नाना पाटेकर की किसी फ़िल्म का डायलाग है "साला एक मच्छर आदमी को हिजडा
बना देता है" पर ताऊ का कहना है कि पीठ का दर्द आदमी को नाकारा बना देता
है. पिछले दिनों अचानक पीठ का दर्द शुरू हुआ और इस कदर मेहरवान हुआ कि
ब्लाग पर होली कवि सम्मेलन की सारी पोस्ट आधी अधूरी रह गई. लेपटाप बेचारा
अनछुआ सा कोने में दुबका रहा, उसने भी सोचा होगा चलो इस जालिम ताऊ से कुछ
दिन तो पीछा छूटा. ऐसे मे मोबाईल से ब्लाग वाचन तो चलता रहा, पर मोबाईल से
टिप्पणी करना और पोस्ट लिखना ताऊ के बूते का काम नही है.
ऐसे में किताबे ही एक सहारा रह गयी. किसी भी विषय की किताबे खरीदने और पढने का पुराना शौक रहा है, जब जैसा मूड आ जाये. कुछ ही दिन पहले ”पं. डी. के. शर्मा वत्स” ने एक किताब का नाम सुझाया था, यहां सब जगह तलाश करवाया तो कहीं भी नही मिली. आन लाईन आर्डर किया पर तीन दिन बाद जवाब आया कि किताब स्टाक में नही है, आपका रूपया 10 - 12 दिन में वापस भिजवा देंगे. इसके बाद एक स्थानीय बुकसेलर को आर्डर किया, जिसने सप्ताह भर में बुलवाने का आश्वासन दिया.
पं. डी. के. शर्मा ”वत्स” एक आस्ट्रोलाजर ही नही बल्कि तत्वज्ञानी पुरूष हैं. सुझायी गई किताब भी इसी विषय की थी. पं. डी. के. शर्मा वत्स” के द्वारा सुझायी गई किताब पढने की जिज्ञासा इसलिये भी प्रबल थी कि उनके द्वारा सुझायी गई किताब निहायत ही बहुमूल्य होगी. पं. डी. के. शर्मा ”वत्स” से मेरी जान पहचान एक सामान्य ब्लागर स्तर की जान पहचान से हुई थी जो समय के साथ साथ घनिष्टता में बदल गई.. उन्होंने मेरी ज्योतिष संबंधी भ्रामक धारणाओं को एक वैज्ञानिक आधार में बदल दिया. आज मैं उनको गुरूवत मानता हूं.
अभी सप्ताह भर पहले ही किताब आ गई और ताऊ उस किताब में रम गये. पीठ का दर्द मालूम ही नही पडा. उस किताब को पढते पढते ही एक मित्र कुछ नज्म/गजल/कविता संग्रह की किताबे दे गये थे. गजल का संबंध ताऊ से सिर्फ़ नीरज गोस्वामीजी के ब्लाग तक ही है, ताऊ को ज्यादा समझ नही है गजल ...काफ़िये और बहर की... बस कामचलाऊ ही समझ लें.
मित्र द्वारा दी गई गुलजार साहब की किताब खोलते ही एक रचना पर नजर पडी. उसे पढते पढते युवावस्था से आज तक के जीवन की पूरी तस्वीर आंखों में घूम गई. गुलजार साहब की रचना सरलता और सटीकता से भावों को अभिव्यक्ति करते हुये पाठक को उसी दुनियां में खींच ले जाती हैं. रचना पढते हुये जैसे एक अलग ही दुनियां आंखों के सामने थी. पीठ का दर्द ठीक हो जाये तो अब पुरानी किताबों की धूल झाडनी पडेगी, क्या पता कोई प्रेम पत्र बिन बांचा ही रह गया हो?:)
लीजिये आप भी गुलजार साहब की रचना की चंद पंक्तियां पढिये और अपनी किताबों की आलमारी में रखी किताबों को टटोल लिजिये...क्या पता आपको भी कोई बिन बांचा रूक्का ...सूखे फ़ूल या इत्र का फ़ाहा मिल ही जाये.:)
ऐसे में किताबे ही एक सहारा रह गयी. किसी भी विषय की किताबे खरीदने और पढने का पुराना शौक रहा है, जब जैसा मूड आ जाये. कुछ ही दिन पहले ”पं. डी. के. शर्मा वत्स” ने एक किताब का नाम सुझाया था, यहां सब जगह तलाश करवाया तो कहीं भी नही मिली. आन लाईन आर्डर किया पर तीन दिन बाद जवाब आया कि किताब स्टाक में नही है, आपका रूपया 10 - 12 दिन में वापस भिजवा देंगे. इसके बाद एक स्थानीय बुकसेलर को आर्डर किया, जिसने सप्ताह भर में बुलवाने का आश्वासन दिया.
