कहानी किस्से कहना सुनना ही लोग भूल चुके हैं तो आज आपको एक किस्सा सुना रहे हैं पर आप लोग ये मत समझना कि मैं आपको ऐसे ही कोई ऐरी गैरी कहानी सुना रहा हूं. आप अब कोई बच्चे तो हो नही जो मैं आपको बहलाने के लिये कुछ भी कहानी किस्सा जोड जाडकर सुना दूं...ये कहानी बिल्कुल खरी सौ प्रतिशत सही है, तो सुनिये...
.......
एक था गधा... और वो भी था एक धोबी का गधा..अब आप पूछोगे कि ताऊ ये कौनसे जमाने की बात है ? आज कल ना तो धोबी रहे और ना उनके पास गधे? अब जो धोबी थे उन्होंने लांड्रियां खोल ली और गधे की जगह स्कूटर ने ले ली.......फ़िर ये धोबी और उसका गधा कहां से टपक गये आपकी कहानी मे?
बिल्कूल भाई... थारी बात भी कती सांची सै, पर यार ये तो सोचो की सारे कुओं में ही भांग थोडेई पडगी सै ? अरे भाई थोडे बहुत परम्परावादी धोबी आज भी जिंदा सैं और उतने ही परम्परा वादी और वफ़ादार उनके गधे भी मौजूद सैं....भाई यकिन ना आरया हो तो आजाना ताऊ के धौरै (पास)... आपको मिलवा देंगे, इस परंपरावादी ज्ञानी धोबी और उसके गधे चन्दू से.
ये दोनों यानि ज्ञानी धोबी और चंदू गधा, बडे मजे मे थे. रोज सुबह धोबी अपने जवान गधे पर कपडे लाद के, छोरियां के कालेज कै सामने से होता हुया कपडे धोनै जलेबी घाट जाया करता और धोबी जब तक अपने कपडे धोता तब तक चन्दू गधा नदी किनारे की हरी हरी घास खाया करता. फ़िर भी समय बचता तो ठंडी छांव मे लोट पोट हो लिया करता. चंदू इतना सुथरा और गबरू गधा था की , आप पूछो ही मत.....ये तो ज्ञानी धोबी ने इसका नाम चंदू रख दिया, इसकी जगह सलमान या शाहरूख भी रख देता तो सही होता क्योंकि इस गबरू गधे के सामने ये दोनों हीरो बिल्कुल जीरो ही लगेंगे आपको.
कभी चंदू गधे का मूड आजाया करता था तो नेकी राम की रागनी भी बडे उंचे सुर मे गा लिया करता था.... और भाई बडा सुथरा गाया करै था....राग खींचने में तो इसको महारत हासिल थी. अच्छे से अच्छा और बडे से बडा गवैया भी इसके सामने पानी भरता ही नजर आता. पर पता नही यो गधा कुण सी जात का था कि इतना सुन्दर, जवान और पक्के रागों का जानकार होने के बाद भी इसने कभी किसी पराई गधी पर बुरी नजर नही डाली....और ना ही कभी किसी गधी पर लाइन मारने की सोची...किसी शरीफ़ प्रजाति से ताल्लूक रखने वाला रहा होगा.
वहां जलेबी घाट पर दुसरे धोबियों और कुम्हारों की सुन्दर सुन्दर और जवान गधियां भी आया करती थी. कोई कोई कपडे और मटकों को लाद कर आती थी तो कई यों ही मटरगश्ती करने चली आती थी. कुछ दिनों से ये देखने में आ रहा था कि जलेबी घाट पर जवान और शोख गधेडियों की आवक जावक बहुत बढ गयी थी. जब इतनी सजी धजी गधेडियों की आवक बढ गई तो स्वभाविक ही था कि आवारा और मटरगश्ती वाले गधों की भी बाढ सी आगई थी वहां. हर कोई महंगे से महंगे मोबाईल हाथ में थामे...अपनी पसंद की गधेडी पर लाईन मारने की कोशीश में लगा रहता था. बस यूं समझिये कि ये धोबी घाट ना होकर कोई कोचिंग क्लास का अड्डा हो गया था जहां कई तो तफ़रीह बाजी करने के लिये ही एडमिशन ले लिया करते हैं.
