युगों पुराना मेरा अहंकार
जरासी चोट लगते ही
क्यों गुंजायमान हो गया
जब जब विराट हुआ
मेरी विजय का मान होता रहा
दो कौडी का ये अहंकार
छोटों को लताडने और
बडॊं को दिखाने के काम आता रहा
ना अस्त्र ना शस्त्र से टूटा
टूट तो एक भावुक से क्षण मे
अहम को छोड़ अंतरात्मा मे
झांका तो इस एहसास का भान हुआ
अहंकार कोरा अहंकार ही है
और टूटना इसकी नियति है.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
कहते हैं पैनी तो ऊसर मैं भी पैनी !
ReplyDeleteउसी तरह : ताऊ तो हर रस में ताऊ !
वाह ताऊ !
अहंकार कोरा अहंकार ही है
ReplyDeleteऔर टूटना इसकी नियति है.
--बहुत गहरी बात, सीमा जी.
ताऊ, आपका आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.
अहं का विसर्जन अगर जीवनान्त तक हो जाय तो शुभ ही है, पर हम इसे विसर्जित ही कहां कर पाते हैं अपनी इस गौरवपूर्ण(?) जीवन यात्रा में?
ReplyDeleteजब बुद्धि का आश्रय छोड़ मन अपनी अन्तरात्मा की गोद में ढुलक जाय तो विधाता का ममत्व वह सहज ही ग्रहण कर लेता है,
आभार सीमा जी की अर्थ-गर्भित रचना के लिये.
अब तो पक्का है कि गया हमारा प्यारा ताऊ काम से -अब यह इतनी जोरदार पोएट्री कर रहा है कि बस समझो कि किसी काम का नही रहा ! हम तो बस अब अफ़सोस ही कर सकते हैं ताऊ के इस उर्ध्वगमन पर !
ReplyDeleteअहंकार तो टूटता ही है एक दिन ! अभिव्यक्ति सशक्त रचना -दोनों जनों को बधाई !
सही विचार और सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDelete" अहंकार वीनाश की जननी है, बेहतर है समय रहते टुट जाए....सुंदर भाव ताऊ जी"
ReplyDeleteRegards
दो कौडी का ये अहंकार
ReplyDeleteछोटों को लताडने और
बडॊं को दिखाने के काम आता रहा
ek achhi kavita ke liya apka abhar Tauji.
सुन्दर.
ReplyDeleteगहरी तक उतरी ये बात ... वाकई जबरदस्त है..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगता है जब ताऊ को कविता करते देख पाता हूँ. बिल्कुल सही कहा आपने:
ReplyDeleteअहंकार कोरा अहंकार ही है
और टूटना इसकी नियति है.
बहुत बहुत शुक्रिया आपने ब्लॉग को पढ़ा और यह अच्छा लगा जान कर कि लडकियां भी नीली वर्दी में हैं वहां ..मेरी नानी ,मासी .दादा जी वहां के गांवो में बहत समय तक पढाते रहे हैं ..तब हालात बहुत खराब थे अब पढने में तो आता है कि शिक्षा प्रसार है अब वहां ..चलिए सब शुभ हो यही दुआ कर सकते हैं ..एक बार फ़िर से तहे दिल से शुक्रिया ..कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा .अपना ध्यान रखे
ReplyDeleteरंजू
अहंकार का त्याग ही आगे ले जा सकता है ..अच्छी लगी यह रचना
ReplyDeletesahi hai..mast kavita...
ReplyDeleteदो कौडी का ये अहंकार
ReplyDeleteछोटों को लताडने और
बडॊं को दिखाने के काम आता रहा।
बिल्कुल सच सोलह आने सच। एक पुलिस वाला एक रिक्शे वाले पर लगातार थपडो की बारिश कर उसे कानून की जानकारी देगा और वही एक लाल बती कार को देखकर अपनी दुम नीचे कर लेगा और आँखे पीछे कर लेगा। ये है उसका पुलिस वाले होने का अहंकार।
वास्तव में टूटना ही अहं की नियति है...
