हमारे सामने एक जिन्दादिल शख्स बैठा था. जो व्यंग और सहजता की धार को भी समझता है और उतने ही सहज और बहुत ही सुलझे हुये विचारों के साथ हर बात को बारीकी से महसूस भी करता है. मैं इस शख्स को ऐसा बुद्धिजीवी कहुंगा जिसका दिल और दिमाग आज भी हिमाचल प्रदेश के गांव मे धडकता है और नजर महानगरों को बहुत बारीकी से भेद कर देखती है. तो आईये आज आपको रुबरू करवाते हैं श्री काजल कुमार से. हमने पहला ही सवाल दाग दिया इस तरह.
सवाल -- हां तो काजल जी आप अपनी शिक्षा और परिवार के बारे मे हमारे पाठकों को कुछ बताईये.
उत्तर:- साहित्य में खुशी-खुशी और, प्रबंधन में कैरियर की ढकोसलेबाज़ी के चलते स्नातकोत्तर शिक्षा. ये बात दीगर है कि दोनों ही विषयों में मैं कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकता......फ़िर हल्के से मुस्कराते हुये कहा... अब तो आप समझ ही गये होंगे?
सवाल : आपके परिवार में कौन कौन हैं?
जवाब : ताऊजी, मेरे परिवार में चार मस्त लोग हैं बेटा, बेटी, पत्नी और मैं. हालाँकि मेरे ख़ुद को मस्त कहने पर बाकी सदस्यों की सहमती संदेहास्पद है ..
सवाल : पर अभी घर मे कोई दिखाई नही दे रहा है?
उत्तर : अभी आजायेंगे तब मिलवाता हूं आपको सबसे.
सवाल : ठीक है जी, अब ये बताईये कि कि आप कौन कौन से शौक पालते हैं?
उत्तर:- कार्टून, कुछ हिन्दी पत्रिकाएं, इन्टरनेट, आउटडोर खेल, लॉन्ग ड्राइव, ढेर सारा विविध संगीत, निद्रा, समाज को बदल डालने की बड़ी-बड़ी डींगें हांकना, घर पर टिके रहना, और बिटिया को दुखी करते रहना....
सवाल : वाह जी ये तो बडी लंबी चोडी फ़ेहरिस्त हो गई. पर आप बिटिया को क्यों दुखी करते हैं?
जवाब : अच्छा लगता है, बिटिया को तंग करके बहुत अच्छा लगता है क्योंकि, एक दिन शादी के बाद जब बेटियाँ अपनी नई दुनिया बसा लेती हैं तो आप उनके सन्दर्भ में एक धीर-गंभीर पिता की भूमिका जीने लगते हैं, वे आपका ध्यान आपके बेटों से ज्यादा रखने लगती हैं .....इसलिए हम दोनों समय रहते, गंभीर होने से पहले, खूब हल्ले-गुल्ले से जी रहे हैं....वैसे कम ये भी नहीं है, मौक़ा मिलते ही धीमे से बदला भी ले लेती है....
सवाल - काजल जी आप हमको आपके जीवन की कोई अविस्मरणिय घटना के बारे मे बताईये.
उत्तर:- बहुत साल पहले 'सारिका' में एक कार्टून देखा था जिसमें एक ग्रामीण, दीवार के साथ खड़ी चारपाई को देखकर सिर खुजाते हुए कह रहा था - "अरे ! मेरी खाट किसने खड़ी कर दी."?
इस जवाब पर हमने कहा - जी लगता है ये ताऊ का ही कार्टून देखा होगा आपने. क्योंकि खाट तो लोग ताऊ की ही खडी करते हैं. हमने मुस्कराते हुये कहा.
इस पर काजल जी ने पूछ लिया कि - ताऊ जी अगर आपसे कोई कहे की मैं तेरी खाट खडी कर दूंगा तो आप क्या जवाब देंगें?
