
और इस धन्धे मे गजब का मुनाफ़ा देख कर अब तिवारी साहब ने अपनी जमी जमाई ओटोपार्ट्स की दुकान बंद करकै ताऊ के साथ इस धन्धे
मे साझेदारी कर ली थी ! तिवारी साहब ने इस धन्धे के नये नये गुर भी ताऊ को सिखा दिये थे !
तिवारी साहब के कहने से ताऊ वहां पर एक फ़कीर के वेश मे बैठता था ! और उसका कटोरा देखते देखते ही नोटो से लबा लब भर जाता था ! ताऊ तो वहां फ़कीर बनकै लोगो दुआ दिया करै था ! और तिवारी साहब वहीं पास मे खडा होकर कटोरे पै नजर रखता था ! जैसे ही कटोरे मे नोटों की बाढ आती , तिवारी साहब आकै चुप चाप कटोरा खाली करके ले जाता और पीछे बैठ कर गिनना शुरु कर देता !
अब पता नही किसको इस बात से जलन मची कि उसने जाकर यह बात ताई को बता दी कि ताऊ तो आज कल दारुखाने के बाहर कटोरा लेके बैठता है ! और वहां भीख मांगने का काम करता है ! और साथ मे ये भी बता दिया की ये धन्धा तिवारी साहब ने सिखाया है ! इसी बात पर ताई का तो माथा सटक गया ! ताई ने फ़टाफ़ट
अपना "मेड इन जरमनी" लठ्ठ उठाया और पहुंच ली , वो तो, दारुखाने के बाहर !
अब वहां ताऊ तो दाढी मुंछ लगाकै बाबाजी बना किसी का हाथ देख रहा था ! सो ताऊ को तो उसने पहचाना नही और वहीं पीछे बैठ कर तिवारी साहब गिन रहे थे कटोरे के नोट ! ताई ने इधर उधर नजर दौडाई तो तिवारी साहब दिख गये ! ताई नै जाकै सीधे ही दो लठ्ठ बजाये तिवारी साहब कै माथे पे और बोली - क्युं रे तिवारी ? ये कुणसा धन्धा शुरु करया सै थमनै ? मेहनत से कमाकै नहीं खा सकते थम ? और बता वो नाशपीटा ताऊ कित सै ? ताऊ तो ताई को देख कर पहले ही वहां से उठ कर भाज लिया था ! और फ़ंस गया बिचारा तिवारी साहब !
ताई नै फ़िर ताऊ के घर मे आने के बाद जो पूजा पाठ और आरती करी सै वो थम ताऊ तैं ही पूछ लियो ! शायद ताऊ इब इस जनम मै यो भीख मांगण आला धन्धा तो नही करैगा ! ताई नै गाम मै बाबू धोरै खबर भिजवाई कि तेरा सपूत आज कल इसे काम करण लाग रया सै ! फ़िर बाबू और ताई नै समझा बुझा कै ताऊ को एक बैंक के बाहर मुंगफ़ली और मक्का के भुट्टे सेक कर बेचने का ठेला लगवा दिया ! और ताऊ को हिदायत दे दी की इस तिवारी से दोस्ती नही रखना ! ये अच्छा आदमी नही दिखता !
ताऊ की दुकान दारी वहां भी चल निकली ! एक दिन शाम कै समय तिवारी साहब ताऊ कै धोरै आकै बोल्या - अरे ताऊ राम राम ! इब ताऊ चुप चाप ! तिवारी साहब फ़िर बोल्या - ताऊ जरा सौ का नोट उधार दे दे ! मैं बटुआ घर भूल आया और इब मेरा पीने का समय हो गया है ! मैं कल तेरे को लौटा दूंगा !
ताऊ बोला - तिवारी साहब , बात ये है कि मेरा इन बैंक वालो से समझोता हो चुका है कि ये बैंक वाले मुंगफ़ली नही बेचेंगे और मैं लोन नही दुंगा ! इसलिये मैं आपको लोन नही दे सकता !
तिवारी साहब समझ गये की ताऊ लठ्ठ खा खा कै किम्मै हुंशियार होग्या दिखै ! सो ताऊ को पटाने की कोशीश करण लाग ग्या !