पर मजाल जो कभी चन्दू गधे ने सजी धजी गधियों की तरफ़ नजर उठा कर भी देखा हो. हालांकि ये और बात है कि चन्दू की हीरो टाईप बाडी और शराफ़त को देखते हुये, उसको रिझाने के लिये काफ़ी सारी गधियों ने बहुत सारी कोशिशें की जो सब बेकार ही गई, यहां तक कि उन पुरातन पन्थी गधियों ने भी टाइट जीन्स और लांडी कुर्ती भी पहनना शुरू कर दिया पर वो चन्दू का दिल नही जीत सकी. उनका लांडी कुर्ती और टाईट जींस पहनना भी बेकार साबित हुआ.
चंदू था ही इतना शरीफ़ कि, जब वो लंच करता हुवा यानि घास चरता हुवा कभी कभार भूलवश इन गधियों के झूंड के बीच पहुंच जाता तो भी उन सुन्दर और जवान गधियों के मालिकों को कभी कोई ऐतराज नही होता था, बल्कि कोई कोई तो अपनी गधी का ध्यान रखने का जिम्मा भी चन्दू गधे को दे देता कि कहीं कोई दूसरा आवारा टाईप शोहदा गधा उनकी जवान गधी को बहला फ़ुसला कर भगा ना ले जाये. तो इतना शरीफ़ और लायक था चन्दू.
इधर कुछ दिनों से ज्ञानी धोबी ने नोटिस किया कि आजकल कालेज के सामने से निकलते हुये चंदू थोडा धीरे चलने लगता था और कालेज के सामने वाली दुकान पर आकर तो एकदम रुक ही जाता था. अब ज्ञानी धोबी को क्या पता कि उसके शरीफ़ और नेक चंदू को असल में एक सुन्दर, जवान और चटक मटक सी कालेज की छोरी से इश्क हो चला था...धोबी ठहरा पुराने जमाने का सो इस जवान गधे की प्रेम लीला की तरफ़ उसका ध्यान ही नही गया.
अब गधा तो गधा... सो चढ गया इस नव यौवना बला के चाल्हे में. सो आजकल चंदू गधा बडे रोमान्टिक मूड में रहने लगा और घर से गठरी लादने के पहले शीशे के सामने खडा होकर बाल बनाता, दाढी कटिंग सब सलमान खान टाईप करके घर से निकलता था. अब धीरे धीरे इन दोनों का इश्क परवान चढने लगा. कभी छोरी इसके तरफ़ देखकर मुसकरा देती थी, कभी बाल झटककर अपनी अदा दिखा देती और कभी मुस्करा के गर्दन को बडी अदा से घुमाकर अपने मोबाईल में खो जाती. अब उसको क्या पता कि उसकी इन अदाओं से चंदू का दिल घायल हो चुका था.
और इधर चंदू गधा भी कभी आंख का कोना दबा कर और कभी कोइ प्रेम गीत गुन गुना कर जबाव देता था. गाने में तो चंदू माहिर था ही. चंदू की जबान पर आजकल बस यही एक गाना रहने लगा....."हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने".... जब कभी वो शोख गधी इसके पास से निकलती बस चंदू के होठों से यही गीत फ़ूटता था और बाकी भी चंदू की आत्मा में यह गाना अंतर्संगीत की तरह गुंजायमान रहने लगा.
आप ये समझ लिजिये कि अब से पहले भी इस हसींन जवान कन्या ने कई गधों को अपने इश्क के जाल मैं उलझाया था और अबके बारी आगयी इस चिकने और कर्म जले चन्दू गधे की जो इतनी सुन्दर और सुशील गधियों को छोडकर इस सर्राटा आफ़त के लपेटे मे आगया....ईश्वर भी सीधे लोगों को ही इन चक्करों में उलझाता है वर्ना कोइ चालू गधा होता तो फ़ंसता ही नही और फ़ंस भी जाता तो ही ही ही करके बाहर भी निकल लेता.
