अक्सर ऐसा हो जाता है की हम अपने बारे में किसी दुसरे द्वारा कही बात को, अपने मनघडंत डर से अपने बारे में ग़लत तरीके से समझ लेते हैं ! भले वो हमारे बारे में नही कही गई हो ! और परिणाम स्वरुप हम बिना बात दुःख पाते हैं ! आज की पोस्ट में देखिये ताऊ ने इसी बेवकूफी में पैसा भी गंवाया और ख़ुद अपनी ही बेवकूफी से इज्जत का भी फालूदा बनवा लिया ! |
ये घटना किम्मै ज्यादा पुराणी सै ! बात उन दिनों की सै जब हम खेती बाडी करया करते थे ! और म्हारै बाबू के डर से हम खेत पै जाकै ताश पत्ते आला जुआ ५/७ जने मिलकै खेल्या करते थे दोपहर म्ह ! और म्हारा खेत भी बिल्कुल रोड के किनारे ही था और गाम से थोडा दूर ! और गाम म्ह म्हारै तैं ज्यादा पढा लिखा भी नही था कोई उन दिनों में ! सो गाम म्ह सब म्हारी इज्जत भी करया करै थे ! और हर अच्छे बुरे काम म्ह म्हारी सलाह आखरी सलाह हुआ करती थी गाम आलों के लिए !
एक दिन दोपहर में हम कुँए पै बैठ कै ताश पत्ते खेल रहे थे ! तभी उधर तैं मंडली करण आले जावै थे ! उन दिनों में हमारे गाँवों में सांग, भजनी और मंडली बहुत लोक प्रिय थे ! कई लोगो का तो अब भी नाम चलता है ! पर अब वो बात नही रही ! मंडली में स्त्री पात्र भी पुरूष ही करते थे ! पर हम जिस समय की बात कर रहे हैं उस समय स्त्री पात्र करने के लिए कुछ मन्डलीयो ने लड़कियां रख ली थी और उन मंडलियों की काफी डिमांड रहती थी ! शादी ब्याह में बरात के साथ यह भी रुतबे के लिए जरुरी था ! कोई ग्रामोफोन रिकार्ड बजाने वाले को ही ले जाता था ! और बुजुर्ग लोगो ने ऐसे ही मौको पर " काली छींट को घाघरों निजारा मारै रे" खूब सूना होगा ! इसका स्पीकर किसी ऊँचे से पेड़ पर लगा दिया जाता था ! यानी सब अपनी हैसियत के हिसाब से बरात के मनोरंजन का इंतजाम रखते थे ! और बरात भी ३ से ५ दिन तो ठहरती ही थी ! ज्यादा जिसकी जैसी श्रद्धा हो !
अब म्हारै कुँए पर से होके जो मंडली जावै थी , उसके साथ भी दो लड़कियां नाच गाने के लिए थी ! और वो मंडली हमारे ही गाम में जा रही थी ! गरमी ज्यादा थी ! उनका सामान ऊँटो पर था और साथ म्ह एक रथ या भहैल बैलों वाली थी ! वो आकर वहाँ रुके ! सो हमनै भी उनको पानी वाणी पिलाया ! उनके ऊँटो और बैलों ने भी पानी पीया ! फ़िर उस रथ में से दो सुंदर सी लड़कियां भी उतर कै आई और उनहोने म्हारी तरफ़ एक अजीब सी नजर तैं देख्या ! फ़िर वो पानी पीकै वापस रथ म्ह बैठ गई ! रात को ही उनका प्रोग्राम था हमारे गाम म्ह ही ! और हम भी आमंत्रित थे उस जगह !
रात को हम सबतै अगली लाइन म्ह बैठे थे ! बिल्कुल स्टेज कै सामनै ! और चुंकी लड़कियां मंडली म्ह आई थी नाचने के लिए तो आसपास के गाँवों के लोगो की जबरदस्त भीड़ हो राखी थी ! खड़े होण की भी जगह नही थी ! जैसे ही वो नर्तकियां स्टेज पर आई , चारों तरफ़ सीटियाँ बजने लगी और लोग सिक्के नोट फेंकने लगे ! उस जमाने का इससे बढिया मनोरंजन नही था ! पुराने लोग तो इसको याद कर करके अभी रोमांचित हो रहे होंगे और नए शायद महसूस कर पाये ! मतलब मंडली म्ह महिला नर्तकी का होना भी उस समय आश्चर्य था ! सो भीड़ ऎसी मंडलियों में जुटती ही थी और जनता से कमाई भी तगडी होती थी !
