आज इस पावन पर्व पर "हरियाणवी ठिलुआ संघ" द्वारा आयोजित गजल संध्या में आप सबका स्वागत करणै म्ह घणी खुशी का स्वाद आरया सै. ऐं मौका पै पर म्हारी यो पुराणी गजल सुणाते हुये मन्नै घणी खुशी होरी सै. खुशी का ठिकाणा कोनी......बस नू समझ लो कि ताई के लठ्ठ खाणै तैं भी ज्यादा आनंद आरया सै. इब मैं अपणी यों पुराणी और ताजा (दोनों एक साथ) गजल आपको सुणा रह्या सूं.....जरा कसकै तालियां मारणा.... तालियां ना मारो तो कोई बात नही.....टमाटर भी मार सको हो....टमाटर घणे महंगे हो राखें सैं....घर ले जाऊंगा तो आज सब्जी बण ज्यागी. घणी महंगी सब्जी की वजह तैं घर म्ह सब्जी कई दिनां तैं बणी कोनी. तो टमाटर मारणा बिल्कुल भी नहीं भूलणा....
इब गजल का मतला अर्ज कर रह्या सूं....
खुद ही उल्टा सीधा, फ़रेबगिरी का पाठ पढावै क्य़ूं सै
सूखी बालू पै इब यो, चांद की तस्वीर, बनावै क्य़ूं सै
इब आगे सुणो....
तू तो नू कहवै थी मन्नै, प्रीत नही सै इब मेरे धौरे
ऐसी तैसी करकै मेरी, कमरां म्ह फ़ूल सजावै क्यूं सै
जिण सपना तैं नींद उड ज्यावै, ऐसे सपने देखे कौण
झूंठ मूंठ तसल्ली पाकै, जिंदगी खराब करावै क्यूं सै
चांद निकल कर छत पै आया, घणी चांदनी बिखराता
पल दो पल की तेरी चांदनी, फ़िर घणा इतरावै क्यूं सै
इब मकता यो रह्या....
जिन रास्तों पै तू चाल्या, उन पर चलकर बचा है कौण
लेकिन ताऊ, आधे रस्ते तैं, इब उल्टा मुंह घुमावै क्यूं सै
आभार....रामराम.
अब अगली रचना पढने आ रहे हैं हमारे आजीवन अध्यक्ष महोदय डा. टी. एस. दराल साहब....तालियां बजाकर घणै सारे टमाटरों की बौछार किजिये.......
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"हरियाणवी ठिलुआ संघ" की सदस्यता देना चालू है. जो भी सज्जन लेना चाहे वो तुरंत संपर्क करें. इसके अलावा मंच के अन्य पद भी उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं.
आजीवन अध्यक्ष
डा. टी. एस. दराल
आजीवन कोषाध्यक्ष
ताऊ रामपुरिया
आजीवन अध्यक्ष
डा. टी. एस. दराल
आजीवन कोषाध्यक्ष
ताऊ रामपुरिया
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
राम राम
ReplyDeleteभोत इ बढिया
ReplyDeleteताऊ के लठ्ठ में है वो जाण कि सब ब्लॉगरण का मुंह भी उलटा घुमाए देओ से..
ReplyDeleteजय हिन्द...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग
जबरिया मैम्बरशिप हमाई भी
ReplyDeleteहरियाणवी मे गज़ल -- ताऊ नै चाला पाड़ दिया . ईब एक शे'र भी हो जाये ...
ReplyDeleteदोनों ग़ज़ल बढ़िया ...
ReplyDeleteजिण सपना तैं नींद उड ज्यावै, ऐसे सपने देखे कौण
झूंठ मूंठ तसल्ली पाकै, जिंदगी खराब करावै क्यूं सै
गजल तो बढ़िया से पर आजीवन कोषाध्यक्ष वाली बात कोन्या पले पङी।
ReplyDeleteइब आगे सुणो....
ReplyDelete...हिम्मत ही छुट गई रे ताऊ..फिर भी कोशिश करेंगे सुबह उठ कर :)
गजल संध्या...दोनों के आसूं न देखे जा रहे हैं...न गज़ल के..न संध्या के... :( एक बार फूट कर रो देने का मन है
ReplyDeleteजिन रास्तों पै तू चाल्या, उन पर चलकर बचा है कौण
ReplyDeleteलेकिन ताऊ, आधे रस्ते तैं, इब उल्टा मुंह घुमावै क्यूं सै......"हरियाणवी ठिलुआ संघ"
घणी राम राम सु ताऊ जी ......
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति :-)
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-07-2017) को चर्चामंच 2663 ; दोहे "जय हो देव सुरेश" पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गजल सुणाते हुये मन्नै घणी खुशी होरी सै.........थ्हारी खुसी में म्हारी खुसी सै
ReplyDeleteलागै सै ताऊ ने घणी खुसी होगी सै ब्लॉग वापसी की .......अलग ही रंग में आग्यो
ReplyDeleteहरियाणवी मे ग़ज़ल बढ़िया लगी
ReplyDeleteवाह वाह!
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