पुराने समय की बात है. एक युवक बहुत उच्च विध्याध्यन और शाश्त्रों मे शिक्षा पुर्ण कर अपने वतन वापस लौट रहा था. उसकी समस्त पूंजी उसकी पुस्तकें थी जो वो घोडे पर लादे हुये चल रहा था.
रास्ते मे शाम होगई. आगे जंगल था. गांव के लोगो ने उसे कहा कि आप यहीं पर रात्रि विश्राम करिये. और युवक को एक धर्मशाला मे ठहरा दिया गया.
गांव के कुछ ठगो को यह खबर लगी कि एक विद्वान आया हुआ है सो उन्होने उसको अपने गांव के एक विद्वान से शाश्त्रार्थ करने की चुनोती दे दी. अब उस युवक ने उन लोगो की चुनोती स्वीकार कर ली.
अगले दिन एक विशाल शामियाना लगाया गया. गांव के सब लोग इककठा हो गये. युवक को भी एक ऊंचे आसन पर बिठाया गया था.
अब गांव का जो विद्वान था वो निरा मुर्ख और जाहिल था. यानि बिल्कुल अनपढ.
जैसे ही वो आसन की तरफ़ बढा, उस युवक ने उस को कहा -- महोदय नमस्कार.
उसने कभी नमस्कार शब्द ही नही सुना था. सो वो समझा की ये कोई सवाल कर रहा है. सो उसने उत्तर मे कहा..नमस्कार...चमस्कार...
अब उपस्थित गांव वालों ने ताली पीटी कि वाह भाई हमारे गांव के विद्वान तो बडे प्रकांड विद्वान हैं.
अब पहला प्रश्न गांव वाले विद्वान ने दागा. कहा - खै खै खवैया ?
उस युवक का यह प्रश्न कभी सुना हुआ नही था. सो उसने अपनी सब पुस्तके छान मारी. उसको कहीं कोई उत्तर नही मिला. आखिर उसने हार मान ली.
गांव वालों ने गांव के विद्वान की जय जय कार करी. उसको हार फ़ूल पहना कर जुलुस निकाला और इस युवक की किताबे और घोडा छीन कर उसको दे दिया. और गांव से बाहर निकाल दिया.
युवक बडा अपमानित मह्सूस करते हुये रोनी सूरत लेकर घर की तरफ़ पैदल ही रवाना होगया. थोडी दूर चलने पर रास्ते में अगला गांव पडा. जहां उसकी मुलाकात ताऊ से हुई.
अब ताऊ को तो आप जानते ही हो कि बिना पढा लिखा, उज्जड और पक्का गंवार. यानि अच्छे गुण तो कुछ भी नही ताऊ मे. और ठगी मे तो उस्ताद है ही और साथ में चलता पुर्जा भी.
ताऊ को जब पूरे मामले की जानकारी लगी तो उसको बडा गुस्सा आया. अब ताऊ से कोई ठगों की जमात छुपी हुई थोडे ही थी. वो पहचान गया कि ये गोटू सुनार मण्डली के ही पठ्ठों का कारनामा होगा?
सो उसने उस युवक को कहा कि आप यहां खाना खाओ और विश्राम करो. मैं आपकी पुस्तके और घोडा वापस ले कर आता हुं.
अब ताऊ ने बहुत सारी पुस्तकों की एक गठरी बांधी और विद्वान का भेष बना कर अपने ऊंट पर बैठ कर रवाना हो गया.
फ़िर उसी गांव मे जाकर चोपाल पर बैठ गया. अब विद्वान को देख कर उस गांव के उन्ही ठगों की टींम ने आकर ताऊ को भी शाश्त्रार्थ के लिये उचकाया. पहले तो ताऊ झूंठ मूंठ का मना करता रहा . फ़िर नानुकुर के बाद तैयार हो गया.
अगले दिन सारे गांव वाले इककठा हुये. भव्य शामियाना लगवाया गया था. ऊंचे मंच पर गांव का ठग विद्वान पहले से विराजित था.
जैसे ही ताऊ ने शामियाने मे कदम रखा..जनता ने करतल धव्नि से ताऊ का स्वागत किया. और उस गांव वाले विद्वान ने ताऊ को नमस्कार कहा.
ताऊ ने जवाब मे कहा - नमस्कार..चमस्कार..घमस्कार...हमस्कार.. डमस्कार. . और लवस्कार.
गांव वाले समझे कि ये तो कोई बहुत बडा विद्वान है? एक नमस्कार के बदले इतने.. स्कार बोल दिये. जनता ने ताऊ के लिये घणी तालियां बजाई.
अब आगे की कार्यवाही के मुताबिक गांव वाले विद्वान ने अपना वही पुराना प्रश्न
दोहरा कर कहा... खै खै खवैया... और बोला इसका जवाब दिजिये.
उधर उसके पठ्ठे तो ताऊ का ऊंट और किताबे जब्त करने को उचक रहे थे. पर उनको क्या मालूम की ताऊ से ठगी मे कोई आज तक भी नही जीत पाया है.
