आजकल के वर्क कल्चर में ज्ञान का काफी महत्त्व है ! और उसकी कद्र भी की जाती है ! ऐसे में हम काम के बोझ से दब कर ना तो रचनात्मक सोच पाते है और ना ही कुछ रचनात्मक काम कर पाते है ! दिन भर में असंख्य इ-मेल, फोन काल्स और मीटिंग्स हमारी उत्कृष्ट विचार शक्ति को मौका ही नही देते ! ऐसे में कई कंपनियों ने इन इ-मेल, फोन काल्स से रहित कुछ ऐसे कमरे बनाना शुरू कर दिए हैं जहाँ पर रचनात्मक सोच के लिए कर्मचारी अपना कुछ समय बिता सके ! इन कमरों को व्हाईट स्पेस या क्रियेटिव रूम्स की संज्ञा दी गई है ! और आई .बी. एम. जैसी कंपनियों ने तो शुक्रवार को थिंक-फ्राइडे ही घोषित किया हुआ है ! ताकि कर्मचारी विभिन्न मसलों पर सोच-विचार कर सके ! इसी विचार से मिलते जुलते एक समृद्ध सोच वाले मेरे मित्र डा. बी. पी. साहनी अरुण से आपका परिचय करवाऊं ! उम्मीद करता हूँ उनका आइडिया आपके जीवन में भी एक सकारात्मक सोच पैदा करने में अवश्य कामयाब होगा ! |
डा. बी. पी. साहनी अरुण से मिलने के पहले मेरी इतनी व्यस्ततम दिनचर्या थी की मैं आज उस समय पर हंस ही सकता हूँ ! मेरे आफिस में डाक्टर साहब अपने किसी काम से आए हुए थे ! मेरी अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद भी मैंने उनको समय देने की पूरी कोशीश की पर डाक्टर साहब समझ गए की मैं समय के मामले में काफी तंग हाल हूँ ! मेरी बेटी अमेरिका से उन दिनों आई हुई थी ! उसके लिए भी समय मुझे बचाना पङता था ! उसकी एक साल की बच्ची का सरदी खांसी से बुरा हाल था ! मुझे घर से बताया गया की मैं डाक्टर साहब से संपर्क करके कुछ दवाई -पानी का इंतजाम करू ! उस वक्त तक मुझे डा. साहनी अरुण के होमियोपथी के भी कुशल डाक्टर होने का पता नही था ! तब तक मैं उनको IIT Kanpur से पास आउट एक शिक्षाविद और सहृदय व्यक्ति के रूप में ही जानता था !
मेरे साथ बैठे होने के कारण उन्होंने भी सारी बातें सुन ली थी ! और जाकर बच्ची को देख कर कुछ दवाइयाँ बुलवा कर दी और आश्चर्य जनक रूप से वो बिल्कुल आराम से खेलने लग गई ! बाद में तो उसका सारा इलाज ही इनकी देख रेख में चलता रहा !
उसको कोई इलर्जी से सम्बंधित तकलीफ थी !
कालांतर में डाक्टर साहब कब मेरे मित्र, बड़े भाई और पथ-प्रदर्शक बन गए ? पता ही नही चला ! डाक्टर साहब ने मुझे जिन्दगी का जो सबसे बड़ा फ़न्डा समझाया वो ये था की ईश्वर ने हमको २४ घंटे दिए हैं ! इसमे कम से कम एक या दो घंटे अपने लिए रक्खो ! इस समय को किसी के साथ भी मत बांटो ! इस समय में अपने साथ रहो ! जो पसंद की चीज करना हो करो ! खेलो, कूदो, रोओ, गाओ ! जहाँ जाना हो जाओ ! पर इन घंटो में किसी के बंधन में मत रहो ! इस समय में मोबाईल भी साथ मत रक्खो ! किसी को मत बताओ की कहाँ हो ? खेलना हो खेलो, सनीमा देखना हो तो देखो ! पर सिर्फ़ अपने लिए करो ! कहने का मतलब ये की दिन भर के समय में यह समय सिर्फ़ आपका है और इसके मालिक आप हैं ! क्यूंकि हम जिन्दगी भर दूसरो के लिए ही जीते हैं ! हमारे पास सिर्फ़ हमारे लिए ही समय नही होता !