ReplyDeleteसारगर्भित रचना के लिए आपका एवं सीमा जी दोनो का आभार..........
सत्या वचन. जितनी जल्दी यह आत्म्बोध हो जाए उतना ही सुखी रहेंगे. आभार.
ReplyDeleteअहंकार ने तो बडो बडो को तोड दिया, यह अंहकार ही है जो हमे अपनो से दुर ले जाता है, बहुत सुंदर लिखा.सुबह सुबह आंखे खोल दी.
ReplyDeleteताऊ बहुत बहुत धन्यवाद,
अच्छा लगता है जब आप इस रूप में नजर आते है.....सच मानिए मुझे यही रूप प्रीतिकर है.....
ReplyDeleteजीवन के अन्तिम satya को bayaan करती है यह रचना, प्रणाम है आपको
ReplyDeleteसही विचार...
ReplyDeleteऔर सुंदर अभिव्यक्ति...
सुंदर विचार और सशक्त अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteदुनिया से अंहकार ख़त्म हो तो दुनिया बहुत अच्छी लगेगी.
बहुत ही अच्छी कविता है.
ReplyDeleteविषय भी गंभीर..अंहकार!
सच है अहंकार एक दिन टूटता है
यह बात सभी जानते हैं लेकिन बहुत ऐसे होतेहैं/हैं जिन के सर अंहकार चढा होता है.
उन को आप आसानी से पहचान सकते हैं.उन की बातों से पता चल जाता है--अरे बातों क्या -यहाँ
तक की उन के ब्लॉग से भी अंहकार की लपटें आ रही होती हैं जो पाठक को दूर भगा देती हैं!:)
मुझे तो बेहद नापसंद हैं वे सभी लोगों ,जो अंहकारी हैं.
उन के लिए नजीर अकबराबादी की कही
एक पंक्ति है--सब ठाठ धरा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा.
जय राम जी की!
युगों पुराना मेरा अहंकाahankarर
ReplyDeleteजरासी चोट लगते ही
क्यों गुंजायमान हो गया
जब जब विराट हुआ
मेरी विजय का मान होता रहा
दो कौडी का ये अहंकार
छोटों को लताडने और
बडॊं को दिखाने के काम आता रहा
अति सुन्दर
एक छोटे से कंकड़ से टुकड़े-टुकड़े हो गया,
ReplyDeleteबहुत मगरूर था, चांद पानी की गहराई में।
ताऊ रामराम
ReplyDeleteतेरी कविता पर मेरी "नो कमेंट"
बिकोज मुझे इस रसीली चीज की समझ ही नही है
वाह वाह बडा ही अच्छा लिखा हैं .
ReplyDeleteएक्सीलेण्ट सोच। अहंकार निश्चय ही भंगुर तत्व का बना है।
ReplyDeletesach kaha ahankar ki umar lambi nahi hoti,sundar rahcana
ReplyDeleteअंहकार को अच्छा पकड़ा आपने ! बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteताऊ ये नया-नवेला रूप तो गज़ब ढ़ाता जा रहा है दिनों-दिन "टूट तो एक भावुक से क्षण मे / अहम को छोड़ अंतरात्मा मे ..."
ReplyDeleteनमन ताऊ
अच्छी पोस्ट है ताऊ जी :)
ReplyDeleteअहंकार व्यक्ति को अंत में अकेला कर देता है, काफी गहन विषय दे दिया ताऊ जी आपने सोचने को।
ReplyDeleteहाय ताऊ क्या हो रिया है। सीमाजी ने तुमको बिगाड़ दिया। इत्ता।
ReplyDeleteकविता में दो कौड़ी के अहंकार की बात अच्छी लगी।
दो कौडी का अहंकार कौड़ी का तीन बना के छोड़ता है।
बहुत अ्च्छी कविता।
ReplyDeleteसही कहा अहंकार ही त्रास देता है।
ReplyDeleteदो कौडी का ये अहंकार
ReplyDeleteछोटों को लताडने और
बडॊं को दिखाने के काम आता रहा
bahut sundar ...