जब घणी देर होगी तो ताऊ बोल्या - अर तिवारी साहब मैं थमनै एक धेल्ला भी नही दूंगा ! तुम चाहे जितनी जोगाड लगालो ! मेरे बाबू ने मेरे को टके (रुपिये ) का महत्व समझा दिया है ! और मैं समझ भी गया हूं !
तिवारी साहब ने पूछा - ताऊ वो कौन सा गुरु मंत्र थारै बाबू नै दिया सै ? जरा हमनै भी बतादे !
इब ताऊ बोल्या - सुण ले भई तिवारी साहब ! म्हारा बाबू बोल्या --
टका धर्म: टका कर्म: टका ही परमं तपं
यस्य ज्ञान टका नास्ति हा: टका टक टकायते
अर्थात
टका ही धर्म, टका ही कर्म, टका ही परम तप है !
टका रूपी ज्ञान नही है, तो कुछ भी नही है !
सिर्फ़ टकाटक देखते रहो !
इसलिये आजकल जेब मे टका ( रुपिया ) होना आवश्यक है ! तो तिवारी साहब इब राम राम !
मजा आ गया पढ़कर जी और टके का महत्व भी समझा।
ReplyDeleteइसी सच को हमने कभी ससे शेर मे ऐसा लिखा था
ReplyDeleteदीपक रुपिया राखिये बिन रुपिया सब बेकार
रुपिया बिना ना चिन्हे बेटा ,नेता,यार ।
राम पुरिया भाई भुट्टे काये बहुत दिन हो गये दिन क्या साल हो गये, एक बार यहां पर हम ने भुट्टॆ खेतो से तोड कर भुने तो आस पास रहने वाले गोरो ने नाक मुंह अजीब सा बनाया, ओर मजाक करने लगे, भाई हम भी पक्के भारतीया थे,सो जब भुट्ट भुन गया तो आधा आधा उन्हे भी दे दिया, अब गोरो ने भी भुट्टे भुन कर खाने शुरु कर दिये,लेकिन अपने भुट्टे ओर यहा के भुट्टॆ मे स्वाद का बडा फ़र्क हे.
ReplyDeleteऎसा कर चार भुट्टे e mail कर दे भुन के
बाकी आप की शिक्षा बहुत ही काम की हे इस जमाने मे, लेकिन एक बात समझ मे नही आई भाई यह तिवारी साहिब जी क्या सब कटोरे बाले पेसो की दारू पी गये जो दुसरे दिन ही सॊ मागंने चले आये, भईया अपना दोस्त हे पेसॊ से मना मत करो, हा इन्हे भूट्टे छीलने ओर आग को पखां करने पर रख लो, बदले मे एक पऊआ दे देना जगाधारी का.
राम राम
भाटियाजी ४ भुट्टे के आर्डर के लिए धन्यवाद ! दो सिके हुए रखे थे जो आपको इ-मेल कर दिए , शायद मिल गए होंगे ! और बाक़ी दो आप फोटो में देख लीजिये , सिकने के लिए रख दिए हैं ! सिकते ही इ -मेल कर दूंगा !
ReplyDeleteतिवारी साहब की रफ़्तार कुछ ज्यादा ही है ! और फ़िर ताई के लट्ठ भी पड़ गए हैं सो मुझे नही लगता की आज तिवारी जी को इस पोस्ट की ख़बर भी लगेगी ! इसीलिए मैंने ये रविवार को पोस्ट करी है ! वो तो कल मेरे आफिस में आयेंगे तब ही कुछ कबाडा होगा ! और उनके श्रीमुख से अब
क्या टिपणी फूटेगी ? यह तो कल ही मालुम पडेगा ! देखते हैं !
हमने तो असलियत लिख दी ! अब तिवारीजी नाराज हों तो ताऊ से और कुछ नया धंधा करवा देंगे ! एक पोस्ट में तो उन्होंने ताऊ के हाथ में कटोरा दे दिया ! अब देखो अगली में क्या करते हैं ! इब इनको ये नही मालूम की ग़लती से ताऊ के हाथ में लट्ठ पकडा बैठेंगे तब क्या गा ? :)
टका धर्म: टका कर्म: टका ही परमं तपं
ReplyDeleteयस्य ज्ञान टका नास्ति हा: टका टक टकायते
take ka magatv samjhane ka dhanywad. maja aaya
सारगर्भित पोस्ट...
ReplyDeleteपर ताऊ एक बात कमाल की सै,
भाटिया जी नै जरमनी मैं बी जगाधरी नं-१ का पव्वा याद सै...