अब धीरे धीरे बात यहां तक आ गई कि दोनों डेटिंग भी करने लग गये. धोबी जब तक कपडे धोता तब तक चन्दू गधा फ़ुर्र हो लेता और वो जवान छोरी भी तडी मारके कालेज से गायब और सीधे जलेबी घाट पर चंदू के साथ....दोनों कभी माल मे जाकर सिनेमा देखते.....कभी काफ़ी शाप में गपशप....दोनों अलग होते तो अपने मोबाईल पर व्हाटस-एप्प या अन्य किसी मेसेंजर को आबाद करते....
ये समझ लिजीये कि चन्दू तो 24 घन्टे इसी परी के ख्वाबों और ख्यालों में डूबा रहने लग गया. उस इश्क के अन्धे को ये भी नही दिखाई दिया कि उन दोनों को खुले आम लप्पे झप्पे करते देख कर दूसरे गधे भी उस कन्या पर डोरे डालने में लगे हुये हैं.कुछ समय बाद चन्दू को लगा की वो कन्या उससे कुछ ढंग से बात नही करती थी और उससे कूछ उखडी उखडी सी रहने लगी थी. अब चन्दू ठहरा सीधा बांका नौजवान और उपर से गधा , सो वो क्या जाने इन अजाबों के चाल्हे....
इस सीधे सादे गधे चंदू को क्या मालूम था कि वो बला तो उसके साथ अपना टाइम पास कर रही थी, वर्ना तो उसके सामने क्या चन्दू और क्या चन्दू की ओकात ! और अपने लिये एक मोटे से बैंक बैलेंस वाले आसामी की तलाश में थी. चंदू तो एक खिलौना था उसके लिये....
अपनी जात से बाहर जाकर प्यार करने के यही अन्जाम हुआ करते हैं गधा होकर आदमजाद से प्यार करने चला था नाशपीटा...... गधा कहीं का....... ! हमने तो यही सुना था कि गधे ही दुल्लत्ती झाडा करते हैं पर इस बला ने तो चन्दू गधे को वो दुल्लत्ती मारी कि चन्दू ओंधे मुंह चारों खाने चित्त हो गया.
वाह रे चन्दू गधे की किस्मत.....तूने भी क्या कमाल दिखाया बेचारे को? असल में हुआ ये की अब उस छोरी का दिल चन्दू से ऊब गया था और वो अपनी तलाश के मुताबिक उसने एक सेठ के गधे को फ़ंसा लिया या खुद फ़ंस गई...! ये सेठ का गधा भी क्या गधा? बल्कि गधे के नाम पर कलंक, पर चुंकि सेठ का गधा था... तो था... आप और हम इसमे क्या कर लेंगे? इसीलिये तो कहते हैं "जिसका सेठ मेहरवान उसका गधा पहलवान" ! बिल्कुल मोटा काला भुसन्ड और दो जवान बच्चों का बाप था ये गधा....
पैसे वाले सेठ का गधा था सो मर्सडीज कार में चलता था और उसने भी इस गधी पर बहुत दिनों से डोरे डालने शुरू कर रखे थे. अब कहां ज्ञानी धोबी का गधा चन्दू और कहां सेठ किरोडीमल का गधा? चन्दू पैदल छाप और ये मर्सडिज बेन्ज मै चलने वाला गधा... सो छोरी को तो फ़सना ही था... फ़ंस ली....हो सकता है दोनों ने एक दूसरे को फ़ंसाया हो या किसी एक ने....पर एक बात पक्की है कि छोरी का फ़ंसना और फ़ंसाना ही उसके प्रिय शगल थे, तो सेठ किरोडीमल के गधे पर ही सारा दोष भी नहीं मढ सकते. किरोडीमल सेठ के गधे ने इस गधी के नखरे उठाने मे कोई कोर कसर नहीं रखी. एपल के मोबाईल से लेकर तो एक से एक ब्रांडेड कपडे, परफ़्यूम गिफ़्ट में ऐसे देता था जैसे चार रूपये की मूंगफ़ली खा ली हो. चन्दू की तो इस सेठ के गधे के सामने ओकात ही क्या ?
