प्रत्येक मनुष्य जीवन मे कुछ ना कुछ सोचता रहता है ! कुछ लोग कविता के रुप मे अपने को अभिव्यक्त कर लेते हैं ! कुछ मुझ जैसे लोग सिर्फ़ रफ़ पन्नों पर डूडल्स के जैसे अपने मनोभावों को व्यक्त करके उनको इतिहास के पन्नों मे दफ़न कर देते हैं हमेशा के लिये !
मैने भी ऐसे ही कुछ डुडल्स के रुप मे अपने भाव, मेरी डायरियों मे समय समय पर बेतरतीब रुप से लिख रखे हैं ! उनमे से चंद कविताएं मैने सुश्री सीमा गुप्ता जी को ठीक करने के लिये भेजी थी ! जो उन्होने बडे अनुग्रह पुर्वक ठीक करके भेजी हैं ! मैं उनका बहुत आभारी हूं ! बिना उनके मार्गदर्शन के ये कविताएं यहां तक इस रुप मे पहुंचना मुश्किल था !
ये मेरी पहली कविता है हवा और चांदनी
रात के आँचल तले,
खिड़की दरवाजों को सुला
खामोशी की चादर में सिमटा
ख्बाबों मे खोया था
कांच की खिड़की पे
चुपके से कदम रख
चाँद की चांदनी
मेरे पास उतर आई
और असहाय हवा
सारी रात दरवाजे पर खडी
दस्तक देती रही....
( मार्गदर्शन हेतु माननिया सीमा गुप्ता जी का आभार )
गज़ब की अभिव्यक्ति! क्या कहूं पी सी भाई साहेब, बहुत गज़ब की रचना है. जिस समय मैं यह कमेन्ट लिख रहा हूँ, घर के बाहर का तापक्रम शून्य सी १४ डिग्री नीचे है - बर्फीली रात में ठंडी हवा ज़ोर सी दरवाज़ा पर दस्तक दे रही है और सीटियाँ भी बजा रही है - ऐसे में आपकी कविता बहुत ही सही दिख रही है.
ReplyDeleteताऊ रामराम,
ReplyDeleteताऊ, थारे मुहँ से भैंस कथा ही शोभा देती है. तम् कहाँ ये कवि बनने चले हो?
वैसे बढ़िया प्रयास.
राम राम ताऊ जी,
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है. सीमाजी का आभार के हमारे प्यारे ताऊ ने कविता को भी अपने शानदार लेखन
में स्थान देना प्रारम्भ कर दिया. स्वागत ताऊजी.
कांच की खिड़की पे
ReplyDeleteचुपके से कदम रख
चाँद की चांदनी
मेरे पास उतर आई
" ताऊ जी बेहद नाजुक और सुंदर भावनाओ की अभिव्यक्ति, भावः और शब्द तो आपके ही हैं ...हम तो सोच भी नही सकते थे की ताऊ जी भी कविता लिख सकतें हैं और भी इतनी शानदार भावनाओ की ....शुभकामनाये .."
Regards
ताऊ तेरे रूप अनेक.....इस नये रूप ने तो अचंभित कर दिया और
ReplyDelete"असहाय हवा
सारी रात दरवाजे पर खडी
दस्तक देती रही.." का जो ट्विस्ट दिया है अंत में,वो तो क्या कहने
taau, ab aap bhi kavita karne lagoge, aur wo bhi itni acchi to ham becharon ko kaun padhega.
ReplyDeletekamal ki likhi hai kavita...badhai badhai.
Bahut mast likha hai taau....subeh subeh itni acchi kavita phadne ko mili...
ReplyDeleteताऊ राम राम
ReplyDeleteआपके धोरे इतना संजीदा कलम है, पता कोंन्ये था
इब कविता लिख्नना हि सुरू करो
थारे दिल मा तो घंनी संवेदना भरी है
या तो गलत बात स ताऊ,बा बिचारी रात भर दरवाजे प खड़ी रई और तं चादर तान कै सोता रैया...
ReplyDeleteकविता लिखना सभी के बस की बात नही मगर आप इस में भी परफ़ेक्ट हैं ताऊ...
धन्यवाद हमारी ओर से भी सीमाजी को...उन्होने ताऊ की लट्ठ मार(शायद ऎसी ही रही हो) कविता को कोमल हृदय स्पर्शी बना दिया...