हमने कहा - भाई हम तो यही कहेंगे कि - ताऊ की खाट तो पहले ही खडी है अब तो तुम्हारी खाट पडी है, उसको ताऊ खडी करेगा. हमने और काजल जी ने इस बात पर जोरदार ठहाका लगाया.
और फ़िर हमने कहा - काजल जी आप तो उल्टे मुझसे सवाल पूछने लग गये? भाई सवाल तो मुझे करने हैं. अब आप मुझे सवाल करने दिजिये.
जवाब : जी बिल्कुल पूछिये आप सवाल
सवाल - आप क्या काम करते हैं?
उत्तर:- जी मैं सरकारी नौकरी में हूँ, और आजकल दिल्ली में ही हूँ.
सवाल - आप मूलत: दिल्ली के ही रहने वाले हैं? या कहीं और से हैं?
उत्तर:- ताऊ जी, जब दिल्ली में होता हूँ तो ख़ुद को हिमाचल का बताता हूँ और जब घर जाता हूँ यानि हिमाचल जाता हूं तो दिल्लीवाला होने का ढोंग भरता हूँ.
गांव में काजल जी के घर से एक दृष्य
सवाल : आपको अपने घर की कब याद आती है?
उत्तर : सीधा और खुशगवार लगता है तो घर की याद आती है, कोहनीमार धूर्तों जैसे लगता है तो समझ जाता हूँ कि महानगर का पानी ठाठें मार रहा है. .... इस बीच, कई बार तो लगने लगता है कि अब तो मैं कहीं का भी नहीं रहा....
सवाल : जी ये बात बडी जोरदार कही आपने. अब ये बताईये कि ब्लागिंग मे कैसे आना हुआ?
उत्तर:- बस यूँ ही... एक दिन इन्टरनेट पर टहले हुए इधर निकल आया...कोई लम्बी-चौड़ी तक़रीर नहीं...बस शुरु हो गया.
सवाल - ताऊ कौन? इस पर क्या कहना चाहेंगे?
उत्तर:- Tau comforts me. ताऊ का कन्धा सबके लिए हाज़िर है. ताऊ सबके भीतर बैठे बच्चे को न सोने देता है और न उदास होने देता है.
मेरा ताऊ मेरे बचपन का टॉफी वाला बाबा है... धीरे से चपत भी लगा देता है पुचकार भी लेता है. ताऊ कभी बदमाश बच्चा लगता है तो कभी देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर.
ताऊ के चाहने वाले भले ही हजारों हों पर उसे न काहू से दोस्ती है न काहू से वैर.. निश्छल, नीरव, शांत, वेगमय .....
ऐसे कितने ताऊ होते हैं जो अपना कन्धा ही हाज़िर नहीं करते, ख़ुद पर हंसने का मौक़ा देकर दूसरों को उन्हें ही भुलाने के क्षण भी देते हैं... ताऊ का ताऊ ही बने रहना एक बहुत सुखद, हवा के ठंडे झोंके सा विचार है, व्यक्ति नहीं.
सवाल - ताऊ पहेली के बारे मे आपके विचार. यानि कैसा लगता है ये सब आयोजन?
उत्तर:- यह वो चौपाल है जिसका हुक्का गुड़गुडाने के लिए सभी कूद-फांद कर चले आते है हर हफ़्ते... फिर वहाँ एक ताऊ आता है, सब चुप हो जाते हैं, ...
ताऊ खंखारता है, और फिर फोटो बांचता है.....अच्छे बच्चे फटाफट पहेली का हल खोजने चले जाते हैं... और मेरे जैसे नालायक थोडी ही देर में सिर खुजाते हुए कहने लगते हैं...- "अरे ! मेरी खाट ताऊ ने खड़ी कर दी ?"
पहेली ही क्यों, ताऊ का "इब खूंटे पै पढो :-" भी उतने ही रोचक लगते हैं. और ठेठ 'भतीजे' और 'भतीजियों' का संबोधन सबको अपनी उम्र घटाने का मौक़ा देता है.
अच्छा लगता है. सच मुझे तो बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि मैं मेरे घर मे आगया हूं. ताऊ के ब्लाग पर परायापन नही लगता.
