खाडी युद्ध (१९९१) की एक रविवार की सुबह ! मैं अपने मकान की प्रथम मंजिल के बरामदे मे बैठ कर अखबार देख रहा था ! नीचे हमारे एक किरायेदार थे ! हमारे किरायेदार की लडकी, जो कि आल ईन्डिया रेडियो मे उदघोषिका थी, और एक शानदार आवाज की मालकिन भी !
वो ज्यादातर जलसो मे उदघोषिका रहती ही थी ! इसी कारण बडी बडी साहित्यिक हस्तियों से भी उसका मेल जोल था ! कई नामी हस्तियों का आना जाना भी था !
मेरी पत्नि और बच्चों के पास भी अपने मधुर स्वभाव के कारण ये आती ही रहती थी ! वो सीढियों से आती दिखी तो उसके पीछे एक अन्जान से सज्जन भी आते दिखे ! कोई ६० साला उम्र, सफ़ेद खादी का कुर्ता पायजामा, सफ़ेद बाल.... मैं उनकी शक्ल याद करता करता ऊठा और उनके पांव छुये ! मुझे कुछ याद नही पड रहा था कि ये कौन है ?
मैने पांव ये सोचकर छुये थे कि ये मेरे कोई दूर के रिश्तेदार होंगे जो पता पूछते २ आये होंगे और ये लडकी इनको लेकर उपर आ गई होगी !
जैसे ही मैने पांव छुये...उन्होने सकुचाकर आशिर्वाद दिया ! अब वो लडकी बोली - अरे वाह भैया ( मुझे वो भैया ही कहती थी ) आप इन्हे जानते हो ? हां मैं जानती थी कि आप तो फ़िल्मों का काम करते हो , इनको कैसे नही पहचानते होगे ?
बस उसका इतना कहना था कि मैं तुरन्त पहचान गया ! ये थे मशहूर कवि/शायर गोपाल दास जी नीरज ! जो नीरज के नाम से विख्यात हैं !
इनके कई कवि सम्मेलन/मुशायरे सुनने का सौभाग्य मिल चुका था ! आज अचानक रुबरु मेरे घर पर , मैं तो अभि्भूत हो गया !
पदमश्री (१९९१) , डाक्टरेट की उपाधि आगरा युनिवरसिटी (१९९५), पदमभुषण (२००७) एवम अन्य दुनियां भर के सम्मानो से नवाजा गया व्यक्तितव खुद चल कर मेरे घर मेरे पास खडा है ! अहोभाग्य मेरे !
जब नीरज जी इन पन्क्तियों को किसी भी मंच पर गुनगुनाते हैं -
''अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड कर सारे शहर में बरसात हुई।''
सुनने वाले भी सचमुच सावन की तरह झूम उठते हैं ।
मैने ऊठकर उन्हे कहा कि - आईये अंदर चलते हैं ड्राईंग रूम मे ! मेरा हाथ पकड कर बैठाते हुये बोले - यार क्या यहां तुम्हारी खुली हवा हम नही ले सकते क्या ? और मुझे हाथ पकड कर अपने साथ वहीं बरामदे मे बैठ गये !
उनका आने का सबब ये था कि फ़ोन उन दिनो मे भी धनी होने की निशानी ही था ! नीचे किरायेदार के पास फ़ोन नही था ! जैसा कि उन दिनो मे होता था वो भी जरुरत होने पर हमारा ही फ़ोन प्रयोग मे लाते थे ! STD बूथ वगैरह कुछ नही होते थे !
नीरज जी को कुछ जरुरी काम से मुम्बई ( तब की बम्बई ) फ़ोन करना था ! STD dial सुविधा शुरु तो हो चुकी थी पर कारगर नही थी ! सो उन्होने एक ट्रंक काल बुक करवाया और इन्तजार करते रहे !
करीब ५ घंटे बाद काल लगा और तब तक दुनिया भर की बाते होती रही ! उन्होने "नई उम्र की नई फ़सल" से लेकर " शर्मीली" फ़िल्म और अनेक फ़िल्मकारों के साथ किये गये काम के बारे मे भी बताया ! मैने उनसे पुराने फ़िल्मकारों , गीतकारों और जमाने भर की अपनी जिज्ञासाओं की झडी लगादी ! लंच भी वहीं पर साथ साथ हुआ !
मुझे काव्य या साहित्य की कोई ज्यादा समझ नही है सो हमारी ज्यादातर चर्चा फ़िल्मो के इर्द गिर्द ही रही ! उन्होने खुद मुझसे कई फ़िल्मकारो के बारे मे जानकारी ली !
