प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 102 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है तेली का मंदिर, ग्वालियर फ़ोर्ट, ग्वालियर
पहेली के विषय से संबंधित जरा सी जानकारी मिस. रामप्यारी आपको दे रही है.
ताऊ पहेली 102 में आपको जो चित्र दिखाया था वो ग्वालियर किले में स्थित मंदिरों में 100 फ़ुट ऊंचाई वाला सबसे उंचा मंदिर है जिसे तेली का मंदिर कहते हैं और अंगरेजी मे इसे Oilman's Temple के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर से तेली शब्द जुडा होना कुछ अटपटा सा लगता है.
तेली का मंदिर, ग्वालियर
इसके बारे में कहा जाता है कि राष्ट्रकूट शासक गोविंदा III (793-814) ने 794 में ग्वालियर फ़ोर्ट पर अधिकार कर लिया और इस मंदिर का पूजा अर्चना कार्य तैलंग ब्राह्मणों को सौप दिया इस वजह से मंदिर का नाम यह पड गया. एक अन्य मतानुसार कुछ तेल के व्यापार करने वालों या तेली जाति के लोगों ने इस मंदिर के निर्माण की शुरूआत की थी इस वजह से इसका नाम तेली मंदिर पडा. पर ऐसा लगता है कि इसका संबंध तैलंगाना (आंध्र प्रदेश) से रहा होगा जो स्थानीय बोली में वक्त के साथ बदलकर वर्तमान में पुकारे जाने वाले नाम "तेली का मंदिर" में बदल गया होगा.
Gwalior Fort
खैर नाम में क्या रखा है पूरे उत्तर भारत में ग्वालियर किले में स्थित तेली मंदिर में आप द्रविड़ आर्य स्थापत्य शैली का अदभुत समन्वय देख सकते है. ग्यारहवीं शताब्दि में बना यह मंदिर ग्वालियर फ़ोर्ट में बना सबसे पुराना मंदिर है. गंगोला ताल के निकट बने इस मंदिर के शिखर ऊपर की तरफ़ संकरे एवं बेलन की तरह गोलाई लिये हुये है. तेली मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ़ है. प्रवेश द्वार के एक ओर कछुए पर यमुना व दूसरी ओर मकर पर विराजमान गंगा की मानव आकृतियां हैं. अंदर आयताकार गर्भगृह में छोटा सा मंडप और निचले भाग में 113 छोटे देव प्रकोष्ठ हैं जिनमें देवी-देवताओं की मुर्तियां थीं. पर वर्तमान समय में यहां कोई मूर्ति नहीं है. यह एक विष्णु मंदिर था परंतु कुछ इतिहासविद इसे शैव मंदिर मानते हैं.
सास बहु का मंदिर, ग्वालियर
आर्य द्रविड़ शैली मिश्रित इस मंदिर का वास्तुशिल्प अद्वितीय है. मंदिर के बाहरी दिवारों पर चारों तरफ़ विभिन्न आकार प्रकार के फूल पत्तों, पशु पक्षियों और अनेको देवी देवताओं की अलंकृत आकृतियां हैं. कुछ जगहों पर आसुरी शक्तियों वाली आकृतियां एवं प्रणय निवेदन करती प्रतिमाए भी दिखाई देती हैं । मंदिर के शिखर के दोनों तरफ़ चैत्य गवाक्ष बने हुये हैं. अग्र भाग में ऊपर की तरफ़ बीच में गरूढ़ नाग की पूंछ पकड़े हुये है.
आर्य द्रविड़ शैली के इस मंदिर को सन 1231 में, यवन आक्रमणकारी इल्तुमिश द्वारा मंदिर का अधिकांश हिस्सा ध्वस्त कर दिया गया था. इसके उपरांत 1881--1883 ई. के मध्य अंग्रेज शासकों द्वारा मंदिर के पुरातात्विक महत्व के मद्देनजर मेजर कीथ के मार्गदर्शन में ग्वालियर किले पर स्थित अन्य मंदिरों, मान महल [मंदिर] के साथ-साथ तेली मंदिर का भी सरंक्षण करवाया. मेजर कीथ ने ही इधर-उधर बिखरे पड़े भग्नावशेषों को जुटाकर तेली मंदिर के सामने भव्य और आकर्षक द्वार भी बनवाया. द्वार के नीचे की तरफ़ लगे दो अंगरेजी भाषा के शिलालेखों में इस संरक्षण कार्य पर होने वाले खर्च का भी वर्णन मिलता है.
वर्तमान समय में मंदिर का केवल पूर्व का प्रवेश द्वार है. तेली मंदिर को दिल्ली के सुलतानों के शासन काल में ध्वस्त कर दिया गया था तत्पश्चात ब्रिटिश शासन काल में हुये मरम्मत कार्य से मंदिर का मूल स्वरूप नष्ट हो गया है, तथापि मेजर कीथ इन मंदिरों के संरक्षण व मरम्मत कार्य का बीड़ा उठाने के लिये साधुवाद के पात्र हैं.