अब चन्दू सडक के बीचों बीच गाता जा रहा था..." वो तेरे प्यार का गम इक बहाना था सनम".......ताऊ उधर तैं निकल रह्या था ! गधे नै यो गाना गाते हुये सुण के बोल्या - अबे सुसरी के ! बेवकूफ़ गधे के बच्चे...! इब क्युं देवदास बण रह्या सै? तेरे को पहले सोचना चाहिये था कि इन बलाओं से तेरे जैसे साधारण गधे को इश्क नही करना चाहिये. इनसे तो कोई बडे सेठ का गधा ही इश्क कर सकै सै, फ़िर वो भले ही दो जवान बच्चों का बाप हो या काला मोटा और उम्रदराज हो ? आखिर धन माया ही तो सब कुछ है इस जमाने में...अरे उल्लू के पठ्ठे... ये कोइ लैला मजनूं वाला जमाना नही सै.... अबे गधेराम ये इक्कसवीं सदी है, इसमे तो धन माया के पीछे भाई भाई , बाप बेटे यहां तक की मियां बीबी भी एक दुसरे की कब्र खोद देवैं सै ! तू भले कितना ही सुथरा और शरीफ़ गधा हो, पर है तो तू आखिर ज्ञानी धोबी का ही गधा.....!
और ये सुन कर चन्दू , चुपचाप, हारे जुआरी जैसा कपडे की गठरी लादे जलेबी घाट की और बढ लिय’.
एक था गधा... और वो भी था एक धोबी का गधा..अब आप पूछोगे कि ताऊ ये कौनसे जमाने की बात है ? आज कल ना तो धोबी रहे और ना उनके पास गधे? अब जो धोबी थे उन्होंने लांड्रियां खोल ली और गधे की जगह स्कूटर ने ले ली.......फ़िर ये धोबी और उसका गधा कहां से टपक गये आपकी कहानी मे?
बिल्कूल भाई... थारी बात भी कती सांची सै, पर यार ये तो सोचो की सारे कुओं में ही भांग थोडेई पडगी सै ? अरे भाई थोडे बहुत परम्परावादी धोबी आज भी जिंदा सैं और उतने ही परम्परा वादी और वफ़ादार उनके गधे भी मौजूद सैं....भाई यकिन ना आरया हो तो आजाना ताऊ के धौरै (पास)... आपको मिलवा देंगे, इस परंपरावादी ज्ञानी धोबी और उसके गधे चन्दू से.
ये दोनों यानि ज्ञानी धोबी और चंदू गधा, बडे मजे मे थे. रोज सुबह धोबी अपने जवान गधे पर कपडे लाद के, छोरियां के कालेज कै सामने से होता हुया कपडे धोनै जलेबी घाट जाया करता और धोबी जब तक अपने कपडे धोता तब तक चन्दू गधा नदी किनारे की हरी हरी घास खाया करता. फ़िर भी समय बचता तो ठंडी छांव मे लोट पोट हो लिया करता. चंदू इतना सुथरा और गबरू गधा था की , आप पूछो ही मत.....ये तो ज्ञानी धोबी ने इसका नाम चंदू रख दिया, इसकी जगह सलमान या शाहरूख भी रख देता तो सही होता क्योंकि इस गबरू गधे के सामने ये दोनों हीरो बिल्कुल जीरो ही लगेंगे आपको.
कभी चंदू गधे का मूड आजाया करता था तो नेकी राम की रागनी भी बडे उंचे सुर मे गा लिया करता था.... और भाई बडा सुथरा गाया करै था....राग खींचने में तो इसको महारत हासिल थी. अच्छे से अच्छा और बडे से बडा गवैया भी इसके सामने पानी भरता ही नजर आता. पर पता नही यो गधा कुण सी जात का था कि इतना सुन्दर, जवान और पक्के रागों का जानकार होने के बाद भी इसने कभी किसी पराई गधी पर बुरी नजर नही डाली....और ना ही कभी किसी गधी पर लाइन मारने की सोची...किसी शरीफ़ प्रजाति से ताल्लूक रखने वाला रहा होगा.
