भाई जगदीश त्रिपाठी जी और भाई रुक्का थमनै ताऊ की घणी
राम राम ! भाई थम दोनुं तो बिना मतलब नाराज होण लाग रे
हो ! भाई हम ४/५ दिन तैं बाहर चले गये थे ! हमनै मालूम सै
कि थारा म्हारे उपर घणा प्रेम हो रया सै ! भाई इब थम और
नाराज मत होवो ! ताऊ थारी सब नाराजी दुर कर देगा ! मन्नै बेरा सै कि
यो हरयानवी चाट की थमनै आदत सी पड गी सै ! और भाई थारी साथ
साथ यो आदत और कई लोगां नै भी लाग री सै !
भाई हम गये थे मुम्बई कोई काम वास्ते !
इब थम जानो हम तो सिधे साधे माणस सैं!
दिन मैं अपणा काम निपटा के शाम की समय राम जी भगवान
के मन्दिर मैं दर्शन करने चले गये ! वहां पर देख्या कि एक ताऊ
पहले से ही बैठया रोवण लाग रया था !
मैने पूछा -- अरे ताऊ तैं क्यूं रोवण लाग रया सै ?
वो ताऊ बोल्या-- अरे ताऊ रोऊं नही तो हन्सू क्युं कर ?
भाई बात ही म्हारे साथ ऐसी ही होगी सै !
मैने पूछा-- ताऊ तसल्ली तै बता तो सई के थारे साथ ऐसा के हो गया
जो तू इस तरियां रुक्के मार के रोवण लाग रया है ?
वो ताऊ बोल्या-- अरे भाई बात या सै कि मेरी लूगाई खो गई है !
और मैं उसको ढुन्ढ ढुन्ढ के घणा परेशान हो लिया ! सब जगह
ढुन्ढ ली और वो मिलदी कोनी ! और भाई पुलिस भी मेरी मदद करै
कोनी ! पुलिस आले मन्नै ताऊ समझ के दूर तैं ही भगा देवैं सै !
इब हार थक के परेशान होकै मैं रामजी धोरे आया हूं !
और फ़िर झुक कर रोते हुये प्रार्थना करता हुवा बोलण लाग गया--
हे राम जी भगवान मैं थारा १०१ रुप्पैये का प्रसाद बाटूंगा ! आप मेरी
लूगाई दिलवा दो ! और फ़िर वो रोण लाग गया !
भई इब मन्नै इस ताऊ की बात पर घणा छोह (गुस्सा) आया
और मैं बोल्या-- अरे बावलीबूच ताऊ ! अगर तेरी लूगाई (ताई) ही खो (गुम)
गई सै तो इत के करण आया सै ? भाई ये खुद (रामजी ) अपनी लूगाई को
नही ढुन्ढ पाये थे ! फ़िर तेरी लूगाई को क्या ढुन्ढ देंगे ?
वो किम्मै रोवंता सा बोल्या - साफ़ साफ़ बताओ !
मैं बोल्या -- भाई तैं एक काम कर ! यहां से उठ और हनुमानजी कै
धोरै जा ! रामजी की लुगाई नै भी वो हि ढुन्ढ के ल्याया था और
तेरी लुगाई को भी वो ही ढुन्ढ के ला देन्गे !
और भाई जब हनुमान जी नै रामजी की लुगाई को ढुन्ढ दिया तो
तेरी मदद वो सबसे पहले करेन्गे क्युंकी वो अपनी जात बिरादरी
के भी सैं ! सो तु जल्दी जा !
इब वो ताऊ किम्मै नाराज सा होता हुवा बोल्या-- अरे ओ ताऊ !
तु मुझे बेवकूफ़ क्युं बना रहा है ? ये हनुमान जी अपनी जात
बिरादरी के कैसे हो गये ?
मैं बोल्या-- अरे ताऊ नाराज क्युं कर होवै सै ? अरे भई लूगाई
तो खो गई थी रामजी की और पूंछ मै आग लगवा ली थी हनुमान जी नै !