सवाल. आपका ब्लॉग कार्टूनों के लिये जाना जाता है. और आप नौकरी में हैं. सवाल ये है कि आप कब से ये शौक पालते हैं?
उत्तर: जी मैं भी कॉलेज के दिनों में बिगड़ गया और एक दिन पाया कि 'अरे मैं तो कार्टूनिस्ट हो गया !'...
एक दैनिक अख़बार के साथ कुछ समय काटा, लेकिन रेगुलर दूधिये की तरह लालाओं के हिसाब से कार्टून बनाने के बजाय सरकार की बाबूगिरी ज़्यादा ठीक लगी....
इसी बीच, मेरा ये उद्दंडी कार्टूनिस्ट आवारा हो गया और आज तक यायावरी कर रहा है, अपनी मर्ज़ी का बनाया हुआ कुछ-कुछ माल यहाँ-वहाँ छपता भी रहता है ...
और हाँ, इस दौरान, लेखक-लेखक खेला, नाटकबाजी की, रेडियोबाज़ी भी की...कोई शौक नहीं छोड़ा.
सवाल : कुछ अपने माता जी, पिताजी के बारे मे बताईय़े.
उत्तर: पिताजी दिल्ली से रिटायर होकर हमारे पुश्तैनी गाँव में खेती करने, एक दिन मेरी माँ के साथ लौट गए और मैं भी सपत्नीक यही सपना पाले हुए हूँ ......
गांव में व्यास नदी के किनारे परिवार के लोग
सवाल : आपको गांव मे किसी से जलन महसूस होती है?
जवाब : ( मुस्कराते हुये...) जी होती है ना. पिताजी के साथ एक कुत्ता भी रहता है, मेरी उससे कुछ ख़ास नहीं बनती क्योंकि वह मुझसे मेरी जगह छीनने की होड़ में दिखता है.
सवाल : गांव मे आपकि दिनचर्या क्या रहती है?
जवाब : ताऊ जी , गांव जाकर घड़ी और कैलेंडर की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है...सूरज उगा तो उठ गए, सूरज छुपा तो सो गए... no noise, no tension, no heart attacks.
सवाल : आपके अन्य भाई बहिनों के बारे मे बताईये?
जवाब : जी, दो बहिनें हैं और दोनों ही विवाहित हैं. बहनें दिल्ली में ही अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हैं. मेरे परिवार पर जान छिड़कती हैं. मुझ पर मान करती हैं. ख़ुद को भाग्यशाली मानता हूँ.औरों की ही तरह,
सवाल : कुछ आपके भांजे भांजियों के बारे में?
जवाब : भांजे-भांजियां भी मेरी बातों को हँस कर हवा में उड़ा देते हैं, उन चारों ने मुझे पूरा पागल घोषित कर रखा है, उनकी माँएं उन्हें डांट देती हैं. मेरी पत्नी भी उनसे पूरी सहमत नहीं होती है...केवल आधी सहमती दिखाती है. यद्यपि ये बच्चे, मेरे उलट, अच्छे बच्चे हैं.
सवाल : हिमाचल से या आपके जीवन से जुडी कोई रोचक घटना हो तो हमारे पाठकों को बताइये?
उत्तर: जी ताऊ जी, एक बहुत ही रोचक क्या बल्कि अविस्मरणीय भी, और हिमाचल से जुडी हुई भी, . ऐसी ही एक घटना आपको सुनाता हूं आपको. आप भी नाच ऊठेंगे उसको सुनकर.
सवाल : जी बताईये.
उत्तर : कई साल पहले, फरवरी महीने की स्याह बरसात और ठण्ड के दिन थे. फुफेरे भाई की बारात जानी थी ...गाँव में उन दिनों किराए पर कार-वैन नहीं मिलती थीं और भाड़े पर बस लेना अपवाद ही था..
