हमारे प्रिय अनुज काका योगिंद्र मौदगिल जी को वेलेंटाईन दिवस से ही होली का खुमार चढने लगता है. अबकी बार काकी ( श्रीमती योगिंद्र मौदगिल) के लिये वेलेंटाईन्स दिवस को फ़ूल लेने गये थे. जैसे संगम फ़िल्म में राजकपूर साहब को फ़ूल नही मिले तो वो कम से कम गोभी का फ़ूल ही वैजयंतीमाला के लिये ले आये थे. आखिर राजकपूर
साहब समझदार और अनुभवी थे.
पर योगिंद्र काका तो ठहरे कवि महाराज. फ़ूल नही मिले तो कांटो का टोकरा ही भेंट कर दिया. और काकी के डर से घर से फ़रार हो गये . उसके बाद उनकी कैसी दुर्गति काकी द्वारा हुई होगी ये तो आप सोच ही सकते हैं.
और एक खास खबर कि पूजा उपाध्याय जी ने ब्लागिंग पर थिसीस लिख कर डाक्टरेट करली है और अब वो इस विषय पर डाक्टरेट करने वाली पहली ब्लागर हो गई हैं.
डाक्टर पूजा उपाध्याय ने हमको बताया कि ब्लागिंग का अभ्यास शुरु करते ही इन्सान के ज्ञान रुपी परम चक्षू तुरंत खुल जाते हैं और वो परम तत्व को प्राप्त कर लेता है. हमने भी इसे आजमाया. और हमने अपने दिव्य ज्ञान का उपयोग करते हुये काकी द्वारा काका को लिखा गया प्रेम पत्र पढ लिया. आप भी सुन लिजिये कि उसमे क्या लिखा था?
होली के हुल्लड मे यह कविता हमारी और सुश्री सीमा गुप्ता जी की और से काका और काकी यानि श्रीमती और श्री योगिंद्र मौदगिल को समर्पित है. और यहीं से होली पर्व की मौज शुरु करते हैं.
आप भी मजा लिजिये “काकी की गुहार” का.
हे मेरे बारह बच्चों के बाप
लग जाये तुम्हे काली मां का श्राप
आदमी हो या कोई बेदर्द कसाई
छोडकर जाते तुम्हे शर्म नही आई
जाना जरुरी था तो हिसाब करके जाते
आधे मुझे देते और आधे साथ ले जाते
पूरी फ़ौज मेरी छाती पर छोड गये
एक इन्जन से दर्जन भर डब्बे जोड गये
तंग होकर इनको ऐसा कह डराती हूं
चुप हो वर्ना तुम्हारे बाप को बुलवाती हूं
और ढेर सारी कविताएं सुनवाती हूं
कुछ सहम कर चुप हो जाते हैं
और कुछ डर कर रो जाते हैं
अब भी आंखों मे शर्म हो बाकी
तो सुनो क्या कह रही तुम्हारी काकी
अब कभी लौट कर मत आना
इससे ज्यादा और क्या समझाना
चाहे जहां खेलो कूदो
या गाना गाते रहना
पर याद से मनी आर्डर
हर महिने भिजवाते रहना
तुम्हारे प्राणों की प्यासी
मैं हूं तुम्हारी दासी
श्रीमती सत्यानाशी
( रचना सुधार हेतु आभार सुश्री सीमा गुप्ता जी)
साहब समझदार और अनुभवी थे.
पर योगिंद्र काका तो ठहरे कवि महाराज. फ़ूल नही मिले तो कांटो का टोकरा ही भेंट कर दिया. और काकी के डर से घर से फ़रार हो गये . उसके बाद उनकी कैसी दुर्गति काकी द्वारा हुई होगी ये तो आप सोच ही सकते हैं.
और एक खास खबर कि पूजा उपाध्याय जी ने ब्लागिंग पर थिसीस लिख कर डाक्टरेट करली है और अब वो इस विषय पर डाक्टरेट करने वाली पहली ब्लागर हो गई हैं.
डाक्टर पूजा उपाध्याय ने हमको बताया कि ब्लागिंग का अभ्यास शुरु करते ही इन्सान के ज्ञान रुपी परम चक्षू तुरंत खुल जाते हैं और वो परम तत्व को प्राप्त कर लेता है. हमने भी इसे आजमाया. और हमने अपने दिव्य ज्ञान का उपयोग करते हुये काकी द्वारा काका को लिखा गया प्रेम पत्र पढ लिया. आप भी सुन लिजिये कि उसमे क्या लिखा था?