अरे बावलीबूच ऐसा काम तो कोई ताऊ ही कर सकै सै !
तो इब बता हनुमान जी अपनी जात बिरादरी के हुये कि नहीं ?
राम राम ! भाई थम दोनुं तो बिना मतलब नाराज होण लाग रे
हो ! भाई हम ४/५ दिन तैं बाहर चले गये थे ! हमनै मालूम सै
कि थारा म्हारे उपर घणा प्रेम हो रया सै ! भाई इब थम और
नाराज मत होवो ! ताऊ थारी सब नाराजी दुर कर देगा ! मन्नै बेरा सै कि
यो हरयानवी चाट की थमनै आदत सी पड गी सै ! और भाई थारी साथ
साथ यो आदत और कई लोगां नै भी लाग री सै !
भाई हम गये थे मुम्बई कोई काम वास्ते !
इब थम जानो हम तो सिधे साधे माणस सैं!
दिन मैं अपणा काम निपटा के शाम की समय राम जी भगवान
के मन्दिर मैं दर्शन करने चले गये ! वहां पर देख्या कि एक ताऊ
पहले से ही बैठया रोवण लाग रया था !
मैने पूछा -- अरे ताऊ तैं क्यूं रोवण लाग रया सै ?
वो ताऊ बोल्या-- अरे ताऊ रोऊं नही तो हन्सू क्युं कर ?
भाई बात ही म्हारे साथ ऐसी ही होगी सै !
मैने पूछा-- ताऊ तसल्ली तै बता तो सई के थारे साथ ऐसा के हो गया
जो तू इस तरियां रुक्के मार के रोवण लाग रया है ?
वो ताऊ बोल्या-- अरे भाई बात या सै कि मेरी लूगाई खो गई है !
और मैं उसको ढुन्ढ ढुन्ढ के घणा परेशान हो लिया ! सब जगह
ढुन्ढ ली और वो मिलदी कोनी ! और भाई पुलिस भी मेरी मदद करै
कोनी ! पुलिस आले मन्नै ताऊ समझ के दूर तैं ही भगा देवैं सै !
इब हार थक के परेशान होकै मैं रामजी धोरे आया हूं !
और फ़िर झुक कर रोते हुये प्रार्थना करता हुवा बोलण लाग गया--
हे राम जी भगवान मैं थारा १०१ रुप्पैये का प्रसाद बाटूंगा ! आप मेरी
लूगाई दिलवा दो ! और फ़िर वो रोण लाग गया !
भई इब मन्नै इस ताऊ की बात पर घणा छोह (गुस्सा) आया
और मैं बोल्या-- अरे बावलीबूच ताऊ ! अगर तेरी लूगाई (ताई) ही खो (गुम)
गई सै तो इत के करण आया सै ? भाई ये खुद (रामजी ) अपनी लूगाई को
नही ढुन्ढ पाये थे ! फ़िर तेरी लूगाई को क्या ढुन्ढ देंगे ?
वो किम्मै रोवंता सा बोल्या - साफ़ साफ़ बताओ !
मैं बोल्या -- भाई तैं एक काम कर ! यहां से उठ और हनुमानजी कै
धोरै जा ! रामजी की लुगाई नै भी वो हि ढुन्ढ के ल्याया था और
तेरी लुगाई को भी वो ही ढुन्ढ के ला देन्गे !
और भाई जब हनुमान जी नै रामजी की लुगाई को ढुन्ढ दिया तो
तेरी मदद वो सबसे पहले करेन्गे क्युंकी वो अपनी जात बिरादरी
के भी सैं ! सो तु जल्दी जा !
इब वो ताऊ किम्मै नाराज सा होता हुवा बोल्या-- अरे ओ ताऊ !
तु मुझे बेवकूफ़ क्युं बना रहा है ? ये हनुमान जी अपनी जात
बिरादरी के कैसे हो गये ?