लिहाजा दूल्हे खासों (डोगरी में डोली का पुल्लिंग) में जाते थे और बारातें ट्रकों में जाती थीं...इधर ट्रकवाला लेट पर लेट हुआ जा रहा था उधर रात सिर पर आने को थी...न फोन होते थे न बिजली..खैर मनाते-मनाते ट्रक आया.
हम गीले बाराती छतरियाँ खोल ट्रक में ठुस लिए (ट्रक का तिरपाल हर जगह से टपक रहा था). जब सराय पहुँच कर ट्रक से उतरे तो सभी एक दूसरे को देख कर खीं-खीं कर रहे थे क्योंकि ट्रकवाला हमसे पहले कोयला उतार कर आया था.
हम सबके मुंह-हाथ-कपड़े कालिख से पुत गए थे....ट्रक ड्राईवर घूँट लगा कर सैट था. पेट्रोमेक्स की रौशनी में लड़की वालों ने ऐसे दुरंगे बाराती पहले कभी नहीं देखे थे. खाने के समय, वहाँ की औरतों ने चटखारे ले ले कर नवीनतम, अप्रकाशित, अप्रसारित और अपुरूस्कृत गालियाँ गायीं...
उनकी रचनाओं के आगे मुझे बड़े-बड़े साहित्यकार आजतक बौने लगते हैं. मुझे भरोसा है कि सभी देसी ब्लॉगर गालियाँ गाने का मतलब बखूबी जानते हैं. और आप तो हरयाणा के हैं तो बहुत अच्छी तरह जानते होंगे ससुराल की गालियों को?
सवाल : हां काजल जी और कोई जाने या ना जाने पर हम तो जानते हैं. हम तो इस उम्र मे भी ससुराल जाते हैं तो इतनी गालियां हमें सुनाकर गाई जाती हैं कि क्या बतायें? बस युं समझ लिजिये कि अब तो बिना गालियां खाये ससुराल मे मजा ही नही आता. खैर…हमने सुना है कि आपके ससुर साहब भी शादी के पहले आपके काफ़ी खिलाफ़ थे?
उत्तर: ताऊ जी आपभी कहां कहां से अंदर की बात निकाल लाते हैं? पर आपने सुना बिल्कुल सही है. और युं समझ लिजिये कि यही बात अपने-आप में एक घटना है कि अपने होने वाले तामिलियन ससुर को यह समझाने में पूरा एक साल लग गया कि ये बिन-लुंगी का, उनका होने वाला दामाद इतना भी बुरा-आदमी नहीं है... श़क्ल पर मत जाओ बाबा.
सवाल : ऐसा भी क्या हो गया था जी?
उत्तर : क्योंकि, उन्हें मेरे बारे में पक्का भरोसा था कि यह एकदम निरा लफ़ंगा लौंडा है, सरकारी नौकरी में है तो भी क्या हुआ...शादी के बाद मेरी भोली-भाली लड़की को छोड़ कर भाग खड़ा होगा, और उस पर तुर्रा ये कि कुंडली तक का तो पता नहीं....
सवाल : अरे रे..फ़िर आपकी शादी कैसे हुई? और अब ससुर साहब की राय आपके बारे मे क्या है?
उत्तर : खैर, कोर्ट-कचेहरी हो जाने के बाद, तब कहीं जाकर उन्हें अपने इस अटल विश्वास से डिगना पड़ा.
और यों भी, दूल्हेनुमा घुड़चढ़ा बबुआ सा बन, मौक़ेबाज़ टुन्न बारातियों के जुलूस की अगुवाई करते मैं ख़ुद को कभी स्वीकार कर भी नहीं पाता था....बीस साल हो गए कहीं नहीं भागा हूँ, सींग-छुपी गाय की तरह रहता हूँ.
सवाल : आप साहित्य मे रूचि रखते हैं?
उत्तर: मेरे लिए, पढ़ना सबसे दूभर काम है और लिखना तो बस जी का जंजाल, मैं कार्टून बनाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता. छुटपन से ही लगता रहा है कि ज़बरदस्त पढ़ाई-लिखाई से दिमाग ठस हो जाता है.
