाई, तुम तो आते ही धमाल शुरू कर दिए.
bada hi brihad aur gambhir ayojan. jnan bhi manoranjan bhi.
ReplyDeleteइब्की बार जीत्या हुया लोगां के बीच अपना नाम देख के घनी ख़ुशी हुई ताऊ...कोशिश में हूँ की अपना नाम हमेशा इसी लिस्ट में देखूं....आगे जो राम जी की मर्ज़ी होवेगी सो ही होवेगा...
ReplyDeleteनीरज
अच्छा तो हीरामन ठीक-ठाक पहोंचग्या अड्डे पै...
ReplyDeleteलोग कबूतरां नै उड़ावैं थे हमने तोत्ते उड़ा दिये,
वें बी पाणीपत तै इंदोर... नानस्टाप..
अल्पना जी ने अच्छी जानकारी दी.... इतने सालों से राजस्थान में रहने के बावजूद माउंट आबू नहीं जा पाया. हालांकि तमन्ना तो बहुत थी. पर ये जानकारी पढने के बाद तमन्ना और बढ़ गयी है. इन गर्मियों में तो पक्का....
ReplyDeleteसीमा जी की क्लास अच्छी लगी.
आभार
सुझाव: ताऊ, ये पत्रिका दिनों दिन इतनी लोकप्रिय होती जा रही है... अब इसका रंग रोगन कुछ चेंज कीजिये. कोई पत्रिका जैसा आवरण बनाये.
ReplyDeleteविजेताओं को बधाई.
ReplyDeleteअल्पना जी वाकई में कितनी मेहनत लेती हैं अपने पन्ने के लिये. कोई भी जानकारी छूटी नही!!
वैसे ही सीमा जी का प्रबंधन विषय पर कहानी रोचक है. कार्पोरेट जगत में ऐसे खरगोशों को बाबुजी का आदमी कहते है.
हीरामन का भी स्वागत है.
ReplyDeleteसबसे पहले माफ़ी चाहूँगा आप के ब्लॉग पर लेट से आने के लिय ब्लॉग पढ़ कर लगा कि मैने आज तक क्या मिस किया.
ReplyDeleteआप सभी ने बहुत सुंदर जानकारी दी, अल्पना जी ने, फ़िर सीमा जी ने, ओर भूतो से बात करने के बारे आशीष जी ने, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDelete@गोद मे रखी है रोटी
ReplyDeleteऔर सितारे हैं बहुत दूर
मैं अपनी रोटी खाता हूं सितारों को
ताकते हुये
खयालों में इस कदर गुम कि
कभी कभी
मैं गलती से खा जाता हूं एक सितारा
रोटी के बजाये.
ताऊ अब सितारो को तो बक्स दो ।
बहुत गहरी बात कह दी मेरे ताऊ तुमने!!!!! आज पता चला अबूज ताऊ कभी - कभी ऐसा सन्देस छोड जाता है कि विदूषक" लोगो कि खोपडिया भी ठन-ठन हो जाती है। राम राम जी आज आपको!!!!!
@ "इस बात से कोई फर्क नहीं पढ़ता की आपका शोध का विषय कितना मुर्खता पुर्ण या बेतुका है ..प्रश्न ये है की आपके अधीन काम करने वाला सुपरवाइज़र कितना योग्य है ..."
ReplyDelete"कार्यशील संसार के संदर्भ में प्रबंधन पाठ : आपका बुरा प्रदर्शन उतना मायने नहीं रखता जितना ये महत्वपूर्ण है, की आप अपने मालिक की पसंद है या नहीं.
Seema जीGupta संपादक (प्रबंधन) आपको सभी तरह का गुड!!! मार्निग,ऑफ्टरनुन, इवनिग, & नाईट, क्यो कि आपकी कहानी कि शिक्षा चोबिस घन्टे जहन मे रखने योग्य ह,ै वर्तमानकाल मे।
""खरगोश: "अपनी थीसिस पर"", ." थीसिस" शब्द पर तो मेरा दिल आ गया। पुरी कहानी को दो बार पढा बहुत ही अच्छी लगी।
"हम्म"-"थीसिस"-"शोध" शब्दो ने पुरी कहानी मे जान डाल दी। मै आपकी लेखनी का अब पक्का फैन बन गया हू। आभार,।
@आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से
ReplyDeleteअरे भाईजी, ताऊ बता रहा था विदेश से हरिभाऊ आ रहे है मै समझा "हेरी पोटर" ताऊ के खेमे मे आ रहा है।
आपका स्वागत है लठमार ताऊ का साहयक भुमिका मे। ताई के गुस्से से भगवान बचाऐ आपको, रामप्यारी कि चुगलखोरी के लपेटे से राम तुम्हारी रक्षा करे। ताऊ सोनू, बीनू फ़िरंगी कि टोली का रन्ग (रन्ग= कलर नम्बर ४२० ) से आपको हनुमानजी बचाऐ। भगवान आपका भल्ला करे।
.................
@आज के प्रथम विदूषक का खिताब जाता है श्री योगिंद्र मौदगिलजी को...और आज के दूसरे विदुषक हैं श्री शाश्त्री जी :और तीसरे विदुषक हैं : श्री राजभाई भाटियाजी
विदुषक ? विदुषक ?
है यह कैसा "राज"??????? =
एक "योगिं" + दुसरे "शाश्त्री",
ही, राम, न, कहो इन्हे "प्रथम" क्यो कि जहॉ ये तीनो खडे होते है लाईन वही से शुरु होती है।
हीरामनजी, सलाम नमस्ते॥।
-अल्पना वर्माजी को बेहतर सम्पादकिय लिखने के लिऐ एवम तथ्यपुर्ण आबू का परिचय हेतु शुभकामनाऐ॥। -आशीषजी खण्डेलवाल भुतो से डाराने के लिए आपको भी शुभ कामनाऐ ।
ReplyDeleteहे प्रभु का नमस्तेजी।
भाई हीरामन जी, आपको भी चिडियाघर की नमस्ते.
ReplyDeleteदिन ब दिन पत्रिका निखरती जा रही है ..नए सदस्य का स्वागत है.
ReplyDeleteसीमा जी का मैनेजमेट फंडा अच्छा लगा ..आप सब को बधाई
ब्लोग पत्रिकाओँ मेँ
ReplyDeleteदमकती पहचान ..
अब लायी है
"हीरामन " की पहचान ..
बहुत अच्छा लगा ये साझा प्रयास !!
वाह भई वाह !!