जैसा की आप सभी जानते हैं कि ताऊ पहेली के प्रथम राऊंड के सभी मेरिट होल्डर्स का साक्षात्कार हम प्रकाशित करने वाले हैं. उनमे सुश्री अल्पना वर्मा और प.श्री डी..के. शर्मा"वत्स"का साक्षात्कार अभी चल रहा है.
इसी क्रम मे हमने श्री नितिन व्यास, श्री प्रवीण त्रिवेदी मास्साब और श्री वरुण जयसवाल को भी मेल भेजी थी लेकिन उनका कोई जवाब नही आया. आपसे निवेदन है कि आप हमसे सम्पर्क स्थापित करें. आपका इमेल नही होने से हमने आपको no reply वाले पते पर मेल भेजा था जो शायद नही मिला होगा. कृपया संपर्क करें.
इसी क्रम में अन्य सम्मान्निय जनों के साक्षात्कार चल रहे हैं. श्री समीर लाल (ऊडनतश्तरी) जो की आजकल पुर्वोत्तर भारत मे अपनी ऊडनतश्तरी सर्विस लांच करने गये हैं उनका साक्षात्कार रामप्यारी ले रही है.
आपको याद होगा कि ताऊ पहेली प्रथम राऊंड का महाताऊ सम्मान संयुक्त रुप से श्री संजय बैंगाणी और श्री गौतम राजरिशी को दिया गया था, जिनके साक्षात्कार भी चल रहे हैं और इसी सिलसिले मे हम इन दोनों महाताऊओं के पास आते जाते रहते हैं.
एक दिन इन लोगों ने खुद हमारा साक्षात्कार लेने का कहा. अब महाताऊओं को ताऊ कैसे मना करता? सो हमने कहा कि ठीक है जी, आज आप करलो आपकी इच्छा पूरी. और इस तरह सवाल जवाब हुये.
बैंगाणी जी : ताऊ ये बताओ कि आप ये चोरी डकैती का धंधा कब से कर रहे हैं?
ताऊ : जी जबसे होश संभाला यानि शुरुआत से ही.
गौतम राजरिशि : तो आप कभी पकडे भी गये?
ताऊ : नही जी. पकडा नही गया कभी. अगर पकडा भी गया तो पुलिस ने खुद ही छोड दिया सम्मान सहित.
बैंगाणी जी : ये क्या बात हुई? पुलिस ऐसे ही कैसे छोड देगी?
ताऊ : अजी बैंगाणी जी, मैं आपको एक बार का किस्सा सुनाऊं. हुआ ये की एक बार मैं चोरी करने सीधा एक मकान मे घुस गया. वहां जो कुछ माल हाथ लगा, वो मैने सब समेट लिया.
गौतम राजरिशी : आगे क्या हुआ ताऊ?
ताऊ : वही तो बता रहा हूं. मुझे मालूम नही था कि पुलिस मुझ पर नजर रख रही है. वहां मेरे पीछे २ एक पुलिस का हवलदार लगा था. जैसे ही चोरी करके मैं बाहर निकला कि उसने मुझे धर लिया.
बैंगाणी जी : अरे रे ये तो आपके साथ बहुत बुरा हुआ ताऊ?
ताऊ : अजी आप पूरी बात तो सुनो. अब वो हवलदार बोला - ताऊ चल थाने. मैने कहा कि ठीक है हवलदार साहब. पर मुझे मेरे घर फ़ोन कर लेने दो. हवलदार बोला - ठीक है जा जल्दी फ़ोन करके आ. मैं उस मकान के अंदर गया और पीछे की खिडकी से कूदकर भाग गया.
गौतम राजरिशी : अरे वाह ताऊ . आप तो महान हो. इसके बाद क्या हुआ?
ताऊ : इसके बाद क्या होना था? एक दिन फ़िर वही हवलदार मेरे पीछे था और मैं एक जेवरात की दुकान मे हाथ साफ़ करके बाहर निकला कि उसने अबकि बार सीधे मेरा गिरेबान पकड लिया और बोला - अब बोल ? अब कैसे बचेगा? आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी?