एक बात मैने विशेष रुप से नोट कि कि, हर सवाल का जवाब एक शिक्षक और दार्शनिक की तरह उन्होने दिया ! उन्होने स्व.राज कपूर जी, देवानन्द जी इन सबके बारे मे बडे विस्तार पुर्वक बाते की !
मुझे ऐसा लगा कि उनके साथ बैठ कर मेरे घर मे मैं मेहमान हूं और वो मेजबान हैं ! मेरे जीवन का वो भी एक बेहतरीन दिन था ! तो यह मेरी नीरज जी से पहली मुलाकात थी !
अभी तीन दिन पहले पिछले रविवार को ८५ साल की उम्र मे भी यहां एक मुशायरे मे उन्होने शिरकत की ! तो ये पुरानी मुलाकात जेहन मे ताजी हो आई !
इस मुशायरे मे ६ हजार लोग उनको और बेकल उत्साही को सुनने आये थे ! अन्य नामचीन शायर भी शिरकत कर रहे थे !
मुशायरे में सुबह की ३ बज गई ! नीरज जी को शायद स्वास्थ्य के कारणो से नही बोलने दिया गया ! अस्वस्थ भी वो दिखाई दे ही रहे थे ! सुबह जल्दी उनको फ़्लाईट भी पकडनी थी ! पर जनता नाराज थी ! खैर ये एक अलग विवाद रहा ! इससे हमे क्या लेना देना ? श्रोतागण सुबह के ३ बजे तक उनका इन्तजार करके निराश हो चुके थे और ऊठ कर जाने लगे थे कि अचानक बेकल उत्साही साहब ने माईक पर एक शेर पढ कर माईक नीरज जी के हाथॊं मे यह कहते हुये थमा दिया कि लो नीरज जवाब दो !
ये क्या हुआ ? श्रोता जो जहां चल कर लौट रहा था वहीं ठहर गया ! सबने कुर्सियां संभाल ली ! और सबने इस हाजिर जवाबी का लुत्फ़ उठाया ! आप भी ऊठाइये !
बेकल साहब के सवाल मे नीरज जी ने ये जवाब दिया -
बादलों से सलाम लेता हूं, वक्त को थाम लेता हूं
मौत मर जाती है पल भर के लिये, जब मैं हाथों से जाम लेता हूं !
इस पर बेकल साहब ने कहा -
अपनी मस्ती की शाम मत देना, दोस्तो को यह काम मत देना !
जिसको पीने की तमीज न हो, उसके हाथों मे यह जाम मत देना !
नीरज जी ने इसके जवाब मे कहा -
इतने बदनाम न हुए हम तो इस जमाने मे,
तुमको सदियां लग जायेंगी मुझे भुलाने में
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर,
ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में
देर तक ऐसे ही सवाल जवाब का सिल्सिला चला और फ़िर नीरज जी बोले - बेकल साहब, आप कहे, फ़िर मैं एक गीत सुनाकर विदा लूंगा !
पर वो गीत नही सुना पाये ! शायद उनकी तबियत नासाज हो गई थी या फ़िर फ़्लाईट पकडने का समय हो चुका था ! नीरज जी को लाईव सुनना एक खुशगवार अनुभव होता है ! ईश्वर उनको स्वस्थ लंबी उम्र दे और हमें फ़िर उन्हे लाईव सुनने का मौका दे !
इब खूंटे पै पढो :- ताऊ के बाबू (पिताजी) नै ताऊ को दो झापड रसीद किये ! ताऊ ने प्रश्नसुचक दृष्टि से बाबू की तरफ़ देखा ! बाबू ने और दो तमाचे लगा दिये ! भाटिया जी वहीं खडे थे ! उन्होने पूछा - बाबूजी आप इसको (ताऊ) बिना मतलब मार क्यों रहे हो ? आखिर इसकी गल्ती क्या है ? ताऊ का बाबू बोल्या - अरे भाई भाटिया तैं जाणै कोनी इसनै ! यो घणा कपूत और ऊत छोरा सै ! आज इसका रिजल्ट आवैगा और यो पक्के से फ़ेल होवैगा ! अब मैं तो हर काम एडवान्स मे करता हूं ! सो इसकी ठुकाई भी एडवान्स मे ही कर रहा हूं पिछले तीन दिनों से ! अक्सर महान लोग कोई भी काम कल के लिये पेंडिन्ग नही छोडते ! और ताऊ को इनिशियल एडवांटेज देते हुये दो चार झापड और रसीद कर दिये ! |
"इतने बदनाम न हुए हम तो इस जमाने मे, तुमको सदियां लग जायेंगी मुझे भुलाने में न पीने का सलीका न पिलाने आ शऊर, ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में"
ReplyDelete****MIND BLOWING
TAAUJI KI JAI HO.....