ताऊ बोला - भाई साहब आप व्याकरण के परम सुत्र वाक्य को अधुरा बोल रहे हैं. आप पूरा बोलिये तो मैं इसके आगे का जवाब आपको दूं?
अब उस गांव वाले विद्वान को क्या पता कि व्याकरण और उसके परम सुत्र क्या होते हैं?
वो चुप रहा. उधर गांव वाले भी स्तब्ध रह गये कि आज हमारे गांव के विद्वान को क्या हो गया है?
अब ताऊ बोला - सुनो जी. मैं आपको पूरा सुत्र सुनाता हूं. और इस परम सुत्र को साधारण तरीके से नही बोला जाता. इसे थोडा साध कर बोला जाता है.
अब ताऊ ने आगे सुत्र बोलना शुरु किया --
जमीन जुतवैया....हल चलवैया...
अनाज बुवैया...अनाज उगैया...
अनाज कटैया...गाहटा गहैया...
अनाज बरसैया...अनाज पिसवैया..
आटा छन्वैया...रोटी पुवैया...
एवम... च:...
तत्पश्चातम ....खै खै खवैया. .....
और खवैया के बाद
जब पेट भरवैया तब
जाकर ब्लाग पर टिपणी टिपवैया.
त्वम.. इतने दिवस से लोगो को बेवकूफ़ बनवैया?
किम कुरवैया दुष्ट?
अब गांव वाले विद्वान का तो चेहरा फ़क हो गया. जनता ने ताऊ की जय जय कार बोलना शुरु किया. उस गांव के लोगों ने ताऊ के जितना व्याकरण का परम विद्वान आज तक नही देखा था.
अब उस गांव वाले विद्वान और उसकी मण्डली का मूंह काला करके गांव से बाहर कर दिया. उनकी सब संपति ताऊ को इनाम मे दे दी.
ताऊ ने उस युवक का घोडा और किताबे वापस करवा दी और अपने काम धन्धे मे लग गया.
इब खूंटे पै पढो:- ताऊ आज कुछ गंभीर चिंतन मे था कि क्युं उल्टे सीधे काम करता है? और कुछ आगे की रणनिती पर विचार करने मे व्यस्त था. इतनी देर मे बिल्कुल सफ़ेद सलवार कुर्ते में सजी धजी शक्कर कुमारी (sugar) इठलाती हुई आकर ताऊ के पास बैठ गई. और दोनों मे बात चीत होने लगी. ताऊ ने बताया कि मैं बडा परेशान हूं. लोगो मे मेरी छवि एकदम लठ्ठ छाप पहलवान की बन गई है. क्या करूं? मुझको कोई पसंद ही नही करता. शक्कर कुमारी बोली- हां ताऊ ये बात तो सही है. आप बहुत कडुवा बोलते हो. हमेशा उज्जड और गंवारों के जैसे बाते करते हो. आपको मीठा बोलना चाहिये. आप बोलते हो तो लगता है कि लठ्ठ मारते हो. आगे शक्कर कुमारी बोली ---अरे मेरे को देखो..मैं कितना मीठा बोलती हूं. जैसे मेरे मूंह से फ़ूल झडते हों. और लोग तो कहते भी हैं कि शक्कर कुमारी कितनी मीठी है. अब इसमे मेरा क्या जाता है? और एक कहावत भी है कि गुड मत दो गुड के जैसी बात तो कर सकते हो? धवल वस्त्रा शक्कर कुमारी बडे नाजो अदा से ताऊ को शिक्षा दे रही थी कि इतने मे एक चींटीयों का झूंड आया और अगले कुछ ही पलों मे शक्कर कुमारी को चट कर गया. |
जब ताऊ सताए हुए विद्वानों के परित्राण के काम में लग जाएँ तो फ़िर छोटे-मोटे ठग तो भाग ही जायेंगे.
ReplyDeleteखूंटे पर की कथा पढ़कर अपने दादाजी से सुनी हुई एक सूक्ति याद आ गयी -
ना तू इतना कड़वा बन, जो चखे वो थूके
ना तू इतना मीठा बन, कि खा जाएँ भूखे!
ताऊ, व्याकरण में ’टिप्पणी टिपैया’ रह गया.
ReplyDeleteशुगर कुमारी का तो खैर यही हश्र होना था. आज कल जमाना बदल गया है. :)
ताऊजी, बड़ा अच्छा काम किया और बड़ी अच्छी शिक्षा भी दी मीठा ना बोलो वरना कोई चींटी चट कर जायेगी। इसमें निठल्ले की टिप जोड़ देता हूँ - मीठा बोलना ही है तो चींटी मारने वाला स्प्रै हमेशा साथ रखें, मीठा भी बोलें और चिंटियों से भी बचें।
ReplyDeleteयह एक काम तो अच्छा किया ताऊ !