तो मैने उस हवलदार से कहा : हवलदार साहब अबकी बार घर फ़ोन नही करना है मुझे पक्का मालूम है कि अबकी बार मैं नही बच पाऊंगा. मुझे तो मेरे वकील साहब द्विवेदी जी को फ़ोन करना है.
अब वो हवलदार बोला : अबे ताऊ के बच्चे. तुने मुझे समझा क्या है? अब मैं मुर्ख नही रहा. अबे तू यहीं ठहर और तेरे वकील साहब को मैं फ़ोन करके आता हुं. फ़िर देखता हूं कि तू अबकी बार पिछली खिडकी से कैसे भागता है?
मैने कहा - ठीक है हवलदार साहब. अब आपके सामने तो मैं क्या कर सकता हूं? जैसी आपकी मर्जी. और वो हवलदार गया फ़ोन करने और मैं वहां से सीधा आपके पास चला आया.
साक्षात्कार का शेष भाग अगली बार..अभी वही हवलदार यहां आता दिखाई दे रहा है. मैं चलता हूं फ़िर कभी मिलेंगे.
और अब अंत मे एक शुद्ध रुप से चोरी का माल. जो इसी सप्ताह किसी अखबार से ऊडाया है. मुझे पसंद आया तो ऊडा लिया आपको पसंद आये तो आप खरीद लेना वर्ना अपने कौन से पैसे लगे हैं. अभी रात को पोस्ट लिखते समय अखबार मिल नही रहा है. मिल जायेगा तो नाम भी बता देंगे. वैसे सत्य कथन है कि माल शुद्ध रुप से चोरी का है. हम सत्य कभी बोलते ही नही हैं.
बेटे बेटियां -
बोये जाते हैं बेटे
उग जाती हैं बेटियां
खाद पानी बेटॊं मे
पर लहलहाती हैं बेटियां
एवरेस्ट तक ठेले जाते हैं बेटे
पर चढ जाती हैं बेटियां
कई तरह से गिराते हैं बेटे
पर संभाल लेती हैं बेटियां
पढाई करते हैं बेटे
पर सफ़लता पाती हैं बेटियां
कुछ भी कह लें
अच्छी हैं बेटियां
(यह कविता साभार : भास्कर समूह की पत्रिका मधुरिमा २५ मार्च २००९ से )
इसी क्रम मे हमने श्री नितिन व्यास, श्री प्रवीण त्रिवेदी मास्साब और श्री वरुण जयसवाल को भी मेल भेजी थी लेकिन उनका कोई जवाब नही आया. आपसे निवेदन है कि आप हमसे सम्पर्क स्थापित करें. आपका इमेल नही होने से हमने आपको no reply वाले पते पर मेल भेजा था जो शायद नही मिला होगा. कृपया संपर्क करें.
इसी क्रम में अन्य सम्मान्निय जनों के साक्षात्कार चल रहे हैं. श्री समीर लाल (ऊडनतश्तरी) जो की आजकल पुर्वोत्तर भारत मे अपनी ऊडनतश्तरी सर्विस लांच करने गये हैं उनका साक्षात्कार रामप्यारी ले रही है.
आपको याद होगा कि ताऊ पहेली प्रथम राऊंड का महाताऊ सम्मान संयुक्त रुप से श्री संजय बैंगाणी और श्री गौतम राजरिशी को दिया गया था, जिनके साक्षात्कार भी चल रहे हैं और इसी सिलसिले मे हम इन दोनों महाताऊओं के पास आते जाते रहते हैं.
एक दिन इन लोगों ने खुद हमारा साक्षात्कार लेने का कहा. अब महाताऊओं को ताऊ कैसे मना करता? सो हमने कहा कि ठीक है जी, आज आप करलो आपकी इच्छा पूरी. और इस तरह सवाल जवाब हुये.