ग्वालियर संगीत सम्राट तानसेन की जन्मभूमि (ग्राम - बेहट) है जिस के लिए कहावत प्रसिध्द है कि यहां बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुढकते है तो ताल में. तानसेन की याद में राष्ट्रीय तानसेन संगीत समारोह संस्कृति परिषद के अंतर्गत उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत कला अकादमी (मध्यप्रदेश कला परिषद) के द्वारा आयोजित किया जाता है. भारतीय संगीत की कोई ऐसी ख्यातिनाम हस्ती नही है जो यहां ना आई हो और जिसने यहां आकर अपने आपको आकर धन्य ना समझा हो. भारत रत्न पंडित रविशंकर ने वर्ष 1989 के तानसेन समारोह में प्रस्तुति उपरांत कहा था कि यहां एक जादू सा होता है, जिसमें प्रस्तुति देते समय एक सुखद रोमांच की अनुभूति होती है.
Tansen-Tomb-Gwalior
आप भी अगर संगीत का शौक रखते हैं तो एक बार प्रतिवर्ष होने वाले तानसेन संगीत समारोह में आकर ख्यातिनाम संगीतज्ञों को यहां रूबरू सुनने का सौभाग्य अवश्य प्राप्त करें. आपको संगीत में वो नाद ब्रह्म सुनाई देगा जो आपके ड्राईंग रूम में बजती डीवीडी/सीडी से नही सुनाई दे सकता. यहां की संगीत सभाओं में बैठा शख्स एक अलौकिक दुनियां में पहुंच जाता है.
ग्वालियर रेल, रोड और हवाईजहाज से पूरे देश से जुडा हुआ है. ग्वालियर भ्रमण के लिये गर्मियों का मौसम टाल देवे क्योंकि यहा गर्मी के मौसम में लू चलती है. बाकी मौसम में कभी भी आप जा सकते हैं.
अब आपको ताऊ पहेली 102 के विजेताओं से मिलवाती हूं. सभी को हार्दिक बधाईयां.
आज के प्रथम विजेता हैं
प्रथम विजेता श्री दिनेशराय द्विवेदी अंक 101
आईये अब बाकी विजेताओं से आपको मिलवाती हूं.
अब उनसे रूबरू करवाती हुं जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया
श्री Tarkeshwar Giri
सुश्री M.A.Sharma "सेहर"
श्री नीरज जाटजी
सुश्री निर्मला कपिला
श्री अंतरसोहिल
डाँ. अरुणा कपूर
सुश्री anshumala
श्री संजय भास्कर
सुश्री वन्दना
श्री नरेश सिंह राठौड
श्री Gagan Sharma
श्री महेंद्र मिश्र
सुश्री anju
श्री स्मार्ट इंडियन
पहेली के विषय से संबंधित जरा सी जानकारी मिस. रामप्यारी आपको दे रही है.
ताऊ पहेली 102 में आपको जो चित्र दिखाया था वो ग्वालियर किले में स्थित मंदिरों में 100 फ़ुट ऊंचाई वाला सबसे उंचा मंदिर है जिसे तेली का मंदिर कहते हैं और अंगरेजी मे इसे Oilman's Temple के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर से तेली शब्द जुडा होना कुछ अटपटा सा लगता है.
तेली का मंदिर, ग्वालियर
इसके बारे में कहा जाता है कि राष्ट्रकूट शासक गोविंदा III (793-814) ने 794 में ग्वालियर फ़ोर्ट पर अधिकार कर लिया और इस मंदिर का पूजा अर्चना कार्य तैलंग ब्राह्मणों को सौप दिया इस वजह से मंदिर का नाम यह पड गया. एक अन्य मतानुसार कुछ तेल के व्यापार करने वालों या तेली जाति के लोगों ने इस मंदिर के निर्माण की शुरूआत की थी इस वजह से इसका नाम तेली मंदिर पडा. पर ऐसा लगता है कि इसका संबंध तैलंगाना (आंध्र प्रदेश) से रहा होगा जो स्थानीय बोली में वक्त के साथ बदलकर वर्तमान में पुकारे जाने वाले नाम "तेली का मंदिर" में बदल गया होगा.
