यही कोई दस दिन पहले ही ताऊ किसी काम तैं बम्बई
गया था ! वापस आण के बाद सुबह घुमण (मार्निन्ग वाक)
पर आज सारे दोस्त बैठे गप शप करण लाग रे थे !
म्हारे अण दोस्तां मै एक सरदार भी सै, भाई घण्णा जबरा !
यो म्हारे बचपन का भी दोस्त सै ! और यो इतना सुथरा सरदार सै
कि इसका नाम सबनै "पन्डित सरदार सतनाम सिन्ह अगरवाल"
निकाल्या हुया सै ! युं तो सरदार जी को सब बडा शरीफ़ समझ्या
करैं सैं ! पर भाई आज इसके कामां पै ताऊ का ध्यान गया तो
इसकी शराफ़त समझ आई !
यो मेरा यार सारी उम्र तो बोरिन्ग (ट्युब वैल)
खोदता रह्या ! फ़िर इबी वो धन्धा मन्दा पड गया तै इसनै नया धन्धा
भी भाई भाटे फ़ौडण का कर लिया ! मतलब गिट्टी (स्टोन क्रेशर)
फ़ोडया करै आज कल ! मतलब इसने तो फ़ोडा फ़ाडी करनी सै !
पहले धरती फ़ोडया करता इब पहाड फ़ोडण लाग गया !
आज मैं इसने बोल्या की - अरे सरदार के तेरी अक्ल
पै पत्थर पड़ रे सै ? जो तूने इस उम्र मे भी यो पत्थर
फ़ौडण का धंधा शुरू कर दिया ?
या तेरी अक्ल पे पत्थरो की कमी पड़ री सै ?
जो ये पत्थर फोड़ के उसपे डालेगा !
इस उम्र में जीप तै इतनी दूर खदान
पे जाण की उम्र रह री सै के तेरी ?
आज पूरे ५ दिन बाद सरदार जी घुमने आए हैं !
पुछने पर बताया- कि तबियत ठीक नही थी ! उम्र भी सरदार जी की
अच्छी खासी हो री सै ! थम अन्दाजा ही लगा ल्यो ! यो ताऊ तैं भी
दो साल बडा सै ! और भाई इसका फ़ोडा फ़ाडी का काम समझ
कै थम यो मत समझ लियो के यो कोई भोत मेहनती माणस सै !
भई यो घण्णा नाजुक लाल भी सै ! इन सरदार जी के कुछ किस्से
तो हम सब दोस्तां नै बेरा ही सै ! जैसे कि सरदार जी बिना ए.सी. की
कार मैं नही चल सकते ! ड्राईवर चाहिये ही चाहिये ! वर्ना चाहे
जितना नुक्सान हो जाये ! ये नही जायेन्गे ! दोस्तां कै साथ भी जाणा
हो तो कार ये नही चलायेन्गे ! इनको साथ ले जाना हो तो इनको
लाद के जावो !
और ये सरदार जी इतने अच्छे ड्राइवर सैं की भाई
आप समझ ल्यो की कुल्लू मनाली की ट्रिप पै हम दोनों
परिवार गये थे तब कार पुरे समय करीब १५ दिन तक इसनै ही चलाई
थी ! इब न्युं समझ ल्यो कि हम मनाली सै रोहतांग दर्रे पै गये
तो सरदार जी को वो जगह इतनी पसन्द आयी कि लगातार बाकी
के दस दिन हम सबको रोहतान्ग ले गये और साब इस सरदार नै वाकई
जिन्दगी का स्वर्ग दिखा दिया ! मेरे कलेक्सन मे वहां की खींची हुई
असन्ख्य फ़ोटो हैं ! एक यहां भी चिपका रहा हूं सिर्फ़ रास्ते की
विकटता और इनकी ड्राइवरी के गुण गान के लिये ! और इतने दुर्गम
और बर्फ़ीले रास्ते पर वाकई इनकी ड्राइवरी काबिले तारीफ़ थी !