बैंगाणी जी : ताऊ ये बताओ कि आप ये चोरी डकैती का धंधा कब से कर रहे हैं?
ताऊ : जी जबसे होश संभाला यानि शुरुआत से ही.
गौतम राजरिशि : तो आप कभी पकडे भी गये?
ताऊ : नही जी. पकडा नही गया कभी. अगर पकडा भी गया तो पुलिस ने खुद ही छोड दिया सम्मान सहित.
बैंगाणी जी : ये क्या बात हुई? पुलिस ऐसे ही कैसे छोड देगी?
ताऊ : अजी बैंगाणी जी, मैं आपको एक बार का किस्सा सुनाऊं. हुआ ये की एक बार मैं चोरी करने सीधा एक मकान मे घुस गया. वहां जो कुछ माल हाथ लगा, वो मैने सब समेट लिया.
गौतम राजरिशी : आगे क्या हुआ ताऊ?
ताऊ : वही तो बता रहा हूं. मुझे मालूम नही था कि पुलिस मुझ पर नजर रख रही है. वहां मेरे पीछे २ एक पुलिस का हवलदार लगा था. जैसे ही चोरी करके मैं बाहर निकला कि उसने मुझे धर लिया.
बैंगाणी जी : अरे रे ये तो आपके साथ बहुत बुरा हुआ ताऊ?
ताऊ : अजी आप पूरी बात तो सुनो. अब वो हवलदार बोला - ताऊ चल थाने. मैने कहा कि ठीक है हवलदार साहब. पर मुझे मेरे घर फ़ोन कर लेने दो. हवलदार बोला - ठीक है जा जल्दी फ़ोन करके आ. मैं उस मकान के अंदर गया और पीछे की खिडकी से कूदकर भाग गया.
गौतम राजरिशी : अरे वाह ताऊ . आप तो महान हो. इसके बाद क्या हुआ?
ताऊ : इसके बाद क्या होना था? एक दिन फ़िर वही हवलदार मेरे पीछे था और मैं एक जेवरात की दुकान मे हाथ साफ़ करके बाहर निकला कि उसने अबकि बार सीधे मेरा गिरेबान पकड लिया और बोला - अब बोल ? अब कैसे बचेगा? आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी?
तो मैने उस हवलदार से कहा : हवलदार साहब अबकी बार घर फ़ोन नही करना है मुझे पक्का मालूम है कि अबकी बार मैं नही बच पाऊंगा. मुझे तो मेरे वकील साहब द्विवेदी जी को फ़ोन करना है.
अब वो हवलदार बोला : अबे ताऊ के बच्चे. तुने मुझे समझा क्या है? अब मैं मुर्ख नही रहा. अबे तू यहीं ठहर और तेरे वकील साहब को मैं फ़ोन करके आता हुं. फ़िर देखता हूं कि तू अबकी बार पिछली खिडकी से कैसे भागता है?
मैने कहा - ठीक है हवलदार साहब. अब आपके सामने तो मैं क्या कर सकता हूं? जैसी आपकी मर्जी. और वो हवलदार गया फ़ोन करने और मैं वहां से सीधा आपके पास चला आया.
साक्षात्कार का शेष भाग अगली बार..अभी वही हवलदार यहां आता दिखाई दे रहा है. मैं चलता हूं फ़िर कभी मिलेंगे.
और अब अंत मे एक शुद्ध रुप से चोरी का माल. जो इसी सप्ताह किसी अखबार से ऊडाया है. मुझे पसंद आया तो ऊडा लिया आपको पसंद आये तो आप खरीद लेना वर्ना अपने कौन से पैसे लगे हैं. अभी रात को पोस्ट लिखते समय अखबार मिल नही रहा है. मिल जायेगा तो नाम भी बता देंगे. वैसे सत्य कथन है कि माल शुद्ध रुप से चोरी का है. हम सत्य कभी बोलते ही नही हैं.
