आप जानते हैं कि ब्लागिंग जैसे सशक्त माध्यम को ब्लागर सम्मेलन की जगह ब्लागर दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड गयी? सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के कारण ब्लागिंग पर धूल सी चढ गयी है पर हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि हम सब मिलकर इस धूल को धूल चटा देंगे. ब्लागर दिवस मनाने का आईडिया 13 जून की अपनी फ़ेसबुक पोस्ट में सु. अंशुमाला जी ने दिया था कि हर माह की पहली तारीख को फ़ेसबुक से छुट्टी लेकर ब्लाग गांव की तरफ़ चला जाये. हम तो कहते हैं कि पहली तारीख ही क्यों बल्कि निरंतरता से भी किया जा सकता है.
अंशुमाला जी की उपरोक्त पोस्ट पर सु. रश्मि रविजा, श्री मनोज कुमार, सु. अर्चना तिवारी, सु. रंजू भाटिया, श्री सागर नाहर, सु. निवेदिता श्रीवास्तव, श्री विवेक रस्तोगी, सु. शौभना चौरे, सु. अर्चना चावजी, सु. प्रियंका गुप्ता, श्री सोमेश सक्सेना, सु. शिखा वार्ष्नेय, स्वयंभू ताऊ रामपुरिया, सु. वाणी गीत, श्री आशीष श्रीवास्तव, श्री प्रवीण शाह, सु. संध्या शर्मा, श्री सलिल वर्मा, और श्री अंतरसोहिल नें इस विचार का स्वागत किया और इस तरह पहली जुलाई से ब्लागिंगको नये सिरे से संवारने की तरफ़ यह पहला कदम है. आशा है यह कदम आगे बढते रहेंगे.
वैसे फ़ेसबुक सरीखी संवाद की इंस्टेंट फ़ेसीलिटी के अभाव में यह कार्य इतना आसान भी नही होगा लेकिन ब्लाग पर भी इसे किया जा सकता है. ताऊजी डाट काम पर 2009 में एक खुल्ला खेल फ़र्रूखाबादी चलता था जो कमोबेश फ़ेसबुक जैसा ही था, वो तो हमारा आईडिया जुकरू भाई ले उडे और हम पीछे रह गये.
खुल्लाखेल फ़रूखाबादी - 113 की इस पोस्ट पर 516 कमेंट और खुल्लाखेल फ़रूखाबादी (152) : आयोजक उडनतश्तरी पर 616 टिप्पणी संवाद हैं. देखिये और अंदाजा लगाईये कि किस तरह यह एक मनोरंजक संवाद का जरिया था जिस पर शाम 6 बजते ही लोग जम जाते थे. इन पोस्ट पर संवाद यानि टिप्पणियों के रूप में गुफ़्तगू ही थी.
तो पहली जुलाई से शुरू हो जाईये और जिनके ब्लाग के पासवर्ड गुम गये हों वो उसे खोज लें और ब्लाग पर झाडू बुहारी करलें.
ब्लाग दिवस के शुभ अवसर पर ताऊ सद साहित्य प्रकाशन की कुछ अमूल्य पुस्तकें भी 20 प्रतिशत डिस्काऊंट रेट पर उपलब्ध रहेंगी.
इसके अलावा नामचीन ब्लागरों द्वारा लिखी गई दुर्लभ पुस्तके भी रिप्रिंट करवाई जा रही हैं जिन्हें खरीदने से आप पिछली बार वंचित रह गये थे. अबकि बार सूचना मिलते ही बुक करवा लें. यह पुस्तके बार बार नही मिलती.
कुछ नामचीन ब्लागरों की पुस्तकों का विमोचन और उनकी समीक्षा भी ताऊ महाराज करेंगे.
हा हा हा. रौनक लौट आई
ReplyDeleteब्लॉग में एक दिन देने की शुरुआत तो हो, स्वतः सबकुछ रास्ते पर आ जाएगा
ReplyDeleteचौपाल जुटने का इंतजार है। कभी ब्लाग को पेटी-बक्सा करने का ख्याल नहीं आया। इसलिए ताले की जरुरत ही ना पड़ी।हारी-बिमारी-दुःख-तकलीफ में यही सहारा देता रहा है। अब इसी की बदौलत गुणीजनों की सोहबत भी मिल जाएगी।
ReplyDeleteहम तो शामिल हैं महेंदर मिसिर जी , विजय किसलय जी के संग
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (29-06-2017) को
ReplyDelete"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
शुरुआत तो हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. हमारा ब्लॉग तो चकाचक चल रहा है. फ़ेसबुक जैसे सड़ियल प्लेटफ़ॉर्म में तो बस ब्लॉग की खबर टांगने कभी कभार चले जाते हैं :)
ReplyDeleteब्लॉगिंग जिंदाबाद!
ताऊ जी ����
ReplyDeleteअच्छा लग रहा है....पुराने दिनों की याद करके
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झाडू बुहारी कर ली है.........ताऊ सद्साहित्य से प्रकाशित पुस्तकें पढकर अवश्यमेव हम ब्लॉगिंग पर छाई इस धूल को धूल चटा देंगे।
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जय हो , ताऊ धमाल मचाने की पूरी तैयारी हो गई है ..शंखनाद हो ।
ReplyDeleteशुरुआत तो हो
ReplyDeleteव्यक्तिगत कारणों से फेसबुक डीएक्टिवेट किया हुआ था ,एक महीने से मीडिया से भी दूरी थी,आज राजेन्द्र स्वर्णकार जी के व्हाट्स अप सन्देश से जानकारी मिली कि आपने यह यज्ञ प्रारम्भ किया है तो योगदान देना आवश्यक समझा.आशा है हम सभी के प्रयासों से ब्लॉग्गिंग की दुनिया में बहार आएगी .सादर ,अल्पना
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