आप तो बहुत भाग्यशाली हैं ताऊ जो इस महान शख्शियत के साथ आप ने पूरा एक दिन गुजारा -अब तो नीरज एक जीवित दंतकथा बन चुके हैं !
ReplyDeletetaauji aapko slaam
ReplyDeleteअरे ताऊजी , ये तो श्रेध्धेय नीरज जी पुराण " का प्रथम भाग ही सुनवाया आपने
ReplyDeleteआपकी ५ घँटे चली बातोँ को भी सुनवायेँ ये भाग बहुत अच्छा रहा -
- लावण्या
नीरज जी के साथ बिताया दिन हमेशा के लिए यादगार बन चुका होगा आप के लिए। मगर जिस कदर उन्हों ने पी है उन का 85 तक जी लेना चिकित्सकों के लिए आठवाँ आश्चर्य हो सकता है। मेरे लिए तो है ही। लगता है उन्हों ने जितनी पी उस से कई गुना पाठकों और श्रोताओं में कविता में तब्दील कर बांट दी इसीलिए उन पर बेअसर रही।
ReplyDeleteधन्य हैं आप, ताऊ.
ReplyDeleteबहुत खुशनसीब है ताऊ आप..
ReplyDelete''अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
ReplyDeleteमेरा घर छोड कर सारे शहर में बरसात हुई।''
" बहुत खुबसुरत , नीरज जी जैसे महान हस्ती से रूबरू करने का शुक्रिया , आपकी उनसे मुलाकात का द्रश्य जैसे हर शब्द में जीवित हो उठा है..."
Regards
bahut accha sansmaran likha taau. magar han us 5 ghante ki mulakaat ke bare me aur to bataiye.
ReplyDeletekhoonta jhannatedaar tha :D
नीरज जी से आपकी मुलाकात के बारे में पढ़कर बड़ा अच्छा लगा. हमने सन १९५९ में एक किताब खरीदी थी "नीरज की पाती" और तब से हम भी उनके पंखे बन गये. खूँटे पे ई ससुरा इनिशियल अड्वॅंटेज बड़ा जालिम है.
ReplyDeleteअब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
ReplyDeleteमेरा घर छोड कर सारे शहर में बरसात हुई।
@ दिनेशराय द्विवेदी जी साहब,
ReplyDeleteशायद आपकी बातो का जवाब खुद नीरज जी ने ही दे दिया है ! मैं क्या जवाब दूं ?
ताऊ आप भाग्यशाली हैं जो नीरज जी से रूबरू मिले . और आपको इनीशियल एडवाण्टेज भी मिल गया . पिछले कुछ दिनों से कुछ लोग परेशान हैं कि उन्हें इनीशियल एडवाण्टेज न मिल सका .
ReplyDeleteवैसे आजके दोनों खण्ड एक से बढकर एक हैं .
इब राम राम !
यह एस टी डी का न होना तो आपके लिए बहुत भाग्यशाली रहा। हम इनिशियल एडवान्टेज़ के बिना मजे में जी लेंगे और जी रहे हैं। ऐसा इनिशियल एडवान्टेज़ हर कोई नहीं पचा सकता।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
वाह ताऊ....नीरज जी और बेकल उत्साही साहब का वार्तालाप पढ़ कर मज़ा आ गया....सही में आप बहुत भाग्यशाली हैं की आपको उनके साथ वक्त बिताने का मौका मिला...
ReplyDeleteबहुत शानदार पोस्ट है. आप बहुत भाग्यशाली हैं जो नीरज जी के साथ इतना समय बिताया.
ReplyDeleteneeraj ji se mulakaat rochak aur romanchak lagi.......
ReplyDeletebin mange moti mile, mange mile na choon
ReplyDeleteek aap hai.n jinki chhat par Neeraj Ji atithi bankar bina tithi bataye aa gaye...aur ek ham hai.n jo us din ke intazaar me hai.m ki kab aaye.nge Raam....!???
aapki khuskismati ko badhaai
Neeraj ji ke sath apki mulakat to vaki yaadgar hai.
ReplyDeleteबडे ही किस्मतवाले हैं आप जो कविवर नीरज जी के साथ समय गुजारा और उन्हें सुना भी.