Gwalior Fort
खैर नाम में क्या रखा है पूरे उत्तर भारत में ग्वालियर किले में स्थित तेली मंदिर में आप द्रविड़ आर्य स्थापत्य शैली का अदभुत समन्वय देख सकते है. ग्यारहवीं शताब्दि में बना यह मंदिर ग्वालियर फ़ोर्ट में बना सबसे पुराना मंदिर है. गंगोला ताल के निकट बने इस मंदिर के शिखर ऊपर की तरफ़ संकरे एवं बेलन की तरह गोलाई लिये हुये है. तेली मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ़ है. प्रवेश द्वार के एक ओर कछुए पर यमुना व दूसरी ओर मकर पर विराजमान गंगा की मानव आकृतियां हैं. अंदर आयताकार गर्भगृह में छोटा सा मंडप और निचले भाग में 113 छोटे देव प्रकोष्ठ हैं जिनमें देवी-देवताओं की मुर्तियां थीं. पर वर्तमान समय में यहां कोई मूर्ति नहीं है. यह एक विष्णु मंदिर था परंतु कुछ इतिहासविद इसे शैव मंदिर मानते हैं.
सास बहु का मंदिर, ग्वालियर
आर्य द्रविड़ शैली मिश्रित इस मंदिर का वास्तुशिल्प अद्वितीय है. मंदिर के बाहरी दिवारों पर चारों तरफ़ विभिन्न आकार प्रकार के फूल पत्तों, पशु पक्षियों और अनेको देवी देवताओं की अलंकृत आकृतियां हैं. कुछ जगहों पर आसुरी शक्तियों वाली आकृतियां एवं प्रणय निवेदन करती प्रतिमाए भी दिखाई देती हैं । मंदिर के शिखर के दोनों तरफ़ चैत्य गवाक्ष बने हुये हैं. अग्र भाग में ऊपर की तरफ़ बीच में गरूढ़ नाग की पूंछ पकड़े हुये है.
आर्य द्रविड़ शैली के इस मंदिर को सन 1231 में, यवन आक्रमणकारी इल्तुमिश द्वारा मंदिर का अधिकांश हिस्सा ध्वस्त कर दिया गया था. इसके उपरांत 1881--1883 ई. के मध्य अंग्रेज शासकों द्वारा मंदिर के पुरातात्विक महत्व के मद्देनजर मेजर कीथ के मार्गदर्शन में ग्वालियर किले पर स्थित अन्य मंदिरों, मान महल [मंदिर] के साथ-साथ तेली मंदिर का भी सरंक्षण करवाया. मेजर कीथ ने ही इधर-उधर बिखरे पड़े भग्नावशेषों को जुटाकर तेली मंदिर के सामने भव्य और आकर्षक द्वार भी बनवाया. द्वार के नीचे की तरफ़ लगे दो अंगरेजी भाषा के शिलालेखों में इस संरक्षण कार्य पर होने वाले खर्च का भी वर्णन मिलता है.
वर्तमान समय में मंदिर का केवल पूर्व का प्रवेश द्वार है. तेली मंदिर को दिल्ली के सुलतानों के शासन काल में ध्वस्त कर दिया गया था तत्पश्चात ब्रिटिश शासन काल में हुये मरम्मत कार्य से मंदिर का मूल स्वरूप नष्ट हो गया है, तथापि मेजर कीथ इन मंदिरों के संरक्षण व मरम्मत कार्य का बीड़ा उठाने के लिये साधुवाद के पात्र हैं.
ग्वालियर संगीत सम्राट तानसेन की जन्मभूमि (ग्राम - बेहट) है जिस के लिए कहावत प्रसिध्द है कि यहां बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुढकते है तो ताल में. तानसेन की याद में राष्ट्रीय तानसेन संगीत समारोह संस्कृति परिषद के अंतर्गत उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत कला अकादमी (मध्यप्रदेश कला परिषद) के द्वारा आयोजित किया जाता है. भारतीय संगीत की कोई ऐसी ख्यातिनाम हस्ती नही है जो यहां ना आई हो और जिसने यहां आकर अपने आपको आकर धन्य ना समझा हो. भारत रत्न पंडित रविशंकर ने वर्ष 1989 के तानसेन समारोह में प्रस्तुति उपरांत कहा था कि यहां एक जादू सा होता है, जिसमें प्रस्तुति देते समय एक सुखद रोमांच की अनुभूति होती है.
Tansen-Tomb-Gwalior
आप भी अगर संगीत का शौक रखते हैं तो एक बार प्रतिवर्ष होने वाले तानसेन संगीत समारोह में आकर ख्यातिनाम संगीतज्ञों को यहां रूबरू सुनने का सौभाग्य अवश्य प्राप्त करें. आपको संगीत में वो नाद ब्रह्म सुनाई देगा जो आपके ड्राईंग रूम में बजती डीवीडी/सीडी से नही सुनाई दे सकता. यहां की संगीत सभाओं में बैठा शख्स एक अलौकिक दुनियां में पहुंच जाता है.