वहां जलेबी घाट पर दुसरे धोबियों और कुम्हारों की सुन्दर सुन्दर और जवान गधियां भी आया करती थी. कोई कोई कपडे और मटकों को लाद कर आती थी तो कई यों ही मटरगश्ती करने चली आती थी. कुछ दिनों से ये देखने में आ रहा था कि जलेबी घाट पर जवान और शोख गधेडियों की आवक जावक बहुत बढ गयी थी. जब इतनी सजी धजी गधेडियों की आवक बढ गई तो स्वभाविक ही था कि आवारा और मटरगश्ती वाले गधों की भी बाढ सी आगई थी वहां. हर कोई महंगे से महंगे मोबाईल हाथ में थामे...अपनी पसंद की गधेडी पर लाईन मारने की कोशीश में लगा रहता था. बस यूं समझिये कि ये धोबी घाट ना होकर कोई कोचिंग क्लास का अड्डा हो गया था जहां कई तो तफ़रीह बाजी करने के लिये ही एडमिशन ले लिया करते हैं.
पर मजाल जो कभी चन्दू गधे ने सजी धजी गधियों की तरफ़ नजर उठा कर भी देखा हो. हालांकि ये और बात है कि चन्दू की हीरो टाईप बाडी और शराफ़त को देखते हुये, उसको रिझाने के लिये काफ़ी सारी गधियों ने बहुत सारी कोशिशें की जो सब बेकार ही गई, यहां तक कि उन पुरातन पन्थी गधियों ने भी टाइट जीन्स और लांडी कुर्ती भी पहनना शुरू कर दिया पर वो चन्दू का दिल नही जीत सकी. उनका लांडी कुर्ती और टाईट जींस पहनना भी बेकार साबित हुआ.
चंदू था ही इतना शरीफ़ कि, जब वो लंच करता हुवा यानि घास चरता हुवा कभी कभार भूलवश इन गधियों के झूंड के बीच पहुंच जाता तो भी उन सुन्दर और जवान गधियों के मालिकों को कभी कोई ऐतराज नही होता था, बल्कि कोई कोई तो अपनी गधी का ध्यान रखने का जिम्मा भी चन्दू गधे को दे देता कि कहीं कोई दूसरा आवारा टाईप शोहदा गधा उनकी जवान गधी को बहला फ़ुसला कर भगा ना ले जाये. तो इतना शरीफ़ और लायक था चन्दू.
इधर कुछ दिनों से ज्ञानी धोबी ने नोटिस किया कि आजकल कालेज के सामने से निकलते हुये चंदू थोडा धीरे चलने लगता था और कालेज के सामने वाली दुकान पर आकर तो एकदम रुक ही जाता था. अब ज्ञानी धोबी को क्या पता कि उसके शरीफ़ और नेक चंदू को असल में एक सुन्दर, जवान और चटक मटक सी कालेज की छोरी से इश्क हो चला था...धोबी ठहरा पुराने जमाने का सो इस जवान गधे की प्रेम लीला की तरफ़ उसका ध्यान ही नही गया.
अब गधा तो गधा... सो चढ गया इस नव यौवना बला के चाल्हे में. सो आजकल चंदू गधा बडे रोमान्टिक मूड में रहने लगा और घर से गठरी लादने के पहले शीशे के सामने खडा होकर बाल बनाता, दाढी कटिंग सब सलमान खान टाईप करके घर से निकलता था. अब धीरे धीरे इन दोनों का इश्क परवान चढने लगा. कभी छोरी इसके तरफ़ देखकर मुसकरा देती थी, कभी बाल झटककर अपनी अदा दिखा देती और कभी मुस्करा के गर्दन को बडी अदा से घुमाकर अपने मोबाईल में खो जाती. अब उसको क्या पता कि उसकी इन अदाओं से चंदू का दिल घायल हो चुका था.
और इधर चंदू गधा भी कभी आंख का कोना दबा कर और कभी कोइ प्रेम गीत गुन गुना कर जबाव देता था. गाने में तो चंदू माहिर था ही. चंदू की जबान पर आजकल बस यही एक गाना रहने लगा....."हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने".... जब कभी वो शोख गधी इसके पास से निकलती बस चंदू के होठों से यही गीत फ़ूटता था और बाकी भी चंदू की आत्मा में यह गाना अंतर्संगीत की तरह गुंजायमान रहने लगा.