जैसे ही नर्तकी स्टेज पर आई उसने ताऊ की तरफ़ झुक कर सलाम पेश किया ! ताऊ बड़ा हैरान परेशान ! फ़िर ताऊ ने सोचा की दोपहर ये अपने कुए पर पानी पीने रुकी थी सो शायद पहचान गई है अपने को ! अब सारंगिये ने जैसे ही सारंगी पर गज फेरा और नर्तकी ने घुंघरू बंधे बाएँ पाँव की जो ठोकर स्टेज पर मारी तो पब्लिक वाह वाह कर उठी ! सब झुमनै लाग गे ! और अब उसने गाना शुरू किया ... !दगाबाज तोरी बतियाँ कह दूंगी ... हाय राम .. कह दूंगी .... दगाबाज..... उधर तबलची ने तबले पर तिताला मारा और नर्तकी लहरा गई ! ताऊ का कलेजा धक् .... अरे ये क्या गजब कर रही है ? बड़ी दुष्ट है ये तो ! ताऊ ने समझा की ये ताश पती से जुआ खेलते इसने देख लिया होगा कुँए पै ! और अब सबकै सामनै पोल खोल कै इज्जत ख़राब करेगी !
ताऊ नै इज्जत कै डर कै मारै और किम्मै नही सुझ्या सो जल्दी तैं जाकै अपने जेब तैं सौ रपीये का नोट निकालकै उसको पकडा दिया ! ताकि वो राज को राज ही रहने दे ! उस जमाने में सौ का नोट ! अरे भाई कोई किस्मत वाला ही उसके दर्शन कर पाता था ! सो नर्तकी नै सोच्या के ताऊ को गाना बहुत पसंद आया ! सो और लहरा लहरा कर गाने लग गई... दगाबाज... तेरी...बतियाँ कह दूंगी ! ताऊ ने समझा की अब ये ब्लेक्मेकिंग पै उतर आई है ! सो जेब के सारेनोट देने के बाद अंगूठी भी रिश्वत में दे आया ! और वो समझती थी आज तो चोधरी साहब प्रशन्न होगे सो और झुमके गाना शुरू कर दिया ..दगाबाज तोरी...बतियाँ... कह दूंगी ! अब ताऊ क्या करे ? घबरा गया बिचारा ! और उधर तो आलाप चालू था ! बतिया. कह दूंगी... हाय राम ...कह दूंगी .... जी कह दूंगी ! और अब ताऊ नै सोची की शायद इसकी नजर अब अपने गले की सोने की आखिरी बची चैन पर है सो उठकर वो सोने की चैन भी उस को दे आया !
अब क्या था ? अब तो मंडली का मास्टर जो हारमोनियम बजाया करै था ! वो भी जम गया वहीं पर और हारमोनियम पर झूम उठा ! तबलची नै जो एक रपटता हुआ टुकडा फ़िर तैं बजाया तो पब्लिक तो झूम उठी ! और वो बेसुध होके गाये जारही थी.. दगाबाज तोरी बतियाँ कह दूंगी.. ! हाय..हाय..राम बतियाँ ..कह दूंगी...दगाबाज..तोरी... और वो बेसुध नाचे जा रही थी की पता नही अब ताऊ से और क्या महल दुमहल्ले लेना चाहती है !
इब ताऊ बिचारा परेशान हो गया और उधर जोर शोर तैं बतियाँ कह देने की धमकी मिले जा रही थी ! तो ताऊ से नही रहा गया और उठकर खडा होकै जोर तैं चिल्लाया -- अरे इब के म्हारै प्राण लेगी ? जेब खाली करदी , गात ( शरीर) नंगा कर दिया ! बतियाँ बता दूंगी... बतियाँ बता दूंगी.... तो ले इब तू के बतावैगी ? मैं ही बता देता हूँ की हम कुँए पै बैठ कै जुआ खेल्या करते हैं ! इब तो हो गई तेरी मर्जी पूरी ?