इस तय समय में आपकी ना कोई बीबी, ना बाप , ना बेटा बेटी , सिर्फ़ मैं मेरी मर्जी का मालिक हूँ ! फ़िर आपकी जिन्दगी ही अलग हो जायेगी ! और डाक्टर साहब ने बताया की इंजीनियरिंग कालेज में पढाते हुए भी इस नियम का उन्होंने पालन किया ! और आज भी बड़ी स्वस्थ सुंदर जिन्दगी के मालिक बने हुए हैं ! डाक्टर साहब के समझाने पर मैंने भी इस बात को पिछले ४ साल से अपनाया हुआ है ! और मेरी जिन्दगी में भी आश्चर्य जनक बदलाव आया है ! ये ब्लागिंग भी उसी का नतीजा है ! मेरा जैसा खडूस और रुखा इंसान ( मेरे बारे में सम्बंधित लोग ऐसा ही कहते थे, पर अब नही ) भी आज आप लोगो के साथ ताऊ बनकर हंस पा रहा है इसमे डाक्टर साहब का भी बड़ा योगदान है !
अमूमन शाम को ५ से ७ बजे के बीच मैं इस दुनिया, घर-परिवार सबसे कट हो जाता हूँ ! मेरी मर्जी हो तो जिम चला जाता हूँ ! या कही लांग ड्राइव पर जाकर रोड किनारे ढाबे पर बैठ कर चाय पी लेता हूँ ! या ट्रक ड्राइवरो के साथ गप्पे मार लेता हूँ ! मूड हो गया तो क्लब निकल लेता हूँ ! वहाँ जाकर अब लान टेनिस तो नही खेल पाता अलबत्ता टेबल टेनिस जरुर खेलता हूँ ! मूड हुवा तो सब फोन वोन बंद करके अपने बैडरूम में बंद हो जाता हूँ ! किसी का साथ इस समय के लिए नही ढुन्ढ्ता ! बस मैं और मेरी तन्हाई ! :) और कहाँ जाउंगा यह तय नही होता ! आप यकीन करिए , इसके बाद मैं अगले आने वाले २४ घंटो के लिए चार्ज हो जाता हूँ ! मुझे जिन्दगी का इतना खूबसूरत फ़न्डा देने वाले डाक्टर बी.पी. साहनी अरुण का एक संक्षिप्त सा परिचय देना मुझे जरुरी लगता है ! उनकी फोटो के साथ उनका पूरा परिचय इस प्रकार है !
डा. बी. पी. साहनी अरुण मूलत:बिहार के रहने वाले हैं ! सन 1973 में IIT Kanpur से सिविल इंजीनीयरिंग में M.Tech किया ! इनका field of specialization रहा Environmental & public health engineering में ! आल्टरनेटिव मेडिसिन्स में कोलकाता से सन 1993 में MD किया !
MIT मुज्जफरपुर बिहार में सन 1963 से 1999 तक अध्यापन कार्य किया ! आप 1999 में बतौर विभागाध्यक्ष environmental & public health engineering रिटायर हुए ! रिटायर मेंट के बाद B. N. Mandal university madhepura (bihar) के pro - vice - chancellor नियुक्त हुए ! इस पद के लिए आपने स्वीकृति देकर , लेकिन कुछ निजी कारणों से इस पद को त्याग दिया ! अपने अध्यापन काल में शोध कार्य करते हुए इनके मार्ग दर्शन में अनेक लोगो ने M.Tech और Phd किया है !
तदुपरांत इंदौर के इंजीनीयरिंग कालेज और होमियोपथी कालेज में विजिटिंग फेकल्टी रहे हैं ! आप chartered civil engineer भी हैं ! और पिछले ३० साल से लोगो को निशुल्क और निस्वार्थ भाव से alternative medicines में health counseling की सेवा कर रहे हैं !
इस के अलावा डा.. साहब ने अपने पूरे जीवन काल में स्कूल से लेकर इंजीनियरिंग कालेज से अपने रिटायरमेंट के अन्तिम दिन तक कोई न कोई आउट डोर / इंडोर गेम जरुर खेलते रहे हैं ! इंजीनियरिंग कालेज के स्पोर्ट्स काउंसिल में 12 वर्षो तक vice-chairman और 21 वर्षो तक चेयरमैन के दायित्व को सहर्ष निभाया ! लान-टेनिस के बहुत बढिया खिलाड़ी रहे हैं ! आज भी बहुत बढिया खेलते हैं ! इनकी हम सबको यह सलाह है की जीवन को सफलतम और सुखद बनाने के लिए हर इन्सान को कोई ना कोई गेम् / खेल अवश्य खेलना चाहिए !