मैं आज भी बस गुजारे लायक पढ़ता हूँ, लिखता तो हूँ ही नहीं... जो लिखता हूँ वो भी कोई लिखना है लल्लू... आज भी बिन रवां ही हुए चल रहा हूँ . दिमाग़ की खाली हार्ड डिस्क बहुत अच्छी लगती है इसलिए इसे हमेशा फॉर्मेट करता रहता हूँ. अरुचिकर बातें याद रख पाना मेरे बूते की बात है ही नहीं. ...
सवाल : सुना है आप कोई पुस्तक प्रकाशन का भी इरादा रझते हैं?
जवाब : अरे! मेरा तो कोई दुश्मन भी नहीं है, फिर ये खबर किसने उडाई...? ताऊ जी सचाई तो बल्कि ये है कि मैं कई बार सोचता हूँ कि शुरू शुरू में किताब लिख कर लोगों को ज़रूर यूँ लगता होगा कि मानो उन्होंने किसी नक्षत्र को जन्म दे दिया...
फिर ये लोग कैसे प्रकाशकों के यहाँ जूतियाँ चटकाते फिरते होंगे...कैसे चिरोरियाँ करते होंगे. कैसे भारी पाँव वाली माँओं कि तरह महीनों बैठे प्रतीक्षा करते होंगे कि प्रकाशक ने शायद उनकी पाण्डुलिपि पढ़ ली होगी, छापने का न्योता आता ही होगा, बस वो अब बहुत बड़े लेखक बनने ही वाले हैं,
छपते ही पाठक उन्हें कन्धों पर उठाने के लिए आते ही होंगे, प्रकाशक एडवांस रोयल्टी के चेक लिए दरवाज़े पर लाइन लगाने ही वाले हैं, उनकी किताबों पर फिल्में और सीरियल बने ही समझो... ऐसे जिगरे वालों को, बक़ौल आपके, राम राम जी. अगर आप कॉपीराइट उलंघन माफ़ कर दें तो
सवाल : साहित्य के पठन पाठन के बारे में कुछ बतायेंगे?
उत्तर: मोटी-मोटी किताबें देखकर मेरा मुंह फटा का फटा रह जाता है. पता नहीं इनके लेखकों और प्रकाशकों को कोई और फुर्सत क्योंकर न थी. और इन्हें पढ़ने वालों के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है, सच.
अलबत्ता इन कित्ताबों को क़रीने से संजो कर रखने वाली लाइब्रेरियाँ मुझे बहुत अच्छी लगती थीं ....कोई शोर नहीं, एकदम सन्नाटा, किसी को किसी से कुछ मतलब नहीं. मैं वहाँ छुपकर अखबारों से कुछ-कुछ उड़ाने और सोने जाया करता था...
सवाल : आप महानगरीय व्यक्तित्व और स्वयम के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
उत्तर: महानगरीय बनावटी व्यवहार-कुशलता काटने को दौड़ती है ठीक वैसे ही जैसे खेमेबाज़ी. मेरे पैदल कार्टूनिस्ट को न तो नेटवर्किंग और मार्केटिंग आती हैं और न ही सीखना चाहता है.
चार कारणों के चलते मैं कभी किसी से कोई बहस नहीं करता..क्योंकि मेरी बातें अंतर्विरोधी लगती हैं, मेरे फंडे शुरू से ही गोल हैं, सामने वाले को पक्का पता है कि वही सही है और, क्योंकि मुझे पता है कि मैं निश्चित हार जाउंगा.
और इस तरह साक्षात्कार पूरा करके हम वहां से विदा लेने लगे तो स्मृति स्वरुप काजल जी ने हमें यह कार्टून ताऊ परिवार का बना कर हमको भेंट किया.
आपको कैसा लगा यह साक्षात्कार अवश्य बताइयेगा. अगले सप्ताह आपको फ़िर हम एक और शख्शियत से रुबरू करवायेंगें. तब तक के लिये रामराम.