बेटे बेटियां -
बोये जाते हैं बेटे
उग जाती हैं बेटियां
खाद पानी बेटॊं मे
पर लहलहाती हैं बेटियां
एवरेस्ट तक ठेले जाते हैं बेटे
पर चढ जाती हैं बेटियां
कई तरह से गिराते हैं बेटे
पर संभाल लेती हैं बेटियां
पढाई करते हैं बेटे
पर सफ़लता पाती हैं बेटियां
कुछ भी कह लें
अच्छी हैं बेटियां
(यह कविता साभार : भास्कर समूह की पत्रिका मधुरिमा २५ मार्च २००९ से )
ताऊ का साहित्य है सुन्दर-सुखद-ललाम।
ReplyDeleteहास्य,व्यंग,गम्भीरता,का संगम अभिराम।
बहरहाल ब्लागरों को इतना लचर समझने की भूल मत करो ताऊ -एक दिन तो तुम धरे ही जाओगे हमारे द्वारा !
ReplyDeleteऐसा शानदार हवलदार मिले तो कौन न करे चोरी-डकैती का पुण्य कर्म! :)
ReplyDelete"बेटे बेटियां "...सुंदर , बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteसाक्षात्कार के विरोधाभास में (!).
लेखक का नाम नहीं दिया है...अपराध नहीं, अन्याय किया.
पढाई करते हैं बेटे
ReplyDeleteपर सफ़लता पाती हैं बेटियां
कुछ भी कह लें
अच्छी हैं बेटियां
waah bahut hi sunder
@ काजल कुमार जी
ReplyDeleteइस कविता के नीचे लेखक का नाम कहीं नही दिखा. "सिर्फ़ संकल्नकर्ता - डा. शशिकिरण नायक" लिखा हुआ है. सो मुझे तो मेरी ताऊ ुद्धि से लगता है कि इसका रचियता कोई अन्य सज्जन होंगे.
वैसे हम इस तरह उडाया हुआ माल अपने ब्लाग पर नही लगाते. पर कल हमारे पडोस मे एक जवान शादी शुदा बेटॆ ने अपने बुढे मा-बाप की हत्या ७.५ लाख की सुपारी देकर करवादी. हमारे यहां के अखबारों की मुख्य पेज की सुर्खी आज ये खबर बनी है.
पिता सरकारी अफ़सर थे. और निहायत ही संभ्रांत परिवार था ये.
कल की पोस्ट पहले से लिखी जा चुकी थी. ऐन समय पर यह उसी वक्त पढी कविता यहां लगाना मुझे ठीक लगा कि बेटे ने यह असंभव कार्य कर दिखाया. हम इतने स्वार्थ्परक संज्ञाहीन हो चुके हैं.
शायद बेटियां ऐसा नही कर सकती.
रामराम.
बेटियों वाली बात तो शत प्रतिशत सच ! बाकी ताऊगिरी तो सबके बीच में अपना सिक्का जमाये हैं चाहे पुलिस हो या चोर/ठग.
ReplyDeleteबोये जाते हैं बेटे
ReplyDeleteउग जाती हैं बेटियां
खाद पानी बेटॊं मे
पर लहलहाती हैं बेटियां
" tau ji aage kyaa hua magar....????? kabhi pkde nahi kya ??? kavita ki ye panktiyan mntmugdh kr gyi..."
Regards
महाताउओं की जय हो!उन्होंने ताऊ को खोज ही नकल इंटरव्यू के लिए!
ReplyDeleteतालियाँ!
बहुत बढ़िया रहा..बाकि भाग का भी इंतज़ार रहेगा.
-----
आज इस लेख में दी गयी कविता एक बेहद गंभीर पक्ष है.जिस सन्दर्भ में आप ने इस कविता को यहाँ दिया है..वह घटना कल टी वी पर देखी थी.