उपरोक्त फोटो रोहतांग में व्यास नदी के उदगम स्थान
से ठीक पहले वाले दर्रे को पार करते वक्त ली गई थी !
उस समय तो हमने लौटकर इनकी सच्ची तारीफ़ ही की थी !
धीरे धीरे देखा की इस तारीफ़ से प्रभावित हो के सरदार जी कभी
हमको मान्डव ले जारहे हैं ! कभी कहीं ! बल्कि ये गोवा, पूरे
दक्शिण भारत की यात्रा साल दर साल दोनों परिवारों को करवाते रहे !
और आप यकिन मानिये ताऊ को इनकी चाबी हाथ लग गई !
इस महन्गाई के जमाने मे बिना पेट्रोल और ड्राइवर के खर्चे के
सैर सपाटा हो जाये तो क्या बुरा है ?
बच्चों को भी गर्मीयों की छुट्टीयों मे पक्का था कि सतनाम अन्कल
ले ही जायेन्गे ! बच्चों की पसन्द ना पसन्द पर किसी साल शिमला,
कभी मसूरी, नैनीताल, और कश्मीर का भ्रमण होता ही रहा , इन
सरदार जी की वजह से ! भाई दोस्त हो तो ऐसा !
ताऊ के दोस्तां तैं परिचय की इस श्रन्खला मैं इब यो सरदार जी
तो दिखते ही रहेन्गे ! पर आज के एपीसोड के अन्त मे ध्यान आया कि
इनकी नजाकत का एक किस्सा नही सुनाया तो आपके और इनके दोनो
के साथ बे-इन्साफ़ी होगी ! अभी चन्द दिन पहले मैं इनके घर गया
था ! वहां पर ये सरदार साहब थे नही ! सरदारनी नै हम दोनुं ताऊ
ताई को बैठाया और पुराने जमाने की गप शप करते हुए आखिर
बात फ़िर सरदार जी पर ही आ गई ! और इनकी नाजुकता की चर्चा
चल पडी ! सरदारनी बोली - भाई साहब इनकी रईसी की तो तुस्सी
गल ही छ्ड दो ! इनकी रईसी कितनी महन्गी पडती है ? वो सब आपको
मालूम ही क्या है ?
मैं बोल्या- नही परजाई जी ! तुस्सी दस्सो ! मैं के जाणूं ?
सरदारनी बोली- घर के बाहर सब्जी वाला आया ! मैं कुछ काम मे व्यस्त
थी , और सलाद के खीरे खत्म हो गये थे ! मैने कहा- सरदार जी
बाहर सब्जी वाला आया है ! तुम जाके ले आवो !
अब इन्होने इनके आफ़िस पर फ़ोन करके मनोज (आफ़िस ब्वाय) को
बुलवाया ! वो मोटर साइकिल से पेट्रोल फ़ूक कर आया ! अन्दर बुला
कर उसको इन्होने २ रु. दिये और एक पाव खीरे बुलवा दिये ! और इनको
किसी भी काम का कहो तो यही होता है ! २ रू. के खीरे और उसके
लिये २० रु. का पेट्रोल फ़ुकवा देते हैं ।
(पम्मी भाभी से क्षमा-याचना सहित ! और अगर आप नाराज ही हो रही
हो तो आपकी मर्जी ! अबके होली पै ताऊ के मुंह पर लाल
की जगह काला गुलाल पोत देना !)
रविवार होने से सुबह घुमने के बाद थोडी देर वहीं बैठ कर ज्यादा
देर गप शप हो जाती है ! आज भी गप शप खत्म हो कर सब विदा
लेकर अपने अपने वाहन की तरफ़ बढ रहे हैं ! पता नही क्यूं ये
सरदारजी पलट कर आये और पुछने लगे- ताऊ तुने बम्बई मे क्या क्या
गुल खिलाए अबकी बार ये तो बताया ही नही ?