तिवारी साहब रविवार नै सारा दिन ठेक्कै पै इ रह्वै के ?
बैंक वाले मुंगफ़ली नही बेचेंगे और मैं लोन नही दुंगा
ReplyDeleteचलिए, बैंक वालों की दूकान को बंद होने से बच्चा लिए आपने.
टका धर्म: टका कर्म: टका ही परमं तपं
यस्य ज्ञान टका नास्ति हा: टका टक टकायते
क्या बात है - बाबूजी का जवाब नहीं! मजा आ गया!
इब भाई मौदगिल जी, ताऊ के बतावै ? उसकी पन्डताइन आडै सै कोनी !
ReplyDeleteतो के बेरा आज कित हान्ड़ता डोलै सै ? इबकै एक बार पन्डताइन को
आ जाने दे , फेर देखियो थम मजा ! घर तैं बाहर भी कोनी निकलेगा
बाद म तो ! ताऊ तैं पंगा लिया सै उसनै इबकै !
और रही भाटिया जी की बात तो इतनी जल्दी बचपन की याद और
आदत थोड़ी छूट्या करै सै ? जो मजा जगाधरी न.१ का सै , वो उत्
जरमनी आली म थोड़ी आवेगा ?
ये बैंक वाले मुंगफ़ली नही बेचेंगे और मैं लोन नही दुंगा ! ताऊ घणे गजब का कांट्रेक्ट कर राक्ख्या सै बैंक धोरे तो ?
ReplyDeleteऔर संस्कृत भी ..
टका धर्म: टका कर्म: टका ही परमं तपं
यस्य ज्ञान टका नास्ति हा: टका टक टकायते
यो बात बिल्कुल सही सै ! थम तो तिवारी साहब न काणी कोडी भी मतन्या दो !
बहुत सारगर्भित पोस्ट है ! यह बिल्कुल सत्य है की बिना टका अर्थात रुपये के आज कल काम नही चलता ! आप हंसी मजाक करते हुए आराम से बात कह कर निकल लेते हो ! यही आपके लेखन की विशेषता है ! धन्यवाद !
ReplyDeleteek aur tau ki desi soojh boojh se bhari hui post...padhkar man takatak ho gaya.
ReplyDeleteachhi rachna .....
ReplyDeletemazedaar rachna .........
क्या ठेका लिया ताऊ..गजब!!
ReplyDeleteबैंक वाले मुंगफ़ली नही बेचेंगे और मैं लोन नही दुंगा
हा हा!!
वैसे पोस्ट गजब की है-चाहे भुट्टा ही बेचो मगर टके का ज्ञान गजब दे गये.
आभार.
बहुत ही सही कहा ताऊ जी आपने !आज का ज़माना ही टेक का है
ReplyDeleteबाप बड़ा न भैय्या ...सबसे बड़ा रुपैय्या
हमेँ भी देस का भूना भुट्टा खाये बहुत अर्सा हुआ है
ReplyDeleteलाख टके की बात भी साथ ! वाह !
- लावण्या
हे राम्पुरिये भाई हम जौनपुरियों के भुट्टे मत छीनों बस हम फसलों में इसी में तो थोडा आगे हैं !
ReplyDeletekya baat kahi taujee man gaye aapko,hansi-mazak me zindagi ka sabse kadua sach itne mithe tarike se bata gaye.shaandar pranam karta hun aapko
ReplyDelete@ हे जौनपुरिया भाई अरविन्द मिश्रा जी , आपको
ReplyDeleteयह बात पहले बतानी चाहिए थी ! अब ताऊ का बैंक
से समझोता हो चुका है ! अगर मैंने भुट्टे बेचना बंद
कर दिए और लोन देने का धंधा शुरू कर दिया तो बैंक
भुट्टे सेक कर बेचना शुरू कर देगा ! ताऊ तो ४०/५०
भुट्टे ही बेच पाता है ! अगर बैंक ने यह धंधा शुरू कर
दिया तो सारे भुट्टे ही एक्सपोर्ट कर डालेगा ! और फ़िर
हमारा किसान क्या खायेगा ? अत: ताऊ को भुट्टे बेचने
दीजिये ! इसी में सबकी भलाई है ! :)
ताऊ रुपली पल्ले तो धोरां म ही चल्ले |
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