लेकिन माफ़ करीयेगा इसे 'बेटे और बेटियों' से या लिंग विशेष से न जोड़ कर नीच मानसिकता वाले इंसानों का काम कहना चाहिये.
महिलाएं /बेटी/बहू भी इस तरह के कुकृत्य करती हुई दिख जाएँगी ,इस लिए एक घटना से
generalise न करना ही बेहतर होगा.जहाँ आदर्श बेटों के उदहारण भी बहुत से हैं.वहां
महिलाओं ke घिनोने कार्यों की सूची भी छोटी नहीं है.उदहरण ke liye-
१-पिछले महीने एक दुखद समाचार में एक परिचित के घर में एक महिला ने ही अपने पति की हत्या के लिए सुपारी उस के नौकर को दी थी.
-२-वह समाचार भी आप ने सुना होगा जिस में सेना के एक अफसर दपत्ति को मरवाने के लिए उनके नौकर[ड्राईवर]को उनकी बहू ने पैसे दिए,वो तो स्वामिभक्त नौकर ने सबूतों समेत पोल खोल दी.वहां बेटा इस बारे में अनभिग्य था.
३-एक सज्जन जो ओमान में काम करते थे..गोवा में उनकी अपनी बेटी ने सारी जायदाद धोके से अपने नाम करवा ली..अब वह दंपत्ति गाँव के पुश्तनी मकान में लाचारी में रह रहा है.और अपनी बेटी के इस कृत्य पर उनकी आँखें भर आती हैं.
मेरठ वाली घटना बीते भी ज्यादा दिन नहीं हुए. क्या आदमी क्या औरत ..नैतिकता का गिरता स्तर किस से क्या न करवा ले!कलयुग है.
इस दुनिया में हर तरह की मानसिकता वाले लोग हैं..इस तरह के घिनोने काम करने वाला इंसान 'शैतान ' है वह फिर न बेटी रह जाता है न बेटा.
यह टिप्पणी ताऊ जी से मेरा सीधा संवाद है.यह मेरे विचार हैं.इन पर मुझे किसी से विवाद नहीं करना. धन्यवाद
ओह...
ReplyDeleteअपने सही कहा, ऐसी ही दुर्दांत परिस्थियों के चलते बेटियाँ और भी याद आती हैं.
इतनी सुंदर कविता साझी करने के लिए आपका आभार और, भावनाएं यूँ मुखरित करने के लिए लेखक को धन्यवाद.
अच्छी है बेटियां। बेटा होने के बावजूद ये कहने मे कोई हिचक नही।
ReplyDeleteताऊ की जय हो ,
ReplyDeleteताऊ आप तो मुझे अपना चेला बना लो, अकेले कहाँ तक चोरी करोगे एक साथी मिल जायेगा तो आराम हो जायेगा .
बेटियाँ तो बेटो से अच्छी है पर ये बात लोग नहीं समझते (कारण दहेज़ है, ये नहीं रहे तो कौन नहीं चाहता की उसे घर में एक बेटी हो ).
कविता पढ़के तो सेंटी हो गया...
ReplyDeleteयह कविता पहले भी किसी ब्लॉग पर पढ़ चुकी हूँ.टिप्पणी भी की थी. ब्लॉग का नाम नही याद पर कविता याद है. उन सज्जन ने लिखा था की यह सरकारी कैलेंडर में छपी थी.
ReplyDeletehttp://anuraganveshi.blogspot.com/2008/03/blog-post_10.html
ReplyDeleteलीजिये गूगल की बदौलत लिंक भी हाजिर है ..कुछ चीजें याद रह जाती है
अल्पना जी ने बिल्कुल सही कहा कि मानसिकता लिंग भेद की मोहताज नहीं है...इस प्रकार की विकृ्त मानसिकता का परिचय कलयुगी परिवेश में कहीं भी मिल सकता है, अब चाहे वो पुरूष हो अथवा स्त्री......