मैं बोल्या-- अरे ताऊ नाराज क्युं कर होवै सै ? अरे भई लूगाई
तो खो गई थी रामजी की और पूंछ मै आग लगवा ली थी हनुमान जी नै !
अरे बावलीबूच ऐसा काम तो कोई ताऊ ही कर सकै सै !
तो इब बता हनुमान जी अपनी जात बिरादरी के हुये कि नहीं ?
ताऊ, तेरे फैण तो घणे हम भी हैं ।
ReplyDeleteकई लोगां नै मेरा भी नाम दर्ज़ कर ले, पण ताऊ इक बात सै, बोल तो लिखूँ ? लिख भी देत्ता मैं तो, तू इंदौर से बैट्ठा मेरा के कर लेगा ?
वो बात जे सै कि तू इस तरियां पोस्ट बिच्च में छोड़ा कर । इस्टोरी तो पूरी कर दे । म्हारे हनुमान
नै कोई मज़ूरी भी ना ली । राम को गद्दी मिल्ली तो भी मंत्रीपद ना लिया , जे भी तो लिखता । इब ये ना सोच के तेरे घोरे आकर पोस्ट भी घणी पूरी करणी मेरे जिम्मे, हौर टिप्पणी को भी फेंकणा पड्डे, तैं दोबारे मेरे को ना देखेगा, अपणी गल्ली में !
इब बोल राम राम..बोल जय श्रीराम..बोल जय बजरंग बली ।
बहुत खूब. हनुमान जी तो सबको अपने ही लगते हैं.
ReplyDeleteवाह ताऊ ये हुई आड़े असली बात !
ReplyDeleteएक जगह पढ़या था हनुमान जी भी जाट
था ! आज थमनै ताऊ बना लिया ! जय हो
हरयाना नरेशों की ! पर यो किस्सा म्हारे
दादा जी नै हमको सुनाया था !
आनंद घणा आया ! लिखते रहो !
हनुमान जी नै ठेका काढ राख्या सै के अण कामां का ?
ReplyDeleteकित सै ढुन्ढ ढान्ढ के ल्यांदे हो ये सब किस्से !
पेट दुखण लाग ज्यावै सै हंस हंस कै ! कोई गोली
दवाई भी लिख्या करो साथ साथ में !
ताऊ एक बात बताओ की १०१ रुपये के प्रसाद में
ReplyDeleteकिस तरह भगवान् लुगाई ढुन्ढ देंगे ! और वो भी
काम होने के बाद ! आज कल इतने में तो
पुलिस भी रिपोर्ट नही लिखती ! कम से कम
२१०० रु. का प्रसाद बोलता तो ताई ऐसे ही मिल जाती !
हा... हा... हा....
Arvind from Rohtak (haryana)
ReplyDeleteyes its real harayanavi !
keep up the good work taau !
हा हा!! सही है ऐसा काम तो कोई ताउ ही कर सकता है. :) मजा आ गया.
ReplyDeleteभई ताऊ तो सीधा साधा से म्हारे हनुमान की तरह से, तु ताऊ फ़िक्र मत ना करिओ, ताई ना खोवे वो तो पिटन लाग री से स्कुटर आले ने, बस हाथ झाड के आबेगी, रामपुरिया भाई थारी मेरअबानी, तम्ने ताऊ का हाल चाल लिखया,
ReplyDeleteताऊ थारा यो किस्सा तो घणा मजेदार रहा |
ReplyDeleteइब आज एक हम भी सुणा देते हैं एक बार एक ताऊ का छोरा बस अड्डे पर खडा था | उसको कहीं जाना था |बस आने में देर थी |
वो वहीं पर एक सुथरी (smart) सी छोरी के पास जाकै बार बार टाइम पूछ रहा था !
क्या टाइम हो गया ! ३ बार , ४ बार |
वो पूछे ही जाता था |
और वो छोरी बता देती थी |
फ़िर ५ वीं बार पूछा - जी के टाइम हो गया ?
