पंडित भीमसेन जी जोशी को पुरानी पीढी के लोग " रघुवर तुमको मेरी लाज " से जानते हैं तो आज की नई पीढी "मिले सुर मेरा-तुम्हारा" के जरिये इस आवाज को उन तमाम आवाजो की भीड़ में अलग से पहचान लेती है ! ११ साल की उम्र में बिना बताये संगीत सीखने के लिए घर छोड़ कर भाग जाने वाले की आवाज में इतना दम है की ग्यारह साल के बच्चे भी सुनने लगते है ! और नही जानते की क्या गाया जा रहा है ? मगर जो भी आवाज आ रही है वो कान को ही नही बल्कि पूरी रूह को शुकून दे रही है ! पंडितजी जब सुर लगाते हैं तो सुनने वालो को कान पर हाथ लगाने का मन होता है की हम इस लायक हैं भी या नही जो पंडितजी को सुन सके ? इस दैवीय सुर को सुनने का जिसको भी अवसर मिला वो धन्य हो गया !
दादा गायक, पिता शिक्षक ! जन्म बगलकोट ( हुबली ) ! गाँव में एक बरात जा रही थी ! उसके पीछे पीछे, बजती शहनाई के सुर सुनते २ दुसरे गाँव चले गए ! घर वाले , पुलिस वाले ढूंढ़ ढूंढ़ कर परेशान ! आखिर कोई ने खबर दी की पास के गाँव में देखे गए थे ! वहाँ के थाने पर सोते हुए मिले ! पिताजी ने जगाया और घर ले आए ! सुबह डांट फटकार कर पिता जी ने उनकी कमीज पर ये वाक्य लिखवा दिया की - ये लड़का कहीं गुम हो जाए तो इसे निम्न पते पर पहुंचाने की कृपा करे ! पता लिखा था - गुरुराज जोशी, मुख्य अध्यापक, बगलकोट !
इस बालक को मस्जिद की अजान में भी संगीत के सुर सुनाई देते थे !
बचपन से गाने के लिए ये दीवानगी थी ! नौ साल की उम्र में आजादी के आन्दोलन के दौरान नेहरूजी और गांधीजी बगलकोट आए थे ! वहाँ कार्यक्रम में बन्दे मातरम् का गायन कौन करेगा ? यही समस्या आ रही थी ! अब भीमसेन जी ( नो वर्षीय बालक ) ने कहा की मुझे पेटी (हारमोनियम) दिलवा दो तो मैं गा दूंगा ! सब लोग हंसने लगे की ये बालक क्या गायेगा ? ! पर बालक ने फ़िर जिद्द पूर्वक कहा की बस मुझे पेटी दिलवा दो फ़िर देखना ! गाँव वाले मजबूर थे सो क्या करते ? उनके लिए पेटी का इंतजाम किया गया !
नौ साल के बालक ने "बन्दे मातरम्" गाना शुरू किया तो नेहरूजी और गांधी जी ने बालक को गोद में उठा लिया और पूछने लगे शास्त्रीय संगीत कहाँ सीखते हो ? बालक भीमसेन जी बोले - मस्जिद की अजान और शहनाई की आवाज से कुछ कुछ सीख गया हूँ ! बाद में गांधीजी ने १९३१ में अहिंसा आन्दोलन चलाया , उसमे भी इनको बुलवाया गया और तभी से पंडित जी के संगीत का सफर शुरू हो गया !