डा. साहब के अनुसार खेल शारीरिक रूप से तंदुरस्ती तो देता ही है उससे ज्यादा वह इन्सान को मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संतुलन बनाने में बहुत मदद करता है ! किसी भी खेल में स्वाभाविक रूप से हार या जीत तो होती ही रहती है ! लेकिन बार 2 खेल में होने वाली हार या जीत से हमारे लिए हार या जीत का कोई मूल्य नही रह जाता ! सिर्फ़ खेल और खेल की भावना रह जाती है और जीवन भी तो एक तरह का खेल ही है ! यानी खेल हमको मानसिक रूप से जीवन के प्रति सकारात्मक सोच देता है !
इतना सब करते हुए भी डा . साहनी अरुण प्रचार प्रसार से बिल्कुल दूर ही रहने की कोशिश करते हैं ! मेरा नमन है इस महान व्यक्तित्व को ! जिनकी सीख पर चल कर मैंने हंसना और हंसाना सीखा ! इन्होने अपने जीवन दर्शन को निम्न दो पंक्तियों में कुछ यों व्यक्त किया :-
बादल हो तो बरसो किसी बेआब जमीं पर
खुशबू हो अगर तुम तो बिखर क्यूँ नही जाते
डा. साहब ने मुझसे वादा किया है की उनकी साहित्यिक रचनाए समय 2 पर इस ब्लॉग द्वारा आपसे शेयर करते रहेंगे !
वाह, बहुत खूब! डा.साहनी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। यह लेख पढ़कर मन खुश हो गया।
ReplyDeleteintjar rahe ga shubhkamna advance me
ReplyDeleteडाक्टर साहेब के बड़े शुक्रगुजार हैं वरना तो ना ताऊ से मिलते ना ताऊ की भैंसों से। वैसे जो बातें इन्होंने बतायी है वो वाकई में सही हैं क्योंकि हम भी यही कुछ सालों से (हालांकि ज्यादा साल नही हुए क्योंकि उतनी उम्र भी चाहिये ना ;) ) करते आ रहे हैं और वाकई में एनर्जी मिलती है।
ReplyDeleteअपन भी खडूस ही कहलाते हैं। आदरणीय डाक्टर साब की सीख का पालन करने की कोशीश करंगे,ताकी हम भी आप जैसे न सही थोडे से खूशमिजाज़ हो जायें।सच बताया आपने ,अपने लिये भी तो जीना ही चाहिये। अच्छी और प्रेरक पोस्ट्।
ReplyDelete" aaj kee is post ne kitne raj khol diye hain jindge ke , inssan kitan bhee bussy ho lakin apne liye kuch waqt nikalna jrure hai, tbhee vo kuch soch or smej paata hai, kuch creative, innovative, thoughts ko aakar dey sekta hai...life to busy hai or chulteehee rhege, or yunhe ktm bhee ho jayege... lakin shayd sach kha hai kee roj active or energtic or fresh hona bhee jruree hai....ab mai or maire tanhayee ke liye hum to driving krty hue waqt neekal laite hain. roj almost one hour ofc aane jane mey lgta hai, to us waqt ko hum kuch is treh hee utilise krtyn hain...lakin itne bde shaksyeet se iss baat kee importance ko jaan kr kuch jyada hee khsuee huee hai, orr apne itne mehnat se isko yan prstut kiya hai uske liye dil se shukriya..."
ReplyDeleteRegards
मुझे तो पहले से मालूम था कि आप मस्त-मौला आदमी हो, मगर क्यों हो उसका खुलासा आज जाकर हुआ है।
ReplyDeleteकभी-कभी लगता है, बड़े-बुर्जुग की सीख सही समय पर मिल जाती है तब बाकी जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है,अगर अमल में लाने का थोड़ा भी प्रयास किया जाए।
ताऊ!! और खडूस और रुखा इंसान..? आप कहते हैं तो मान लेते हैं
ReplyDeleteमैंने यह फंडा (ख़ुद को समय देने वाला ) अपनी जिंदगी में बहुत पहले से पाल रखा है ..जब ब्लोगिंग नही थी मैं बागवानी, पेंटिंग,लोकल अख़बारों में लिखना ..अदिवाशियों के बीच जाकर उनकी जीवन शैली देखना जैसे काम करती थी ..
आप इन डॉ साहब का कोई संपर्क पता या इ मेल दे सकतें हैं..(उनसे पूछ कर) मुझे भी एलर्जी की शिकायत है ..अंग्रेजी दवाइयों से खत्म ही नही होती है .
