"मेरा हमसाया"
आंगन रेस्टोरेंट मे
एक शेर और खरगोश
एक साथ दाखिल हुये
उनको देखते ही वेटरों के
होश उडे , पांव थर्राए
जहां खडे थे वहीं जड हो गये
आखिर मैनेजर हिम्मत करके आया
पूछा, क्या सेवा कर सकता हूं ???
खरगोश ने की फरमाइश
चार अंडे का आमलेट, काफ़ी
और थोडा ये और वो ले आओ
अब मेनेजर कुछ सकपकाया
शेर की तरफ चेहरा घुमाया फ़िर पूछा
आपके मित्र के लिये?
इस पर खरगोश ने फ़रमाया
तुम भी क्या आदमी हो यार?
अगर मित्र होता भूख से हकलाया..
तो मैं यहां बैठा होता क्या ऐसे मस्ताया
या तो मित्र के पेट मे होता
या होता कहीं ख़ुद को जा छुपाया
मित्र का पेट भरा है....
इसीलिये दो दिन है मेरा हमसाया.....
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
अरै भाई वाह
ReplyDeleteवाह, तैं पहल्या जै राम जी की
के गजब करै सैं
भरे पेट वाले मित्र को ही हमसाया बनाना उचित है. ज्ञानवर्धन हुआ-आभार सीमा जी का और ताऊ की जय!!
ReplyDeleteयह राम-राज्य कैसे स्थापित हो गया? भूख मान जाती है क्या? पेट को पापी कह पाप को नैतिक बनाने वालों का कायाकल्प हो गया है क्या?
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह डाली ताऊ जी !
ReplyDeleteआजकल मित्रता तभी तक है जब तक कि आपसी हितों का टकराव न हो !
सुंदर कविता! कई शेर पेट भरा होने पर भी सिर्फ़ मज़े के लिए शिकार करते हैं.
ReplyDeleteमोरल ऑफ़ दा स्टोरी इस: मित्र के पेट का ख्याल रखा करो. सुंदर.
ReplyDeleteराम राम ताऊ, सीमा जी की ये कविता प्रस्तुत करने के लिये आभार.. बिल्कुल अलग अंदाज में है ये.. मज़ा आया.. और प्रकाश तो विवेक जी ने डाल ही दिया..
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteअगर मित्र होता भूख से हकलाया..
ReplyDeleteतो मैं यहां बैठा होता क्या ऐसे मस्ताया या तो मित्र के पेट मे होता या होता कहीं ख़ुद को जा छुपाया मित्र का पेट भरा है.... इसीलिये दो दिन है मेरा हमसाया.....
Regards
waah bahut khub
ReplyDeleteअगर मित्र होता भूख से हकलाया..
ReplyDeleteतो मैं यहां बैठा होता क्या ऐसे मस्ताया या तो मित्र के पेट मे होता या होता कहीं ख़ुद को जा छुपाया मित्र का पेट भरा है.... इसीलिये दो दिन है मेरा हमसाया.....
"सुंदर भाव प्रेरक प्रसंग ....आजकल मित्रता भी ...देख भाल कर करनी चाईए "
Regards
बढिया कविता है, पढकर होठों पर मुस्कान दौड गयी।
ReplyDeleteजोरदार बात कह दी. कहने का तरीका भी जोरदार मजेदार शानदार
ReplyDeleteअच्छी कविता है..शेर और खरगोश !!
ReplyDeleteये तो बहुत गहरी बात कह दी सीमा जी ने इस रचना के जरिए। बधाई।
ReplyDeleteपर एक चीज तो बता दो कि शेर कौन है और खरगोश कौन है या फिर इसका भी नही पता चलेगा जैसा ताऊ जी कौन है आजतक नही पता चला।
वाह वाह ताऊ...........
ReplyDeleteके बात लिख दी इब दोस्ती पर, आज के हालत भी कुछ ऐसे ही हैं.
बहुत खूब लिखा
आपने तो कमाल कर रखा है ....बहुत खूब
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जंगल के अलिखित कानून का बढ़िया विवेचन कविता में
ReplyDeleteवाह
यानी भूख रामराज्य की स्थापना में बाधक है। भूख भाईचारा खाती है!
ReplyDeleteवाह !!!
ReplyDeleteAchhi kavita.
ReplyDeleteताउ राम राम मै पन्कज हु आप तो समझ गये होगे मेरा वो ब्लोग रद्द हो गया अब मै सिर्फ़ technical लिखता हु आप सादर आमन्त्रित है,
ReplyDeleteधन्यवाद जी!!!
वाह्! ताऊ, जितनी सुन्दर बात, कहने का तरीका भी उतना ही लाजवाब........
ReplyDeleteखैर मनाईये मित्र का पेट भरा है !
ReplyDeleteताऊ बहुत अच्छी तरह से मित्र की परिभाषा आप ने समझाई, धन्यवाद आप का इस लिये की आप ने यह कविता हम तक पहुचाई.
ReplyDeleteसीमा जी का धन्यवाद, क्योकि उन्होने यह कविता आप को पहुचाई.
Tau manne to hajam na hui ye bat...? sher chahe 2 din bad khaye pr shikar to karke rahega....!
ReplyDeleteसवाल ये है की खूंटा कहा गया ??
ReplyDeleteताऊ आज तो आपने बिल्कुल सही कहा। अमीर और गरीब की दोस्ती सिर्फ़ अमीर की मर्जी पर होती है. पर आपका खरगोश आपकी तरह समझदार है। :)
ReplyDeleteअमीर आदमी हमेशा अपना उल्लू सीधा करने के लिये गरीब को साथ रखता है. जब उसकी इच्छा हुई, उसको ऊठाकर दुध की मक्खी की तरह बाहर फ़ेंक देता है. बडी शिक्षा परक कहानी है.
वाह वाह क्या बात कही आपने? जब तक शेर को भूख नही है तब तक ही दोस्ती बरकरार है।
ReplyDeleteऔर खरगोश महाशय भी बिल्कुल समझदार हैं। जानते हैं कि शेर का पेट भरा है तब तक ही मजे करलो, बाद मे तो भागना ही है। नही भागेंगे तो शेर महाराज के पेट मे जायेंगे। सुन्दर निती कथा जैसी कविता के लिये कोटिश: धन्यवाद।
बहुत सुंदर ताऊ जी पढ़कर आनंद गया . धन्यवाद.
ReplyDeleteक्या गहरी बात कही है ताऊजी। बिल्कुल अन्दाज़े-निराला। अरे इसमें भी आदरणीय सीमाजी हैं, बहुत आभार उनका भी। मेरा हमसाया बहुत बेहतर बन पड़ी है ताऊ। रामराम।
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteहो सकता है, कि शेर चुनाव में खडा़ हो रहा हो, और खरगोश को दो दिन में वोट करना हो.
सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह डाली।
ReplyDeleteजबरदस्त कविता।
ReplyDeleteफ़ोटो भी बडी लाजवाब।
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