पं. डी. के. शर्मा ”वत्स” एक आस्ट्रोलाजर ही नही बल्कि तत्वज्ञानी पुरूष हैं. सुझायी गई किताब भी इसी विषय की थी. पं. डी. के. शर्मा वत्स” के द्वारा सुझायी गई किताब पढने की जिज्ञासा इसलिये भी प्रबल थी कि उनके द्वारा सुझायी गई किताब निहायत ही बहुमूल्य होगी. पं. डी. के. शर्मा ”वत्स” से मेरी जान पहचान एक सामान्य ब्लागर स्तर की जान पहचान से हुई थी जो समय के साथ साथ घनिष्टता में बदल गई.. उन्होंने मेरी ज्योतिष संबंधी भ्रामक धारणाओं को एक वैज्ञानिक आधार में बदल दिया. आज मैं उनको गुरूवत मानता हूं.
अभी सप्ताह भर पहले ही किताब आ गई और ताऊ उस किताब में रम गये. पीठ का दर्द मालूम ही नही पडा. उस किताब को पढते पढते ही एक मित्र कुछ नज्म/गजल/कविता संग्रह की किताबे दे गये थे. गजल का संबंध ताऊ से सिर्फ़ नीरज गोस्वामीजी के ब्लाग तक ही है, ताऊ को ज्यादा समझ नही है गजल ...काफ़िये और बहर की... बस कामचलाऊ ही समझ लें.
मित्र द्वारा दी गई गुलजार साहब की किताब खोलते ही एक रचना पर नजर पडी. उसे पढते पढते युवावस्था से आज तक के जीवन की पूरी तस्वीर आंखों में घूम गई. गुलजार साहब की रचना सरलता और सटीकता से भावों को अभिव्यक्ति करते हुये पाठक को उसी दुनियां में खींच ले जाती हैं. रचना पढते हुये जैसे एक अलग ही दुनियां आंखों के सामने थी. पीठ का दर्द ठीक हो जाये तो अब पुरानी किताबों की धूल झाडनी पडेगी, क्या पता कोई प्रेम पत्र बिन बांचा ही रह गया हो?:)
लीजिये आप भी गुलजार साहब की रचना की चंद पंक्तियां पढिये और अपनी किताबों की आलमारी में रखी किताबों को टटोल लिजिये...क्या पता आपको भी कोई बिन बांचा रूक्का ...सूखे फ़ूल या इत्र का फ़ाहा मिल ही जाये.:)
किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती
जो शामें इनकी सोहबतों में कटा करती थीं,
अब अक्सर गुज़र जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें...
इन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई हैं,
बड़ी हसरत से तकती हैं,
ज़ुबान पर ज़ायका आता था जो सफ़हे पलटने का
अब ऊँगली 'क्लिक'करने से अब
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे,
कभी घुटनों को अपने रिहल की सुरत बना कर
नीम सज़दे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ?
वो शायद अब नहीं होंगे.
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती
जो शामें इनकी सोहबतों में कटा करती थीं,
अब अक्सर गुज़र जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें...
इन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई हैं,
बड़ी हसरत से तकती हैं,
ज़ुबान पर ज़ायका आता था जो सफ़हे पलटने का
अब ऊँगली 'क्लिक'करने से अब
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे,
कभी घुटनों को अपने रिहल की सुरत बना कर
नीम सज़दे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ?
वो शायद अब नहीं होंगे.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!
दर्द कहीं भी हो, हानि हिन्दी की हो जाती है।
ReplyDeleteकिताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
ReplyDeleteउनका क्या होगा ?