आप ये समझ लिजिये कि अब से पहले भी इस हसींन जवान कन्या ने कई गधों को अपने इश्क के जाल मैं उलझाया था और अबके बारी आगयी इस चिकने और कर्म जले चन्दू गधे की जो इतनी सुन्दर और सुशील गधियों को छोडकर इस सर्राटा आफ़त के लपेटे मे आगया....ईश्वर भी सीधे लोगों को ही इन चक्करों में उलझाता है वर्ना कोइ चालू गधा होता तो फ़ंसता ही नही और फ़ंस भी जाता तो ही ही ही करके बाहर भी निकल लेता.
अब धीरे धीरे बात यहां तक आ गई कि दोनों डेटिंग भी करने लग गये. धोबी जब तक कपडे धोता तब तक चन्दू गधा फ़ुर्र हो लेता और वो जवान छोरी भी तडी मारके कालेज से गायब और सीधे जलेबी घाट पर चंदू के साथ....दोनों कभी माल मे जाकर सिनेमा देखते.....कभी काफ़ी शाप में गपशप....दोनों अलग होते तो अपने मोबाईल पर व्हाटस-एप्प या अन्य किसी मेसेंजर को आबाद करते....
ये समझ लिजीये कि चन्दू तो 24 घन्टे इसी परी के ख्वाबों और ख्यालों में डूबा रहने लग गया. उस इश्क के अन्धे को ये भी नही दिखाई दिया कि उन दोनों को खुले आम लप्पे झप्पे करते देख कर दूसरे गधे भी उस कन्या पर डोरे डालने में लगे हुये हैं.कुछ समय बाद चन्दू को लगा की वो कन्या उससे कुछ ढंग से बात नही करती थी और उससे कूछ उखडी उखडी सी रहने लगी थी. अब चन्दू ठहरा सीधा बांका नौजवान और उपर से गधा , सो वो क्या जाने इन अजाबों के चाल्हे....
इस सीधे सादे गधे चंदू को क्या मालूम था कि वो बला तो उसके साथ अपना टाइम पास कर रही थी, वर्ना तो उसके सामने क्या चन्दू और क्या चन्दू की ओकात ! और अपने लिये एक मोटे से बैंक बैलेंस वाले आसामी की तलाश में थी. चंदू तो एक खिलौना था उसके लिये....
अपनी जात से बाहर जाकर प्यार करने के यही अन्जाम हुआ करते हैं गधा होकर आदमजाद से प्यार करने चला था नाशपीटा...... गधा कहीं का....... ! हमने तो यही सुना था कि गधे ही दुल्लत्ती झाडा करते हैं पर इस बला ने तो चन्दू गधे को वो दुल्लत्ती मारी कि चन्दू ओंधे मुंह चारों खाने चित्त हो गया.
वाह रे चन्दू गधे की किस्मत.....तूने भी क्या कमाल दिखाया बेचारे को? असल में हुआ ये की अब उस छोरी का दिल चन्दू से ऊब गया था और वो अपनी तलाश के मुताबिक उसने एक सेठ के गधे को फ़ंसा लिया या खुद फ़ंस गई...! ये सेठ का गधा भी क्या गधा? बल्कि गधे के नाम पर कलंक, पर चुंकि सेठ का गधा था... तो था... आप और हम इसमे क्या कर लेंगे? इसीलिये तो कहते हैं "जिसका सेठ मेहरवान उसका गधा पहलवान" ! बिल्कुल मोटा काला भुसन्ड और दो जवान बच्चों का बाप था ये गधा....
पैसे वाले सेठ का गधा था सो मर्सडीज कार में चलता था और उसने भी इस गधी पर बहुत दिनों से डोरे डालने शुरू कर रखे थे. अब कहां ज्ञानी धोबी का गधा चन्दू और कहां सेठ किरोडीमल का गधा? चन्दू पैदल छाप और ये मर्सडिज बेन्ज मै चलने वाला गधा... सो छोरी को तो फ़सना ही था... फ़ंस ली....हो सकता है दोनों ने एक दूसरे को फ़ंसाया हो या किसी एक ने....पर एक बात पक्की है कि छोरी का फ़ंसना और फ़ंसाना ही उसके प्रिय शगल थे, तो सेठ किरोडीमल के गधे पर ही सारा दोष भी नहीं मढ सकते. किरोडीमल सेठ के गधे ने इस गधी के नखरे उठाने मे कोई कोर कसर नहीं रखी. एपल के मोबाईल से लेकर तो एक से एक ब्रांडेड कपडे, परफ़्यूम गिफ़्ट में ऐसे देता था जैसे चार रूपये की मूंगफ़ली खा ली हो. चन्दू की तो इस सेठ के गधे के सामने ओकात ही क्या ?