होली के हुल्लड मे यह कविता हमारी और सुश्री सीमा गुप्ता जी की और से काका और काकी यानि श्रीमती और श्री योगिंद्र मौदगिल को समर्पित है. और यहीं से होली पर्व की मौज शुरु करते हैं.
आप भी मजा लिजिये “काकी की गुहार” का.
हे मेरे बारह बच्चों के बाप
लग जाये तुम्हे काली मां का श्राप
आदमी हो या कोई बेदर्द कसाई
छोडकर जाते तुम्हे शर्म नही आई
जाना जरुरी था तो हिसाब करके जाते
आधे मुझे देते और आधे साथ ले जाते
पूरी फ़ौज मेरी छाती पर छोड गये
एक इन्जन से दर्जन भर डब्बे जोड गये
तंग होकर इनको ऐसा कह डराती हूं
चुप हो वर्ना तुम्हारे बाप को बुलवाती हूं
और ढेर सारी कविताएं सुनवाती हूं
कुछ सहम कर चुप हो जाते हैं
और कुछ डर कर रो जाते हैं
अब भी आंखों मे शर्म हो बाकी
तो सुनो क्या कह रही तुम्हारी काकी
अब कभी लौट कर मत आना
इससे ज्यादा और क्या समझाना
चाहे जहां खेलो कूदो
या गाना गाते रहना
पर याद से मनी आर्डर
हर महिने भिजवाते रहना
तुम्हारे प्राणों की प्यासी
मैं हूं तुम्हारी दासी
श्रीमती सत्यानाशी
( रचना सुधार हेतु आभार सुश्री सीमा गुप्ता जी)
जाना जरुरी था तो हिसाब करके जाते
ReplyDeleteआधे मुझे देते और आधे साथ ले जाते
--प्राणों की प्यासी??? हा हा...सही हुई होली की शुरुवात सीमा जी की सटीक हास्य रचना के साथ. जय हो!!!
मौदगिल साहब अगर यह सुनकर भी चुप्पी लगा गए तो उनकी मर्दानगी पर सावलिया निशाँ लगने ही हैं -मुझे अब उनके कहे का इंतज़ार है !
ReplyDeleteऔर आप दोनों जने होलियायी मूड में आ चुके हैं और संक्रमण फैला रहे और मैं डर रहा हूँ -खुद से !
ब्लागिंग पर थीसिस ! हे भगवन ये क्या हो रहा है... इनको गाइड कहाँ से मिला होगा. उस गाइड ने सिद्ध कैसे किया होगा की वो इस विषय के लिए सही गाइड है. उसकी बात विश्वविद्यालय ने कैसे मानी होगी. evaluation committee मैं कौन महारथी रहे होगे. उस थीसिस को अब छपेगा कौन. उस किताब को कौन लाइब्रेरियन इतने कम कमीशन पर खरीदेगा. कौन महानुभाव ब्लॉगर इसमें ज़िक्र पाए होंगे.... इतने सवाल..मुझे रुक जाना चाहिए.. वर्ना..कल को ये टिपण्णी ही थीसिस हो जायेगी...--:) जानकारी के लिए आभार.
ReplyDeleteबहुत लाजवाब. होली मुबारक. अब देखना आगे क्या होता है?:) होली की शुरुआत अच्छी हुई है.
ReplyDeleteलक्ष्य पहले से तय था
ReplyDeleteजो रहना होता साथ तो
संख्या 12 न होकर 1-2 ही होती।
Holi ki bahut mast shuruaat hui hai...
ReplyDelete" काका जी कही नजर नहीं आ रहे?????????"
ReplyDeleteRegards
" काका जी कही नजर नहीं आ रहे?????????"
ReplyDeleteRegards
ताऊ,
ReplyDeleteथमने तो कमाल कर दिया,
कुर्ता फाड़ के रुमाल कर दिया.
इब तो योगेन्द्र भाई के काव्यात्मक जवाब का इंतज़ार रहेगा.
kaki par kya badhiya kavita rachi hai:),maudgil kakaji fagun par kaki ke liye gulab le jana:),bahut achhi kavita.
ReplyDeleteहोली क़ी शुरुआत तो बड़ी धमाकेदार हुई.. देखते है और किस किस का नंबर लगता है..
ReplyDeleteताऊ जी अब आप ने भी हास्य व्यंग्य की कविता लिखनी शुरू कर दी इस से ही मोदगिल जी नाराज़ हो जायेंगे वो अलग ..उस पर निशाना बने वो खुद!अब आप की खैर नहीं!