संगीत की प्राथमिक शिक्षा उनकी जालंधर में हुई ! ११ साल की उम्र में बिना टिकट रेल में सवार हो लिए ! टी.सी. द्वारा टिकट मांगे जाने पर उनको भी सुरों में उतार दिया ! टी.सी. साहब के कहने पर भगत जी के यहाँ चले गए ! पंजाब में भगत जी की शास्त्रीय संगीत में तूती बोलती थी ! वहाँ जाकर बोले की गाना सीखना है ! भगत जी ने पूछा की यहाँ आए कैसे ? बालक ने कहा - बगैर टिकट आया हूँ ! फ़िर भगत जी ने कहा की- मेरे पास रहने की जगह नही है ! बालक बोला - आप तो मुझे गाना सिखाये , रहने का इंतजाम मैं कर लूंगा ! भगत जी ने इस विलक्षण प्रतिभा के धनी बालक को सिखाना शुरू किया ! रात को रहने का ठीकाना खोजने लगे तो भगत जी के घर के सामने ही एक ढाबा था वहाँ पर ही सो गए ! और जितने भी दिन ये जालंधर में रहे उसी ढाबे की शरणागत रहे ! कल इस बालक को भारत रत्न से नवाजा गया !
आप ये मत समझियेगा की मैं कोई संगीत का बहुत बड़ा जानकार हूँ ! नही मैं तो अपने दुःख में और सुख में पंडित जी को सुन कर स्वर्गिक आनंद में पहुँच जाता हूँ ! आज सोचा पंडितजी को मेरे ब्लॉग के द्वारा भी प्रणाम करू ! मैंने सोचा आज ओबामा पर भी ब्लॉग जगत में चर्चा दिखी तो पंडित भीमसेन जी जोशी, जो की भारत रत्न के बजाए मेरी दृष्टी में विश्व रत्न हैं पर मैं ही कुछ कह दूँ ! इन प्रात: स्मरणीय विश्वरत्न को मेरे प्रणाम !
जी वे इस सम्मान के पूरे हक़दार है .ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे
ReplyDeleteआपको पँडितजी से मिलने का वाकया सुनाऊँ ?
ReplyDeleteबहुत सुँदर पोस्ट लिखी है आपने
पँडित भीमसेन जोशी जी पर -
वाकई वे विश्वरत्न हैँ -
सँगीत ईश्वर की आराधना है -
ऐसा समर्पण ही
उन्हेँ परमात्मा से
जोडे रखता है -
मेरी भेँट
"राम श्याम गुण गान "
की सी.डी. रीलीज़ के समय
उनसे हुई थी --
पापाजी ने गीत रचे और लतादी व पँडितजी ने उन्हेँ गाया था -
उसी केसेट से
"सुमति सीता राम "
"बाजे रे मुरलिया बाजे "
"राम का गुणगान करीये "
उनके सिँह घोष से स्वरोँ मेँ सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है :-)
- लावण्या
@ लावण्याजी .. आप धन्य हैं ! जो पंडित जी का सानिंध्य आपको मिला ! एक मात्र यही सी.डी.. मेरी कार के प्लेयर में रहती है ! पंडित जी से उनके प्रोग्रामो के दौरान मिलना हुआ है ! उनका गायन दुःख और सुख को सम पर ले आता है ! जब भी कभी इन परिस्थियों का सामना होता है ! पंडित जी की शरण में पहुँच कर शांत हो जाता हूँ ! आपका बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteभई ताउजी, माफ करियो म्हारे को। म्हारी समझ में तो ताउ को लठिया और हुक्का ही प्यारा लगे लेकिन म्हारा ताउ तो सुरों के सागर में गोता लगा रिया है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट। बधाई। पंडित जी को कई बार सीधे-सीधे सुनने का मौका मिला है। जब वह राग दरबारी, भैरवी या अडाना गाते हैं तो दिल और दिमाग एक हो जाते हैं।
पण्डित भीमसेन जोशी जी को सुनना तो अलौकिक अनुभव है। आपने उनपर लिख कर बहुत अच्छा किया। उनका स्मरण ही आनन्ददायक है!