अब चन्दू सडक के बीचों बीच गाता जा रहा था..." वो तेरे प्यार का गम इक बहाना था सनम".......ताऊ उधर तैं निकल रह्या था ! गधे नै यो गाना गाते हुये सुण के बोल्या - अबे सुसरी के ! बेवकूफ़ गधे के बच्चे...! इब क्युं देवदास बण रह्या सै? तेरे को पहले सोचना चाहिये था कि इन बलाओं से तेरे जैसे साधारण गधे को इश्क नही करना चाहिये. इनसे तो कोई बडे सेठ का गधा ही इश्क कर सकै सै, फ़िर वो भले ही दो जवान बच्चों का बाप हो या काला मोटा और उम्रदराज हो ? आखिर धन माया ही तो सब कुछ है इस जमाने में...अरे उल्लू के पठ्ठे... ये कोइ लैला मजनूं वाला जमाना नही सै.... अबे गधेराम ये इक्कसवीं सदी है, इसमे तो धन माया के पीछे भाई भाई , बाप बेटे यहां तक की मियां बीबी भी एक दुसरे की कब्र खोद देवैं सै ! तू भले कितना ही सुथरा और शरीफ़ गधा हो, पर है तो तू आखिर ज्ञानी धोबी का ही गधा.....!
और ये सुन कर चन्दू , चुपचाप, हारे जुआरी जैसा कपडे की गठरी लादे जलेबी घाट की और बढ लिय’.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
(सन 2008 की हरयाणवी भाषा में लिखी पोस्ट को सरल हिंदी में प्रस्तुत किया है .)
जय हो ताउ घणी गहरी बात धर दी आज तो ब्लोअ पर , गधो की भी बन आई पर गधे रह्वेंग गधे ही जे बात पक्की से!
ReplyDeleteगधों की तो बन आई.
ReplyDeleteजिसका सेठ मेहरवान उसका गधा पहलवान
ReplyDeleteसेठ की जगह कुछ भी लिखो सैटिंग जम जाती है ताऊ
#हिन्दी_ब्लागिंग_जिंदाबाद
बेचारे गधे ... धोबी से गए ... घाट के न रहे ... फिर भी किस्मत के धनी ...
ReplyDeleteगर्दभ कथा जान के मत दीजे बिसराए .......
ReplyDeleteपटक- पटक कर खूब धोया है ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-07-2017) को "विश्व जनसंख्या दिवस..करोगे मुझसे दोस्ती ?" (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जय गधा पुराण की ...
ReplyDelete"इब क्युं देवदास बण रह्या सै? तेरे को पहले सोचना चाहिये था कि इन बलाओं से तेरे जैसे साधारण गधे को इश्क नही करना चाहिये. इनसे तो कोई बडे सेठ का गधा ही इश्क कर सकै सै, फ़िर वो भले ही दो जवान बच्चों का बाप हो या काला मोटा और उम्रदराज हो ? आखिर धन माया ही तो सब कुछ है इस जमाने में...अरे उल्लू के पठ्ठे... ये कोइ लैला मजनूं वाला जमाना नही सै...."
ReplyDeleteउम्मीद है कि कथा का भावार्थ कम से कम अकलमंद लोग समझ लेँगे
सस्नेह -- शास्त्री
सिर्फ हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
पैसे वाले सेठ का गधा था सो मर्सडीज कार में चलता था और उसने भी इस गधी पर बहुत दिनों से डोरे डालने शुरू कर रखे थे.
ReplyDeleteताऊ थोडा कंफ्युस कर दिया कि वो गधी थी या छोरी .... खैर जो भी हो किस्सा ज़ोरदार रहा
वो तेरे प्यार का गम इक बहाना था सनम
ReplyDeleteगधे हमारे दैनिक जीवन में शब्द बनकर घुस आये हैं.
ReplyDeleteतीखा व्यंग.
नव वर्ष की शुभकामनायें.
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.... रोचक...