तुम्हारे होंठों का तिल
जैसे सावली साँझ का
चमकता एक तारा
श्यामल सा रंग सांझ का
तुम्हारे केशो से चुरा लाई सारा
भीनी भीनी मंद हवा की खुशबु
सजाये तेरी यादों से हर नज़ारा
सांवली सांझ की तन्हाई मे
बिखरा जैसे अस्तित्व सिर्फ़ तुम्हारा
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
बहुत सुन्दर. सीमा जी को बधाई और आपका आभार.
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteक्या बात है ताऊ। घणे रोमान्टिक सीन खैंच दिये।
ReplyDeleteताऊ! ब्लाग पर बसंत का असर है।
ReplyDeleteक्या सुंदर लघु काव्य है. आभार.
ReplyDeleteभीनी भीनी मंद हवा की खुशबु
ReplyDeleteसजाये तेरी यादों से हर नज़ारा
सांवली सांझ की तन्हाई मे
बिखरा जैसे अस्तित्व सिर्फ़ तुम्हारा
" खुबसुरत ख्यालों से सजे कुछ एहसास..."
Regards
" खुबसुरत ख्यालों से सजे कुछ एहसास..."
ReplyDeleteRegards
तिल की तारे से तुलना आज पहली बार देखी, थोड़ा अलग थी लेकिन फिर भी अच्छी लगी
ReplyDeleteअब समझ आई ताऊ कल ग्रहण क्यों था? चांद आपने अपने ब्लोग पर बुला रखा है.. :)
ReplyDeleteबहुत उम्मंदा!!
"सांवली सांझ की तन्हाई मे
ReplyDeleteबिखरा जैसे अस्तित्व सिर्फ़ तुम्हारा"
बहुत सुन्दर. सीमा जी को आभार और आपको बधाई.
behad khubsurat
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteसुन्दर कविता। सीमा जी को और आपको भी बधाई।
ReplyDeleteताऊ जी आप का ब्लॉग बहुत ही सुंदर हो गया है...लगता है किसी विशेषज्ञ की मदद ली है आपने...वाह.
ReplyDeleteनीरज
क्या बात है जी.. छा रहे हो आप तो..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. सीमा जी को बधाई और आपका आभार.
ReplyDeletenice poem !!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबधाई हो इतनी सुंदर रचना के लिए, सीमा जी को भी बधाई खूबसूरत निखार के लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteतुम्हारे होंठों का तिल
ReplyDeleteजैसे सावली साँझ का
बड़ी रोमांटीक शुरूआत थी जी....
सुन्दर.
खूबसूरत भाव...सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeletesundar panktiya.n....!
ReplyDeleteनमस्कार ताउजी !
ReplyDeleteआज कल तो थम घणा रोमांटिक होण लाग रहया सो! के बात से ताऊ! जरा मन्ने भी तो बता दो!
बात आ से के ३ महीने बाद थारे इस भतीजे की शादी होण आळी हैं तो जरा एक दो नुस्का तो इण भतीजे ने भी बता दो, भतीजो थारो अहसानमंद रहवेला!
सस्नेह!
दिलीप गौड़, गांधीधाम
सुंदर भाव लिए हुए रचना। शुक्रिया आप दोनों का।
ReplyDeleteबड़ी सुंदर तुलना की है ताऊ जी आपने. सीमा जी की भी दाद देता हूँ.
ReplyDeletelaajvaab seemaji ko bdhai aur aapko bhi jo itni sunder rachna padhvaai
ReplyDeleteसजी को बधाई और आपका आभार।
ReplyDeleteयह रचना प्रस्तुति का स्टाइल अनूठा है।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई सीमा जी को लिखने की ओर आप को यहां तक इस कविता को पहुचाने की.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत घणी भाव वाली कविता है -दो महारथियों का हुनर और काव्य हुस्न निखरा हुआ है यहाँ जो !
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