ताऊ,
ReplyDeleteकाजल जी को जानने का मौका मिला. मजा आया उनकी दिलचस्प गाथा सुन कर. बहुत आभार.
कार्टून फोटो में राम प्यारी भी बैठी है. :)
आप जीतने वालों से साक्षात्कार कर रहे हैं, हारने वालों का क्या? लगता है यूनियन बनानी होगी।
ReplyDeleteकाजल कुमार जी से मिलकर अच्छा लगा -उन्हें अपना खुद का भी एक कार्टून देना था ना ?
ReplyDeleteअच्छा लगा काजल कुमार के बारे में जानकर, अरविंद जी बात भी सही है उन्हें खुद का कार्टून भी बना लेना चाहिये था।
ReplyDeletebahut achha laga kajal ji ko janana.
ReplyDeleteKajal jike cartoon to maiaksar dekh leti hu...
ReplyDeletepar aaj unke baare mai jaan ke achha laga...
साक्षात्कार पढ़ने के बाद पता चला कि काजल जी के कार्टून किस तरह के प्रतिभावान, मस्त और हाजिरजवाब दिमाग से निकलते हैं। साक्षात्कार को जीवंत बनाने के लिए ताऊ का भी आभार.. काजल जी को एक और धन्यवाद इसलिए कि उन्होंने हमें ताऊ परिवार के दर्शन का सौभाग्य दिया :)
ReplyDeleteताऊ जी,आपका धन्यवाद कि इस साक्षात्कार के माध्यम से काजल कुमार जी के बारे में विस्तार से जानने का अवसर प्राप्त हुआ.........वैसे काजल जी ने एक बात बहुत सही कही कि "ऐसे कितने ताऊ होते हैं जो अपना कन्धा ही हाज़िर नहीं करते, ख़ुद पर हंसने का मौक़ा देकर दूसरों को उन्हें ही भुलाने के क्षण भी देते हैं... ताऊ का ताऊ ही बने रहना एक बहुत सुखद, हवा के ठंडे झोंके सा विचार है, व्यक्ति नहीं."
ReplyDeleteकाजलजी को तब से जानते है जब से वे हमें नहीं जानते थे :)
ReplyDeleteकई पत्रिकाओं में कार्टून देखते आए हैं.
आपका धन्यवाद. काजलजी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला.
गांव जाकर घड़ी और कैलेंडर की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है...सूरज उगा तो उठ गए, सूरज छुपा तो सो गए.
ReplyDelete--वाह! क्या बात कही!ऐसा समय और अवसर
भाग्यवानो को मिलता है.
-काजल जी का साक्षात्कार अच्छा लगा.
-ताउ परिवार का कार्टून भी पसन्द आया.
वाह वाह ताऊजी, आप्के ब्लोग की जितनी भी तारीफ़ करूं कम है.इस ब्लोग नें अब कितना विराट और संपूर्ण स्वरूप प्राप्त कर लिया है.
ReplyDeleteसब से पहले आपके जम्नदिन की बधाईयां स्वीकार करें (belated ही सही). टूर पर था इसलिये आज ही पता चला और चूक गया. लगता है प्रायश्चित के लिये कुछ करना पडेगा.
दूसरी बात आपको एक और बधाई!! आज के दैनिक पत्रिका के अंक में(इन्दौर संस्करण) श्री आशिष खंडेलवाल का हिंदी ब्लोग की दुनिया पर रोचक लेख छपा है, और दस मनोरंजक, ग्यानवर्धक, और लोकप्रिय ब्लोग्स के बारे में जानकारी दी है.उसमें आपके ब्लोग का भी बखूबी ज़िक्र है. सो लक्ख लक्ख बधाईयां फ़िर से.
अब आते हैं आपके ब्लोग के चहुंमुखी , स्वरूप की ओर.