वो शायद अब नहीं होंगे.
-शायद अब कभी न होंगे....सच है...
पीठ दर्द जल्दी ठीक होवे, शुभकामनायें..
आपका यह लेख और सामान्य रूप ( चोरी बेईमानी से हटकर ) बहुत पसंद आया ताऊ !
ReplyDeleteआभार आपका !
अब समझ में आया आपकी गैरमौजूदगी का मतलब। आजकल अपना भी वही हाल हो गया है। पीठ दर्द से शुरू हुआ, गरदन अकड़ गई। बहुत कम बैठ पाता हूँ नेट पर। ऑफिस से आने के बाद तो बैठने की हिम्मत ही नहीं होती।
ReplyDeleteमजे की बात बताऊँ.. आपने जो गुलजार साहब की नज़्म पढ़ाई है न! उसे मैने भी कुछ दिनो पहले फेसबुक में शेयर किया था। :)
किताबों से दूरी ने बहुत कुछ छीना है .... अब हम बहाने ढूंढते हैं इनसे दूर रहने के
ReplyDeleteजल्दी से ठीक हो जाइए। शिवरात्रि पर ठंडाई पीजिये और बम बम भोले का जयकारा लगाइये!
ReplyDeleteताऊ जी , जल्दी से अपने पीठ का इलाज कराये, मैं भोग रहा हूँ इस दर्द को कई बरसो से.
ReplyDeleteआप सिर्फ हल्का फुल्का योग करे. उससे थोडा सा ठीक रहता है...
आपका
विजय
किताब न सही तब तक मोबाईल को सीने पर रखकर काम चला लीजिये. ये टिप्पणी और आपकी पोस्ट वाचन इसी मोबाईल माध्यम की देन है.
ReplyDeleteताऊ, हर हर बम बम... जल्द स्वस्थ हों. किताबों की जगह टैबलेट और लैपटाप नहीं ले सकते. घनघोर ताऊ छाप पोस्ट की प्रतीक्षा.
ReplyDeleteतभी मै सोच रही थी कि, ताऊ फिरसे गायब कैसे हो गए ? तो मामला पीठ दर्द का था चलो इसी बहाने थोडा लैपटाप को आराम तो मिल गया :)
ReplyDeleteवैसे पीठ दर्द से निजात पाने के लिए योगा ही एक अच्छा समाधान है ...यदि डाक्टर के दिए पेन किल्लर से बचना चाहते है तो, बिमारी में अच्छी पुस्तक स्नेही मित्र की तरह तन और मन को शांति देती है !बहुत सुन्दर पोस्ट है आभार ...जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाईये यही कामना !
ये महिलाओं वाली बीमारी ताऊ को !
ReplyDeleteताई का साथ इस कद्र निभा रहे हैं क्या !
चलिए इसी बहाने कुछ सार्थक पढने को तो मिला।
लेकिन अब होली आने वाली है। जल्दी से ठीक हो जाइये , वर्ना ताई का कोल्ह्ड़ा तैयार है।
शुभ शिवरात्रि आपको परिवार सहित
ReplyDeleteवाह, कमर दर्द से गुलज़ार के दर्द तक की बात भी अपनी ही तरह की खास है
ReplyDeleteमगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
ReplyDeleteऔर महके हुए रुक्के
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ...
कई नाज़ुक लम्हे जो जी उठते थे किताबों के बहाए अब वो न रहेंगे ...
आशा है पीठ का दर्द जल्दी ही ठीक होगा ... शुभकामनायें ..
पीठ का दर्द आशा है अब बेहतर होगा.
ReplyDeleteपूरा आराम करिए और नई-पुरानी किताबें पढते रहिये.होली तक तो दर्द पूरी तरह ठीक हो ही जायेगा.
होली पोस्ट के अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी.
ताऊ,
ReplyDeleteकिसी अच्छे होमेओपैथ के पास जाइए , एक दो डोज़ में ठीक हो जाओगे !
अगर न मिले तो दिल्ली आ जाओ ..
शर्तिया इलाज़ !
ब्लॉग पोस्ट देख कर ख़ुशी हो रही है कि ताऊ का कमर दर्द ठीक हो गया :)
ReplyDelete