मैने कहा- यार सतनाम आज तो देर हो गई अगले रविवार बताउन्गा !
सरदार बोला-- अच्छा ये तो बतावो कि हमारे प्रधान मन्त्री मनमोहन
सिन्ह जी मार्निंग वाक शाम को ही क्यूं करते हैं ? अगर अपन भी मार्निंग
वाक सुबह की बजाए शाम को ही करें तो ?
मेरे को इच्छा हुई ये कहने की -- क्युंकि वो तेरी तरह सरदार है ! फ़िर सोचा यार ये
कही बुरा मान गया तो रविवार का सत्यानाश कर देगा , सो मैने बडे ही
शान्त भाव से जवाब दिया-- क्युंकि आदर्णीय मनमोहन सिन्घ जी PM हैं !
AM कोनी, जो सुबह घुमैगा ! जब PM सै तो शाम नै ही
मार्निन्ग वाक करैगा वो तो ! और तू PM कोनी !
सो तू सुबह ही कर मार्निंग वाक !
इस श्रंखला को शुरू करने का आइडिया मुझे मेरे ब्लॉग गुरु समीरजी,
(जिनसे मुझे ब्लागिंग का पहला सबक मिला ) के मून्नू और
अनुराग जी के "दस सालो मे कितना बदल गयी है शब ?" से मिला है !
अब मुझे महसूस हुवा है की हमारे आस पास ही कितना कुछ मौजूद है !
बस वो नजर चाहिए देखने के लिए !
अब आज मैंने कुछ ज्यादा ही पाससे सरदार जी को देख लिया है !
सरदार सतनाम सिंग से क्षमा याचना सहित !
अगले दोस्त की तलाश है !
गया था ! वापस आण के बाद सुबह घुमण (मार्निन्ग वाक)
पर आज सारे दोस्त बैठे गप शप करण लाग रे थे !
म्हारे अण दोस्तां मै एक सरदार भी सै, भाई घण्णा जबरा !
यो म्हारे बचपन का भी दोस्त सै ! और यो इतना सुथरा सरदार सै
कि इसका नाम सबनै "पन्डित सरदार सतनाम सिन्ह अगरवाल"
निकाल्या हुया सै ! युं तो सरदार जी को सब बडा शरीफ़ समझ्या
करैं सैं ! पर भाई आज इसके कामां पै ताऊ का ध्यान गया तो
इसकी शराफ़त समझ आई !
यो मेरा यार सारी उम्र तो बोरिन्ग (ट्युब वैल)
खोदता रह्या ! फ़िर इबी वो धन्धा मन्दा पड गया तै इसनै नया धन्धा
भी भाई भाटे फ़ौडण का कर लिया ! मतलब गिट्टी (स्टोन क्रेशर)
फ़ोडया करै आज कल ! मतलब इसने तो फ़ोडा फ़ाडी करनी सै !
पहले धरती फ़ोडया करता इब पहाड फ़ोडण लाग गया !
आज मैं इसने बोल्या की - अरे सरदार के तेरी अक्ल
पै पत्थर पड़ रे सै ? जो तूने इस उम्र मे भी यो पत्थर
फ़ौडण का धंधा शुरू कर दिया ?
या तेरी अक्ल पे पत्थरो की कमी पड़ री सै ?
जो ये पत्थर फोड़ के उसपे डालेगा !
इस उम्र में जीप तै इतनी दूर खदान
पे जाण की उम्र रह री सै के तेरी ?
आज पूरे ५ दिन बाद सरदार जी घुमने आए हैं !
पुछने पर बताया- कि तबियत ठीक नही थी ! उम्र भी सरदार जी की
अच्छी खासी हो री सै ! थम अन्दाजा ही लगा ल्यो ! यो ताऊ तैं भी
दो साल बडा सै ! और भाई इसका फ़ोडा फ़ाडी का काम समझ
कै थम यो मत समझ लियो के यो कोई भोत मेहनती माणस सै !