यहां क्या क्या नही है? आपकी रोचन, ग्यानवर्धक पहेली, और साथ में गणित का सवाल. फ़िर अल्पना जी का बडी मेहनत द्वारा तैयार किया उस पर्यटन स्थल का संपूर्ण विवरण(टूरिज़्म वाले भी क्या जानते होंगे). फ़िर ज़िंदगी में अथक परिश्रम से आत्मसात किये हुए प्रबंधन के अच्छे बोधप्रद विचार,साथ में पहेली के विजेता के बारे में अंतरंग और प्रियकर वार्तालाप, सभी के लिये बधाईयां.
साथ ही में आशिषजी की भी रुचिकर जानकारी. सभी को इतने अच्चे स्वरूप प्रदान करने के लिये आपको ब्लोग रत्न की उपाधी दी जानी चाहिये.
(आशिषजी क्या एक बढिया लोगो बन सकता है?)
वाह ताऊ वाह, अब मुझे याद आगया . इनके कार्टूण ऐने शायद सरिता ाअदि मैगजीन मे भी पढे हैं .बहुत अच्छा लगा इनके बारे मे जानकर.
ReplyDeleteऔर आपके परिवार का कार्टून तो क्या खूब बनाया है? मजा आगया .
ReplyDeleteबहुत बधाई ताऊ आपको श्री काजल कुमार जी से परिचय कराने के लिये.
ReplyDeleteअसल मे किसी भी ब्लागर को थोडा नजदीक से जानने पर एक कम्फ़र्ट लेवल बढ जाता है. आप का यह प्रयास बहुत सराहनिय है.
बहुत अच्छा रहा जी यह परिचयनामा. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteकाजल जी से मिलवाने का शुक्रिया, काफी अच्छी अच्छी बातें की आप लोगों ने. पर ताऊ आज का खूंटा कहाँ गाड़ा है? :(
ReplyDeleteएक लाजवाब सखशियत से मुलाकात अच्छी लगी और ताऊ परिवार का बेहतरीन कार्टून देख कर मजा आगया.
ReplyDeleteएक लाजवाब सखशियत से मुलाकात अच्छी लगी और ताऊ परिवार का बेहतरीन कार्टून देख कर मजा आगया.
ReplyDeleteताऊ अगली बार किस की (इमरान वाला नहीं) बारी है, बता देते तो और अच्छा लगता.
ReplyDeleteरोचक साक्षात्कार..............ताऊ आपका तरीका जोरदार है
ReplyDeleteहोली के फोटो आ गये ब्लॉग पर.......लगता है रंग में आ गये आप भी
जोहार
ReplyDeleteसाक्षात्कार तो उत्तम था पर ताउ परिवार का कार्टून अतिउत्तम .
" उनकी व्यस्त दिनचर्या के बीच हमारे कहने पर उन्होने पिछले सप्ताह शनीवार का समय हमारे लिये निकाला "
ReplyDeleteहर बडे व्यक्ति के साथ यही समस्या होती है कि वह व्यस्त रहता है फिर भी हमारे लिए समय निकाल कर हमें कृतार्थ करता है:) धन्यवाद ताऊजी और काजलजी। आप लोगॊं ने अपना अमूल्य समय निकाल कर हम से दो-चार हुए:):)
वाह, वाह! ताऊ के कुनबे में तो लोग बढ़ते ही जा रहे हैं!
ReplyDeleteबहुत बधाई जी।
काजल जी का यह साक्षात्कार अच्छा लगा. धन्यवाद
ReplyDeletelo kajal ji se aaj hi milne ki tamnna jahir ki thi...
ReplyDeleteaur tau ji matlab 'bade abba' ki wazha se mil bhi liye........
shukriya... :)
काजल जी ने ठीक कहा कि गाँव जाकर घंडी कलेंडर आदि की जरुरत ही नही रहती। सूरज निकला तो उठ गए हो और सूरज छिप गया तो सो गए।
ReplyDeleteकाजल जी मिलकर अच्छा लगा और उनके बनाए कार्टून बहुत ही अच्छे होते है।
हे ताऊश्री
ReplyDeleteकाजल जी से मिल कर बहुत अच्छा लगा
उन सी जीवंतता हरेक को नहीं मिलती
काजल जी को शुभकामनाएं
और आप सीधसीधे मेल बाक्स पर आएं
क्योंकि जैसे ही आप आएंगें
तो हरियाणे का असली खूंटा
वहीं पर पाएंगें
बड़ा ही रोचक इंटरव्यू था, ताउजी.