ReplyDelete@ सु.अल्पना जी
ReplyDeleteआपकी टिपणि के संदर्भ मे कहना चाहुंगा कि मैं आपकी बात से सहमत हूं.
यहां कल जो कुछ हुआ उससे व्यथित होना स्वाभाविक है. जबकि मृत व्यक्तियों के परिवार से सीधी जान पहचान हो.
मैने पोस्ट मे इसका जिक्र कहीं भी नही किया है. यहां टिपणि मे श्री काजल कुमार जी ने जो पूछा उस संदर्भ मे इसका जिक्र आगया है.
कल इस घटना के परिपेक्ष्य मे रात को ही वो कविता पढी थी अत: एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया मेरे मन मे हुई और मैने वो कविता भी बिना इस घटना का जिक्र किये लिखी है.
हां दोनों ही तरह से यह हो सकता है. व्यथा इस बात की नही है कि बेटे ने किया या बेटी ने किया. व्यथा इस बात की है कि आज हम संवेदन शुन्य हो चुके हैं. स्वार्थ सर्वोपरी है और इसके सामने कोई रिश्ते नाते नही बचे हैं.
कविता का यहां लगाना सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी अपनी निजी सोच और त्वरित प्रतिक्रिया है, क्योंकि पिडीत लोग निजी पहचान के हैं. जिसके लिये बहस की कोई गुंजाईश ही नही हैं.
असल मे इन बातों पर क्या बहस की जाये? ये तो मानव मन है जो ऐसे वाकये होने पर व्यथित होजाता है. अगर यहां गुनहगार बेटी होती तो शायद उसके पर्ति ये भाव व्यक्त होते.
पर मैं अपने निजी सोच मे बेटियों को ज्यादा सहिष्णु पाता हूं. अपने २ अनुभव हैं.
सभी से निवेदन है कि इसे कोई बहस ना बनायें. सिर्फ़ निजी सोच तक ही सीमित रखें.
रामराम
एक गुप्त मुलाकात को आपने छाप दिया, अब फोन पर फोन आ रहें है कि बताओ यह ताऊ कोण है?
ReplyDeleteताऊ की बातचीत के शेष भाग का इंतजार है। और कमाल का हमारा ताऊ है। और कविता तो वाकई शानदार है।
ReplyDeleteताऊ ये आधा इंटरव्यु से काम नहीं चलेगा..
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आना हुआ.. उम्मीद है सब कुशल मंगल होगा
राम राम
बेटे बेटियाँ कविता सच्ची और बहुत अच्छी लगी इसको पढ़वाने का यहाँ शुक्रिया .
ReplyDeletebahut hi shandaar aur jaandaar kavita lagai hai apne...
ReplyDeletetaau, thaari photu badi bhaee. taai khoob hi nachati hogi tanne. hai n.
ReplyDeleteताऊ सादर प्रणाम , कहो तो गांव जाके थारा पता लगा आऊ बिना वजह हिन्दी जगत परेशान हो रहा है यो ताऊ कुण सै । सब एक दूसरै ने पूछ रहा है । एक दिन मेरे धोरे भी फ़ोन आया था ताऊ "थारै गाम कै नजदीक का है भाई थम जाणो हो के । " मै के बताऊ ताऊ कोई आदमी नही है यो ब्लोग जगत को वायरस है जिस पै कोई भी एन्टी वायरस काम नही कर सक है । जो इसकी पोस्ट एक बार पढ़ लेवे है वो हमेशा के लिये संक्रमित हो जा वै है । जै हो ताऊगीरी की ----- सप्रेम थारा भतीजा नरेश
ReplyDeleteहुउम! आजक अल पूरी देश के सारे हवलदार ऐसहीं हैं जी.
ReplyDeleteआपने कई भेद उगल दिए अपने बारे में। घणी बधाई।
ReplyDeleteहवलदार को सलाम।
कविता सटीक निशाने पर लगती है।
वृद्धाश्रम में भी बेटे ही पहुँचाते हैं.