अरे ताऊ उस समय तो तुम्हारा व्याह हुआ नही था- यह सारा किसा तू तो ताई को भरमाने के लिए गढ़ डाला है -असली बात तो कुछ और ही थी -सच सच बताना कुएं की मुडेर पर उस बाला से और क्या क्या हुआ था जो दौलत न्योछावर करने पर आमादा हो गयो आप !
ReplyDeletegood sense of humor
ReplyDeleteachchi lagi kahani
क्या बात है ताउ......एकदम नंगा हो गया यार तू तो....लेकिन एक बात बताना भई कि वो जो तबलची था साला वो क्यूं जम गया था कहीं रामदौस का चेला तो नहीं था जो एक विशेष समूह से मेलजोल मे विश्वास करता था :)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट रही। और जो सुंदर-सुंदर चेहरे अपने ब्लॉग पर लगा रखे हैं वह भी अच्छे लगे :D
वाह ताऊ इस पोस्ट में तो मजा आ गया साथ ही गावों में होने वाले पुराने नाटकों की भी याद दिला दी
ReplyDeleteवाह!ताऊ, ल्यो कर लो बात। पतुरिया से डर ग्यो। फैर पढ़बो लिखबो बेकार। नोट भी ग्या, अंगूठी भी और बात भी खुद नै ही बता दी?
ReplyDeleteहा हाहा हा ताऊ जी इब या भी घणी चोखी रही , हम तै हंसन लाग रे सें. पर जब थमने कुछ किया ही कौनी फेर डर कौन सी बात का था, जे सबकुछ नुएही दान कर दिया , और अपनी भी पोल आप ही खोल दी, जो भी रया हूँ किस्सा बड्डा रोचक था'
ReplyDeleteजय राम जी की
छा गये ताऊ,छा गये। आणंद आ गया।
ReplyDeleteवाह भी वाह, मज़ा आ गया!
ReplyDeleteअरे वाह ताऊ क्या आइडिया है.. अनोनामस टिप्पणी करने वाले से कहना अरे.. दगाबाज थारी बतियाँ कह दूंगी !
ReplyDeleteदूसरे दिन पता चल जाएगा कौन था...
बहुत बढ़िया रही...
bahut acchey
ReplyDeleteताऊ इन लड़कियों की फोटो तो उनसे पूछ के डाली है न, कहीं घर पहुँच गयीं तो दोनों तरफ़ से फंसोगे, इधर ताई मारेगी और उधर हरयान्वी क्यूट गर्ल. हमें बुला लेना, शायद बचा लें :D
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी, हर बार की तरह.
के कहूँ इब ?मैन्ने तो ताई की सोच के दुःख लगे है .........ताऊ आप तो ऐसे न थे
ReplyDeleteवाह! वाह! बहुत शानदार!
ReplyDeleteताऊ जी, न जाने कितने ऐसे ही और किस्से समेटे बैठे हैं...बहुत खूब रही पोस्ट.
जुये मैं द्रौपदी का चीरहरण सुना था। ताऊ का कमीज हरण तो नई बात है!
ReplyDeleteअच्छा, किसी कृष्ण को अपनी इज्जत बचाने नहीं पुकारा? उनमें आपकी श्रद्धा होती तो कमीज भी बच जाती और जेब के पैसे भी!:)
भाई ताऊ इतना शरीफ़ ओर सीधा तो ना लागे, कि बिना बात के तु नगां होजां, कुछ तो दाल मे काला शे.ओर यु इस उमर मे ऎसी सुन्दर वीर बानियां की फ़ोटु लगान लाग रहेया शे, कदे ताई ने देख लिया तो .......सुधर जा रे ताऊ.बाल बच्चे आला हो गया ईब तो.
ReplyDeleteधन्यवाद
"उधर तबलची ने तबले पर तिताला मारा और नर्तकी लहरा गई !" मतलब आप नृत्य संगीत के जानकार भी हो !