भई यो घण्णा नाजुक लाल भी सै ! इन सरदार जी के कुछ किस्से
तो हम सब दोस्तां नै बेरा ही सै ! जैसे कि सरदार जी बिना ए.सी. की
कार मैं नही चल सकते ! ड्राईवर चाहिये ही चाहिये ! वर्ना चाहे
जितना नुक्सान हो जाये ! ये नही जायेन्गे ! दोस्तां कै साथ भी जाणा
हो तो कार ये नही चलायेन्गे ! इनको साथ ले जाना हो तो इनको
लाद के जावो !
और ये सरदार जी इतने अच्छे ड्राइवर सैं की भाई
आप समझ ल्यो की कुल्लू मनाली की ट्रिप पै हम दोनों
परिवार गये थे तब कार पुरे समय करीब १५ दिन तक इसनै ही चलाई
थी ! इब न्युं समझ ल्यो कि हम मनाली सै रोहतांग दर्रे पै गये
तो सरदार जी को वो जगह इतनी पसन्द आयी कि लगातार बाकी
के दस दिन हम सबको रोहतान्ग ले गये और साब इस सरदार नै वाकई
जिन्दगी का स्वर्ग दिखा दिया ! मेरे कलेक्सन मे वहां की खींची हुई
असन्ख्य फ़ोटो हैं ! एक यहां भी चिपका रहा हूं सिर्फ़ रास्ते की
विकटता और इनकी ड्राइवरी के गुण गान के लिये ! और इतने दुर्गम
और बर्फ़ीले रास्ते पर वाकई इनकी ड्राइवरी काबिले तारीफ़ थी !
उपरोक्त फोटो रोहतांग में व्यास नदी के उदगम स्थान
से ठीक पहले वाले दर्रे को पार करते वक्त ली गई थी !
उस समय तो हमने लौटकर इनकी सच्ची तारीफ़ ही की थी !
धीरे धीरे देखा की इस तारीफ़ से प्रभावित हो के सरदार जी कभी
हमको मान्डव ले जारहे हैं ! कभी कहीं ! बल्कि ये गोवा, पूरे
दक्शिण भारत की यात्रा साल दर साल दोनों परिवारों को करवाते रहे !
और आप यकिन मानिये ताऊ को इनकी चाबी हाथ लग गई !
इस महन्गाई के जमाने मे बिना पेट्रोल और ड्राइवर के खर्चे के
सैर सपाटा हो जाये तो क्या बुरा है ?
बच्चों को भी गर्मीयों की छुट्टीयों मे पक्का था कि सतनाम अन्कल
ले ही जायेन्गे ! बच्चों की पसन्द ना पसन्द पर किसी साल शिमला,
कभी मसूरी, नैनीताल, और कश्मीर का भ्रमण होता ही रहा , इन
सरदार जी की वजह से ! भाई दोस्त हो तो ऐसा !
ताऊ के दोस्तां तैं परिचय की इस श्रन्खला मैं इब यो सरदार जी
तो दिखते ही रहेन्गे ! पर आज के एपीसोड के अन्त मे ध्यान आया कि
इनकी नजाकत का एक किस्सा नही सुनाया तो आपके और इनके दोनो
के साथ बे-इन्साफ़ी होगी ! अभी चन्द दिन पहले मैं इनके घर गया
था ! वहां पर ये सरदार साहब थे नही ! सरदारनी नै हम दोनुं ताऊ
ताई को बैठाया और पुराने जमाने की गप शप करते हुए आखिर
बात फ़िर सरदार जी पर ही आ गई ! और इनकी नाजुकता की चर्चा
चल पडी ! सरदारनी बोली - भाई साहब इनकी रईसी की तो तुस्सी
गल ही छ्ड दो ! इनकी रईसी कितनी महन्गी पडती है ? वो सब आपको
मालूम ही क्या है ?
मैं बोल्या- नही परजाई जी ! तुस्सी दस्सो ! मैं के जाणूं ?