ताऊ, बहुत अच्छी कविता पढ़वायी...आभार। आप हंसाते हंसाते अक्सर ऐसी बातें कह देते हैं कि हम भावुक होकर कुछ सोचने को विवश हो जाते हैं।
ReplyDeleteक्या हवलदार, क्या थानेदार, ताऊ सबका मनसबदार!
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी है और सच्ची भी.
बहूत ही सोचने को मजबूर करती है यह रचना......सत्य है यह. सब कुछ तो बेटियाँ ही करती अहं, फिर भी बेटों की चाह........वाह रे दुनिया
ReplyDeleteसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : एक लाइना में गागर में सागर
ReplyDeleteसमाज में संवेदनहीनता एक गंभीर मसला है. इश्वर सद्बुद्धि दे.
ReplyDeleteएवरेस्ट तक ठेले जाते हैं बेटे
ReplyDeleteपर चढ जाती हैं बेटियां
kavitaa sundar man ko chune waali badhaai
सुण ले ताऊ अरविंद जी के कैहरे सैं..?
ReplyDeleteकुछ भी कह लें
ReplyDeleteअच्छी हैं बेटियां....
यही सच है जी .
अरे ताऊजी! सुना है उसके बाद उस हवलदार कि तरक्की हो गई है:)
ReplyDeletethanx for this rare poem ...
ReplyDeleteताऊ जी को संग लै पागए कछु तो नाम
ReplyDeleteताऊ जो कछु टच करै , होवै स्वर्ण सामान
मैंने भी इंटरव्यू रिकॉर्ड कर रखी है. इजाज़त हो तो छाप दूँ.
ReplyDeleteसाक्षात्कार और बेटियों पर कविता बेहद पसंद आई...
ReplyDeleteताऊ वो हवलदार हमारे मिश्रा जी है, जो जान बूझ कर तुमे जाने देते है, बस ऎक दो गल्तिया ओर करो फ़िर मिश्रा जी आप को पकड ही लेगे, क्योकि काफ़ि दिनो से आप की गल्तियो पर नजर है उन की, पिछली पोस्ट मै भी तीन गलतियां कर के ताऊ के पास पहुच गये है,
ReplyDeleteअल्पना जी ने बहुत ही सुंदर बात कही आप की इस कविता के बाद,
ओर ताऊ आज खूंट नजर नही आया ? क्या फ़िर से भेंस उखाड कर भाग गई.
राधे शायम सीता राम
कविता शानदार लगी. पर इंटरव्यू में ठग लिया आपने, ताउजी.
ReplyDeleteमैंने सोचा जब इतने सारे महाताऊ जुटे हैं तो ज़रा जमके धक्कमपेल, रेलमरेल होगी पर उन्होंने तो आपको सस्ते में ही छोड़ दिया. कभी हम जैसे चाटों के हाथ धरे जाओ तो रगड़े जाओगे.
ताऊजी, आप इंटरव्यू लेने जब भी आयें बता देना, उस हवलदार का अमेरिकी वीसा कैंसल करा देंगे ताकि आप बिना चिंता के अपना काम कर सकें।
ReplyDeleteइंदौर की बहुत ही दुखद खबर सुनी, आपके परिचितों को मेरी श्रध्दांजली।
चुराया गया माल चोर के साक्षात्कार से ज्यादा पसंद आया, लेकिन ये चोर की तारीफ है कि अनमोल रत्न चुराकर लाया है।
ReplyDeleteताऊ जी!
ReplyDeleteप्रतिदिन की तरह यह एपीसोड भी अच्छा रहा है। पहले धुरन्धरांे को छाप लो। फिर हमारा भी नम्बर लगा देना। देखें कल ताई की किस्मत में क्या होगा? रामप्यारी कब दुल्हन बनेगी। हमें शादी में बुलाना मत भूल जाना। इंतजार में-
ताऊ की जय हो!
ReplyDelete