बहुत बढिया ताऊ.. साहनी जी को जानना अच्छा लगा.. :)
ReplyDeleteबहुत प्रभावित डा. साहनी से। कन्वे हिम माई रिगार्ड्स!
ReplyDeleteऔर ताऊ जी, आपकी और मेरी रुक्षता का प्रोफाइल तो मिलता सा है। आप तो उबर लिये। हम अब भी, कभी कभी नैराश्य की गलियों की सैर कर आते हैं! :)
डा. साहब के बारे में जानकार अच्छा लगा... हालाँकि हमारा यही फलसफा है रोज़ के कुछ घंटे अपने लिए भी रखते है.. आपकी ब्लॉग पर आकर हर बार कुछ सीखने को ही मिलता है...
ReplyDeleteचोखा आइडिया है !! एक शानदार पोस्ट है यह !!
ReplyDeleteअच्छा हुआ ताऊ वरना हमें आपके किस्से कैसे सुनने को मिलते, उन्हें हमारा शत शत नमन. वाकई अपने लिए वक्त निकलना बेहद जरूरी है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा डॉक्टर साहब से मिल कर...
ReplyDeleteरोज तो नहीं पर सप्ताह के दो दिन शनिवार और रविवार को जरूर सब कुछ भूल जाता हूँ. और कुछ काम जो छुट गए हैं उन्हें फिर से करना है... डॉक्टर साहब की प्रेरणा से जल्दी ही चालु हो जायेंगे. वैसे भी डॉक्टर साहब हमार सीनियर निकले, तो बात तो माननी ही पड़ेगी !
जब आपको यह अरसा पहले पता चल गया थो तो यह बताओ कि यह फंडा पहले क्यों नहीं बताया। हम तो निरे बेवकूफ है, चौबीसों घंटे अखबार और खबरों के बारे में ही सोचते रहते हैं। अब आज से एक घंटा केवल अपने लिए। बहुत अच्छी बात बताई। अमल में लाकर देखता हं। फिर बताउंगा।
ReplyDeleteबादल हो तो बरसो किसी बेआब जमीं पर
ReplyDeleteखुशबू हो अगर तुम तो बिखर क्यूँ नही जाते
बहुत खूब....सारी कहानी इस शेर में बयाँ हो जाती है...आप जैसे अच्छे लोगो को अच्छे ही लोग मिलेगे ...अभी तक जितना आपको जाना है....आपके पास भी एक बहुत बड़ा दिल है...शुक्रिया इस इन्टरनेट का ....ढेर सारे लोगो से मिलवा दिया .डॉ साहब को हमारा नमस्कार कहियेगा .उनकी रचनायों का इंतज़ार रहेगा
जिदंगी को जीने का ये अनमोल सूत्र और साहनी जी को जानकर अच्छा लगा। इंतजार रहेगा उनकी रचनाओं का। हम भी कुछ हंस लेते है आपकी रचनाएं पढ़कर और थोड़ा खून बढा लेते है।
ReplyDeleteबादल हो तो बरसो किसी बेआब जमीं पर
खुशबू हो अगर तुम तो बिखर क्यूँ नही जाते।
अदभूत।
वाह ताऊ बहुत सुन्दर लेख लिखा आप ने भाई यह काम पनए लिये समय हमारे पिता जी ने शुरु करवाया था, लेकिन इस मे कोई निश्चित समय नही कभी भी अपने लिये थोडा समय निकाल लिया, ओर यही बात मै अपने बच्चो को भी समझा रहा हू.
ReplyDeleteआगे आप ने डा साहनी से मिल कर बहुत अच्छा लगा , एक बहुत ही अच्छी पोस्ट के लिये धन्यवाद
achha laga, ummid hai apke shbdon ka ye jaadu hamesha barkarar rahe, dhnyabad./
ReplyDeleteदीवाली ki dher sari shubhkamanayen.
बहुत अच्छा लगा डॉ साहनी के विषय में और उनके सदविचारों को जानकर इन्तजार रहेगा उनकी साहित्यिक रचनाओं का भी. बहुत आभार.
ReplyDeleteइस ताऊ को ताऊ बना कर साहनी जी
ReplyDeleteछा गये हम ब्लागरों पर साहनी जी
आदाब अर्ज़ है
लेकिन ताऊ
ये त्रिपाठी जी का एक घंटे में क्या होगा..?
इनको तो दो चाहियें...
डा. बी. पी. साहनी अरुण से परिचय कराने के लिए आपका आभार -असे व्यक्ति तो समाज के तारणहार ही हैं
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