ReplyDeleteकाजल जी कि हाजिरजवाबी के तो कायल हो गए हम.
उनके कार्टूनों के कायल तो पहले से ही थे.
Ram... Ram ..Ram...! Tau itane kathin swal...?? isiliye to mai sahi jwab nahi deti...pr kajal ji ne to mast mast jwab diye hain....list me aane k liye Bdhaiyan ji Bdhaiyan....!!
ReplyDeleteकाजल जी के बारे बहुत सुंदर लगा पढना, वेसे ताऊ अब ज्यादा रहस्य नही बन सकता, बस दो चार कडिया, ओर मिला लुं फ़िर मुझे तो पता चल जायेगा कि ताऊ ....... ?
ReplyDeleteधन्यवाद
ताऊ,धन्यवाद!
ReplyDeleteकाजल जी का साक्षात्कार पसन्द आया.
ताऊ परिवार का कार्टून भी अच्छा लगा.
बहुत अच्छा लगा कजल कुमार जी से साक्शात्कार और कार्टून मेँ उनको महारत हासिल है
ReplyDeleteआपको साल गिरह पर बधाईयाँ और आपके ब्लोग के चर्चे हो रहे हैँ उसकी भी बधाईयाँ
-लावण्या
"aadrniy kajal ji ka inteview aaj hi pdha, unke vyktitv ko jankr bhut accha lga, cartoon mey to unhe mahart hasil hi hai ye to unhone tau ji ka cartoon bnakr ek bar fir sidh kr diya hai.....unhe bhur shubhkaamnaye.."
ReplyDeleteregards
ताऊ-परिवार के कार्टून एवं साक्षात्कार की समुचित सराहना के लिए आप सबका विनम्र आभार. और....मुझे पहेली-९ में जिताकर सबके सामने लाने के लिए आदरणीय ताऊ जी को हार्दिक राम राम.
ReplyDeleteसादर सस्नेह,
काजल कुमार.
लगता है इन पहेलियों में
ReplyDeleteहमें भी हिलहिलाना पड़ेगा
चाहे होली पर हिलियाने के बाद।
कार्टून कार पर नहीं है पर
हैं टून (टुन्न) करने वाले
और कार्टूनकार खुद ही लगते हैं
महाटुन्न होली से पहले
और इस महाटुनियाने में ही
कार्टूनियत कला निखरती है।
प्रमाण स्वरूप यत्र तत्र सर्वत्र
दो चार छह आठ दस
कार्टून पोस्ट में कर दिए होते
फिक्स तो, तब भी ताऊ रहते
ताऊही, लगता है हमें
एक साक्षात्कार ताऊ जी का
लेना पड़ेगा और ताई जी से
पहेलियों का हल पूछकर इनाम
होगा जीतना।
इतना बड़ा इंटरव्यू छपने का लालच
कोई कम नहीं होता
पर न पढ़ने वाले कार्टूनकार ने
यह साक्षात्कार तो पढ़ा ही होगा
जितना खाली रहा होगा दिमाग
सारा का सारा भरा होगा।
जय होली
होली हो
जय हो।
थोडा देर से पढ़ा यह काजल जी के बनाए कार्टून तो देख कर मुस्कराते रहे हैं आज उनके बारे में पढ़ कर अच्छा लगा ..दिलचस्प हैं बाते उनकी ..शुक्रिया
ReplyDeleteवाह काजल अंकल, धन्यवाद.
ReplyDeleteआपने मेरा कार्टून बहुत अच्छा बनाया.
kajal li kothri me sab kale kyu?
ReplyDeletedudh ke dhule sab safed kyu?