ReplyDeleteताऊ एक बात बताओ ! आप क्या २ काम करते हो ? शेयर बाजार पर लिखते हो, बिल गेट्स और वारेन बफेट पर लिखते हो, मग्गाबाबा के प्रवचन देते हो, फ़िर ताऊगिरी करते हो ! आख़िर आप करते क्या हो ? बाबा हो या कोई
व्यापार करते हो ? फोटो भी असली नही है ! ताऊ अब असली फोटो के साथ आ जावो ! या ताई से लट्ठ खा खाकर आपकी शक्ल ऎसी हो गई ! :)
मजाक नही अब असली फोटो लगाओ !
आज तो परमानंद आगये ताऊ ! वाकई आपने अच्छी सीख की बात कही !
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद !
" इब के म्हारै प्राण लेगी ? जेब खाली करदी , गात ( शरीर) नंगा कर दिया ! बतियाँ बता दूंगी... बतियाँ बता दूंगी.... तो ले इब तू के बतावैगी ? मैं ही बता देता हूँ की हम कुँए पै बैठ कै जुआ खेल्या करते हैं ! इब तो हो गई तेरी मर्जी पूरी ?"
ReplyDeleteताऊ आज तो चाल्हे ही रौप राखें सै डाकी थमनै ! बहुत जोरदार लिखा आज तो ! बस मजा आ गया !
बेचारा ताऊ।
ReplyDeleteभगवान उसे आने वाली ऐसी मुसीबतों से बचाए।
बहुत अच्छे ! अकेले २ मजे ले रहे हो ! नाच, जुआ सब के इक्क्ल्ले २ मजे ले लिए और हमको ख़बर भी नही !
ReplyDeleteअरे तिवारीसाहब क्या मर गए थे ? ठीक है दोस्त अब अपने रास्ते अलग २ ! तुमको काम पड़े तो तिवारी साहब को याद करते हो वरना कौन तीवारी साहब ?
@दीपक तिवारी साहब !
ReplyDeleteअरे भाई तिवारी साहब इतना नाराज क्यूँ होते हो यार ? आप कितने भले हो ? पन्डताइन को बताऊँ क्या ? या फ़िर हो गई नाराजी दूर ?
ताऊ, हमें भी दाल में कुछ काला लग रहा है। हो न हो, यह सारा किस्सा आप ताई को भरमाने के लिए ही गढ़े हो..। ये जुए की बात खुलने का डर नहीं था, उन सुंदर लड़कियों की नजर का असर था। सच सच बताओं कुएं की मुंडेर पर और क्या क्या हुआ.. :)
ReplyDeleteहा हा हा। मजा आ गया। कभी कभी ऐसा भी हो जाता है। वैसे आपने मेरे वो दिन याद करा दिये जब मै नानी के गाँव जाता था तो दोपहर में खरक मे मामाओं संग खूब तलाश खेला करते थे। और शाम को समाध में मामाओं की कुश्ती देखा करते थे और फिर जोहड़ में नहाया करते थे।
ReplyDeleteTau, bahut khoob tum nahi balki ye post ;)
ReplyDeleteBahut badiya.
ReplyDeleteहा हा हा !!ताउ क्या खुब कही तैने दिल खुश कर दिया !!
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह..
ReplyDeleteयें बचपन की गलतियां बुढ़ाप्पै म्हं याद आरी.
उस टैम तो चलवाई नैनों की कटारी.
फेर चिल्लाया हाय मां री.. हाय मां री..
तास-जूआ जवान्नी मैं निबटाये.
अर ईब हरयाणवी क्यूट दिखाए.
के सौच्चेगी ताई म्हारी..?
जै हो ताऊ थारी..
जै हो ताऊ थारी..
ताऊ उससे डर गए,रही वजह कुछ खास
ReplyDeleteबैठे रहना था तुम्हें, महफिल में बिंदास
महफिल में बिंदास,बोलती कुछ ना प्यारे
थी वह खुद अभिभूत,याद थे ट्रंप तुम्हारे
मज़ा आ गया. आभार.
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