ReplyDeleteहॉस्टल में आर्ट-ड्रॉयिंग के सर सुबह-सुबह पं.भीमसेन जोशी का भजन सुनाया करते थे। स्पीकर हमारे डॉरमेट्री में लगा होता था, यही सुनते-सुनते हम सभी उठा करते थे। छठी क्लास में साल भर इसे सुनता रहा,शास्त्रीय संगीत की समझ बच्चों को तो होती नहीं,सो जिस संगीत का हम तब मजाक उड़ाते हैं आज उसी संगीत को तन्मय होकर सुनते हैं।
ReplyDelete(ताऊ जी क्या आपके पास उनका ये भजन है-
''ये तनु मुण्डना वै मुण्डना, आखिर मिट्टी में मिल जाना....'' अगर हो तो कभी पोस्ट के रूप में मग्गा बाबा चिट्ठाश्रम में प्रस्तुत करें, सुनकर कृतज्ञ रहूँगा)
भारत रत्न पंडित भीमसेन जी जोशी , इसे कहते है लगन, ओर इन्हे लगन ऎसी लगी की उसी के दिवाने होगये, शायद उन्हे पता भी ना चला हो की वह भारत मां के एक होनहार बेटे बन गये है
ReplyDeleteमस्जिद की अजान में भी संगीत के सुर सुनाई देते थे !अरे वाह क्या बात है, मै इने शत शत प्राणाम करता हू.
आप का भी धन्यवाद
वाह ताऊ ये तो आपने बहुत अच्छा किया जो सुरों के इस बादशाह के बारे में रोचक प्रसंग सुनाये -मिले सुर मेरा तुम्हारा ! इस मधुर मेघवानी ने सारे भारत को एक सूत्र में बाधा है -आपकी कलासकी मौसिकी में रूचि जान कर अच्छाकलगा ! आपकी बदौलत हम भी आदरणीय -प्रातः पूजनीय संगीत गुरू पंडित भीमसेन जोशी को भारत रत्न मिलने पर उन्हें बधाई देता है -दरअसल यह भारत रत्न अलंकरण का सम्मान है जो पंडित जी को मिलकर ख़ुद सम्मानित हुआ है
ReplyDeleteवाह वाह....
ReplyDeleteताऊ दि ग्रेट...
पण्डित भीम सेन जोशी तो प्रणम्य हैं ही..
मैं अपने विद्वान सुविग्य एवं पारखी ताऊ को भी प्रणाम करता हूं..
वाह...
वे तो आपने काम से पहले ही भारत रत्न थे। अब उन्हें सम्मान दे कर सम्मान देने वाले खुद सम्मानित हो रहे हैं।
ReplyDeleteआपने इतनी सारी जानकारी दी, पढ़कर बहुत अच्छा लगा । धन्यवाद । भीमसेन जी को मेरा भी नमन ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आपका बहुत शुक्रिया....बचपन से जब से होश संभाला,पिताजी को इन्हीं को सुनते पाया.साल-दर-साल इस जबर्दस्त आवाज का इतना आदि हो गया हूँ,कि दिन की शुरुआत इस आवाज से ना हो तो कुछ खाली-सा लगने लगता है.
ReplyDeleteइस लेख के लिये दिल से धन्यवाद.
दो-तीन दिनों से कोशिश में था आपके ब्लौग पर दृष्टी-पात करने को मगर सफलता नहीं मिल रही थी.
पँडितजी को इस सम्मान पर बधाई और आपको इतनी जानकारी के लिए बहुत धन्यवाद. अपनी तो ज़िंदगी ही उनके भजन सुनते हुए गुज़री है.
ReplyDelete" wonderful artical about Pndt. Bheemsen jee, what a detaild description about his achievements .... thanks for sharing and congratulations to Pndt jee.."
ReplyDeleteRegards
नमन है !
ReplyDeleteएक अच्छा आलेख है यह उनकी "हरि आओ "और रघुवर तुमको मेरी लाज मै आज भी सुनता हुँ !!
ReplyDeleteमैं वैसे ज्यादा नही जानता हूँ इनके बारें में। पर स्कूल टाईम से "मिले सुर मेरा-तुम्हारा" के जरिये" ही कुछ जान पहचान हैं। आपने इनके कुछ पहलू से अवगत कराया, पढकर अच्छा लगा। ये हमारे देश की शान हैं।
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