अब वो छोरी भी हरयाणवी थी ! उसको भी घणा
छोह आ गया और वो बोली-- इब दो मिनट रह
रहे सें तेरे रैपटा (चांटा) बजावन मै ! और बजा दिए उसके कान तले नै दो रैपटे !
हा .. हा... हा....!:)
इब के मज़ा आ गया ताऊ.
ReplyDeleteपोस्ट तो अच्छी है ही कमेन्ट भी कोई कम न हैं. इसी को कहते हैं - ताऊ सेर तो भतीजे सवा सेर.
जय हो थारी ताऊ ! आज तो घणै मोटे
ReplyDeleteचाल्हे काट राखे सें ताई मिल गी होवे तो
ख़बर करियो ! म्हारे चिंता हो री सै !
पुलिस थारी रिपोर्ट ना लिख री होवे तै
मैं लिखवा दूंगी ! म्हारी जान पहचान सै पुलिस मैं !
हा हा हा .....!
ताऊ आप क्या मुम्बई में सिर्फ़ रामजी के मन्दिर में ही गए थे ? और कहाँ कहाँ मजे लिए ?
ReplyDeleteये भी तो बतलावो ! या आप वाकई इतने ही
शरीफ हो ?
जय हो ताऊ की ,हमारे तो मन में बस गये है ताऊ ,यूँ भी हरियाणा से म्हारा घना नाता है इब के सोच्चे की ताऊ नाल कुछ टेम गुजार आँवे
ReplyDeleteताई हीरोइन बनीं ,ताऊ सुन लो बात
ReplyDeleteचित्र मल्लिका का लिए,घूमो तुम दिन रात
घूमो तुम दिन रात,हसें सब साथी-संगी
बिरादरी की बात,करो तुम कुछ बजरंगी
भाई डाक्टर अनुराग जी आप पधारो तो सही !
ReplyDeleteम्हारे हरयाणा में दो ही तो कलचर सें ! पहला
एग्रीकलचर और दूसरा बटेऊ-कलचर !
थम पधारोगे तो कुछ मीठा माठा म्हाने भी
थारे बहाने मिल ज्यागा ! नही तो थारी ताई नै
म्हारा राशन पाणी लिमिटेड कर राख्या सै !
थारी आण की तारीख जल्दी तैं बतावो !
मीठा खाण की इच्छा घणी हो री सै !
हरयाणवी पढ़ पढ़ के मजे आरहे हैं !
ReplyDeleteलगता सीखनी ही पड़ेगी ! आपसे एक निवेदन है
की अगर सम्भव हो तो कुछ शब्दों के
भावार्थ भी दे दे !
वाह क्या कहने हरयाणवी के ! ताई खोने
ReplyDeleteके बाद मिली या हम ढुन्ढने का प्रबंध
करे ! हमारी सहानुभूती ताऊ के साथ है !
जय हरयाणवी
ReplyDeleteईस्ट होवे या वैस्ट,रा ताऊ इज दा बैस्ट.!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeletehahahha.... bahut khoob bahit khoob tauji.... saare tau ek jaise hi hove hain... bas muh khole ki sab hase hain...
ReplyDeletemazaa aa gayaa... padh kar
tauji ko ram-ram. Hanumanji kaun the...aaj iska badhiya jawaab hame mil gaya.
ReplyDeleteBolo Bajrang Bali ki Jai.
bahut khoob dost. magar main ye kissa pehle sun chuka hu. kyonki apke jaisa hi tau mere dept. main hai aur mera badhiya dost hai. fir bhi sundar laga padhkar. shubkamnaye, aap likhte rahe hum padhte rahenge
ReplyDeletebahut khoob dost. bahut sundar haryanvi main likhte hain. main ye kissa pehle sun chuka hu. kyonki apke jaisa hi tau mere dept. main hai aur mera badhiya dost hai.
ReplyDeleteshubhkamnaye, aap likhte rahe hum padhte rahenge.