सरदारनी बोली- घर के बाहर सब्जी वाला आया ! मैं कुछ काम मे व्यस्त
थी , और सलाद के खीरे खत्म हो गये थे ! मैने कहा- सरदार जी
बाहर सब्जी वाला आया है ! तुम जाके ले आवो !
अब इन्होने इनके आफ़िस पर फ़ोन करके मनोज (आफ़िस ब्वाय) को
बुलवाया ! वो मोटर साइकिल से पेट्रोल फ़ूक कर आया ! अन्दर बुला
कर उसको इन्होने २ रु. दिये और एक पाव खीरे बुलवा दिये ! और इनको
किसी भी काम का कहो तो यही होता है ! २ रू. के खीरे और उसके
लिये २० रु. का पेट्रोल फ़ुकवा देते हैं ।
(पम्मी भाभी से क्षमा-याचना सहित ! और अगर आप नाराज ही हो रही
हो तो आपकी मर्जी ! अबके होली पै ताऊ के मुंह पर लाल
की जगह काला गुलाल पोत देना !)
रविवार होने से सुबह घुमने के बाद थोडी देर वहीं बैठ कर ज्यादा
देर गप शप हो जाती है ! आज भी गप शप खत्म हो कर सब विदा
लेकर अपने अपने वाहन की तरफ़ बढ रहे हैं ! पता नही क्यूं ये
सरदारजी पलट कर आये और पुछने लगे- ताऊ तुने बम्बई मे क्या क्या
गुल खिलाए अबकी बार ये तो बताया ही नही ?
मैने कहा- यार सतनाम आज तो देर हो गई अगले रविवार बताउन्गा !
सरदार बोला-- अच्छा ये तो बतावो कि हमारे प्रधान मन्त्री मनमोहन
सिन्ह जी मार्निंग वाक शाम को ही क्यूं करते हैं ? अगर अपन भी मार्निंग
वाक सुबह की बजाए शाम को ही करें तो ?
मेरे को इच्छा हुई ये कहने की -- क्युंकि वो तेरी तरह सरदार है ! फ़िर सोचा यार ये
कही बुरा मान गया तो रविवार का सत्यानाश कर देगा , सो मैने बडे ही
शान्त भाव से जवाब दिया-- क्युंकि आदर्णीय मनमोहन सिन्घ जी PM हैं !
AM कोनी, जो सुबह घुमैगा ! जब PM सै तो शाम नै ही
मार्निन्ग वाक करैगा वो तो ! और तू PM कोनी !
सो तू सुबह ही कर मार्निंग वाक !
इस श्रंखला को शुरू करने का आइडिया मुझे मेरे ब्लॉग गुरु समीरजी,
(जिनसे मुझे ब्लागिंग का पहला सबक मिला ) के मून्नू और
अनुराग जी के "दस सालो मे कितना बदल गयी है शब ?" से मिला है !
अब मुझे महसूस हुवा है की हमारे आस पास ही कितना कुछ मौजूद है !
बस वो नजर चाहिए देखने के लिए !
अब आज मैंने कुछ ज्यादा ही पाससे सरदार जी को देख लिया है !
सरदार सतनाम सिंग से क्षमा याचना सहित !
अगले दोस्त की तलाश है !
"जब PM सै तो शाम नै ही मार्निन्ग वाक करैगा"
ReplyDeleteवह भाई वह, क्या बात कही है.
ताऊ, इब हम तो थारे मुरीद हो गए. आड़े न आवें तो खाना कोनी हज़म होता.
आपके दोस्त से मिलकर अच्छा लगा. अच्छा परिवार, अच्छे दोस्त खुशनसीबों को ही मिलते है. तस्वीर भी बहुत अच्छी लगी.
बहुत सही लिखा है आपने ! सतनाम सिंग जी
ReplyDeleteका चरित्र चित्रण इससे अच्छा तो हो ही
नही सकता ! आप लोगों को एक बार
कही डाकुओं ने भी पकड़ लिया था ना !
