रात भर बर्फ़ गिरती रही
सुबह जब बाहर झांका तो
नजरें अवाक और दिल परेशान
सडक किनारे का दृश्य
एक गरीब बुढी मां की
चिथडों मे लिपटी 'हिम प्रतिमा'
सारा दिन भीड उस
कुदरत निर्मित प्रतिमा को
देखने आती रही
तभी मैने किसी को कहते सुना
कल की बर्फ़ीली रात
बुढिया सर छुपाने की
जगह मांगती फ़िर रही थी !
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
:-(
ReplyDeleteबर्फीली प्रतिमा के पीछे ऐसी दर्दनाक कहानी सुनकर फिर इन्सान की बेबसी पे रोना आया --
बर्फ की बनने के बाद तो देखाने वालों की भीड़ लग गई लेकिन रात भर किसी को उस पर दया नही आई न ही उसका दर्द सुनने को किसी के पास समय ही रहा होगा !
ReplyDeleteबड़ी दुखभरी कविता है मगर सोचने को बाध्य करती है कि इसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या किया जाय.
ReplyDelete:}
ReplyDeleteतभी मैने किसी को कहते सुना
ReplyDeleteकल की बर्फ़ीली रात
बुढिया सर छुपाने की
जगह मांगती फ़िर रही थी !
""सोचने पर मजबूर करते शब्द...काश बुढी मां को आसरा मिला होता "
regards
ye manavta ke girte huye chritar ki prakashthh hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर. हमें मक्सिम गोर्की के ज़माने की याद दिला रही है.
ReplyDeleteबेहद दर्द भरी दास्ताँ कहती कविता.
ReplyDeleteऐसे संवेदनहीन समाज पर लानत है जो सिर्फ़ तमाशाई बनना जानता है.
दुख भरी कहानी...
ReplyDeleteइतनी सुंदर गुडिया...बुढिया और किसी ने पनाह नहीं दी.... बहुत नाइन्साफी है रे सांबा...
ReplyDeleteकाश ये दर्द कोई समझा होता..:(
ReplyDeleteदुखद !
ReplyDeleteताऊ रामराम,
ReplyDeleteलगता है कि आपको बर्फ देखने की बहुत ही उतावली हो रही है. शायद सोच रहे होंगे कि पहाडों पर पता नहीं बर्फ कब गिरेगी, ये कविता छापकर ही मन बहला लूं.
ये कविता तो सैम ने नहीं लिखी, ना ही तुम्हारी लिखी हुई है. जिसने भी लिखी है बढ़िया लिखी है, एकदम मस्त.
संवेदना जगाती.
ReplyDeletebahut sundar...har ek shabd main ek ehsaas jagaati hui...
ReplyDeleteबहुत दुखद ..तमाशा देखने सभी आते हैं
ReplyDeletebahut marmik rachana
ReplyDeleteबेहद दुखद एवं शर्मनाक
ReplyDeleteदर्दनाक। सोचने को मजबूर करती कविता।
ReplyDeleteताऊ ये सरासर नाइंसाफी है...कभी खुल कर हँसा देते हो और कभी आँखें नम करवाते हो..
ReplyDeleteअच्छे शब्दों का अच्छा संयोजन मगर
नया साल आपको मंगलमय हो
ReplyDeleteEk behad dukhad satya
ReplyDeleteबहुत ही भावुक लगी आप की कविता, क्या हमारे बुजुर्गो का ओर उस के बाद हमारा भी यही हाल होगा?? क्योकि ब्च्चे भी तो हमारे ही कदमो पर चलेगे???
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ताऊ ओर सीमा जी का धन्यवाद
बहुत दुखद बात सुन्दर सहज शब्दों में कह दी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ये कविता तो दिल को चीरती हुई निकल गयी... आज एक दूसरे ताऊ से परिचय हुआ.. जबरदस्त
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteअप्रतिम सौन्दर्य भी
निर्मित होता है
सामाजिक विद्रूप की
विवशताओं के
हादसे से....
कितनी मासूमियत से उभारा है उस वेदना को, उस दर्द को जिसको सह पाना सबके बस मैं नही
ReplyDeleteताऊ.............बहुत मार्मिक कविता
bhavuk kar gayii aap ki rachna...sorry seema ji ki rachna...
ReplyDeleteneeraj
सुन्दर शब्द चित्र
ReplyDeleteराम राम ताऊ!
ReplyDeleteTau!...kyaa yeh bhi ek nayaa karnamaa hai?... yaa fir asali tau aise hi naram dil hai?.... kahaani dil ko chhoo gai hai!
ReplyDeleteसंवेदनाओं को अन्दर तक छू लेने वाली पोस्ट।
ReplyDeleteएक आह के सिवाय दिल से कुछ आवाज नहीं आई और आंखें भर आई बहुत मार्मिक पोस्ट
ReplyDeletecan u leave ur phone number to me???
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