ReplyDelete**है तो मज़ेदार कविता...होली के रंग में पूरी रंगी हुई..
**कल 'ब्लॉग वासियों को एक नया शब्द मिल गया ...'जलन्तु'
काकी'प्राणों की प्यासी ' के इतने रस भरे...होली की भांग से भी ज्यादा मादक 'प्रेमपत्र' को पढ़ आकर जाने कितने 'काका 'जलन्तु हो गए होंगे!
जोहार
ReplyDeleteबहुत अच्छी हास्य कविता , हर पंक्ति चुन-चुन के लिखी गयी है.
काका से ये उम्मीद नही थी कि बेलन टाईन दिवस पर काकी को कांटो का टोकरा भेंट करेंगे. पर खुद ने ही बडी शेखी बघारते हुये सबको सुनाया था सो भुगतो अब.:)
ReplyDeleteकाकी धन्यवाद की हकदार है. काकी अपनी बात पर अडिग रहना.:)
बहुत लाजवाब शुरुआत है होली की.
मोदगिल जी ने काकी को काटों का टोकरा भेंट किया उस लिंक पर कुछ नही मिल रहा?
ReplyDeleteकृपया बताये की उन्होने कहां पर ऐसा कहा था? जिससे जनता जनार्दन उनके वचनों का अवलोकन कर सके.:)
होली का महौल बनने लगा है.. :)
ReplyDelete@ दीपक "तिवारी साहब"
ReplyDeleteलिंक सही है. उसी पर आप थोडा सा नीचे आयेंगे तो मोदगिल साहब की फ़ोटो सहित उनके द्वारा की गई टीपणी छपी हुई है जो उन्होने की थी.
रामराम.
बहुत जय जय आप लोगों कि. शुरुआत तो बहुत बढिया रही.
ReplyDeleteकाकी जी को प्रणाम. लगता है काकी जी ने भी ताई से ट्रेनिंग ले ली और एक लठ्ठ भी ताई ने ही काकी को दे दिया है.:)
बहुत जय जय आप लोगों कि. शुरुआत तो बहुत बढिया रही.
ReplyDeleteकाकी जी को प्रणाम. लगता है काकी जी ने भी ताई से ट्रेनिंग ले ली और एक लठ्ठ भी ताई ने ही काकी को दे दिया है.:)
वाह जी वाह क्या शुरुआत की है होली की। मजा आ गया।
ReplyDeleteताऊनामा पर 5000 टिप्पणियां पूरी होने की बधाई स्वीकार करें..
ReplyDeleteकाकी की गुहार बहुत ही मजेदार रही.. अगले एक हफ्ते तक होली के ऐसे ही रंगों से सराबोर रहने की उम्मीद करते हैं..
ReplyDeleteचाची श्रीमती सत्यानाशी के दुख में दुखी उनकी भतीजी को चाचा मौद्गिल से जवाब चाहिये...!
ReplyDeleteलो जी,सीमा जी की कविता पढ कर अब विश्वास होने लगा है कि फागुन आयो रे......
ReplyDeleteअर कमाल है, इतना कुछ सुनने के बाद भी मौदगिल जी चुप्पी लगा के बैठे हैं. कहीं नजर नहीं आ रहे?????????. हो सकता है कि इसकी एन्टी डोज तलाश रहे होंगे.
हा हा हा हा ताऊ इब हंसी नहीं रुक रही.........
ReplyDeleteगज़ब की है काकी तो .....इब खर हो काका की
बहुत खूब लिखा ...धन्यवाद
दुःख में सुख....होली के रंग ..
ReplyDeleteवाह ताऊ आप भी होलिया गए हैं :) हमने तो सिर्फ थीसिस लिखी थी...आप सबने मिल कर डिग्री दे दी...ये आशीर्वाद सर माथे :)
ReplyDeleteक्या मस्त कविता सुनाई है ताऊ...हमारा तो मूड एकदम जोगीरा सारा रा रा हो गया.
इस कविता के साथ ही ताऊनामा पर 5000 टिप्पणियां पूरी हो गयी.... बधाई और तालियाँ......