वो किस्सा भी तो जोड़ते ! मैंने सरदार जी
को फोन कर दिया है ! आपके पास आते
ही होंगे ! बचना ज़रा !
"नही परजाई जी ! तुस्सी दस्सो ! मैं के जाणूं ?" ये सही बात है क्या ? अगर सही है तो आप लोग धन्य हो | आप लोग तो यहीं स्वर्ग के मजे ले रहे हो | आपके निजी कलेक्शन की फोटो शानदार है | इतनी सुंदर फोटो निजी संग्रह में है ! मैं इसको सेव कर रहा हूँ | बहुत सुंदर लगी | ऐसी फोटो सिर्फ़ नेट पर ही मिलती है |
ReplyDeleteदुसरे दोस्तों से भी मिलवाएं !
ताऊहमारे भाजी की बहुत तारीफ़ कर रहे हो, क्या कही ओर जाने का प्रोगराम से के,भई आप का लेख अच्छा लगा, ओर दोस्त भी, धन्यवाद
ReplyDeleteखूब साहब | ये है दोस्ती | बहुत सुंदर लगा |
ReplyDeleteऔर आपकी दोस्ती से जलन हुई |
काश हमको भी ऐसे दोस्त मिल जाते ?
आज मजा आगया | बिल्कुल साहब असली देशी घी
ReplyDeleteवाली है ये दोस्ती तो | फोटो सहेजने लायक है |
दुसरे दोस्तों से जरुर मिलवाये |
am और pm वाला कांसेप्ट बिल्कुल फ़ीट बैठता है लगे रहिये
ReplyDeleteजी हाँ जिंदगिया हमारे आस पास ही बिखरी पड़ी है.बस इन्हे समेटने की जरुरत है.......
ReplyDeleteताऊ आपकी दोस्ती की दाद देनी पड़ेगी ....कामल का किस्सा है!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका अनुभव और दोस्ती |
ReplyDeleteवाकई मजाक के साथ साथ सादगी भी है |
पम --ऍम इस एपीसोड का बोनस है |
आपके दोस्तों से रूबरू करवाते रहिए !
आपने लिखा "दोस्त हो तो ऐसा"
ReplyDeleteऔर मैं कहता हूँ की " ताऊ हो तो ऐसा"
परम आनंद आया !
"क्युंकि आदरणीय मनमोहन सिन्घ जी PM हैं !
ReplyDeleteAM कोनी, जो सुबह घुमैगा ! जब PM सै तो
शाम नै ही मार्निन्ग वाक करैगा वो तो !
और तू PM कोनी !
सो तू सुबह ही कर मार्निंग वाक !"
अरे ताउओ ये तो समझो की शाम की
वाक् को मार्निंग वाक् नही कहते हैं |
अगर वो शाम को ही वाक् करते हैं |
तो वो इवनिंग वाक् कहलायेगी |
पर शाम के समय कोई भी मार्निंग
वाक् कैसे कर सकता है ?
पर ताउओ का क्या ? कभी भी ,
और कुछ भी कर सकते हैं |
मुझे तो करारा व्यंग लगा |
tauji ko ram ram...ye aapka AM/PM wala funda bahut jordaar laga. aajkal roj ek baar aapka blog zaroor dekhte hain....kuch der muskurane ka lobh nahii sambhal paate
ReplyDeleteओये साढा मितर हैगा ये तो भई ! इसदी होर गल्लां तुस्सी साढे नाल सुणो....... क्यों प्हाई सतनाम ..?
ReplyDeleteआप तो पत्थर फोड़ते रहो सतनाम सिंघ जी !
बहुत रोड बन रहे हैं !अच्छा धंधा है ! कुछ
गुरु ज्ञान चाहिए तो अपने को याद कर लेना !
आपकी सेवा करके मुझे ...क्या बताऊँ ?
sach mein dost ho to aisa....
ReplyDeletekai dino baad aapke blog par aana hua aur din tarotazaa ho gaya