ReplyDeleteताऊ कभी तो शेर को सवा शेर मिलता ही है सो ठग को ताऊ के रूप में सवा सेर मिल गया ! रही विद्वान बालक की ! पढ़ने व गुनने में यही तो फर्क होता है ! विद्वान युवक ने पढ़ाई तो पुरी करली लेकिन उसे दुनियादारी व छल प्रपंच का पता नही था वो तो जीवन के अनुभव से ही आता है और कहानी का पात्र ताऊ भले ही पढ़ा लिखा न हो लेकिन वह गुना हुआ तो है, उसे तमाम दुनियादारी का अनुभव है |
ReplyDeletewaah bahut khub kahani aur khunta dono mazedar.
ReplyDeleteSo, "swweet Suger"
ReplyDeletewas eaten alive hummm >> ;-)
Too bad ...
और ताऊ जी की जै जै .
अशोक जी का "लवस्कार " भी जोड देते ..
- लावण्या
गोटू सुनार मण्डली के ही पठ्ठों का कारनामा होगा?
ReplyDelete" ये गोटू ताऊ जी का पीछा ना छोड़ता दिखे...."
धवल वस्त्रा शक्कर कुमारी बडे नाजो अदा से ताऊ को शिक्षा दे रही थी कि इतने मे
एक चींटियों का झूंड आया और अगले कुछ ही पलों मे शक्कर कुमारी को चट कर
गया.
" हा हा हा हा हा हा हा हा हा ताऊ जी एक सलाह मान लेना.....अगर मीठा बोलना हो तो "sugar free" वाला बोलना फ़िर चींटियों का डर नही होगा हा हा हा हा जैसे थारा cat-scan वैसे शुगर फ्री..."
Regards
ताऊ बड़ी मजेदार रही इन्क्लुडिंग खूंटे पे. आभार
ReplyDeleteताऊ ने जवाब मे कहा - नमस्कार..चमस्कार..घमस्कार...हमस्कार.. डमस्कार. . और लवस्कार.
ReplyDeleteलगता है ताऊ पर भी वेलेन्टाइन डे का असर आ गया है।
bachpan me kahania sunte the. ab blog par tau se sun rahe hai. acha hai. waise tau ke game ka to jivan me nakal karna hi hota hai.
ReplyDeleteना तू इतना कड़वा बन, जो चखे वो थूके
ना तू इतना मीठा बन, कि खा जाएँ भूखे!
good, good, very good
बहूत खूब ताउ!!!
ReplyDeleteखै खै खैवाय्या-- का जवाब बहुत बढ़िया लगा..चलो ..ताऊ ने एक नेक काम तो कर ही दिया आखिर!
ReplyDelete['टिपणी टिपवैया'........ !गज़ब है महिमा ताऊ की !]
खूंटे पर तो बहुत बड़ी सीख दे दी आज!
व्यक्ति इतना भी मीठा न बने कि लोग undue advantage लेने लगें!और इतना कड़वा न बने कि बात भी करने से कतराएँ!
आज तो ताऊ ने बड़ा भला काम किया है...उस विद्वान को उसकी चीज़ें वापस कर दीं...मगर ताऊ उसे थोड़ा ज्ञान भी तो देना था, मान लो फ़िर किसी शास्त्रार्थ में फंसा तो फ़िर से उल्लू बन जायेगा...आप कहाँ कहाँ उसको बचाओगे?
ReplyDeleteबहुत बढिया......
ReplyDeleteइब जे बात साफ़ होगी भाई...की ताऊ से घना समझदार कोई नहीं है...ताऊ की कितनी भी जय जय कार करो भाई.....कम ही पड़ेगी...
ReplyDeleteनीरज
Bahut khoob...
ReplyDeleteBahut khoob...
ReplyDeleteजै राम जी की..
ReplyDeleteजैसे को तैसा...घणा चौखा काम किया ताऊ ने और खूंटा भी खूब गहरा ठोकया
वाह! लत्तम घुस्सम वाला ताऊ बोल रहा वणक्कम! :)
ReplyDeletebade vidwaan taau hain hamaare.. aur paropkaari bhi..
ReplyDeleteएकरसता से बचिए ताऊ जी....हमें आपसे दूसरी उम्मीदे है .....
ReplyDeleteताऊ तो ताऊ इसकी तो बात कुछ और है।
ReplyDeleteऔर आज की सीख तो बहुत ही अच्छी लगी। सोचता हूँ.....।
अरे ताऊ आज कल तो ऎसे ही विद्धान मिलते है, बेचारे सही पढे लिखे तो धक्के ही खाते है, बहुत सुंदर लगी आप की बात, खूंट भी सही लगां, ना किसी भी बात की हद ना करो , बस बीच का रास्ता सही है.
ReplyDeleteधन्यवाद
मैं कुछ नहीं कह रहा इस पर ताऊऊऊऊऊऊ...
ReplyDelete"तत्पश्चातम ....खै खै खवैया. .....
ReplyDeleteऔर खवैया के बाद
जब पेट भरवैया तब
जाकर ब्लाग पर टिपणी टिपवैया".
अति सुनदर ताऊकाव्या*******
अब ताऊ कै टिपवैया ? जब पेट भरवैया तो निन्द अवाईया