ReplyDeleteregards
ताउ कविता तो पढ़ ली लेकिन पहले भांग वाली ठंडाई पीने जा रहा हूं। लौट कर प्रतिक्रिया दूंगा। ...अगर उंगलियों ने साथ दिया तो......सावधान ताउ! कविराज ने भांग/ठंडाई की दावत पर बुलाया है इस ब्राहम्ण को।
ReplyDeleteहा हा हा ..वाह ताऊ जी ..ऐसी होलीयाना कविता यहाँ पोस्ट करने के लिए बहुत धन्यवाद ....नहीं होलीवाद.
ReplyDeleteha ha ha.....jabardast...
ReplyDeleteराम राम,
ReplyDeleteआपने तो होली का आगाज कर दिया.. फागुन की मस्ती शुरु हो गई..
आपके ब्लोग पर सीमा जी की रचना भी अलग अंदाज में होती है.. ्बहुत मजा आया..
बहुत बढ़िया लगी यह कविता होली का असर शुरू हो गया :)
ReplyDeleteकाकी तो बड़े गुस्से में लग रही हैं.
ReplyDeleteनिकल लेने में ही भलाई है.
अब काका को ढूंढ कर ही लौटूंगा
होली की शुरूआत में, सीधे फंदा डाल.
ReplyDeleteकाकी ने मिल कर किया, ताऊ संग धमाल.
ताऊ संग धमाल, मगर ये खास नहीं है.
काकी अब भी काका पर विश्वास नहीं है.
लेकिन मैडम इसका लोजिक समझ ना पाया.
मैं चौबिस का बाप बारह का क्यूं बतलाया..?
फिर भी मैंने तो किया, ताऊ, यार यक़ीन.
भैंस के आगे मैं कभी, नहीं बजाता बीन.
नहीं बजाता बीन, बड़े-बूढ़ों का कहना.
होली पर घरवाली-साली से बच कर रहना.
क्यूकि मूरख तुझे नहीं बुद्धि आती है.
किसके कितने.. ये नारी ही तो बतलाती है.
इसमें चिंता है नहीं, भेद खुलें छब्बीस.
योगेन्द्र मौदगिल की भला, कौन करेगा रीस.
कौन करेगा रीस, कवि-सम्मेलन में जाते.
एक जूनियर का रोपण भी कर के आते.
गप्प नहीं ये ताऊ, ये तो, है होली का दौर.
सोच रहा गुडगावां जाऊं या आऊं इंदौर.
मेरी सत्यानाशिनि, छोड़ मुझे अन्यत्र.
सीधे-सीधे भेजती, ताऊ जी को पत्र.
ताऊ जी को पत्र, मगर बे-मेल डार्लिंग.
क्योंकि हैं ताऊ के कुत्ते फेल डार्लिंग.
चरणों की दासी लिखती, री, तेरा सत्यानास.
चरण उठाने मुझको पड़ते मैं चरणों का दास.
मिश्रा जी भी जोह रहे, अब तो मेरी बाट.
सोच रहे मैं तोड़ दूं, ताऊ तेरी खाट.
ताऊ तेरी खाट, मगर ये तो है होली.
मेरे प्यारों, इसमें चलती, खूब ठिठोली.
पर भाभी ने भेद, ऒढ़ना, ढक कर खोला.
होली पर 'मुदगिल' ने तोड़ा खूब खटोला.
वाह मौदगिल जी , अब मन मेरा जाकर तृप्त हुआ !
ReplyDeleteमाकूल ज़वाब पाकर जो ताऊ का मन संतप्त हुआ
होली की शुरुआत मुस्कराहट से करवा दी आपने...धन्यवाद.
ReplyDeleteहोली की शुरुआत मुस्कराहट से करवा दी आपने...धन्यवाद.
ReplyDeleteसीमा जी , अब दिजिये जबाब योगेन्दर जी की बात का , भई मजा आ गया ताऊ , मेने तो टिपण्णी कुच ओर देनी थी, लेकिन जब सारी टिपण्णिया पढी तो योगेन्दर जी की टिपण्णी जबाब के रुप मे नहले पे दहला साबित हुयी,
ReplyDeleteवेसे सीमा जी आप की कविता भी एक दम ना० वन है जी.
मजा आ गया, आप सभी का धन्यवाद
होली की यह कविता बहुत बढ़िया लगी
ReplyDeleteसुन्दर! गये काम से!
ReplyDeleteहोली खेले योगीन्द्र भैया काकी सँग,
ReplyDeleteहोली खेले कविवर योगीन्द्रवा ...
बहुत अच्छे !!
रँग पक्का है जी :)
- लावण्या
वाह, वाह! बहुत जबर्दस्त! होली मुबारक !
ReplyDeleteघुघूती बासूती