वाह आप तो कविता भी बहुत अच्छी लिखते हैं ..बढ़िया लिखी है
ReplyDeleteमाफ करणा ताऊ ई सब हमरे पल्ले नी पड़ता. बाकी जोरदार ही लिखा होगा.
ReplyDeleteताऊ ये कविता भी जोरदार लिखी अबकी भेंस वाली बात भी कविता में लिखना ! मजा आ जाएगा ! वैसे भी थारी भैंस चाँद से लौटने के बाद कुछ कविता तो करण लागगी होगी ही |
ReplyDeleteTauji aap to Kavita bhi achhi likh leto ho.
ReplyDeleteWaise bahdur ab thik hai aur apna kaam karna wapas shuru kar diya hai.
आपका ये रूप भी अच्छा लगा ,एक अच्छे इंसान तो आप है ही ....
ReplyDeleteताऊ का यो रूप घणा पसन्द आया.बडी जोरदार कविता कह दी.
ReplyDeleteमणै तो यूं लागै के कदी ताऊ का 'भाई योगिन्द्र मोदगिल'के कम्पीटीशन मे खडै होण का विचार सै.
गद्य,पद्य,हास्य,व्यंग्य,लेखन अर इब कविता,जै सारे धंध्यां मैं इ टांग फसां दी ते बाकी बलागर तैं बेचारे भूख्यां मर जयांगें.
बहुत सुन्दर! हमें ज्ञात है कि आप में बहुमुखी प्रतिभा है।
ReplyDeleteकांच की खिड़की पे
ReplyDeleteचुपके से कदम रख.....
कमाल कर दिया ताऊ जी आपने तो. कविता भी अच्छी लगी आपकी.
चाँद की चांदनी
ReplyDeleteमेरे पास उतर आई
और असहाय हवा
सारी रात दरवाजे पर खडी
दस्तक देती रही....
बस ताऊ आज तो तिवारी साहब का सलाम ले लो ! आपकी आज तक की सुन्दरतम रचना !
अरे वाह वाह ताऊ ! आपका ये रुप भी है ? मजा आगया ! कुछ बात तो है आपकी कविता में ! बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ताऊ इस नए रुप से परिचय करवाने के लिये !
ReplyDeleteलाजवाब लगी आपकी यह रचना !
कविता रूपी चांदनी की कोमलता ने तन-मन को सराबोर कर दिया।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।
wah tau aap to kavita bhi bahut achche likhte hai!
ReplyDeleteram ram!
अरे वाह ताऊ इस लट्ठमार के पहलू में एक दिल भी धड़कता है ? है तो बेहतरीन यह कविता पर इसका श्रेय किसे है सीमा जी को न ?
ReplyDeleteताऊऊऊऊऊऊ......! कविता में भी लट्ठमारी?
ReplyDeleteअरे ताऊ यह जुल्म मत करो, आप का लठ्ठ ही चले अच्छा है कभी मिल गये तो दो चार लठ्ठ तो खा सकते है लेकिन कविता....एक तो इतनी अच्छी कविता लिख दी लेनिक साथ मे झुठ भी ध्यान से देखो दरवाजा तो खुला हुआ है, ओर फ़िर इतनी सर्दी मे चादर ओड कर सोये, ओर वो बेचारी दरवाजे पर ठिठुरती रही, आप की कविता को भी सर्दी लग रही है.
ReplyDeleteराम राम जी की
बहुत ही सुंदर भाव लिए है यह कविता.
ReplyDeleteचित्र भी अच्छा है.
ताऊ जी के लोकप्रिय ताऊ प्रसंगों से हट कर उन का एक नया कोमल पक्ष भी दिखायी दिया.
पहली कविता की सफल प्रस्तुति पर आप को बधाई..
बढ़िया कविता लिखी है। थोड़े से शब्दों में इतनी सुन्दर कविता ! वाह!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
क्या बात है। ठिठुरा दिया न आपने हवा को इस भयंकर जाड़े में। सीमाजी हमारी भी कवितायें ठीक करके लौटायें ताकि हम भी उसे पोस्ट कर सकें। :)
ReplyDeleteतौऊ आप तौ अछै अछै कबियन का चारौ कोना चित्त कै दिहो ,ज्वान लागे रहा
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