ग्वालियर रेल, रोड और हवाईजहाज से पूरे देश से जुडा हुआ है. ग्वालियर भ्रमण के लिये गर्मियों का मौसम टाल देवे क्योंकि यहा गर्मी के मौसम में लू चलती है. बाकी मौसम में कभी भी आप जा सकते हैं.
श्री आशीष मिश्रा अंक 100 |
श्री दर्शन लाल बावेजा अंक 99 |
सुश्री इंदू अरोडा अंक 98 |
श्री P. N. Subramanian अंक 97 |
प. अनिल जी शर्मा अंक 96 |
श्री पी.सी.गोदियाल, अंक 95 |
श्री राणा प्रताप सिंह अंक 94 |
Dr.Ajmal Khan अंक 93 |
सु. POOJA R SHARMA अंक 92 |
श्री सोमेश सक्सेना अंक 91 |
|
श्री विजय कर्ण अंक 89 |
श्री गजेंद्र सिंह अंक 88 |
श्री ओशो रजनीश अंक 87 |
श्री बिग बास अंक 86 |
श्री Shekhar Suman अंक 85 |
श्री सुज्ञ अंक 84 |
श्री अविनाश वाचस्पति अंक 83 |
प. डी.के. शर्मा "वत्स", अंक 82 |
श्री मोहसिन अंक 81 |
सु. Trisha अंक 80 |
श्री M VERMA अंक 79 |
श्री शमीम अंक 78 |
श्री उपेन्द्र अंक 77 |
श्री रतन सिंह शेखावत अंक 76 |
श्री Surendra Singh Bhamboo अंक 75 |
श्री Tarkeshwar Giri
सुश्री M.A.Sharma "सेहर"
श्री नीरज जाटजी
सुश्री निर्मला कपिला
श्री अंतरसोहिल
डाँ. अरुणा कपूर
सुश्री anshumala
श्री संजय भास्कर
सुश्री वन्दना
श्री नरेश सिंह राठौड
श्री Gagan Sharma
श्री महेंद्र मिश्र
सुश्री anju
श्री स्मार्ट इंडियन
सभी प्रतिभागियों का बहुत आभार प्रकट करते हुये रामप्यारी अब आपसे विदा चाहेगी अगली पहेली के जवाब की पोस्ट में मंगलवार सुबह 4:44 AM पर आपसे फ़िर मुलाकात के वादे के साथ, तब तक के लिये जयराम जी की.
ताऊ पहेली के इस अंक का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और रामप्यारी ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.
दिनेश जी को हार्दिक शुभकामनायें .....और बाकि मित्रों को भी ....
ReplyDeleteताऊ जी ..मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद ...अब बुलाने की जरूरत न पड़े ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
सभी विजेताओं को बधाई..
ReplyDeleteताऊ जी मेरे ब्लॉग का लिंक नहीं दिया गया है ...कोई विशेष कारण ?????
रामप्यारी की गणित कमजोर है मगर जी.के. जोरदार ...
ReplyDeleteविजेताओं को बधाई !
प्रथम विजेता श्री दिनेशराय द्विवेदी जी सहित समस्त विजेताओं को ढेरों बधाई ............
ReplyDelete-
-
ताऊ जी अब कई बताऊ मन्ने पहेली का उत्तर ८:५ पे मिल गया था पर जैसे ही आपके ब्लॉग पर उत्तर देने आया कि नेट डिसकनेक्ट हो गियो..........
:(
द्विवेदी जी को बधाई!
ReplyDeleteसभी को बधाई, एक सास-बहू का भी मन्दिर है यहाँ पर।
ReplyDeleteदिनेश जी और बाकी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनायें ..
ReplyDeleteदिनेश जी और बाकी विजेताओं को हार्दिक शुभकामनायें ..
ReplyDeleteमुझे जवाब बंटी चोर के कमेंट से मिला। इसे कहते हैं फर्रे चलाना औरे चल गया फर्रा।
ReplyDeleteबेबस बेकसूर ब्लूलाइन बसें
बधाई विजेता और विजेताओं को .... ज्ञानवर्धक अच्छी पहेली के लिए आभार....
ReplyDeleteसभी विजेताओं को घणी सारी बधाई!!!
ReplyDeleteदो साल पहले यह किला देखने गयी थी पर इस मंदिर के बारे में कुछ याद नहीं आ रहा है ,एक सास बहू का मंदिर जरूर देखा था ,वहाँ की सारी फोटो भी देख डाली हैं पर यह मंदिर अपनी तस्वीरों में नहीं मिला .शायद गाइड दिखाना भूल गया होगा .इस जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .अगले महीने फिर ग्वालियर जाना है ,अब जरूर देख कर आऊँगी .
ReplyDeleteBadhai jeetne walon ko ...
ReplyDelete