ReplyDelete-
खूंटे पर- कल भी 'ताऊ ने थानेदार वाला अपना काम एडवांस में किया और आज घर में बालक बना एडवांस में पिट रहा है--अब समझ आया ये एडवांस में काम करने की आदत कहाँ से पड़ी!
muakkat bahut yaadgar rahi aur advnce mein pitayi bhi :);)
ReplyDeleteनीरज जी वाला संस्मरन बहुत पसन्द आया। और यह भी अच्छा लगा कि आपको बाल्यकाल से इनीशियल एडवाण्टेज मिलता रहा है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी मुलाकात रही आपकी नीरज जी से ..बढ़िया
ReplyDeleteशानदार पोस्ट।इनीशियल एड्वांटेज पाने मे तो हम रिकार्ड होल्डर है।
ReplyDeleteवाह आप तो किस्मत वाले है जी जो नीरज जी से मुलाकात हो गई। हमने भी कई बार सुना इन्हें मुशायरों में। अबकी बार शायद मार्डन स्कूल में भी आए हुए थे। लगता है फोटो भी वही से हैं।
ReplyDeleteअब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड कर सारे शहर में बरसात हुई।''
ताउ तो आजकल हर जगह छाया है, नीरज जी से लेकर चिटठा चर्चा तक।
ReplyDeleteवाह ! आपके इस सस्मरण ने तो हमें भी रोमांचित कर दिया....
ReplyDeleteगुणी लोगों की संगति और आशीर्वाद बडभागी को ही मिलती है.
बहुत बहुत सुंदर इस पोस्ट के लिए आपका आभार.
संस्मरण अच्छा लगा। ज्ञानदत्त जी ने अपनी पोस्ट के समान "इनीशियल एडवाण्टेज" शब्द पर भी कापीराइट लिया होता तो अच्छी रायल्टी मिल गई होती!
ReplyDeleteनीरज जी की लम्बी उम्र की दुआ पर मुझे निदा फाज़ली का एक शेर याद आ गया--
ReplyDeleteगुज़रो जो बाग से तो दुआ मांगते चले
जिसमें खिले है फुल वो डाली हरी रहे।
नीरज जी ने सुंदर कविताओं के फूल इस साहित्यिक उपवन में खिलाए। हम इस डाळी को हरी रहने की दुआ करते हैं।
नीरज जी के साथ गुजारे पल धरोहर हैं आप की
ReplyDeleteभाग्यशाली हैं आप
खूंटे का किस्सा जोरदार से
मज़ा आ ग्यो
ReplyDeleteद्विवेदी जी का प्रश्न मेरा भी प्रश्न था..
मैंने उनको सहारा देकर कमरे में पहुँचाया था..
और वह भद्दी भद्दी गालियाँ बुदबुदाते हुये सो गये थे !
और मूझे बड़ी अश्रद्धा हुई थी, उस दिन !
सचबयानी का खेद काहे ?
ताऊ जी बस नमन करने चली आई ...आज कल काफी चर्चे में जो हैं...!
ReplyDeleteताऊ खूँटे से बड़ी बाँध दी तूने, और रही नीरज की मुलाक़ात तो म्हारी भी करवा दो बदले में हर लेखण में टिप्पियाँ दूँगा, बोलो मंजूर!
ReplyDeleteक्रिस्मस और नववर्ष आपके जीवन में आनन्द और उल्लास लेकर आये
http://prajapativinay.blogspot.com
अपनी मस्ती की शाम मत देना, दोस्तो को यह काम मत देना !
ReplyDeleteजिसको पीने की तमीज न हो, उसके हाथों मे यह जाम मत देना !
बहुत खुब ताउ, यह जिन्दगी भी कितनी आजीब है पता नही कोन कब कहा मिल जाये ?? आप की यह सुंदर मुलाकत याद रहेगे हमे, आप आओ यहां हमारे पास परिवार के साथ तब तक दोनो लडको को मै अच्छी तरह से ड्राईबिग सिखा दुगां फ़िर जहां चाहो घुमाना ,्नीरज जी के सभी शेर बहुत ही गहरे भाव लिये है
धन्यवाद
जलन हो रही है आपसे ताऊ....ये सुलगता धुंआ पहुंच तो नहीं रहा आप तक
ReplyDeleteमुशायरे का तनिक विस्तार से तो वर्णन कर देते
I am regretting that I was not present on that day in Indore.
ReplyDeleteI certainly missed it, but replenished a bit by your post.
Thanks.